Monday, August 13, 2012

" मन्नू " बाबा बोलेंगे लाल किले की प्राचीर से क्या ..???

 कभी कभी बोलने वाले मित्रों को मेरा नमस्कार !!
  हमारे माननीय प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह जी , 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से क्या बोलेंगे यही भारत और विश्व रहा सोच है । अन्ना टीम रो - रो कर थक गयी और शायद बिखरने के कगार  पर पंहुच गयी है और बाबा रामदेव जी भी संसद को चल पड़े हैं रामलीला मैदान को त्यागकर !!
  सरकार ससुरी सो रही है !!
                              मिडिया भी अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है यानी " पैसा फेंको तमाशा देखो " ?? 10-10 दिनों के आन्दोलनों पर भी सरकार के कानों पर " जूँ " तक नहीं रेंगती , तो जनता बेचारी इस भारी मंहगाई में रोटी का इंतजाम करे या लम्बे आन्दोलन करे ??? ये बात सरकार भी जानती है !!
      अब तो किसी को जबरदस्ती सत्ता परिवर्तन करना पड़ेगा या जनता को " समझदार " बनना पड़ेगा ......!!! क्योंकि इस लोकतंत्र के सारे रास्ते " नेताओं के चरणों " के नीचे से होकर गुज़रते हैं !!! और नेता तो नेता होता है जी ??????
                              आपका क्या विचार है जी ??? 
     " 5th pillar corrouption killer " पर जाकर टाईप करें लिंक  है :- www.pitamberduttsharma.blogspot.com. 
    

Thursday, August 9, 2012

क्या आप जानते है की कोई मीडिया समूह हिन्दू या हिन्दू संघठनो के प्रति इतना बैरभाव क्यों रखती है.

 -भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं…
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सन २००५ में एक फ़्रांसिसी पत्रकार भारत दौरे पर आया उसका नाम फ़्रैन्कोईस था उसने भारतमें हिंदुत्व के ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में अध्ययन किया और उसने फिर बहुत हद तक इस कार्
य के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहराया.
फिर उसने पता करना शुरू किया तो वह आश्चर्य चकित रह गया की भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं… फीर मैंने एक लम्बाअध्ययन किया उसमे निम्नलिखित जानकारी निकल कर आई जो मै आज सार्वजानिककर रहा हु ..
विभिन्न मीडिया समूह और उनका आर्थिक श्रोत……
१-दि हिन्दू … जोशुआ सोसाईटी , बर्न, स्विट्जरलैंड , इसके संपादक एन राम , इनकी पत्नी ईसाई में बदल चुकी है.
२-एन डी टी वी … गोस्पेल ऑफ़ चैरिटी, स्पेन , यूरोप
३-सी एन एन , आई बी एन ७,सी एन बी सी …१००% आर्थिक सहयोग द्वारा साउदर्न बैपिटिस्ट चर्च
४-दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया, नवभारत , टाइम्स नाउ… बेनेट एंड कोल्मान द्वारासंचालित ,८०% फंड वर्ल्ड क्रिस्चियन काउंसिल द्वारा , बचा हुआ २०% एक अँगरेज़ और इटैलियन द्वारा दिया जाता है. इटैलियन व्यक्ति का नाम रोबेर्ट माइन्दो है जो यु पी ए अध्यक्चा सोनिया गाँधी का निकट सम्बन्धी है.
५-स्टार टीवी ग्रुप…सेन्ट पीटर पोंतिफिसिअलचर्च , मेलबर्न,ऑस्ट्रेलिया
५-हिन्दुस्तान टाइम्स,दैनिक हिन्दुस्तान…माल िक बिरला ग्रुप लेकिन टाइम्सग्रुप के साथ जोड़ दिया गया है..
६-इंडियन एक्सप्रेस…इसे दो भागो में बाट दिया गया है , दि इंडियन एक्सप्रेस और न्यू इंडियन एक्सप्रेस(साउदर्न एडिसन) -Acts Ministries has major stake in the Indian express and later is still with the Indian कौन्तेर्पर्त
७-दैनिक जागरण ग्रुप… इसके एक प्रबंधक समाजवादीपार्टी से राज्य सभा में सांसद है… यह एक मुस्लिम्वादी पार्टी है.
८-दैनिक सहारा .. इसके प्रबंधन सहारा समूह देखतीहै इसके निदेशक सुब्रोतो राय भी समाजवादी पार्टी के बहुत मुरीद है
९-आंध्र ज्योति..हैदराबा द की एक मुस्लिम पार्टी एम् आई एम् (MIM ) ने इसे कांग्रेस के एक मंत्री के साथ कुछ साल पहले खरीद लिया
१०- दि स्टेट्स मैन… कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया द्वारा संचालित
इस तरह से एक लम्बा लिस्ट हमारे सामने है जिससे ये पता चलता है की भारत की मीडिया भारतीय बिलकुल भी नहीं है.. और जब इनकी फंडिंग विदेश से होती है है तो भला भारत के बारे में कैसे सोच सकते है..
अपने को पाक साफ़ बताने वाली मीडिया के भ्रस्ताचार की चर्चा करनायहाँ पर पूर्णतया उचित ही होगा
बरखा दत्त जैसे लोग जो की भ्रस्ताचार का रिकार्ड कायम किया है उनके भ्रस्ताचरणकी चर्चा दूर दूर तक है , इसके अलावा आप लोगो को सायद न मालूम हो पर आपको बता दू की लगभग ये १००% सही बात है की NDTV की एंकर बरखादत्त ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है..
प्रभु चावला जो की खुद रिलायंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैसला फिक्स कराते हुए पकडे गए उनके सुपुत्र आलोक चावला, अमर उजाला के बरेली संस्करण में घोटाला करते हुए पकडे गए.
दैनिक जागरण ग्रुप ने अवैध तरीके से एक ही रजिस्ट्रेसन नो. पर बिहार में कई जगह पर गलत ढंग से स्थानीय संस्करण प्रकाशितकिया जो की कई साल बाद में पकड़ में आया और इन अवैध संस्करणों से सरकार को २०० करोड़ का घटा हुआ.
दैनिक हिन्दुस्तान ने भी जागरण के नक्शेकदम पर चलते हुए यही काम किया उसने भी २०० करोड़ रुपये का नुकशान सरकार को पहुचाया इसके लिए हिन्दुस्तान के मुख्य संपादक सशी शेखर के ऊपर मुक़दमा भी दर्ज हुआ है.. शायद यही कारण है की भारत की मीडिया भी काले धन , लोकपाल जैसे मुद्दों पर सरकार के साथ ही भाग लेती है.....

सभी लोगो से अनुरोध है की इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो के पास पहुचाये ताकि दूसरो को नंगा करने वाले मीडिया की भी सच्चाई का पता लग सके.....   । रोजाना पढ़िए " 5th pillar corrouption killer " . link :- www.pitamberduttsharma.blogspot.com.

* पूरे विश्व को सभ्यता हमने सिखाई और आज हम उनसे सभ्यता सिख रहे हैं ==========================================



ध्यान-साधना, योग, आयुर्वेद, ये सारी अनमोल चीजें हमारी विरासत थी लेकिन अंग्रेजों ने हम लोगों के मन में बैठा दिया कि ये सब फालतू कि चीज़े हैं और हम लोगों ने मान भी लिया पर आज जब उनको जरुरत पड़ रही हैं इन सब चीजों कि तो फिर से हम लोगों कि शरण में दौड़े-भागे आ रहे हैं और अब हमारा योग 'योगा' बनकर हमारे पास आया तब जाकर हमें एहसास हो रहा हैं कि जिसे हम कंचे समझकर खेल रहे थे, वो हीरा था। उस आयुर्वेद के ज्ञान को विदेशी वाले अपने नाम से पेटेंट करा रहे हैं जिसके बाद उसका व्यापारिक उपयोग हम नहीं कर पायेंगे। इस आयुर्वेद का ज्ञान इस तरह रच बस गया हैं हम लोगों के खून में कि चाहकर भी हम इसे भुला नहीं सकते ...आज भले ही बहुत कम ज्ञान हैं हमें आयुर्वेद का पर पहले घर कि हरेक औरतों को इसका पर्याप्त ज्ञान था तभी तो आज दादी माँ के नुस्खे या नानी माँ के नुख्से पुस्तक बनकर छप रहे हैं। उस आयुर्वेद की छाया प्रति तैयार करके अरबी वाले 'यूनानी चिकित्सा' का नाम देकर प्रचलित कर रहे हैं।

जिस समय पश्चिम में आदिमानवों ने कपडे पहनना सीखा था...उस समय हमारे यहाँ लोग पुष्पक विमान में उड़ा करते थे। आज अगर विदेशी वाले हमारे ज्ञान को अपने नाम से पेटेंट करा रहे हैं तो हमारी नपुंसकता के कारण ही ना ??
वो तो योग के ज्ञाता नहीं रहे होंगे विदेश में और जब तक होते तब तक स्वामी रामदेव जी आते नहीं तो ये किसी विदेशी के नाम से पेटेंट हो चुका होता....हमारी एक और महान विरासत हैं संगीत की जो माँ सरस्वती की देन हैं किसी साधारण मानवों की नहीं। फिर इसे हम तुच्छ समझकर इसका अपमान कर रहे हैं। याद हैं आज से साल भर पहले हमारे संगीत-निर्देशक ए.आर. रहमान (पहले नाम दिलीप कुमार) को संगीत के लिए आस्कर पुरूस्कार दिया गया था.....और गर्व से सीना चौड़ा हम भारतियों का जबकि मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे अपनों ने मुझे जख्म दिया और अंग्रेज उसमे नमक छिड़क रहे हैं और मेरे अपने उसे देखकर खुश हो रहे हैं।
किस तरह भीगा कर जूता मारा था अंग्रेजों ने हम भारतियों के सर पर और हम गुलाम भारतीय उसमे भी खुश हो रहे थे कि मालिक ने हमें पुरस्कार तो दिया..... भले ही वो जूतों का हार ही क्यों ना हों ?? अरे शर्म से डूब जाना चाहिए हम भारतियों को अगर रत्ती भर भी शर्म बची है तो ??
बेशक रहमान की जगह कोई सच्चा देशभक्त होता तो ऐसे आस्कर को लात मार कर चला आता ........क्योंकि वो पुरस्कार अच्छे संगीत के लिए नहीं दिए गए थे बल्कि उसने पश्चिमी संगीत को मिलाया था भारतीय संगीत में इसलिए मिला वो पुरस्कार....यानी कि भारतीय संगीत कितना भी मधुर क्यों न हों आस्कर लेना हैं तो पश्चिमी संगीत को अपनाना होगा........सीधा सा मतलब यह हैं कि हमें कौन सा संगीत पसंद करना हैं और कौन सा नहीं ये हमें अब वो बताएँगे .........इससे बड़ा और गुलामी का सबूत और क्या हो सकता हैं कि हम अपनी इच्छा से कुछ पसंद भी नहीं कर सकते......कुछ पसंद करने के लिए भी विदेशियों कि मुहर लगवानी पड़ेगी उस पर हमें.... जिसे क,ख,ग भी नहीं पता अब वो हमें संगीत सिखायेंगे जहाँ संगीत का मतलब सिर्फ गला फाड़कर चिल्ला देना भर होता हैं वो सिखायेंगे ??

ज्यादा पुरानी बात भी नहीं हैं ये ......हरिदास जी और उसके शिष्य तानसेन (जो अकबर के दरबारी संगीतज्ञ थे) के समय कि बात हैं जब राज्य के किसी भाग में सुखा और आकाल कि स्थिति पैदा हो जाती थी तो तानसेन को वहां भेजा जाता था वर्षा करने के लिए......तानसेन में इतनी क्षमता थी कि मल्हार गाके वर्षा करा दे, दीपक राग गाके दीपक जला दे और शीतराग से शीतलता पैदा कर दे तो प्राचीन काल में अगर संगीत से पत्थर मोम बन जाता था, जंगल के जानवर खींचे चले आते थे कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये बात कोई भी अनुभव कर सकता हैं की किस तरह दिनों-दिन संगीत-कला विलुप्त होती जा रही हैं .....और संगीत कला का गुण तो हम भारतियों के खून में हैं .......किशोर कुमार, उषा मंगेशकर, कुमार सानू जैसे अनगिनत उदाहरण हैं जो बिना किसी से संगीत की शिक्षा लिए बॉलीवुड में आये थे।
एक और उदहारण हैं जब तानसेन की बेटी ने रात भर में ही "शीत राग" सीख लिया था.......चूँकि दीपक राग गाते समय शरीर में इतनी ऊष्मा पैदा हो जाती हैं कि अगर अन्य कोई “शीत राग” ना गाये तो दीपक राग गाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी और तानसेन के प्राण लेने के उद्द्येश्य से ही एक चाल चलकर उसे दीपक राग गाने के लिए बाध्य किया था उससे इर्ष्या करने वाले दरबारियों ने ..........और तानसेन भी अपनी मृत्यु निश्चित मान बैठे थे क्योंकि उनके अलावा कोई और इसका ज्ञाता (जानकार) भी नहीं था और रातभर में सीखना संभव भी ना था किसी के लिए पर वो भूल गए थे कि उनकी बेटी में भी उन्ही का खून था और जब पिता के प्राण पर बन आये तो बेटी असंभव को भी संभव करने कि क्षमता रखती हैं ...... तानसेन के ऐसे सैकड़ों कहानियां हैं पर ये छोटी सी कहानी मैंने आप लोगों को अपने भारत के महान संगीत विरासत कि झलक दिखने के लिए लिखी.......अब सोचिये कि ऐसे में अगर विदेशी हमें संगीत कि समझ कराये तो ऐसा ही हैं जैसे पोता, दादा जी को धोती पहनना सिखाये, राक्षस साधू-महात्माओं को धर्म का मर्म समझाए और शेर किसी हिरन को अपने पंजे में दबाये अहिंसा कि शिक्षा दे ......नहीं..??
हम लोगों के यहाँ सात सुर से संगीत बनता हैं इसलिए 'सात तारों से बना सितार' बजाते हैं हमलोग, लेकिन अंग्रेजों को क्या समझ में आ गया जो छह तार वाला वाध्य-यंत्र बना लिया और सितार कि तर्ज पर उन्सका नामकरण गिटार कर दिया ??

इतना कहने के बाद भी हमारे भारतीय नहीं मानेगे मेरी बात पर जब कोई अंग्रेज कहेगा कि उसने गायों को भारतीय संगीत सुनाया तो ज्यादा दूध लिया या जब शोध सामने आएगा कि भारतीय संगीत का असर फसलों पर पड़ता हैं और वे जल्दी-जल्दी बढ़ने लगते हैं तब हम विश्वास करेंगे.... क्यों ?? ये सब शोध अंग्रेज को भले आश्चर्यचकित कर दे पर अगर ये शोध किसी भारतीय को आश्चर्यचकित करते हैं तो ये दुःख: कि बात हैं।

हमारे देश वासियों को लगता हैं हम लोग पिछड़े हुए हैं जो हमारे यहाँ छोटे-छोटे घर हैं और दूसरी और अंग्रेज तकनीकी विद्या के कितने ज्ञानी हैं, वो खुशनसीब हैं जो उनके यहाँ इतनी ऊँची-ऊँची अट्टालिकाए (Buildings) हैं और इतने बड़े-बड़े पुल हैं........ इस पर मैं अपने देशवासियों से यहीं कहूँगा कि ऊँचे घर बनाना मज़बूरी और जरुरत हैं उनकी, विशेषता नहीं..... हमलोग बहुत भाग्यशाली हैं जो अपनी धरती माँ कि गोद में रहते हैं विदेशियों कि तरह माँ के सर पर चढ़ कर नहीं बैठते।
हम लोगों को घर के छत, आँगन और द्वार का सुख प्राप्त होता हैं .....जिसमें गर्मी में सुबह-शाम ठंडी-ठंडी हवा जो हमें प्रकृति ने उपहार-स्वरूप प्रदान किये हैं उसका आनंद लेते हैं और ठण्ड में तो दिन-दिन भर छत या आँगन में बैठकर सूर्य देव कि आशीर्वाद रूपी किरणों को अपने शारीर में समाते हैं, विदेशियों कि तरह धुप सेंकने के लिए नंगे होकर समुन्द्र के किनारे रेत पर लेटते नहीं हैं.............रही बात क्षमता कि तो जरुरत पड़ने पर हमने समुन्द्र पर भी पत्थरों का पुल बनाया था और रावण तो पृथ्वी से लेकर स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने कि तैयारी कर रहा था तो अगर वो चाहता तो गगनचुम्बी इमारते भी बना सकता था लेकिन अगर नहीं बनाया तो इसलिए कि वो विद्वान था।
तथ्यपूर्ण बात तो ये हैं कि हम अपनी धरती माँ के जितने ही करीब रहेंगे रोगों से उतना ही दूर रहंगे और जितना दूर रहेंगे रोगों के उतना करीब जायेंगे। हमारे मित्रों को इस बात कि भी शर्म महसूस होती हैं कि हम लोग कितने स्वार्थी, बेईमान, झूठे, मक्कार, भ्रष्टाचारी और चोर होते हैं जबकि अंग्रेज लोग कितने ईमानदार होते हैं ....हम लोगों के यहाँ कितनी धुल और गंदगी हैं जबकि उनके यहाँ तो लोग महीने में एक-दो बार ही झाड़ू मारा करते हैं.......तो जान लीजिये कि वैज्ञानिक शोध ये कहती हैं कि साफ़ सुथरे पर्यावरण में पलकर बड़े होने वाले शिशु कमजोर होते हैं, उनके अन्दर रोगों से लड़ने कि शक्ति नहीं होती दूसरी तरफ दूषित वातावरण में पलकर बढ़ने वाले शिशु रोगों से लड़ने के लिए शक्ति संपन्न होते हैं। इसका अर्थ ये मत लगा लीजियेगा कि मैं गंदगी पसंद आदमी हूँ, मैं भारत में गंदगी को बढ़ावा दे रहा हूँ ........मेरा अर्थ ये हैं कि सीमा से बाहर शुद्धता भी अच्छी नहीं होती और जहाँ तक भारत कि बात हैं तो यहाँ हद से ज्यादा गंदगी हैं जिसे साफ़ करने कि अत्यंत आवश्यकता हैं.......रही बात झाड़ू मारने कि तो घर गन्दा हो या ना हों झाड़ू तो रोज मारना ही चाहिए क्योंकि झाड़ू मारकर हम सिर्फ धुल-गंदगी को ही बाहर नहीं करते बल्कि अपशकुन को भी झाड -फुहाड़ कर बाहर कर देते हैं तभी तो हम गरीब होते हुए भी खुश रहते हैं।
भारतीय को समृद्धि कि सूची में पांचवे स्थान पर रखा गया था क्योंकि ये पैसे के मामले में भले कम हैं लेकिन और लोगो से ज्यादा सुखी हैं और जहाँ तक हमारे ऐसे बनने की बात है तो वो सब अंग्रेजों ने ही सिखाया है हमें, नहीं तो उसके आने के पहले हम छल-कपट जानते तक नहीं थे........उन्होंने हमें धर्म-विहीन और चरित्र-विहीन शिक्षा देना शुरू किया ताकि हम हिन्दू धर्म से घृणा करने लगे और ईसाई बन जाए।
उन्होंने नौकरी आधारित शिक्षा व्यवस्था लागू की ताकि बच्चे नौकरी करने कि पढाई के अलावा और कुछ सोच ही न पाए. इसका परिणाम तो देख ही रहे हैं कि अभी के बच्चे को अगर चरित्र, धर्म या देशहित के बारे में कुछ कहेंगे तो वो सुनना ही नहीं चाहता..........वो कहता है उसे अभी सिर्फ अपने कोर्स कि किताबों से मतलब रखना हैं और किसी चीज़ से कोई मतलब नहीं उसे......अभी कि शिक्षा का एकमात्र उद्द्येश्य नौकरी पाना रह गया हैं ....लोगो को किताबी ज्ञान तो बहुत मिल जाता हैं कि वो ……
डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, आई.ए.एस. या नेता बन जाता हैं पर उसकी नैतिक शिक्षा न्यूनतम स्तर कि भी नहीं होती जिसका कारण रोज एक-से-बढ़कर एक अपराध और घोटाले करते रहते हैं ये लोग। अभी कि शिक्षा पाकर बच्चे नौकरी पा लेते हैं लेकिन उनका मानसिक और बौद्धिक विकास नहीं हो पाता हैं, इस मामले में वो पिछड़े ही रह जाते हैं जबकि हमारी सभ्यता में ऐसी शिक्षा दी जाती थी जिससे उस व्यक्ति के पूर्ण व्यक्तिगत का विकास होता था.....उसकी बुद्धि का विकास होता था, उसकी सोचने-समझने कि शक्ति बढती थी।
आज ये अंग्रेज जो पूरी दुनिया में ढोल पिट रहे हैं कि ईसाईयत के कारण ही वो सभ्य और विकसित हुए और उनके यहाँ इतनी वैज्ञानिक प्रगति हुई तो क्या इस बात का उत्तर हैं उनके पास कि कट्टर और रुढ़िवादी ईसाई धर्म जो तलवार के बल पर 25-50 कि संख्या से शुरू होकर पूरा विश्व में फैलाया गया, जो ये कहता हो कि सिर्फ बाईबल पर आँख बंदकर भरोसा करने वाले लोग ही स्वर्ग जायेंगे बाकी सब नर्क जाएंगे,,,जिस धर्म में बाईबल के विरुद्ध बोलने कि हिम्मत बड़ा से बड़ा व्यक्ति भी नहीं कर सकता वो इतना विकासशील कैसे बन गया ???
400 साल पहले जब गैलीलियों ने यूरोप की जनता को इस सच्चाई से अवगत कराना चाहा कि पृथ्वी सूर्य कि परिक्रमा करती हैं तो ईसाई धर्म-गुरुओं ने उसे खम्बे से बांधकर जीवित जलाये जाने का दंड दे दिया वो तो बेचारा क्षमा मांगकर बाल-बाल बचा। एक और प्रसिद्ध पोप, उनका नाम मुझे अभी याद नहीं, वे भी मानते थे कि पृथ्वी सूर्य के चारो और घुमती हैं लेकिन जीवन भर बेचारे कभी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए...उनके मरने के बाद उनकी डायरी से ये बात पता चली। क्या ऐसा धर्म वैज्ञानिक उन्नति में कभी सहायक हो सकता हैं ??? ये तो सहायक की बजाय बाधक ही बन सकता हैं।

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हिन्दू जैसे खुले धर्म को जिसे गरियाने की पूरी स्वतंत्रता मिली हुई हैं सबको, जिसमें कोई मूर्ति-पूजा करता हैं, कोई ध्यान-साधना, कोई तन्त्र-साधना, कोई मन्त्र-साधना ....... ऐसे अनगिनत तरीके हैं इस धर्म में, जिस धर्म में कोई बंधन नहीं ..जिसमें नित नए खोज शामिल किये जा सकते हैं और समय तथा परिस्थिति के अनुसार बदलाव करने की पूरी स्वतंत्रता हैं, जिसने सिर्फ पूजा-पाठ ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला सिखाई, 'वसुधैव कुटुम्बकम' का नारा दिया, पूरे विश्व को अपना भाई माना, जिसने अंक शास्त्र, ज्योतिष-शास्त्र, आयुर्वेद-शास्त्र, संगीत-कला, भवन निर्माण कला, काम-कला आदि जैसे अनगिनत कलाएं तुम लोगों (ईसाईयों) को दी और तुम लोग कृतघ्न, जो नित्यकर्म के बाद अपने गुदा को पानी से धोना भी नहीं जानते, हमें ही गरियाकर चले गए।
अगर ईसाई धर्म के कारण ही तुमने तरक्की की तो वो तो 1800 साल पहले कर लेनी चाहिए थी, पर तुमने तो 200-300 साल पहले जब सबको लूटना शुरू किया और यहाँ (भारत) के ज्ञान को सीख-सीखकर यहाँ के धन-दौलत को हड़पना शुरू किया तबसे तुमने तरक्की की ऐसा क्यों ???
ये दुनिया करोडों वर्ष पुरानी हैं लेकिन तुम लोगों को 'ईसा और मुहम्मद' के पहले का इतिहास पता ही नहीं ......कहते हो बड़े-बड़े विशाल भवन बना दिए तुमने.....अरे जाओ, जब आज तक पिछवाडा धोना सीख ही नहीं पाए, खाना बनाना सीख ही नहीं पाए, जो की अभी तक उबालकर नमक डालकर खाते तो बड़े-बड़े भवन बनाओगे तुम। एक भी ग्रन्थ तुम्हारे पास-भवन निर्माण के ?? जो भी छोटे-मोटे होंगे वो हमारे ही नक़ल किये हुए होंगे।

प्रोफ़ेसर ओक ने तो सिद्ध कर दिया की भारत में जितने प्राचीन भवन हैं वो हिन्दू भवन या मंदिर हैं जिसे मुस्लिम शासकों ने हड़प कर अपना नाम दे दिया और विश्व में भी जो बड़े-बड़े भवन हैं उसमें हिन्दू शैली की ही प्रधानता हैं। ये भी हंसी की ही बात हैं की मुग़ल शासक महल नहीं सिर्फ मकबरे और मस्जिद ही बनवाया करते थे भारत में। जो हमेशा गद्दी के लिए अपने बाप-भाईयों से लड़ता-झगड़ता रहता था, अपना जीवन युद्ध लड़ने में बिता दिया करते थे उसके मन में अपने बाप या पत्नी के लिए विशाल भवन बनाने का विचार आ जाया करता था !! इतना प्यार करता था अपनी पत्नी से जिसको बच्चा पैदा करवाते करवाते मार डाला उसने !! मुमताज़ की मौत बच्चा पैदा करने के दौरान ही हुई थी और उसके पहले वो 14 बच्चे को जन्म दे चुकी थी ......जो भारत को बर्बाद करने के लिए आया था, यहाँ के नागरिकों को लूटकर, लाखों-लाख हिन्दुओं को काटकर और यहाँ के मंदिर और संस्कृतिक विरासत को तहस-नहस करके अपार खुशी का अनुभव करता था वो यहाँ कोई सृजनात्मक विरासत कार्य करे ये तो मेरे गले से नहीं उतर सकता। जिसके पास अपना कोई स्थापत्य कला का ग्रन्थ नहीं हैं वो भारत की स्थापत्य कला को देखकर ये कहने को मजबूर हो गया था की भारत इस दुनिया का आश्चर्य हैं इसके जैसा दूसरा देश पूरी दुनिया में कहीं नहीं हो सकता हैं, वो लोग अगर ताजमहल बनाने का दावा करते हैं तो ये ऐसा ही हैं जैसा 3 साल के बच्चे द्वारा दसवीं का प्रश्न हल करना।

दुःख तो ये हैं की आज़ाद देश आज़ाद होने के बाद भी मुसलमानों को खुश रखने के लिए इतिहास में कोई सुधर नहीं किये, हमारे मुसलमान और ईसाई भाइयों के मूत्र-पान करने वाले हमारे राजनितिक नेताओं ने। आज जब ये सिद्ध हो चूका हैं की ताजमहल शाहजहाँ ने नहीं बनवाया बल्कि उससे सौ-दो-सौ साल पहले का बना हुआ हैं तो ऐसे में अगर सरकार सच्चाई लाने की हिम्मत करती तो क्या हम भारतीय गर्व का अनुभव नहीं करते ? क्या हमारी हीन भावना दूर होने में मदद नहीं मिलती? ताजमहल साथ आश्चर्यों में से एक हैं ये सब जानते हैं पर सात आश्चर्यों में ये क्यों शामिल हैं ये कितने लोग जानते हैं ? इसके शामिल होने का कारण इसकी उत्कृष्ट स्थापत्य कला, इसकी अदभुत कारीगरी को अब तक आधुनिक इंजीनियर समझने की कोशिश कर रहे हैं। जिस प्रकार कुतुबमीनार के लौह-स्तम्भ की तकनीक को समझने की कोशिश कर रहे हैं......जो की अब तक समझ नहीं पाए हैं। (इस भुलावे में मत रहिएगा की कुतुबमीनार को कुतुबद्दीन एबक ने बनवाया था)...... मोटी-मोटी तो मैं इतना ही जानता हूँ की यमुना नहीं के किनारे के गीली मुलायम मिटटी को इतने विशाल भवन के भार को सेहन करने लायक बनाना, पूरे में सिर्फ पत्थरों का काम करना समान्य सी बात नहीं हैं .........इसको बनाने वाले इंजिनियर के इंजीनियरिंग प्रतिभा को देखकर अभी के इंजीनियर दांतों तले ऊँगली दबा रहे हैं। अगर ये सब बातें जनता के सामने आएगी तभी तो हम अपना खोया आत्मविश्वास प्राप्त कर पायेंगे ........1200 सालों तक हमें लूटते रहे, लूटते रहे, लूटते रहे और जब लुट-खसौट कर कंगाल कर दिया तब अब हमें एहसास करा रहे हों की हम कितने दीन-हीन हैं और ऊपर से हमें इतिहास भी गलत पढ़ा रहे हैं इस डर से की कहीं फिर से अपने पूर्वजों का गौरव इतिहास पढ़कर हम अपना आत्मविश्वास ना पा लें। अरे, अगर हिम्मत हैं तो एक बार सही इतिहास पढ़कर देखों हमें.....हम स्वाभिमानी भारतीय जो सिर्फ अपने वचन को टूटने से बचाने के लिए जान तक गवां देते थे इतने दिनों तक दुश्मनों के अत्याचार सहते रहे तो ऐसे में हमारा आत्म-विश्वास टूटना स्वभाविक ही हैं .....हम भारतीय जो एक-एक पैसे के लिए, अन्न के एक-एक दाने के लिए इतने दिनों तक तरसते रहे तो आज हीन भावना में डूब गए, लालची बन गए, स्वार्थी बन गए तो ये कोई शर्म की बात नहीं........ऐसी परिस्थिति में तो धर्मराज युधिष्ठिर के भी पग डगमगा जाएँ....आखिर युधिष्ठिर जी भी तो बुरे समय में धर्म से विचलित हो गए थे जो अपनी पत्नी तक को जुए में दावं पर लगा दिए थे।

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* चलिए इतिहास तो बहुत हो गया अब वर्तमान पर आते हैं *
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वर्तमान में आप लोग देख ही रहे हैं कि विदेशी हमारे यहाँ से डाक्टर-इंजिनियर और मैनेजर को ले जा रहे हैं इसलिए कि उनके पास हम भारतियों कि तुलना में दिमाग बहुत ही कम हैं। आप लोग भी पेपरों में पढ़ते रहते होंगे कि अमेरिका में गणित पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी हो जाती हैं जिसके लिए वो भारत में शिक्षक की मांग करते हैं तो कभी ओबामा भारतीय बच्चो की प्रतिभा से डर कर अमेरिकी बच्चो को सावधान होने की नसीहत देते हैं । पूर्वजों द्वारा लुटा हुआ माल हैं तो अपनी कंपनी खड़ी कर लेते हैं लेकिन दिमाग कहाँ से लायेंगे....उसके लिए उन्हें यहीं आना पड़ता हैं ....हम बेचारे भारतीय गरीब पैसे के लालच में बड़े गर्व से उनकी मजदूरी करने चले जाते थे, पर अब परिस्थिति बदलनी शुरू हो गयी हैं। अब हमारे युवा भी विदेश जाने की बजाय अपने देश की सेवा करना शुरू कर दिए हैं ....वो दिन दूर नहीं जब हमारे युवाओं पर टिके विदेशी फिर से हमारे गुलाम बनेंगे। फिर से इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि पूरे विश्व पर पहले हमारा शासन चलता था जिसका इतिहास मिटा दिया गया हैं ........लेकिन जिस तरह सालों पहले हुई हत्या जिसकी खूनी ने अपनी तरफ से सारे सबूत मिटा देने की भरसक कोशिश की हो, उसकी जांच अगर की जाती हैं तो कई सुराग मिल जाते हैं जिससे गुत्थी सुलझ ही जाती हैं, बिलकुल यहीं कहानी हमारे इतिहास के साथ भी हैं जिस तरह अब हमारे युवा विदेशों के करोड़ों रुपये की नौकरी को ठुकराकर अपने देश में ही इडली, बड़ा पाव सब्जी बेचकर या चालित शौचालय, रिक्शा आदि का कारोबार कर करोड़ों रुपये सालाना कम रहे हैं, ये संकेत हैं की अब हमारे युवा अपना खोया आत्म-विशवास प्राप्त कर रहे हैं और उनमे नेतृत्व क्षमता भी लौट चुकी हैं तो वो दीन भी दूर नहीं जब पूरे विश्व का नेतृत्व फिर से हम भारतियों के हाथों में होगा और हम पुन: विश्वगुरु के सिंहासन पर आसीन होंगे। जिस तरह हरेक के लिए दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता है वैसे हम लोगों के 1200 सालों से ज्यादा रात का समय कट चुका हैं अब दिन निकल आया हैं ...इसका उदाहरण देख लो भारत का झारखंड राज्य जहां जनसँख्या 3 करोड़ की नहीं हैं और यहाँ 14,000 करोड़ का घोटाला हो जाता हैं फिर भी ये राज्य प्रगति कर रहा है।

इसलिए अपने पराधीन मानसिकता से बाहर आओ, डर को निकालों अपने अन्दर से हमें किसी दूसरे का सहारा लेकर नहीं चलना हैं। खुद हमारे पैर ही इतने मजबूत हैं की पूरी दुनिया को अपने पैरों तले रौंद सकते हैं हम ...हम वही हैं जिसने विश्वविजेता का सपना देखने वाले सिकन्दर का दंभ चूर-चूर कर दिया था। गौरी को 13 बार अपने पैरों पर गिराकर गिडगिडाने को मजबूर किया और जीवनदान दिया। जिस प्रकार बिल्ली चूहे के साथ खेलती रहती हैं वैसे ही ये दुर्भाग्य था हमारा जो शत्रू के चंगुल में फंस गए क्योंकि उस चूहे ने अपनों की ही सहायता ले ली पर हमने उसे छोड़ा नहीं, अँधा हो जाने के बावजूद भी उसे मारकर मरे........जिस प्रकार जलवाष्प की नन्ही-नन्ही पानी की बूंदें भी एकत्रित हो जाने पर घनघोर वर्षा कर प्रलय ला देती है, अदृश्य हवा भी गति पाकर भयंकर तबाही मचा देती है, नदी-नाले की छोटी लहरें नदी में मिलकर एक होती है तो गर्जना करती हुई अपने आगे आने वाली हरेक अवरोधों को हटाती हुई आगे बढती रहती है वैसे ही मैं अभी भले ही जलवाष्प की एक छोटी सी बूंद हूँ, पर अगर आप लोग मेरा साथ दो तो इसमें कोई शक नहीं की हम भारतीय फिर से इस दुनिया को अपने चरणों में झुका देंगे....... और मुझे पता हैं दोस्त.........मेरे जैसी करोड़ों बूंदें एकृत होकर बरसने को बेकरार हैं इसलिए अब और ज्यादा विलंब ना करो और मेरे हाँथ में अपना हाँथ दो मित्र और अगर किसी को इस लेख से किसी भी प्रकार की चोट पहुंचाई तो उसके लिए भी क्षमा मांगता हूँ।

Wednesday, August 8, 2012

क्या गलत कहा आडवाणी जी ने ? यूपीए 2 को अवैध और करोड़ो रुपये देकर बनाई सरकार कहा तो क्या गलत है ?





आईबीएन समूह के सर्वेसर्वा राजदीप सरदेसाई अगर ब्रिटेन या अन्य यूरोपीय देशों में होते तो निश्चित मानिए कि उनकी जगह जेल होती और उनके न्यूज चैनल आईबीएन पर ताला जड़ गया होता। सामाजिक जलालत अलग से झेंलनी पड़ती। कानूनों की घेरेबंदी में इनकी ईमानदारी के पचखडे उड़ गये होते। इनकी पेज थ्री संस्कृति जमींदोज हो जाती। सड़कों पर चलने के दौरान इनके उपर अंडे-टमाटरों की बरसात होती। इनकी ज्ञात और अज्ञात संपति भी अपराध की श्रेणी में खड़ी होती। लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ है जिसका मतलब है कि अनैतिक, पतनशील और भ्रष्ट सत्ता वाली व्यवस्था के अंतर्गत ही राजदीप सरदेसाई जैसी संस्कृति जन्म ले सकती है और फल-फूल सकती है।

कैश फॉर वोट कांड में राजदीप सरदेसाई एक अपराधी के तौर पर खड़े हैं।

एक साथ इन्होंने कई अपराधिक षडयंत्रों को रचा और संबंधित कानूनों के पचखड़े उड़ाये। प्रसारण नियमावली का उल्लंधन किया। दर्शकों और पाठको के कानूनी/नैतिक और परम्परागत अधिकार से वंचित किया। राजदीप सरदेसाई को न्यूज दबाने के षडयंत्र के लिए प्रसारण लाइसेंस दिये गये थे क्या? पत्रकारिता के मूल्यों और जिम्मेदारियों की ऐसी हताश प्रक्रिया के उदाहरण रचकर पत्रकारिता की विश्वसनीयता और लोकतांत्रिक ढाचे पर कलंक का बीज बोया गया है। मीडिया की थोड़ी सी भी समझ रखने वाली देश की आबादी स्पष्ट तौर पर राजदीप सरदेशाई के उस कुकृत्य को अपराध की श्रेणी में ही नहीं मानता है बल्कि चैनल चलाने के निहित जरूरी अहर्ताओं का उल्लंघन भी मानता है। मीडिया स्टडी ग्रुप के शोध में दिल्ली और छोटे-छोटे शहरों के पत्रकारों की राय एकमत रूप से आईबीएन और इनके कर्ताधर्ता राजदीप सरदेसाई को अप्रत्यक्ष नहीं बल्कि प्रत्यक्षतौर पर दोषी माना है और प्रसारण लाइसेंस का उल्लंधन भी।

अगर आईबीएन ने समाचार दबाने का षडयंत्र नहीं किया होता और ईमानदारी दिखायी होती तो निश्चित तौर पर मनमोहन सिंह, उनके मैनजरों तथा अमर सिंह एंड पार्टी का काला चेहरा उसी समय उजागर हो गया होता जिस समय परमाणु मुद्दे पर सरकार बचाने के लिए सांसदों के जमीर को खरीदा गया था और लोकतंत्र को पैसों की शक्ति से कुचला गया था। किस उ्देश्य से समाचार प्रसारण रोकने का षडयंत्र हुआ था। कही कांग्रेस/ मनमोहन सत्ता और आईबीएन के बीच पैसे की शक्ति तो काम नहीं कर रही थी। कही सांसदों को पैसे के बल पर खरीदने जैसी प्रक्रिया कांग्रेस और उसके मैनजरों ने आईबीएन के साथ तो नहीं चलायी थी? यही खोज का विषय है। पुलिस इस पर निष्कर्ष स्थापित कर सकती है। पत्रकारिता में चोर-चोर मसौरे भाई की संस्कृति हावी हो गयी है। इसीलिए जब टू जी स्पेक्टरम में बरखा दत्त पत्रकारिता को बेचती है तब राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार समर्थन में खड़ा होकर बरखा दत्त को जलालत झेलने और कानून का ग्राह बनने से बचाने के लिए कलम-आवाज उठाते हैं। जब राजदीप सरदेसाई केश फॉर वोट कांड को दबाता है तब पत्रकारिता के अन्य मठाधीश अपनी आवाज बक्से में बंद कर देते हैं। यह चोर-चोर मसौरे भाई की ही लूट,चोरी और भ्रष्टाचार की कहानी है।

रूपर्ट मर्डोक का उदाहरण

जो लोग आईबीएन और राजदीप सरदेसाई एंड कंपनी को सत्यवादी हरिश्चंद्र से भी बड़ा सत्यवादी मानते हैं और इनके कुकत्यों को पत्राकारिता के ज्ञात और परम्परागत यथार्थों के विपरीत नहीं मानते उन्हें मीडिया सुलतान रूपर्ट मर्डोंक के प्रकरण को आत्मसात करना चाहिए। ब्रिटेन ही नहीं बल्कि दुनिया का मशहूर अखबार ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड ‘ और मीडिया सुलतान रूपर्ट मर्डोक के हश्र का उदाहरण हमारे सामने है। न्यूज ऑफ द वर्ल्ड का प्रकाशन सदा के लिए बंद कर दिया गया। न्यूज ऑफ द वर्ल्ड ने समाचार की खोज में निजी तौर पर टेलीफोन टेप का अपराध किया था। यह अपराध उसने न्यूज को दबाने या फिर ब्लैकमैलिंग के उद्देश्य से नहीं किये गये थे। खोजी पत्रकारिता और पाठकों के बीच विशेष समाचार सामग्री देने की होड़ में न्यूज आफ द वर्ल्ड ने ब्रिटेन की राजशाही सहित अन्य प्रमुख हस्तियों के टेलीफोन टेप कर सनसनी समाचार पाठकों के बीच परोसे थे। जैसे ही यह प्रकरण सामने आया वैसे ही ब्रिटेन की कैमरून सरकार सकते में आ गयी और कैमरून के मीडिया सलाहकार सहित न्यूज ऑफ द वर्ल्ड के टॉप अधिकारी जेल के अंदर पहुंच गये। मर्डोक के खिलाफ संज्ञान लिया गया और उन्हें ब्रिटेन की संसदीय समिति के सामने कई दिनों तक हाजिरी लगानी पड़ी। इस दौरान मर्डोक पर हमले भी हुए। न्यूज आफ द वर्ल्ड से जुड़े टॉप मीडियाकर्मियों को जनाक्रोश की जलालत झेलनी पड़ रही है और वे सड़कों पर बाधा रहित घूम भी नहीं सकते। उन्हें अंडो और टमाटरों की अपने उपर बरसात होने का डर है। जबकि न्यूज आफ द वर्ल्ड का अपराध आईबीएन की तुलना में कहीं भी नहीं ठहरता है। न्यूज आफ द वर्ल्ड का हश्र इसलिए हुआ कि ब्रिटेन की सामाजिक और सत्ता व्यवस्था में अभी भी नैतिकता है।

आईबीएन का स्टिंग आपरेशन
अमेरिका के साथ परमाणु 123 करार पर वामपंथी जमात के समर्थन खींच लेने के कारण मनमोहन सिंह सरकार अल्पमत आ गयी थी। सांसदों की खरीद के बिना मनमोहन सिंह की सत्ता बचती और न ही अमेरिका के साथ 123 परमाणु करार संसद में पास होता। सांसदों की खरीद के लिए कांग्रेस के मैनेजर तो थैली खोलकर बैठे ही थे, इसके अलावा अमर सिंह और मुलायम सिंह एंड पार्टी भी सांसदों के खरीद में लगे हुए थे। अमेरिका की परमाणु कंपनियां और देश के कांग्रेसी सत्ता समर्थक उद्योगपति धन की वर्षा कर रहे थे। भाजपा सहित अन्य अन्य विपक्षी दलों के सांसदो पर पैसे की शक्ति का लालच दिया गया था। भाजपा के सांसदों ने इसकी शिकायत आलाकमान से की थी। भाजपा आलाकमान ने आईबीएन और राजदीप सरदेसाई से सांसदों की खरीदने की कांग्रेसी और अमर-मुलायम एंड पार्टी की करतूत का स्टिंग आपरेशन करने के लिए संपर्क्र किया था। भाजपा से आईबीएन और राजदीप सरदेसाई ने वायदा किया था कि आपरेशन चाकचौंबद होगा और कांग्रेस की पैसे की शक्ति से उनकी ईमानदारी नहीं डिगेगी। सच को उजागर कर मनमोहन सत्ता का खेल बेपर्दा होगा।

नोट लहराने की बेबसी
आईबीएन ने ईमानदारी नहीं दिखायी। स्टिंग आपरेशन तो किया पर उसने स्टिंग आपरेशन को दिखाने से साफ इनकार कर दिया। अमान्य और प्रत्यारोपित तर्क प्रस्तुत किये गये। भाजपा राजदीप सरदेसाई एंड कंपनी विश्वास कर ठगी गयी। सांसदों को खरीदने की कांग्रेसी/अमर-मुलायम एंड पार्टी की करतूत पर पर्दा उठने की उम्मीद बेकार साबित हो गयी थी। हारकर भाजपा सांसदों ने अमर सिंह-मुलायम सिंह एंड पार्टी द्वारा दिये गये एक करोड़ रूपये को संसद में लहराना पड़ा। संसद में रिश्वत के रूप में दिये गये एक करोड़ रूपये लहराने की यह पहली घटना थी। कायदे से इस करतूत का पर्दाफाश आईबीएन को करना चाहिए था। अगर आईबीएन नोट की शक्ति से सांसदों की जमीर खरीदने का खेल प्रसारित कर दिया होता तो संसद में मनमोहन सरकार बेपर्दा हो जाती।

22 जुलाई से 11 अगस्त के बीच कौन सा खेल हुआ
22 अगस्त 2008 को कैश फॉर वोट कांड की करतूत सामने आयी थी। लोकतंत्र की इस हत्या पर लोकतांत्रिक समाज-व्यवस्था हतप्रथ थी। देश का लोकतांत्रिक संवर्ग और आम आबादी इस कंाड की असली सच्चाई जानने की उम्मीद आईबीएन से कर रहा था। आईबीएन कभी स्टिंग आपरेशन को अधूरा होने तो कभी तस्वीर साफ नहीं होने और कैश फॉर वोट कांड में संलग्न लोगों की शख्सियत अज्ञात होने जैसे रक्षा कवज बनाता रहा। इस दौरान उसकी कांग्रेस-मनमोहन सिंह सत्ता या फिर अमर सिंह-मुलायम सिंह एंड पार्टी से आईबीएन व राजदीप सरदेसाई एंड पार्टी के बीच कौन सा खेल हुआ। कही पैसे की शक्ति से आईबीएन भी तो प्रभावित नहीं हुआ? इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है। सच तो यह है आईबीएन और कांग्रेस मनमोहन सिंह सरकार के बीच सैकड़ो करोड़ की डील हो सकती है। ऐसे ही कोई नामी-गिरामी न्यूज चैनल अपनी विश्वसनीयता नहीं खो सकता है। ऐसे समय में जब कांग्रेस-मनमोहन सरकार और अमर-मुलायम अपनी साख बचाने और कैश फॉर वोट कांड पर पर्दा डालने के लिए कोई/कैसी भी हदें पार कर सकतंे थे। पत्रकारिता संवर्ग की इस आशंका को झुठलाया नहीं जा सकता है कि राजदीप सरदेसाई स्टिंग आपरेशन को दबाने और सत्यता छुपाने की कीमत भी करोड़ों में वसूली होगी। मीडिया स्टटी ग्रुप के सर्वेक्षण में पत्रकारिता संवर्ग ने ऐसी ही राय प्रकट की थी।

चोरी-चोरी दिखाया क्यो?
इलेक्टानिक्स मीडिया का इतिहास खंगाल लीजिये और राजदीप सरदेसाई की चोरी और पत्रकारिता बेचने की कहानी की नीयत भी पकड़ लीजिये। जब कोई सनसनी या विशेष समाचार का खुलासा होता तो चैनल कई दिनों से इसकी सूचना बार-बार देते हैं और सनसनी खेज समाचारों की फूटेज भी दिखाते हैं। विज्ञापन बटोरने का खेल भी खेलते हैं इसकी मिसाल शायद आपको याद हो जब लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री थे तब लालू यादव के क्षेत्र से एक खबर इसी चैनल पर फ्लैश की जा रही थी कि लालू ने कितने ही लोगों की जमीन हथिया ली है लेकिन उस जमीन के बारे में कोई खुलासा नहीं हुआ, दो दिन तक लालू द्वारा जमीन हथियाने की पट्टी समाचार चलाने के बाद उस खबर की सच्चाई सदा के लिए जमींदोज कर दिया गया था। उसी तरह कैश फॉर नोट कांड का प्रसारण राजदीप एंड कंपनी ने बेहद गोपनीय ढंग से और बिना पूर्व सूचना के 11 अगस्त 2008 को कर दिया। सनसनी खेज और विशेष समाचारों के प्रसारण बार-बार दिखाये जाते हैं। दर्शकों की प्रतिक्रिया लेने के लिए चैनलों के रिर्पोटर खाक छानते हैं। 19 दिनों तक इस स्टिंग आपरेशन को दबा कर रखा जाता है क्यों? अगर देश भर में मीडिया कर्मियों और बुद्धिजीवियों में हो हल्ला नहीं मचता तो 19 दिन बाद भी कैश फॉर वोट कांड को नहीं दिखाता। चर्चा में कई सवाल है। इन सवालों में अमर सिंह और अहमद पटेल के घर में किये गये स्टिंग आपरेशन को गोलमाल करना भी है।

बेशर्मी की हद भी देखिये
विकीलीक्स ने खुलासा किया था कि कैश फॉर वोट कांड में मनमोहन सिंह और कांग्रेस ने सांसदों की जनमत खरीदा था। विकीलीक्स के खुलासे में ऐसी कोई नयी बात नही थी जो राजनीतिक-पत्रकारिता संवर्ग से ओझल थी। जैसे ही विकीलीक्स का खुलासा सामने आया वैसे ही आईबीएन की सनसनी शुरू हो गयी। आईबीएन पर विकीलीक्स के खुलासे का जिक्र तो हुआ पर गर्व के साथ समाचार दिखाया गया कि सबसे पहले आईबीएन ही इस कांड को दिखाया था और इसकी पोल खोली थी। गर्व और वीरता का ऐसा भाव दिखाया गया जैसा कि सही में आईबीएन कैश फॉर वोट कांड में सत्यता सामने लाया है। 19 दिनों तक क्यो छुपा कर रखा स्टिंग आपरेशन को। अमर सिंह और अहमद पटेल के घरों में किये गये स्टिंग आपरेशन का गोलमाल क्यों हुआ? यह सब कौन बतायेगा?

न्याय प्रक्रिया की जिम्मेदारी
मनमोहन सरकार प्रारंभ से ही इस कांड को दफन करने में लगी है। इसलिए पुलिस अमर सिंह एंड कंपनी और अहमद पटेल सहित राजदीप सरदेसाई एंड कंपनी को बचा रही है। पुलिस के माध्यम से सच का सामने आना मुश्किल है। इसलिए पुलिस जांच की निगरानी ही सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया होगी। अगर न्यायालय अपनी निगरानी में पुलिस को चाकचौबंद/दबाव रहित और निष्पक्ष जांच करने के लिए बाध्य करेगा तभी सभी सच्चाई की हम उम्मीद कर सकते हैं। पुलिस-न्यायालय द्वारा आईबीएन/राजदीप सरदेसाई की गर्दन क्यों नही नापी जानी चाहिए? ब्रिटेन के मशहूर अखबार ‘न्यूज ऑफ वर्ल्ड‘ के ह्रास और मीडिया सुलतान रूपर्ट मर्डोंक की कानूनी घेरेबंद व उनके खिलाफ ब्रितानी समाज में उपजे जनाक्रोश की कसौटी जैसा ही व्यवहार और कानूनी कार्रवाई आईबीएन समूह और राजदीप सरदेसाई एंड कंपनी के खिलाफ होना जरूरी है। आज राजीव सरदेसाई जैसा पत्रकार रातो रात चैनल मालिक कैसे हो जाता है। चैनल चलाने के लिए आया धन कही आईएसआई एजेंड गुलाम नवी फई जैसा तो नहीं है? इसकी जांच कौन करेगा? मीडिया जगत को भी अपनी छवि बचाने के लिए राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों पर गहणता के साथ विचार करना होगा। अगर नहीं तो फिर पत्रकारिता जगत अपने आप को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने का दावा कैसे कर सकता है   link is  www.pitamberduttsharma.blogspot.com. " 5th pillar corrouption killer " 

Tuesday, August 7, 2012

"अडवानी जी अब - संभावित राष्ट्रपति हो सकते हैं " ???

 " सम्भावना" तलाशते रहने वाले मित्रों को,मेरा सादर नमस्कार !!
                       अगर जीवन से आशा और सम्भावना समाप्त हो जाए तो जीने का आनंद ही ख़त्म हो जाता है !! राजनीति में तो विशेष रूप से ये आवश्यक हो जाता है अन्यथा आप " लाइन " में नहीं रह पाते !! सन 2009 के चुनावों में भाजपा ने उनको संभावित प्रधानमंत्री मान लिया था लेकिन कोई क्या करता , संसद में उतनी सीटें ही नहीं मिल पायीं !!N.D.A. के घटक दल भीं  बेचारे क्या कर सकते थे ???
                        अब जनता के दिल में नरेंदर मोदी जी विराजमान हो चुके हैं !भाजपा उन्हें चाहे चुनावों से पहले अपना संभावित प्रधानमंत्री घोषित करे या बाद में ,ये उसके नेत्रित्व को सोचना है ! केंद्रीय भाजपा नेता सब अब सिर्फ केंद्र में मंत्री बन्ने के काबिल ही रह गए हैं !! या फिर राज्यपाल,चाहे वो सुषमा जी हों या जेटली जी,ये सबको समझना होगा !! और अगर भाजपा ऐसा नहीं करती तो अडवानी जी का कथन सत्य साबित हो जाएगा !!! भाजपा को घटक दलों से ये स्पष्ट कह देना चाहिए की चुनावों के बाद चर्चा करेंगे !!
                         अगर ऐसा नहीं होता , तो अन्ना टीम और बाबा रामदेव जी को मोदी जी के साथ खुलकर आ जाना चाहिए !! क्योंकि आज के समय में मनमोहन सिंह व राहुल के सामने " मोदी " से बढ़िया कोई " विकल्प " नहीं है !!!??? आज के समय की मांग है की हिंदुस्तान में कोई तो हिन्दुओं के पक्ष में खुल कर आये......!!! सभी मुसलमानों को 65 सालों से अपना घर जलाकर खुश करने में लगे हैं !! मगर वो आज तक " खुश " नहीं हुए !!!
                    इलज़ाम तो भाजपा पर हिन्दू -समर्थक होने का लगता ही है ,तो बन जाओ अबकी बार " हिन्दू पार्टी " देख लेंगे सबको बाद में ...!!
                      आप भी अपने विचार हमें लिख भेजिए हमारे ब्लॉग और ग्रुप में, जिसका नाम है "5TH PILLAR CORROUPTION KILLER " और इसका लिंक है :- www.pitamberduttsharma.blogspot.com. 
                  कर   दो " कल्याण " !!!!

Friday, August 3, 2012

" तुमने बुलाया, और हम चले आये " ! ! !

 " बुलाने पर आ जाने वाले" मित्रों को मेरा नमस्कार!     
           पिछले18 माह से " अन्ना - टीम " की तरफ से आन्दोलन चलाया जा रहा था, जिसे सारी दुनिया देख- समझ रही थी,और भारत की"बेवकूफ "  जनता, जिसे" चालाक - राजनीतिज्ञ " "समझदार जनता " कहते हैं , ने इस टीम को देखा-परखा-समझा- भाला तब कंही जाकर कुछ लाख लोगों ने इस आन्दोलन को समर्थन दिया,कुछ हजार आन्दोलन स्थल तक पंहुचे !! ज्यादा समझदार लोग या तो गए ही नहीं या आजतक आलोचना ही करते जा रहे हैं !! ये अलग बात है कीआलोचकों की " रोज़ी- रोटी का सवाल है !!
                             सरकारभी अबकी बार " बेशर्म" हो गयी ! बार-बार कहने-पूछने लगी की शरीफ कौन है,बताओ , और ज्यादा है तो अन्ना-टीम स्वयं चुनाव लड़ के संसद में आ जाए और करले अपना"लोकपाल-बिल" पास,कौन रोकता है उनको? 
                    तो लो भैया आ गए "अन्ना जी" राजनीति में!! अब वो भी "संघ" और "सोनिया"जी की तरह " रिमोट " के बटन दबायेंगे ????? "मज़ा" आएगा !!!!???
                               अभी से सभी राजनितिक दलों के लोग उनको डराने में लग गए हैं की पैसा कन्हा से आएगा ???? चुनाव जीत सकने वाले इमानदार कन्हा से लाओगे ???? आदि-आदि !!
                               इन नेताओं को मैं याद दिला दूं की अभी तो " बाबा रामदेव" जी ने आना है 9 अगस्त को..... इस लिए ज्यादा इतराने की आवश्यकता नहीं है ???? ज़रा धीरज रख्खें !!!
                                नरेंदर मोदी जी नेत्रित्व संभालेंगे तो " शरीफ व जीतने " वाले भी मिल जायेगे !!!!
                            हम जैसे कार्यकर्ताओं ने तो इमानदार नेता ढूँढने भी शुरू कर दिए हैं " मैं चुनुँगा, अपना जनसेवक " नामक कार्यक्रम बनाना और फिर जनता को दिखाना, का काम करके !! 
                      मित्रो !! निराश मत होइए, " 5TH PILLAR COOROUPTION KILLER " नामक ब्लॉग से जुड़िये, इसे पढ़िए,बांटिये और अपने अनमोल विचारों से हमें अवगत भी करवाते रहिये जी !! इसका लिंक ये है:- www.pitamberduttsharma.blogspot.com.

Wednesday, August 1, 2012

" कंट्रोल से बाहर होते, ये सरकारी कर्मचारी " !!!

 प्यारे - प्यारे मित्रों को, प्यारा - प्यारा नमस्कार ! !
                           प्यार प्रेम यानि प्रेम,प्रेम का बंधन " अटूट " होता है, चाहे वो माता का हो या पिता का, भाई का हो या बहन का,पत्नी का हो या प्रेमिका का , इन्सान जीवन भर किसी ना किसी के "प्यारे बंधन " में बंधा हुआ रहता है ! और यही बंधन आदमी को जीवन में " अनुशासन " से रहना सिखाता है !!
                         यही" अनुशासन " हमें कर्त्तव्य बोध सिखाता है ! इसी कर्त्तव्य - बोध के कारन हम अपना काम ईमानदारी से करते हैं ! जिसका फिर हमें फल प्राप्त होता  है, वेतन के रूप या किसी अन्य रूप में !!!
  जब भी इस क्रम में कंही दोष उत्पन्न होता है तभी " भ्रष्टाचार " रुपी दानव पैदा होता है । यही दानव आज भारत की " जड़ों " को खोखला कर रहा है !!
                              जब  से इस देश में नया" त्रिफला - चूरण " चला है, तभी से कई नयी समस्याएँ पैदा हो
 चली हैं ! जी हाँ, भारत के सबसे निचले स्तर की संस्था " नगर- पालिका , पंचायत " से लेकर " संसद " तक ये त्रिफला-चूरन बन चुका है !!!!!! " नेता+कर्मचारी+व्यापारी " ये तीन जने जब मिलकर " हम प्याला - हम निवाला " बन जाते हैं तो " चपडासियों और बाबुओं " तक के घरों से" करोड़ों " मिलने  लगते हैं !! 
                                 इसकाअसर ये हुआ कि रूपये तो सबके पास बढे ही, लेकिन उससे बड़ा नुक्सान ये हुआ कि सब एक दुसरे के सामने " नंगे " भी हो गए ! इसके असर से अब कोई किसी से डरना तो दूर की बात,कहना भी नहीं मानते !! बस कोई न कोई बहाना बना टरकाते चले जाते हैं!! सामने चाहे फिर कोई मंत्री हो या आम - आदमी, नतीजा " सिफ़र " ही आता है !!??????
                                अब तो हालात ये हो गए हैं कि " रक्षा-बंधन " में जकड़ कर," मुंह-मीठा " करवाकर और " दक्षिणा " लेकर नहीं, बल्कि देकर कोई काम करवालो तो करवालो अन्यथा आपका क्या अगर हमारे मनमोहन सिंह जी भी क्यों ना किसी कार्यालय पंहुच कर कितने ही जायज़ काम हेतु प्रार्थना पत्र देकर देखलें, आज्मालें , उनका भी काम नहीं होगा , चाहो तो " शर्त " लगालो !! आम- आदमी को तो कई बार इतनी बुरी तरह से धमकाते हैं कि वो बेचारा अपना काम ही भूल जाता है ?????
                            तो प्यारे मित्रो, प्यार बांटो, रक्षा-बंधन का त्यौहार मनाओ , मिठाइयाँ  खाओऔर दक्षिणा देकर अपना काम कराओ, जब तलक यंहां " गठबंधन " की सरकारें हैं और कार्यालयों में " त्रिफला-चूरण" की व्यवस्थाएं हैं !!! भ्रष्टाचार को मारने हेतु हमसे जुड़ें या स्वयं खड़े हो जाएँ इस राक्षस को मारने हेतु !! लिंक :- www.pitamberduttsharma.blogspot.com. 

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...