Thursday, October 30, 2014

" कार्यकर्त्ता अपनी निष्ठा दिखाते-दिखाते बूढ़े हो चले हैं , वो हैं कि उन्हें " बावरा " बता रहे हैं " सो ~ ~ ! रहा हैं संगठन !!- पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-समीक्षक )

मित्रो ! जनता पार्टी जब टूटी तो कई नेताओं ने अपनी निजी कम्पनी की तरह पार्टी बनाली , कइयों ने मिलकर जनता दल बना लिया और एक भारतीय जनता पार्टी बन गयी ! जनता दल में शामिल नेताओं को जैसे-जैसे बुद्धि आती गयी वैसे-वैसे वो अपनी कंपनियां यानी पार्टियां बनाते चले गए , जो आज तक " चारा " खा रहे हैं ! कॉमरेडों ने इस हालात का बहुत ही फायदा उठाया ! जिधर भोजन देखा उधर ही अपनी थाली लेकर घुस जाते थे ! जनता भी परेशान थी और दोनों बड़ी पार्टियां भी ! 
                एक चीज़ और भी विचारने लायक है जी !! और वो ये कि जितने भी भारत के प्रमुख नेता हुए हैं वो सभी कभी ना कभी कांग्रेसी भी रहे हैं ! संघ भी पहले अपने स्वयंसेवक को किसी भी राजनितिक दल का सदस्य बनने की छूट दिया करता था ! इसी कारण से आज भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बहुत से ना केवल गुन मिलते हैं बल्कि कार्यशैली और d. n. a. भी मिलते हैं ! इसी का नतीजा है कि  कहने को तो दोनों पार्टियों में " संगठन " ही महान है ! लेकिन सत्य ये है कि केवल व्यक्तिवाद ही कामयाब हो रहा है !
                    संगठन के नेताओं के भाषण सुन-सुन कर कि कार्यकर्त्ता महान हैं , कार्यकर्त्ता पार्टी की रीढ़ की हड्डी हैं आदि-आदि ये भाषण तो तभी दिए जाते हैं जब कोई नेता मुसीबत में हो या फिर कोई चुना नज़दीक हों ! और  जो कार्यकर्त्ता पार्टी की रीतियों - नीतियों पर चलते हैं , उनको स्थानीय मौजूदा  M. L. A . ,M . P ., रह चुके , या बनने वाले नेता अपना आदमी मानते ही नहीं ! और ना ही संगठन उनको विशेष ध्यान देता है क्योंकि चाहे कोई पदाधिकारी हो या चाहे वो कोई नेता , आजकल सिर्फ धन को ही सब कुछ माना जाता है ! धनी कार्यकर्त्ता चाहे जितनीबार पार्टी से विद्रोह करले , चाहे जितने अपशब्द बोल ले या फिर चाहे वो पार्टी के विरोध में चुनाव भी लड़ ले ! उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर पता ! वो बड़ी शान से फिर उसी पार्टी के मंच पर आकर विराजमान हो जाता  है !मंच के सामने बैठे असली कार्यकर्त्ता हक्का-बक्का सा बस देखता ही रह जाता है ! घर जाता-जाता सोचता जाता है की कार्यकर्त्ता मैं हूँ या फिर वो जो अपने गले में माला पहनकर और भाषण सुना कर चला गया !?
                  जो नेता कार्यकर्ताओं को कल तक संगठन की रीतियाँ - नीतियां समझा रहे थे , वो ही उसके  स्वागत भाषण पढ़ रहे !  तरह-तरह के कारण भी गिनाये जाते हैं कि  ये पार्टी के हित में है वगेरह-वगेरह ! ये सब तो बड़े चुनावों में होता है ! लेकिन जब निकाय स्तर या ग्रामीण स्तर के चुनाव आते हैं तब कार्यकर्त्ता ऐसे-ऐसे नेताओं के दर-दर भटक कर अपने लिए एक अदद टिकट की मांग करता फिरता है जो कल तक उस से जूनियर थे लेकिन आज उनके पास पार्टी के महत्वपूर्ण पद है ! इसलिए वो मक्कार नेता उसको कहते है कि कल तक तो उस फलाने नेता के घर बैठा रहता था , जा उसी से लेले अब टिकट !! यहाँ क्या लेने आया है ! बेचारा खून के घूँट पीकर फिर भी वो प्रार्थी बोलता है की नहीं जी आप बड़े हो ! आप ही दे देना ! ऐसा बोल कर वो जा रहा होता है तो वही नेता अपने पास बैठे व्यक्ति को धीरे से बोलता है की देखो !! कैसे बावरा हुआ घूमता है ?? और फिर वातावरण में ऐसी हंसी गूंजती है जो उसे भी सुनाई दे जाती है जो टिकट मांगने आया था ! तब उसे लगता है कि वो ठगा गया है ! उसका जीवन बेकार चला गया है उसकी जवानी के वो कीमती दिन बर्बाद हो गए हैं ! संगठन वाले भी अपनी पसंद के दो-चार मंत्री बनवाकर सो जाते हैं !
                             अब जब कोई नैतिकता बची ही नहीं है तो कनिष्ठ कार्यकर्त्ता ही अपने हितों का क्यों त्याग करे ?? लड़ो!! साथियो !! लड़ो !! लड़ने से ही तुम्हारी शक्ति को कबूला जायेगा !! एयर कंडीशनर कमरों में बैठकर रणनीतियां बनाने वाले चुनाव के मैदान में दौड़ नहीं पाएंगे ! अगर आप टिकट मांगने के लिए इनके चक्कर ही नहीं काटोगे तो ये अपने आप सीधे होजाएंगे !! अब सब जगह अपने रिश्ते  दारों को ही तो नहीं खड़ा कर सकेंगे ना !!? इनको दिखादो !! की आपको भी वोट हमारे  ही मिलते हैं ! अगर कार्यकर्त्ता ही ना हो तो कौन सा नेता अपने आप जीत पायेगा ?? " बावरे " बनकर दिखादो अपनी ताकत को !! चाहे सोनिया जी  हो या कोई और  ! सब जागने पर विवश हो जाएंगे ! 

            
                 जय श्री राम बोलना  पडेगा भाई लोगो !!!
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