Tuesday, February 28, 2017

"मैसर्ज दलीप सिंह &डाटरज़" - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न.+9414657511

मित्रो ! सादर नमस्कार स्वीकार करें ,और अपना ढेर सारा प्यार हमेशां की तरह मुझे आशिर्वाद के रूप में देते रहा करें !जैसा की आप जानते हैं कि 23 फ़रवरी 2017 को मेरी प्यारी बेटी सुकृति का शुभ-विवाह पटना में चिरंजीव ओम्कार झा जी से हुआ है !बहुत ही प्यारा और उदार प्रकीर्ति वाला परिवार हमें आप सब की दुआओं और परमात्मा की असीम कृपा से मिला है !हमारी बेटी ने कड़ी मेहनत से पढ़ाई करके जर्नलिज़म में मास्टर किया है ,आज वो "पत्रिका राजस्थान के टीवी चेनेल में प्रोड्यूसर और एंकर के पद पर कार्यरत है !आज मैं उसकी वजह से भी जाना जाता हूँ !इसीलिए मैंने वो हैडिंग दिया है जो आमिर खान जी अपने नए विज्ञापन में बेटियों के गुणों का बखान करते हुए मिठाई की दूकान में लड्डू बेचते नज़र आ रहे हैं !बहुत ही अच्छा और भावुक कर देने वाला विज्ञापन बनाया गया है !आप भी अवश्य देखियेगा जी !
            कुछ चित्र बेटी की शादी के आपकी नज़र कर रहा हूँ !!आप भी मुझे और मेरी प्यारी बेटी को अपना आशीर्वाद दे सकते हैं जी !आपके अनमोल कॉमेंट्स मेरे लिए जीवन दान जैसा काम देते हैं और प्रेरणा भी देते हैं !इस कार्यक्रम में बिहार भाजपा के संगठन मंत्री एवम राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक महोदय भी पधारे !उनका भी धन्यवाद करना चाहता हूँ !पटना प्रवास के दौरान मुझे जो भी मिला बड़े ही प्रेम से मिला और मुझे भरपूर सहयोग भी दिया ! श्री दिनेश जी अरोरा एवम श्रीमती रेणु सिंह जी का मैं विशेष आभारी हूँ जो मेरे भाई-बहन की तरह मेरे साथ रहे !मुझे आभास ही नहीं होने दिया कि मैं कहीं बाहर अपनी बेटी का विवाह कर रहा हूँ !ये सब लोग परमात्मा की कृपा व आदेश से ही मेरे साथ जुड़े ऐसा मेरा माना है जी !इसलिए भगवान् जी का भी आभार !
                                                          












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Saturday, February 18, 2017

"मेरी सुपुत्री आयुष्मति सुकृति शर्मा का शुभ पानी-ग्रहण संस्कार"!!- पीताम्बर दत्त शर्मा

प्रिय मित्रो !! सादर सप्रेम नमस्कार ! कृपया स्वीकार करें !कुशलता के आदान-प्रदान पश्चात समाचार ये है कि मेरी सुपुत्री आयुष्मति सुकृति शर्मा का शुभ विवाह आयुष्मान ओम्कार झा सुपुत्र श्रीमती इंदिरा झा,श्रीमान डॉक्टर जितेन्द्र झा निवासी चंदेल,कटरा बिहार से दिनांक 23 फरवरी 2017 को पटना में होने जा रहा है !निमन्त्रण पत्र मैं पहले ही आपको इंटरनेट के माध्यम से भेज चुका हूँ !अब आपसे इस शुभ कार्य में पहुँचने की दोबारा प्रार्थना करते हुए दिनांक 1 मार्च 2017 तक आज्ञा चाहता हूँ !इतने दिन मैं आपकी सेवा नहीं कर पाऊंगा ! आपकी बहुत याद आएगी !क्योंकि आप सब मेरे मित्र ही नहीं बल्कि मेरे अनमोल पाठक भी हो ! आपके अनमोल कॉमेंट्स मुझे प्रेरित करते रहते हैं और मार्गदर्शन भी करते रहते हैं !
                           आभार सहित सधन्यवाद !
                                         आपका अपना मित्र ,
                                            पीताम्बर दत्त शर्मा ,
                                               मो.न.+9414657511 . 

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Wednesday, February 15, 2017

"जब तक मैंने समझा,जीवन क्या है?जीवन बीत गया" !- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-समीक्षक)

जन्म लेने से पहले मैं कौन था ,क्यूँ था,किसलिए था,कहाँ था और कैसे आया अपनी इसी माता के गर्भ में मैं???ये जानने हेतु अपनी पहली गुरु माता से लेकर आज तलक ना जाने कितने गुरुओं से ,कितनी प्रकार की शिक्षा प्राप्त चाहे-अनचाहे करी !लेकिन जब तक मैं कुछ समझ पाता , ये जीवन ही समाप्त होता नज़र आ रहा है !खुशियों के हर फूल से मैंने गम का हार पिरोया !जिसे मैं ख़ुशी समझता रहा वो तो पल भर की ख़ुशी थी ,मन की पूरी शान्ति नहीं मिल पायी !जिन्हें मैं अपना मानता रहा , उन्होंने तो मुझे पराया बना दिया !मैं जीवन भर अपनेपन पाने को तरसता ही रहा !रिश्ते-नाते दोस्ती सब एक सपने की तरह टूटते ही गए !रोज़ नए सपने गढ़े जाते ,रोज़ टूट भी जाते !समय की आंधी सब उड़ाकर ले गयी !!उन सभी की यादों में आज भी मेरी आँखें भरी हुई हैं ,जिन्हें मैं अक्सर पिता रहता हूँ लेकिन छलकने नहीं देता !सबको मैं हंसता हुआ नज़र आता हूँ !
                    इसीलिए मैंने लिखा है कि "जब तक मैंने समझा,जीवन क्या है?जीवन बीत गया" !इसीलिए शायद शास्त्रों में लिखा है कि "कम खाओ,कम मोह करो,कम लालच करो और ज्यादा प्रभु संग रहने का प्रयास करो !लेकिन हमें तो आधुनिक साधनों में ही सच्ची शान्ति मिलती नज़र आती है , क्योंकि हमारे देश के सन्त भी इन्हीं सुविधाओं में रहते हैं जी !जय श्री राम !प्रसन्न रहो !मस्त रहो !अपना मन "फकीरी"में लगाओ यारो !




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Thursday, February 9, 2017

"जेनयू के जहर बुझे तीर ,करते हैं घाव गंभीर "!!


जेएनयू की बीमारी, 'देशद्रोह' के प्रोफेसर - साभार -श्री लोकेन्द्र सिंह जी !

 जवाहरलाल  नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) अपने विद्यार्थियों और शिक्षकों के रचनात्मक कार्यों से कम बल्कि उनकी देश विरोधी गतिविधियों से अधिक चर्चा में रहता है। पिछले वर्ष जेएनयू परिसर देश विरोधी नारेबाजी के कारण बदनाम हुआ था, तब जेएनयू की शिक्षा व्यवस्था पर अनेक सवाल उठे थे। यह सवाल भी बार-बार पूछा गया था कि जेएनयू के विद्यार्थियों समाज और देश विरोधी शिक्षा कहाँ से प्राप्त कर रहे हैं? शिक्षा और बौद्धिक जगत से यह भी कहा गया था कि जेएनयू के शिक्षक हार रहे हैं। वह विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करने में असफल हो रहे हैं। लेकिन, पिछले एक साल में यह स्पष्ट हो गया है कि जेएनयू के शिक्षक हारे नहीं है और न ही विद्यार्थियों के मार्गदर्शन में असफल रहे हैं, बल्कि वह अब तक जीतते रहे हैं और अपनी शिक्षा को विद्यार्थियों में हस्थातंरित करने में सफल रहे हैं। 

         यकीनन इन्हें शिक्षक कहना समूचे शिक्षक जगत का अपमान है। इनके लिए अध्यापन पवित्र कर्तव्य नहीं है, बल्कि मात्र आजीविका का साधन और अपने वैचारिक प्रदूषण से देश के युवाओं को बीमार करने का जरिया है। इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि देश विरोधी गतिविधियों में विद्यार्थियों की सक्रियता और संलिप्तता के पीछे असल में जेएनयू के 'देशद्रोही प्रोफेसरों' का दिमाग है। जेएनयू के देशद्रोहियों का चेहरा और चरित्र एक बार फिर उजागर हुआ है। 
          तीन फरवरी को राजस्थान की जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में आयोजित एक संगोष्ठी में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने बड़ी बेशर्मी से देश विरोधी टिप्पणी ही नहीं की, अपितु देश के राष्ट्रीय ध्वज और मानचित्र का भी अपमान किया। देश के बहादुर सैनिकों के प्रति भी आपत्तिजनक टिप्पणी की। प्रोफेसर मेनन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है, जिसमें कहा गया है कि संगोष्ठी में उन्होंने अपनी प्रस्तुति में जानबूझकर देश का मानचित्र उल्टा दिखाया। उन्होंने 'भारत' को 'माता' कहने वाले करोड़ों भारतीयों की भावना का उपहास उड़ाते हुए कहा कि बताइए इस नक्शे (भारत के उल्टे नक्शे में) में भारत माता कहाँ दिख रही हैं?
         दरअसल, 'भारतमाता' के रूप में इस देश की वंदना करने वाले राष्ट्रीय विचारधारा के लोगों ने भारत के नक्शे को सिंह पर सवार और एक हाथ में ध्वज लिए देवी के रूप में चित्रित किया है। प्रोफेसर मेनन का इशारा इसी 'भारतमाता' की ओर था। उनके मुताबिक उन्होंने अपने विभाग में भी भारत का उल्टा नक्शा लगाया है, क्योंकि वह इस देश को मात्र एक भूखंड मानती हैं। वह कहती हैं कि दुनिया गोल है और उसे दूसरी तरफ से देखने पर भारत ऐसा ही (उल्टा) दिखता है। प्रो. मेनन यह भी कहती हैं- 'भारत माता की फोटो यह ही क्यों है? इसकी जगह दूसरी फोटो होनी चाहिए। मैं नहीं मानती इस भारत माता को।' बिल्कुल यह निहायत व्यक्तिगत मामला है कि आप भारत को माता माने या पिता, या फिर मात्र एक देश। लेकिन, इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप भारतमाता के लाखों-करोड़ों बेटों की भावना को ठेस पहुँचाओ। 
         इस प्रकरण से प्रोफेसर मेनन और उनकी विचारधारा का पाखंड और दोगलापन भी उजागर होता है। एक तरफ प्रो. मेनन की विचारधारा के लोग पूरी ताकत के साथ यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय विचारधारा के लोग तिरंगे का सम्मान नहीं करते, उसको स्वीकार नहीं करते। वहीं, प्रो. निवेदिता मेनन इसी संगोष्ठी में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करते हुए नजर आईं। उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज को एक सिरे से अस्वीकार कर दिया। राष्ट्रीय ध्वज पर प्रश्न चिह्न उठाते हुए उन्होंने कहा- भारत माता के हाथ में जो झंडा है, वह तिरंगा क्यों है? यह झंडा देश के आजाद होने के बाद का है, पहले ऐसा नहीं था। पहले इसमें चक्र नहीं था।' आखिर प्रो. निवेदिता कहना क्या चाहती थीं? उन्हें भारतमाता के हाथ में तिरंगे से आपत्ति है या तिरंगे के तीन रंग से, या फिर तिरंगे में अशोक चक्र से? 
         प्रो. मेनन यहीं नहीं रुकती, अपनी प्रस्तुति में वह जम्मू-कश्मीर और सियाचीन को भारत का हिस्सा मानने से इनकार करती हैं। देश के वीर जवानों की निष्ठा का अपमान करते हुए कहती हैं कि सेना के जवान देश सेवा के लिए नहीं, बल्कि रोटी के लिए काम करते हैं। देश के सैनिकों को हतोत्साहित करने के लिए इससे अधिक नकारात्मक टिप्पणी और क्या हो सकती है? प्रो. मेनन को समझना चाहिए कि भारत के सैनिक रोटी के लिए नहीं, बल्कि देश की रक्षा के लिए अपनी जान लगा देते हैं। देश पर खतरा होता है, तब वह पीछे नहीं हटते, अपितु मुसीबत के सामने अपनी छाती अड़ा देते हैं ताकि हम सुख से रोटी खाते रहें। 
         बहरहाल, प्रो. निवेदिता मेनन अकेली नहीं हैं। अपितु, वह जेएनयू के उन तमाम प्रोफेसरों में से एक हैं, जिनकी आस्था और निष्ठा देश के प्रति रत्तीभर नहीं हैं। इससे पहले भी जेएनयू के प्रोफेसर देश विरोधी गतिविधियों में सक्रिय रहने के लिए अपने संस्थान को बदनाम कर चुके हैं। अपने संस्थान, समाज और देश से किंचित भी प्रेम है तब जेएनयू के इन प्रोफेसरों को अपनी हरकतों से बाज आना चाहिए। 

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"क्या भारत में ऐसा कुछ बचा है ,जिसकी इज्जत करते हों लोकतंत्र के ताकतवर लोग"? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न.+9414657511

भारत में जब मुस्लिम शासकों का राज था तब तो उनकी कही गयी बात ही क़ानून होती थी !अंग्रेजों ने आम जनता पर अपना "शासन"चलाने के लिए क़ानून बनाये , लेकिन उसमें कुछ ऐसे दरवाजे भी जानबूझ कर छोड़े ,जिनसे कोई ताक़तवर आदमी के फंसने पर उसे बाहर निकाला जा सके ! दुसरे शब्दों में उसे "लुपोल"भी कहते हैं !देश के आजाद होने पर जब तथाकथित रूप से भारतीय संविधान बना,जो किसी के नज़र में सही और कइयों की नज़र में आज भी गलत या केवल नक़ल मात्र है !उसमें भी कई तरह के ऐसे "चोर दरवाजे"रख्खे गए जिनसे आजके लोकतांत्रिक रूप से ताक़तवर बने नेता ,रहीस और उनके चमचे पत्रकार आदि बचकर बाहर आ सकें !
             समय जैसे जैसे बीतता गया वैसे वैसे लोकतंत्र से सम्बंधित अन्य संस्थानों के ना केवल नियमों को भी तोडा जाने लगा बल्कि उनके महत्त्व को भी कम किया जाने लगा!और आज हालात ये हो गए हैं कि ना तो किसी भी संवैधानिक कुर्सी पर बैठे व्यक्ति की ना तो कोई इज्जत बची है और ना ही कोई मर्यादा का पालन करता दिखाई पड़ रहा है !ऊपर से हैरान करने वाली बात ये है कि "प्रथाएं"तोड़ने वाली ताक़तें ही पाठ पढ़ाती नज़र आ रही हैं !कल की ही घटना को लेते हैं !कल राज्यसभा में उपसभापति जी ने सदन को ये क्या बता दिया कि आनंद शर्मा जी आप विपक्ष की तरफ से आखिरी वक़्त हो आप के बाद प्रधानमंत्री जी बोलेंगे , राष्ट्रपति जी के अभिभाषण बहस का जवाब देंगे !तभी वित्तमंत्री जी ने उपसभापति जी के पास ये सूचना पहुंचाई कि प्रधानमंत्री जी रास्ते में हैं ,इसलिए उनके आने से पहले मैं चन्द मिनट में अपनी बात कह लूँगा !इसबात का आनंद शर्मा को जैसे ही पता चला तो वो अपना भाषण समाप्त ही नहीं कर रहे थे !माननीय उपसभापति जी ने इन्हें बार बार चेताया की आप 48 मिनट ज्यादा बोल चुके हैं अब आप अपना भाषण बन्द कीजिये तो वो लगातार 5 बार तोके जाने के बावजूद ढाका करते हुए बोलते ही रहे !क्या ये मर्यादा का पालन करना है ?ऊपर से उनकी बात करने का ढंग अगर कोई देख ले तो पता चले की "तानाशाही-रवैया"किसे कहते हैं ?
               कोंग्रेस के मर्द सदस्यों से कहीं आगे तो उनकी महिला सदस्याएं अपना "ज़ोहर" दिखा रहीं थीं !उस पर जब प्रधान मंत्री आये और उन्होंने जैसे ही बोलना शुरू किया तो कोन्ग्रेस्स को अपना मुंह छिपाने की जब कोई जगह ही नहीं मिली तो वो सदन से वाक्-आउट करके ही बचती नज़र आयी ! बाहर आकर अपनी शर्मिंदगी छिपाने हेतु अनर्गल ब्यान देने लगी ,कि प्रधानमंत्री जी माफ़ी मांगें आदि आदि !यानी "एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी"!
         क्या माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोई असंसदीय शब्द बोला ?अगर नहीं तो ये शोरशराबा करके जनता के धन को बर्बाद क्यों किया जाए ?भारत का मीडिया तो उनके दोषों को छिपाने हेतु "गीत-गाना"फ़ौरन चालू कर ही देता है !लेकिन भारत की जनता सच में गलतियां करने वालों को सबक सिखाकर रहेंगी !ये पक्का है !लेकिन मेरा उन लोगों से हाथ जोड़ कर एक अनुरोध है ,जो जानकार लोग हैं वो इस "लोकतंत्र के ऊपर आये कष्ट के समय" में अवश्य बोलें ! अन्यथा उन सबको भी "भीष्मपितामह"की तरह सज़ा मिलेगी !"शर-शैया"आज के "बे-ईमान विद्वान्"लोग झेल नहीं पाएंगे !भारत को बचाने की लड़ाई बहुत लंबी है जी !इसमें सबको कूदना होगा ,देश को बचाने हेतु !जय भारत - जय हिन्द !!आपके विचार हमेशां ही हमारे लिए प्रेरणादायी रहे हैं !इसलिए अवश्य अपनी टिप्पणियां लिखें !  



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Wednesday, February 8, 2017

"बच्चों को स्वछन्द खेलने दो यारो"!! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न.+9414657511

चलो ! आज बच्चों की बात करते हैं ! मेरे एक पाठक ने मेरे स्वतंत्र टिप्पणीकार होने पर शंका जाहिर कर दी थी ,तो मैंने उन्हें उचित उत्तर दे दिया और वो संतुष्ट भी हो गए !लेकिन मेरे मन में ये ख्याल आया कि जब भी हम बड़ों की बात करेंगे तो कभी कभी ना चाहने पर भी ,किसी की तरफ झुकाव हो ही जाता है !मैं अपनी आंशिक गलती मानते हुए आज बच्चों के बारे में ही कुछ लिखना चाहता हूँ !आशा है कि आप सब इसे भी सराहेंगे !पहले तो एक परिवार में ही बच्चों के अंदर हर बात को लेकर एक प्रतियोगिता सी हो जाती थी !बच्चे अक्सर आपस में लड़ते-झगड़ते हुए हिंसक भी हो जाया करते थे !उनके माता-पिता तथा अन्य रिश्तेदारों के दिलो-दिमाग में भी हर बच्चे का अलग-अलग स्थान हुआ करता था !बड़ों के इस "पूर्वाग्रह"को बदलना बच्चों के लिए एक बड़ा काम हुआ करता था !ऐसा ही कुछ फिर विद्यालयों में ,समाज मे और अन्य समूहों में भी होता था !
                            लेकिन जहां पहले एक परिवार में 12से 15तक बच्चे हुआ करते थे ,फिर 4-5 होने लगे,फिर सरकार ने एक नारा दिया ,"दो या तीन बच्चे,होते हैं घर में अच्छे"!!जैसे जैसे महंगाई बढ़ी तो सारा नजला बच्चे पैदा करने पर ही पडा !मुझे याद है वो ज़माना जब नसबंदी के ओपरेशन ज्यादा करने पर अफसरों डाक्टरों को इनाम दिया जाता था और कम होने पर विभागीय सज़ा देने का प्रावधान होने लगा !उधर "नर्सिंग-होम"की संस्कृति ने भी भारत में पैर पसारने शुरू कर दिए !तो भारत में नया नारा परिवारों को छोटा करने लगा !वो ये था कि "बच्चे !! दो ही अच्छे ! तर्क दिए जाने लगे कि कम बच्चे पैदा करने पर आप अपने बच्चों को सभी सुविधाएँ ज्यादा दे पायेंगे !लेकिन हुआ इसका बिलकुल उल्टा ,आज भारत में गुनिजन कम और दुर्जन लोग ज्यादा हो गए हैं !\
                        कारण बच्चों के दिमाग पर विभिन्न पर्त्योगिताओं में अव्वल आने का बोझ !स्टेज शो जितने का बोझ और फिर नोकरियां पाने का बोझ !इतने बोझ भला कोई कैसे झेल सकता है ?सभी तो नहीं झेल सकते ना !सभी तो सौ प्रतिशत अंक नहीं पा सकते , सभी तो बड़े अफसर नहीं बन सकते ना !ऐसे माहोल से आदमी टूट सकता है ,बीमार हो सकता है !अतः आप सबसे निवेदन है किआप जितना हो सके अपने बच्चों को ऐसे तनावों से मुक्त रखने का प्रयास करें !उन्हें इतना समय तो अवश्य दें ,जितने समय में वो अपने आपको सहज महसूस कर सकें !बाकि आप माँ-बाप हैं जी ! आप भी तो समझदार हैं !आप जिन दुराग्रहों से गुजर चुके हैं ,कम सेकम उन्हें तो उनसे बचाएं !अंत में एक सुंदर से गीत की पंक्ति याद आ रही है आप भी गुनगुनाइए ...."राम करे ऐसा हो जाए , मेरी निंदिया तोहे मिल जाए !मैं जागूं......तू सो जाए ,तू सो जाए .......हो हो !!!




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Tuesday, February 7, 2017

योजनाओं का लाभ उठाया कैसे जाए ?इसपर भी जोर दो !- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न.- ९४१४६५७५११

अज्ञानता के लिए भारत काफी समय से जाना जाता है !आज भी लाखों की संख्या में अज्ञानी हैं !अलग-अलग विषय पर अज्ञानियों की संख्या में कमी या ज्यादती हो सकती है !जबसे हमारे देश में लोकतंत्र नाम की बिमारी आई है !तभी से हमारे नेता लोग हमारे "भले"के लिए विभिन्न प्रकार की योजनायें बनाते आ रहे हैं !लेकिन देखने में आया है किइन योजनाओं से "चोरों का भला"ज्यादा हुआ है जनता का कम !ये मैं नहीं बल्कि हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने बताया था !वो बड़े दिल के और सच्चे आदमी थे इसलिए बोल गए लेकिन अन्य नेता तो इतनी बात बोल ही नहीं पाते जी !मैं ये भी मानता हूँ की योजना बनाते वक्त किसी के मन में इतना पाप तो नहीं होगा कि कोई ये सोचे किसारा फायदा हमारी पार्टी के नेताओं को ही पहुंचे !लेकिन आंकड़े बताते हैं की असली फायदा उनको ही पहुँचता आया है !सभी प्रकार के कायदे क़ानून होने के बाद भी !
                     आज जब भारत में सच और झूठ की जंग चल रही है !भ्रष्ट और अच्छे लोग आपस में हर जगह उलझते हुए ही नजर आ रहे हैं !क्या टीवी , क्या समाचार पात्र और अन्य सार्वजनिक स्थान !सब जगह ये ही सुनने को मिलता है कि "कुछ अच्छा नहीं हो सकता ,कोई बदलाव नहीं ला सकता,और ये कौन से दूध के धुले हुए हैं "?? इन वाक्यों बाद सामने वाला भी शख्स कहने वाले की हाँ में हाँ मिलाने लग जाता है !लेकिन कोई भी अपनी चर्चा को इस और आगे नहीं बढ़ता किआइये देखें-सोचें और समझें कि कैसे कमियों को दूर किया जाए ?तो मित्रो ! गहनअध्ययन के बाद मेरी छोटी सी बुद्धि में यही बात आई है कि कोण सी योजना किन लोगों के लिए बनी है और उसका कैसे फायदा उठाया जा सकता है , इस बारे में जानकारी जनता तलक "तरीके "से पहुंचाई जानी चाहिए !
                  आप कहेंगे किवो तो सभी सरकारें करती ही हैं ! इसमें नया क्या है?मित्रो !इसमें नया मैं ये जोड़ना चाहता हूँ कि इस प्रकार की जानकारियाँ व्यक्तिगत तोर पर जरुरतमंदों तलक पहुंचाई जानी चाहिए !विज्ञापनों में और संसद में सरकार ये जानकारी भी दिया करे कि कौन-कौन से लोग कौन सी योजना का लाभ उठा चुके हैं !ताकि लोगों में एक विश्वास जगे !खाली आंकड़े या भाषण ही नज़र ना आये !
बाकि"अच्छे दिन अवश्य आयेंगे"!! ये मैं भी कहता हूँ !क्योंकि मनुष्य की सोच नकरात्मक नहीं सकरात्मक होनी चाहिए जी !जय हिन्द जय भारत !



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Monday, February 6, 2017

"पहले आप - पहले आप "सुधरो ! - पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)मो.न. 9414657511

"लखनऊ के दो नवाबों की गाडी जैसे पहले आप - पहले आप करते निकल गयी थी"!वैसे ही हम भारत वासियों का हाल है ! सभी किसी ना किसी दुसरे की ओर इशारा करके कहता नज़र आता है कि पहले वो सुधरे तो फिर मैं सुधरुंगा या मुझे सुधरने हेतु कहा जाए जी !नेता लोग सरकारी तन्त्र को लेकर रोता है ,तो सरकारी तन्त्र जनता की बढ़ती अपेक्षाओं को लेकर बहाने बनाता नज़र आता है !जनता एक दुसरे को ही दोषी बताने में लग जाती है !तो फिर बड़ा प्रश्न ये पैदा होता है कि देश में सुधार हो तो कैसे हो ??
                           आज हालात इस प्रकार के हो गए हैं देश में कि जैसे इंसान को एक चींटी काट खाये तो वो उसे हटा सकता है , अगर दो-चार चींटियां एक साथ काट लें तो भी वो उसे सघन प्रयासों से हटाकर राहत महसूस कर सकता है , लेकिन अगर हज़ारों चींटियां एक साथ आकर इंसान के शरीर पर काटने लगें तो मित्रो चाहे कितना भी ताकतवर इंसान चाहे क्यों ना हो , वो बच नहीं सकता जब तलक कोई बाहरी ताक़त उसकी मदद ना करे !या कोई "जहरी छिड़काव"ना किया जाए !
                        आज देश चिंतित है कि देश के विभिन्न हिस्सों में जिस प्रकार देश-द्रोही"मानसिकता वाले नेता काबिज़ होते जा रहे हैं ,उनके समर्थक भी बढ़ते जा रहे हैं ,उनको कैसे धराशायी किया जाए !क्योंकि वो भारतीय संविधान के मुताबिक ही ये काम कर रहे हैं !लेकिन उनकी विचारधारा और सोच इस देश की संस्कृति और परम्पराओं के लिए बेहद घातक ही नहीं बल्कि जैसे जैसे उनकी ताक़त बढ़ती जायेगी वैसे वैसे वो लोग हमारी परम्पराओं को समाप्त भी कर सकते हैं !कोंग्रेस के राज में ऐसे लोग पैदा हुए बल्कि इनको "प्रोटीन"भी मिलता रहा !
                  मोदी जी जब से आये हैं ,तभी से वो इस काम में लगे हुए हैं !उन्होंने ऐसी ताकतों को मिलने वाले धन के स्रोतों को बन्द करने का काम किया है !कई विदेशी "तथाकथत समाजसेवी संगठनों" के लाइसेंस रद्द किये हैं जो ऐसी ताक़तों को खाद-पानी देने का काम करते आ रहे थे !लेकिन ये पर्याप्त नहीं है ,क्योंकि आज "हर शाख पर उल्लू बैठे हुए" हैं !!जो "साम्प्रदायिक ताक़तों को रोकने"का शोर मचाकर बौद्धिक लोगों का ध्यान भटकाते रहते हैं !देश के ज्यादातर "प्रबुद्धजन"तो उनकी विचारधारा के समर्थक ही हैं !उन्होंने तो "बौद्धिक-आतंकवाद"ही इस देश में फैला रख्खा है !आज के समय में उनकी ताक़त इतनी ज्यादा है की जब तलक दोनों सदनों में मोदी जी को भरपूर बहुमत नहीं मिल जाता , ऐसे लोगों को रोकना बड़ा ही मुश्किल काम है !आज आम आदमी कुछ समय हेतु तो मोदी जी को समर्थन देता है उनके कार्यों की सराहना भी करता है लेकिन थोड़े दिनों बाद ही वो इन लोगों के बहकावे में आकर ये तलक भी बोल जाता है कि "मोदी जी की नोट बन्दी से अच्छा तो पहले का शासन था !कोई फायदा ही नहीं हुआ ,वो भी खाते थे और हमें भी खाने देते थे "!!
                         पाठक मित्रो ! आप ही बताओ !इस तरह के हालात अगर हम भारतियों के होंगे तो कैसे इस देश का सुधार हो सकता है ? यारो अगर हम इस देश के लिए अपनी जान नहीं दे सकते तो कम से कम मोदी जी को अपना समर्थन और वोट तो दे ही सकते हैं !जो हमें एकबार नहीं बार-बार हर स्तर पर देना होगा ,फिर चाहे जिसको हम अपना वोट दे रहे हैं वो हमारी पसन्द का हो या नाहो !आपका क्या कहना है जी इस विषय पर ?कृपया हमारे ब्लॉग पर आकर अपने अनमोल कॉमेंट्स अवश्य लिख कर जाएँ जी !बाकि राम भली करेंगे और "अच्छे दिन अवश्य आएंगे"!! राम-राम !!जय हिन्द !!



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Saturday, February 4, 2017

"इंसानियत,शैतानियत,हैवानियत,बुराई और अच्छाई"!!- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न. 9414657511

जब से इस सृष्टि का निर्माण हुआ है तभी से "अच्छाई और बुराई में ये लड़ाई"चलती आ रही है कि कौन ज्यादा अच्छा है ? बुराइयां या अच्छाइयां ?भगवान् ने इंसान के शरीर में 9 इन्द्रियां लगादीं,सोचने हेतु बुद्धि दे दी,9 रस दे दिए,काम,क्रोध,लोभ मोह और लालच भी डाल दिए हमारे अंदर और इसके साथ ये भी कह दिया कि "मेरी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलेगा"!!तब से मित्रो !बस "तू डाल-डाल तो मैं पात-पात"वाली बात हो रही है !सनातन धर्म ही सबसे पुराना धर्म है इसलिए उसी के ग्रंथों की बात करते हैं !उनको पढ़ने पर पता चलता है कि सतयुग में ही भगवान् विष्णु के नाक में दम कर दिया था इन बुराई के समर्थक राक्षसों ने !तो भगवान् को स्वयम अवतार लेकर आना पड़ा ,इस धरती पर कहते हैं 24 बार !ना जाने कितने धर्म गुरु हो चुके और ना जाने कितने ग्रन्थ लिखे जा चुके , लेकिन साहिब ये बुराई है कि रोज़ नया रूप धारण करके हमारे सामने आ धमकती है !और हम "सहम"कर रह जाते हैं !
                    "इंसानियत,शैतानियत,हैवानियत और बुराई"क्या प्रलय आने पर ही जायेगी?भगवान् ही जानता है जी !ग्रंथों के मुताबिक तीन युग बीत चुके हैं और आखरी "कलयुग"चल रहा है !कहते हैं इसमें धर्म भी होगा कर्म भी होगा परंतु शर्म नहीं होगी !रोज़ वो होगा जो आपने सोचा ना होगा !बस जी !! हम तो ये कह सकते हैं कि "राम"भली करे !अपने बच्चों पर "प्यार की छतरी"हमेशां बनाये रख्खें !कभी उनको बड़ा मानने की गलती ना करें !जितना हो सके उनको जीवन में अकेला ना छोड़ें !क्योंकि जीवन के हर मोड़ पर धोखे ही धोखे हैं जी !
             एक पुराने फ़िल्मी गीत की पंक्तियाँ याद आ रही है कि - :"राम करे !ऐसा हो जाए !!मेरी निंदिया तोहे मिल जाए !मैं जागूँ तू सो जाए !!बुराइयों का मुकाबला केवल एकता से ही किया जा सकता है !चाहे सतयुग हो या कलयुग !राम-राम जी !"अच्छे दिन आएंगे"!!






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Friday, February 3, 2017

"वो करते हैं नेतागिरी,सहूलियतों से भरी"!! - पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतन्त्र टिप्पणीकार) मो.न.- 9414657511

   पाठक मित्रो !आज मैं आपको चोरों-हरामखोरों और भ्रष्टों की "मन की बात" बताऊंगा - पढ़वाऊंगा !हमको बहुत दिन हो गए हमारे प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी की मन की बात सुनते सुनते !हमें ये सिखाया गया है कि "कोई भी निर्णय लेने से पहले सिक्के के दोनों पहलुओं पर पहले अच्छी तरह से विचार करो"!फिर अपना किसी बात पर निर्णय दो !यकीन मानिये मैं कोई भी बात लिखने से पहले सारे पक्षों के बारे में गंभीर विचार करता रहता हूँ !इसीलिए मेरी पत्नी मुझे कई बार याद दिलाती है कि वो कब की मेरे आगे भोजन परोस गयी है लेकिन मैं ना जाने किन विचारों में मस्त हूँ की भोजन की तरफ ध्यान ही नहीं दिया !इतना मैं आप लोगों के हित खातिर विचार करता हूँ !
                     हुआ यूं कि कल मैं बाज़ार रोज़ाना काम आने वाला सामन खरीदने हेतु बाज़ार गया तो मुझे पहले तो एक फल बेचने वाले ने उलाहना देते हुए कहा कि "भजपा वाले लेखक जी आपका मोदी तो गयो"!!मैं तो अपने विचारों में मस्त सा चला जा रहा था !ये लाइन सुनकर मैं चौन्का ,सहमा और उसकी तरफ मुखातिब हुआ और पूछा ,क्या बात हुई जनाब ?तो वो बोला भाई साहिब आपके मोदी से तो हमारी कोंग्रेस ही अच्छी थी !आपके कहने से हमने भाजपा को वोट दे दिया , लेकिन अब पछता रहे हैं !मैंने पूछा वो कैसे भाई ?वो तो इतने भ्रष्ट लोग थे, भूल गए क्या ?तो वो बोला नहीं जी बिलकुल याद है और अच्छी तरह से याद है !कोंग्रेस वाले खुद भी खाते थे और हमें भी खाने देते थे !अफसर भी खा-पीकर खुश रहते थे और चपड़ासी भी !नेताओं का भी "अच्छे-दिन"चल रहे थे !लेकिन जबसे ये आपका मोदी आया है तबसे वो "ना तो किसी को खाने देते हैं और नाही खुद खाते हैं" !अब तो कोई भी खुश नहीं है !
                    थोड़ा और आगे गया तो एक सब्जी वाला किसी महिला को कह रहा था कि "ये सब्ज़ियों के भाव दुबारा मोदी जी की सरकार की वजह से बढ़ रहे हैं"!तो वो ऑर्ट बोलती हुई आगे बढ़ी कि "आग लगे ऐसी सरकार को और मोदी को"!मैं मन ही मन हैरान-परेशान सा बिना कोई सामान लिए दुखी मन से अपने घर को लौट गया !पत्नी बोली !क्या हुआ आज कुछ लाये नहीं बाजार से ? मैं बोला आज कुछ अच्छा नहीं था बाजार में !मैं बैठकर फिर से सोचने लगा कि क्या हमारे विपक्षी नेताओं ने आम जनता के दिमाग में इतना "जहर"घोल दिया ?  मन से उत्तर मिला नहीं जी वो तो इतनी मेहनत कर ही नहीं रहे !तो क्या फिर मोदी जी की सरकार सिर्फ कागजों में ही काम कर रही है ?क्या उनके अफसर और दुसरे तन्त्र फेल हो चुके हैं ?या फिर एक ख़ास तबका(मोदी विरोधी विदेशी चन्दे से पोषित ,नेता ,मुस्लिम-पत्रकार और झूठे समाजसेवी  संगठन)चुपके से अंदर ही अंदर इतना घातक वार कर रहा है कि आगामी चुनावों में N.D.A. कहीं जीत ही नहीं पायेगा !
                      भाजपा के नेता ,वर्कर और प्रचारक भी बड़े "आराम-परस्त"हो गए हैं या फिर बड़े नेता छोटे वर्करों को पूछते नहीं और रोषस्वरूप कोई वर्कर पार्टी के पक्ष की अपने आसपास के लोगों के साथ चर्चा ही नहीं करता !करोड़ों रूपये चन्दा लेकर नेता सिर्फ सहूलियतों से भरी राजनीति ही करते हैं जनता और वर्कर जाए भाड़ में !! चुनावों वाले बीस दिन ही वर्करों की पूछ होती है !दुसरे दल तो खुद भी खाते हैं और अपने वर्करों को भी खाने भी देते हैं इसलिए सब ठीक हो जाता है !लेकिन भाजपा के आदर्श केवल मोदी जी जैसे कुछ ही नेताओं में ही नज़र आते हैं !इसलिए जनता जल्दी या तो उपाय चाहती है या फिर वो ही खाओ और खाने दो वाली नीति चाहती है !
                 इसलिए माननीय मोदी जी !!आपसे करबद्ध अपील है कि सभी सुधार एकमुश्त लागू कर दो ये कार्यकाल खत्म होने से पहले तब तो जनता आपको आगे चुनावों में जिताएगी अन्यथा मेरी भविष्यवाणी तो ये है कि जनता ने तो भगवान राम को भी नहीं बक्शा था !एक धोबी के कहने मात्र से इतनी अफवाह फैल गयी थी कि राम जी को भी माता सीता को बनवास देना पड़ा था !बाकि आप समझदार हो !मुझे तो आज भी विश्वास है कि -:"अच्छे दिन अवश्य आएंगे"!!जय हिन्द जय भारत !! 





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Wednesday, February 1, 2017

"कुछ नहीं है भाता ,जब रोग ये लग जाता "...!! - पीताम्बर दत्त शर्मा - स्वतन्त्र टिप्पणीकार (मो.न.+ 9414657511)

मित्रो !!प्यार भरा नमस्कार ! प्यार से याद आया !मेरी नानी कहा करती थी कि बेटा !जो आदत इंसान को एक बार पड़ जाती है ना ,वो फिर ज़िन्दगी भर जाती नहीं इन्सान फिर चाहे जितने भी जतन करले !आज समाचार पत्र में फिर एक चौन्काने वाला समाचार पढ़ा !एक 80 साल की बुज़ुर्ग महिला से एक 28 साल के नोजवान ने "लव-मैरिज "कर ली !मन बड़ा हैरान-परेशान हो गया ये समाचार पढ़ कर ! मन की भड़ास निकालने हेतु कभी उसको सुनाएँ कभी किसी और को सुनाते घुमते रहे कई घंटों तलक ,मन फिर भी शांत नहीं हुआ तो अपनी धर्म-पत्नी जी को भी ये समाचार सुना  ही दिया !पत्नी बोली -"जोश-जोश में प्यार में मरना तो आसान है लेकिन साथ निभाना बड़ा ही मुश्किल होता है जी "!
                    निभाने पर याद आया कि आजकल राजनीति में भी कई नए गठबंधन हो भी रहे हैं और टूटते भी नज़र आ रहे हैं !शिव सेना साथ छोड़ रही है तो राहुल-अखिलेश मिल रहे हैं !वैसे कोंग्रेस का इतिहास भी ऐसा ही है कि आज गठबंधन करो कुछ समय बाद छोड़ दो !ज्यादा विश्वासपात्र नहीं है !"तीसरा मोर्चा "और उसके बाद 6 प्रधानमंत्रियों को देश की जनता भूली नहीं होगी !जिन्होंने थोड़ी-थोड़ी देर पता नहीं शासन किया इस देश पर या कोई "एहसान"किया !चलो !जो करेगा , सो भरेगा !!हमें क्या ?
                   एक और आदत बड़ी बुरी होती है जी !"चुगलियां और किसी की बुराई करना "!पंजाब के मशहूर गायक गुरदास मान साहिब ने बड़ा ही सुन्दर गीत भी गाय है कि - "खेडो !चुगलियां-चुगलियां"...!!!आज तलक इतने बजट सभी राजनीतिक दलों ने संसद में पेश किये हैं ,लेकिन किसी भी विपक्षी नेता ने उसे सराहा नहीं है जी !ज्यादातर नेता अपना राजनीतिक जीवन दूसरों की बुराइयां करते ही गुज़ार देते हैं जी !हमें ही देख लीजिये हमारा तो "धंधा"ही अपने लेखों में सबकी बुराइयां करना ही बन गया है !बसन्त के महीने में भी हम अपना लेख शुरू तो करते हैं प्यार की बातों से लेकिन अंत में राजनीति और बुराइयां करने में ही लग जाते हैं !
                        फिर भी इंसान को कोशिश करते रहना चाहिए !जैसे मोटे लोग पतला होने की कोशिश करते ही रहते हैं जी ! "मोटा"हूँ और एक मोती बात बताता हूँ जी जी आपको !-"प्रेम करने को चाहे कोई कितना भी बड़ा रोग बताये 'यकीन करना मत छोडो "जी केवल प्यार की किस्म बदल दो !!! जैसे देश को प्यार करना कभी नहीं छोडो !माता-पिता,बच्चों,रिश्तेदारों और दोस्तों को प्यार करना कभी बन्द ना करो !और हो सके तो भगवान् को भी अपना प्रेमी या प्रेमिका बना लो !क्योंकि जिन्होंने भी भगवान को अपना प्रेमी बनाया वो हमारे लिए खुदा जैसे ही हो गए !इसलिए मेरा तो यही कहना है जी कि - 
                 "प्यार बांटते चलो !और सहारा देते-लेते चलो " !! देख लेना फिर "अच्छे दिन अवश्य आ जाएंगे "!!जय हिन्द जय भारत !!जाते जाते एक गीत की पंक्ति और लिखता जाता हूँ इसे आप अवश्य गुनगुना कर पढ़ना चाहे जैसा भी गुनगुना सको मित्रो !गारंटी करता हूँ कि इस बसन्त के महीने अवश्य "आनन्द "आ जाएगा !-: "मैं इक राजा हूँ,तू इक रानी है .....!प्रेम नगर की ये इक सुंदर प्रेम कहानी है ........!!!!!

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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...