Wednesday, February 11, 2015

मार्केटिंग तकनीक से खड़े किए गए जन-आंदोलन !!- (आनंद राजाध्यक्ष जी का एक और अदभुत विवेचन)


मुझे यकीन है कि आप इस पोस्ट को  पूरा पढेंगे,  लेकिन आप को पहले ही बता दूँ कि यह पोस्ट लम्बी है. पढ़ने में ५ मिनट लेगी और सोचने में १० . इसीलिए अगर आप इसे न पढ़ना चाहें तो आप से अनुरोध है कि इसे SHARE करते जाएँ, औरों को भी काम आ सकता है . 
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आज के भारत में लोकतंत्र में सत्ता के विरोध में जन आन्दोलन खड़ा करना बहुत ही आसान है और कठिन भी. कठिन इसलिए है कि आप को बहुत सारा पैसा लगेगा.  ये काम में सहयोगी लगेंगे और वे भी फुल टाइमर. हज़ारों की संख्या में कार्यकर्ता भी लगेंगे, फुल टाइमर.  उनकेpayment का प्रबंध आप को करना होगा.


मान लेते हैं कि यह हो गया. कैसे, ये बताया जायेगा, लेकिन फिलहाल देखते हैं कि आज के भारत में लोकतंत्र में सत्ता विरोध में जन आन्दोलन खड़ा करना बहुत ही आसान क्यूँ है.  यह जन आन्दोलन कैसे चलाया जाए, अन्य देशों में कैसे चलाया गया, यह सब विस्तृत स्टेप by स्टेप जानकारी उपलब्ध है ही और वो भी बाकायदा “course module” के तर्ज पर ! तो चलें देखते हैं कि ये कैसे हो सकता है.
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लेकिन उस से भी पहले PG Wodehouse का एक चुटकुला सुनिए. सम्बन्ध अपनेआप समझ में आ ही जाएगा. होता यूँ है कि एक रौबदार व्यक्तिमत्ववाला पुख्ता उम्र का सजा संवरा व्यक्ति, जहाँ भी जाता है, खुद पहल कर जो भी मिले उस से बात छेड़ता है. उसकी opening line एक ही होती है, “How are you keeping, my dear? And how's the old complaint?" इस आदमी  के साथ किस्सा बयान करनेवाला अपना नायक खड़ा है, और अचंभित है कि किस कदर अनजान लोग इस आदमी के सामने अपने दिल के राज खोल देते हैं. ये पांच दस मिनिट के लिए सुन लेता है, सांत्वना देता है और फिर बहुत ही आराम से अपना काम उनसे करवा लेता है. काम वैसे बहुत मुश्किल नहीं होते, लेकिन जाहिर है कि ऐसे ही किसी अनजान व्यक्ति के लिए यूँही नहीं किये जाते. अंत में ये व्यक्ति अपनी कामयाबी का राज बता देता है... हर किसी को कोई न कोई तकलीफ होती है, और उस से भी बड़ी तकलीफ ये होती है कि कोई सुननेवाला नहीं होता.... बस, काम ऐसे ही होते हैं, समझे?
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तो भाई, आप के पास दो लडके और एक लड़की भी आती है. स्मार्ट से हैं, अच्छी इंग्लिश बोल लेते हैं लेकिन आप से तो बिलकुल शालीनता से हिंदी में बात करते हैं. आप से एरिया की समस्याएं के बारे में पूछते है.  क्या समस्याएं हैं, कोई इलाज होता भी है या नहीं, कोई आप की सुनता भी है या नहीं, इत्यादि.
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आप को बता दूँ, हर कोई सरकार से हमेशा नाराज ही रहता है. सरकार को गाली देना लोगों के लिए रोज का  टाइमपास  है. लेकिन सोचिये, यही लोग अगर चार महीने में आप को दस बार मिले, तो एक सम्बन्ध बन जाता है. और अगर आप को अपने प्रॉब्लम को हल करने के लिए कोई ख़ास तकलीफ नहीं, बस इनके सुझाये लोगों को वोट देना है, तो बात मन में उतर जाती है, क्योंकि बहुतही लॉजिकल तरीकेसे समझाई जाती है, वो भी हंसते हंसते शालीनता से और मिठास से. और साथ साथ और भी ऐसे रोजमर्रा के प्रोब्लेम्स का जिक्र होता है और आप का वोट इन सब मर्ज की दवा बताई जाती है.... अब आप ही बताएं, जो पक्ष की टोपी पहनकर बतौर कार्यकर्ता आप के घर आये – क्या  आप उनकी इतनी सुनेंगे?


चलिए, अब लेते हैं दूसरे मुख्य मुद्दे को, कि यह सब करने के लिए जो संसाधन जुटाने होंगे, उसके लिए पैसे कहाँ से आयेंगे?  इसका भी उत्तर है अगर आप राजनीति से हट कर marketing के  ढंग से सोचें. निवेश के लिए उद्योगपति अपनी योजना ले कर ऐसी संस्थाओं के पास जाता है जिन्हें उस योजना में अपना लाभ दिखाई दे, तो वे निवेश करें. आप उन्हें पूरा प्रोजेक्ट रिपोर्ट दें, आप क्या करेंगे, कैसे करेंगे, सब समझा दें. कुछ सुझाव वे भी देंगे, जो आप मानेंगे अगर उतने बड़े निवेश करनेवाले दूसरे आप के पास न हों.  और एक बात है. उद्योजक के अक्ल पर निवेशक को विश्वास है तो खुद भी चले आते हैं कि उसके काम में वे अपने लाभ के लिए पैसे लगायें.
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अब ये योजना है सरकार बदलने की तो आप सोचिये इसके लाभार्थी कौन हो सकते हैं?

१ बाहरी देश जो टार्गेट देश का महत्व कम करना चाहते है, उसकी प्रगति रोकना चाहते हैं वे चाहेंगे कि अगर सरकार पलट दी गई या उसको करारा धक्का दिया गया तो उसके विकास में अवरोधना पैदा होगी. वैसे वे तो सामने नहीं आयेंगे तो बात और अच्छी है. सरकारी तौर पर सम्बन्ध भी नहीं बिगड़ेंगे और डायरेक्टली involve भी नहीं होंगे. दामन बेदाग़ ! सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे ....

२  वे सभी संस्था जिन्हें विद्यमान सरकार की नीतियों से तक़लीफ़ हो रही हो. यहाँ ये बात नहीं कि संस्था का कार्य राष्ट्रहित में है या नहीं. सरकार का हस्तक्षेप अगर संस्था हित में खलल पैदा करता है तो वो संस्था सहकार्य करेगी. Money power , man power, जो बन पड़े.

३  अन्य राजनीतिक दल जिनका भी विद्यमान सरकार को बदलनेका अजेंडा हो. उनकी सहाय्यता विविध रूप ले सकती है; जैसे कि सिर्फ सरकार पक्ष के वोट काटने के लिए दुर्बल प्रत्याशी खड़े करें, कोई जगह न ही करें और अपने निष्ठावान मतदाताओं को समझाये कि किसे वोट देना है.

४  अगर सरकार पक्ष को किसी विशिष्ट विचारधारा या धर्म से जोड़ दिया जाए तो बाकी सारे संप्रदायोँ से उनके विरोध में समर्थन की मांग की जा सकती है ये तो आप समझ ही गए होंगे...

५   प्रवासी जन समुदायों को उनके मूल स्थानों से संदेसे आने की व्यवस्था की जा सकती है, विशेषकर अगर उन स्थानों के शासक भी इस सत्ता परिवर्तन में अपना लाभ देखते हों. Money power , man power, जो बन पड़े वाला नियम यहाँ भी पुरजोश लागू होता है.


ये तो हुई मार्केटिंग बाहरवाले निवेशकों को. याने पैसो का इंतजाम हो जाता है, man power का भी. लेकिन इस योजना में स्थानिक जनता का ही मुख्य रोल है तो जनता को अपने तरफ मोड़ना है. इसमें भी अलग अलग तरीके काम आते हैं.

अ) अगर उन्हें लगे कि उनके तकलीफों का इलाज आप कर सकते हैं 

ब)  सरकार प्रति रोष – जायज / नाजायज से मतलब नहीं, जो वोट दे सकता है  वो अपना है . नाराज सरकारी कर्मचारी इसमें गिने जा सकते हैं. अवैध निवासी, अवैध हॉकर इत्यादि भी आपके पास आयेंगे अगर आप में  उन्हें एक  तगडा पर्याय दिखें.

क)  सीधा प्रलोभन – मुफ्त , या साथ में वोट के लिए कॅश / वस्तू, दारु....
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हो गया मार्केटिंग पूरा . पहले संस्थात्मक निवेशकों को issue बेच दिया, बाकी public को ...हो गया over subscribe ! आसान नहीं है  ये सब पापड बेलना , लेकिन जिन्हें कुछ करने की जिद होती है वे कुछ भी कर जाते हैं. कुछ भी .... इमानदारी, राष्ट्रहित, कोई मायने नहीं रखता ....
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तो ये एक अनदेखा पहलू . ख़ास कर के लम्बे समय तक सर्वे से सेल्समन से कार्यकर्ता तक का, उसके लिए लगनेवाले हजारों ट्रेंड लोगों का जिनका कहीं रिकॉर्ड ही नहीं क्यूंकि वो सब जिम्मा आप के इन्वेस्टर उठाते है.  जहाँ से आये, चले गए... सम्प्रदायिक वोटरों को संभालने उनके रहनुमाँ, राहबर और shepherds, उनके ही खर्चे से ... वे भी इन्वेस्टर... प्रवासी वोटरों को आप के साथ जोड़ने के लिए उनके मूल राज्यों से भेजे गए लोग –सब बतौर इन्वेस्टमेंट !  न आपको  खर्चा उठाना है, न आपको कोई रिकॉर्ड रखना, और ना ही कहीं रिकॉर्ड  दिखेगा ....


इन सब ऑफ द रिकॉर्ड ताकतों का प्रभाव तो दिखाई देगा ,  लेकिन अस्तित्व नहीं.  नतीजा ये कि ये आभास सफलता से बनाया जा सकता है  कि ये  दीये की  तूफ़ान से लड़ाई हैये दिया नहीं, मुल्क को राख कर देनेवाला दावानल है ये अंदाजा शायद बहुतों को आता  ही नहीं, और जिन्हें समझ आता है  वे बताते नहीं हालांकि बताना ही उनका धर्म और कर्म है. शायद वे मुद्दा क्र. २ में अंतर्भूत हैं...
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बाकी काफी बातें तो आप पढ़ ही रहे हैं.  और आप ने अगर देखा होगा तो इस आलेख में कोई भी नामनिर्देश नहीं है.  आप चाहें तो इसे परिकल्पना समझ सकते हैं.
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इतनी लम्बी पोस्ट पढ़ने का शुक्रिया, शेयर करने का अनुरोध तो है.... 



जय श्री राम !!!!

                           आपसे मित्रता करके मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है ! आपके जनम दिन की आपको हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं !! कृपया स्वीकार करें ! आपका जीवन सदा खुशियों से भरा रहे !! मेरा फेसबुक,गूगल+,ब्लॉग,पेज और विभिन्न ग्रुपों की सदस्य्ता ग्रहण करने का एक ख़ास उद्देश्य है ! मैं एक लेखक-विश्लेषक और एक समीक्षक हूँ ! राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय ज्वलंत विषयों पर लिखना -पढ़ना मेरा शौक है ! मैं एक साधारण पढ़ालिखा और साफ़ स्वभाव का आदमी हूँ ! भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्यार करता हूँ ! भारत देश के लिए अगर मेरे प्राण काम आ सकें तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानूंगा !परन्तु किसी संत-राजनितिक दल और नेता हेतु नहीं !मैं एक बिन्दास स्वभाव का आदमी हूँ ! मेरी मित्र मण्डली में मेरे बच्चे और रिश्तेदार भी शामिल हैं ! तो भी मैं सभी विषयों पर अपने खुले विचार रखता हूँ !! आप सब का हार्दिक स्वागत है मेरे जीवन में !! मैं आपकी यादों - बातों को संभल कर रखूँगा !!
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आशा है आपका प्यार मुझे इसी तरह से मिलता रहेगा !!आपका क्या कहना है मित्रो ??अपने विचार अवश्य हमारे ब्लॉग पर लिखियेगा !!
सधन्यवाद !!
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पीताम्बर दत्त शर्मा,
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh. (raj)INDIA.

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