Saturday, August 9, 2014

" संसद में सैंकड़ों रेखा-सचिन हैं " - साभार पुण्य प्रसुन वाजपेयी !!


कैमरे की चमक। सितारों की चकाचौंध। हर नजर रेखा और सचिन की तरफ। यादकीजिये तो 2012 में संसद के भीतर रेखा और सचिन तेदूलकर को लेकर संसदका कुछ ऐसा ही हाल था। तो क्या संसद की चमक भी इनके सामने घूमिल है।जी  बिलकुल। आवाज कोई भी उठाये। कहे कोई भी कि संसद में ना तो सचिनतेदुलकर दिखते हैं और ना ही रेखा। लेकिन संसद के हालात बताते है कि यहां हरदिन पहुंच कर भी कोई काम नहीं हो पाता है और सैकड़ों सांसद ऐसे हैंजिन्हेंजनता ने चुना है लेकिन वह ना तो कोई सवाल पूछते हैं। ना चर्चा में शामिल होतेहै। खासकर मोदी सरकार बनने के बाद तो लोकसभा में जो सांसद हमेशा हर मुद्देपर अपनी राय रखने में सबसे आगे रहते थे वह सांसद भी खामोश है। आलम यहहै कि लालकृषण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी तक सोलहवीं लोकसभा में
कभी बोलते देखे ही नहीं गये। आडवाणी और करिया मुंडा समेत समेत बीजेपी केदर्जनभर से ज्यादा सांसद ऐसे हैंजिनकी हाजिरी सौ फीसदी रही लेकिन ना तोचर्चा में हिस्सा लिया ना ही कोई सवाल खड़ा किया। मसलनबीजेपी केलीलाधाराबाई खोडजी ,नीलम सोनकरप्रभात सिंह,रमेश बैस,रमेश चन्दरमेशचंदप्पाराजकुमार सिंहअशोक कुमार दोहारेजनक राम आदि 

आप कह सकते है कि अभी तो 16वी लोकसभा को सौ दिन भी नहीं हुये हैं तोअभी से यह कैसे कह दिया जाये कि लोकसभा में सांसद खामोश रहते है तो फिर15वी लोकसभा का हाल देख लीजिये। कांग्रेस के चीर परिचित चेहरे अजय माकनने पांच बरस के दौरान ना कोई सवाल पूछा ना ही किसी चर्चा में शामिल हुये। औरना ही कोई प्राइवेट बिल रखा। और कांग्रेस के सबसे कद्दावर चेहरे राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने भी सिर्फ दो बार बोलने की जहमत उठायी वह भी चर्चा में शरीकहोकर। इसके अलावा कभी कोई सवाल नहीं उठाया और ना ही कोई प्राइवेट बिल केबारे में सोचा। और संसद में बोले भी तो तब जब लोकपाल को लेकर अन्नाआंदोलन से दिल्ली थर्रा रही थी। 26 अगस्त को पहलीबार राहुल गांधी गुस्से मेंलगातार 5 मिनट तक बोले। और इसके बाद मनमोहन सरकार जब लोकपाल बिल लेकर आये तो राहुल गांधी 13 दिसबंर 2013 को बोले। बाकि वक्त हमेशा खामोश रहे। इसी तर्ज पर सोनिया गांधी 15 लोकसभा में पहली बार 13 मई2012 को तब बोली जब संसद के साठ बरस पूरे हुये। 

और उसके बाद 26 अगस्त 2013 को सोनिया गांधी तब बोली जब खाद्द सुरक्षाबिल पेश किया गया। अब आप कल्पना कीजिये यूपी की कानून व्यवस्था को लेकरयूपी के सीएम की सांसद पत्नी डिंपल यादव कल ही संसद में बोल रही थी। लेकिन2009 से 2014 के दौरान यानी 15 लोकसभा में डिंपल यादव ने कुछ कहा हीनहीं। ना कोई सवाल  ना किसी चर्चा में शरीक  यही हाल काग्रेस के सीपीजोशीऔर वीरभ्रद्र सिंह का भी रहा  दोनों की हाजिरी 95 फीसदी रही लेकिन कभी संसदमें यह नहीं बोले । वैसे औसत निकालेंगे तो हर सत्र में सौ से ज्यादा सांसद ऐसेनिकलेंगे जो आते हैं। फिर चले जाते हैं। लेकिन कुछ नहीं बोलते । आंकडों केलिहाज से समझे तो 16 वी लोकसभा यानी मौजूदा लोकसभा में अभीतक 72सांसदों की कोई भागेदारी की ही नहीं है। 101 सांसदों ने किसी चर्चा में हिस्सा हीनहीं लिया है। 198 सांसदों ने कोई सवाल नहीं उठाया है। वहीं 15 वी लोकसभा केदौर में 40 सांसदो ने कोई चर्चा नहीं। 63 सांसदों ने कोई सवाल नहीं उठाया औरहर शुक्रवार को ढाई घंटे का जो वक्त प्राइवेट बिल के लिये होता है उससे 450सांसद दूर रहे। जबकि 14 लोकसभा यानी 2004 से 2009 के दौरान 42 सांसदोंने कोई चर्चा नहीं की। 53 सांसदों ने कोई सवाल ही नहीं उठाया। अब इस अक्स मेंअगर याद करें तो जून 2012 में जब सचिन तेंदुलकर ने सांसद की शपथ ली थीतो उन्होंने कहा थामैं संसद में खेल से जुड़े मुद्दे उठाना चाहता हूं। जाहिर है ऐसाआजतक तो हुआ नहीं कि सचिन तेंदुललर कोई मुद्दा उठाये या रेखा ने कभी कुछकहा भी हो। लेकिन नामुमकिन सांसद ऐसा ही करते रहे हो ऐसा भी नहीं है। पहलीसंसद यानी 1952 से अब तक क़रीब 200 लोग नामांकित किए जा चुके हैंइनमेंनामी डॉक्टरलेखकपत्रकारकलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। वैसेरेखा कुछ बोले या ना बोले लेकिन पहली संसद में मनोनित थ्वीराजकपूर ने1952 में अपने भाषण में ‘राष्ट्रीय थियेटर’ शुरू करने की बात कही थी. औरउन्होंने तब की बंबई में थियेटर बनाया भी। वहीं 1953 में नर्तक रुक्मिणी देवी अरुंदाले की मदद से जानवरों के विरुद्ध क्रूरता रोकने के लिए एक विधेयक पेशकिया गया। 

कार्टूनिस्ट अबू को राज्यसभा में इंदिरा गांधी ले कर आयी थीं और 1973 मेंकार्टूनिस्ट अबू अब्राहम ने सूखापीड़ित इलाक़ों की अपनी यात्रा के बारे में बेहदखूबसूरती से वर्णन किया था। जिसके बाद सूखा प्रभावित इलाको के लिये सरकारने पैकेज जारी किया। और तो और 1975 में जब इमरजेन्सी लागू हुई तो अबूइब्राहिम ने अपने कार्टून के जरीये राष्ट्रपति पर चोट की। उन्होंने तबके राष्ट्रपति कोबाथ टब में आपातकाल लागू करने वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते हुये दिखायाथा। भारत के जाने माने लेखकों में एक आरके नारायण ने संसद में अपने पहलेभाषण में भारी-भरकम स्कूल बैग को हटाने की मांग की थी। आरके नारायणन नेकहा थाभारी भरकम बैग लटकाकर बच्चे झुक जाते हैं। चलते वक्त चिंपाज़ी कीतरह उनके हाथ आगे की ओर लटके रहते हैं। मुझे ऐसे कुछ केस पता हैंजिससे बच्चों को इससे रीढ़ की गंभीर बीमारी से जुझना पड़ रहा है। उसके बाद सरकार नेस्कूलो को निर्देश दिया था कि बच्चों के बैग हल्के होने चाहिये। तो आखिरी सवालयही है अब किसी सांसद या क्या उम्मीद की जाये या सचिन या रेखा से कोईउम्मीद क्यों की जाये। जब उनकी अदा ही हर दिन चलने वाले संसद के खर्च सेज्यादा कमाई हर दिन कर लेती हो। तो फिर संसद की साख पर सचिन की अदा तोभारी होगी ही। दरअसलरेखा और सचिन तो फिर भी नामांकित हुये हैं। लेकिनसिनेमायी पर्दे से जनता के बीच जाकर वोट मांगकर जीतने वाली आध्रप्रदेश कीविजया शांति और बालीवुड के सिने कलाकार धर्मेन्द्र तो बकायदा जनता कीआवाज लोकसभा में देने के लिये चुने गये। लेकिन विजया शांति 2009 से 2014तक कुछ नहीं बोली और धर्मेन्द्र 2004 से 2009 तक कुछ नहीं बोले। तो इसकामतलब क्या निकाला जाये जिन्होने राजनीति का ककहरा नहीं पढा होता वह संसदमें खामोश हो जाते है  असल में मुश्किल यह नहीं है कि सांसद संसद के भीतरकितना बोलते है मुश्किल यह है कि कुल सौ सांसदो से ही समूची संसद चलती है जो हर विषय पर खूब बोलते है  खूब सवाल उठाते है और इनके खूब बोलनेया खूब सवाल उठाने से आम जनता को कोई लाभ नहीं होता बल्कि औगोगिकघरानो से लेकर कारपोरेट की मुस्किलो या पैसो वालो के उलझे रास्ते ठीक करने केलिये ही चर्चा होती है और सवाल उठाये जाते है  इसलिये मंहगाई पर चर्चा होतीहै तो सदन से 73 पिसदी सांसद गायब होते है  भ्रष्ट्राचार पर चर्चा होती है तो 55फिसदी सासंद सदन से बाहर होते है। कालेधन पर चर्चा होती है तो 80 पिसदीसत्ताधारी सांसद गायब होते है। वैसे बीते दस बरस का सच यही है कि 200सांसदो ने कभी कोई सवाल उठाया ही नहीं और ना ही चर्चा में हिस्सा लिया लेकिनवह रेखा या सचिन की तरह नहीं निकले की संसद आये भी नहीं  लेकिन संसदसे निकलता क्या है यह तय जरुर कर लिजिये क्योकि बीते 10 बरस में लोकसभाया राज्यसभा का औसतन पचास फिसदी से ज्यादा वक्त हंगामें में हवा हवाई होगया  और जो हर दिन लोकसभा या राज्यसभा में पहुंच कर हंगामा कर निकलगये उन्हे भी दो हजार रुपये प्रतिदिन की मेहनत के मिल गये  यानी देश मेंऔसतन शारीरिक श्रमकर जितनी कमाई महीने भर में होती है उतनी कमाईसांसद को संसद ना चलने देने के बाद एक दिन में ही मिल जाती है 

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