Saturday, January 9, 2016

-पाकिस्तान के भारतबीच एलओसी का सच........!!!!!

लश्कर-ए-तोएबा , जैश-ए मोहमम्द, हिजबुल मुज्जाहिद्दीन ,हरकत-उ मुज्जाहिद्दीन , पाकिसातन तालिबान और इस फेरहिस्त में 19 से ज्यादा और नाम । इन नामो से जुडे दफ्तर की संख्या 127 । जो कि पीओके में नहीं बल्कि कराची, मुल्तान, बहावलपुर, लाहौर और रावलपिडी तक में । जबकि ट्रेनिंग सेंटर मुज्जफराबाद और मीरपुर तक में । यानी पाकिस्तान के एक छोर से दूसरे छोर तक आंतकवादियो की मौजूदगी । भारत के लिये हर नाम आंतक का खौफ पैदा करने वाला लेकिन पाकिस्तान के लिये पाकिस्तान के भीतर आंतक के इन चेहरोपर कोई बंदिश नहीं है । तो सबसे बडा सवाल यही है कि जिस आतंकवाद पर नकेल कसने के लिये भारत पाकिसातन से बार बार बातचीत करता है जब वहीं अपनी जमीन पर आतंक को आतंक नहीं मानता तो पठानकोट हमले के बाद ऐसा माहौल क्यो बनाया गया कि पाकिस्तान पहली बार पठानकोट के दोषियो के खिलाफ कारर्वाई कर रहा है । तो सवाल है कि पहली बार किसी आंतकी हमले को लेकर भारत ने यह दिखला दिया कि पाकिस्तान आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करें नही तो उसका रुख कडा हो जायेगा । या फिर पठानकोट हमले को ही बातचीत का आधार बनाया जा रहा है । क्योकि मोदी सरकार भी इस सच को समझती है कि भारत के लिये जो आंतकी संगठन है वह पाकिस्तान की राज्यनीति का हिस्सा रहे है । और नवाज शरीफ सरकार भी इस सच को समझ रही है कि आंतकवाद उसके घर में सामाजिक-आर्थिक हालात की उपज भी है और सेना -आईएसआई की पालेसी का हिस्सा भी । तो फिर पठानकोट हमले पर कार्रवाई के साथ वह अपने दाग को छुपा सकती है ।क्योंकि सभी आंतकी संगठनो ने खुलकर कश्मीर को अपने जेहाद का हिस्सा भी बनाया हुआ है । और कश्मीर से हमले निकलकर अब पंजाब के मैदानी हिस्सो में पहुंचे है तो फिर पाकिसातन से बातचीत के दायरे में आंतकवाद और कश्मीर से आगे निकलना दोनो सत्ता की जरुरत बन चुकी है । तो सवाल है कि क्या पठानकोट हमले पर तुरंत कार्र्वाई दिखा कर आंतक से बचने का रास्ता भी पाकिस्तान को मिल रहा है । और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी संवाद बनाकार संवाद तोडने से अब बचना चाहते है ।खासकर लाहौर यात्रा के बाद । यानी करगिल के बाद से ही बातचीत के जो सवाल बार बार हर आंतकी हमले के बाद उलझ जाते थे उसमे पहली बार मौदी की लाहौर यात्रा और हफ्ते भर के भीतर ही पठानकोट हमले ने दोनो देशो को इस कश्मकश से उबार दिया कि हमलो को खारिज कर आगे बढा जाये तो आंतकी संगठनों के हमलबेमानी साबित हो जायेगें । ध्यान दीजिये तो लगातार दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारो की बातचीत और नवाज शरीफ - मोदी की बातचीत संकेत यही दे रही है कि पठानकोट हमला सिर्फ बातचीत को बंद कराने के लिये किया गया । तो सवाल है कि लश्कर-ए-तोएबा हो या जैश -ए मोहम्मद या फिर कश्मीर से निकल कर पाकिसातन की जमीन पर पनाह लिये हुये सैय्यद सलाउद्दीन का संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन । इनका अतीत बताता है कि सत्ता की कमजोरी का लाभ आंतकवादी संगठनो को नहीं मिला बल्कि हर सत्ता ने अपनी कमजोरी को सौदेबाजी की ताकत में बदलने के लिये आंतकवादी संगठनो की पनाह ली । इसका बेहतरीन उदाहरण तो जैश-ए-मोहम्मद के अजहर मसूद ही है । जो पठानकोट हमले को लेकर कटघरे में है । लेकिन पाकिसातन के भीतर का सच यह है कि अजहर मसूद पर दिसबंर 2003 में मुशर्रफ पर हमला करने का दोषी माना । लेकिन मुशर्रफ की सरकार ही अजहर मसूद का कुछ नहीं बिगाड सकी । सिवाय इसके कि जनवरी 2002में जब जैश पर प्रतिबंध लगा तो उसने अपना नाम बदल कर खुदम-उल-इस्लाम कर लिया । इतना ही नहीं अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के इल्जाम में भी अमेरिका ने अजहर मसूद को अपने कानून के तहत तलब किया । इंटरपोल ने मसूद की गिरफ्तरी पर जोर दिया । लेकिन इन सबसे इतर मसूद की खुली आवाजाहीकराची के बिनौरी मसजिद में भी रही और बहावलपुर में जैश के हेडक्वार्टर में भी रही । दिखावे के तौर पर जिस तरह लशकर को छोड जमात-उल-दावा को हाफिज सईद ने ढाल बनाया वैसे ही अजहर मसूद ने खुदम-उल -इस्लाम के साथ साथ जमायत-उल -अंसार और जमात-उल -फुरका या फिर हिजबुल तहरीर को भी ढाल बनाया

। यानी आतंकवाद को लेकर जो चिंता भारत जता रहा है या फिर मोदी सरकार पठानकोट हमले में ही पाकिस्तान की कार्रवाई को सीमित कर अपनी जीत दिखाने पर अडे है उसकी सबसे बडी त्रासदी तो यही है कि आंतकवाद की परिभाषा लाइन आफ कन्ट्रोल पार करते ही जब बदल जाती है तो सवाल संवाद का नहीं बल्कि
अतीत के उन रास्तो को भी टटोलना होगा । जो कभी इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश बनाया , या फिर फिर वाजपेयी ने एलओसी पर एक लाख सैनिकों की तैनाती कर मुशर्रफ के गरुर को तोड़ा । इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि पाकिसातन में आतंक के पनपने की बडी वजह गरीबी-मुफलिसी है । और भारत
में आतंकवादियों की घुसपैठ की बडी वजह भ्रष्ट्रचार और आतंकवाद को लेकर राज्य-केन्द्र के बीच कोई तालमेल का ना होना है । एक तरफ पाकिस्तान की आंतकवाद पर तैयार रिपोर्ट ‘प्रोबिंग माइंडसेट आफ टेररइज्म’ के अनुसार करीब दो लाख परिवार आतंक की फैक्ट्री के हिस्से है । इनमें 90 फीसदी गरीब
परिवार है । इन नब्बे फिसद में में से 60 फिसद सीधे मस्जिदों से जुड़े हैं । आतंक का आधार इस्लाम से जोडा गया है । और इस्लाम के नाम पर इंसाफ का सवाल हिंसा से कहीं ज्यादा व्यापक और असरदार है । यानी आंतक या जेहाद के नाम पर हिंसा इस्लाम के इंसाफ के आगे कोई मायने नहीं रखता । फिर पाकिस्तान के
भीतर के सामाजिक ढांचे में उन लडकों या युवाओं का रौब उनके अपने गांव या समाज में बाकियों की तुलना में ज्यादा हो जाता है जो किसी आतंकी संगठन से जुड जाता है । लेकिन समझना यह भी होगा कि पाकिस्तान में आंतकवादी संगठन किसी को नहीं कहा जाता है । जैश-ए-मोहम्मद या लश्कर-ए-तोएबा तक कट्टरवादी
इस्लामिक संगठन माने जाते है । जाहिर है ऐसे में हालात घुम-फिरकर सवाल भारत के आंतरिक सुरक्षा को लेकर ही उठेगें । और बीजेपी तो इजरायल को ही सुरक्षा के लिहाज से आदर्श मानती रही है तो फिर उस दिशा में वह बढ़ क्यों नहीं पा रही है । क्या संघीय ढांचा भारत में रुकावट है जो एनसीटीसी पर सहमति नहीं बना पाता । या फिर आंतकवाद से निपटना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है । यानी नागरिकों की भूमिका सिर्फ चुनाव में सत्ता तय करने के बाद सिमट चुकी है । असल में भारत की मुश्किल यही है कि नागरिकों की कोई भूमिका सत्ता के दायरे में है ही नहीं । इसलिये सत्ता बदलने का सुकुन लोकतंत्र को जीना है और सत्ता के लिये वोट बैक बनना देश के लिये त्रासदी । इसलिये सच यही है कि भारत और पाकिस्तान कभी आपस में बात नहीं करते और
दोनों देशों की सत्ता कभी नहीं चाहती कि दोनो देशो की आवामों के बीच संवाद हो । बातचीत सत्ता करती है और बंधक आवाम बनती है । जिसकी पीठ पर सवारी कर सियासी बिसात बिछायी जाती है । और बातचीत के दायरे में आंतकवाद और कश्मीर का ही जिक्र कर उन भावनाओं को उभारा जाता है जिसके आसरे सत्ता को या तो
मजबूती मिलती है या फिर सत्ता पलटती है । फिर आंतकी घटनाओं के पन्नों को पलटे तो 1993 के मुबंई सिरियल ब्लास्ट के बाद पाकिस्तानी आतंकवाद की दस्तक 2000 में लालकिले पर हमले से होती है । और सच यह भी है कि जिस छोटे से दौर [ अप्रैल 1997-मार्च1998  ] में आई के गुजराल पीएम थे उस दौर में सबसे ज्यादा आवाजाही भारत और पाकिस्तान के नागरिकों की एक दूसरे के घर हुई । उस दौर में दोनो देशो के भीतर ना आईएसआई सक्रिय थी ना रां । तो कह सकते है कि गुजराल दोनो देशों के मिजाज से वाकिफ थे क्योकि ना सिर्फ उनका जन्म अविभाजित भारत के झेलम में हुआ और पढाई लाहौर में । बल्कि 1942 के राजनीतिक संघर्ष में जेल भी पाकिसातन की थी थी । लेकिन नये हालातो में गुजराल की सोच यह कहकर भी खारिज की जा सकती है कि  तब का दौर अलग था अब का दौर अलग है ।

Friday, January 8, 2016

ऐ भाई!तू भारत माँ के सीने की घबराहट सुन,
सोमनाथ पर हावी होती गजनबियों की आहट सुन,



नारा ए तकबीर लगाती भीड़ देख लो लाखों की,
जिन आँखों में राम कृष्ण हैं,खैर नही उन आँखों की,



पहले पढ़ी नमाज़ बाद में आगजनी-बम-गोली थी,
लगता है पूरी की पूरी तालिबान की टोली थी,



ये भारत के मुसलमान हैं,या गुंडे अफगानी हैं
इनके आगे संविधान,कानून सभी बेमानी हैं,



माना ये गुस्सा हो बैठे,उस बयान कमलेशी पर,
बंद हुआ वो आज जेल में,खड़ा हुआ है पेशी पर,



सजा अदालत देगी,ये भी छोड़ें आज अदालत पर,
रखो शरीयत घर में,ऐसे उतरें नही बगावत पर,



लेकिन ये तो टोपी जालीदार पहनकर कूद गए,
अमन शांति भाईचारे पर अपनी आँखे मूँद गए,



दरवाज़ों पर ॐ लिखा ,तो वही घराना फूंक दिया,
इतने थे बेख़ौफ़ मियां जी,पूरा थाना फूंक दिया,



सिर्फ निशाना हिन्दू ही क्यों,चुन चुन कर के पीटे थे,
और मुसाफिर बस के नीचे कॉलर पकड़ घसीटे थे,



फौजी वाहन से भी नफरत?क्यों कर आग लगाई थी?
पूरी भीड़ अचानक कैसे एक साथ बौराई थी,



अगर वजह कमलेश रहा है,सारे हिन्दू दोषी क्यों?
तो फिर अफजल भटकल दाऊद पर छायी ख़ामोशी क्यों?



क्या हम भी ये चेहरे लेकर इनके घर पर टूट पढ़ें?
और एक गुजरात बना दें,भगवा लेकर छूट पढ़ें?



ये गौरव चौहान कहे,हम तो बस प्रेम पुजारी हैं 
हैं कलाम के दीवाने हम,सबसे रखते यारी हैं,



लेकिन भीड़ मालदा वाली तो कुछ और बताती है,
तैमूरी फितरत या औरंगजेबी दौर बताती है,



आईएस सरीखे लगता ये जिहाद में डूबे हैं,
और शरीयत लागू करना,इन सबके मंसूबे हैं,



भीड़ नही ये धमकी समझो संविधान के सीने पर,
प्रश्न चिन्ह है राम राम कहने वालों के जीने पर,



जिन्हें सिर्फ असहिष्णु लगी थी भीड़ दादरी वाली जी,
आज मालदा पर चुप हैं,अब कहाँ गए हड़ताली जी,



पुरस्कार वापस करने वाले किस बिल में समा गए,
आमिर शारुख अपने मुँह में दही अचानक जमा गए,



हमने कपड़ें सौंप दिए हैं,पेशावर के दर्ज़ी को,
भूल हुयी जो दुर्गा समझा इस ममता बैनर्जी को,



अगर सनातन बटाँ रहा यूँ इन्ही सियासी मुखड़ों में,
तिलक मिटेगा और जनेऊ कटा मिलेगा टुकड़ों में,



जागो,वर्ना राम न होंगे,तुलसी के अरमानो में,
काफिर बनकर पड़े रहोगे,बाबर के तहखानों में,


------कवि गौरव चौहान 
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Thursday, January 7, 2016

संघ मान रहा है बीजेपी को परिपक्व नेतृत्व चाहिये ?

बीजेपी अधय्क्ष को लेकर जलगांव में मंथन


एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी तो दूसरी तरफ लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी । और बीच में अमित शाह के अध्यक्ष पद की कुर्सी । जिस पर फैसले की घड़ी अब आ चुकी है और कल से जलगांव में दो दिनों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोर कमेटी इसी पर मंथन करेगी की अमित शाह को दोबारा बीजेपी का अध्यक्ष बनाया जाये कि नहीं। बैठक में संघ के मुखिया मोहन भागवत समेत भैयाजी जोशी, सुरेश सोनी , दत्तात्रेय होसबोले, कृष्ण गोपाल, सह कार्यवाहक विभाग्या और बौद्दिक प्रमुख स्वांत रंजन समेत दर्ज भर अधिकारी चिंतन मनन करेंगे। और चिंतन मनन सिर्फ इस बात को लेकर नहीं होगा कि अमित शाह का क्या किया जाये बल्कि मंथन इस बात को लेकर ज्यादा होगा कि जब केन्द्र में संघ के राजनीतिक संगठन बीजेपी की सरकार है । प्रधानमंत्री स्वयंसेवक है । तो फिर बीजेपी के चुनावी जीत के विस्तार पर दिल्ली और बिहार में ब्रेक क्यों लग गयी । और संघ के सैद्दांतिक मुद्दों से इतर मोदी सरकार निर्णय ले रही है और फिर चुनावी जीत नहीं मिल रही है तो यह रास्ता कब तक अपनाया जा सकता है । यानी अमित शाह को दोबारा बीजेपी अध्यक्ष बनाने के लिये जिस मंथन की तैयारी संघ परिवार कर रहा है उसमें यह कहा जरुर जा सकता है कि आखरी फैसला तो पीएम मोदी को ही लेना होगा लेकिन आडवाणी और जोशी की सहमति भी होनी चाहिये यह संघ भी मान रहा है। क्योंकि अमित शाह का विरोध आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी ,शांता कुमार और यशंवत सिन्हा ने बिहार
चुनाव परिमाम के बाद पत्र को लिख कर किया था । और जिम्मेदारी से बचने और पार्टी को तानाशाह के अंदाज में चलाने का आरोप मढा था। जाहिर है इसपर आजतक जबाब नहीं दिया गया । और संघ परिवार ने भी खामोशी ही बरती । यानी जो सवाल आडवाणी जोशी ने उठाये वह भी बीजेपी के पास पेंडिग पडे है । और आरएसएस यह कतई नहीं चाहेगा कि कोर कमेटी की बैठक में बीजेपी अधयक्ष को लेकर जो भी फैसला हो उसके बाद बीजेपी के भीतर से कोई आवाज विरोध की उठे ।

ऐसे में अगर अमित शाह पर संघ मुहर लगाता है तो यह हो सकता है कि जलगाव में फैसले के बाद खुद सरसंघचालक मोहन भागवत और भैयाजी जोशी दिल्ली आकर आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की सहमति लें । क्योकि जानकारी के मुताबिक जलगांव बैठक से पहले संघ और सरकार के बीच तालमेल बैठाने का काम देख रहे कृषण गोपाल ने आडवाणी और जोशी से मुलाकात की थी । और दोनो ने पार्टी को परिपक्व हाथो में देने की वकालत की । यानी अमित शाह के नाम को लेकर दोनो का रुख नरम पड़ा नहीं था। यूं मोदी सरकार के नीतिगत फैसले और उसपर अमित शाह की खामोश मुहर ने भी बुजुर्ग और अनुभवी स्वयंसेवकों में अंसतोष पैदा किया है। मसलन कश्मीर में सरकार बीजेपी की भी है लेकिन धारा 370 जस का तस है। और माना जा रहा है मेहबूबा मुफ्ती के सीएम बनने के बाद धारा 370 को स्थायी भी बना दिया जायेगा। यानी बीजेपी श्यामाप्रसाद मुखर्जी की ही लाइन को भूल चुकी है । फिर स्वदेशी का नारा संघ परिवार से निकला लेकिन सरकार एफडीआई के रास्ते चल निकली है । किसान संध और आदिवासी कल्याण संघ सरकार के भूमि अधिग्रहण के रुख को लेकर नाराज है । जनसंघ के दौर से आदर्श गांव का जिक्र हुआ अब स्मार्ट सीटी का जिक्र हो रहा है । संघ को अंखड भारत पर सफाई देनी पड़ रही है और प्रदानमंत्री मोदी पाकिस्तान की पीएम को जन्मदिन की बधाई देने के लिये लाहौर जाकर देश को चौंका रहे हैं। यानी सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या मोदी सरकार और बीजेपी के बीच राजनीतिक तालमेल नहीं है । संघ परिवार के सिद्दांत मोदी सरकार के दौर में बदल रहे है । या फिर सत्ता में आने के बाद से बीजेपी हो या संघ परिवार सभी की पहचान मोदी सरकार के निर्णयो पर आ टिकी है । यह ऐसे सवाल है जिसे लेकर पहली बार आरएसएस परेशान है । इसलिये जलगांव में संघ के कोर कमेटी की बैठक के
केन्द्र में वह सवाल है जिनके आसरे बीजेपी को परिपक्व नेतृत्व मिल सके या परिवपक्वता आ जाये। जनसंघ के दौर के नारे, एक निशान, एक विधान , एक प्रधान की सोच जाग सके। संघ की बुनियादी सोच को बीजेपी राजनीतिक तौर पर विस्तार दें । यानी मोदी के सत्ता में आने के बाद पहली बार संघ परिवार के भीतर इस बात को लेकर चिंता कही ज्यादा है कि राजनीतिक सफलता भर के लिये कहीं सामाजिक-आर्थिक जमीन पर से स्वयंसेवकों के पांव तो नहीं उखड़ रहे।

क्योंकि बीते हफ्ते ही इन्दौर में संघ की सभा हो या पुणे में संघ का समागम दोनो जगहों पर संघ के मुखिया ने सवाल सामाजिक मुद्दो के आसरे उठाये। तो सवाल यही है दिल्ली में अपनी सत्ता होने के बावजूद संघ अपने विस्तार के लिये अपने ही आधारो को अगर लगातार खंगाल रहा है तो फिर उसी के राजनीतिक संगठन बीजेपी को चुनावी जीत क्यो नहीं मिल पा रही है । और चुनाव में जीत अगर पार्टी सदस्य संख्या में बढोतरी या सांगठनिक ढांचे को दुरस्त करने के बाद भी नहीं मिल रही है तो क्या जिस परिपक्व नेतृत्व का सवाल आडवाणी जोशी उठा रहे हैं अब उस दिशा में बीजेपी को संघ ले जाना चाहेगा । यानी वैचारिक ताकत भी होनी चाहिये । जाहिर है संघ के कोर कमेटी की बैठक में इन सारे सवालो पर मंथन होगा । और माना जा रहा है कि 14 जनवरी को ही तमाम मशक्कत के बाद एलान होगा कि आखिर बीजेपी अध्यक्ष होगा कौन।

Tuesday, January 5, 2016

मेरे प्रिय मित्रजनो ! प्यार भरा नमस्कार ! कुशलता के आदान-प्रदान पश्चात विषय ये है कि मेरी बेटी सुकुमारी सुकृति शर्मा जो पिछले 3 - 4 वर्षों से ज़ी पंजाब हरियाणा हिमाचल,टीवी 24 और इंडिया-क्राइम चैनलों में , एंकर कम असोसिएट प्रोड्यूसर के तौर पर कार्य कर चुकी है !इसके इलावा कई समाचार पत्रों में और विद्वित पत्रकारों एवं एडिटरों के साथ भी कार्य कर चुकी है !उसने जर्नलिज़्म एंड मॉस कम्युनिकेशन में मास्टर तक की शिक्षा ग्रहण की हुई है !
               पारिवारिक कारणों के चलते अब हम उसे जयपुर में शिफ्ट करवाना चाहते हैं ! अतः जो भी मेरा मित्र इस काम में मेरी मदद कर सकता हो वो अवश्य करे !सधन्यवाद !! आपका अपना मित्र - पीताम्बर दत्त शर्मा - (लेखक-विश्लेषक) मो.न. - 9414657511

sukriti sharma

Attachments12:57 PM (14 minutes ago)
Dear Sir/Mam

First of all, Greetings for the day and a very happy new year to you and family.

Further, I am sharing my profile to you for any suitable opening. Presently i am  working with India Crime News Channel, Meerut as an Associate Producer and have 2.5 years of rich experience with Zee Media Corp Limited, Noida as Assistant Producer in Zee Punjab Haryana Himachal and very confident with following Roles/jobs. 

 Bulletin Rundown
 Special Bulletin
 Packages
 Fast News
 Anchoring
 Voice Over (News, Programming)
 Production work
 Ticker
 PCR (Graphics, Playlist, Panel Production)
 Octopus

Please find attached my resume, also sharing short clips links of my very recent Videos For references, I have did Live Bulletins like Fast news- 50 ka punch , Desh at 9 accompanying with Multiple Voice Overs, PTC and special programs. 

For ready references, seniors may also available .    

Please give me an opportunity to prove my caliber for the same.
  
Video references:

with Best regards,
Sukriti Sharma
9555215279  




                       

पाकिस्तान और कांग्रेस को जल्दी और जोरदार जवाब दो मोदी जी ! - पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक) मो. न. - + 9414657511.

पेरिस में हमला हुआ था तो वहाँ के किसी भी विपक्षी दल ने और ना ही किसी चेनेल ने वहाँ की सरकार के खिलाफ कोई प्रश्न पूछे थे क्योंकि उनको विश्वास था कि उनके प्रधानमंत्री और सुरक्षा बल समय की मांगनुसार उचित  कदम उठाएंगे ही ! अविश्वास का सवाल ही नहीं खड़ा किया जाता "समझदार विपक्ष और मीडिया "द्वारा किसी भी देश में ! पाकिस्तान को ही ले लीजिये ! सब जानते हैं की वहाँ की सेना ही मुख्य फैसले करती है वहाँ लेकिन सेना के किसी अधिकारी ने अपनी सरकार के खिलाफ कभी कोई बयान नहीं दिया !अमेरिका यूरोप और रूस तलक भी संसद में बैठकर ही अपनी गुप्त योजनाएं बनाते हैं ! जनता उन पर विश्वास करती है जितनी देर हेतु जनता ने उनको चुना हुआ होता है !
                              लेकिन हमारे यहां के मीडिया और विपक्षी नेताओं को ना जाने क्या हो गया है कि जिसे देखो वो ही अपने सारे "भेद " चेनेल पर ही खोल देना चाहता है ! टीवी एंकर तो कभी-कभी इतने भावुक हो जाते हैं की वो जनता की आड़ में स्वयं ही निर्णय सुनाने लग जाते हैं जी अब तो ! ये तो खुदा ही मालिक है जी अपने भारत का वरना हम तो इसको बर्बाद कर देने की कोई कसर नहीं छोड़ते ? पठानकोट में ऑपरेशन अभी चल रहा है ! तलाशियां अभी चल रही हैं ! विस्फोटक बरामद किये जा रहे हैं ! पाकिस्तान से जवाब माँगा जा रहा है !लेकिन कांग्रेस को "कब्जी" हो गयी है !क्यों वो अभी जनता के नाम पर कार्यवाहियों के भेद जानना चाहती है ? क्यों वो उचित समय पर ऐसे सवाल नहीं करती ?उसके नेता तो पहले ही पाकिस्तान से अपनी सरकार बनवा देने हेतु उनसे मदद की गुहार लगा चुके हैं !क्या कॉंग्रेस्स इसलिए जल्दी में है ताकि वो सारे भेद पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं को बता सके ! क्या पाकिस्तान के "जासूस"हमारे देश के विपक्ष और मीडिया में भी बैठे हैं ?? अगर हाँ तो उनकी तलाश कब की जाएगी ?
                                     बात बड़ी गहरी है जी ! आज पाकिस्तान पर हमला करने से पहले बड़ी आवश्यकता ये है की हमारी सरकार को अपना "अंदर"ठीक करना होगा ! उसे सभी विभाग,राष्ट्रिय दल , सभी सामाजिक संगठनो और आम जान की गहरी जांच करनी होगी ! "गद्दारों"को ढूढ़ना होगा फिर उनको सरेआम चौराहों पर लटकाना होगा ! फिर हम पूर्णतया सुरक्षित हो पाएंगे ! फिर कोई घुसपैठ नहीं होगी और ना ही कोई आतंकवादी हमपर हमला ही कर पायेगा !आज हम दावे के साथ कह सकते हैं की भारत की जनता को मोदी जी की सरकार पर तो पूरा भरोसा है लेकिन विपक्षियों की निष्ठां उसके नेता ही दांव पर समय-समय पर लगाते रहते हैं !झूठे "अहिष्णुता"के आरोप लगाना, झूठे भ्रष्टाचार के आरोप लगाना और जगह-जगह पर जाकर लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काना भी यही सिद्ध  ये सब लोग दुश्मन ली कठपुतलियां हैं ! ऐसे पत्रकारों और नेताओं की गहन जांच करवाई जानी चाहिए जी ! 
                              जो हमारे जवान शहीद हो रहे हैं उनको हमारी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ! हम अपनी संवेदनाएं प्रकट करते है !!भगवन उनको अपने चरणो में स्थान दे ! भारत माता की जय ! जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना !! आप की कुर्बानियां बेकार नहीं जाने दी जाएंगी ! हम लेखक लोग अपनी कलम से आवाज़ उठाते ही रहेंगे ! मेरा तो ये मानना है की आज हर भारतीय को चौकस रहना होगा , सोते हुए भी जागते रहना होगा ! कहीं भी हमें कोई ऐसी बात नज़र आये कि जिससे शक पैदा होता हो , उसे पोलिस तक अवश्य पंहुचाएं ! हे भारत के अफसरों !!!!!!! जाग जाओ ! खाए हुए नमक का एहसान भी उतारो ! अपनी ड्यूटी पूरी जिम्मेदारी से पूरी करो जी !! धन्यवाद ! जय जवान - जय किसान !!

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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...