Friday, November 30, 2012

" ये भारतीय नारी है - लाने वाली बीमारी है " ??

आज जिस घटना का ज़िक्र मेरी पोस्ट पर है ., शायद वो आपको झकझोर दे .... एक सच ...... ज़रूर पढ़े ..... 
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                   दो दिन पहले भिलाई के कुछ पुराने मित्रो से शाम को वही टी-स्टाल पर मिलना हुआ., गप्पो के दौर के बीच में ., उनमे से एक मित्र ., जो की एक " सोनोग्राफी " सेंटर में टेक्नीशियन की पोस्ट पर कार्यरत है ., उसने अपने संस्थान में घटित घटना का वृत्तांत बताया ... उसने बताया 
की उसके संस्थान में दो दिन पहले एक व्यक्ति अपनी सुपुत्री जिसकी उम्र यही कोई सोलह - सत्रह वर्ष की होगी . उसे सोनोग्राफी टेस्ट के लिए लेकर आए .., उस युवती के पिता के अनुसार ., उनकी सुपुत्री को लगभग डेढ़ - दो माह से पेट में दर्द की शिकायत थी .., जिसके चलते डाक्टर की सलाह के अनुसार उन्होंने सोनोग्राफी करवाने का निर्णय लिया था ...



कुछ देर प्रतीक्षा करने के पश्चात उस युवती को सोनोग्राफी टेस्ट रूम में रेडियोलाजिस्ट के पास भेजा गया .., रेडियोलाजिस्ट ने जब युवती का टेस्ट किया तब वो अचंभव में पड़ गयी ... कारण कुछ और नहीं ., युवती ने दो माह के लगभग की अवधि का गर्भ-धारण किया था ., रेडियोलाजिस्ट ने दो माह के अविकसित - भ्रूण की पुष्टी कर दी .... टेस्ट कम्प्लीट हो जाने के बाद में जब युवती के पिता को रेडियोलाजिस्ट ने अपने पर्सनल चैंबर रूम में ले जाकर जब सारी बात बताई ., तब उस युवती के पिता के पैरो तले ज़मीन ही खिसक गयी ... मेरे मित्र ने बताया की उस व्यक्ति के मुह से कुछ बोल ही नहीं फूट रहे थे ...
खैर ., वह व्यक्ति अपनी सुपुत्री के साथ चुपचाप टेस्ट की रिपोर्ट लिए बिना ही वहा से तनाव की लकीरे माथे पर लिए निकल गया ....

मैंने उत्सुकतावश युवती के विषय में पूछ लिया की ., वो दिखती कैसी थी., कुछ ज्यादा ही माडर्न कल्चर की थी या साधारण परिवार की लग रही थी ... इत्यादि ...
मित्र ने बताया ., वो उस युवती के पिता को जानता है ., वो शहर के एक व्यवसायी है .., और उनकी बेटी शायद कही बाहर जाकर पढ़ती है ... युवती के विषय में उसने बताया की अपनी अदाकारी से तो वो कुछ ज्यादा ही माडर्न ख्यालात की लग रही थी ...

मुझे लगभग सारा माज़रा समझ में आ गया ... सब विदेशी कल्चर का अनुशरण ., वही गर्लफ्रेंड - बायफ्रेंड पद्धति .... कान्वेंट स्कूल - कॉलेजों में संस्कार कम सांसारिक -व्यवहार कुछ ज्यादा ही सीखाये जाते है ., तभी तो उस व्यक्ति की पुत्री आज एक अनैतिक आयु में गर्भ-धारण करके बैठी है ....

खैर ., सही मायनों में अगर इस घटना पर गौर किया जाए ., तो बात " संस्कार " पर आकर ही रुकेगी ....
मैं अपनी पिछली पोस्ट पर हमेशा से ही कहता आया हूँ .. जब - जब हम विदेशी संस्कृति का अनुशरण करेंगे ., - तब तब ये घटनाएं घटती ही रहेंगी ... मैं पूरे एक सौ एक कारण दे सकता हूँ ....
अब इस पोस्ट को सकारात्मकता की दृष्टि से देखियेगा ., जिन - जिन भाइयो - बहनों ., माताओ के घर में किशोरी / युवतीया हो ., उन्हें संस्कारों का महत्त्व बताये ...

पोस्ट के साथ जो छाया - चित्र है ., इसे देखकर आप समझ ही जायेंगे की आज की युवतीया भी कितनी संस्कार-विहीन हो गयी है ..


                      


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Thursday, November 29, 2012

" 5th pillar corrouption killer " की आशँका हुई सच साबित ! गुजरात में " श्वेता-भट्ट " बनी कान्ग्रेसी उम्मीदवार !!!??

     प्रिय पाठक मित्रो , सादर नमस्कार !! " 5th pillar corrouption killer " की आशँका हुई सच साबित ! गुजरात में " श्वेता-भट्ट " बनी कान्ग्रेसी उम्मीदवार !!!?? जिस प्रकार से गुजरात में श्री संजीव भट्ट साहिब मोदी जी के खिलाफ ज़हर उगल रहे थे , और तथाकथित " सेकुलर " लोग उनकी मदद कर रहे थे मुझे तो तभी आभास हो गया था कि हो न हो ये एक     " सुनियोजित षड्यंत्र " का ही एक हिस्सा मात्र है !!
                   लेकिन गुजरात और भारत की जनता बहुत समझ दार है , वो भलीभांति जानती है कि कौन सही है और कौन गलत ???? पेश है आपके समक्ष वो लेख जो हमने उस वक्त लिखा था.....!! कृपया आप इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर भी करें !!!!
                      धन्यवाद  !! 
                

Tuesday, October 4, 2011

"देखना गुजरात में " भट्ट " की पत्नी बनेगी विधानसभा की कांग्रेसी उमीदवार ..!"

राजनीती में आने की चाह रखने वाले दोस्तों , मेरा नमस्कार स्वीकार करें !,आज ही  मैंने न्यूज चेनल पर गुजरात के पूर्व पुलिस अधिकारी  श्री संजीव  भट्ट की पत्नी को ये कहते सुना की मोदी जी ने  उस पुलिस  वाले को प्रमोशन का  वादा किया है , इसलिए वो हमारे  खिलाफ हुआ है ..... आदि आदि | उनके हाव-  भाव देख कर मैंने भी भविश्यवान्नी  करदी की ये महिला  हमारी नेता है , चाहे विधान सभा में जाय या लोकसभा में | कांग्रेस पार्टी ने पूरी तैयारी करली है | अब आप कहोगे की  तुम्हे  क्यों जलन हो  रही है ???  तो भाइयो ये कथा मैंने आपको इस लिए बताई है क्योंकि ये भी भ्रष्टाचार का ही दूसरा रूप है | करे चाहे कोई  लेकिन है  भ्रष्टाचार  और इसकी निंदा  भी होनी चाहिए  | आप कहोगे तो भाई अभी से  क्यों रो  रहा है ,?  तो वो इस लिए क्योंकि आज से पहले कई ऐसे महापुरुष और देवियाँ हैं जो  इस प्रकार के भ्रष्टाचार की कीमत के बदले कई राजनितिक पार्टियों का प्रचार कर चुके हैं | इसमें कई बड़े - बड़े नाम आ जाते हैं बेचारे ये पुलिस वाले और अफसर बेचारे किस खेत की मूली हैं ??? ये तो होते ही प्रिय सेवादार हैं ??  अगर जाट विधायक बन गया तो वंहा लगभग सारे जाट अफसर आ जाते हैं और दूसरा  विधायक बन गया तो दुसरे अफसर ...?  इसी तरह  से अदाकारों , कलाकारों और  बेचारों  को जनता के हित  के  लिए नेता साडी पार्टियों द्वारा बनाया जाता है ? अब  आप कहोगे की ये " बेचारे " कौन है ?  ये अपने एन.जी.ओ. और कौन ? ये सारी उम्र  दूसरों की मदद  जो करते हैं , तो राजनितिक दलों का भी फ़र्ज़ बनता है की नहीं भाई ??? अब ये दूसरी बात  है की ये  लोग समस्या उठा तो सकते हैं लेकिन हल  निकालने हेतु  सत्ता नहीं संभाल  सकते ?? हर राह है .... काँटों भरी ..... चलना भी है .... और संभलना भी | जय श्री राम !!बोलना पड़ेगा भाई सबको .........????? जय श्री --- राम ! 

2 comments:

  1. ये एन. जी. ओ. का चक्कर पूरे देश में चल रहा है और जैसा आपने बताया कि गुजरात में एक उम्मीदवार तो पक्का हो गया है जी नहीं दो हो गये है। दूसरा बताओ तो सही।
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  2. पर भट्ट भी हिंदू ही है राम की पूजा भी करते हैं, मुसलमान होती तो बात और होती। तुम तो अब मसुलमानों के साथ हिंदुओं का विरोध करने लगे। कैसे हिंदू हो। हिंदू एकता की बात करते हो।
    ReplyDelete

                                                            
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Wednesday, November 28, 2012

" क्या करेगा .....आम आदमी "( mango-man ) ...? ?

मेरे प्यारे "मेंगो-मैन" और वुमन मित्रो, मीठा मीठा आफ्सीज़न वाला प्यार भरा नमस्कार !!
 कृपया स्वीकार कीजिये !!!!
    राष्ट्रीय-दामादश्री वाड्रा जी ने एकदम सही फ़रमाया था कि ये देश " बनाना - रिपब्लिक " है और यंहा का निवासी " मैंगो-मैन " !! यानि " अंधेर नगरी - चोपट राजा " !! यंहा के लोगों को मूर्ख बनाना कितना आसान है, इसके उदाहरण नित नए-नए सामने आते रहते हैं !! तभी तो हम सेंकडों सालों तक गुलाम रहे !!आज़ाद होने के बाद सुनने में आता है कि हमारे नेताओं ने " आंबेडकर " जी के नेतृत्व में एक नए " संविधान " का निर्माण किया,जिसका " एहसान " हम कभी नहीं उतार पायेंगे ??? जिस प्रकार हम पिछले 67 सालों से आरक्षण देकर एक भी व्यक्ति को " स्वर्ण " नहीं बना सके !!??
               कुछ विद्वान लोग  तो                                     कहते हैं कि 95% हमारा संविधान अंग्रेजों वाला ही है !!?? जो आज के " अमीरों " की ही रक्षा करता है !!?? मेरे एक मित्र ने एक घटना मेरे साथ सांझी की है, वो मैं आपको भी बता रहा हूँ....
                   Kumar Sauvirposted toPancham stambh
जी हां,
दिल्‍ली के बालकराम इलाके की शिक्षिका उमा खुराना की जिन्‍दगी सुधीर चौधरी और उसके गुर्गों ने खराब ही दी थी। सुधीर तो आज जेल में है, जबकि उसका एक गुर्गा हिमाचल प्रदेश के मुख्‍यमंत्री के बेटे के साथ देशभक्ति यात्रा चला रहा है। दिलचस्‍प बात तो यह है कि सुधीर चौधरी के करीबी संबंध उस नवीन जिंदल से रहे हैं जिनकी शिकायत पर ही सुधीर आज जेल के सींखचों में हैं।
करीब दो साल पहले की बात है। दिल्‍ली के इतिहास में इससे बड़ा हादसा शायद ही कोई रहा होगा, जब पत्रकारिता के नाम पर एक शिक्षिका को लेकर पूरा शिक्षा-जगत तड़प गया।
मामला कुछ यूं रहा।
बताते हैं कि बालक राम इलाके में रहने वाली एक भद्र शिक्षिका उमा खुराना के मकान पर किरायेदारी को लेकर एक विवाद चल रहा था। यह किरायेदार भी महिला ही थी जिसके संबंध लाइव-टीवी के रिपोर्टर प्रकाश सिंह से थे। जानकारों के मुताबिक प्रकाश सिंह की मदद पुलिसवालों और स्‍थानीय गुंडों से लेकर की गयी ताकि उमा खुराना को नीचा दिखाया जाए। एक अन्‍य सूत्र के मुताबिक इसी बीच इस चैनल के बड़े पत्रकारों ने हस्‍तक्षेप किया और उमा से लड़कियां सप
्‍लाई करने के साथ ही रकम उगाहने की साजिश की गयी। लेकिन उषा ने ऐसी ओछी मांग को ठुकरा दिया।
लेकिन इसके बाद तो उस पर जैसे बादल ही फट गया। प्रकाश ने फर्जी फुटेज हासिल कर उसे उमा की फोटोज और उसकी गतिविधियों पर मैनेज कर दिया। लो, बन गयी एक स्टिंग रिपोर्ट।
खुलासा किया गया कि उमा ऐसी शिक्षक-कुलंक है जो अपने स्‍कूल की लड़कियां देह-व्‍यापार के लिए सप्‍लाई करती है। हंगामा हो गया। उमा की जगह-जगह पिटाई की गयी। मारपीट-तोडफोड़ हुई। उसकी नाक काटने तक का प्रयास किया गया। उसके बच्‍चों का नाम स्‍कूल से काट दिया गया और उमा खुराना को उसके स्‍कूल से निकाल बाहर किया गया।।
हालांकि, बाद में पुलिस जांच में यह पूरा मामला फर्जी निकला। फर्जी खबर फ्लैश करने के आरोप में सरकार ने उस चैनल को बंद करा दिया। लेकिन उमा की छीछालेदर जितनी हो सकती थी, वह तो हो ही चुकी थी, तब तक। उधर प्रकाश सिंह हिमाचल के मुख्‍यमंत्री के बेटे के नेतृत्‍व में रैली-यात्रा का दायित्‍व प्रकाश को मिल गया जो अब हेलीकॉप्‍टर से घूम रहा है।
उधर, सुधीर चौधरी का ढीहा नवीन जिंदल ने सम्‍भाल दिया। सारे सुख-साधन मुहैया कराये नवीन ने चौधरी को। लेकिन आज उसी चौधरी ने जिंदल को ही डस लिया।
                                                            मैं खाप नहीं हूं कि कोई पत्रकारिता के नाम पर कुछ भी करे और मैं उनकी रक्षा में, उनके पक्ष में बाप बनकर खड़ा हो जाउं. जिन्हें पत्रकारिता का मानक संपादक दिखाने की कोशिश की जा रही है और जिनकी गिरफ्तारी पर रोया जा रहा है. वो राजद्रोह के लिए, सत्ता के ख़िलाफ़ मुखर होने के लिए और जनहित में पूंजी की चतुरंगिणी सेना से नहीं जा भिड़े थे और न ही उसके लिए हिरासत में हैं. दलाली और सौदेबाज़ी ने पत्रकारिता को कोठे पर बैठा दिया है. मालिक के सामने इतने विवश हैं तो मूंगफली बेचना शुरू कर दीजिए. केंचुए की तरह घिसट-घिसटकर मत चलिए और न सियारों की तरह बिरादरी पर खतरे का सायरन बजाइए - पाणिनी आनंद
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आपका मित्र
पीताम्बर दत्त शर्मा 

Tuesday, November 27, 2012

आम आदमी को "आम" की तरह ख़ास आदमी चूसता रहा है..!!


Monday, November 26, 2012


"आम आदमी को "आम" की तरह ख़ास आदमी चूसता रहा है ...मुग़ल कालीन जुमला है "कत्ले आम" यानी यहाँ भी आम आदमी का ही क़त्ल होता था ...अंग्रेजों के समय भी आम आदमी ही गुलाम था ...नेहरू से मनमोहन तक भी आम आदमी की खैर नहीं रही ...रोबर्ट्स बढेरा को भी बनाना रिपब्लिक घोटाले की डकार लेते हुए मेंगो रिपब्लिक लगने लगा कार्टून की दुनिया में आर के लक्ष्मण के "आम आदमी" की हैसियत काक के कार्टूनों में भी नहीं बदली ...आम आदमी पर वामपंथी कविता सुनते ख़ास आदमी ने भी द्वंदात्मक भौतिकवाद दनादन बघारा ...आम आदमी की चिंता में संसद के ख़ास आदमी अक्सर खाँसते हैं ...अब केजरीवाल को भी आम आदमी को आम की तरह चूसना है ...अरे भाई आम आदमी वह है जिसे केरोसीन के तेल का मोल पता हो ...राशन की दूकान की कतार में कातर सा खडा हो ...आलू की कीमत से जो आहात होता हो ...जो बच्चों के साथ खिलोनो की दूकान से कतरा कर निकलता हो ...जो बच्चों को समझाता हो कार बालों को डाईबिटीज़ हो जाती है क्योंकि वह पैदल नहीं चलते ...आम आदमी अंगरेजी नहीं बोलता ...आम आदमी के बच्चे मुनिस्पिल स्कूल में पढ़ते है। वहां टाट -पट्टी पर बैठ कर इमला लिखते हैं ...वह जब कभी रोडवेज़ बस से चलता है ...उसका इनकम टेक्स से उसका कोई वास्ता नहीं होता किन्तु वह इनकम टेक्स अधिकारी से भी उतना ही डरता है जितना और सभी घूसखोर अधिकारियों से डरता है क्योंकि घूस देने पर उसके सपनो का एक कोना तो टूट ही जाता है ...आम आदमी देश की मिट्टी से जुडा होता है वह खेत की मिट्टी देख कर बता देता है कि यह बलुअर है या दोमट ...आम आदमी मिट्टी देख कर बता देता है इस मिट्टी में कौन सी फसल होगी बिलकुल वैसे ही जैसे कोई केजरीवाल बताता हो इस मिट्टी में कौन सा वोट उगेगा ?" --- राजीव चतुर्वेदी
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Monday, November 26, 2012

कौन बनेगा कांग्रेस का " तारनहार " ? ?




कांग्रेस की नैया कांग्रेस डगमगा रही है। उम्मीदें राहुल गांधी पर टिकी हैं। 'युवराज' की ताजपोशी का उपक्रम चल रहा है, लेकिन जनमानस में यक्ष प्रश्न तैर रहा है कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस की नैया पार लगा पाएंगे? उनके अतीत के कुहासे में इसका उत्तर खो सा जाता है। कांग्रेस भय ग्रस्त है, बेचैन भी कि कौन करेगा कांग्रेस की नैया पार? पार्टी के खिलाफ पूरे देश में लोकलहर है। पार
्टी के रूप में उसकी पहचान खो चुकी है। सोनिया गांधी का प्रबंधन नेतृत्व असफल हो चुका है। कांग्रेस उन्हीं पर निर्भर थी, और है। सोनिया गांधी अध्यक्ष बनी थीं 1998 में। वे भारत का मन नहीं जानतीं। भारतीय संस्कृति से उनका जुड़ाव नहीं। 14 बरस हो गये उनकी अध्यक्षी के, लेकिन कांग्रेस उनकी जगह लेने वाला कायदे का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी नहीं खोज पायी। अब कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की परम्परा भी नहीं है। कांग्रेस ने सत्ता के लिए संप्रग बनाया। स्वाभाविक ही इसका 'रिमोट कंट्रोल' सोनिया के पास रहा। संप्रग-1 की सरकार में वे 'सुपर पी.एम.' कही जाती थीं। वे पर्दे के पीछे थीं। दूसरी दफा इसकी जरूरत नहीं रही। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने पहले कार्यकाल में ही सिद्ध कर दिया था कि वे सोनिया गांधी द्वारा मनोनीत, सोनिया गांधी के प्रति निष्ठावान और उनके दिशा-निर्देश पर ही चलते हैं। 8 बरस हो गये मनमोहन राज के। प्रधानमंत्री ने अपने प्राधिकार का सदुपयोग कभी नहीं किया। भारत का राजकोष लूट का 'कामनवेल्थ' बना, 'कामनवेल्थ' खेल घोटाला हुआ। प्रधानमंत्री निर्विकार रहे। सरकार और भ्रष्टाचार पर्यायवाची बन गये। देश की सबसे पुरानी पार्टी कायदे का एक प्रधानमंत्री भी नहीं खोज पायी।

जरूरत है नेता की

कांग्रेस को एक नेता चाहिए। भारत के जन को स्वीकार्य, भारत की भाषा-बोली वाला। भीतर-बाहर मन, वचन और कर्म से भारतीय। राष्ट्रवादी और लोकप्रिय। इसी तरह सत्तारूढ़ संप्रग को तेज रफ्तार काम करने वाला आगामी चुनाव तक नतीजा-दिलाऊ प्रधानमंत्री चाहिए। प्रधानमंत्री ऐसा कि राहुल के 'स्टेज' पर आते ही कुर्र्सी छोड़ दे। अर्थशास्त्र के सुयोग्य विद्वान डा. मनमोहन सिंह बाद वाली शर्त ही पूरी करते हैं। वे हटने को तैयार हैं, अभी, यहीं, फौरन। सोनिया जी के संकेत मात्र पर वे 'पूर्व' होने को तत्पर हैं, लेकिन 2014 तक लोक-लुभावन नतीजे देने की क्षमता कहां से लाएं? वे स्वदेशी अर्थशास्त्र के कायल हैं नहीं। उनका अर्थशास्त्र घूमघुमाकर 'प्रत्यक्ष विदेशी निवेश' पर ही टिकता है। उनका अर्थशास्त्र भी प्रत्यक्ष विदेशी है। बावजूद इसके, अमरीका जैसे मनमोहन-मित्र देश के मीडिया ने उन्हें असफल बताया। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कांग्रेस का सर्वाधिक प्रिय लोभ है। सो कांग्रेस ने अपनी राष्ट्रीय अध्यक्षी में भी 'प्रत्यक्ष विदेशी निवेश' लागू कर रखा है। टूट कर बिखरते जाना कांग्रेस की नियति है। कांग्रेस 1969 से ही बिखर रही है। तब हरेक टुकड़े ने अपने नाम के बाद कोष्ठक लगाए थे। कांग्रेस संगठन ने कांग्रेस (ओ.), निजलिंगप्पा के नेतृत्व वाले धड़े ने कांग्रेस (एन) व सत्तारूढ़ कांग्रेस ने कांग्रेस (आर.-रूलिंग) नाम रखे।
सत्ता का लक्ष्य

दरअसल राजनीतिक दल पुष्ट विचार लेकर ही अखिल भारतीय होते हैं। कांग्रेस राष्ट्रवादी होकर ही अखिल भारतीय बनी थी, लेकिन अब राष्ट्रवाद छोड़ चुकी है। जब सत्ता ही इसका लक्ष्य रह गया तो शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस बना ली। ममता बनर्जी की संघर्षशील छवि से सोनिया कांग्रेस का मेल नहीं था सो प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस बन गयी। सम्प्रति ममता कांग्रेस से खफा हैं। संप्रग के घटक दल धौंसिया रहे हैं। भीतर से समर्थन देने वाले मुंह फुलाए हैं, बाहर से समर्थन देने वाले मोटा 'डेली वेजेज' मेहनताना पा रहे हैं। मुंहमांगी बख्शीश पाने वाले भी तीसरे-चौथे मोर्चे की धमकी दे रहे हैं। कांग्रेस जानती है कि कांग्रेस का अस्तित्व सत्ता से ही जुड़ा हुआ है। सत्ता हाथ से गई तो इस अधमरी कांग्रेस को कौन पूछेगा। सो कांग्रेस के दरबारी हलकान हैं। सत्तावापसी के सबके अपने नुस्खे हैं। चुनाव के पहले कुछ कर दिखाने पर जोर है। मगर नेता का सवाल बड़ा है। कांग्रेस का चेहरा ठीक नहीं है, उस पर कोयला घोटाले की कालिख है, टू.जी. की आकाश छूती तरंगों के साथ भ्रष्टाचार के धब्बे हैं। कांग्रेस नेता लाए कहां से? कांग्रेस में नेहरू परिवार के बाहर का नेता नहीं चलता। लेकिन कांग्रेस बदलाव दिखाना चाहती है।
प्रधानमंत्री ने कैबिनेट में फेरबदल किया। बदलाव दिखाने के लिए। देखो-'हम बदल रहे हैं। सलमान खुर्शीद के पारिवारिक एन.जी.ओ. पर विकलांगों का धन हड़पने के आरोप थे। हम नहीं डरे। निडर हैं। उन्हें विदेश मंत्री बनाया है। पी. चिदम्बरम् पर तमाम आरोप थे। उन्हें वित्त मंत्री बनाया। यही सार्थक बदलाव है।' तय हुआ कि संगठन में भी फेरबदल हो। लेकिन कांग्रेस में पार्टी नहीं प्रापर्टी की तरह 'डील' होती है। कांग्रेस प्रापर्टी में नेहरू परिवार की पूंजी लगी है। इसीलिए कांग्रेस पं. नेहरू के बाद पुत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की प्रापर्टी-पार्टी हो गयी। श्रीमती गांधी की दुखद हत्या के बाद प्रापर्टी स्वाभाविक रूप में पुत्र राजीव गांधी को मिली। उनकी हत्या हो गयी। सोनिया जी ने थोड़े दिन प्रतीक्षा की, फिर बिना कोई चुनाव कराए ही सीताराम केसरी को हटाकर वे अध्यक्ष बनीं। इस प्रापर्टी के असली वारिस राहुल गांधी हैं। वंशानुगत 'प्रोप्राइटरशिप' के चलते कांग्रेस छीजती रही, टूटती और ध्वस्त होती रही। राहुल असली वारिस हैं ही। वे सामने आए। बिहार चुनाव में उन्होंने काफी भागदौड़ की। अनुभवी कांग्रेसियों ने भी राहुल से चमत्कार की उम्मीदें कीं। लेकिन राहुल 'फ्लाप' रहे।
नई व्याख्याएं

कांग्रेसी भाई लोगों ने नई व्याख्या की कि राहुल ने तो करिश्मा दिखाया लेकिन स्थानीय संगठन कमजोर था। यू.पी. में भी राहुल ने काफी मशक्कत की। वे 'वंचितों' के घर गये। निर्दोष गरीबों ने 'अतिथि देवोभव' की भारतीय परम्परा का पालन किया। सत्तारूढ़ मायावती घबरा गईं। राहुल ने रोड शो किये। पुराने कांग्रेसी भी जवान हो गये। युवा आगे-पीछे बताए जाते रहे, लेकिन नतीजा शून्य रहा। मध्य प्रदेश वाली दिग्विजयी रणनीति भी 'फ्लाप' रही। आश्चर्य है कि यह सब जानते हुए भी कांग्रेस राहुल पर ही दांव लगा रही है। कांग्रेस करे तो क्या करे? कांग्रेस सोनिया की। राहुल सोनिया के। राहुल का विकल्प सोचना भी वहां अनुशासनहीनता है। कांग्रेस लाचार है। बेबस, दयनीय और आई.सी.यू. में 'वेंटीलेटर' से आक्सीजन लेती कांग्रेस के पास दूसरा कोई चेहरा है ही नहीं। दिग्विजय सिंह ने बताया कि राहुल को तमाम नई जिम्मेदारियां मिली हैं, अब कांग्रेस की ताकत बढ़ेगी। कहा जा रहा है कि राहुल को नई 'टीम' मिली है, कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटेगी। लेकिन राहुल ने सूरजकुण्ड में कहा कि आम आदमी राजनीतिक दलों के पास नहीं जाते। क्यों नहीं जाते? राहुल ने यह बात नहीं बताई। कांग्रेस 1885 से काम कर रही है। गांधी-पटेल के समय आम आदमी कांग्रेस में था। कांग्रेस में तब सभी विचारधाराओं के लोग थे। अब सोनिया की कांग्रेस में आम आदमी क्यों जाये? कांग्रेस में आम आदमी की भर्ती किसने रोकी? आम आदमी ने ही कांग्रेस को दीर्घकाल तक सत्ता-सुख दिया। लेकिन कांग्रेस का हाथ आम आदमी पर तमाचे की तरह पड़ा।
आम आदमी दूर

आम आदमी की रसोई पर डाका डाला कांग्रेसी सरकार ने। तेल, रोटी, दाल, नमक महंगा हुआ कांग्रेसीराज में। आम आदमी की दवाई महंगी, बच्चों की पढ़ाई महंगी। उसका जीवन महंगा। कांग्रेस ने किया क्या? आम आदमी और कांग्रेस का क्या रिश्ता? हजारों किसान आत्महत्या करें, आप राजकोष लूटें। सो आम आदमी खार खाए बैठा है कांग्रेस से। उस पर भी खुदरा व्यापार से रोटी-रोजी कमा रहे करोड़ों लोगों की रोजी छीनने का कांग्रेसी कारनामा। कांग्रेस को विदेशी कम्पनियां प्रिय हैं, विदेशी निवेश ही कांग्रेस की जान, शान और पहचान है। आम आदमी लोकसभा चुनाव में खरा जवाब देने को तैयार है- 'मतदान के लिए भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करो। 'आउटसोर्सिंग' करो। वोटर भी बाहर से लाओ।' सोनिया- राहुल को टका सा जवाब देने का काम उ.प्र. में विधानसभा चुनाव के समय ही शुरू हो गया था। राहुल अपनी संसदीय सीट वाली विधानसभा की कई सीटें हार गये, सोनिया के गढ़ रायबरेली में भी कांग्रेस साफ हो गयी। हालिया दौरे में जनता ने तीखे सवाल पूछे। लाजवाब राहुल आम जनता को जवाब नहीं दे पाये।
जनता देगी हिसाब

कांग्रेस में न जनतंत्र और न राष्ट्रीय निष्ठा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आजीवन हैं। राहुल इस पार्टी के आजीवन 'प्रोप्राइटर' हैं। वे स्वयं राष्ट्रीय अध्यक्ष हो जायें या कार्यसमिति भंग कर संयोजक हो जाएं। वे चुनाव अभियान के प्रमुख बनें या कुछ भी न बनें। राहुल राहुल हैं। राहुल का अर्थ है कांग्रेस का तारनहार। कांग्रेस में राहुल के पद का कोई मतलब नहीं। कद की चर्चा बेकार। वरिष्ठ अनुभवी और सम्मानित कांग्रेसी भी राहुल के कद के सामने 'राग दरबारी' हैं। लेकिन जनता के पास एक-एक दिन का हिसाब है। कांग्रेस के हरेक काले कारनामे, काली कमाई व कालेधन का भी लेखा है। सोनिया सरकार के 8 साल में ईसाई मतान्तरण भी बढ़ा है। मजहबी आरक्षण की मांग को कांग्रेस ने ही कभी सच्चर कमेटी, तो कभी रंगनाथ मिश्र आयोग के जरिए आगे बढ़ाया है। कांग्रेस ने संवैधानिक संस्थाओं को बेइज्जत किया है। 'कैग' की पिटाई जारी है। 'कैग' ने बोफर्स, टूजी व कोयला घोटाला सहित भ्रष्टाचार के तमाम गगनचुम्बी खम्भों की नींव खोद दी है। आम आदमी ने कांग्रेस की नींव हिला दी है। कांग्रेस की विदाई का वक्त है। राहुल के सामने अभी मौका था। वे इसी सरकार में प्रधानमंत्री हो सकते थे। अभी भी हो सकते हैं। आगे खाई है। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। कांग्रेस देर-सबेर पुरातात्विक अभिलेखों में ही मिलेगी। वह भी ईमानदार शोधार्थियों को, सबको नहीं।
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Sunday, November 25, 2012

स्वराज की अवधारणा: शंका एवं समाधान ( 'स्वराज टोपी ' वालो के लिये विशेष पठनीय )..!!




गाँधीजी ने स्वराज के वर्षो पूर्व 1909 में ही हिन्द स्वराज जैसी छोटी-सी किताब लिखकर अपनी कल्पना के स्वराज का चित्र खींचा था। स्वराज प्राप्ति के लिए उन्होंने नैतिक साध्नों का इस्तेमाल का व्यापक आंदोलन किया। लेकिन गाँधीजी के हत्या से यह संभव नहीं हो पाया।

पाश्चात्य लोकतांत्रिक देशों में चुनाव के साथ-साथ प्रबल लोकमत-ध्र्मसंस्था, विद्यापीठ, श्रमिक संगठन, प्रेस इत्य
ादि शक्तियों द्वारा शासन की मनमानी पर चतुर्विध् अंकुश लगाने का काम होता है। भारत की लोकशाही में इसका अपेक्षाकृत अभाव है। चुनाव के लिए राजनीतिक दलों द्वारा लगने वाला खर्च सरकार द्वारा किया जाना, सानुपातित प्रतिनिधित्व (प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन), प्रतिनिधि का वापस बुलाने का अधिकार, मतदाता को अभिक्रम का अधिकार, आममत आदि अनेक माध्यमों से कुछ देशों में लोकशाही की मनमानी पर अंकुश रहता है।

लोकतंत्र के दो प्रकार हैं। पहला केन्द्रित प्रतिनिधिक लोकतंत्र। यहां चुनाव में जीते हुए लोक प्रतिनिधि शासन की सारी सत्ता निहित होती है। उसे वापस नहीं बुलाया जा सकता। दूसरा, विकेन्द्रित सहभागी लोकतंत्र इसमें ज्यादा से ज्यादा सत्ता नीचे की ईकाई के पास होती है। यानी ग्रामसभा नगरपालिका के पास होती है। केन्द्र यानी संसद या विधानसभा के हाथ में कम से कम सत्ता रहती है। संपूर्ण विकेन्द्रित लोकतंत्र तो संभव ही नहीं है क्योंकि सुरक्षा, विदेश नीति, दूसरे देशों के साथ कार्य व्यवहार,अनेक नीचे की ईकाईयों के कार्यों का समन्वय, देश में एक प्रकार की मुद्रा का प्रचलन इत्यादि विषयों में एक गांव (या नगर) क्या कर सकेगा? एकसूत्रता साघने और समन्वय बिठाने का कार्य भी केन्द्र के पास ही स्वाभाविक रूप में रहेगा। लेकिन बचे हुए सारे विषय और उनके कारोबार का अधिकार प्राथमिक ईकाई के पास रहने चाहिए। इससे काम ठीक होगा, जल्दी होगा, मितव्ययितापूर्ण और भ्रष्टाचार से मुक्त होगा और सामान्य व्यक्ति की पहुंच के भीतर होगा। भारत के लोगों को इसका अनुभव प्रतिदिन होता ही है।

शंका-समाधान

1. शंका: इससे केन्द्र कमजोर होगा। केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में विषय कम करने से केन्द्र कमजोर होगा, ऐसी शंका अनेक लोग प्रकट करते हैं।

समाधान: परिणाम ऐसा नहीं होगा क्योंकि लोगों को अपनी शासन व्यवस्था स्वयं करने को अधिकाधिक स्वतंत्रता दी जाए तो वे राष्ट्र के रूप में कहीं अधिक एकताबद्ध और शक्तिशाली होंगे। भारत में रहने वाले भिन्न-भिन्न समुदाय अधिक प्रेम से एक साथ रह सकेंगे। अपने विषय अपने हाथ में केन्द्रित करने वाले बलवान राष्ट्र का बाहरी रूप ही बलवान होने का भास होता है। ऐसे केन्द्र को अंदर से अनेक तरह के दबावों और तनावों के बीच काम करना होता है। उसे विघटित होकर बिखर जाने का खतरा बना रहता है। इस तरह का बलवान केन्द्र लोकतंत्र से धीरे-धीरे दूर और अधिकाधिक सर्व सत्तावादी होता जा रहा है। विकेन्द्रीकरण से केन्द्र निर्बल हो जाएगा, यह तर्क गलत है। निर्वाचित सत्ता हर स्तर पर कार्य करती है जिसके लिए वह सक्षम है। जो विषय उसकी क्षमता से बाहर हैं उन्हें ही ऊपर के स्तर पर सौंपे जाते हैं। इसलिए यह क्षमता का प्रश्न बन जाता है। विषयों की संख्या किसी इकाई के पास ज्यादा हों तो वह बलवान होती है, ऐसा नहीं है। ऊपरी स्तर पर भारी-भरकम और फैला हुआ केन्द्र, जो हर विषय पर अपनी टांग अड़ाता हो, देखने में भले ही मजबूत मालुम पड़े लेकिन वास्तव में होगा कमजोर, खोखला, मंदगति और निकम्मा। राष्ट्रीय एकता और शक्ति इस बात पर निर्भर नहीं है कि केन्द्रीय सरकार के अधिकार क्षेत्र के विषयों की सूची कितनी बड़ी है, बल्कि भावनात्मक एकता, जनता के समान अनुभव, आकांक्षाएं, सहिष्णु और सबसे अधिक राष्ट्रीय नेताओं की विशाल हृदयता आदि स्थायी तत्वों में निहित है।

2. शंका: पिछडे़ गांव के नागरिकों को सत्ता देना गलत है। अपना शासन स्वयं करने की योग्यता उनमें नहीं है।

समाधान: ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सदियों तक ग्रामीण जनता को कुछ विषयों में मजबूरन पिछड़ी हालत में रखा गया है। तथापि शहर के चुने हुए तबके के लोगों से किसी भी अर्थ में नैतिकता या बुद्धि की दृष्टि से वे पिछड़े हुए नहीं हैं। यदि इसे मान भी लिया जाए तो भी इस इस कारण उन्हें स्वशासन के अधिकार से वंचित रखना गलत, अलोकतांत्रित और धृष्टतापूर्ण होगा। गुलाम भारत को अधिकार देने के बारे में अंग्रेज यही तर्क देते थे। आखिर सुराज्य, स्वराज का विकल्प नहीं हो सकता। तथाकथित पिछड़ी देहाती जनता पलटकर आगे बढ़े हुए शहरी शिक्षितों से यह सवाल नहीं पूछ सकती कि क्या वे राष्ट्र का शासन सफलतापूर्वक कर सके हैं? अवश्य की विकेन्द्रीकरण द्वारा सत्ता मिलने पर गलतियां होंगी। लेकिन, पहले तो उत्तरदायित्व को निभाने के लिए स्वशासन की योग्यता और आवश्यक क्षमता प्राप्त की जा सकती है। फिर पिछडे़पन का इलाज जनता को उसके सार्वभौम अधिकारों से वंचित रखना नहीं, बल्कि जितना शीघ्र हो सके उसे शिक्षित और जागृत करना है।

3. शंका: ऐसा होगा तो गांव पीछे जाएंगे।

समाधान: विकेन्द्रीकरण के कारण गांवों में परंपरागत सुविधा-संपन्न एवं बलवान वर्ग अपना प्रभुत्व स्थापित करेगा, तो गांव फिर से पीछे जाएंगे। लेकिन इसका इलाज जनता पर अविश्वास करना और लोकतंत्र के दायरे से आगे बढ़ने से रोकना नहीं है। बल्कि स्वयं विकेन्द्रीकरण के ढांचे में ऐसी सुरक्षात्मक व्यवस्था कर दी जाए, जिससे नेतृत्व करने वालों के लिए समाज के पिछड़े और निर्बल लोगों को ऊपर उठाना अनिवार्य बना दे।

4. शंका: कार्य असंभव है। इनता बड़ा की लगभग असंभव-सा कार्य कैसे हो सकेगा।

समाधान: इसका उत्तर यह है कि हर असंभव-सा कार्य करने से पहले असंभव ही लगता है। प्रारंभ करने के बाद वह हो जाता है, उसकी इतिहास गवाही देता है। शस्त्राविहीन राष्ट्र ने शांतिपूर्ण उपायों द्वारा स्वतंत्रता कैसे प्राप्त की? देशी राज्यों को राष्ट्र के रूप में कैसे समाहित कर लिया गया? चांद पर पहुंचने का असंभव कार्य मानव ने किस प्रकार कर दिखाया? इसलिए निराश होने की जरूरत नहीं है, बल्कि प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने की आवश्यकता है।

5. शंका: बढ़ती हुई बेकारी, आर्थिक विषमता, वैश्वीकरण, प्रदूषण और सांप्रदायिकता इत्यादि चुनौतियों का जवाब कौन देगा? ऐसा आज के नेता और सरकार कैसे करेंगे?

समाधान: इसकी राह हम देखते रहे तो परिवर्तन हो चुका। इन्हीं राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थों ने तो इन चुनौतियों को पैदा करने की आग लगाई है। इनमें से कुछ लोग की अपवादस्वरूप निकलेंगे, जिन्हें खोना नहीं है। लेकिन ऐसे सारे समूहों से यह अपेक्षा करना निरा भोलापन होगा। इस कार्य की पहल स्वयं ही करनी होगी। डॉक्टर ही दवाई पी ले तो रोगी स्वस्थ नहीं होगा। इसलिए परिवर्तन की पहल स्वयं का करनी होगी। विनोबा हमेशा कहते थे- आज संसार में They'ism चलता है। यानि उपाय सरकार करे या अन्य कोई करे-हम नहीं। सर्वोदय का प्रतिपादन है कि हम इसे करेंगे। हम We'ism के उपासक बनें।

रामभरोसे खबरीलाल
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Saturday, November 24, 2012

" स्वच्छ नेता चुनने हेतु जागरूक नागरिकों की एक कमेटी का गठन raviwar ko " !!

 प्रिय सूरतगढ़ के नागरिक मित्रो, नमस्कार !!

  अपने शहर सूरतगढ़ में भी पूरे भारत की तरह  एक                       स्वच्छ नेता चुनने हेतु जागरूक नागरिकों की एक कमेटी का गठन  करने के लिए, रविवार दिनांक 2 नवम्बर2012 को प्रातः 11-00 बजे, हेल्प- लाईन-बिग-बाज़ार,आर.सी.पी. रोड, पंचायत समिति भवन के सामने, सूरतगढ़ . पर एक मीटिंग रक्खी गयी है ! जो भी सज्जन इस पुण्य कार्य को करने में  रूचि रखते हो, उनका स्वागत है, सादर - निमंत्रण है   ! !
          इस कमेटी के गठन के पश्चात,पूरे विधानसभा क्षेत्र में एक व्यापक सर्वे करवाया जाएगा, जनता, बुद्धिजीवियों,समाजसेवियोंऔर स्वच्छ व्यवहार वाले नेताओं से पूछा जाएगा की वो सब कैसे                          और कौन से व्यक्ति को अपना सांसद या विधायक चुनना चाहते हैं !! उनसे ये भी पूछा जायेगा कि क्या उन्हें कोई नया व्यक्ति चाहिए या जो इस समय हमारे सामने हैं उन्हीं में से कोई पसंद है !! इस सर्वे और पूछताछ से जिस भी लोकप्रिय व्यक्ति का नाम हमारे सांसद-विधायक हेतु सामने आएगा , वो फिर चाहे किसी भी दल का होगा, या चाहे वो निर्दलीय भी होगा हम जनता को जागरूक करके उसे ही आगामी चुनावों में जिताने की भरपूर कोशिश करेंगे !! 
                            इस पूरे कार्यक्रम की वीडियो शूटिंग करके जनसहयोग से, केबल पर, टीवी चेनल्स पर भी दिखाया जाएगा !! पूरे मिडिया को इस जनहित के कार्य में अपना सहयोगी बनाया जायेगा ! 
                           दुसरे शहरों के जागरूक मित्र भी अगर इसी नामसे अपने शहर में इसी उद्देश्य हेतु कमेटी का गठन करना चाहते हैं , तो ज्यादा जानकारी हेतु इंटरनेट पर मशहूर ब्लॉग " 5th PILLAR CORROUPTION KILLER " के लेखक - पीताम्बर दत्त शर्मा से मोबयिल नंबर 09414657511 पर संपर्क करें !! ब्लॉग खोलने का लिंक ये है - www.pitamberduttsharma.blogspot.com.
 इलावा इसके  आप हमसे फेसबुक, पेज और ग्रुप पर भी संपर्क कर सकते हैं !! जोकि इसी नाम से है !! 
               *** जय  - हिन्द **
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Wednesday, November 21, 2012

आखिर ये राम-नाम है क्या ?..........!! ( DR. PUNIT AGRWAL )


जिस नाम का भेद परमात्मा-स्वरुप सतगुरु से प्राप्त होता है, उस नाम से तुलसीदास जी का क्या तात्पर्य है, यह बहुत ही अहम् विषय है । आखिर ये राम-नाम है क्या ? यह नाम न तो किसी भी धर्म में आये अवतार विशेष का वर्णात्मक नाम नहीं हो सकता, क्योंकि तुलसीदास जी इस राम-नाम को सर्वोच्च सत्ता मानते हैं जिसने पूरी कायनात, सूर्य, चन्द्र आदि नक्षत्रों और अग्नि आदि तत्वों सहित समूची सृष्टि की उत्पत्ति की है । देवताओं में शिरोमणि माने जाने वाले ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी इसे सिर झुकाते हैं । तुलसीदास जी इस राम-नाम को परमात्मा का स्वरुप मान कर इसकी वन्दना करते हुए कहते हैं:

बंदऊँ नाम रघुबर को । हेतु कृसानु भानु हिमकर को ।। (भानु - सूर्य; हिमकर - चन्द्रमा )

भानु कृशानु मयंक को कारन रघुबर नाम ।
बिधि हरि शिरोमणि प्रणत सकल सुखधाम ।।

हिन्दू लोग क्यों आदमी के अंतिम सफ़र में जाते हुए क्यों बोलते हैं - "राम-नाम सत है, सत बोलो गत है" ? इसका अर्थ है सिर्फ राम-नाम ही इस कायनात में सत्य है, बाकी सब असत्य है, छलावा है, माया है जो नाशवान है । अगर हम इस सत्य के साथ जुड़ेंगे तो सतगति होगी अन्यथा मनुष्य जन्म व्यर्थ गया । क्या हमने इस पर विचार किया है ? यह वाक्य तो हर रोज़ हमें दोहराना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए । मरने के बाद यह वाक्य मुर्दे के कान में फूँकने से क्या लाभ ? अगर पूरी ज़िन्दगी माया से दोस्ती की तो क्या मरने के बाद राम-नाम सहारा देगा ? अगर जीते जी अनपढ़ रहे तो क्या मरने के बाद क्या एम ए, बी ए की डिग्री मिल जायेगी ?

तुलसीदास जी के अनुसार इस राम-नाम के नामी, अर्थात परमात्मा से एकता का सम्बन्ध है और परमात्मा नाम का ही अनुगमन करता है अर्थात नाम के पीछे चलता है । यही गुरु नानक का 'एक ओ सतनाम' है । यही आदि निरंजन, एकंकार और अकाल पुरुख है । दूसरे शब्दों में, जहां नाम प्रकट होता है, वहाँ प्रकट होता है; या यों कहें कि राम-नाम द्वारा ही परमात्मा की प्राप्ति होती है । इस बात को बताते हुए तुलसीदास जी कहते हैं:

समुझत सरिस नाम अरु नामी । प्रीति परसपर परभू अनुगामी ।। (मानस 1:20:1)

गुरु नानक जी राम-नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं:

नानक निरमल नादु सबद धुनि सचु रामै नामि समाइदा ॥१७॥५॥१७॥ (SGGS 1038)

O Nanak, the immaculate sound current of the Naad, and the Music of the Shabad resound; one merges into the True Name of the Lord. ||17||5||17||
विदित है कि राम-नाम के शहंशाह गुरु नानक देव न केवल राम-नाम बल्कि नाद, शब्द, धुन, सच का एक ही अर्थ में प्रयोग कर रहे हैं ।

गुरु नानक के अनुसार राम-नाम या शब्द या हुक्म एक परम चेतन, निराकार सत्ता से है । यह वह अकथ कथा है जिसको "ज़बान प्रकट नहीं कर सकती, कान सुन नहीं सकते, कलम लिख नहीं सकती और भाषा जिसका वर्णन नहीं कर सकती ।" यह इन्सानी मन-बुद्धि से परे की हकीकत है । यह हर प्रकार के द्वैत, हर तरह के परिवर्तन से परे का वह सच है जी सृष्टि की हर वस्तु और हर प्राणी में रमा हुआ है । सच्चे पातशाह गुरु नानक साहिब समझाते हैं कि शब्द के बिना हमारे अन्दर अन्धेरा ही अन्धेरा रहता है । जब हिमालय के सिद्ध गुरु साहिब से प्रश्न करते हैं कि भवसागर से पार कराने वाला शब्द कहाँ रहता है ? दस प्रकार की पवन में से वह किसके सहारे टिका हुआ है:

सु सबद का कहा वासु कथीअले जितु तरीऐ भवजलु संसारो ॥
त्रै सत अंगुल वाई कहीऐ तिसु कहु कवनु अधारो ॥ (SGGS 944)

Where is the Shabad said to dwell? What will carry us across the terrifying world-ocean? The breath, when exhaled, extends out ten finger lengths; what is the support of the breath?

परम दीनदयाल गुरु नानक साहिब फरमाते हैं कि शब्द या राम-नाम सर्वव्यापक है और हरेक के अपने अन्दर ही है । जिस ओर नज़र करें शब्द ही शब्द है । शब्द ऐसी 'अकल-कला' (अर्थात अक्रत्रिम कला) जो अपने सहारे आप खडी है, किसी दूसरे पर निर्भर नहीं है ।
सु सबद कउ निरंतरि वासु अलखं जह देखा तह सोई ॥
पवन का वासा सुंन निवासा अकल कला धर सोई ॥ (SGGS 944)


That Shabad dwells deep within the nucleus of all beings. God is invisible; wherever I look, there I see Him. The air is the dwelling place of the absolute Lord. He has all qualities.

नामी या परमात्मा अपने को नाम के रूप में ही व्यक्त करता है । परमात्मा के निर्गुण (निराकार) व सगुण (साकार) - दो रूप ही माने जाते हैं । राम-नाम परमात्मा के इन दोनों रूपों का सार है । परमात्मा का निर्गुण रूप और उसका सगुण (,मनुष्य या देह धारी सतगुरु) रूप - दोनों वास्तव में नाम से अभिन्न हैं । फिर भी तुलसीदास जी साधक की व्यवहारिक द्रष्टि राम-नाम को परमात्मा के निर्गुण और सगुण - दोनों रूपों से अधिक उपयोगी या महत्वपूर्ण बतलाते है; क्योंकि राम-नाम में परमात्मा की दोनों ही रूपों की अच्छाइयाँ विद्धमान हैं और साथ ही राम-नाम इन दोनों रूपों की त्रुटियों से रहित है । ऐसा क्यों ? बड़े ही ध्यान से समझने का विषय है । परमात्मा (निर्गुण और निराकार) अपने ही बनाये विधान के अनुसार अपने मूल स्वरुप (आदि निरंजन) में इस जड़ संसार में प्रकट नहीं हो सकता । इस प्रकार कहा जा सकता है कि परमात्मा के निर्गुण रूप में यह त्रुटि है, या यों कहें कि निर्गुण और निराकार परमात्मा हम संसारी जीवों की सीमित शक्ति के कारण हमारी पहुँच से बाहर है । परमात्मा अपने निगुण स्वरुप में अविनाशी है (अच्छाई), पर यह अगम और अगोचर, अर्थात हमारी पहुँच से बाहर है (त्रुटि), जबकि अपने सगुण (मनुष्य) रूप यह सुगम और इन्द्रिय-गोचर, अर्थात हमारी पहुँच के अन्दर है (अच्छाई), पर यह आम इन्सान की तरह नश्वर है (त्रुटि) । राम-नाम की विशेषता यह है कि वह परमात्मा के निर्गुण स्वरुप की तरह अविनाशी होते हुए उसके सगुण रूप के सामान हमारी पहुँच के अन्दर है, क्योंकि इसके बाहरी वर्णात्मक नाम को बोला या सूना जा सकता है और आन्तरिक धुनात्मक नाम को आन्तरिक प्रकाश और आन्तरिक शब्द के रूप में अन्दर देखा और सूना जा सकता है ।

अपनी इस विशेषता के कारण राम-नाम परमात्मा के निर्गुण और सगुण - दोनों रूप की विशेषता का बोध कराता है, इनके पारस्परिक सम्बन्ध या एकता को प्रकट करता है और साथ ही जीवों की मुक्ति का भी एकमात्र साधन सिद्ध होता है (जो बन्धन-ग्रस्त जीवों के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है) । राम-नाम की विशेषता बताते हुए तुलसीदास जी इसकी तुलना एक कुशल दुभाषिये से करते हैं जो एक बिचौलिये का काम कर परमात्मा के निर्गुण और सगुण रूपों के बीच सम्बन्ध दिखलाता है और उनके यथार्थ स्वरुप का बोध कराता है, जैसा कि तुलसीदास जी कहते हैं:

अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ।। (मानस :1:20:4) (सुसाखी - उत्तम प्रमाण; प्रबोधक - बोध कराने वाला; दुभाषी - दुभाषिया )

यहाँ पर यह बात ध्यान देने कि ज़रुरत है कि जो नाम या राम-नाम चारों युगों और तीनों कालों में जीवों का उद्धार करनेवाला कहा गया है, वह त्रेता युग में उत्पन्न होनेवाले दशरथ-पुत्र श्री राम का वर्णात्मक नाम नहीं हो सकता; क्योंकि त्रेता युग से पहले सतयुग में राम का यह वर्णात्मक नाम प्रचलित नहीं था । इससे यह सिद्ध होता है कि राम-नाम से तुलसी जी का तात्पर्य उस सच्चे अविनाशी धुनात्मक नाम से है जो सभी वर्णात्मक नामों से परे है और अविनाशी परमात्मा का सार है । यदि राम-नाम से तात्पर्य दशरथ-पुत्र राम के केवल वर्णात्मक नाम से होता तो उसके गूढ़-रहस्य को प्राप्त करने के लिए परमात्मा स्वरुप सतगुरु की आवश्यकता नहीं होती ।

तुलसीदास जी ने इन दोनों भेदों को स्वीकार करते हुए उन्होनें 'श्रवणात्मक' शब्द का एक और भेद भी स्पष्ट किया है । 'श्रवणात्मक' नामक शब्द से उनका तात्पर्य बाहर की उन ध्वनियों से है जो किसी प्रकार के टंकार, गर्जन या बाहरी बाजे-गाजे से उत्पन्न होती है । इन्हें भी बाहरी वर्णों या अक्षरों में लिखा, पढ़ा या बोला नहीं जा सकता है, केवल श्रवण या कान से सुना जा सकता है । आन्तरिक धुनात्मक शब्द को बाहरी ध्वनियों से परे और भिन्न बतलाने के लिए तुलसीदास जी ने इस 'श्रवणात्मक" शब्द का अलग भेद बतलाया है । शब्द के इस तीन भेदों को बताकर तुलसीदास जी कहते हैं कि शब्द-भेद को अच्छी तरह न परखने के कारण लोग बाहरी शब्द या ध्वनि को ही सबकुछ मानकर केवल इसी में भूले रह जाते हैं । पर जब परमात्मा स्वरुप गुरु की कृपा से आन्तरिक शब्द-धुन या राम-नाम का भेद मिल जाता है तब जीव के अन्दर ज्ञान का सूरज प्रकाशित हो उठता है । इस तथ्य को समझाते हुए वे कहते हैं:

श्रवणात्मक ध्वन्यात्मक वर्णात्मक विधि तीन ।
त्रिविध शब्द अनुभव अगम तुलसी कहहिं प्रवीन ।। (तुलसी सतसई 4:14) (तुलसी कहहिं प्रवीन - तुलसीदास जी कहते हैं कि ज्ञानीजनों का यह कहना है)

सन्त शिरोमणि गुरु नानक साहिब भी राम-नाम के दो गुण (ध्वनि और प्रकाश) के गुणों को स्वीकारते हुए कहते हैं:

अंतरि जोति निरंतरि बाणी साचे साहिब सिउ लिव लाई ॥ रहाउ ॥ (SGGS 638)

God's Light shines continually within the nucleus of my deepest self; I am lovingly attached to the Bani, the Word of the True Lord Master. ||Pause||

अंतरि जोति सबदु धुनि जागै सतिगुरु झगरु निबेरै ॥३॥ (SGGS 489)

One who has the Divine Light within his heart, and is awakened to the melody of the Word of the Shabad - the True Guru settles his conflicts. ||3||

सिंङी सुरति अनाहदि वाजै घटि घटि जोति तुमारी ॥४॥ (SGGS 907)

The horn of consciousness vibrates the unstruck sound current; Your Light illuminates each and every heart, Lord. ||4||

गुरु साहिब कह रहे हैं कि आन्तरिक मार्ग में राम-नाम की मधुर धुन और दिव्य ज्योति सबसे ऊँची मजिल पर पहुँचने के लिए साधक की सहायता करती है । जैसे अँधेरे में रास्ता भुला हुआ इन्सान कहीं दूर से आती हुई आवाज़ की मदद से अपनी दिशा कायम कर लेता है, उसी तरह राम-नाम साधक की आत्मा को अपने श्रोत की तरफ खींचता है । जिस प्रकार बाहर का प्रकाश रास्ते के गड्डों से बचाते हुए सफ़र तय करने में मदद करता है, उसी तरह राम-नाम की दिव्य ज्योत साधक को अनेक आन्तरिक रुकावटों से बचाता है । आदि-निरंजन के के सगुण रूप गुरु नानक साहिब कहते हैं:

पसरी किरणि जोति उजिआला ॥
करि करि देखै आपि दइआला ॥
अनहद रुण झुणकारु सदा धुनि निरभउ कै घरि वाइदा ॥९॥ (SGGS 1033)


The rays of Divine Light have spread out their brilliant radiance. Having created the creation, the Merciful Lord Himself gazes upon it. The sweet, melodious, unstruck sound current vibrates continuously in the home of the fearless Lord. ||9||

राम-नाम की दिव्य-ध्वनि उस परमपिता परमात्मा में से प्रकट होकर समस्त खण्डों और ब्रह्माण्डों की रचना करके, उसका आधार बनी हुई है । यदि यह कहें कि यह प्रभु रूहानियत का अथाह सागर है और आत्मा उस सागर की ही एक बूँद है तो राम-नाम उस समुद्र में से निकल रही एक ऐसी विशाल नदी है जो प्रभु रूपी समुद्र से निकल कर सारे निचले खण्डों और ब्रह्मांडों के जीवन का आधार है । रहमत के सागर गुरु नानक साहिब फरमाते हैं कि हम आत्मा को इस राम-नाम से जोड़कर संसार रूपी भवसागर को पार कर सकते हैं:

जैसे जल महि कमलु निरालमु मुरगाई नै साणे ॥
सुरति सबदि भव सागरु तरीऐ नानक नामु वखाणे ॥ (SGGS 938)

The lotus flower floats untouched upon the surface of the water, and the duck swims through the stream;
with one's consciousness focused on the Word of the Shabad, one crosses over the terrifying world-ocean. O Nanak, chant the Naam, the Name of the Lord.

बाईबिल में भी इस राम-नाम की शक्ति को वर्ड (शब्द) कहा गया है । सेंट जॉन के अनुसार, "शुरू में शब्द था, शब्द परमात्मा के साथ था और शब्द ही परमेश्वर था ।" वेदों में इसको 'नाद' या 'आकाशवाणी' कहा गया है । मुसलमान सन्तों ने इसे 'क़लमा (शब्द)', 'निदाए आसमानी' (आकाशवाणी), 'बांगे-आसमानी' (आकाश की आवाज़), 'इस्मे-आज़म' (सबसे बड़ा नाम), या 'सुलतान-अल-अज़कार' (सुमिरनों का बादशाह) कहा है । सूफी फकीर शाह नियाज़ कहते हैं कि तू उस अनन्त और अनादि क़लाम को सुन, जिसका कोई आदि या अन्त नहीं है । वह क़लाम सुनकर तू जन्म-मरण की क़ैद से आज़ाद हो जाएगा:

बिश्नौ याक कलामे ला मकतूअ,
अज़ हदूसो फ़ना मर्फुअ ।

मौलाना रूम भी अपनी मसनवी में कहते हैं:

चरख रा दर ज़ेरे पा आर ए शुआज़,
बिश्नौ अज़ फरके फलक बांगे समाअ ।

इस राम-नाम का अनुभव करते हुए मौलाना रूम कहते हैं कि जब कई प्रकार की मीठी व् प्यारी राग-रागनियाँ सुनीं तो मुझे मन्दिर और मस्जिद दोनों ही काफिर (नास्तिक) लगे अर्थात मेरे लिए इस शब्द में लीन होना ही सच्चा धर्म बन गया और मुझे किसी तरह के बाहरी मन्दिर, मस्जिद और इनसे सम्बन्धित शरियत (कर्मकाण्ड) की ज़रुरत नहीं रही ।

नगमाहा नैन शुनीदम वा निदाहा वाफ़र ।
काअबा ओ बुतखाना बनज़दम शुद हर दो काफ़र ।।
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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...