मित्रो !! आज का विषय बड़ा ही गंभीर है इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है की आप यहां लिखे शब्दों को अन्यथा ना लेवें ! जैसा कि शीर्षक से ही ज्ञात हो रहा है की आज पूरा विश्व जिन परेशानियों से जूझ रहा है उनमे से ज्यादातर समस्याएं नारी से ही किसी ना किसी रूप से सम्बंधित हैं ! संसार में मुख्यतः 5 तरह की धार्मिक धाराएं चल रही हैं ! जिनमें स्त्री को अलग-अलग मान्यतें दी गयी हैं ! पहली धारा - सनातन धर्म की,दूसरी धारा - मुस्लिम धर्म की,तीसरी धारा - ईसाई,चौथी यहूदी और पांचवीं धारा - पारसी धर्म की है ! ऊपरी तौर पर हर धर्म की धारा में नारी को पूजनीय और सन्मानित दर्जा दिया गया है !
फिर क्या कारण है की जिधर देखो उधर स्त्री पर तरह-तरह के अत्याचार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ स्त्रियों की ना सिर्फ बोली लगायी जा रही है बल्कि स्त्री खुद बिकने को तैयार दिखाई पड़ती है ? उसे एक वस्तु समझकर ख़रीदा और बेचा जा रहा है !तो दूसरी तरफ एक स्त्री दूसरी स्त्री की ही दुश्मन है !! क्यों ?? यहां तलक कि आज स्थिति ये भी हो जाती है कि हमारा क़ानून ,कई परिवार और पुरुष समाज " छिनाल-नारियों " बेबस दिखाई देने लगता है !! क्यों ??क्यों आज नारी एक अच्छी माँ , पत्नी,बहन,भाभी,दोस्त,सास,नानी,दादी और कामगार नहीं बानी रह सकती ?? क्या केवल उसके इर्द-गिर्द का वातावरण ही दोषी है ?? उसका अपना व्यवहार इन सबके लिए दोषी क्यों नहीं है ?? आज ही फेसबुक पर मेरे एक दोस्त ने लिखा की आज की नारियां क़ानून की धाराओं को बड़े ही अच्छी तरह से जानती हैं इसलिए डरती नहीं हैं ," डर्टी " बातें धड़ल्ले से करती हैं !
एक तरफ तो आज की नारी पुरुष के समान बैठने का अधिकार मांगती है और दूसरी और वो अबला होने का भी फायदा चाहती है !! क्यों भला ??? ये आम देखने को मिल जाता है कि लडकियां ही लड़कों को ज्यादातर उकसाती हैं सेक्स करने को ! क्योंकि उसके इर्द-गिर्द सेक्स ही परोसा जा रहा है !आज कोई विज्ञापन, चल-चित्र, नाटक देख लीजिये हर तरफ यही कुछ दिखाया-पढ़ाया और समझाया जा रहा है !!
अगर आप नारी पक्ष के हैं तो आप ये कहेंगे - एक महिला लेखक मित्र की कलम से -
“पुरुषस्य भाग्यम, त्रिया चरित्रं देवो : न जानति” संस्कृत में कही गयी यह उक्ति संपूर्ण स्त्री मानसिकता को कठघरे में ला खड़ा करती है. पर क्या पुरुष पूरी तरह से दोषमुक्त हैं ? क्या उनकी सोच अवसरवादिता का परिचय नहीं देती ? क्या यह सच नहीं कि पुरुष वर्ग ने अपनी सहूलियत के अनुसार ऐसे सामाजिक नियम बनाये, जिसके बूते वे स्त्रियों पर शासन कर सकें? पत्नी के होते हुए भी, परायी औरत को बरगलाना क्या उनमें से कइयों की फितरत नहीं रही? नारी को कोमलांगी करार देकर ये कभी पिता, कभी पति और कभी भाई के रूप में उसके रक्षक बन जाते हैं; पर इसके बदले उसके अस्तित्व को गिरवी रख लेते हैं. क्या ये उनके दोगले चरित्र की निशानी नहीं? गृहलक्ष्मी को परिवार के लिए छोटा सा निर्णय लेने की आज़ादी भी नहीं . फिर वो काहे की लक्ष्मी ? अपनी बात मनवाने के लिए यदि वह त्रिया हठ का सहारा ले तो अचरच कैसा ?! एक कन्या और उसके भाइयों के लालन पालन, शिक्षा यहाँ तक कि खान पान में जो भेदभाव बरता जाता है, वही व्यवहार बच्ची में ऐसी कुंठा पैदा करता है , जो बड़ी होने पर उसके त्रिया हठ का रूप ले लेती है. पर आजकल परिवार के समीकरण बदल रहे हैं. जागरूक माँ बाप बेटी को महज इसलिए शिक्षा नहीं देते, ताकि उसका विवाह कर सकें. बल्कि उसे समग्र विकास का अवसर प्रदान करते हैं. इंदिरा गाँधी, किरण बेदी और सायना नेहवाल जैसी शख्सियतें इस बात का जीवंत उदाहरण पेश करतीं हैं कि औरत का दखल राजनीति से लेकर खेलकूद तक, जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है. अभी भी कुछ घरों में सास- बहू, जेठानी – देवरानी और ननद- भावज के बीच अवांछित टकराव होते रहते हैं. दुर्भाग्य से उन स्त्रियों को इतनी बुद्धि नहीं कि नारी होकर नारी की खिलाफत ठीक नहीं. फिर भी, आज के परिप्रेक्ष्य में औरत को ये इलज़ाम देना कहाँ तक सही है ?
और अगर आप पुरुष के पक्ष के होंगे तो ये कहेंगे -श्री राहुल कुमार जी लिखते हैं -
आपसे मित्रता करके मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है ! आपके जनम दिन की आपको हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं !! कृपया स्वीकार करें ! आपका जीवन सदा खुशियों से भरा रहे !! मेरा फेसबुक,गूगल+,ब्लॉग,पेज और विभिन्न ग्रुपों की सदस्य्ता ग्रहण करने का एक ख़ास उद्देश्य है ! मैं एक लेखक-विश्लेषक और एक समीक्षक हूँ ! राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय ज्वलंत विषयों पर लिखना -पढ़ना मेरा शौक है ! मैं एक साधारण पढ़ालिखा और साफ़ स्वभाव का आदमी हूँ ! भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्यार करता हूँ ! भारत देश के लिए अगर मेरे प्राण काम आ सकें तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानूंगा !परन्तु किसी संत-राजनितिक दल और नेता हेतु नहीं !मैं एक बिन्दास स्वभाव का आदमी हूँ ! मेरी मित्र मण्डली में मेरे बच्चे और रिश्तेदार भी शामिल हैं ! तो भी मैं सभी विषयों पर अपने खुले विचार रखता हूँ !! आप सब का हार्दिक स्वागत है मेरे जीवन में !! मैं आपकी यादों - बातों को संभल कर रखूँगा !!
मित्रो !! मैं अपने ब्लॉग , फेसबुक , पेज़,ग्रुप और गुगल+ को एक समाचार-पत्र की तरह से देखता हूँ !! आप भी मेरे ओर मेरे मित्रों की सभी पोस्टों को एक समाचार क़ी तरह से ही पढ़ा ओर देखा कीजिये !!
" 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " नामक ब्लॉग ( समाचार-पत्र ) के पाठक मित्रों से एक विनम्र निवेदन - - - !!
आपका हार्दिक स्वागत है हमारे ब्लॉग ( समाचार-पत्र ) पर, जिसका नाम है - " 5TH PILLAR CORRUPTIONKILLER " कृपया इसे एक समाचार-पत्र की तरह ही पढ़ें - देखें और अपने सभी मित्रों को भी शेयर करें ! इसमें मेरे लेखों के इलावा मेरे प्रिय लेखक मित्रों के लेख भी प्रकाशित किये जाते हैं ! जो बड़े ही ज्ञान वर्धक और ज्वलंत - विषयों पर आधारित होते हैं ! इसमें चित्र भी ऐसे होते हैं जो आपको बेहद पसंद आएंगे ! इसमें सभी प्रकार के विषयों को शामिल किया जाता है जैसे - शेयरों-शायरी , मनोरंजक घटनाएँ आदि-आदि !! इसका लिंक ये है -www.pitamberduttsharma.blogspot.com.,ये समाचार पत्र आपको टविटर , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी मिल जाएगा ! ! अतः ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर इसे सब पढ़ें !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !! मेरा इ मेल ये है : - pitamberdutt.sharma@gmail.com. मेरे ब्लॉग और फेसबुक के लिंक ये हैं :-www.facebook.com/pitamberdutt.sharma.7. मेरा ई मेल पता ये है -: pitamberdutt.sharma@gmail.com.
जो अभी तलक मेरे मित्र नहीं बन पाये हैं , कृपया वो जल्दी से अपनी फ्रेंड-रिक्वेस्ट भेजें , क्योंकि मेरी आई डी तो ब्लाक रहती है ! आप सबका मेरे ब्लॉग "5th pillar corruption killer " व इसी नाम से चल रहे पेज , गूगल+ और मेरी फेसबुक वाल पर हार्दिक स्वागत है !!
आप सब जो मेरे और मेरे मित्रों द्वारा , सम - सामयिक विषयों पर लिखे लेख , टिप्प्णियों ,कार्टूनो और आकर्षक , ज्ञानवर्धक व लुभावने समाचार पढ़ते हो , उन पर अपने अनमोल कॉमेंट्स और लाईक देते हो या मेरी पोस्ट को अपने मित्रों संग बांटने हेतु उसे शेयर करते हो , उसका मैं आप सबका बहुत आभारी हूँ !
आशा है आपका प्यार मुझे इसी तरह से मिलता रहेगा !!आपका क्या कहना है मित्रो ??अपने विचार अवश्य हमारे ब्लॉग पर लिखियेगा !!
सधन्यवाद !!
आपका प्रिय मित्र,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,
R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !
जिला-श्री गंगानगर।
मोबाईल नंबर-09414657511
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BY :- " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG . READ,SHARE AND GIVE YOUR VELUABEL COMMENTS DAILY . !!
Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh. (raj)INDIA.
फिर क्या कारण है की जिधर देखो उधर स्त्री पर तरह-तरह के अत्याचार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ स्त्रियों की ना सिर्फ बोली लगायी जा रही है बल्कि स्त्री खुद बिकने को तैयार दिखाई पड़ती है ? उसे एक वस्तु समझकर ख़रीदा और बेचा जा रहा है !तो दूसरी तरफ एक स्त्री दूसरी स्त्री की ही दुश्मन है !! क्यों ?? यहां तलक कि आज स्थिति ये भी हो जाती है कि हमारा क़ानून ,कई परिवार और पुरुष समाज " छिनाल-नारियों " बेबस दिखाई देने लगता है !! क्यों ??क्यों आज नारी एक अच्छी माँ , पत्नी,बहन,भाभी,दोस्त,सास,नानी,दादी और कामगार नहीं बानी रह सकती ?? क्या केवल उसके इर्द-गिर्द का वातावरण ही दोषी है ?? उसका अपना व्यवहार इन सबके लिए दोषी क्यों नहीं है ?? आज ही फेसबुक पर मेरे एक दोस्त ने लिखा की आज की नारियां क़ानून की धाराओं को बड़े ही अच्छी तरह से जानती हैं इसलिए डरती नहीं हैं ," डर्टी " बातें धड़ल्ले से करती हैं !
एक तरफ तो आज की नारी पुरुष के समान बैठने का अधिकार मांगती है और दूसरी और वो अबला होने का भी फायदा चाहती है !! क्यों भला ??? ये आम देखने को मिल जाता है कि लडकियां ही लड़कों को ज्यादातर उकसाती हैं सेक्स करने को ! क्योंकि उसके इर्द-गिर्द सेक्स ही परोसा जा रहा है !आज कोई विज्ञापन, चल-चित्र, नाटक देख लीजिये हर तरफ यही कुछ दिखाया-पढ़ाया और समझाया जा रहा है !!
अगर आप नारी पक्ष के हैं तो आप ये कहेंगे - एक महिला लेखक मित्र की कलम से -
“पुरुषस्य भाग्यम, त्रिया चरित्रं देवो : न जानति” संस्कृत में कही गयी यह उक्ति संपूर्ण स्त्री मानसिकता को कठघरे में ला खड़ा करती है. पर क्या पुरुष पूरी तरह से दोषमुक्त हैं ? क्या उनकी सोच अवसरवादिता का परिचय नहीं देती ? क्या यह सच नहीं कि पुरुष वर्ग ने अपनी सहूलियत के अनुसार ऐसे सामाजिक नियम बनाये, जिसके बूते वे स्त्रियों पर शासन कर सकें? पत्नी के होते हुए भी, परायी औरत को बरगलाना क्या उनमें से कइयों की फितरत नहीं रही? नारी को कोमलांगी करार देकर ये कभी पिता, कभी पति और कभी भाई के रूप में उसके रक्षक बन जाते हैं; पर इसके बदले उसके अस्तित्व को गिरवी रख लेते हैं. क्या ये उनके दोगले चरित्र की निशानी नहीं? गृहलक्ष्मी को परिवार के लिए छोटा सा निर्णय लेने की आज़ादी भी नहीं . फिर वो काहे की लक्ष्मी ? अपनी बात मनवाने के लिए यदि वह त्रिया हठ का सहारा ले तो अचरच कैसा ?! एक कन्या और उसके भाइयों के लालन पालन, शिक्षा यहाँ तक कि खान पान में जो भेदभाव बरता जाता है, वही व्यवहार बच्ची में ऐसी कुंठा पैदा करता है , जो बड़ी होने पर उसके त्रिया हठ का रूप ले लेती है. पर आजकल परिवार के समीकरण बदल रहे हैं. जागरूक माँ बाप बेटी को महज इसलिए शिक्षा नहीं देते, ताकि उसका विवाह कर सकें. बल्कि उसे समग्र विकास का अवसर प्रदान करते हैं. इंदिरा गाँधी, किरण बेदी और सायना नेहवाल जैसी शख्सियतें इस बात का जीवंत उदाहरण पेश करतीं हैं कि औरत का दखल राजनीति से लेकर खेलकूद तक, जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है. अभी भी कुछ घरों में सास- बहू, जेठानी – देवरानी और ननद- भावज के बीच अवांछित टकराव होते रहते हैं. दुर्भाग्य से उन स्त्रियों को इतनी बुद्धि नहीं कि नारी होकर नारी की खिलाफत ठीक नहीं. फिर भी, आज के परिप्रेक्ष्य में औरत को ये इलज़ाम देना कहाँ तक सही है ?
और अगर आप पुरुष के पक्ष के होंगे तो ये कहेंगे -श्री राहुल कुमार जी लिखते हैं -
मैं मर्द हूं, तुम औरत, मैं भूखा हूं, तुम भोजन!!
मैं भेड़िया, गीदड़, कुत्ता जो भी कह लो, हूं. मुझे नोचना अच्छा लगता है. खसोटना अच्छा लगता है. मुझसे तुम्हारा मांसल शरीर बर्दाश्त नहीं होता. तुम्हारे उभरे हुए वक्ष.. देखकर मेरा खून रफ़्तार पकड़ लेता हूं. मैं कुत्ता हूं. तो क्या, अगर तुमने मुझे जनम दिया है. तो क्या, अगर तुम मुझे हर साल राखी बांधती हो. तो क्या, अगर तुम मेरी बेटी हो. तो क्या, अगर तुम मेरी बीबी हो. तुम चाहे जो भी हो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता. मेरी क्या ग़लती है? घर में बहन की गदरायी जवानी देखता हूं, पर कुछ कर नहीं पाता. तो तुमपर अपनी हवस उतार लेता हूं. घोड़ा घास से दोस्ती करे, तो खायेगा क्या? मुझे तुम पर कोई रहम नहीं आता. कोई तरस नहीं आता. मैं भूखा हूं. या तो प्यार से लुट जाओ, या अपनी ताक़त से मैं लूट लूंगा.
वैसे भी तुम्हारी इतनी हिम्मत कहां कि मेरा प्रतिरोध कर सको. ना मेरे जैसी चौड़ी छाती है ना ही मुझ सी बलिष्ठ भुजायें. नाखून हैं तुम्हारे पास बड़े-बड़े, पर उससे तुम मेरा मुक़ाबला क्या खाक करोगे. उसमें तो तुम्हे नेल-पॉलिश लगाने से फ़ुरसत ही नहीं मिलती. कितने हज़ार सालों से हम मर्द तुम पर सवार होते आये हैं, क्या उखाड़ लिया तुमने हमारा? हर दिन हम तुम्हारी औक़ात बिस्तर पर बताते हैं. तुम चुपचाप लाश बनी अपनी औक़ात पर रोती या उसे ही अपनी किस्मत मान लेटी रहती हो. ताक़त तो दूर की बात है, तुममें तो हिम्मत भी नहीं है. हम तो शेर हैं. जंगल में हमे देख दूसरे जानवर कम से कम भागते तो हैं पर तुम तो हमेशा उपलब्ध हो. भागते भी नहीं. बस तैयार दिखते हो लुटने के लिये. कुछ एक जो भागते भी हो तो हमारे पंजों से नही बच पाते. पजों से बच भी गये तो सपनों से निकलकर कहां जाओगे.
पिछले साल तुम जैसी क़रीब बीस बाईस हज़ार औरतॊं का ब्लाउज़ नोचा हम मर्दों नें. तुम जैसे बीस बाईस हज़ार औरतों का अपहरण किया. अपहरण के बाद मुझे तो नहीं लगता हम कुत्तों, शेरों या गीदड़ों ने तुम्हे छोड़ा होगा. छोड़ना हमारे वश की बात नहीं. तुम्हारा मांस दूर से ही महकता है. कैसे छोड़ दूं. क़रीब अस्सी-पचासी ह़ज़ार तुम जैसी औरतों को घर में पीटा जाता है. हम पति, ससुर तो पीटते हैं ही, साथ में तुम्हारी जैसी एक और औरत को साथ मिला लिया है जिसे सास कहते हैं. और ध्यान रहे ये सरकारी रिपोर्ट है. तुम जैसी लाखों तो अपने तमीज़ और इज्ज़त का रोना रोते हो और एक रिपोर्ट तक फ़ाईल करवाने में तुम्हारी…. फट जाती है. तुम्हारे मां-बाप, भाई भी इज्ज़त की दुहाई देकर तुम्हे चुप करवाते हैं और कहते हैं सहो बेटी सहो. तुम्हारे लिये सही जुमला गढ़ा गया है, “नारी की सहनशक्ति बहुत ज़्यादा होती है.” तो फिर सहो.
मैं मर्द हूं और हज़ारों सालों से देखता आ रहा हूं कि तुम्हारी भीड़ सिर्फ़ एक ही काम के लिये इक्कठा हो सकती है. मंदिर पर सत्संग सुनने के लिये. तो क्या अगर तुम्हारा रामायण तुम्हे पतिव्रता होना सिखाता है. मर्दों के पीछे पीछे चलना सिखाता है. तो क्या, अगर तुम्हारी देवी सीता को अग्नि-परीक्षा देनी पड़ती है. तो क्या अगर तुम्हारी सीता को गर्भावस्था में जंगल छोड़ दिया जाता है. तो क्या अगर तुम्हारा कृष्ण नदी पर नहाती गोपियों के कपड़े चुराकर पेड़ पर छिपकर उनके नंगे बदन का मज़ा लेता है. तो क्या अगर तुम्हारी लक्ष्मी हमेशा विष्णु के चरणों में बैठी रहती है. तो क्या, अगर तुम्हारा ग्रंथ तुम्हारे मासिक-धर्म का रोना रो तुम्हे अपवित्र बता देता है. हम मर्द तुम्हें अक्सर ही रौंदते हैं. चाहे भगवान हो या इंसान, तुम हमेशा पिछलग्गू थे और रहोगे. तो क्या, अगर हरेक साल तुम तीन-चार लाख औरतों को हम तरह तरह से गाजर-मुली की तरह काटते रहते हैं. कभी बिस्तर पर, कभी सड़कों पर, कभी खेतों में. तुम्हारी भीड़ सत्संग के लिये ही जुटेगी पर हम मर्द के खिलाफ़ कभी नहीं जुट सकती. तुम्हे शोषित किया जाता है क्युंकि तुम उसी लायक हो. मर्दों की पिछलग्गू हो. भले ही हमें जनमाती हो, पर तुम बलात्कार के लायक ही हो. तुम्हारी तमीज़ तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन और हमारा हितैषी है. जब तक इस तमीज़ को अपने दुपट्टे में बांध कर रखोगे, तब तक तुम्हारे दुपट्टे हम नोचते रहेंगे. जब तक लाज को करेजे में बसा कर रखोगे तब तक तुम्हारी धज्जियां उड़ेंगी. मैं भूखा हूं, तुम भोजन हो. तुम्हे खाकर पेट नहीं भरता, प्यास और बढ़ जाती है.
अब आप विचार कीजिये कि गंगा-जमुना ही मैली हुईं हैं
या फिर हम सबकी सोच ही मैली हो गयी है ???
आपसे मित्रता करके मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है ! आपके जनम दिन की आपको हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं !! कृपया स्वीकार करें ! आपका जीवन सदा खुशियों से भरा रहे !! मेरा फेसबुक,गूगल+,ब्लॉग,पेज और विभिन्न ग्रुपों की सदस्य्ता ग्रहण करने का एक ख़ास उद्देश्य है ! मैं एक लेखक-विश्लेषक और एक समीक्षक हूँ ! राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय ज्वलंत विषयों पर लिखना -पढ़ना मेरा शौक है ! मैं एक साधारण पढ़ालिखा और साफ़ स्वभाव का आदमी हूँ ! भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्यार करता हूँ ! भारत देश के लिए अगर मेरे प्राण काम आ सकें तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानूंगा !परन्तु किसी संत-राजनितिक दल और नेता हेतु नहीं !मैं एक बिन्दास स्वभाव का आदमी हूँ ! मेरी मित्र मण्डली में मेरे बच्चे और रिश्तेदार भी शामिल हैं ! तो भी मैं सभी विषयों पर अपने खुले विचार रखता हूँ !! आप सब का हार्दिक स्वागत है मेरे जीवन में !! मैं आपकी यादों - बातों को संभल कर रखूँगा !!
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सधन्यवाद !!
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पीताम्बर दत्त शर्मा,
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R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !
जिला-श्री गंगानगर।
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सबकुछ अपने सोच पर निर्भर है ..
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