Saturday, April 18, 2015

जेपी नहीं सेल्फी युग में कितना टिकेगा जनता परिवार?LET US SEE !!


पचास बरस पहले संघ के मुखिया गुरु गोलवरकर विनोबा भावे के भूदान आंदोलन को समर्थन देने बिहार पहुंचे। लेकिन चुनाव हुये तो भी जनसंघ हाशिये पर ही रहा। पैंतिस बरस पहले संघ के मुखिया देवरस के इशारे पर बाबू जगजीवनराम को पीएम बनाने का सिक्का उछला गया लेकिन बिहार में सफलता फिर भी नहीं मिली। पच्चीस बरस पहले आडवाणी अयोध्या की छांव में बिहार तक पहुंचे लेकिन बीजेपी को बिहार में तब भी सफलता नहीं मिली। लेकिन 2015 में बीजेपी ही नहीं संघ परिवार को भी मोदी के जादू पर भरोसा है तो क्या बिहार मोदी के खिलाफ विपक्ष की एकजूटता का एसिड टेस्ट साबित होगा। या फिर बिहार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक सक्रियता का एसिड टेस्ट होगा । इन दो सवालों से इतर दो सवाल और भी हैं कि क्या बिहार जातीय गोलबंदी का एसिड टेस्ट होगा या फिर बिहार दलित-मुस्लिम वोट बैक के प्यादे से वजीर बनने की चाहत का एसिड टेस्ट लेगा। और अगर यह सब होगा तो क्या बिहार के विधानसभा चुनाव देश की राजनीतिक धारा की दिशा तय कर देंगे। यह सवाल इसलिये बड़ा हो चला है क्योंकि सत्ता साधने के लिये पहली बार राजनीतिक दल ही यह तय कर रहे हैं कि उनकी सोच के हिसाब से वोटर भी चलेगा। जबकि वोटरों की नयी पौध को समझे तो शरद यादव या मुलायम के बार बार लोहिया जेपी का नाम लेकर राजनीति साधने से आगे मोदी अपने दौर में सेल्फी के आसरे राजनीतिक मंत्र फूंक रहे हैं। 


इस महीन राजनीति की मोटी लकीर को समझे तो जनता परिवार की एकजुटता के पीछे जो विचारधारा बतायी गई वह सांप्रायिकता और जहर बोने की सियासत हैं। लेकिन लालू-मुलायम के पारिवारिक समारोह में सांप्रदायिकता का यही खैौफ रफूचक्कर हो जाता है। क्योंकि शाही विवाह समारोह में लालू-मुलायम ही संबंधों का प्रोटोकाल बताकर प्रधानमंत्री मोदी को आंमत्रित करते हैं। आगवानी करते है और वहां भी परिवार के सदस्य प्रधानमंत्री मोदी के साथ सेल्फी में खो जाते हैं। तो महीने भर पहले लालू का यह बयान कितना मायने रखता है कि जब बड़े दुशमन को ठिकाने लगाना हो तो छोटे दुशमन एक हो जाते हैं। और लगातार शरद यादव का यह बयान कितना मायने रखता है कि बीजेपी अब वह बीजेपी नहीं रही जिस बीजेपी के साथ वह खड़े थे। तो क्या लोहिया का गैर कांग्रेस वाद और जेपी का कांग्रेस के खिलाफ खड़े होने की परिभाषा भी बदल गई है। क्योंकि तब गैरकांग्रेसवाद का नारा था अब गैर बीजेपी का नारा है। यानी इतिहास चक्र को हर कोई अपनी सुविधा से अगर परिभाषित कर रहा है तो फिर अगला सवाल बिहार की उस राजनीति का भी है जिसकी लकीर इतनी सीधी भी नहीं है कि वह जनता परिवार और मोदी के जादू तले सबकुछ लुटा दे। क्योंकि इन दो धाराओं से इतर दलित और मुस्लिम समाज के भीतर की कसमसाहट भी है और बिहार की राजनीति में हाशिये पर पडी अगड़ी जाति की बेचैनी भी। जो वोट बैक के जातिय गणित को भी डिगा सकती है और एक नई धारा को भी जन्म दे सकती है। नीतीश के दायरे को तोड़कर निकले जीतनराम मांझी अनचाहे में दलित चेहरा बन रहे हैं। लेकिन मांझी सत्ता साधने के लिये हैदराबाद से ओवैसी को बिहार बुलाकर अपने साथ खड़ाकर दलित -मुस्लिम वोट बैंक की एक ऐसी धारा बनाने की जुगत में है जो लालू-नीतीश के सपने को चकनाचूर कर दे। और सियासी संकेत भी बीजेपी के साथ ना जाने की दे दें।
अगर ओवैसी-मांझी मिलते हैं तो झटके में काग्रेस लालू-नीतीश के साथ खड़ा होने से कतरायेगी। यानी कांग्रेस की यह कश्मकश बरकरार रहेगी कि बीजेपी या मोदी का आखरी विकल्प तो वही है। तो फिर कांग्रेस क्षत्रपों के साथ खड़ा होकर राजनीति क्यो करे। यानी बड़े दुश्मन को हराने के लिये छोटे दुश्मन के साथ यारी का वोट गणित भी डगमागेया। लेकिन तमाम राजनीतिक कयासों के बीच बिहार को लेकर सबसे बडा सवाल सिर्फ राजनीतिक मंचों की उस विचारधारा भर का नहीं है बल्कि वोटरों की उस न्यूनतम जरुरत का भी है, जिसे लालू की सत्ता को नीतिश ने जंगल राज करार दिया और नीतिश की सत्ता को लालू यादव ने सुशासन बाबू का सांप्रदायिक चेहरा करार दिया। यानी बीते दो दशको से बिहार ने कभी लालू के रिश्तेदारों की बपौती से लेकर यादवों की ताकत देखी तो महादलित का राजनीतिक प्रयोग कर सत्ता पर बने रहने नीतिश की तिकड़म को समझा। इन दो धाराओं में भागलपुर के दंगों का जिक्र इसलिये भी जरुरी है क्योंकि दंगो के बाद ही लालू सत्ता में आये थे और कांग्रेस की सत्ता इसके बाद बिहार में लौटी नहीं। लेकिन 18 बरस बाद जब भागलपुर दंगो पर अदालत का फैसला आया तो कटघरे में यादव समुदाय ही खड़ा हुआ। भागलपुर की मल्लिका बेगम का सच आज भी भागलपुर दंगों की याद कर रोगटे खड़ा कर देता है। तो क्या राजनीतिक धारा 2015 में इतनी बदल चुकी है कि वह इतिहास के झरोखे में भी नहीं झांकेगी। या फिर वोटर के तौर पर खड़ी युवा पीढी शिक्षा, स्वास्थय और रोजगार के सवालों से जूझेगी। क्योंकि न्यूनतम जरुरतों से जुझते बिहार का सच यह भी है कि पीने के पानी से लेकर परीक्षा के दिने में अंधेरे में मोमबत्ती या लालटेन जलाकर पढने के हालात बिहार में अभी भी है । सार्वनजिक प्रणाली हर क्षेत्र में चौपट है । लेकिन जिसकी सत्ता उसकी लाल बत्ती का सिलसिला हर दौर में बरकरार है । और गुस्से में समाये बिहार के उन बच्चो ने यह सब देखा भोगा है जिनका जन्म ही जनता दल की आखरी टूट के बाद हुआ और आज की तारिख में वह 20 बरस का होकर वोट डालने की उम्र में आ चुके हैं। और सियासत का ककहरा सिखाते छह पार्टियों से बने जनता परिवार के नेताओं की औसत उम्र 70 पार की हो चली है।

Friday, April 17, 2015

" मसर्रत जैसों से ,बात से मसला हल करने वालों की सलाह देने वाले ही, असली ,देश के गद्दार हैं "??-पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक)

पाठक मित्रो ! आज जो जम्मू-काश्मीर में हो रहा है वो पिछले ६७ सालों से होता ही आ रहा है !इस देश का खाकर दुसरे देश के गुण वो ही लोग  हैं जो पड़ौसी देश की संताने हैं ! जो पूरे भारत में फ़ैल चुकी हैं !इसीलिए आज तलाक इस समस्या का हल नहीं हो पाया ! लेकिन आज मोदी की सरकार है तो आज हल के बारे में सोचा भी जायेगा और हल निकला भी जायेगा ! ये भारत की जनता को पूरा भरोसा है !आज ऐसा क्यों है की आम आदमी के पास हर बड़ी से बड़ी समस्या का हल है लेकिन हमारे नेताओं के पास नहीं है ?? हमारे ज्यादातर नेता तो अपनी छवि बचाने  के चक्कर में ही फंसे रहते हैं ! एक युवा महाराज तो 10 दिन की छुट्टी लेकर गए थे लेकिन कोटे ५८ दिनों के बाद हैं , तो इन जैसे नेताओं पर जनता क्या भरोसा करे ?
                         इस समस्या का हल अगर निकलेगा तो 1947 के बंटवारे के समय जो समझौता हुआ था भारत-पाकिस्तान में, उसको दोबारा खोलकर , बची हुई कमियों को मिल-बैठकर बातचीत से दूर कर , उसे दोबारा तय करके ही निकलेगा ! अन्यथा कुछ ना कुछ बचा ही रह जायेगा ! नासूर की तरह से फिर वो फुट पड़ेगा ! जिसे रोकना अत्यंत आवश्यक है !
                        भारत सरकार को चाहिए कि वो डरे नहीं पूरे जम्मू-कश्मीर में एक-एक निवासी से पूछे की कौन भारत के प्रशासन से प्रसन्न है और कौन पाकिस्तान जाना चाहता है ?? जो लोग पाकिस्तान जाना चाहें उन्हें अभी से अलग रखना शुरू कर दें ! पाकिस्तान के कब्ज़े वाले काश्मीर को आज़ाद करवाकर उसमे उन लोगों को भेज दिया जाये ! उचित मुआवज़ा देकर ! लेकिन ध्यान रहे 1947 वाली गलती दोबारा ना होजाये ?? कोई ऐसा आदमी भारत में ना रह जाये जो पाकिस्तान काना चाहता हो ,अन्यथा फिर कोई गांधी मारा जा सकता है !
                    एक पिता अपने पुत्रों का बंटवारा भी तो करता है !! ये प्रकृति का नियम है ! लेकिन  तो न्याय से होना चाहिए था ! जो 1947 में नेहरू-गांधी की गलती से नहीं हो पाया !! इनकी ज़िद्द की वजह से जो मुसलमान भारत में रह गए केवल वो ही आज " मेरी जान पाकिस्तान " बोलते हैं दूसरा कोई नहीं बोलता जनाब ! चाहे वो काश्मीरी हो या राजस्थानी , पंजाबी होया हरियाणवी या कोई और हो !
                      तो इनको भेजा क्यों नहीं जाता पाकिस्तान ?? और अगर वो इन लोगों को लेने से मना कर दे तो ऐसे लोगों को बॉर्डर पर नए छोटे मकान बनाकर रख्खा जाए ! भोजन व शिक्षा आदि  की व्यवस्था भी इनकी कर देनी चाहिए ! लेकिन इनकी गिनती चाहे जितनी भी बढ़ जाए इनको रख्खा बॉर्डर पर ही जाना चाहिए ! कांटेदार तार की जगह इनको बॉर्डर पर  रक्षा हेतु ! हम वैसे भी तो रक्षा बजट के नाम पे इनको पाल ही रहे हैं ?
             आप का क्या कहना है मित्रो ! आप अपना हल इस समस्या पर अवश्य बताएं !!
               


            
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Tuesday, April 14, 2015

10 महीने में 10 फीसदी 'प्रेस्टिट्यूट' और न्यूज ट्रेडर- !


नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद वाकई किसी के दाग धुले तो वह न्यूज ट्रेडर ही है । याद कीजिये तो न्यूज ट्रेडर शब्द का इजाद भी नरेन्द्र मोदी ने ही लोकसभा चुनाव के वक्त किया । उससे पहले राडिया मामले
[ टू जी स्पेक्ट्रम   ] से लेकर कामनवेल्थ घोटाले तक में मीडिया को लेकर बहस दलाल या कमीशन खाने के तौर पर हो रही थी । और मनमोहन सरकार के दौर में यह सवाल बड़ा होता जा रहा था कि घोटालो की फेहरिस्त देश के ताकतवर पत्रकार और मीडिया घराने सत्ता के कितने करीब है या कितने दागदार हैं । यानी मीडिया को लेकर आम लोगो की भावना कतई अच्छी नहीं थी । लेकिन सवाल ताकतवर पत्रकारों का था तो कौन पहला पत्थर उछाले यह भी बड़ा सवाल था । क्योंकि मनमोहन सिंह के दौर में हर रास्ता पूंजी के आसरे ही निकलता रहा । न्यूज चैनल का लाइसेंस चाहिये  या मीडिया सस्थान में आपका रुतबा बड़ा हो । रास्ता सत्ता से करीब होकर ही जाता था । और सत्ता के लिये पूंजी का महत्व इतना ज्यादा था कि किसी नेता , मंत्री या सत्ता के गलियारे में वैसे ही पत्रकारो की पहुंच हो पाती जिसके रिश्ते कही कारपोरेट तो कहीं कैबिनेट मंत्री के दरवाजे पर दस्तक देने वाले होते । इंट्लेक्चूयल प्रोपर्टी भी कोई चीज होती है और उसी के आसरे पत्रकार अपना विस्तार कर सकता है यह समझ सही मायने में मनमोहन सरकार ने ही दी । इसीलिये जैसे ही मनमोहन सरकार दागदार होती चली गई वैसे ही मीडिया भी दागदार नजर आने लगी । ताकतवर  पत्रकारों के कोई सरोकार जनता से तो थे नहीं । क्योंकि उस दौर में तमाम ताकतवर पत्रकारों की रिपोर्टिंग या महत्वपूर्ण रिपोर्टिंग के मायने देखें तो हर रास्ता कारपोरेट या कैबिनेट के दरवाजे पर ही दस्तक देता । इसीलिये  लोकसभा चुनाव की मुनादी के बाद जैसे ही खुलेतौर पर पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने न्यूज ट्रेडर शब्द गढ़ा वैसे ही जनता के बीच मोदी को लेकर यह संदेश गया कि मीडिया को लेकर कोई ईमानदार बोल बोल रहा है । इसका बडा कारण मनमोहन सरकार से लोगो का भरोसा उठना और मीडिया के आसरे कोई भरोसा जगा नहीं पाना भी था ।

गुस्सा तो जनता में कूट कूट कर कैसे भरा था यह खुलेतौर पर संसद को ही नकारा साबित करते अन्ना दोलन के दौर में जनता की खुली भागेदारी से हर किसी ने समझ लिया था । लेकिन उसे शब्दों में कैसे पिरोया जाये इसे नरेन्द्र मोदी ने समझा इंकार इससे भी नहीं किया जा सकता है । लेकिन नरेन्द्र मोदी समाज की इस जटिलता को समझ नहीं पाये कि मनमोहन सिंह अगर आवारा पूंजी पर सवार होकर मीडिया के उस सांप्रदायिक चेहरों के दाग को धो गये जो अयोध्या आंदोलन के दौर से वाजपेयी सरकार तक के दौर में ताकत पाये पत्रकार और मीडिया हाउसो को कटघरे में खड़ा कर रहा था । और मनमोहन के दौर के दागदार पत्रकार या मीडिया हाउस पूंजी के खेल से कटघरे में खड़े हुये । तो मोदी काल में फिर इतिहास दोहरायेगा और बदले हालात में उन्हीं ताकतवर या कटघरे में खड़े पत्रकारों या मीडिया संस्थानों को बचने का मौका देगा जो मनमोहन काल में दागदार हुये । क्योंकि मोदी के दौर में न्यूजट्रेडर तो पहले दिन से निशाने पर है लेकिन खुद मोदी सरकार ट्रेडिंग को लेकर निशाने पर नहीं आयेगी क्योंकि मोदी की लाइन मनमोहन सिंह से अलग है ।

तो मोदी काल में वह पत्रकार या मीडिया हाउस ताकतवर होने लगेंगे जो हरामजादे पर खामोशी बरते। जो चार बच्चों के पैदा होने के बयान को महत्वहीन करार दे । जो कालेधन पर दिये मोदी के वक्तव्य को अमित शाह की
तर्ज पर राजनीतिक जुमला मान ले । जो महंगाई पर आंखे मूंद ले । जो शिक्षा और हेल्थ सर्विस के कारपोरेटिकरण पर कोई सवाल न उठाये । जो कैबिनेट मंत्रियो की लाचारी पर एक लाइन ना लिखे । जो अल्पसंख्यकों को लेकर कोई सवाल न उठाये । जो सीबीआई से लेकर सीएजी और हर संवैधानिक पद को लेकर मान लें कि सभी वाकई स्वतंत्र होकर काम कर रहे है । सरकार की कोई बंदिश हो ही नहीं । यानी मोदी दौर के ताकतवर पत्रकार और मीडिया हाउस कौन होंगे । और क्या वह मनमोहन सिंह के दौर के ताकतवर पत्रकार या मीडिया घरानों की तुलना में ज्यादा बेहतर है । या हो सकते है । जब पत्रकार और मीडिया हाउसों को लेकर चौथे स्तंम्भ को इस तरह परिभाषित करना पड़े तो यह सवाल टिकता कहां है कि जो भ्रष्ट हैं , जो दलाल हैं , जो कमीशनखोर हैं , जो न्यूज ट्रेडर हैं , जो सांप्रदायिक हैं वह हैं कौन । और क्या किसी भी सरकार के दौर में वाकई मीडिया घरानो से लेकर इमानदार पत्रकारों को मान्यता देने का जिगर किसी सत्ता में हो सकता है । यकीनन नहीं । तो फिर अगला सवाल है कि क्या सत्ता भी जानबूझकर मीडिया से वहीं खेल खेलती है जहा मीडिया में एक तबका ताकतवर हो जो सत्ता के अनुकुल हो। या सत्ता के अनुकुल बनाकर मीडिया या पत्रकारों को ताकत देने-लेने का काम सत्ताधारी का है । जरा पन्नों को पलट कर याद किजिये  वाजपेयी के दौर में जिन पत्रकारों की तूती बोलती थी क्या मनमोहन सिंह के दौर में उनमे से एक भी पत्रकार आगे बढ़ा । और मनमोहन सिंह के दौर
के ताकतवर पत्रकार या मीडिया हाउसो में से क्या किसी को मोदी सरकार में कोई रुतबा है । अगर सत्ता के बदलने के साथ साथ पत्रकारो के कटघरे और उनपर लगे दाग भी घुलते हैं। साथ ही हर नई सत्ता के साथ नये पत्रकार ताकतवर होते है तो इससे ज्यादा भ्रष्ट व्यवस्था और क्या हो सकती है । जो लोकतंत्र का नाम लेकर सत्ता के लोकतांत्रिक होने की प्रक्रिया में किसी भी अपराधी को सजा नहीं देती । सिर्फ अंगुली उठाकर डराती है या अंगुली थाम कर ताकतवर बना देती है । दोनो हालात में ट्रेडर है कौन और 'प्रेस्टिट्यूट' कहा किसे जाये। अगर सत्ता को लगता है कि सिर्फ दस फिसदी ही न्यूज ट्रेडर है या 'प्रेस्टिट्यूट' है तो यह दस फिसद हर सत्ता में क्यो बदलते है ।

फिर किसी राजनीतिक दल की तरह ही उन्ही पत्रकारों या मीडिया हाउस को क्यों लगते रहा है कि सत्ता बदलेगी तो उनके दिन बहुरेंगे। यानी लोकतंत्र के किसी भी स्तम्भ की व्याख्या की ताकत जब सत्ता के हाथ में होगी तो फिर सत्ता जिसे भी न्यूजट्रेडर कहे या 'प्रेस्टिट्यूट' कहें, उसकी उम्र उस सत्ता के बने रहने तक ही होगी । यानी हर चुनाव के वक्त सत्ता में आती ताकत के साथ समझौता करने के हालात लोकतंत्र के हर स्तम्भ को कितना कमजोर बनाते हैं, यह ट्रेडर
और 'प्रेस्टिट्यूट' से आगे के हालात हैं। क्योंकि जिन्हे पीएम ने न्यूज ट्रेडर कहा वह धर्मनिरपेक्षता की पत्रकारिता को ढाल बनाकर मोदी को ही कटघरे में खड़ाकर अपने न्यूड ट्रेडर के दाग को धो चुके हैं। और जिन्हें
'प्रेस्टिट्यूट' कहा जा रहा है वह एक वक्त न्यूज ट्रेडरों के हाथों मार खाये पत्रकारों के दर्द को समेटे भी है । और इन दोनो हालातों में खुद सत्ता के चरित्र का मतलब क्या होता है, यह मजीठिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल
रही बहस से भी समझा जा सकता है । जिस मजीठिया को को यूपीए सरकार ने लागू कराया उन्हीं मनमोहन सरकार में रहे कैबिनेट मंत्री सत्ता जाते है वकील हो गये। और एक मीडिया समूह की तरफ से मजीठिया को लेकर पत्रकारों के खिलाफ ही खड़े हैं । तो सत्ता के चरित्र और सत्ता को अपने अनुकूल बनाने वाले मीडिया हाउस से लेकर पत्रकारों के चरित्र को लेकर कोई क्या कहेगा । न्यूज ट्रेडर और 'प्रेस्टिट्यूट' शब्द तो बेमानी है यहा तो देश के नाम पर और देश के साथ दोनो हालातों में फरेब ज्यादा ही हो रहा है । तो रास्ता वैकल्पिक राजनीति का जह बने तब बने उससे पहले तो जब तक मीडिया इक्नामी को जनता से जोडकर खड़ा करने वाले हालात देश में बनेंगे नहीं तबतक सत्ता के गलियारे से पत्रकारों को लेकर गालियो की गूंज सुनायी देती रहेगी । और जन सरोकार के सवाल चुनावी नारो से आगे निकलेगें नहीं और संपादकों की टिप्पणी या ताकतवर एंकरों के प्रोमो से आगे बढेंगे नहीं ।

          

    
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Monday, April 13, 2015

"धर्म-संकट धर्म-संकट . में भारत आज ..!! धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो " --------!


        
            भारतीय संस्कृति के प्रखर उपासक महान विद्वान स्वामी करपात्री  जी महराज को कौन नहीं जनता, उनकी लौकिक पढ़ाई बहुत कम थी उन्होने गंगा जी की परिक्रमा की और वे वेद, वेदांग, उपनिषद और पुराणों के महान ज्ञाता बनकर आ गए वे भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं धर्म संघ स्थापना कर धर्म प्रचार मे लग गए, एक बार मध्य प्रदेश के एक गाँव मे प्रवास पर थे प्रवचन के पश्चात वे जो जय घोष लगाते वह संस्कृत मे होता था एक छोटी सी बालिका आई और करपात्री जी से कहा स्वामी जी यदि आप इस जय घोष को हिन्दी मे कहते तो हमारी भी समझ मे आता, करपात्री जी को यह बात ध्यान मे आ गयी और उन्होने उसी उद्घोष को हिन्दी मे कहा ''धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो'' आज यह जय घोष भारतीय संस्कृति का उद्घोष बन गया ।
धर्म की जय हो -----------------!
      भारतीय संस्कृति मे धर्म क्या है नैतिकता, राष्ट्रिय चरित्र, कहते हैं की 'धृति क्षमा दमों अस्तेय ------ दसकम धर्म लक्षणम' इत्यादि दस धर्म के लक्षण हैं जैसे धर्म शाला, धर्म पत्नी यानी जहां -जहां धर्म शब्द लगा है वहाँ समाज का विस्वास, पवित्रता, नैतिकता, सामाजिक बंधन, परिवार, काका-काकी, मामा-मामी  ऐसे रिस्ते जो हमे व समाज को बांधे रखता है उसे भारत मे धर्म कहते हैं, भगवान श्रीराम ने एक आदर्श कायम किया उनकी सादगी, सरलता, भाइयों के प्रति कैसा प्रेम की राज्य नहीं लेना चाहते दोनों, राम का जीवन संस्कृति की ब्याख्या, परिभाषा जीवन मूल्य और सर्वसमावेशी है वे एक दूसरे को गद्दी पर बैठना चाहते हैं, जहां श्रीक़ृष्ण धर्म स्थापना हेतु महाभारत कराते हैं, वास्तव मे यही हिन्दू धर्म है जो विश्व का सर्व श्रेष्ठ धर्म है जहां केवल मानव मात्र ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी, जीव- जन्तु सबकी चिंता का विधान है जहां प्रकृति के प्रति श्रद्धा का भाव है वहीं इसके सरक्षण, संबर्द्धन मे पुण्य माना जाता है इसी धर्म की जय हो ।
अधर्म का नाश हो-------!
            अधर्म का नाश हो यानी क्या ? हमे विचार करना है की अधर्म क्या है जिसका नाश हो जो नैतिकता का विरोधी हो, जिसका ब्रंहांड  मे विस्वास नहीं जिसमे पूर्णता मे विस्वास नहीं जहां चरित्र का कोई महत्व नहीं, जहां सम्बन्धों पर विचार नहीं, जहां गोत्र का कोई संबंध नहीं, जिनका प्रकृति का संरक्षण नहीं करते, नहीं जो पीपल, तुलसीआदि औसधियों को नष्ट करना विचार, जिनका नदियों मे मातृत्व का भाव नहीं यानी जल का संरक्षण नहीं जिनका भारत के प्रति माता का भाव नहीं जो गाय को माता नहीं मानते उसे को काटने मे जन्नत महसूस करते हैं जिनका वेद व भारतीय वांगमय मे विस्वास नहीं भारतीय महापुरुषों मे विस्वास नहीं यहाँ के तीरथों मे आस्था नहीं वह अधर्म है मै एक कथा बताता हूँ ''एक बार मुहम्मद साहब अपने घर मे गए अपनी पुत्र वधू स्नान कराते हुए देखा उसके साथ बलात संबंध बना लिया जब उनका लड़का घर पर आया तो उन्होने बताया कि अल्लाह का ''इलहाम'' आया है कि अब ये तुम्हारी माँ है और मेरी पत्नी '' भारत मे कम से कम इसको स्वीकार नहीं किया जा सकता लेकिन इस्लाम मे भाई-बहन का बिवाह जायज है, इसायियों मे केवल अगूठी बदलते हैं यह सब भारत मे अधार्मिक माना जाता है  तो इसका नाश हो ---!
प्राणियों मे सद्भावना हो -----!
      प्राणियों मे सद्भावना माने क्या ? हिन्दू समाज मे केवल मनुष्य का ही चिंतन नहीं किया गया तो प्राणी मात्र का चिंतन है कहा जाता है कि प्रत्येक मानुषे को पाँच पेड़ लगाने चाहिए, पीपल का बृक्ष, तुलसी का पौधा नहीं काटना तो नीम का बृक्ष घर के बाहर लगाना यानी हमने पेड़-पौधों मे भी आत्मा का दर्शन किया, हिन्दू धर्म के अनुसार केवल गाय को गो ग्रास ही नहीं निकालना तो चींटी को भी चारा देना हाथी मे गणेश का दर्शन करना यहाँ तक 'सूकर' भी विष्णु का अवतार माना जाता है इतना ही नहीं सर्प की भी पूजा उसे दूध पिलाने की परंपरा गरुण भगवान विष्णु कि सवारी है तो चूहा गणेश जी का हमारे पूर्वजों (ऋषियों-मुनियों ) ने लाखों करोणों वर्षों मे सम्पूर्ण समाज का चिंतन करते हुए सभी की चिंता, सभी मे सदभना बनी रहे ऐसा समाज खड़ा किया ।  विश्व का कल्याण हो----------!
        विश्व का कल्याण हो यानी क्या यह हमे समझने की अवस्यकता है कल्याण क्या है -? एक वार धरती को भगवान ''सूकर'' ने बचाया था, भगवान श्रीरामचन्द्र ने रावण का बाधकर विश्व कल्याण किया था तो हृणाकश्यप का बध नरसिंघ भगवान ने किया था द्वापर और कलयुग के संधि काल मे भगवान कृष्ण ने कंस ही नहीं तो धर्म स्थापना हेतु महाभारत करवाया था, भगवत गीता मे उन्होने कहा ''यदा-यदाहि धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम शृजामिहम'' जब-जब धर्म की हानी होती है मै आता हूँ बिधर्मियों का संहार करता हूँ, वर्तमान मे विश्व कल्याण करना यानी क्या करना जो मानवता का नुकसान कर रहे हैं जो गोबध कर रहे हैं जो विश्व मे हिंसा यानी धर्म के नाम पर अपने को स्वयं भू खलीफा सिद्ध कर हजारों लाखों की हत्या कर रहे हैं जो यह कहते हैं की मेरी ही बात सत्य है मेरा ही धर्म मानने योग्य है मेरा ही पूजा स्थल साधना योग्य है शेष को न जिंदा रहने का अधिकार है न मठ, न मंदिर बनाने का सभी नष्ट करना, सभी ग्रंथागारों को नष्ट करना अथवा करना चाहते हैं, इन राक्षसों को समाप्त करना यानी इन्हे समाप्त करना, जिस मानवतावादी संस्कृति की रक्षा हेतु महाराणा प्रताप ने जीवन भर संग्राम किया, क्षत्रपति शिवा जी महराज ने अफजलखान जैसे आतताईयों की बध किया, गुरु गोविंदसिंह ने पिता, पुत्र सहित अपने प्रिय शिष्यों के बलिदान का आवाहन किया, वीर बंदा बैरागी ने अपने बंद-बंद नुचवाया, भाई मतिदास ने आरे से शरीर को चिरवाया, जिस विश्व कल्याण कारी संस्कृति की सुरक्षा हेतु गुरु तेगबहादुर का बलिदान हुआ धर्म वीर संभाजी राजे ने अप्रितम आहुति दी इन महापुरुषों ने जो किया वही विश्व का कल्याण का मार्ग है ।
      अपने मठ, मंदिर और गुरुद्वारों मे पूजा के पश्चात हम केयल यह जय-घोष ही करेगे या विश्व के कल्याण मे कोई भूमिका भी निभाएगे आइए विचार करें।    
 जय श्री राम !!!!  आपसे मित्रता करके मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है ! आपके जनम दिन की आपको हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं !! कृपया स्वीकार करें ! आपका जीवन सदा खुशियों से भरा रहे !! मेरा फेसबुक,गूगल+,ब्लॉग,पेज और विभिन्न ग्रुपों की सदस्य्ता ग्रहण करने का एक ख़ास उद्देश्य है ! मैं एक लेखक-विश्लेषक और एक समीक्षक हूँ ! राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय ज्वलंत विषयों पर लिखना -पढ़ना मेरा शौक है ! मैं एक साधारण पढ़ालिखा और साफ़ स्वभाव का आदमी हूँ ! भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्यार करता हूँ ! भारत देश के लिए अगर मेरे प्राण काम आ सकें तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानूंगा !परन्तु किसी संत-राजनितिक दल और नेता हेतु नहीं !मैं एक बिन्दास स्वभाव का आदमी हूँ ! मेरी मित्र मण्डली में मेरे बच्चे और रिश्तेदार भी शामिल हैं ! तो भी मैं सभी विषयों पर अपने खुले विचार रखता हूँ !! आप सब का हार्दिक स्वागत है मेरे जीवन में !! मैं आपकी यादों - बातों को संभल कर रखूँगा !!
मित्रो !! मैं अपने ब्लॉग , फेसबुक , पेज़,ग्रुप और गुगल+ को एक समाचार-पत्र की तरह से देखता हूँ !! आप भी मेरे ओर मेरे मित्रों की सभी पोस्टों को एक समाचार क़ी तरह से ही पढ़ा ओर देखा कीजिये !!
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आपका हार्दिक स्वागत है हमारे ब्लॉग ( समाचार-पत्र ) पर, जिसका नाम है - " 5TH PILLAR CORRUPTIONKILLER " कृपया इसे एक समाचार-पत्र की तरह ही पढ़ें - देखें और अपने सभी मित्रों को भी शेयर करें ! इसमें मेरे लेखों के इलावा मेरे प्रिय लेखक मित्रों के लेख भी प्रकाशित किये जाते हैं ! जो बड़े ही ज्ञान वर्धक और ज्वलंत - विषयों पर आधारित होते हैं ! इसमें चित्र भी ऐसे होते हैं जो आपको बेहद पसंद आएंगे ! इसमें सभी प्रकार के विषयों को शामिल किया जाता है जैसे - शेयरों-शायरी , मनोरंजक घटनाएँ आदि-आदि !! इसका लिंक ये है -www.pitamberduttsharma.blogspot.com.,ये समाचार पत्र आपको टविटर , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी मिल जाएगा ! ! अतः ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर इसे सब पढ़ें !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !! मेरा इ मेल ये है : - pitamberdutt.sharma@gmail.com. मेरे ब्लॉग और फेसबुक के लिंक ये हैं :-www.facebook.com/pitamberdutt.sharma.7. मेरा ई मेल पता ये है -: pitamberdutt.sharma@gmail.com.
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आप सब जो मेरे और मेरे मित्रों द्वारा , सम - सामयिक विषयों पर लिखे लेख , टिप्प्णियों ,कार्टूनो और आकर्षक , ज्ञानवर्धक व लुभावने समाचार पढ़ते हो , उन पर अपने अनमोल कॉमेंट्स और लाईक देते हो या मेरी पोस्ट को अपने मित्रों संग बांटने हेतु उसे शेयर करते हो , उसका मैं आप सबका बहुत आभारी हूँ !
आशा है आपका प्यार मुझे इसी तरह से मिलता रहेगा !!आपका क्या कहना है मित्रो ??अपने विचार अवश्य हमारे ब्लॉग पर लिखियेगा !!
सधन्यवाद !!
आपका प्रिय मित्र,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,
R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !
जिला-श्री गंगानगर।
मोबाईल नंबर-09414657511
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh. (raj)INDIA.

 

Sunday, April 12, 2015

"65 वर्षों में कांग्रेस की महान सफलताएं ! जो किसी को नहीं पता "?? - पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक)

जी हाँ मेरे प्यारे पाठक मित्रो ! ऐसी बहुत सारी सफलताएं हैं जो कांग्रेस अपने श्रीमुख से बताना नहीं चाहती , लेकिन आज मैं आपको अवश्य बताऊंगा ! क्योंकि सोनिया जी और राहुल जी के बीच में पार्टी नेतृत्व को लेकर जो झगड़ा  पैदा हो गया था कुछ दिन पहले , और वो अज्ञातवास को चले गए थे !आज वो मान गए हैं कि वो कांग्रेस की किसान रैली तक आजायेंगे ! इसलिए समझोता नहीं होने पर जो भेद उन्होंने खोलने थे , वही भेद हमारे अपुष्ट सूत्रों के हाथ लगे हैं ! जिन्हें मैं आपके समक्ष रख रहा हूँ ! झगड़े वाला भेद भी हमीं ने सबसे पहले नेट पर डाला था !इसी लिए हमारे इस ब्लॉग की पाठक संख्या में लाखों पाठकों की बढ़ोतरी हो गयी है !
                         आप सवाल करोगे कि जब पूरी कांग्रेस पार्टी और मीडिया तक को पता नहीं है कि राहुल बाबा कहाँ हैं तो आपको कैसे पता ?? तो मित्रो ! हमारे पास जो सूचनाएं उन्हीं के सूत्रों द्वारा पंहुचायी जाती हैं हम उन्हें " अपुष्ट " बताकर प्रकाशित कर देते हैं ! अब क्या बिगाड़ लेगा कोई हमारा ??
                 कांग्रेस के अंदरूनी वो भेद जो देश के चंद लोग ही जानते हैं , जिनमे कुछ मिडिया के लोग भी हैं ! उन्होंने शायद "जनहित" में इन्हे प्रकाशित ना किया हो ! उन सबको हम आज आपको बता रहे हैं !  आप इन्हें शेयर कर देना जी , लेकिन किसी को बताना नहीं ! वरना केजरीवाल जी को पता लग गया तो वो कॉंग्रेस्स को जितने नहीं देंगे ! तो ये हैं वो " गहरे रहस्य " :-
           1. नेहरु जी के दादा जी के पिता जी ने गुप्त सुचना देकर गुरु गोबिन्द सिंह जी को मरवाने में मदद की थी ! और वो उस समय मुसलमान थे ! बाद में वे हिन्दू बनकर इलाहाबाद में रहने लग गए !
           2. इंदिरा गांधी जी भी कोई गांधी परिवार में नहीं ब्याही गयी थीं !बाद में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को " इंदिरा कांग्रेस बना दिया था !
           3. मोरार जी देसाई,देवराज अर्स,संगमा ,लोहिया जी जैसे कई नेताओं को बेइज्जत कर पार्टी से निकाल दिया गया था !
           4. इन्होने फिर अपने चमचों को अलग से पार्टी बनाकर देश को मुर्ख बनाकर सत्ता पाने का ऊजार बनाया ! मीडिया ने इस्क़ाम में इनकी भरपूर मदद की ! छोटे नेताओं को मुख्यमंत्रीऔर मंत्री बनाया गया और स्वयं भारत पर राज करते रहे !
           5. इन्होने कम्युनिस्ट लेखकों को धन देकर भारत का इतिहास बदलवाया और ऐसी शिक्षा-पद्धिति तैयार की जिससे कोंग्रेसी नेताओं की वाह-वही होती रहे !
           6. इन्होने हर क्षेत्र में नाम और धर्म बदलवाकर ऐसे आदमियों को देश सौंप दिया जिस से विदेश शक्तियों ने इनकी मदद से भारत को लूटा और बर्बाद किया !
            7. आज भी भारत के कई नेताओं की ब्ल्यू-सीडियां विदेशों में पड़ी हैं , उन्हीं के बल पर इन नेताओं से वो अपना काम निकलवाते हैं ! ये लोग संसद में बैठे वैसे ही क़ानून बनवाते हैं ! भारत के मंत्री भी इन्ही विदेशी दुश्मनों के कहेनुसार ही बनाये जाते थे !
            8. इन्होने ही कई स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेज़ों की मदद से मरवाया !
               राहुल गांधी जी ऐसे और कई राज़ खोलने वाले थे लेकिन कई कोंग्रेसियों ने पैर पकड़ कर उन्हें बड़ी ही मुश्किल से राज़ी किया ! उनकी ये योजना थी की ये राज पब्लिक में उजागर करके जनता की सिम्पथी पाकर वो देश के आगामी प्रधानमंत्री बन जायेंगे ! लेकिन सोनिया के निष्ठावान चम्मचों ने एकबार फिर राहुल को उल्लू बना दिया ! अब वो किसान रैली को सम्बोधित कर भारत के आगामी किसान नेता बनेगे ! आप भी कहिये किसान नेता राहुल गांधी की जय हो !! अपने विचार हमें हमारे ब्लॉग पर अवश्य बताइयेगा और इस लेख को जयादा से जयादा शेयर भी कीजियेगा !
                          


                    
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Wednesday, April 8, 2015

" सूरतगढ़ में "नेताओं",पत्रकारों,"कर्मचारियों"और जनता में से कौन सही ,कौन गलत ??- पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक)

आज कल एक फैशन सा हो गया है की सारे दोष सामने वाले के ऊपर दाल दो और स्वयं बड़ी चालाकी से बच निकलो ! जिसे देखो वो अपनी तर्जनी सीधे किये घूम रहा है ! दोष पे दोष लगाना एक आदत सी हो गयी है ! मुझे ही देख लो मैं भी तो आज कइयों पर दोषारोपण ही तो करूँगा ! जबकि मैं भी इसी जनतंत्र का एक हिस्सा हूँ ! लेकिन फिर भी मैं अपने आपको सही और बाकी सभी तरह के काम करने वालों को दोषी बताऊंगा !
                          सूरतगढ़ में बड़े ही विद्वान लोग विराजते हैं , इसमें ज़रा सा भी लेशमात्र शक मुझे नहीं है और किसी को भी होना नहीं चाहिए ! इसका मतलब ये नहीं है की यहां कोई मुर्ख या भोला आदमी-ओरतें नहीं हैं ! आज की शिक्षा पद्धिति ही ऐसी है की जो ज्यादा पढ़ गया वो " गधा " सा बन जाता है ! वो एक लकीर का फ़कीर बन जाता है ! या यूँ कहें कि कुएं का मेंढक बन जाता है ! ३० साल पढ़ने में बेकार हो जाते हैं तो ५ साल नौकरी ढूंढने में लग जाते हैं ! मेरे कहने का ये मतलब आप हरगिज़ नहीं निकाल लेना जी कि जो लोग मोल डिग्री खरीद लेते हैं , वो समझदार होंगे ??आजकल तो उन लोगों की कद्र होती है जो किसी चीज़ के मिस्त्री होते हैं साहिब !
                        विषय पर आते हैं भूमिका बहुत हो गयी ! तो साहिब बात ये है कि सायना कौन है आखिर ?? वो जनता जो ५ साल हेतु अपना नेता चुनती है और ६ माह बाद ही उस से " धाप " जाती है ! या वो पत्रकार लोग जो अपने अखबारों में या जिनके वो संवाद दाता होते हैं, ऐसे समाचार भेजते हैं वहाँ , कि समाचार पात्र पढ़ने वाला सारा दिन नकारात्मक ही सोचता रहता है !समाचार पात्र का मालिक भी बिना देखे उन विज्ञप्तियों को प्रकाशित करता रहता है जिसे उसके संवाददाता ने बड़ी म्हणत से समाचार बनाया होता है !कईयों ने तो अपने टारगेट भी फिक्स कर रखे हैं जी !
                       अब बात करते हैं हमारे शहर के विभिन्न कार्यालयों में काम कर रहे कर्मचारियों की ! तो जनाब ऐसा है की जिस कर्मचारी ने ये फार्मूला अपना किया कि नेता -पत्रकार और ठेकेदार को संतुष्ट रखना है बाकी सब जाएँ भाड़ में , मुझे क्या पड़ी ?? वो कर्मचारी हमेशां खुशहाल रहता है बस भ्रष्टाचार करता पकड़ा ना जाये ! उपरोक्त चारों तरह के आदमीयों ने ऐसी "व्यूहरचना" कर रख्खी है की आम आदमी चाहे कहीं भी भटक ले उसका कुछ नहीं हो सकता ! आम आदमी जिसके पास भी जाएगा वो बाकी दूसरों पर ऐसे-ऐसे दोष मढ़ेगा कि आम आदमी खुद उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगेगा ! इस प्रकार से वो मुंह नीचे करता, अपने आप ही बड़बड़ाता हुआ घर लौट आएगा !
 अब अगर मैं आपको ये बताने लगूंगा कि ये लॉग कैसे कैसे बेईमानियाँ करते हैं तो लेख बहुत लंबा हो जायेगा ! वो आक सब जानते ही हो ! लोग इनपर आरोप लगाते ही रहते हैं जैसे कल ही हमारे मंत्री जनरल वी.के.सिंह जी ने पत्रकारों को अंग्रेजी में कुछ कह दिया जिससे सभी पत्रकार शोर मचा रहे हैं की देखो गंदा बोल दिया एक मंत्री ने ! लेकिन कोई पत्रकार ये नहीं बोल रहा की जी हाँ हमारे बीच में ऐसे लोग भी हैं जिन्हे हम बाहर निकाल देंगे !क्यों भला ?? क्या सभी पत्रकार ईमानदार हैं ??इसी प्रकार से एक इनकम टैक्स के आयुक्त शर्मा जी ही पकडे गए रिश्वत लेते ! कोई कर्मचारी क्यों नहीं बोलता की हम स्वयं ऐसे करमचारियों को  ढूंढ-ढूंढ कर बाहर का रास्ता दिखाएंगे ! इस से पहले बिहार से एक केंद्रीय मंत्री ने कुछ गलत कह दिया तो उनके विषय पर चर्चा ना करके बस उसे ही महिमामंडित करते रहे , ये हमारे विद्वान पत्रकार नेता प्रवक्ता आदि !
                           तो सही कौन है आज के जमाने में ?? क्या वो जो इनके खिलाफ लिखता,बोलता है ?? क्या सयाना सिर्फ वो ही है जिसको इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है ? बस खाया-पिया और सो गए !

                                           
 " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " नामक ब्लॉग ( समाचार-पत्र ) के पाठक मित्रों से एक विनम्र निवेदन - - - !!
आपका हार्दिक स्वागत है हमारे ब्लॉग ( समाचार-पत्र ) पर, जिसका नाम है - " 5TH PILLAR CORRUPTIONKILLER " कृपया इसे एक समाचार-पत्र की तरह ही पढ़ें - देखें और अपने सभी मित्रों को भी शेयर करें ! इसमें मेरे लेखों के इलावा मेरे प्रिय लेखक मित्रों के लेख भी प्रकाशित किये जाते हैं ! जो बड़े ही ज्ञान वर्धक और ज्वलंत - विषयों पर आधारित होते हैं ! इसमें चित्र भी ऐसे होते हैं जो आपको बेहद पसंद आएंगे ! इसमें सभी प्रकार के विषयों को शामिल किया जाता है जैसे - शेयरों-शायरी , मनोरंजक घटनाएँ आदि-आदि !! इसका लिंक ये है -www.pitamberduttsharma.blogspot.com.,ये समाचार पत्र आपको टविटर , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी मिल जाएगा ! ! अतः ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर इसे सब पढ़ें !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !! मेरा इ मेल ये है : - pitamberdutt.sharma@gmail.com. मेरे ब्लॉग और फेसबुक के लिंक ये हैं :-www.facebook.com/pitamberdutt.sharma.7. मेरा ई मेल पता ये है -: pitamberdutt.sharma@gmail.com.
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Sunday, April 5, 2015

सपना जगाने वाले आंदोलन और सपने तोड़ने वाली सत्ता .........!!


      मैं पीएम नही सेवक हूं। मैं सीएम नही सेवक हूं। याद कीजिये बीते दस महीने में कितनी बार प्रधानमंत्री और बीते एक महीने में कितनी बार केजरीवाल ने दोहराया होगा। और अब तो यूपी की सड़कों पर चस्पा मंत्रियों के पोस्टर में भी सेवक लिखा जाता है। तो क्या वाकई राजनीतिक बदल गई। या फिर सत्ता पाने के बाद हर नेता बदल जाता है। यह सवाल देश में हर 15 बरस बाद आंदोलन के बाद सत्ता परिवर्तन और उसके बाद आंदोलन की मौत से भी समझा जा सकता है और आंदोलन करते हुये सत्ता पाने के तरीके से भी। आजादी के बाद से किसी एक नीति पर देश सबसे लंबे वक्त तक चल पड़ा तो वह मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार तले देश को बाजार में बदलने का सपना है। 1991 से 2011 तक के दौर में देश के हर राजनीतिक दल ने सत्ता की मलाई चखी। हर धारा को आवारा पूंजी बेहतर लगी। हर किसी ने अलग अलग ट्रैक का जिक्र कर मनमोहन के पूंजीवाद का ही रास्ता पकड़ा। जिसने कारपोरेट लूट को उभारा। विकास के नाम पर जमीन हथियाने का खुला खेल शुरु किया । देश की संपदा को मुनाफे की थ्योरी में बदला । बहुसंख्य जनता हाशिये पर पहुंची और इन बीस बरस में देश में सबसे ज्यादा घपले घोटाले हुये। शेयर बाजार घोटाले और झामुमो घूसकांड तक से स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले तक कुल 35 बडे घोटाले पांच प्रधानमंत्रियों के दौर में हो गये । सभी को जोड़ के तो 90 लाख करोड़ की सीधे लूट हुई। खनिज संपदा की लूट पचास लाख करोड़ की अलग से हुई। आंकड़ों में ना फंसे बल्कि आर्थिक सुधार की हवा से गुस्से में आये देश ने अन्ना आंदोलन को जन्म दिया तो फिर अन्ना की ही भाषा राजनीतिक भाषण का हिस्सा बनी जिसे मोदी ने खूब भुनाया और केजरीवाल ने इसी आर्थिक सुधार तले हाशिये पर फेंके जा चुके लोगो से खुद को जोड़ा। लेकिन सवाल तो सत्ता के ना बदलने और आंदोलन के जरीये सत्ता परिवर्तन की उस लहर का है जिसे देश बार बार जीता है और फिर थक कर सो जाता है। संसदीय राजनीति के पन्नों को पलटें तो सड़क पर आंदोलन कर ही वीपी सत्ता तक पहुंचे। राजा नहीं फकीर है हिन्दुस्तान की तकदीर है। 1989 में नारे तो यही लगे। 


लेकिन किसे पता था महज दो बरस के भीतर मंडल कमंडल का संघर्ष भ्रष्टाचार के खिलाफ बने देश के माहौल को ही उलट देगा। जनता को वीपी ने जिस तरह सत्ता में आने के बाद हर दिन उल्लू बनाया उसमें अब के नेता तो टिक भी नहीं सकते। क्योंकि सामाजिक दूरियों को बनानी वाली लकीर इसी दौर में खिंची। किसी को आरक्षण चाहिये था तो किसी को राम मंदिर। देश के साथ गजब का धोखा हुआ। और आंदोलन फेल हुआ । वीपी से ठीक पहले जेपी को याद कीजिये। वीपी से 15 बरस पहले जेपी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ ही आंदोलन करने गुजरात पहुंचे थे। उसके बाद बिहार । और फिर संपूर्ण क्रांति का सपना। लेकिन जेपी के आंदोलन के बाद सारा संघर्ष सत्ता में ही सिमट गया। जेपी आंदोलन नेताओं के लिये सत्ता पाने की याद बन गया और जनता के लिये अप्रैल फूल। और जेपी से 15 बरस पहले लोहिया को याद कीजिये तो समाजवादी सोच की धारा को संसद के भीतर संघर्ष के जरीये शुरुआत कर सड़क पर गैर कांग्रेस वाद का नारा लोहिया ने लगाया। तीन आना बनाम सोलह आना की बहस ने नेहरु की रईसी को डिगाया। तो 1967 में कई राज्यों में गैर काग्रेसी सरकारे बन गयी। लेकिन किसे पता था लोहिया का नाम लेकर समाजवाद का नारा लगाने वाले नेहरु से आगे चाकाचौंध में खो जायेंगे। शायद जनता ने हमेशा इसे महसूस किया इसीलिये तीन दशक तक अपनी मुठ्टी बंद कर रखी। 1984 से 2012 तक कभी किसी को बहुमत की ताकत नहीं दी । लेकिन जब दी तो क्या सीएम और क्या पीएम । हर को जनता ने बहुमत की ताकत दी । लेकिन सत्ता का मिजाज ही कुछ ऐसा निकला कि हर कोई सत्ता को कवच बनाकर जनता को कुचलने में लग गया । कोई नया रास्ता किसी दौर में किसी के पास था नहीं । जो नये रास्ते थे वह भरे हुये पेट वालो के लिये और जश्न को नये नये तरीके से मनाने के थे। वजह यही है कि पीएम मोदी राउरकेला में छाती ठोंक कर अपनी उपलब्धी बताने के लिये मनमोहन की लकीर पहले खींचते हैं । फिर कोयले खादानो से कमाये रकम को बेलौस बोलते हैं। जबकि सवाल खुद की उपलब्धि बताने का नहीं है बल्कि सवाल वादों को पूरा कर जनता की मुश्किलों को खत्म करने का है। इसीलिये जनता को लगता है कि उसे हर दिन अप्रैल फूल बनाया जा रहा है।

क्योंकि मनमोहन सिंह के दौर में जो मुश्किलें मंहगाई, बिजली-पानी,फसल का समर्थन मूल्य, किसानो की बढती खुदकुशी से लेकर रोजगार और शिक्षा स्वास्थय तक की थीं, उसमें कुछ बदलाव आया नहीं है तो जनता सरकार के बेदाग होने से खुश हो जाये या अपनी न्यूनतम जरुरतों के पूरा ना होने पर रोये। क्योंकि बेदाग होकर तो मोरारजी देसाई भी 1977 में पीएम बने । और जेपी के संघर्ष को भी मोरारजी की सत्ता तले जगजीवन राम से लेकर चरण सिह ने भूला दिया। सभी आपस में भिडे तो बहुमत वाली आदर्श सरकार का अंत महज दो बरस में गया। इंदिरा गांधी 1980 में आपातकाल के दाग को धोकर सत्ता में नहीं पहुंची बल्कि जनता पार्टी के जनता से दूर होने और सत्ता के लिये आपस में लडने भिड़ने वालों की वजह से पहुंची। और जनता ने भी दिल खोलकर इंदिरा गांधी का साथ दिया। इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता के कार्यकाल में सबसे ज्यादा 353 सीटें 1980 में मिली। यानी जिस रास्ते देश को ले जाना चाहें, इंदिरा ले जा सकती थीं। लेकिन फिर वहीं हुआ , बहुमत वाली सरकार पंजाब संकट को संभालते संभालते खुद ही रास्ते से भटकीं। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद के हालात ने सत्ता ही नहीं बल्कि इंदिरा गांधी को ही खत्म कर दिया। यानी राजनीति का खूनी अंत भी देश ने देखा। वहीं
राजीव गांधी को तो जनता ने कंधे पर बैठाकर पीएम बनाया। भारतीय राजनीति में इससे बड़ी जीत किसी को इससे पहले मिली नहीं थी। 404 सीटों पर राजीव गांधी की जीत ने तय कर दिया कि आने वाले पांच बरस में देश युवा हो जायेगा । कुछ नये प्रयोग नये तरीके से देश की छाती पर तमगे लगायेंगे। लेकिन बदला कुछ नहीं। जनता हाशिये पर ही रही। बोफोर्स घोटाले की आवाज सत्ता के भीतर से ही उठी। देखते देखते पांच बरस पूरे होने से पहले ही सरकार के सामने ऐसा संकट उभरा कि चुनाव में भ्रष्टाचार ही मुद्दा बन गया और जनता ने राजीव गांधी को अंघेरे में फेंक दिया। लेकिन जिसे चुना उसने जनता को गहरे अंधेरे में ला खड़ा किया।

यानी अब के दौर में बदलाव की राजनीति से खुश ना हों क्योकि जो पहले कभी नहीं हुआ वह इतिहास मोदी ने भी रचा और केजरीवाल ने भी। आजादी के बाद पहली बार जनता ने किसी गैर कांग्रेसी को इतनी ताकत के साथ पीएम बनाया कि वह जो चाहे सो नीतियां बना सकता है। और मोदी के सत्ता संभालने के महज नौ महीने के भीतर ही दिल्ली में केजरीवाल को इतनी सीटे मिल गईं कि वह दिल्ली को जिस तरफ ले जाना चाहे ले जा सकते हैं। मोदी सरकार के वादों की फेरहिस्त की हवा दस महीने पूरे होते होते निकलने लगी और केजरीवाल तो पहले महीने ही हांफते हुये नजर आये। तो क्या नेता सत्ता पाते ही जनता को अप्रैल फूल बना देता है या फिर सत्ता का चरित्र ही ऐसा होता है कि जनता को हर वक्त अप्रैल फूल बनना ही पड़ता है। क्योंकि सवाल सिर्फ मोदी और केजरीवाल का नहीं है । फेहरिस्त खासी लंबी है । केजरीवाल की तर्ज पर बहुमत हासिल कर सत्ता संभाल रहे नेता कर क्या रहे है। सीएम की फेहरिस्त याद कीजिये तो इससे पहले यूपी में अखिलेश यादव को। राजस्थान में वसुधरा राजे सिंधिया को । उडीसा में नवीन पटनायक को। छत्तीसगढ में रमन सिंह को । मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को । और इस फेरहिस्त में एक नाम असम के सीएम रहे प्रफुल्ल महंत का भी याद रखना होगा । 33 बरस की उम्र में प्रफुल्ल महंत तो सीधे कालेज हास्टल से सीएम हाउस पहुंचे थे। केजरीवाल तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करते हुये लोकपाल जपते हुये सीएम बने लेकिन मंहत तो असम में उल्फा के संगीनों के साये के आंदोलन के सामानांतर छात्र आंदोलन करते हुये सीएम बने। यानी कही ज्यादा तेवर के साथ महंत असम के सीएम बने थे। यह अलग बात है कि केजरीवाल को 70 में से 67 सीटें मिली और महंत को 126 में से 67 सीटें मिली थीं। लेकिन असम में खासे दिनों बाद किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिला था तो महंत से उम्मीद भी कुलांचे मार रही थीं। लेकिन अपने सबसे करीबी फूकन से ही मंहत ने राजनीतिक तौर पर दो दो
हाथ वैसे ही किये जैसा दिल्ली में केजरीवाल आंदोलन के साथी प्रशांत भूषण से कर रहे हैं। पांच साल महंत की सरकार भी चली। और आने वाले पांच साल तक केजरीवाल की सरकार को भी कोई गिरा नहीं पायेगा। लेकिन भविष्य का रास्ता जाता किधर है इसे लेकर महंत फंसे तो 1990 में चुनाव हार गये और 1996 में दुबारा सत्ता में लौटे तो राजनीतिक तौर पर इतने सिकुड़ चुके थे कि दिल्ली से लेकर असम की सियासी चालों को ही चलने में वक्त गुजारते चले गये और आज की तारीख में सिवाय एक चुनावी क्षत्रप के अलावे कोई पहचान है नहीं है। जो हर चुनाव में सत्ता के लिये संघर्ष करते हुये नजर आते हैं। तो क्या आने वाले वक्त में केजरीवाल का भी रास्ता इसी दिशा में जायेगा। क्योंकिदिल्ली सीएम से ज्यादा पीएम के अधीन होता है। लेकिन जनता की उम्मीदों ने कुंलाचें तो केजरीवाल के जरीये दिल्ली से आगे देश के लिये भर ली है। तो सवाल अब यही उभर रहा है कि क्या केजरीवाल भी पालिटिशियन हो गये जैसे बाकी राज्यों में क्षत्रप बहुमत के बाद जनता से कटते हुये सिर्फ अपना जोड़ घटाव देखते हैं। क्योंकि तीन बरस पहले यूपी की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ सीएम बनाकर अखिलेश यादव को ताकत दी कि वह अपने तरीके से राज्य चलाये। लेकिन जब चलने लगा तो यूपी सांप्रदायिक हिंसा में उलझता नजर आया और सीएम सैफई में कला संस्कृति में खोये नजर आये। दो बरस पहले राजस्थान, छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश में जनता ने बहुमत के साथ वसुधरा राजे, रमन सिंह और शिवराज सिह चौहान को सीएम बनाया। वसुधरा राजे ना तो किसानो को बिजली पानी देने के वादे पर खरी उतर पायी। उल्टे पहली बार मौसम की मार के बाद खुद को बेसहारा मान चुके 19 किसान मर गये। जयपुर के लिये मेट्रो सपना हो गया। ग्रामीण महिलाओ के लिये भामाशाह योजना के तहत मिलने वाला 800 रुपया दूर की गोटी बन गया। वही छत्तीसगढ में नक्सली संकट के सामने रमन सरकार रेंगती दिखी। छत्तिसगढ घान का कटोरा होकर भी किसान का कटोरा भर न सका। पीडीएस घोटाले के सत्ताधारियो को कटघरे में खड़ा कर दिया। जबकि लगातार मध्यप्रदेश के वोटरों ने शिवराज को जिताया। हैट्रिक बनी। लेकिन युवा बेरोजगारों के सपने व्यापम घोटाले ने चकनाचूर हो गये। सवाल उठा कि सत्ता ही अगर भ्रष्टाचार की जमीन पर खड़ी हो जाये तो वह सिस्टम बन सकता है और रोजगार भर्ती के लिये हुये व्यापम घोटाले ने कुछ ऐसा ही कमाल किया कि परीक्षा देने वाले छात्रों को लगने लगा कि सरकार उन्हे अप्रैल फूल बना रही है। नवीन पटनायक को भी उडिसा में जनता ने दो तिहाई बहुमत की ताकत दी । लेकिन ग्रामीण आदिवासियो की हालात में कोई परिवर्तन आया नहीं । मनरेगा की
लूट ने सरकार की कलई खोल दी। उड़ीसा का नौकरशाह सबसे भ्रष्ट होने का तमगा पा गया । यानी जिस रास्ते मोदी को चलना है । जिस रास्ते केजरीवाल को चलना है वह बहुमत मिलने के बाद नेता होकर हासिल करना मुश्किल है क्योंकि हर राज्य का नेता सीएम बनते ही सत्ताधारी होकर जिस तरह अपने राज्य को
संवारने निकलता है और आंदोलन के पीएम बनकर जिस तरह प्रधानमंत्री सिर्फ बोलते है उसमें नेतागिरी ज्यादा और जन सरोकार खत्म हो जाते है । इसलिये देश हर बार आंदोलन से सपने जगाता है और सत्ता से सपने चूर चूर होते देखता है।

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...