Thursday, October 30, 2014

" कार्यकर्त्ता अपनी निष्ठा दिखाते-दिखाते बूढ़े हो चले हैं , वो हैं कि उन्हें " बावरा " बता रहे हैं " सो ~ ~ ! रहा हैं संगठन !!- पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-समीक्षक )

मित्रो ! जनता पार्टी जब टूटी तो कई नेताओं ने अपनी निजी कम्पनी की तरह पार्टी बनाली , कइयों ने मिलकर जनता दल बना लिया और एक भारतीय जनता पार्टी बन गयी ! जनता दल में शामिल नेताओं को जैसे-जैसे बुद्धि आती गयी वैसे-वैसे वो अपनी कंपनियां यानी पार्टियां बनाते चले गए , जो आज तक " चारा " खा रहे हैं ! कॉमरेडों ने इस हालात का बहुत ही फायदा उठाया ! जिधर भोजन देखा उधर ही अपनी थाली लेकर घुस जाते थे ! जनता भी परेशान थी और दोनों बड़ी पार्टियां भी ! 
                एक चीज़ और भी विचारने लायक है जी !! और वो ये कि जितने भी भारत के प्रमुख नेता हुए हैं वो सभी कभी ना कभी कांग्रेसी भी रहे हैं ! संघ भी पहले अपने स्वयंसेवक को किसी भी राजनितिक दल का सदस्य बनने की छूट दिया करता था ! इसी कारण से आज भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बहुत से ना केवल गुन मिलते हैं बल्कि कार्यशैली और d. n. a. भी मिलते हैं ! इसी का नतीजा है कि  कहने को तो दोनों पार्टियों में " संगठन " ही महान है ! लेकिन सत्य ये है कि केवल व्यक्तिवाद ही कामयाब हो रहा है !
                    संगठन के नेताओं के भाषण सुन-सुन कर कि कार्यकर्त्ता महान हैं , कार्यकर्त्ता पार्टी की रीढ़ की हड्डी हैं आदि-आदि ये भाषण तो तभी दिए जाते हैं जब कोई नेता मुसीबत में हो या फिर कोई चुना नज़दीक हों ! और  जो कार्यकर्त्ता पार्टी की रीतियों - नीतियों पर चलते हैं , उनको स्थानीय मौजूदा  M. L. A . ,M . P ., रह चुके , या बनने वाले नेता अपना आदमी मानते ही नहीं ! और ना ही संगठन उनको विशेष ध्यान देता है क्योंकि चाहे कोई पदाधिकारी हो या चाहे वो कोई नेता , आजकल सिर्फ धन को ही सब कुछ माना जाता है ! धनी कार्यकर्त्ता चाहे जितनीबार पार्टी से विद्रोह करले , चाहे जितने अपशब्द बोल ले या फिर चाहे वो पार्टी के विरोध में चुनाव भी लड़ ले ! उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर पता ! वो बड़ी शान से फिर उसी पार्टी के मंच पर आकर विराजमान हो जाता  है !मंच के सामने बैठे असली कार्यकर्त्ता हक्का-बक्का सा बस देखता ही रह जाता है ! घर जाता-जाता सोचता जाता है की कार्यकर्त्ता मैं हूँ या फिर वो जो अपने गले में माला पहनकर और भाषण सुना कर चला गया !?
                  जो नेता कार्यकर्ताओं को कल तक संगठन की रीतियाँ - नीतियां समझा रहे थे , वो ही उसके  स्वागत भाषण पढ़ रहे !  तरह-तरह के कारण भी गिनाये जाते हैं कि  ये पार्टी के हित में है वगेरह-वगेरह ! ये सब तो बड़े चुनावों में होता है ! लेकिन जब निकाय स्तर या ग्रामीण स्तर के चुनाव आते हैं तब कार्यकर्त्ता ऐसे-ऐसे नेताओं के दर-दर भटक कर अपने लिए एक अदद टिकट की मांग करता फिरता है जो कल तक उस से जूनियर थे लेकिन आज उनके पास पार्टी के महत्वपूर्ण पद है ! इसलिए वो मक्कार नेता उसको कहते है कि कल तक तो उस फलाने नेता के घर बैठा रहता था , जा उसी से लेले अब टिकट !! यहाँ क्या लेने आया है ! बेचारा खून के घूँट पीकर फिर भी वो प्रार्थी बोलता है की नहीं जी आप बड़े हो ! आप ही दे देना ! ऐसा बोल कर वो जा रहा होता है तो वही नेता अपने पास बैठे व्यक्ति को धीरे से बोलता है की देखो !! कैसे बावरा हुआ घूमता है ?? और फिर वातावरण में ऐसी हंसी गूंजती है जो उसे भी सुनाई दे जाती है जो टिकट मांगने आया था ! तब उसे लगता है कि वो ठगा गया है ! उसका जीवन बेकार चला गया है उसकी जवानी के वो कीमती दिन बर्बाद हो गए हैं ! संगठन वाले भी अपनी पसंद के दो-चार मंत्री बनवाकर सो जाते हैं !
                             अब जब कोई नैतिकता बची ही नहीं है तो कनिष्ठ कार्यकर्त्ता ही अपने हितों का क्यों त्याग करे ?? लड़ो!! साथियो !! लड़ो !! लड़ने से ही तुम्हारी शक्ति को कबूला जायेगा !! एयर कंडीशनर कमरों में बैठकर रणनीतियां बनाने वाले चुनाव के मैदान में दौड़ नहीं पाएंगे ! अगर आप टिकट मांगने के लिए इनके चक्कर ही नहीं काटोगे तो ये अपने आप सीधे होजाएंगे !! अब सब जगह अपने रिश्ते  दारों को ही तो नहीं खड़ा कर सकेंगे ना !!? इनको दिखादो !! की आपको भी वोट हमारे  ही मिलते हैं ! अगर कार्यकर्त्ता ही ना हो तो कौन सा नेता अपने आप जीत पायेगा ?? " बावरे " बनकर दिखादो अपनी ताकत को !! चाहे सोनिया जी  हो या कोई और  ! सब जागने पर विवश हो जाएंगे ! 

            
                 जय श्री राम बोलना  पडेगा भाई लोगो !!!
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पीताम्बर दत्त शर्मा,
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Wednesday, October 29, 2014

" काले धन के नाम उजागर करवाने का सही तरीका निकलवाया है हमारे मोदी जी ने ", अब सारे नाम बाहर आ जायेंगे , किसी ट्रीटी का उलन्घन नहीं होगा !- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-समीक्षक)

हाय !! मम्मी जी !! अब क्या होगा ?? मोदी अंकल ने तो हमारी सारी " सिब्बली-चिदंबरी और द्विग्विजयी " योजनाओं पर पानी फेर दिया !! अब आज नहीं तो कल नाम भी बाहर आ जायेगे  और देश का काला - धन भी !! 
                     पाठकों को पहले सरल भाषा में समझा दूँ कि ये " काला धन " बनता कैसे है ? तो होता यूं है कि आपने अपनी मेहनत से कमाई गयी शुद्ध 1 नंबर की कमाई से किसी दूकानदार से कोई वस्तु खरीदी और आपने उसका बिल नहीं लिया, तो वो सफ़ेद धन , उसके गल्ले में जाकर काला-धन बन गया ! इसी तरह से ये गाडी आगे से  चलती रहती है !! सिर्फ टैक्स बचाने हेतु ये काम होता है ! यानी जो सरकारों ने अपने बेशुमार खर्चे निकलने हेतु जनता पर टैक्स लगा रख्खे हैं वो हमारे व्यपारी भाई देना नहीं चाहते !तो उसे विदेशी बैंकों में जमा करवा देते हैं, जो बहुत बढ़ता जाता है !
               अब सरकार और उनके पालतू पत्रकार बात को उस तरफ तो लेकर जाते नहीं कि गांधी को पूजने वाले खर्चा काम क्यों नहीं करते ? टैक्सों को क्यों नहीं घटाते ?? जब संसद की कैंटीन में बढ़िया खाना सस्ता मिल सकता है तो सरकारी आयोजनो में भी खाना वंही से क्यों नहीं मंगाया जाता आदि-आदि !! दिखावे के लिए कभी कोई रिक्शा पे जाता है तो कोई स्कूटर पे ! पालतू पत्रकार एक ही रट लगाये बैठे हैं कि  भाजपा के नेताओं ने कहा था कि हर भारतवासी के खाते में हजारों रुपया जमा हो जाएगा ! जबकि ये बात चुनावों में सिर्फ भाषणबाज़ी में कही गयी जिसका अर्थ ये था की वो पैसा किसी न किसी रूप में जनता के ही काम आएगा !!
                 अब कोंग्रेसियों का और आप पार्टी वाले नेताओं का हाल देख लो आप !! शान से कह रहे हैं कि  जो चोर पकडे गए हैं चाहे वो कोयले वाले हों या 2G वाले , वो सब हमारे राज में ही पकडे गए ! अरे गधो!! क्या उनके  नामके वारन्ट मनमोहन-सोनिया-या राजीव ने जारी किये थे ?? कहने को केजरीवाल भी यही कह रहे हैं की ये लिस्ट तो हमने उजागर की थी लेकिन  भी नहीं बताये थे क्यों ??? कोई जवाब है उनके पास ??उन्होंने किसके साथ  समझोता कर रख्खा था ??
                  मित्रो !! किसी प्रकार के दुष्प्रचार में आने की जरूरत नहीं है , केवल विश्वास रखिये !! हमने भारतीय संविधान के मुताबिक उन्हें 5 वर्षों हेतु चुना है ! देखते रहिये आँख खोल कर और सुनते रहिये  सबकी बात !! चिंता किस बात की है नहीं पसंद हो तो अगली बार मौका मत देना ! लेकिन उन चोरों के पीछे लगकर अभी से अविश्वास पैदा करके उनकी पूरी टीम ही ना बनने दी जाए , तो फिर भला वो काम कैसे कर पाएंगे ?? इसलिए बाकी सभी को बोलिए आराम करो !! कोई लालू-नितीश नहीं , कोई माया-मुलायम नहीं और कोई कॉमरेड - सेना नहीं !! सिर्फ मोदी जी !! और उनकी टीम !! विश्वास आवश्यक चीज़ है तरक्की के लिए !



             जय श्री राम बोलना  पडेगा भाई लोगो !!!
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Tuesday, October 28, 2014

तो ठाकरे खानदान का सपना कल स्वाहा हो जायेगा ! - साभार - श्री पुण्य प्रसुन वाजपेयी


बीते ४५ बरस की शिवसेना की राजनीति कल स्वाहा हो जायेगी। जिन सपनों को मुंबई की सड़क से लेकर समूचे महाराष्ट्र में राज करने का सपना शिवसेना ने देखा कल उसे बीजेपी हड़प लेगी। पहले अन्ना, उसके बाद भाई और फिर उत्तर भारतीयों से टकराते ठाकरे परिवार ने जो सपना मराठी मानुष को सन आफ स्वायल कहकर दिखाया, कल उसे गुजराती अपने हथेली में समेट लेगा। और एक बार फिर गुजरातियों की पूंजी, गुजरातियों के धंधे के आगे शिवसेना की सियासत थम जायेगी या संघर्ष के लिये बालासाहेब ठाकरे का जूता पहन कर उद्दव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे एक नये अंदाज में निकलेंगे। या फिर राज ठाकरे और उद्दव एक साथ खड़े होकर विरासत की सियासत को बरकरार रखने के आस्तित्व की लडाई का बिगुल फूंक देंगे। दादर से लेकर चौपाटी और ठाणे से लेकर उल्लासनगर तक में यह सवाल शिवसैनिकों के बीच बड़ा होता जा रहा है कि एक वक्त अंडरवर्ल्ड तक पर जिन शिवसैनिकों ने वंसत सेना [महाराष्ट्र के सीएम रहे वंसत चौहाण ने अंडरवर्ल्ड के खात्मे के लिये बालासाहेब ठाकरे से हाथ मिलाया था तब शिवसैनिक वसंत सेना के नाम से जाने गये ] बनकर लोहा लिया । एक वक्त शिवसैनिक आनंद दिधे से लेकर नारायण राणे सरीखे शिवसैनिकों के जरीये बिल्डर और भू माफिया से वसूली की नयी गाथायें ठाणे से कोंकण तक में गायी गई। और नब्बे के दशक तक जिस ठाकरे की हुंकार भर से मुंबई ठहर जाती थी क्या कल के बाद उसका समूचा सियासी संघर्ष ही उस खाली कुर्सी की तर्ज पर थम जायेगी जो अंबानी के अस्पताल के उदघाटन के वक्त शिवसेना के मुखिया उद्दव ठाकरे के ना पहुंचने से खाली पड़ी रही। और तमाम नामचीन हस्तियां जो एक वक्त बालासाहेब ठाकरे के दरबार में गये बगैर खुद को मुंबई में सफल मानती नहीं थी, वह सभी एक खाली कुर्सी को अनदेखा कर मजे में बैठी रहीं। 


असल में पहली बार कमजोर हुई शिवसेना के भीतर से शिवसैनिकों के ही अनुगुंज सुने जा सकते हैं कि शिवसैनिक खुद पर गर्व करें या भूल जाये कि उसने कभी मुंबई को अपनी अंगुलियों पर नचाया। लेकिन सवाल है कि मुंबई का सच है क्या और क्या भाजपा महाराष्ट्र को नये सिरे से साध पायेगी या फिर गुजराती और महाराष्ट्रीयन के बीच मुंबई उलझ कर रह जायेगी। क्योंकि जिस मुंबई पर महाराष्ट्रीयन गर्व करता है और अधिकार जमाना चाहता है, असल में उसके निर्माण में उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध के उन स्वप्नदृष्टा पारसियों की निर्णायक भूमिका रही, जो अंग्रेजों के प्रोत्साहन पर सूरत से मुंबई पहुंचे। लावजी नसेरवानजी वाडिया जैसे जहाज निर्माताओं ने मुंबई में गोदियों के निर्माण की शुरुआत करायी। डाबर ने 1851 में मुंबई में पहली सूत मिल खोली। जेएन टाटा ने पश्चिमी घाट पर मानसून को नियंत्रित करके मुंबई के लिये पनबिजली पैदा करने की बुनियाद डाली, जिसे बाद में दोराबजी टाटा ने पूरा किया। उघोग और व्यापार की इस बढ़ती हुई दुनिया में मुंबई वालो का योगदान ना के बराबर था। मुंबई की औद्योगिक गतिविधियों की जरूरत जिन लोगों ने पूरी की वे वहां 18वीं शताब्दी से ही बसे हुये व्यापारी, स्वर्णकार, लुहार और इमारती मजदूर थे। मराठियों का मुंबई आना बीसवीं सदी में शुरू हुआ। और मुंबई में पहली बार 1930 में ऐसा मौका आया जब मराठियों की तादाद 50 फीसदी तक पहुंची। लेकिन, इस दौर में दक्षिण भारतीय.गुजराती और उत्तर भारतीयों का पलायन भी मुंबई में हुआ और 1950-60 के बीच मुंबई में मराठी 46 फीसदी तक पहुंच गये। इसी दौर में मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल कराने और अलग ऱखने के संघर्ष की शुरुआत हुई। उस समय मुंबई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई थे, जो गुजराती मूल के थे। उन्होंने आंदोलन के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया। जमकर फायरिंग, लाठी चार्ज और गिरफ्तारी हुई। असल में मुंबई को लेकर कांग्रेस भी बंटी हुई थी। महाराष्ट्र कांग्रेस अगर इसके विलय के पक्ष में थी,तो गुजराती पूंजी के प्रभाव में मुंबई प्रदेश कांग्रेस उसे अलग रखने की तरफदार थी। ऐसे में मोरारजी के सख्त रवैये ने गैर-महाराष्‍ट्रीयों के खिलाफ मुंबई के मूल निवासियों में एक सांस्‍कृ‍तिक उत्पीड़न की भावना पैदा हो गयी, जिसका लाभ उस दौर में बालासाहेब ठाकरे के मराठी मानुस की राजनीति को मिला। लेकिन, आंदोलन तेज और उग्र होने का बड़ा आधार आर्थिक भी था। व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में गुजराती छाये हुये थे। दूध के व्यापार पर उत्तर प्रदेश के लोगों का कब्जा था। टैक्सी और स्पेयर पार्टस के व्यापार पर पंजाबियों का प्रभुत्व था। लिखाई-पढाई के पेशों में दक्षिण भारतीयों की भारी मांग थी। भोजनालयों में उड्डपी और ईरानियो का रुतबा था। भवन निर्माण में सिधिंयों का बोलबाला था। और इमारती काम में लगे हुये ज्यादातर लोग आंध्र के कम्मा थे।

मुंबई का मूल निवासी दावा तो करता था कि ‘आमची मुंबई आहे’, पर यह सिर्फ कहने की बात थी। मुंबई के महलनुमा भवन, गगनचुंबी इमारतें, कारों की कभी ना खत्म होने वाली कतारें और विशाल कारखाने, दरअसल मराठियों के नहीं थे। उन सभी पर किसी ना किसी गैर-महाराष्‍ट्रीय का कब्जा था। यह अलग मसला है कि संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन में सैकड़ों जाने गयीं और उसके बाद मुंबई महाराष्ट्र को मिली। लेकिन, मुंबई पर मराठियो का यह प्रतीकात्मक कब्जा ही रहा, क्योंकि मुंबई को महाराष्ट्र में शामिल किये जाने की खुशी और समारोह अभी मंद भी नहीं पडे थे कि मराठी भाषियों को उस शानदार महानगर में अपनी औकात का एहसास हो गया। मुंबई के व्यापारिक, औद्योगिक और पश्चिमीकृत शहर में मराठी संस्‍कृति और भाषा के लिये कोई स्थान नहीं था। मराठी लोग क्‍लर्क, मजदूरों, अध्यापकों और घरेलू नौकरों से ज्यादा की हैसियत की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। यह मामूली हैसियत भी मुश्किल से ही उपलब्ध थी। और फिर मुंबई के बाहर से आने वाले दक्षिण-उत्तर भारतीयों और गुजरातियों के लिये मराठी सीखना भी जरूरी नहीं था। हिन्दी और अंग्रेजी से काम चल सकता था। बाहरी लोगों के लिये मुंबई के धरती पुत्रों के सामाजिक-सांस्‍कृतिक जगत से कोई रिश्ता जोड़ना भी जरूरी नहीं था।

 दरअसल, मुंबई कॉस्‍मो‍पोलिटन मराठी भाषियों से एकदम कटा-कटा हुआ था। असल में संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन और बाद में शिवसेना ने जिस मराठी मिथक का निर्माण किया, वह मुंबई के इस चरित्र को कुछ इस तरह पेश करता था कि मानो यह सब किसी साजिश के तहत किया गया हो। लेकिन, असलियत ऐसी थी नहीं। अपनी असफलता के दैत्य से आक्रांत मराठी मानुस के सामने उस समय सबसे बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रश्‍न यह था कि वह अपनी नाकामी की जिम्मेदारी किस पर डाले। एक तरफ 17-18वीं सदी के शानदार मराठा साम्राज्य की चमकदार कहानियां थीं जो महाराष्‍ट्रीयनों को एक पराक्रामी जाति का गौरव प्रदान करती थी और दूसरी तरफ1960 के दशक का बेरोजगारी से त्रस्त दमनकारी यथार्थ था। आंदोलन ने मुंबई तो महाराष्ट्र को दे दिया, लेकिन गरीब और मध्यवर्गीय मुंबईवासी महाराष्ट्रीय अपना पराभव देखकर स्तब्ध था। दरअसल, मराठियों के सामने सबसे बडा संकट यही था कि उनके भाग्य को नियंत्रित करने वाली आर्थिक और राजनीतिक शक्तियां इतनी विराट थीं कि उनसे लड़ना उनके लिये कल्पनातीत ही था। उसकी मनोचिकित्‍सा केवल एक ही तरीके से हो सकती थी कि उसके दिल में संतोष के लिये उसे एक दुश्‍मन दिखाया-बताया जाये। यानी ऐसा दुश्मन जिससे मराठी मानुस लड़ सके। बाल ठाकरे और उनकी शिवसेना ने मुंबई के महाराष्‍ट्रीयनों की यह कमी पूरी की और यहीं से उस राजनीति को साधा जिससे मराठी मानुस को तब-तब संतोष मिले जब-जब शिवसेना उनके जख्मों को छेड़े। ठाकरे ने अखबार मार्मिक को हथियार बनाया और 1965 में रोजगार के जरिये मराठियों को उकसाना शुरू किया। कॉलम का शीर्षक था-वाचा आनी ठण्ड बसा यानी पढ़ो और चुप रहो। इस कॉलम के जरिये बकायदा अलग-अलग सरकारी दफ्तरों से लेकर फैक्ट्रियों में काम करने वाले गैर-महाराष्‍ट्रीयनों की सूची छापी गई। इसने मुंबईकर में बेचैनी पैदा कर दी। और ठाकरे ने जब महसूस किया कि मराठी मानुस रोजगार को लेकर एकजुट हो रहा है, तो उन्होंने कॉलम का शीर्षक बदल कर लिखा- वाचा आनी उठा यानी पढ़ो और उठ खड़े हो। इसने मुंबईकर में एक्शन का काम किया। संयोग से शिवसेना और उद्दव ठाकरे आज जिस मुकाम पर हैं, उसमें उनके सामने राजनीतिक अस्तित्‍व का सवाल है । लेकिन सत्ता भाजपा के हाथ होगी । नायक अमित शाह या नरेन्द्र मोदी होंगे तो शिवसेना क्या पुराने तार छडेगी मौजूदा सच से संघर्ष करने की सियासत को तवोज्जो देगी। क्योंकि महाराष्ट्र देश का ऐसा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा शहरी गरीब हैं और मुबंई देश का ऐसा महानगर है,जहां सामाजिक असमानता सबसे ज्यादा- लाख गुना तक है। मुंबई में सबसे ज्यादा अरबपति भी हैं और सबसे ज्‍यादा गरीबों की तादाद भी यहीं है। फिर, इस दौर में रोजगार का सवाल सबसे बड़ा हो चला है, क्योंकि आर्थिक सुधार के बीते एक दशक में तीस लाख से ज्यादा नौकरियां खत्म हो गयी हैं। मिलों से लेकर फैक्ट्रियां और छोटे उद्योग धंधे पूरी तरह खत्म हो गये। जिसका सीधा असर महाराष्ट्रीयन लोगों पर पड़ा है।

और संयोग से गैर-महाराष्ट्रीय इलाकों में भी कमोवेश आर्थिक परिस्थिति कुछ ऐसी ही बनी हुयी है। पलायन कर महानगरों को पनाह बनाना समूचे देश में मजदूर से लेकर बाबू तक की पहली प्राथमिकता है। और इसमें मुबंई अब भी सबसे अनुकूल है, क्योंकि भाषा और रोजगार के लिहाज से यह शहर हर तबके को अपने घेरे में जगह दे सकता है। इन परिस्थितियों के बीच मराठी मानुस का मुद्दा अगर राजनीतिक तौर पर उछलता है, तो शिवसेना और उद्दव ठाकरे दोनों ही इसे सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से जोड़, फायदा लेने से चूकेंगे नहीं। लेकिन, यहीं से संकट उस राजनीति के दौर शुरू होगा जो आर्थिक नीतियों तले देश के विकास का सपना अभी तक बेचती रही हैं। और जिस तर्ज पर दो लाख करोड के महाराष्ट्र को-ओपरेटिव पर कब्जा जमाये शरद पवार ने भाजपा को खुले समर्थन का सपना बेच कर ठाकरे खानदान की सियासत को ठिकाने लगाया उसने यह तो संकेत दे दिये कि शरद पवार के खिलाफ खडे होने से पहले अमित शाह और नरेन्द्र मोदी दोनों ठाकरे खानदान की सियासत को हड़पना चाहेंगे।

Saturday, October 25, 2014

"पत्रकारों की "कलम" ,"झाड़ू" है या "तलवार" मोदी जी ?? आपने तारीफ़ करी या फिर फोटो उतारी पत्रकारों की ?? - पीताम्बर दत्त शर्मा ( टिप्पणीकार )

आज ना मज़्ज़ा ही आ गया मित्रो !! हमारे पत्रकार जब जोश से मिले प्रधानमंत्री श्री मोदी जी से तो उनमे कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने पिच्छले 12 वर्षों तक समाचारों में मोदी जी पर जमकर आरोप लगाए , झूठी वीडियो भी दिखायीं मन में बैरभाव रखकर पत्रकारिता करते रहे ! उनको देखकर मोदी जी बोले कि " वाह पत्रकार मित्रो ! आपने कलम को झाड़ू बना दिया " !! 
                ये लाईन उस समय तो सबको प्रशंसा से भरी लगी ! लेकिन जब चाय-पार्टी खत्म हो गयी तब लगने लगा यार ये तो मोदी जी ने हमारी फोटो उतारते हुए कहा है या तारीफ़ करते हुए ! लेकिन बात वही कि " अब बिल्ली के गले में " घण्टी " बांधे कौन " ???? पूर्व में तो कहा गया था की " जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो ! और कलम को तलवार कहा गया था जो भ्रष्टाचार को काटकर फेंकने में समर्थ होती थी !! 
                           आज ये झाड़ू बन गयी ?? बड़े ही शर्म की बात है ये !! कइयों  इस बात को " आप " पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ जोड़ दिया ! इस लिए वो उस वक्त हंस पड़े ! और कइयों ने मोदी जी की इस लाईन को उनके स्वच्छता अभियान के साथ जुड़ा हुआ समझा , इसलिए उनकी उस समय हंसी निकल गयी लेकिन बाद में जैसे-जैसे मोदी जी की इस लाईन को पत्रकारों ने समझा वैसे - वैसे इस लाईन के अर्थ बदलने लगे ! सब कल कौन पत्रकार इसका क्या अर्थ निकालकर लिख्खेगा , ये तो वो ही जाने ! लेकिन हम तो मोदी जी वाक्पटुता की तारीफ़ ही करेंगे !! और कहेंगे कि " धो दिया मोदी जी आपने बरखा एंड पार्टी को !

               जय श्री राम बोलना  पडेगा भाई लोगो !!!
मित्रो !
               आपसे मित्रता करके मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है ! आपके जनम दिन की आपको हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं !! कृपया स्वीकार करें ! आपका जीवन सदा खुशियों से भरा रहे !! मेरा फेसबुक,गूगल+,ब्लॉग,पेज और विभिन्न ग्रुपों की सदस्य्ता ग्रहण करने का एक ख़ास उद्देश्य है ! मैं एक लेखक-विश्लेषक और एक समीक्षक हूँ ! राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय ज्वलंत विषयों पर लिखना -पढ़ना मेरा शौक है ! मैं एक साधारण पढ़ालिखा और साफ़ स्वभाव का आदमी हूँ ! भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्यार करता हूँ ! भारत देश के लिए अगर मेरे प्राण काम आ सकें तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानूंगा !परन्तु किसी संत-राजनितिक दल और नेता हेतु नहीं !मैं एक बिन्दास स्वभाव का आदमी हूँ ! मेरी मित्र मण्डली में मेरे बच्चे और रिश्तेदार भी शामिल हैं ! तो भी मैं सभी विषयों पर अपने खुले विचार रखता हूँ !! आप सब का हार्दिक स्वागत है मेरे जीवन में !! मैं आपकी यादों - बातों को संभल कर रखूँगा !!
मित्रो !! मैं अपने ब्लॉग , फेसबुक , पेज़,ग्रुप और गुगल+ को एक समाचार-पत्र की तरह से देखता हूँ !! आप भी मेरे ओर मेरे मित्रों की सभी पोस्टों को एक समाचार क़ी तरह से ही पढ़ा ओर देखा कीजिये !!
" 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " नामक ब्लॉग ( समाचार-पत्र ) के पाठक मित्रों से एक विनम्र निवेदन - - - !!
आपका हार्दिक स्वागत है हमारे ब्लॉग ( समाचार-पत्र ) पर, जिसका नाम है - " 5TH PILLAR CORRUPTIONKILLER " कृपया इसे एक समाचार-पत्र की तरह ही पढ़ें - देखें और अपने सभी मित्रों को भी शेयर करें ! इसमें मेरे लेखों के इलावा मेरे प्रिय लेखक मित्रों के लेख भी प्रकाशित किये जाते हैं ! जो बड़े ही ज्ञान वर्धक और ज्वलंत - विषयों पर आधारित होते हैं ! इसमें चित्र भी ऐसे होते हैं जो आपको बेहद पसंद आएंगे ! इसमें सभी प्रकार के विषयों को शामिल किया जाता है जैसे - शेयरों-शायरी , मनोरंजक घटनाएँ आदि-आदि !! इसका लिंक ये है -www.pitamberduttsharma.blogspot.com.,ये समाचार पत्र आपको टविटर , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी मिल जाएगा ! ! अतः ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर इसे सब पढ़ें !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !! मेरा इ मेल ये है : - pitamberdutt.sharma@gmail.com. मेरे ब्लॉग और फेसबुक के लिंक ये हैं :-www.facebook.com/pitamberdutt.sharma.7. मेरा ई मेल पता ये है -: pitamberdutt.sharma@gmail.com.
जो अभी तलक मेरे मित्र नहीं बन पाये हैं , कृपया वो जल्दी से अपनी फ्रेंड-रिक्वेस्ट भेजें , क्योंकि मेरी आई डी तो ब्लाक रहती है ! आप सबका मेरे ब्लॉग "5th pillar corruption killer " व इसी नाम से चल रहे पेज , गूगल+ और मेरी फेसबुक वाल पर हार्दिक स्वागत है !!
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आशा है आपका प्यार मुझे इसी तरह से मिलता रहेगा !!आपका क्या कहना है मित्रो ??अपने विचार अवश्य हमारे ब्लॉग पर लिखियेगा !!
सधन्यवाद !!
आपका प्रिय मित्र,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,
R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !
जिला-श्री गंगानगर।
मोबाईल नंबर-09414657511
" आकर्षक - समाचार ,लुभावने समाचार " आप भी पढ़िए और मित्रों को भी पढ़ाइये .....!!!
BY :- " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG . READ,SHARE AND GIVE YOUR VELUABEL COMMENTS DAILY . !!
Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh. (raj)INDIA.


Wednesday, October 22, 2014

"पढ़े-लिखे कम्पनी-प्रबन्धकों की "ढोलक" बजादी , सावजी भाई ढोलकिया ने" वाह !! क्या बोनस दिया है ??-पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

दो दिन पहले गुजरात के एक और आदमी ने , दुनिया को ये दिखा दिया कि कम्पनियाँ कैसे चलायी जाती हैं !! जी हाँ पाठक-मित्रो !!वैसे तो गुजरात में भी और जगह पर भी संसार में बड़ी से बड़ी उद्योगिक इकाइयां और कंपनियां चल रहीं हैं जो अरबों का काम करती हैं , लेकिन " हमारे "( जो अमीर या प्रसिद्ध हो जाता है वो हमारा हो जाता है ) सावजी भाई और उनके तीन और भाइयों ने मिलकर ये " नक्की " किया कि अबकी बरस वो अपने 1200 कर्मचारियों( जिन्हें वे अपनी भाषा में डायमंड-इंजिनियर बुलाते हैं )को इस बार दिवाली पर विशेष बोनस देंगे !जिसके पास रहने को घर नहीं है उसको दो कमरों वाला मकान सभी सुविधाओं सहित , जिसके पास घर है और गाडी नहीं है उसको गाडी और जिसके पास घर-गाडी दोनों हैं उसे उसकी बीवी हेतु गहने देंगे जो हीरों से जड़े होंगे !!
           इसके लिए उन्होंने अपने स्टेडियम में सबको लाईन से बिठाया और वहां उन कारों को भी खड़ा कर फोटो खिंचवाई  जो कर्मचारियों को दी जानी थीं !! बस !! फिर क्या था वो फोटो और ये खबर जैसे ही इंटरनेट पर आई की चर्चा फ़ैल गयी !!वैसे तो हमारे देश के चेनेल वाले सिर्फ चोरों-डाकुओं नेताओं और अभिनेताओं की ही ख़बरें प्राथमिकता से दिखाते हैं , लेकिन कभी-कभी नोबल-पुरुस्कार प्राप्त होने पर भी उन्हें पता चलता है की इस देश में कोई समाज-सेवी भी है ! बस उसी तरह उन्हें भी जैसे ही ये पता चला , तो " सबसे तेज " वाले तो पीछे रह गए और ndtv वाले रविश उन से बात करने में कामयाब हो गए ! जिसके लिए प्रथम तो उनको मैं बधाई देता हूँ की उन्होंने कोई अच्छी बात भी की इस जीवन में ! 
            इस बातचीत से ही हमको पता चला कि एक हमारे मोदी ही नहीं हैं जो " चमत्कार " कर सकते हैं ! ऐसे चमत्कार दिखाने वाले,और भी बहुत हैं इस देश में या यूं कहें कि हमारे गुजरात में !! वैसे तो मैं क्या, मेरे परिवार वाले भी कभी,गुजरात नहीं गए,लेकिन मैंने ऊपर लिखा ना कि जो मशहूर हो जाए वो हमारा ही होता है !!हंस क्यों रहे हो जनाब !!हमारे सारे देश का ही यही रिवाज़ है ! आपने समाचार पत्रों में भी पढ़ा होगा कि " भारतीय मूल " का ये बना और वो बनी आदि-आदि !!
            सावजी भाई " ढोलकिया " जी ने बड़ी ही सादगी से ये बताया कि ना तो वे पढ़े हैं,ना उनके भाई और नाही उनके ये कर्मचारी ! फिरभी उन्होंने बहुत सारा धन कमाया है जिसका उन्होंने टैक्स भी सरकार को दिया है !! यानिकि ईमानदारी अभी कायम है ! काम के समय के बाद वो अपने द्वारा बनाये गए स्टेडियम की पवेलियन में बैठकर कर्मचारियों का क्रिकेट मैच भी देखते हैं ! यही नहीं वे सभी कर्मचारियों के माता-पिताओं को भी जानते हैं क्योंकि उन सबको बे हर साल हरिद्वार की सैर करवाकर लाते हैं !!उनके विचारों की महानता इस बात से ही झलकती है की वे ये सब इस लिए करते हैं की जिस माता-पिता ने उन कर्मचारियों को जनम दिया ,और जो उनकी पत्नियां बनीं,वो सब भी उनकी यानिकि " ढोलकिया " परिवार की कामयाबी का कारण हैं !
           उन्होंने सच्चे मन से ये भी कबूला की ये सब करके वो कोई पुण्य नहीं कर रहे , बल्कि शुद्ध व्यापार कर रहे हैं , अपने कर्मचारियों को ज्यादा हिस्सा देकर और ज्यादा कमाना चाहते हैं !साथ ही ये कहा कि अगर वो पढ़े लिखे होते तो शायद इतना बोनस अपने कर्मचारियों को नहीं दे पाते !
           तो निष्कर्ष यही निकलता है कि  " कीचड़ में कमल खिलता है "जो सबके मन को मोह लेता है ! हज़ारों की संख्या में युवा उनकी औद्योगिक इकाई का पता पूछ रहे हैं !! नौकरी पाने की चाहत लिए ! बोलना पड़ेगा की भारत माता की जय हो ! और सनातन धर्म की जय हो ! जिसकी प्रेरणा से एक ऐसे उद्योगपति से हमारा परिचय हुआ ! और ऐसे माता-पिता को भी प्रणाम जिन्होंने " ढोलकिया " भाइयों को जन्म दिया !! धन्य हैं वो ! आपका क्या कहना है मित्रो !!


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Monday, October 20, 2014

"कार्यकर्त्ता एक हाथ से पार्टी की टिकेट माँग रहा है, तो दुसरे हाथ में डण्डा भी दिखा रहा है अपने नेताओं को " !!- पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक )

दोस्तों !! राजस्थान में कई शहरों में निकाय चुनाव हो रहे हैं ! जिनमे एक सूरतगढ़ भी है जंहाँ आपका ये मित्र निवास करता है !! इसलिए आज मैं आपको अपने शहर का हाल ही सुनाने जा रहा हूँ !!यहां हर गली में हाथ जोड़े लोग , बधाई देते नज़र आ रहे हैं ,पोस्टरों और बैनरों में त्योहारों की !! वोट पाने की चाह ने " साम्प्रदायिक-सद्भाव " भी बढ़ा दिया है !! मुस्लिम-सिख और हिन्दू एक -दुसरे के त्योहारों की शुभकामनाएं बड़े प्रेम से दे रहे हैं !ये सब देख कर मेरा मन प्रसन्नता से भर जाता है ,कि देखो चुनाव आपस में प्रेम बढ़ाने का काम भी करते हैं !! अति-उत्साहित कार्यकर्त्ता तो वार्ड के सभी घरों में वोट भी मांग आये हैं जबकि अभी तलाक सरकार ने कोई घोषणा नहीं की और नाही चुनाव-आयोग ने कोई कार्यक्रम की घोषणा करी है !!
            पिछले दिनों फिफ्थ पिल्लर - करप्शन किल्लर के सर्वे के दौरान सारे शहर के वार्डों में चुनाव लड़ने के इच्छुक कार्यकर्ताओं से मिलने का अवसर मिला ! कइयों से विस्तार से चर्चा भी हुई औपचारिक और अनौपचारिक दोनों तरह की ! गंभीर और तमाशाई , दोनों तरह के प्रत्याशियों से मेरा सामना हुआ !!जो चेयरमैन बनने के इच्छुक हैं वो तो सारे सूरतगढ़ का हिसाब-किताब लगाये बैठे हैं !इस बार के नगरपालिका चुनावों में " साम-दाम-दण्ड और भेद " नामक नीतियों का भरपूर प्रयोग किया जायेगा !!
           हर पार्टी का कार्यकर्त्ता अपनी निष्ठा और दिएगए सहयोग को याद करवा रहा था ! हर पार्टी के कार्यकर्त्ता अपने स्थानीय नेताओं के व्यवहार से दुखी नज़र आये ! बेचारे पीड़ित लोग ढंग से अपना रोष ही नहीं प्रकट कर पाये क्योंकि जिनके प्रति रोष है पार्टी हाई-कमाण्ड ने उन्ही नेताओं की सलाह पर ही टिकेट देनी है !! वो बेचारा करे भी तो क्या ?? स्थानीय नेता इतने कठोर स्वभाव के हैं की पूछिये मत जनाब ! अपना मुंह ही नहीं खोलते !! कार्यकर्त्ता की सारी नहीं तो एक तिहाई उम्र ही बीत जाती है नेता की वाह-वाह करते !!
           शायद इसीलिए वो अपने नेता के सामने तो नहीं , लेकिन पीठ के पीछे ही अपने भाव प्रकट करता है ! कहता है की अगर पार्टी ने टिकेट दे दी तो ठीक वरना निर्दलीय ही चुनाव लड़ूंगा !जीत नहीं होगी , लेकिन जीतने अगले को भी नहीं दूंगा !! यहां के एक दैनिक समाचार-पत्र ने अपने होर्डिंग पर यही विषय लिखवाया है !!उन्होंने लिखा है कि " अकेला चना , भाड़ नहीं फोड़ सकता लेकिन दो-चार अगर इकठ्ठे हो जाएँ तो सामने वाले की आँख फोड़ सकते हैं ! यानी भड़का कर अपना हल निकलने की  शहर में बनायीं जा रही हैं ! भाजपा की टिकेट मांगने वालों की संख्या हर वार्ड में १० से १५ है तो दूसरी पार्टियों को प्रत्याशी ढूंढने में ही परेशानी हो रही है !! मोदी जी के " स्वच्छता - अभियान " ने पूरे देश में अपना कमाल कर दिया है ! यहाँ कासनिया जी अपने कार्यकर्ताओं के साथ गली-गली सफाई करते नज़र आ रहे हैं !
              भाजपा का तो एक साल से नगर-मंडल अध्यक्ष ही नहीं है ! पार्टी का " ट्रंक " खुला  पड़ा है , कोई ताला नहीं है ! चोरी होने का डर है !! लेकिन अगर कासनिया जी और जिलाध्यक्ष नागपाल जी यहाँ के लोकप्रिय विधायक जी के साथ एक-मत होकर चुनाव सञ्चालन और टिकट वितरण करेंगे तो भाजपा को 25 स्थान प्राप्त हो सकते हैं 35 में से , अन्यथा कांग्रेस 20 स्थान ले सकती है ! इन चुनावों में धन-बल का भी भरपूर उपयोग होगा ! इसीलिए लोग कांग्रेस का बहुमत आने का अनुमान लगा रहे हैं !
          हमारा तो यही कहना है की एक बार मोदी जी की टीम को अवसर निकाय स्तर पर भी देना ही चाहिए !क्योंकि यहां के विधायक जी भी बड़े ही उत्साह से जनसमस्याओं का समाधान करवा रहे हैं !! आपका क्या कहना है ?? ज़रा तो ....!!??




अपनी यादों से कहो एक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क के हिस्से में भी एक इतवार होना चाहिए ।।
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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...