Monday, December 30, 2013

असलियत केज़रीवाल जी की वास्तव में है क्या ???? क्या विदेशी कम्पनियों से जुड़े N.G.O.गद्दार हैं ???



कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)’ ने घोर सांप्रदायिक ‘सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम’ का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर ‘परिवर्तन’ नामक एनजीओ से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो ‘श्रीमान ईमानदार’ को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में ‘परिवर्तन’ में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ ने 'उभरते नेतृत्व' के लिए ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके। इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ ‘कबीर’ से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था।
अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए!
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई।


ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है।

उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है।

भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग!
‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास’ से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है।

अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर’ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है। इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है।

डच एनजीओ ‘हिवोस’ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं। इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। 'पनोस' में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस' के जरिए 'फोर्ड फाउंडेशन' की फंडिंग काम कर रही है। ‘सीएनएन-आईबीएन’ व ‘आईबीएन-7’ चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई ‘पॉपुलेशन काउंसिल’ नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही ‘रॉकफेलर ब्रदर्स’ करती है जो ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार के लिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के साथ मिलकर फंडिंग करती है।

माना जा रहा है कि ‘पनोस’ और ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल ‘सीएनएन-आईबीएन’ व हिंदी चैनल ‘आईबीएन-7’ न केवल अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ने’ में सबसे आगे रहे हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी ‘जीएमआर’ भ्रष्‍टाचार में में घिरी है।

‘जीएमआर’ के स्वामित्व वाली ‘डायल’ कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ‘सीएजी’ ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ा’ है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा।

‘जनलोकपाल आंदोलन’ से ‘आम आदमी पार्टी’ तक का शातिर सफर!
आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का नारा देते हुए वर्ष 2011 में ‘जनलोकपाल आंदोलन’ की रूप रेखा खिंची। इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में ‘लॉंच’ कर दिया। अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद ‘कांग्रेस पार्टी व विदेशी फंडेड मीडिया’ के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, ‘आम आदमी पार्टी’ के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई।

विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और 'कैश फॉर वोट' घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं।

आगे बढ़ते हैं...! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी ‘आम आदमी पार्टी’ खड़ा करने में सफल रहे। जनलोकपाल आंदोलन के पीछे ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से ‘कबीर’ व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया। लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने ‘बिजनस स्टैंडर’ अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने ‘कबीर’ को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया।

सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था ‘आवाज’ की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी ‘आवाज’ ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी ‘आवाज’ संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस ‘फंडिंग का खेल’ खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और ‘आम आदमी पार्टी’ उसी की देन हैं।

सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि ‘फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010’ के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

अमेरिकी ‘कल्चरल कोल्ड वार’ के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल!
फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी ‘सीआईए’ की नीति को ‘कल्चरल कोल्ड वार’ का नाम दिया गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति व उसके लोकतंत्र को अपने वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने ‘सेक्यूलरिज्म’ के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से ‘भारत माता’ की तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को ‘सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का’ समझा जाता है, इसलिए वामपंथी बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता साबित करने में सफल रही।
एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और ‘आम आदमी पार्टी’ के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों?

प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को ‘क्रांतिकारी सेक्यूलर दल’ के रूप में प्रचारित करने लगी। प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी कश्मीर में हावी हो जाएंगे।

अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र स्थापित कर सके। यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर नजर रखने में उसे आसानी होगी। आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही करते रहे हैं और अब जब उनकी ‘अपनी राजनैतिक पार्टी’ हो गई है तो वह इसे राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से ‘लिटमस टेस्ट’ था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी ‘ईमानदारी’ और ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ का ‘कॉकटेल’ तैयार कर रही थी।

8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला गया, वह काफी हद तक इस ‘कॉकटेल’ का ही परीक्षण है। सवाल उठने लगा है कि यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?

आखिर जनमत संग्रह के नाम पर उनके ‘एसएमएस कैंपेन’ की पारदर्शिता ही कितनी है? अन्ना हजारे भी एसएमएस कार्ड के नाम पर अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी का मामला उठा चुके हैं। दिल्ली के पटियाला हाउस अदालत में अन्ना व अरविंद को पक्षकार बनाते हुए एसएमएस कार्ड के नाम पर 100 करोड़ के घोटाले का एक मुकदमा दर्ज है। इस पर अन्ना ने कहा, ‘‘मैं इससे दुखी हूं, क्योंकि मेरे नाम पर अरविंद के द्वारा किए गए इस कार्य का कुछ भी पता नहीं है और मुझे अदालत में घसीट दिया गया है, जो मेरे लिए बेहद शर्म की बात है।’’

प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके ‘पंजीकृत आम आदमी’ ने जब देखा कि ‘भारत माता’ के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे वक्तव्य पर ‘मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल’ शुरू हो चुका है तो उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, ‘इस देश में हिंदू आतंकवाद चरम पर है’, तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा कि ‘बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष थे।’ इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की।

याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि ‘हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ।’ उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर सके। वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय फतवा भी जारी कर चुके हैं।

नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया ‘आखिरी पत्ता’ हैं अरविंद!
दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में। मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर ‘आम आदमी पार्टी’ का निर्माण कराया गया है।

दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।’’

कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। ‘फोर्ड फाउंडेशन’ ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का ‘ब्रेन चाइल्ड’ बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई।

‘आम आदमी पार्टी’ व उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने ‘मेल टुडे’ अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया और ‘मेल टुडे’ अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। ‘मेल टुडे’ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर ‘टुडे ग्रुप’ ने भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया, लेकिन तब तक इस लेख के जरिए नरेंद्र मोदी को रोकने लिए ‘कांग्रेस-केजरी’ गठबंधन की समूची साजिश का पर्दाफाश हो गया। यह अलग बात है कि कम प्रसार संख्या और अंग्रेजी में होने के कारण ‘मेल टुडे’ के लेख से बड़ी संख्या में देश की जनता अवगत नहीं हो सकी, इसलिए उस लेख के प्रमुख हिस्से को मैं यहां जस का तस रख रहा हूं, जिसमें नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठित ‘आम आदमी पार्टी’ की असलियत का पूरा ब्यौरा है।

शांति भूषण ने इंडिया टुडे समूह के अंग्रेजी अखबार ‘मेल टुडे’ में लिखा था, ‘‘अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला। वहीं खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस से उकता गए हैं। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।’’

‘‘आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरकिनार करते हुए ‘आम आदमी पार्टी’ के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया। केजरीवाल ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्‍टाचार की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के भ्रष्‍ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार व सेक्यूलर दिखा सकें। एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके भ्रष्‍टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?’’

‘‘बीजेपी ‘आम आदमी पार्टी’ को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और भ्रष्‍टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी मढ़ दिया। ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।’’

‘‘दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्‍टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस का म
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" वर्ष २०१४ आप सब के लिए भरपूर सफलताओं के अवसर लेकर आये , आपका जीवन सभी प्रकार की खुशियों से महक जाए " !!
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Saturday, December 28, 2013

क्यों दिल्ली की सत्ता संभालने में बेखौफ हैं केजरीवाल?


दिल्ली की सरकार को लेकर एक सस्पेंस है। जो किसी को डरा रहा है। किसी को सुख की अनुभूति दे रहा है। किसी को नौसिखिये का खेल लग रहा है। किसी को बदलती सियासी बिसात की खूशबू आ रही है। सस्पेंस में ऐसा है क्या और क्या वाकई दिल्ली की राजनीति समूचे देश को प्रभावित कर सकती है। यह ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब भविष्य के गर्भ में हैं। लेकिन परिस्थितियों को पढ़ें तो कांग्रेस के माथे की शिकन भाजपा की सियासी उड़ान पर लगाम और केजरीवाल की मासूम मुस्कुराहट सस्पेंस को लगातार बढ़ा भी रही है और रास्ता भी दिख रही है। ध्यान दें तो समूची राजनीति का शोध मौजूदा वक्त में गवर्नेंस के उस सच पर आ टिका है जो पारंपरिक आंकड़ों के डिब्बे में बंद है। इसलिये बिजली बिल में पचास फीसदी की कमी और सात सौ लीटर मुफ्त पानी देने के केजरीवाल के वादे को पूरा करने या ना करने पर ही दिल्ली सरकार का पहला सस्पेंस टिका है। जाहिर है आंकड़ों के लिहाज से बिजली-पानी की सुविधा परोसने के केजरीवाल के वादे को परखें तो हर किसी को लगेगा कि यह असंभव है। सब्सिडी पर ही संभव है, लेकिन वह भी कब तक। हजारों-करोड़ों रुपये का खेल हर किसी को नजर आने लगेगा। और फिर शुरु होगा राजनीतिक फेल-पास का आंकलन। लेकिन
यहीं से आम आदमी पार्टी की राजनीति के उस पाठ को भी पढ़ना जरुरी है जो मौजूदा राजनीति के तौर तरीकों के खिलाफ खड़ा हुआ। दिल्ली वालों को अच्छा लगा कि कोई तो है जो उनकी रसोई, उनके घर के भीतर झांक कर बाहरी दरवाजे पर लगे परदे के अंदर के उस सच को समझ रहा है कि आखिर सत्ता की नीतियों तले कैसे हर घर के भीतर लोगो का भरोसा राजनेताओ से डिग चुका है। जीने के लिये जिस रोजगार को करने या रोजगार की तालाश में हर घर से कोई ना कोई काम पर निकलता तो उसे यह पता होता है कि हर दिन नौ से बारह घंटे काम करने के बाद भी उसे अगले दिन उसी जद्दोजहद में निकलना है, जहां उसे आराम नहीं है।
लेकिन मोहल्ले या इलाके का कोई शख्स बिना काम किये राजनीति करते करते हर सुविधा ना सिर्फ जुगाड़ता चला जाता है बल्कि झटके में एक दिन पार्षद, विधायक या सांसद बनकर हेकड़ी दिखाता है और हर उस पढ़े-लिखे आम आदमी की जिन्दगी जीने के तौर तरीके तय करना लगता है, जिसने हमेशा रोजगार पाने के
लिये पढ़ाई से लेकर हर उस ईमानदार सोच को जीया, जिससे उसका जीवन बेहतर हो सके। तो पहली बार केजरीवाल ने हर आम आदमी के घर के दरवाजे पर लगे चमकते पर्दे को उठाकर घर के अंदर की बदहाली को अपनी राजनीतिक बिसात में जगह दी । इसलिये बिजली-पानी का सवाल दिल्ली के माथे पर चुनावी जीत हार तय करने वाला हो गया, इससे किसी को इंकार नहीं है। लेकिन अब सवाल आगे है। इसे पूरा कैसे किया जायेगा। दिल्ली में किसी भी नौकरशाह या कांग्रेस-बीजेपी की कद्दावर-समझदार नेता से पूछ लीजिये। उसका जवाब होगा। असंभव। फिर वह मौजूदा व्यवस्था को समझाएगा। दिल्ली को खुद 900 मेगावाट बिजली पैदा करती है। जबकि दिल्ली की जरुरत छह हजार मेगावाट की है। बाकी वह निजी कंपनियों से खरीदती है। जिसमें अनिल अंबानी की बीएसईएस से 65 फिसदी तो टाटा से 30 फिसदी। लुटियन्स की दिल्ली के लिये एनडीएमसी 5 फिसदी बिजली देती है। कुल 27 पावर प्लांट हैं। एनटीपीसी, एनएसपीसी सरीखे आधे दर्जन
कंपनियों से भी करार हैं। सिंगरौली से लेकर सासन तक से बिजली लाइन दिल्ली के लिये बिछी है। हर निजी कंपनी से अलग अलग करार है। प्रति यूनिट बिजली एक रुपये बीस पैसे से लेकर छह रुपये तक खरीदी जाती है। औसतन चार रुपये प्रति यूनिट बिजली पड़ती है। और उसमें ट्रासंमिशन, लीकेज सरीखे बाकि खर्चे जोड़ दिये जायें तो पांच रुपये प्रति यूनिट बिजली की कीमत पड़ती है। अब इसे आधी कीमत में केजरीवाल बिना सब्सिडी कैसे लायेंगे। जाहिर है इसी तरह 700 लीटर मुफ्त पानी देने का सवाल भी राजनेताओं के आंकड़े और नौकरशाहों के गणित में दिल्ली सरकार के सस्पेंस को बढ़ा सकता है कि कैसे यह सब पूरा होगा। लेकिन अब जरा यह सोचे कि जो राजनीति हाशिये पर पड़े लोगों के घरों के बाहरी दरवाजों पर लगें पर्दे को उठाकर भीतर झांक कर सरोकार बनाने को ही राजनीति बना लें तो क्या इन आंकड़ों का कोई महत्व है। तो जरा इसके उलट सोचना शुरु करें। मुख्यमंत्री पद की शपद लेते ही केजरीवाल 700 लीटर मुफ्त पानी देने का एलान कर देते हैं।

इसका असर क्या होगा। पानी की सप्लाई तो जारी रहेगी। हां जब बिल आयेगा तो उसमें 700 लीटर पानी का बिल माफ होगा। जाहिर है जितना पानी लुटियन्स की दिल्ली, पांच सितारा होटल और दक्षिणी दिल्ली के 3 फिसदी लोग [ दिल्ली की जनसंख्या की तुलना में ] पानी का उपभोग करते हैं, अगर उनमें से सिर्फ 9 फिसदी पानी की कटौती कर जाये या फिर उनके बिल में 12 फीसदी का इजाफा कर दिया जाये तो समूची दिल्ली को 700 लीटर मुफ्त पानी देने में केजरीवाल को कोई परेशानी नहीं होने वाली। और मुख्यमंत्री बनने के 48 घंटे के भीतर ही अगर केजरीवाल बिजली बिल में भी 50 फिसदी की कटौती का एलान कर देते हैं तो क्या होगा। बिजली सप्लाई में तो कोई असर नहीं पड़ेगा। हां, कुछ निजी कंपनियां सिरे से यह सवाल उठा सकती है कि उनकी भरपाई कैसे होगी। और उसके बाद केजरीवाल अगर निजी कंपनियों को कहते हैं कि या तो बिल कम करो या बस्ता बांधो तो क्या होगा। जाहिर है कोई निजी कंपनी अपना बस्ता नहीं बांधेगी। और हर कीमत पर केजरीवाल की बात को मानने लगेगी। क्योंकि देश में बिजली की दरें किस आधार पर तय होती हैं, यह आज भी किसी को नहीं पता। फिर दिल्ली को ही सासन से सप्लाइ होने वाली बिजली एक रुपये बीस पैसे प्रति यूनिट मिलती है और सिंगरौली से मिलने वाली बिजली 3.90 पैसे प्रति यूनिट। इतना अंतर क्यों है, यह भी किसी को नहीं पता। ध्यान दें तो जबसे देश में बिजली निजी क्षेत्र को सौंपी गयी और उसके बाद
सिलसिलेवार तरीके से कोयला से लेकर पानी और जमीन से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर त निजी कंपनियों के जिस सस्ते दाम में दे दिया गया और उस पर बैक ने भी बिना कोई तफतीश किये सबसे कम इंटरेस्ट पर बिजली कंपनियों को रुपये बांटे वह अपने आप में एक घोटाला है। और इसका सबूत कोयला खादानों के बंदर बांट से लेकर झारखंड सरकार के सीएम रहे मधु कोड़ा पर लगे आरोपों के साये में देखा-समझा जा सकता है। इतना ही नहीं एनरॉन इसका सबसे बडा उदाहरण है कि कैसे वह खाली हाथ सिर्फ प्रोजेक्ट रिपोर्ट के आधार पर अरबों रुपये लूटने की योजना के साथ भारत में कदम रखा था। और एनरान के बाद टाटा से लेकर अंबानी समेत देश के टापमोस्ट 22 कंपनिया क्यो बिजली उत्पादन से जुड़ी है। और कैसे देश में सौ से ज्यादा पावर प्रोजेक्ट के लाइसेंस राजनेताओं के पास है। जिसमें कांग्रेस के राजनेता भी है और भाजपा के भी। और यह सभी बेहद कद्दावर राजनेता हैं। तो फिर बिजली उत्पादन से जुडकर बिजली बेचकर मुनाफा कमाने के खेल में कितना लाभ है।

अगर इसके आंकडे पर गौर करें तो बिजली उत्पादन करने वाली हर कंपनी के टर्न ओवर में 80 फीसदी तक का मुनाफा बिजली बेच कर कमाने से है। कोयला खादान किस कीमत में दिये गये और कैसी कैसी
कंपनियों के दिये गये यह कोयला घाटाले पर सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद किसी से छुपा नहीं है। बेल्लारी से लेकर झारखंड और उडीसा तक में कैसे निजी कंपनियो के विकास मॉडल या इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर औने पौने दाम में कैसे खनिज संपदा लूटी जा रही है, यह किसी से छुपा नहीं है। और इसकी एवज में कैसे राजनितिक दलों या फिर राजनेताओं की अंटी में कितना पैसा जा रहा है, जो चुनाव लडते वक्त निकलता है यह भी किसी से छुपा नहीं है। तो कैसे मौजूदा वक्त में संसद के भीतर ही चुने हुये सौ से ज्यादा सांसदों के पीछे कोई ना कोई कारपोरेट है, यह भी किसी से छुपा नहीं है। तो फिऱ जो कारपोरेट और निजी कंपनियां भारत में क्रोनी कैपटिलिज्म से आगे निकल कर खुद ही सत्ता में दस्तक दे रहा है, वह कैसे और क्यो नहीं केजरीवाल की बात मानेगा। असल में कांग्रेस और भाजपा दोनों यह मान कर सियासत कर रहे हैं कि पारंपरिक तौर तरीके में केजरीवाल फंसेंगे। लेकिन दोनों ही राष्ट्रीय राजनीतिक दल इस सच को समझ नहीं पा रहे हैं कि देश में विकास के नाम पर या फिर इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर जिस तरह की जो नीतियां बनी और उन्हें जिस आंकड़े तले परोसा गया, वह देश के उन बीस फिसदी लोगों की सोच से आगे निकल नहीं पाया जो उपभोक्ता हैं या फिर कमाई के जरिये बाजार अर्थव्यवस्था के नियम कायदों को बनाये रखने में ही खुद को बेहतर मानते हैं और सुकून का जीवन देखते हैं। बाकि हाशिये पर पड़े देश के अस्सी फीसदी के लिये जो कल्याण योजनायें निकलती हैं, वह देश की उसी रुपये से बांटी जाती है जिसे निजी कंपनियों या कारपोरेट के आसरे कही ज्यादा कमाई की गई होती है। इसलिये दिल्ली को लेकर केजरीवाल की रफ्तर सिर्फ बिजली या पानी तक रुकेगी ऐसा भी नहीं। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य और डीटीसी से लेकर मेट्रो तक में 72 हजार लोग जो कान्ट्रेक्ट पर काम कर रहे हैं, सभी को स्थायी भी किया जायेगा और जो झुग्गी झोपडी राजनीतिक वायदो तले अपने होने का एहसास करती थी उन्हे खुले तौर पर मान्यता भी मिल जायेगी। यह सब केजरीवाल हफ्ते भर में कर देंगे। फिर सवाल होगा जो पैसा दिल्ली के विकास या इन्फ्रास्ट्रक्चर को पूरा करने के नाम पर खर्च नीतियो के जरीये किया जाता रहा वह मोहल्ला सभाओं के जरीये तय होगा तो बिचौलिये और माफिया झटके में साफ हो जायेंगे, जिनकी कमाई का आंकड़ा कमोवेश हर विभाग में एक हज़ार करोड़ से 20 हजार करोड़ तक का है। जाहिर है लूट की राजनीति से इतर केजरीवाल की सियासी बिसात जब दिल्ली में अपने मैनिफेस्टो को लागू कराने के लिये उन्हीं कारपोरेट और निजी कंपनियों पर दबाब बनायेगी तब दिल्ली छोड़कर बाकि देश में लूट में खलल ना पडे इसलिये वह समझौता कर लेंगी या फिर कांग्रेस और भाजपा के दरवाजे पर जा कर दस्तक देंगी कि सरकार गिराये नहीं तो लूट का इन्फ्रास्ट्रक्चर ही टूट जायेगा। जाहिर है इन हालात में केजरीवाल की सरकार भी अगर गिर जाती है तो फिर चुनाव में देश का आम आदमी क्यों सोचेगा। कांग्रेस को यह डर होगा। लेकिन जिस रास्ते केजरीवाल की सियासी बिसात बिछ रही है, उसमें कांग्रेस या भाजपा अब छोटे खिलाड़ी हैं। एक वक्त के बाद तय देश के उसी कारपोरेट को करना है जिसने मनमोहन सरकार पर यह कहकर अंगुली उंठायी कि गवर्नेंस फेल है और वह नरेन्द्र मोदी के पीछे इसलिये खड़ा हो गया कि गवर्नेंस लौटेगी। लेकिन इस सियासी दौड़ में किसी ने हाशिये पर पड़े लोगों के घरों के पर्दे के भीतर झांक कर नहीं देखा कि हर घर के भीतर की त्रासदी क्या है। पहली बार वह दर्द उम्मीद बनकर केजरीवाल के घोषणापत्र तले उभरा है और संयोग से उस बिसात को ही बदल रहा है जिसे आजादी के बाद से किसी राजनीतिक दल ने नहीं छुया। तो लडाई तो वाकई दिये और तूफान की है। और तूफान पहली बार अपनी ही बिसात पर फंसा है।



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Thursday, December 26, 2013

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Friday, December 20, 2013

" षड्यंत्रकारी सरकार के मक्कार सलाहकार ", क्या बेड़ा पार लगा पाएंगे अपने राहुल गांधी का। ..??

एक गलती को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने  पड़ते हैं , ये सयाने लोग कहा करते हैं लेकिन जिनको कोई काम नहीं करना होता या फिर कोई गलत काम करना होता है वो लोग षड्यंत्र का सहारा लिया करते हैं !!
                      मित्रो !! जबसे राजनितिक दलों ने अपनी-अपनी विचारधाराओं को त्याग कर एक दुसरे से अनैतिक संबन्ध बनाकर तीसरा-मोर्चा ,u.p.a. n.d.a.और न जेन क्या-क्या नाम के गठबंधन बनाने शुरू किये हैं तबसे ही ऐसे काण्ड  देखने को मिल जाते हैं जिनको छिपाने के लिए इन घाघ नेताओं को षड्यंत्र रचने पड़ते हैं ! जो लोग इन षड्यंत्रों को पहचान कर उनका विरोध करते हैं , उनको नाजायज़ तरीकों से दबाने कि कोशिशे होती रहती हैं !!
                  R.T.I.कार्यकर्ता हों या राजनितिक कार्यकर्त्ता , कर्मचारी हो या फिर कोई अफसर सब समय-समय पर इनके शिकार होते ही रहते हैं ! सेकुलर प्रकृति के नेता ही ज्यादातर ऐसा करते पाये गये हैं या फिर दुसरे शब्दों में कहें तो सेकुलर ही षड्यंत्र रचने में ज्यादा माहिर होते हैं !! आजकल अन्ना टीम , केजरीवाल कि आप पार्टी और कई बाबा इसके शिकार हो रहे हैं !!

             भाई नरेंद्र मोदी जी तो ऐसे लोगों के पुराने शिकार हैं , कोई भी बात हो बस ले आते हैं गुजरात को बीच में जैसे दाल को "छमका " जरूरी है वैसे हर समस्या को मोदी पर उंडेल देना जरूरी है यारो !!
             कोई कृष्ण बनकर आएगा और मोदी के रथ को चलायेगा जिससे आम जनता को निज़ात मिलेगी !! .............आमीन - सुमामीन !!!!चित्र में ताज़ा षड्यंत्र का उल्लेख है उसे भी अवश्य पढियेगा जनाब !! धन्यवाद !!

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                                            प्रिय मित्रो , सादर नमस्कार !! आपका इतना प्रेम मुझे मिल रहा है , जिसका मैं शुक्रगुजार हूँ !! आप मेरे ब्लॉग, पेज़ , गूगल+ और फेसबुक पर विजिट करते हो , मेरे द्वारा पोस्ट की गयीं आकर्षक फोटो , मजाकिया लेकिन गंभीर विषयों पर कार्टून , सम-सामायिक विषयों पर लेखों आदि को देखते पढ़ते हो , जो मेरे और मेरे प्रिय मित्रों द्वारा लिखे-भेजे गये होते हैं !! उन पर आप अपने अनमोल कोमेंट्स भी देते हो !! मैं तो गदगद हो जाता हूँ !! 
                                                       आपका बहुत आभारी हूँ की आप मुझे इतना स्नेह प्रदान करते हैं !!नए मित्र सादर आमंत्रित हैं !!HAPPY BIRTH DAY TO YOU !! GOOD WISHES AND GOOD - LUCK !! प्रिय मित्रो , आपका हार्दिक स्वागत है हमारे ब्लॉग पर " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " the blog . read, share and comment on it daily plz. the link is - www.pitamberduttsharma.blogspot.com., गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी !!ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !!
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Thursday, December 19, 2013

क्या बात है ??? इतनी सख्त हमारी सरकार कब से हो गये ??


                                             नया इंडिया, 19 दिसंबर 2013 : हमारी बाबुओं की सरकार में इतनी हिम्मत अचानक कहां से आ गई? उसने बुलडोजर भेज दिए और चाणक्यपुरी के अमेरिकी दूतावास के आस-पास लगी सीमेंट की बाड़ गिरा दी। उसने अमेरिकी वाणिज्य-दूतावास के अधिकारियों के वे ‘पास’ भी वापस मंगा लिए, जिन्हें दिखाकर वे हवाई अड्डों पर विशेष सुविधाओं के हकदार बन जाते थे। इससे भी बड़ी बात यह कि अमेरिकी दूतावास में काम कर रहे स्थानीय कर्मचारियों के वेतन और भत्तों की जांच भी शुरु कर दी गई है। भारत सरकार अब यह मालूम करेगी कि उन कर्मचारियों को कितनी तनखा मिलती है? अमेरिका में जितनी मिलती है, कहीं उससे कम तो नहीं मिलती है? अमेरिकी कूटनीतिज्ञों के परिवारजन में कौन-कौन हैं? वे समलैंगिक तो नहीं हैं? इतना ही नहीं, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, विदेश सचिव सुजाता सिंह, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री सुशील शिंदे और राहुल गांधी ने अमेरिकी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से भी मिलने से मना कर दिया। हमारी विदेश सचिव ने अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल को बुलाकर शिकायत !
                                                    
दब्बू नेता और इतनी हिम्मत? ! ! !
                                                    एक भारतीय नौकरानी ने अमेरिकी पुलिस से कहा कि उसकी भारतीय मालकिन उसे नियमानुसार बेहद कम वेतन दे रही हैं जो मानवाधिकारों का हनन और कानूनी तौर पर जुर्म है.
भारतीय मालकिन यानी IFS अफसर देवयानी ने पुलिस को बताया को वो अमेरिकी नियमुन्सार अपनी नोकारानी को ९.७५ डॉलर प्रति घंटे की दर से वेतन दे रही हैं. इस पर नौकरानी ने दस्तावेजी सबूत पुलिस को दिखाए और कहा की मालकिन गलत बोल रही है. उसे सिर्फ ३ डॉलर प्रति घंटे की दर से वेतन दिया जा रहा है.
मामले की जांच हुई और पाया गया की देवयानी ९.७५ (५३६ रूपए) की जगह सिर्फ ३ डॉलर(१६५ रूपए) रूपए ही अपनी नौकरानी को दे रही थी. अदालत ने देवयानी को अपनी नौकरानी को भारी जुर्माना भरने के आदेश दिए. देवयानी चूँकि भारतीय दूतावास में तैनात नही थी इसलिए अमेरिकी क़ानून के मुताबिक नौकरानी को जुर्माना न भरने पर उनकी गिरफ्तारी ही एक मात्र उपाय था. इस फैसले से सबसे पहले आहत देश के IFS अफसर हुए जिन्हें लगा की अब अमेरिका में कौड़ियों के भाव सस्ते भारतीय नौकर रखने में कानूनी दिक्कत आयेंगी.और आखिरकार विदेश नीति बनाने वाले IFS अफसरों ने एक नौकरानी और अफसर की लड़ाई ओबामा के दफ्तर तक पहुंचा दी .

मित्रो देवयानी का मै समर्थन करता हूँ की उन्होंने अपनी नौकरानी को पारंपारिक रूप से ३ डॉलर की दर से वेतन देकर कुछ गलत नही किया क्यूंकि सालों से अमेरिका मे तैनात IFS फर्जी कागजों पर बड़ा हुआ वेतन दिखा रहे थे और अब तक विवाद से बचते रहे. एक भारतीय नौकरानी ने ज्यादा पैसों की लालच में जब इस फर्जीवाड़े की कलई खोली तो IFS अफसरों ने हंगामा खड़ा कर दिया. क्यूंकि IFS अफसर ही विदेश निति चलाते हैं इसलिए देश को इस मामले पर स्टैंड लेना पड़ा और मुद्दा नौकरानी को गैर कानूनी कम वेतन की जगह देवयानी से बदसलूकी बना. इस बदसलूकी की हम निंदा करते है पर कुछ सवाल मेरे जेहन में ज़रूर हैं.
मित्रों ये IFS अफसर तब एक जुट क्यूँ नही हुए जब हमारे तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस के अमेरिका में कपडे उतार लिए गये थे .                                                              
ये IFS तब एक जुट क्यूँ नही हुए जब हमारे सुपरस्टार शाहरुख़ खान से एक आतंकवादी की तरह अमेरिकी पुलिस ने बर्ताव किया और उनको हिरासत में रखा. जब इस देश के तीन बार निर्वाचित मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अमेरिका ने वीजा की राजनीति की तब ये IFS अफसर कौन सी कूटनीति कर रहे थे. मित्रों मै मोदी का पक्ष नही ले रहा लेकिन बिना किसी अदालत के आरोप के अगर एक बड़ी पार्टी के प्रधानमंत्री उमीदवार और निर्वाचित मुख्यमंत्री पर कोई बाहरी देश जानबूझकर कोई प्रतिबन्ध लगाए तो ये जग हंसाई का विषय है. ये हमारी सार्वभोमिकता और निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का खुला उलंघन है. क्या इस तथ्य को IFS अफसर बिना सत्ता परिवर्तन के नही स्वीकारेंगे.
                                                    मित्रों भले ही वेतन मामले में देवयानी की गलती हो पर उनके साथ की गयी बदसलूकी पर अमेरिका माफ़ी मांगे लेकिन विदेश नीति के मुद्दे सिर्फ IFS अफसर अपने हित के अनुसार घटा बदाकर न तय करें. IFS अफसरों के हाथों बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है और उन्हें हर मुद्दे को जनता के हित को सर्वोपरि रख कर देखना चाहिए.



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Wednesday, December 18, 2013

देश के महान कार्टूनिस्टों की नज़र में देश के हालात कुछ इस तरह के हैं !!

ये है कार्टून भाषा में लिखे गये लेख , जो पढ़ने के साथ-साथ देखे भी जाते हैं ! आप भी इन्हें देख कर पढ़ कर हालातों को जानिये , मनन कीजिये और फिर चर्चा कीजिये हज़ूर
 
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Friday, December 13, 2013

हालाँकि मैं भाजपा का कार्यकर्त्ता हूँ , लेकिन फिर भी चाहता हूँ कि " आप " के प्रति लोगों में जो विश्वास जगा है वो टूटने ना पाये ! !

प्यारे विश्वासपात्र मित्रो , विश्वसनीय नमस्कार स्वीकार करें !! क्योंकि आजकल किसीको राम-राम करदें तो वो पहले तो दो बार सोचता है कि ये कौन है और इसने राम-राम कि है तो इसे क्या मतलब हो सकता है जिसके चलते इसने राम राम करी है ! जब वो आश्वस्त हो जाता है कि राम-राम करने वाले का कोई "स्वार्थ " नहीं है तो वो प्यार से राम-राम का जवाब देता है अन्यथा बड़े ही सूखे अंदाज में राम-राम के जवाब में राम-राम की जाती है !! 
            वैसे ही पिछले 65सालों में राजनीतिज्ञों ने ऐसा विश्वास खोया है कि विश्वास शब्द पर ही शक़ होने लगा है ! ऐसे-ऐसे करतब हमारे " माननीय " नेताओं ने कर दिखाए हैं कि पूछिए मत ! अभी आज ही लालू जी को चारा घोटाले से ज़मानत मिली है तो  श्रीमती राबड़ी देवी जी से पहले श्री मति सोनिया गांधी जी ने उनकी रिहाई पर प्रसन्नता दिखायी है !! इतना ही नहीं दो दिन पहले माननीय सर्वोच्च- न्यायालय ने " गे "प्रजाति पर जो निर्णय दिया है उस पर भी सोनिया जी दुखी हो गयीं थीं ! ऐसे क्रियाकलापों और भ्रष्टाचारों से नेताओं का दामन "छलनी " हुआ पड़ा है !! 

           चाहे अन्ना जी में और टीम केजरीवाल में दूरियाँ बढ़ रही है !! चाहे मैं भाजपा का सदस्य हूँ लेकिन देश में मेरी तरह कई लोगों कि यही भावना है कि जो सच्चाई "आप" पार्टी के लोगों ने दिखायी है वो बनी रहे ! क्योंकि हमारी भावी पीढ़ी के लिए ये एक सुखद भविष्य कि आशा है !! चाहे कोई कहे कि भाजपा ने आप पार्टी के डर से ही दिल्ली में सत्ता त्यागी है , फिर भी है तो अच्छा !!
          सत्य अकेला नहीं पड़ना चाहिए !! जंहा भी दिखायी दे, हम सबको  सारी  सीमाएं तोड़कर उसका समर्थन करना चाहिए !यही समय की मांग है मित्रो !!
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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...