Monday, May 19, 2014

तो अब अमित शाह को बीजेपी अध्यक्ष बनवाना चाहते है..... मोदी .....!!! - ( साभार - पुण्यप्रसून वाजपेयी )


जो यूपी में अपने बूते हर समीकरण को तोडते हुये बीजेपी के लिये इतिहास रच
 सकता है । उसे बीजेपी का अध्यक्ष क्यो नहीं बनाया जा सकता है । बेहद
 महींन राजनीति के जरीये अमित शाह को लेकर अब यही तर्क बीजेपी के भीतर गढे
 जाने लगे है । और संकेत उभरने लगे है कि अगर आरएसएस ने हरी झंडी दे दी तो
 इधर नरेन्द्र मोदी  पीएम पद की शपथ लेगें और दूसरी तरफ अमित शाह बीजेपी
 के अध्यक्ष पद को संभालेगें । यानी सरकार और पार्टी दोनो को अब अपने
 तरीके से चलाना चाहते है नरेन्द्र मोदी । दरअसल बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ
 सिंह चुनाव के वक्त कई बार मोदी सरकार बनने पर कैबिनेट में शामिल होने से
 इंकार किया । लेकिन चुनाव खत्म होते ही सरकार में जैसे ही दूसरे नंबर की
 शर्त रखी वैसे ही बीजेपी के भीतर यह सवाल बडा होने लगा कि अगर राजनाथ
 सिंह मोदी मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बन जाते है तो फिर पार्टी अध्यक्ष
 कौन होगा । ऐसे में पार्टी अध्यक्ष के पद पर नजरे नीतिन गडकरी की भी है ।
 और गडकरी ने चुनाव के बाद जब दिल्ली में सबसे पहले लालकृष्ष आडवाणी के
 दरवाजे पर दस्तक दी तो साथ में इनक्म टैक्स के वह कागज भी लेकर गये जिसके
 जरीये वह बता सके कि उन पर अब कोई दाग नहीं है । और जिस आरोप की वजह से
 उन्होने पार्टी का अध्यक्ष पद छोडा था अब जब उन्हे क्लीन चीट मिल चुकी है
 तो फिर दिल्ली का रास्ता तो उनके लिये भी साफ है ।
 पर खुद को अध्यक्ष बनाने का पत्ता फेंका । और यह बात दिल्ली में जैसे ही
 खुली वैसे ही राजनाथ सिंह भी सक्रिय हुये और अपने लिये रास्ता बनाने में
 लग गये । इसी वजह से उन्होने भी संकेत में सरकार में नंबर दो की हैसियत
 की बात छेड दी । असल में नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट में कौन शामिल होगा या
 मोदी खुद किसे पंसद करेंगे इसे लेकर इतनी उहापोह के हालात बीजेपी के भीतर
 है कि कोई पहले मुंह खोलना नहीं चाहता है । इसलिये नरेन्द्र मोदी किस दिन
 प्रधानमंत्री पद की शपथ लेगें इसपर भी आज संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद
 अधयक्ष राजनाथ सिंह को खुले तौर पर कहना पडा कि अभी तारिख तय नहीं हुई है
 और 20 मई को संसदीय दल की बैठक औपचारिक तौर पर मोदी को पीएम चुने जाने के
 एलान के बाद ही शपथ की तारिख तय होगी । लेकिन पार्टी के भीतर का अंदरुनी
 संकट यह है कि नरेन्द्र मोदी के साथ कौन कौन बतौर कैबिनेट मनिस्टर शपथ
 लेगा इसपर कोई सहमति बनी नहीं है या कहे हर कोई खामोश है । यहा तक की
 वरिष्ट् नेता मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज तक ने खामोशी के बीच इसी
 संकेत को उभारा है कि अगर जीत का सारा सेहरा मोदी के सिर बांधा जा रहा है
 तो फिर मोदी ही तय करें । आलम यह है कि मंत्रिमंडल को लेकर संघ परिवार
 में भी खामोशी है । क्योकि संघ किसी भी रुप यह नहीं चाहता है कि देश के
 सामने ऐसा कोई संकेत जाये जिससे लगे कि संघ की दखल सरकार बनाने में है ।
 इसलिये वरिष्ठो को सम्मान मिलना चाहिये इससे आगे का कोई संकेत नागपुर में
 मुरली मनमोहर जोशी की सरसंघचालक मोहन भागवत की मुलाकात के बाद निकले नहीं
 ।  और वैसे भी मंत्रिमंडल में कौन रहे या कौन ना रहे यह अधिकार
 प्रधानमंत्री का ही होता है । लेकिन पार्टी के अध्यक्ष पद को लेकर अगर
 किसी नाम पर मुहर लगती है तो उसमें आरएसएस की हरी झंडी की जरुरत है । साथ
 ही आडवाणी की सहमति से किसी के लिये भी अच्छी स्थिति हो सकती है । और
 चुनाव के बाद नागपुर में संरसंधचालक से मुलाकात के बाद गडकरी ने पहले
 आडवाणी और उसके बाद सुषमा स्वराज का दरवाजा भी यही सोच कर खटखटाया कि
 जैसे ही बात अध्यक्ष पद को लेकर तो उनका नाम ही सबसे उपर हो । लेकिन
 नरेन्द्र मोदी के कामकाज के तरीको को जानने वालो की माने तो मोदी ना
 सिर्फ सरकार बल्कि संगठन को भी अपने तरीके से साधना चाहते है । और इसके
 लिये अध्यक्ष पद पर अमित शाह को चाहते है । फिर यूपी और बिहार में जिस
 तरह मोदी लहर ने जातिय समीकरण की धज्जिया उडा दी है और यूपी में जिस महीन
 तरीके से अमित शाह ने समूचे प्रदेश के राजनीतिक तौर तरीको को ही बदल दिया
 है उसके बाद बीजेपी ने नये सांसदो के लिये अमित शाह सबसे बडे रणनीतिकार
 और नेता भी हो चले है । यही स्थिति बिहार के नये सांसदो की भी है । वहीं
 नरेन्द्र मोदी संगठन को अपने अनुकुल करने के लिये बीजेपी के
 मुख्यमंत्रियो को भी अपने पक्ष में कर चुके है । छत्तिसगढ के सीएम रमन
 सिंह हो या फिर राजस्थान की सीएम वसुधरा राजे या फिर गोवा के मनमोहर
 पारिकर । सभी मोदी के सामने नतमस्तक है । एकमात्र मध्यप्रदेश के सीएम
 शिवराज सिह चौहान है जो पूरी तरह झुके नहीं है । हालाकि मोदी के पक्ष
 लेने में कोई कोताही वह भी नहीं बरत रहे है । वैसे बीजेपी के भीतर के
 हालात बताते है कि अगर नरेन्द्र मोदी का कद बढता चला जा रहा है और अब
 अमित शाह को अध्यक्ष पद पर बैठाने के लिये जब पत्ता फेंका जा रहा है तो
 उसके पीछे बीजेपी के तमाम नेताओ की अपनी कमजोरी है । बीजेपी के भीतर
 मौजूदा वक्त में किसी नेता के पास इतना नैतिक बल नहीं है कि वह मोदी या
 अमित शाह की किसी थ्योरी का विरोध कर सके । यानी कभी कुशाभाउ ठाकरे या 
 सुंदर सिंह भंडारी जैसे नैतिक बल वाले नेता बीजेपी में होते थे जो ताल
 ठोंक सकते थे । लेकिन मौजूदा वक्त में बीजेपी अपने ही कर्मो से इतनी नीचे
 आ चुकी है कि दिल्ली में बीजेपी का कार्यकर्त्ता हो या देश भर में फैला
 कैडर उसके लिये बीजेपी से ज्यादा नरेन्द्र मोदी मायने रखने लगा है ।
 इसलिये मोदी को पीएम की कुर्सी तक बीजेपी या संघ परिवार ने सिर्फ नहीं
 पहुंचाया है बल्कि उस जनसमुदाय ने पहुंचाया जो बीजे दस बरस में बीजेपी से
 पूरी तरह दूर हो चुका था ।
गडकरी ने संकेत के तौर
 पर खुद को अध्यक्ष बनाने का पत्ता फेंका । और यह बात दिल्ली में जैसे ही
 खुली वैसे ही राजनाथ सिंह भी सक्रिय हुये और अपने लिये रास्ता बनाने में
 लग गये । इसी वजह से उन्होने भी संकेत में सरकार में नंबर दो की हैसियत
 की बात छेड दी । असल में नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट में कौन शामिल होगा या
 मोदी खुद किसे पंसद करेंगे इसे लेकर इतनी उहापोह के हालात बीजेपी के भीतर
 है कि कोई पहले मुंह खोलना नहीं चाहता है । इसलिये नरेन्द्र मोदी किस दिन
 प्रधानमंत्री पद की शपथ लेगें इसपर भी आज संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद
 अधयक्ष राजनाथ सिंह को खुले तौर पर कहना पडा कि अभी तारिख तय नहीं हुई है
 और 20 मई को संसदीय दल की बैठक औपचारिक तौर पर मोदी को पीएम चुने जाने के
 एलान के बाद ही शपथ की तारिख तय होगी । लेकिन पार्टी के भीतर का अंदरुनी
 संकट यह है कि नरेन्द्र मोदी के साथ कौन कौन बतौर कैबिनेट मनिस्टर शपथ
 लेगा इसपर कोई सहमति बनी नहीं है या कहे हर कोई खामोश है । यहा तक की
 वरिष्ट् नेता मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज तक ने खामोशी के बीच इसी
 संकेत को उभारा है कि अगर जीत का सारा सेहरा मोदी के सिर बांधा जा रहा है
 तो फिर मोदी ही तय करें । आलम यह है कि मंत्रिमंडल को लेकर संघ परिवार
 में भी खामोशी है । क्योकि संघ किसी भी रुप यह नहीं चाहता है कि देश के
 सामने ऐसा कोई संकेत जाये जिससे लगे कि संघ की दखल सरकार बनाने में है ।
 इसलिये वरिष्ठो को सम्मान मिलना चाहिये इससे आगे का कोई संकेत नागपुर में
 मुरली मनमोहर जोशी की सरसंघचालक मोहन भागवत की मुलाकात के बाद निकले नहीं
 ।  और वैसे भी मंत्रिमंडल में कौन रहे या कौन ना रहे यह अधिकार
 प्रधानमंत्री का ही होता है । लेकिन पार्टी के अध्यक्ष पद को लेकर अगर
 किसी नाम पर मुहर लगती है तो उसमें आरएसएस की हरी झंडी की जरुरत है । साथ
 ही आडवाणी की सहमति से किसी के लिये भी अच्छी स्थिति हो सकती है । और
 चुनाव के बाद नागपुर में संरसंधचालक से मुलाकात के बाद गडकरी ने पहले
 आडवाणी और उसके बाद सुषमा स्वराज का दरवाजा भी यही सोच कर खटखटाया कि
 जैसे ही बात अध्यक्ष पद को लेकर तो उनका नाम ही सबसे उपर हो । लेकिन
 नरेन्द्र मोदी के कामकाज के तरीको को जानने वालो की माने तो मोदी ना
 सिर्फ सरकार बल्कि संगठन को भी अपने तरीके से साधना चाहते है । और इसके
 लिये अध्यक्ष पद पर अमित शाह को चाहते है । फिर यूपी और बिहार में जिस
 तरह मोदी लहर ने जातिय समीकरण की धज्जिया उडा दी है और यूपी में जिस महीन
 तरीके से अमित शाह ने समूचे प्रदेश के राजनीतिक तौर तरीको को ही बदल दिया
 है उसके बाद बीजेपी ने नये सांसदो के लिये अमित शाह सबसे बडे रणनीतिकार
 और नेता भी हो चले है । यही स्थिति बिहार के नये सांसदो की भी है । वहीं
 नरेन्द्र मोदी संगठन को अपने अनुकुल करने के लिये बीजेपी के
 मुख्यमंत्रियो को भी अपने पक्ष में कर चुके है । छत्तिसगढ के सीएम रमन
 सिंह हो या फिर राजस्थान की सीएम वसुधरा राजे या फिर गोवा के मनमोहर
 पारिकर । सभी मोदी के सामने नतमस्तक है । एकमात्र मध्यप्रदेश के सीएम
 शिवराज सिह चौहान है जो पूरी तरह झुके नहीं है । हालाकि मोदी के पक्ष
 लेने में कोई कोताही वह भी नहीं बरत रहे है । वैसे बीजेपी के भीतर के
 हालात बताते है कि अगर नरेन्द्र मोदी का कद बढता चला जा रहा है और अब
 अमित शाह को अध्यक्ष पद पर बैठाने के लिये जब पत्ता फेंका जा रहा है तो
 उसके पीछे बीजेपी के तमाम नेताओ की अपनी कमजोरी है । बीजेपी के भीतर
 मौजूदा वक्त में किसी नेता के पास इतना नैतिक बल नहीं है कि वह मोदी या
 अमित शाह की किसी थ्योरी का विरोध कर सके । यानी कभी कुशाभाउ ठाकरे या
 सुंदर सिंह भंडारी जैसे नैतिक बल वाले नेता बीजेपी में होते थे जो ताल
 ठोंक सकते थे । लेकिन मौजूदा वक्त में बीजेपी अपने ही कर्मो से इतनी नीचे
 आ चुकी है कि दिल्ली में बीजेपी का कार्यकर्त्ता हो या देश भर में फैला
 कैडर उसके लिये बीजेपी से ज्यादा नरेन्द्र मोदी मायने रखने लगा है ।
 इसलिये मोदी को पीएम की कुर्सी तक बीजेपी या संघ परिवार ने सिर्फ नहीं
 पहुंचाया है बल्कि उस जनसमुदाय ने पहुंचाया जो बीजे दस बरस में बीजेपी से
 पूरी तरह दूर हो चुका था ।

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