Wednesday, May 7, 2014

" मुलायम की बिसात पर क्या राहुल ओर क्या मोदी " ???? ( साभार - श्री पुण्य प्रसन्न वाजपेयी जी )


           नेताजी से ज्यादा यूपी की राजनीति कोई नहीं समझता। और सियासत की जो बिसात खुद को पूर्वाचल में खडा कर नेताजी ने बनायी है, उसे गुजरात से आये अमित शाह क्या समझे और पुराने खिलाड़ी राजनाथ क्या जाने। हां, कल्याण सिंह जरुर नेताजी की बिसात को समझ रहे है इसलिये सबसे पहले उन्होंने ही खतरे की घंटी बजायी है, जिसके बाद अमित शाह से लेकर नरेन्द्र मोदी तक को चुनाव आयोग पर निशाना साधना पड़ा है। इलाहबाद से अमेठी और आंबेडकरनगर से बनारस तक कही भी यूपी की सियासी जमीन सूंघकर सियासत करने के सवाल पर ना सिर्फ समाजवादी पार्टी के छुटभय्या नेता हो या बीजेपी के पढे-लिखे स्वयंसेवक सभी बात बात में मुलायम की राजनीत को ही डी-कोड करने में ही लगे है। समूचे पूर्वाचंल की हवा में नरेन्द्र मोदी घुले हुये जरुर है लेकिन जिन्होंने नेताजी पर दांव लगा रखा है अगर उनकी माने तो मुलायम ने बहुत सोच कर आजमगढ में कदम रखा है, जो अपना दल मुज्जफरनगर दंगों के साये में मुलायम सिंह यादव को आजमगढ में घेरने को तैयार है उसके भीतर भी सवाल एक ही है कि मुस्लिमों के बीच नेताजी ने खुद को खडा कर आखिरी दांव खेला है या फिर यूपी की राजनीति के जरीये दिल्ली की सत्ता को साधने की चौसर बिछायी है। अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ मुलायम ने ताल ठोंककर सपा का कोई उम्मीदवार मैदान में नही उतारा।

                 लेकिन राहुल जीते या हारे इसका पांसा नेताजी के हाथ में है। बनारस में मोदी के खिलाफ कांग्रेसी अजय राज को समर्थन देने वाले मुख्तार अंसारी के पीछे नेताजी की ही बिसात है, जो मोदी के लिये बनारस में मुश्किल खड़ा कर रही है। तो क्या बनारस की चौसर का पांसा भी नेताजी ने अपने पास रखा है। यह सवाल अब केजरीवाल के बदलते सुर के साथ बनारस की गलियों में भी छाने लगा है। क्योंकि केजरीवाल कल तक कह रहे थे अमेठी और बनारस में राहुल और मोदी हार जाये तो बीजेपी और कांग्रेस पार्टी टूट जायेगी इतिहास बदल जायेगा। वहीं पूर्वाचल में वोटिंग शुरु होने से एन पहले अब केजरीवाल बनारस के सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र में रोड शो और नुक्कड सभाओं में कहने लगे है कि दिल्ली में कांग्रेस की सरकार तो जा ही रही है, बीजेपी की सरकार भी नहीं बन रही। लेकिन दिल्ली की सत्ता को संभालेगा यूपी से चुनाव जीतने वाला ही। तो सवाल सीधे है । क्या अमेठी और बनारस के जिस पांसे को मुलायम सिंह हाथ में लिये आजमगढ़ पहुंचे हैं, वह राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी के लिये गले की फांस बनने वाली है। क्योंकि अमेठी की राजनीति अगर लोकसभा में गांधी परिवार पर ही टिकी है तो उसके पीछे मुलायम का कंधा है। राहुल गांधी को 2009 में कुल पडे 646642 वोट में से 464195 वोट मिले थे। यानी करीब 72 फिसदी वोट राहुल गांधी को मिले थे।                लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में अमेठी की पांचो विधानसभा सीट [ तिलोई,सालोन,जगदीशपुर,गौरीगंज, अमेठी] के वोट को देखे तो कांग्रेस को 259459 वोट और सपा को 281192 वोट मिले थे। यानी राहुल को कोई हरा ही नहीं सकता है जबतक नेताजी ना चाहे। वही 2012 में बनारस लोकसभा के तहत आने वाली विधानसभा सीटों को देखे तो सपा को 182931 वोट मिले थे। यानी जो लडाई 2009 में मुरली मनोहर जोशी और मुख्तार अंसारी ने लड़ी, उसमें जोशी को 203122 वोट मिले थे तो अंसारी को 185911 वोट मिले थे। यानी इस बार मोदी के सामने अजय राय खड़े जरुर है लेकिन जीतगा कौन इसकी कुंजी मुलायम के हाथ में है। हालांकि मुलायम ने अपने मंत्री चौरसिया को चुनाव मैदान में उतारा है। लेकिन अब मुलायम का गणित सीधा हो चला है कि अगर मोदी का नाम हवा में गूंज रहा है तो जमीन पर डर से मुस्लिम वोट बैंक हर उस जातिय समीकरण के साथ आ खड़ा हो चुका है जो बीजेपी को हरा दें । मौजूदा वक्त में पूर्वाचल की 33 सीटो में से बीजेपी के पास सिर्फ 4 सीट है। जिसमें आजमगढ़ भी है। जहां मुलायम खुद चुनाव लड रहे है। और मुलायम पूर्वाचल की अपनी हर सभा दो ही सवाल हवा में उछाल रहे है पहला मोदी को बीपी के लोग ही पीएम बनने नहीं देंगे। और दूसरा जब बीजेपी के भीतर खटपट है कि अपने बूते बीजेपी सत्ता में आ नहीं सकती तो फिऱ दिल्ली में बिना मुलायम कौन सत्ता में बैठ सकता है। संकेत बहुत साफ है कि यूपी में राहुल और मोदी तक की हार जीत अगर मुलायम के वोट बैक के हाथ में है तो फिर 16 मई के बाद मुलायम के अलावे और कौन बचेगा जिसका कद दिल्ली की राजनीति में फिट बैठता हो। और मुलायम की इसी राजनीति के संकेत पहली बार खुले तौर पर बनारस में केजरीवाल तक भी पहुंचे है कि अगर बनारस और अमेठी यासी वोट बैंक की तिकड़म में फंसा हुआ है तो फिर दिल्ली में दस्तक देने को तैयार यूपी में चुनाव लड रहे कद्दावरो की हार के बीच अमेठी या बनारस से "आप" की जीत क्यो संभव नहीं है।
                          असर इसी का है कि कल फैजाबाद में मोदी ने राम बाण छोडा तो आज डुमरियागंज में जाति का सवाल उठाया। यानी जिस बीजेपी या संघ परिवार ने हमेशा मंडल को खारिज किया और कंमडल हाथ में लेकर चलने से कतरायी नहीं उसी मंडल - कंमडल को मोदी ने एक साथ उठाया। दरअसल पूर्वांचल में जातिय समीकरण अगर नहीं टूटा तो बीजेपी की जीत का सपना धरा का धरा रह जा सकता है। क्योंकि मुलायम की राजनीति से घबरायी बीजेपी ने पूर्वाचल को लेकर हर प्रयोग किये है। कैसरगंज में सपा छोडकर आये दबंग ब्रजभूषण को तो गौडा में सपा छोड़कर आये कीर्तिवर्धन को बीजेपी ने टिकट दे दिया। बीएसपी से बर्खास्त ददन मिश्रा को श्रवास्ती से बीजेपी ने टिकट दे दिया और डुमरियागंज में कांग्रेस छोड़कर आये जगदम्बिका पाल के लिये तो मोदी रैली करने भी पहुंच गये । दरअसल, चुनाव के आखरी दौर में बीजेपी इस सच को समझ रही है कि पूर्वाचल में नेताजी चुनाव लड़ भी रहे है और लड़वा भी रहे है। यानी दवा में मोदी जरुर है लेकिन जमीन पर नेताजी की बिसात है। जिसे तोड़ना जरुरी है। वहीं नेताजी की सियासत की माने तो वह मोदी का चक्रव्यू यूपी में तोड़ चुके हैं।



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