Thursday, December 6, 2012

" राजस्थानी परम्पराओं का खज़ाना "......!!

  
राजस्थानी लोकगीतों के सन्दर्भ में पाश्चात्य विद्वान "टेसीटोरी' ने भावविभोर होकर कहा था। ""इन गीतों में एक-एक भाव पर सारे संसार का साहित्य तुच्छ है। पारिवारिक सुख-दुख, हर्ष, शोक एवं मिलन विरह के बीच सदैव प्रेम की सूक्ष्म पर प्रबल लौ जलती रही है जो सदियों तक विदेसी अन्धड़ों के बीच भी निष्कम्प पथ पर अग्रसर रही है और यही इन गीतों की सार्थकता है, सफलता है।''

ये गीत हमारे वेद है, शास्र है, धर्म ग्रन्थ हैं। जीवन है व प्रत्येक अणु, अणु की धड़कन है। मनुष्य का जीवन हमेशा प्रकृति व समाज से सम्बद्ध उसने हमेसा प्रकृति को अपनी चेतना का एक अखण्डित तत्व माना है। जहाँ वह प्रकृति पर विजय प्राप्त करना चाहता है वहीं उसका शकालु ऱ्हदय इस बात को स्वीकार करता है कि उसके अनुनय-विनय से प्रकृति संतुष्ट हो उसका कहा मानेगी, उसे संकट से उबारने में सहायक होगी। फलस्वरुप मानव आदिम अवस्था से ही जादू-टोने, टोटके, धार्मिक अनुष्ठान, भूत-प्रेत, पिशाच आदि को संतुष्ट करता आ रहा है। जहाँ से मानव की शारीरिक शक्ति चुक जाती है, वहीं से वह इन जादू टोनों के घेरे में फंस जाता है। आदिम मानव की धार्मिक भावना का यही मूलाधार है। प्रकृति की अपनी चेतना का अंश समझने के कारण ही वह अपने हर आवश्यक कार्य से पहले देवी-देवताओं को मानता है, उनके प्रति गाता है, नाचता है, उत्सव मनाता है। इन सब कार्यों के पीछे उसकी स्वंय की, परिवार की और समाज की स्वार्थपरक भावना बोल रही होती है।

विवाह सामाजिक व्यवस्था की सर्वाधिक आवश्यक कड़ी है। समाज एवं परिवार का मूलाधार ही विवाह है। वह गृहस्थी का मेरुदण्ड है, जिस पर सारे वि का कार्यकलाप व्यवस्थित है। तो फिर इस शुभ कर्म को निर्विध एवं सकुशल सम्पन्न करने के लिए क्यों ने वह प्रकृति की अराधना करे और ईष्ट देव को संतुष्ट करे। भारतीय सदा से धर्मपरक रहा है। देवी-देवता उसके अवलम्ब हैं और उन्हें संतुष्ट करना उसका कर्तव्य है। विवाह से पहले अपने कुलदेव "मायाजी' को संतुष्ट करने के लिए अपने परिवार को साथ ले सामूहिक रुप से स्तुति करता है। इन गीतों को गाते समय प्रकृति का अणु-अणु स्पन्दित होने लगता है।


म्हें तो सगलाई देवता भेट्यां रे भंवरा।
म्हारे मायाजी रे तोले कोई नहीं भंवरा।
म्हे तो सगलाई कुलदेव भेंट्या रे भंवरा।
म्हारे भोपाजी रै तैल सिंदूर चढ़े रे भंवरा।
म्हें तो सगलाई देवां ने भेंट्या रे भंवरा।
म्हारे मायाजी रे तोले कोई नहीं रे भंवरा।

मायाजी के इसी रुप में इस देवता की जो कि उसकी मानसिक परितुष्टि का एक सबल व सशक्त प्रतीक है, प्रार्थना करते हुए वह हृदय में उसे सर्वोच्च स्थान प्रदान करते हुए अपने हृदयोदगारों को मुखरित करता है। अपनी व अपने परिवार की कुशलता चाहते हैं। यहीं नहीं वह आदिदेव विघ्ननिवारक गजानन की भी ध्यावना देना नहीं भूलता, उसकी प्रार्थना करता है।


हालो विनायक आपां जोशीड़ा रे हांला
चौखा सा लगन लिखासां है। म्हारो बिड़द विनायक।
चालो विनायक आपां बजांजा रे हालां
चौका सा सालूडां मोलवसां हे। म्हारो विड़द विनायक।

विवाह उनका परित्र कार्य है, जहाँ उससे पूर्व वह अनिष्ट के निर्वाणार्थ "मायाजी' तथा "गणेश' की पूजा करना नहीं भूलता। वहां सलल्ज नाजुक सकुमारियाँ दूल्हे की बारात में जाते सूर्य की प्रचण्ड किरणों से प्रभावित होकर उससे शिकायत करना भी नहीं भूलती और साथ ही साथ चेतावनी भी देती जाती है, कि हम तो खैर यह परेशानी सह भी लेंगे पर तुम्हारे साथ मोतियों से महगें तुम्हारे बाबासा भी है औऱ लालों से तोलने योग्य माताजी किस प्रकार यह गर्मी सहन करती होगी। जरा अपने मामा, मामी और अन्य सम्बन्धियों के कष्ट का भी तो ख्याल करो -


घाम पड़े, धरती तपै रे, पड़े नगांरा री रोल
भंवर थारी जांत मांयने।
बापाजी बिना कड़ू चालणू रे
बापा मोत्यां सूं मूंगा साथा।
भंवर थारी जांन मांयने।
माताजी बिना केडूं चालणू रे
माताजी हरका दे साथ।
भंवर थारी जान मांयने।
घाम पड़े, धरती रपै रे, पड़े नागरां री रौल
भवंर थारी जांन मांयने।

मगर इस गर्मी और परेशानी में भी उसकी भौजाइयां एवं नवयुवतियां उससे चुहल करने का मौका नहीं चूकती। चाहे गर्मी पड़े, चाहे सर्दी, तकलीफ हो या कष्ट इन ठिठोलियों के प्रकाश में कपूर सी उड़ जाती है। शायद उसे चेतावनी देने पर बुरा लगा हो, शायद वह इसे दूर करने की उधेड़बुन में कुछ परेशानी-सा महसूस कर रहा है, क्यों जरा से कष्ट के लिए उसकी आत्मा को तकलीफ दी जाए। लो उधर दूल्हे का ससुराल भी तो न आने लगा। बस बहाना मिल गया और एक स्वर से मधुर धवनि वातावरण में तैरने लगी। देख, देख ! वह रही तेरी ससुराल, जिसकी प्रशंसा करते तू थकता नहीं था। अब देख तो सही कैसा न आ रहा है, मानों जोगियों का अस्त-व्यस्त सा डेरा उतरा हो। यह कोई ससुराल होने लायक है? और तेरे ससुर को तो देख, यह आदमी है या पड़गों का बौराद मोटा-सा, भद्दा थुलथुल-सा और तेरी सास तो भैंस-सी है। मैं तो उनकी प्रशंसा बहुत किया करता था। बस ऐसे ही तेरे सास-ससुर, और तेरा साला तो "मडके' का भील सा न आ रहा है, और साली बराबर जोगियों की बदरुप फूहड़ लकड़ी-सी। देख तो सही आंखे तो खोल -


चढ़ लाडा, चढ़ रे ऊँचे रो, देखाधूं थारो सासरो रे,
जांणे जाणें जोगीड़ो रा डेरा, ऐंडू के शार्रूं सासरो रे।
चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचो रो, देखांधू थारा सुसरा रे,
जाणें जाणें पड़गो रा वौरा, ऐड़ा रे थारा सुसरा रे।
चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचे रे देखांधू थारो सासरो रे,
जाणें जाणें पड़गा री "बोंरी' ऐड़ी तो थारी सासूजी रे।
चढ़ लाड़ा चढ़ रे ऊँचे रो, देखांधू थारो सासरो रे,
जाणें जाणें जोगीड़ा री छोरी, ऐड़ी तो थारी साली रे।

कितनी गहरी व प्रबल अभिव्यंजना है। हास्य का कैसा सुन्दर वातावरण-सा बना देने की क्षमता है। न शब्दों में और यह सारे गीत विषाद के घटाटोप को उजागर करने के लिए अकेला ही काफी है।

उनका दूल्हा कोई "एरा-गैरा' नहीं, मोतियों से भी महंगा है। वह यों ही भिखारी नहीं, कि ससुराल तक पैदल चला जाए। वह फूलों से भी कोमल और कमल से भी निर्मल है। ससुराल के पास ही बाराती ने गांव के बाहर तालाब के किनारे अच्छी-सी ठोड़ पर उतरकर विश्राम कर रहे हैं, और वधू-गृह को कहला भेजती है -


ऐली पैली सखरिया री पाल
पालां रे तंबू तांणिया रे।
जाये वनी रे बापाजी ने कैजो, के हस्ती तो सामां मेल जो जी।
नहीं म्हारां देसलड़ा में रीत, भंवर पाला आवणों जी।
जाय बनी रा काकाजी ने कैजो
घुड़ला तो सांमां भेजजो जी
नहीं म्हारे देशां में रीत, भेवर पाला चालणों जी
जाय बनीरा माता जी ने कैजो
सांमेला सामां मेल जो जी
नहीं म्हारे देशलड़ां में रीत
भंवर पाला आवणों री।

और दूल्हे के सास-ससुर हर्षित हो मोतियों से जड़कर, सोने के होदे से सुसज्जित हाथी और घोड़े अगवानी के लिए भेजते हैं।

राजस्थानी रमणियों की धारण शक्ति प्रबल रही है। उन्होंने जीवन के प्रत्येक छोटे से छोटे कार्य को गीतों में बांधकर सदैव के लिए चिरस्थायी बना दिया है। उनकी पैनी न से जीवन का कोई भी अंग अछूता नहीं बचा है और इन गीतों की इतनी व्यापकता होने पर भी कहीं शिथिलता, फूहड़पन और कृत्रिमता का लेश भी दृष्टिगोचर नहीं होता, बल्कि इसके विपरीत हमें इन गीतों में आशा का सुखद संदेश एवं प्रबल भावाभिव्यक्ति के साथ-साथ राजस्थान के चेतन हृदय की धड़कन स्पष्ट सुनाई पड़ती है। यही इन गीतों की सफलता होने के साथ-साथ सार्थकता भी है।

विवाह की तैयारियां हो गई। वर-वधू दोनों मण्डप में आ गए। पुरोहित के मुँह से आशीर्वचन निकलते जा रहे थे। इधर वर पक्ष की नाजुक बहुएं नयी नवेली दुल्हन को सम्बोधन कर सान्तवना देती हुई कहती है - बहूं ! तू घबराना मत। यह मत जानना कि दूल्हा अकेला है। इसके पीछे सारा भरा-पूरा परिवार है, सभी एक से एक बढ़कर हैं। जहाँ इसका काका हवलदार है, तो चूड़ीदार पजामा पहिने वे सज्जन चोपदार हैं। कोई हकिम है तो कोई किल्लेदार है। इसके साथ के बाराती जहाँ मजेदार हैं तो उनकी औरतें भी एक से बढ़कर एक हैं। बहू ! इसके साथ देख तो सही, कितने साथी आए हैं? ये सभी तो बिखरे हुए फूलों की तरह न आ रहे हैं। समष्टि रुप में एक गजरे के गूंथें हुए कुसुम हैं, जो एक होकर भी अनेक हैं और अनेक न आने पर भी एक हैं।


बनी ! थूंई मत जाणे बना सा ऐकला रै।
झमकू ! थूंई मत जाणे ""राइवर'' ऐकला रै!
साथे चूड़ीदार, चौपदार, हाकिम ने हवालदार,
कागदियों से कांमदार, काका ऊभा किल्लेदार।
भौमा ऊबा मज्जादार, सखाया सब लारोलार
फूल बिखौरे गजरों गंधियों रै
बनी थूंई मत जाणे बनासा एकला रै।

गजरे और फूलों की उपमा तो शायद विश्व-साहित्य में भू ढूंढ़ने पर न मिलेगी।

विवाह समाप्त होता है। सारे रीति-रस्म एक-एककर समाप्त होते हैं और वह घड़ी आ पहुँचती है, जिसकी बहुत दिनों से धड़कते हृदय से प्रतीक्षा हो रही थी। बेटी की विदाई की बेला यह गीत इतना मार्मिक व करुण है कि मानव तो क्या सारी प्रकृति की आँखों में आंसू छलछला आते हैं। और जब ""कोयल बाई सिध चाल्या'' गीत गाया जाता है तो, सारा वातावरण एक बारगी ही करुणा और शौक से आप्लावित-सा हो जाता है। तो इस गीत में जो माधूर्य, मानव की सहज प्रेम भावना, स्नेह और सहानुभूति और जो मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है वह भारत तो क्या सारे वि के श्रेष्ठ काव्य में मिलना मुश्किल है। विदाई देते समय उसकी सहेलियां हिचकोले भरती हुआ गाती हैं -


म्हें थांने पूछां म्हारी धीयड़ी
म्हें थांने पूछां म्हारी बालकी
इतरो बाबा जी रो लाड़, छोड़ र बाई सिध चाल्या।
मैं रमती बाबो सो री पोल
मैं रमतो बाबो सारी पोल
आयो सगे जी रो सूबटो, गायड़मल ले चाल्यो।
म्हें थाने पूंछा म्हारी बालकी
म्हें थाने पूंछा म्हारी छीयड़ी
इतरों माऊजी रो लाड़, छोड़ र बाई सिध चाल्या।
आयो सगे जी रो सूबटो
हे, आयो सगे जी रो सूबटो
म्हे रमती सहेल्यां रे साथ, जोड़ी रो जालम ले चाल्यो।
हे खाता खारक ने खोपरा
रमता सहेलियां रे साथ
मेले से हंसियों लेइ चाल्यों
हे पाक्या आवां ने आबंला
हे पाक्यां दाड़म ने दाख
म्लेइ ने फूटर मल वो चाल्यो
म्हें थाने पूंछा म्हारी धीयड़ी
इतरों बापा जी रो लाड़, छोड़ने बाई सिध चाल्या।

हर्ष व विषाद के झूले में झूलती हुई बहू सास की तरफ रवाना हो जाती हैं। बांगा मांयली कोयल नया नीड़ बसाने की पंख फड़फड़ाकर उड़ जाती है, और पीछे छोड़ जाती है बचपन की यादें, मीठे बोल, और एक मधुर सुखद करुणा मिश्रित याद। ससुरार पहुंचकर उसे पिछले सारे समारोह तोड़कर नये सम्बन्धों से अपना तारतम्य जोड़ना पड़ता है, और इस पुरानी याद को जबरदस्ती तोड़कर नये नीड़ के सम्बन्धों की तरफ देखना इनती छोटी-सी घटना को भी लोक कवियों ने नहीं छोड़ा है। ससुराल की बहुँए, उसकी जेठानियां, ननदें और नयी सहेलियां बहूं को समझाती हुई कहती हैं - बहूं ! पीहर का मोह छोड़, अब ससुराल से स्नेह जोड़। तुम्हारे पिता तो वहीं विवश से रह गए, अपने अपने ससुर के हृदय में ही पिता की प्रतिच्छाया निहार ! अपनी माँ का मोह छोड़ने में ही कुशल है। इधर देख, ये तेरी सास है, माँ से बढ़कर हैं। इनमें माँ का रुप देख और देख तो सही तेरी सहेलियां हैं, ये देवर नहीं ! भाई हैं, ये नन्द नहीं, बहिनें हैं। पूरा परिवार यहां है, यहां पर भी देख तो सही -


झालो अलगियों तो ऐयूं जालो मांए
के धिया बाई सा रो पीवरियो तो एयूं मीडक मांए
सासूरियूं तो लीन्यूं नजरा मांए
बाइसा रो बापा जी तो रेग्या मीडंक भांए
ससुरा जी तो लीन्या नजरां मांए
सासू जी ने लीवों नजरां मांए।
बाई री साथणियां तो रैगी माड़क मांय
नणदल बाई सा ने लेवो नजरां मांए।

हर्ष व बधाई के साथ दूल्हा अपनी नयी दुल्हन के साथ घर पहुंचता है, सभी हर्षमग्न हैं। आज परिवार में एक नया प्राणी बढ़ा है। देवर को भौजाई मिली है, और जेठानियों को नई देवरानी। माँ-बाप का तो कहना ही क्या। उनका बेटा आज वास्तविक रुप में गृहस्थ में प्रवेश करता है, और बहू क्या लाया है, चांद का टुकड़ा समझ लो। साथी ही साथ कितना सारा दहेज ले आया है बेटा। मना करते-करते भी तो समझी ने कितना सारा भेज दिया है, साथ में। दुलहन तो लाया ही है साथ में "अणुअर' भी लाना नहीं भूला है। साथ में दुलहन तो लाया ही है, सबसे ज्यादा उत्कण्ठा है छोटी ननद की। उसकी भौजाई अपने बाप के घर से क्या-क्या ले आई है।


म्हारों बालूड़ों ग्यो तो सासरे, जरमरियो
काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
लाड़ी आयो ने अनुअर डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
बेड़ो लायो ने थाली डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
लोटो लायो ने लोटी डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
सीरस लायो ने ढ़ाल्यो डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो
म्हारो बालूड़ो ग्यो तो सासरे ... जरमरियो ढ़ोलो
काईं काईं लायो रे वीरा डायजिये ... जरमरियो ढ़ोलो।

ससुर-गृह पहुँचने के बाद वधू का कर्तव्य हो जाता है अपने वंश को बढ़ाना, परिवार के सुख-दुख में हिस्सा लेते हुए सबको सुखो और सन्तुष्ट रखना। कितनी मुश्किल से उसने पीहर छोड़ा। कैसे भूलें वे गलियां वह धूल, और वह सहेलियां, जिनके साथ वह खेलकर बड़ी हुई, वह कसक मिटें तो किस तरह।

रात हुई। चिरप्रतीक्षित रात, कितनी उमंगों से उसके पति ने इस रात के स्वप्न अपनी आंखों में सजोंए थे और उस स्वंय ने भी तो धड़कते हृदय से क्या-क्या नहीं सोच डाला था, और अब जब वह रात आई तो उसकी जिठानियों ने जबरदस्ती उसे कमरे में धकेल दिया। वह बाहर कैसे जाए? क्या बहाना बनाए? अचानक उसे एक उपाय सूझता है, वह पति से अनुनय करती है कि जरा-सी देर के लिए उसे बाहर खेलने जाने दो, वह उनकी जन्म-जन्म की गुलाम बन जाएगी, यदि कुछ समय के लिए उसे छोड़ दिया जाए। तब तक वह सम्भल तो जाए। धड़कते हृदय को सान्तवना तो दे ले। अपने आपको परिस्थिति के अनुकूल ढ़ालने का अवसर तो मिलें, यह सब सोच वह अनुनय करती है -


रमणा जावा दो, बना सा खेलवा जावा दो
म्हारी नणदल जोवे बाट, राजा रमवा जावा दो
फूल गजरो ................... ढ़ोला लाल गजरो
म्हारे लावे सैर री मांलण-बाल गजरो
रकवा जावा दो ...... भंवर सा खेलवा जावो दो..

पर पति भी तो चतुर था, उसने उसकी सलज्जता देख ली थी। वह इस लाज के बन्धन को समाप्त करना चाहता था, जससे दो चिर प्यासे हृदय परस्पर मिलें और अपनी प्यास बुझाएँ। वह वैसा ही चातुर्यपूर्ण उत्तर देता है ""हाँ हाँ खेलों, जरुर खेलो, आओ इधर खेलें। सारी रात भी खेलें तो भी कौन मना करता है।''


रमजो सारी रात लाडी सा खेलजो सार रात
इस ढ़ोलियां सामी खेल, बनीसा समसां सारी रात।

हक्की-बक्की हो गई वह, उसे स्वप्न में भी आशा नहीं थी कि उसके ही शस्र से उसका वार काट दिया जाएगा। वह अपने चतुर पति का संकेत समझ गई, परन्तु #ेक बार फिर कोई नया बहाना सोच रही थी कि चतुर पुरुष ने स्पष्ट करते हुए अनुनयपूर्वक समझा दिया -


रात हुई अधरात बनीसा, रात हुई अधरात
म्हारे साथे खेलो आज, लाडी सा ... सात हुई अधरात।

वह बड़े पेशोपेश में पड़ गई। उसके तो सारे वार खाली जा रहै हैं। हीठला माने भी तो तब न? उसने स्रियोचित अन्तिम शस्र सम्भाला, जो कि अमोध था, अचूक था। सलज्ज मानवती-सी एक ओर मानकर बैठ गई चुपचाप .. निस्पन्द...।

चतुर पुरुष समझ गया, एक क्षण बीता, दो क्षण बीते, आखिर वह उटा व बोला -


राजी राजी बोल बनी तो चुड़लो पेरादूं
बेराजी बोले तो म्हारी लाल चिटियो, म्हारी फूल चिटियो
नवी नारंगी रो खेल बतादूं रसिया .... मीठी खरबूजो
राजी राजी बोल बनी तो तीमणियौ पैराधूं
बैराजी बोले तो म्हारी लाल चिटियों ... म्हारी फूल चिटियों
नई नारंगी रो खेल बता दू रसिया .. मीमो खरबूजों।

इस प्रतीक प्रधान लोकगीत में शत-शत भाव गुम्फित है, जिसका विश्लेषण करने पर ही अर्थानन्द आ सकता है, और जब हम उन भोलेभाले जन कवियों के ऐसे प्रतीक प्रधान गीत देखते हैं तो, एक बारगी ही हम उनकी कल्पना और सूझ पर बिजड़ित से हो आते हैं। उनकी कला से आगे हमारा मस्तिष्क झुक जाता है। नि:संदेह यह एक ही गीत किसी भी श्रेष्ठ साहित्य के सम्मुख बेहिचक रखा जा सकता है, यही इस गीत की विशालता व महानता है।

मगर वह नाराज थी कब? यह मान-मनौबल तो जिन्दगी की प्यास थी, यही तो क्षण सदा के लिए उनके हृदय-पटल पर अंकित हो जाएगें। वह उठी उसने समझ लिया, उसका पति सुन्दर व स्वस्थ्य ही नहीं है, वाक् चतुर भी है, परिस्थिति को भांपने की क्षमता रखता है। उसने नया पासा फेंका -


शहर बाजार में जाइजो हो बना जी हो राज
पान मंगाय वो रंगतदार बनजी बांगा माहे
पांन खाय बनी सांभी सभी, बना हजी हो राजे
बनो खीचे बनी से हाथ .. हो बांगा माहे
हाव्यलड़ों मत खीचों बना जी हो राजे
रुपया लेस्सूँ सात हजार .... हो बांगा माहे
ऊधार फुझाब मैं नहीं करां हो राज
रुपया गिगलां सात हजार ... हो बांगा माहे
शहर बाजरां मती जाइजो हो राज
म्हांने परदेसी रो कांई रे विसवास .. हो बांगा माहे....

इन गीतों की व्यजंना पर जब हम ध्यान देते हैं तो ज्ञात होता है कि राजस्थानी जननायकों एवं गायिकाओं ने परिवार व रीति-रिवाजों के छोटे से छोटे क्षण व छोटी से छोटी चेष्टा को भी अपनी आंखों से ओझल नही होने दिया है। इन गीतों में एक ऐसी चेतना और तादात्मय है, जो प्रत्येक के हृदय को झकझोरकर उसे एक सूत्र में बांधने का सफल व सहज प्रयास करता है। इन गीतों में हमारी आत्मा है, हमारा संगीत है। जनमानस की चेतना है और उसके हृदय का प्रत्येक सूक्ष्मातिसूक्ष्म रुपन्दन है। प्रत्येक छोटी से छोटी घटना प्रत्यक्षीकरण है। ये गीत हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं और इन गीतों के माध्यम से हमारी सभ्यता, संस्कृति व भोले-भाले निश्छल, निष्कुपट ग्रामीण हृदयों के सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्पन्दन अक्षुण्ण है, और रहेंगे।

प्रगतिवादी मुस्लिम की व्यथा .......!!प्रगतिवादी मुस्लिम की व्यथा




कट्टरता से भला भी हो सकता है बुरा भी, यदि कट्टरता सकारत्मक हो तो परिवेश बदल सकता है, नकारात्मक  हो तो विध्वंशक हो जाता है. 

बाबरी मस्जिद काण्ड नकारत्मक कट्टरता का ही एक नमूना है, उसका इतिहास चाहे जो भी रहा हो, भले ही वह हमारे धर्म से सम्बन्धित न रहा हो, लेकिन फिर भी वह हमारी धरोहर है, क्योकि भारत में है, हमारे देश में है और हिन्दू मुसलमान सबका है. लेकिन इसी तर्ज पे कट्टरवादी मुसलमान चार हाथ और आगे है, हाल में ही शांति के प्रतिक बुध्ध्द जी की प्रतिमा का लखनऊ में तोड़े जाना इसी  बात का प्रतिक है, मुसलमान दशको पहले बाबरी का रोना तो रोते हैं लेकिन ठीक वही काम वो आजतक करते आ रहे हैं. 

इन सब के पीछे क्या कारण है ? कुरआन ? क्योकि मुल्ले (मुसलमान नहीं ) हर बात पे ईश्वरीय वाणी का हवाला दे हर बात पे बरगलाते हैं. ये हर मुसलमान के मन में भर दिया जाता है की कुरआन ईश्वरीय वाणी है. सारी जड बस यहीं से शुरू होती है. 

जिस समय कुरआन की रचना हुयी उसका उद्देश्य बड़ा स्पष्ट था, मानव जाती को सुधारना न की बिगड़ना. इसी सोच के साथ उन्होंने कुरआन की रचना की. उन दिनों अरब में शिखर तक लुट मार और पापाचार फैला हुआ था, औरतो का बिकना, हत्या, लूटमार, वहां का लोकाचार था. जिससे मोहम्मद दुखी रहा करते थे, शायद  वो एक सदात्मा थे .. तब उन्होंने अरब वासियों को सुधारने के लिए कुरआन लिखा (लिखवाया). 

और अपने विचारो से सबको अवगत करने की सोची.लेकिन बदलाव किसको पसंद है ? लोगो ने विरोध किया, यहाँ तक की लोग मोहम्मद के दुश्मन भी हो गए, मोहम्मद भागे भागेफिरने लगे, फिर उन्हें एक उपाय सुझा, क्यों न इश्वर  का सहारा ले कर इनको इंसान बनाया जाए, कहते हैं न की हिम्मते मरदा मददे खुदा, फिर उन्होंने अपनी बातो को इश्वर वाणी बताई ताकि कम से लोग उनको सुने, यदि  मन मात्र के भले के लिए कोई झूठ बोले तो उसे पाप नहीं माना जा सकता.जिससे लोगो में बदलाव हुआ, लोग रस्ते पे आना शुरू हुए. उनको ये नहीं पता था की  मानव इतना नीच है की उनके जाने के बाद कालांतर में ये मानव अपने कुकर्मो का बिल भी उन्ही के नाम पे फाडेगा. बाद में स्वार्थी मुल्ले मौलवी मोहमद के नाम पर ही उल जलूल व्याख्या कर लोगो को कट्टर बनाने का काम शुरू किया सिर्फ अपने फायदे के लिए, बिना ये समझे की मोहम्मद ने इसको इश वाणी का नाम क्यों दिया. किसी भी चीज के दो पहलू होते है, इश्वर के नाम पे सुधार की शुरुवात मोहम्मद ने  की और बिगाड़ की शुरुवात इनके स्वार्थी अनुयायियों ने. 

कुरआन पढ़ने से स्पष्ट मालूम पड़ता  है की वो सिर्फ अरब वासियों को ध्यान में रख कर बनाया गया था. अब आप ही सोचिये यदि कुरआन भगवान्/परमेश्वर का होता तो सिर्फ अरब आधारित क्यों लिखा जता ?? सारे तथ्यों का आधार अरब ही क्यों होता ? या तो उसमे पूरी दुनिया के बन्दों को मुसलमान मानना चाहिए क्योकि इश्वर ने सारे दुनिया के हर इंसान, जीव को बनाया है.  लेकिन उसमे गैर मुसलमान का जिक्र क्यों ?? क्या बाकी भगवान् के पुत्र/या उनके बनाये नहीं है ? क्या इश्वर कभी ये कह सकता है की तुम मेरे बेटे हो और वो नहीं ? क्या इश्वर भी धर्मांध हो सकता है. हाँ  चाहे तो वो ये कह सकता था की अच्छा मुसलमान और बुरा मुसलमान, बुरे मुसलमान अपने पे ईमान लाये, न की इश्वर "गैर मुसलमान" शब्द का प्रयोग करता. क्या इश्वर मानव को दो भागो में विभक्त करना चाहता था ?  भाई धर्म अच्छी चीज है, उसका उपयोग गलत और सही हो सकता है. धरम ग्रन्थ हमारे लिए हैं हम धर्म ग्रंथो के लिए नहीं,  ठीक वैसे ही जैसे ताला चाभी घर के लिए बनाया जाता है, किसी घर को ताला चाभी के लिए नहीं बनाया जाता, क्योकि यदि हम धर्म के नाम पर धर्मांध हो गए तो हमारा फायदा, मुल्ले/पंडित/ पादरी और इन सबके पिता जी - नेता लोग उठा ले जाते है..और हमारे दिमाग में भी ये बाते बस इसीलिए भरी जाती है की हम इनके लगाम में रहे है. 

कालांतर में कुरआन में गुपचुप तरीके से न जाने कितने बदलाव हुए लेकिन ये बाहर नहीं आने दिया जाता की हमने कुछ बदलाव किया है, वो बदलाव नकारात्मक है.इन मुल्लो की परेशानी ये थी कुरआन को पूरी तरह से बदल भी नहीं सकते थे, क्योकि कुरआन आते ही कुछ अच्छे आलिम लोगो के हाथ में भी पहुची, वो इन मुल्लो का पोल खोल देते, इसलिए इन मुल्लो ने बड़े सुनियोजित ढंग से कुरआन में चुपके चुपके बदलाव किया. कई पीदियो तक.... मेरी बात की सत्यता जाचना चाहते हैं तो कुरआन की ही कई लेखको द्वारा टीका पढ़िए, सबने अपने अपने हिसाब से टिका  लिखा है. ये हाल सिर्फ कुरआन के साथ ही नहीं बाकी सारे धर्म ग्रंथो के साथ भी है . तो जब बदलाव हो ही रहा है तो सकारत्मक क्यों न हो. क्यों हम इश्वर के पाँव में जंजीर जंजीर बाध् उनको भी अपने बुरे कामो में घसीटते रहे ? 

कुरआन बस एक साहित्य है, किसी के अपने निजी विचार, जो मानव मात्र के भलाई के लिए बनायीं गयी और असरदार ढंग से काम करे इसलिए इश्वर का सहारा लिया गया. इससे जादा और कुछ नहीं ये कोई इश्वर की किताब नहीं. अब मुसलमान भाई कहते हैं, की कुरआन जैसी एक आयत लाओ जो "डिफरेंट" हो. भाई हर लेखक  अपना विचार होता है. अब मई ये कहूँ की तुम प्रेमचंद्र जैसी जैसे कोई एक कहानी लाओ, बिलकुल डिफरेंट, माने लोचा , कुरआन जैसी भी हो और डिफरेंट भी हो. अजब दिल्लगी है भाई.

फिर कहते हैं हिन्दू को धर्म नहीं, रामायण या गीता में कहीं भी इस शब्द का कोई उपयोग नहीं. बिलकुल सत्य वचन. हमारे परिवेश के कारन  हमें हिन्दू कहा गया. और रामायण और गीता में हिन्दू या किसी धर्म का नाम न होना ही उसका बड़प्पन है. क्योकि ये साहित्य मानव मात्र के कल्याण  के लिए है न की किसी विशेष धर्म या समुदाय के लिए.और इसके विपरीत कुरआन में मुसलमान का जिक्र आया है क्योकि उस जगह की परिस्थितिया और अरब जगह मुसलमान ही थे. मोहम्मद साहब ने बस इस शब्द का उपयोग न कर "बुरे" या "अच्छा"  मानव का शब्द इजाद किया होता तो शायद ही आज कोई वैमनस्यता होती. मुसलमान भाई भी कहते है की कुरआन किसी धर्म या समुदाय के लिए नहीं, बजाय इसके की यही सबसे उच्च धर्म है,और मुसलमान सबसे बेहतर है.

 हम बेहतर है" वाला ऐटीटयूट भी गलत नहीं है, बशर्ते इसी को कर्मो द्वरा पूरा किया जाये बजाय की दुसरे धर्मो और उनके प्रतीक चिन्हों पे आघात करना, जरा सोचिये किसी की भावनावो पे चोट कर क्या आप इश्वर को खुश कर सकते हैं ? जरा सोचिये दुनिया की तस्वीर क्या होगी जब "हम बेहतर है" दिखाने के लिए सारे धर्म वाले आपस में सकारात्मक प्रतिस्पर्धा बेहतर से बेहतर कार्य के लिए करे. मुसलमान कहे हम बेहतर है  हमने १० को सहारा दिया, हिन्दू कहे की नहीं भाई हम भी है, हमने भी ५ को सामर्थ्यनुसार तो सहारा दिया है, इसाई कहे की हम ३ का पालन पोषण करते है. बुराई तब आ जाती है जब हम बिना कुछ किये दुसरे को कहने लगते है की तुम खराब हो.

एक प्रगतिवादी मुसलमान भाई के दिल की कसक ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ :- 
एक बात जो इस्लाम में बहस का मुद्दा हो सकती है या कहुं की सरे मज़हब का सुधर कर सकती है की क्या कुरआन और शरियत के बहार जाया जा सकता है क्या आज के समय के हिसाब से चला जा सकता है , तो में यही कहूँगा ( चाहे इसके बाद मेरे खिलाफ फतवों की बारिश भी हो जाये ) हाँ बिलकुल जाना चाहिए , और ये मुहम्मद सल्लालाहू अ.व ने भी कहा था की जब किसी नतीजे पर न जा सको तो अपने दिमाग से काम लेना हो सकता है हर बात का जवाब कुरान या हदीस न दे पाए. एक समय जो इस्लाम का सुनहरा दौर कहा जाता है उस वक्त तब एक शब्द का ज्यादा इस्तेमाल होता था एवं उसे ‘इज्तीहाद कहा जाता था। इस शब्द का अर्थ है स्वतंत्र चिन्तन। व्यवहार में यह शब्द हर आदमी औरत को यह आज़ादी देता था कि वे महजबी सीखों को आज के दौर की कसौटी पर कसें एवं फिर उन पर अमल करें। किन्तु जैसे-जैसे मुस्लिम साम्राज्य स्पेन से बगदाद तक फैला मुफ्तियों ने इस सल्तनत की रक्षा के लिए स्वतंत्र चिन्तन के द्वार बन्द कर दिये। इस तर्क एवं चिन्तन का स्थान फतवों ने ले लिया एवं मुसलमानों को सिखाया गया कि वे खुद सोचने की जगह इन फतवों पर अमल करें। इस्लाम के वर्तमान युग की त्रासदी यही है कि मुसलमान अपने दिमाग में उठने वाले सवालों को खुले में उठाने से डरते हैं एवं मुल्ला मौलवियों द्वारा जो कुछ भी कहा जाता है उस पर अमल करते हैं। और यही सरे फसाद की जड़ है ,
मेरा सभी मुसलमान भाई और बहनों से निवेदन है की ज़रा इस बात पर ज़रूर गौर करें.

अगर हम अपने उलेमा, राजनीतिज्ञों एवं मुल्लावों की तकरीरों को सुने तो वे हमेशा पश्चिमी सभ्यता के खोट गिनाते दिखेंगे किन्तु वही मुल्ला एवं पालिटीशियन अपने बच्चों को अमेरिका के स्कूल एवं कॉलेजों में दाखिले के लिए जमीन आसमान एक किये रहते हैं। तमाम अमीर मुसलमान परिवार पश्चिम में छुट्टियाँ मनाते नजर आते हैं। यहाँ तक कि धन से भरपूर खाड़ी के देशों में भी वहाँ की अवाम अपने को सोने के पिंजरे में बन्द महसूस करती है। आखिर क्या वजह है कि इस्लाम रचनात्मकता, नई सोच और मानवाधिकारों का गला घोटने वाला मजहब बन गया है। पाकिस्तान १९४७ में वजूद में आया था लेकिन एक साल बाद जन्म लेने वाले इजराइल से कहीं पीछे रह गया है।इस्लाम के पिछड़ेपन की एक बड़ी वजह यह भी है कि इस मजहब का जन्म अरब में हुआ जहाँ घुमन्तु रेगिस्तानी कबीले रहा करते थे। कबीलों की एक विशेष संस्कृति होती है। उनका अस्तित्व किसी शेख का हुकुम मानने पर निर्भर करता है। वहाँ मर्द राज करता है एवं औरत की कोई अहमियत नहीं होती।
आज भी अरब लोग खुद को असली मुसलमान और बाकी इस्लामी दुनिया को धर्मान्तरित मुसलमान समझते हैं। बाकी दुनिया के मुसलमान भी इसी अरबी मानसिकता को पालने एवं रीति रिवाजों की नकल करना चाहते हैं। मांजी का मत है कि मुस्लिम जगत पर औरतों की यह पकड़ दुनिया का सबसे बड़ा उपनिवेशवाद है। इक्कीसवीं सदी में जरूरत इस बात की है कि दुनिया के बाकी मुसलमान अरबों की इस कबीलाई सोच एवं रीति रिवाजों से छुटकारा पायें।
आप अरबी मुसलमान नहीं हैं आप हिन्दुस्तानी मुसलमान हैं और हमको चाहिए की जो रिवाज हमारे हैं अगर हम गोर करें तो कहीं भी इस्लाम के खिलाफ नहीं हैं बल्कि अरब मुल्कों से कहीं ज्यादा बेहतर हमारे मुल्क के रिवाज हैं हमको खुद को अपने मज़हबी दायरे में रहकर खुद में बदलाव लाना चाहिए जो आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है.
अगर किसी को मेरी बात से दुःख या टेस लगे तो माफ़ करना लेकिन हकीकत से मुहं छुपाना कायरता होती है.
                                                 कमल कुमार सिंह

" खुसरे, गाली दे सकते हैं- निभा नहीं सकते " !!!????

   प्यारे मित्रो,बहनों और भाइयो,नमस्कार !! 
 इस संबोधन को हम आगे बढ़ाना चाहें , तो  पुरषों  से सम्बंधित कई रिश्ते लिखे जा सकते हैं, या फिर महिलाओं से सम्बंधित रिश्तों का ज़िक्र कर उन्हें नमस्कार किया  जा सकता है, लेकिन कोई भी हिजड़ों को संबोधन नहीं करता !! उसी तरह जब हम नेताओं की बात करते हैं , तो,या तो, पुरुष नेताओं की बात करते हैं या महिला नेताओं की , लेकिन " हिजड़े " नेताओं की बात कभी सीरियसली नहीं करते ......जबकि वो भी चुनाव लड़ते और जीतते भी हैं क्यों ??? वो शायद इसलिए क्योंकि वो अपनी बात कह तो सकते हैं लेकिन उसे पूरी नहीं कर पाते !! इसीलिए मैंने ऊपर लिखा  " खुसरे, गाली दे सकते हैं- निभा नहीं सकते " !!!????
                       कल लोकसभा में " समाजवादी - पार्टी और बहुजन " समाज पार्टी ने जो किया उसे कभी भी " मर्दानगी " नहीं कहा जा सकता !!! बेचारी जनता  " अतृप्त - पत्नी " की तरह अपना मन मसोस कर रह गयी !! बेचारी जनता उस औरत की तरह है जिसे कई प्रयासों के बावजूद जिंदगी में कोई " मर्द " ना मिला हो !! बेचारी जैसे " प्यासी " ही भटक रही हो !! पिछले 67 सालों में बड़ी - बड़ी  लच्छेदार              " बातें " करते कांग्रेस रुपी " मर्द " उसे मिले !! जिन्होंने बेचारी जनता को " नोचा - खंसोता - खाया , " लेकिन संतुष्टि नहीं दे पाए !! तो जनता पार्टी वाले आये , भारतीय जनता पार्टी वाले  आये, एक से काम नहीं चला तो कई पार्टियों वाले मोर्चे - गठबंधन भी आये लेकिन नतीजा वोही " ढ़ाक के तीन पात " !!?? ये " जनता रुपी औरत " आज भी तृप्त होने हेतु तड़प रही है !! अब अन्ना रुपी " शिलाजीत " और केजरीवाल रुपी " 303 " केप्सूल आये हैं " आप " आप करते !! देखो क्या होता है !!!!
                      दो          दिन की बहस के बाद भी ऐसा कुछ भी विशेष नहीं हुआ जिसका विशेष पवित्र भाषा ज़िक्र किया जाये !! बस अंत मे देश के " हिजड़े " नेताओं को धिक्कारना चाहता हूँ !! सभ्य भाषा में, मैं इससे ज्यादा नहीं " रफ़ " नहीं हो सकता !! जनता से निवेदन करना चाहता हूँ कि ज़रा सोच-समझ कर वोट देना !! देखना इसबार कंही फिरसे " पार्टी- धर्म-इलाका-जाति-रुपये-शराब और शबाब के चक्कर में ना फंस जाना , अच्छी तरह सोच-समझ कर ही अपना कीमती वोट देना !!
                        प्यारे दोस्तो,सादर नमस्कार !! ( join this grup " 5th PILLAR CORROUPTION KILLER " )
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Tuesday, December 4, 2012

" आशंकाओं से भरा ये हमारा जीने का ढंग "???

" आशंकाओं से भरा ये हमारा जीने का ढंग "???
 सच तो ये है या तो हम आज भी सोये हुए हैं या फिर ये नेतो हमे मुरख समझते हैं आज हमारी आँखों के सामने ये लोग खुलेआम FDI का विरोध कर रहे हैं ,मगर कुछ घंटे बाद यही लोग देश के लोगो को बेरोजगार करने के लिए FDI के पक्श में वोटींग करेंगे ,
आज हम जानेगे देश हित क्या होता है और राजनीती किसे कहते हैं , लोग से वोट पाने के लिए वादे करना बड़ी बड़ी बाते करना,, देश विरोधी नीतिओ का संसद में दिखावे के लिए विरोध करना आज के नेताओ की नज़र में देश हित है ,
नोट के बदले अपना वोट बेच देना ,अपने करप्शन
को छुपाने के लिए अपना वोट बेच देना , देश को लुट रही सरकार से लुट का कुछ हिसा लेकर अपने वोट बेच देना ,अपने किये हुए गुन्हा जैसे ,लुट ,बलात्कार ,420 , अपहरण को छुपाने के लिए अपना वोट को संसद में बेच देना आज की राजनितिक पार्टी की यही राजनीती है ,

वो जिसका विरोध करते हैं उस को ही वोट देते है ,
शायद इस लिए ही राजनीती को गन्दा खेल कहते हैं ,
देश हित की बात करने वाले आखिर खुद के हित में फैसला लेते हैं ,
शायद इस लिए ही राजनीती को गन्दा खेल कहते हैं ,
खुद को बचाने के लिए नेता अपने कानून बना लेते हैं ,
शायद इस लिए ही राजनीती को गन्दा खेल कहते हैं ,

आओ मिलकर इस गन्दी राजनीती को साफ करे ,
इस बार सब देश द्रोहियो को सजा दें ,
बहुत कर लिया माफ़ इस बार इंसाफ करे , जय हिन्द


 
   " दूसरी आशंका देखिये...........


                  
आज सुबह हाकर से इंडिया टुडे लेते ही दिमाग भन्ना गया। ये लोग इस देश को कहां ले जाना चाह रहे हैं पता नही। महिला की नग्न तस्वीर के कवर पेज के साथ अंदर के तीन चौथाई पन्ने कामुकता, सेक्स वर्जनाओं को तोड़ने, पत्नी एक्स्चेंज करने से लेकर छोटे शहरो के सेक्स रूझान का सर्वे भरा हुआ था। फ़िर एक पन्ने मे वो कारण भी मिला जिसके लिये समस्त तामझाम रचा गया होगा। वह था एक मोबाईल एप्लीकेशन जिसके इस्तेमाल से आप कामसू
त्र के हीरो बन सकते है और पत्निया एक ही रात मे स्वर्ग के कई दौरे लगा के आ सकती है।



मैं दस हजार की शर्त लगा सकता हूं कि यह एप्लीकेशन इंडिया टुडे के मालिको ने ही बनाया होगा। मुझे समझ नही आता कि भारतीय मूल्यो संस्कारो परंपराओ को एक झटके मे पश्चिम की यौन उनमुक्तता मे क्यों बदलना चाहते है। कहने को तो ढोंग है पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आजादी का। लेकिन अंदर खाने अपना माल बेचने के लिये समाज को नयी दिशा देने की जिद भी है। और नग्न कवर तस्वीर के साथ पत्रिका का प्रसार चौगुना फ़ैलाने का लालच भी।

क्या अब भारतीय अपनी बहन से यौन उत्तेजना की चर्चा करने या भाभी से चरम सुख की अनुभूती पाने के उपाय पूछने की स्थिती मे आ गये है ? क्या मेरे बारह साल के पुत्र को इस पत्रिका को पढ़ अपनी क्लास की लड़कियो के साथ ऐसी कामनाओ का स्वप्न देख चाहिये।

यदि नही तो खाप पंचायतो को मत कोसा करे। वे सही कह रहे है। यह बाजार वाद उनकी बेटियो को गंभीर खतरे की ओर ढकेल रहा है। जिससे अपनी पारिवारिक माहौल और संस्कारो को बचाने का उनका पूरा हक है। उनका तरीका फ़ूहड़ ही हो सकता है क्योंकि इस बाजार वाद को रोकने की औकात उनमे नही। वे मोबाईल मे आ रही अश्लील क्लिप को नही रोक सकते तो अपनी लड़कियो को मोबाईल लेने से तो रोक ही सकते है। समाज मे तिरस्कृत अवैध बच्चा कटरीना कैफ़ की कोख मे शोभायमान हो सकता है गांव के गरीब की बेटी के नही

खैर मैने अपने न्यूस एजेंट को फ़ोन लगा आगे से इंडिया टुडे भेजने से मना कर दिया तो उसने कहा साहब सुबह से सौ फ़ोन आ चुके है इसे बंद कराने के लिये।


 
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" मेरे एक प्रिय मित्र का लेख पढ़िए !! बढ़िया व्यंग है "- " कितना है आई-क्यू "???

         
             

व्यंग्य किसका कितना आई क्यू


व्यंग्य
किसका कितना आई क्यू
वीरेन्द्र जैन
       अगर आपने लारेल हार्डी की फिल्में नहीं देखीं तो कोई बात नहीं, कुछ ही वर्ष पहले की हास्य अभिनेत्री टुनटुन की फिल्में जरूर ही देखी होंगीं। अगर वे भी नहीं देखीं तो भी कोई बात नहीं आप भाजपा के संघ नामित अध्यक्ष नितिन गडकरी को देख सकते हैं। काश अगर आप उन्हें सुन सकें तो औडियो विजुअल दोनों का ही मजा मिल जायेगा। भले ही देश और दुनिया में भाजपा के नेता साम्प्रदायिक, हिंसक षड़यंत्रकारी, कुटिल असत्यभाषी और भ्रष्ट माने जाते हों पर सच तो यह है कि भाजपा एक मनोरंजन प्रधान फिल्म ............. नहीं नहीं पार्टी है, जिसमें तरह तरह की हीरोइनों, खलनायकों, बहुरूपियों से लेकर हास्य अभिनेता तक सब कुछ मिल जायेगा। वैसे तो कांग्रेस पार्टी के नेता भी जिस क्षेत्र में जाते हैं वहाँ की टोपी से लेकर सींगों के मुकुट तक पहिन कर ढोल बजाने की मुद्रा में फोटो खिंचवाते और प्रकाशित कराते हैं ताकि हाईकमान को दिखा कर बताया जा सके कि वे पार्टी के लिए कितना काम कर रहे हैं। उनके हाईकमान तक को भ्रम रहता है कि ऐसी नौटंकियों से वोट मिलते हैं, जिसे जुटाना उनकी पार्टी का पहला और आखिरी लक्ष्य है।
       यों कहने को आप मुझे ग़डकरीजी का प्रचारक कह सकते हैं, पर फिर भी में उनका इतिहास अवश्य ही बताऊंगा। ‘भए प्रकट कृपाला दीनदयाला’ की तरह दीनदयाल उपाध्याय की इस पार्टी में गडकरीजी का अचानक ही धम्म से अवतरण हो गया था जैसे रंगमंच पर कठपुतलियां उतरती हैं वैसे ही वे सीधे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर ऐसे धमाक से गिरे थे कि बाहर वाले तो बाहर वाले, अन्दर वाले तक हतप्रभ होकर रह गये थे कि यह क्या हो गया। उनकी डोरियां नागपुर के केशवकुंज की उंगलियों में बँधी थीं। अंग्रेजी में एक कहावत है कि आकाश में बिजली चमकने और बादल गरजने की घटना एक साथ होती है पर प्रकाश की गति तेज होने के कारण प्रकाश पहले दिखाई देता है और गरज बाद में सुनाई देती है इसी तरह कुछ लोगों की चमक तब तक ही रहती है जब तक उनकी आवाज नहीं सुनाई देती। गडकरीजी के मुखारविन्दु से जब स्वर फूटे तब उनकी असलियत समझ में आयी। अध्यक्ष बनने के बाद ही उन्होंने भंडारा में बीमार चीनी मिलें खरीद ली थीं और वहाँ एक रैली की थी। इस रैली में बोलते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष महोदय  ने कहा था कि ‘याद है न, अँधेरी रात में दिया तेरे हाथ में. काँग्रेस के हाथ को वोट दिया था अब मजे लो।‘ शरद पवार के कारनामों के बारे में उन्होंने कहा था कि उनका आईपीएल का खेल भी गज़ब का है, जब चौका पड़ता है तो चियर्स लीडर अपनी एक टाँग उठा देती है व छक्का पड़ने पर उसकी दोनों टाँगें उठ जाती हैं। अफज़ल गुरु को तो उन्होंने कांग्रेस का दामाद तक कह दिया था और लालू तथा मुलातम के खिलाफ की गयी गन्दी टिप्पणी के बाद तो उन्हें माफी तक माँगना पड़ी थी। विवेकानन्द के आईक्यू से तुलना करने के लिए उन्हें दाउद इब्राहीम ही मिला था क्योंकि भाजपा वाले जब भी शत्रु की कल्पना करते हैं तो उन्हें मुसलमान ही नजर आते हैं। सब कुछ देखते हुए भी मोहन भागवत का उन्हें अध्यक्ष बनाना, और बनाये रखने के लिए भाजपा के संविधान में परिवर्तन करा देने को देखते हुए इस राष्ट्रवादी संघ प्रमुख के आईक्यू की तुलना धृतराष्ट्र से ही की जा सकती है।
       बहरहाल गडकरीजी अपनी पहली रैली के दौरान ही चक्कर खाकर अडवाणीजी के मजबूत कँधों पर टिक गये थे क्योंकि इससे पहले कड़ी धूप का उन्होंने सामना ही नहीं किया था। कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी चर्बी छिलवाई थी और अब जेठमलानी पिता पुत्र उनकी चमड़ी उधेड़ने पर लगे हुए हैं। कांग्रेस के महा सचिव दिग्विजय सिंह तो गत एक साल से सवाल उठा रहे थे कि उनके पास इतनी सम्पत्ति कहाँ से आयी, पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कांग्रेस के महा सचिव की बातों का जबाब देने की वैसे ही कोई जरूरत नहीं समझी, जैसी कि अरविन्द केजरीवाल ने उनके सवालों के जबाब देने की जरूरत नहीं समझी थी। जेठमलानी तो वकील हैं इसलिए जो उनके वकालतनामा पर दस्तखत कर देता है उसके पक्ष में बात करते हैं। मोदी ने उन्हें चुना है तो वे मोदी को देश का प्रधानमंत्री तो क्या अमेरिका का राष्ट्रपति तक बनवाने के लिए जिरह कर सकते हैं। गडकरी की कलई भी खुली और उन्होंने जेठमलानी की सेवाएं भी नहीं लीं सो उन्हें मजबूरन उनका विरोध करना पड़ा। सुना है कि गडकरी जी स्व. चन्द्रशेखर के उन कार्यकर्ताओं को भाजपा में भरती कराने के प्रयास में जुट गये हैं जिन्होंने जेठमलानीजी द्वारा चन्द्रशेखरजी के घर के सामने धरना रखने के खिलाफ उनका सम्मान कर दिया था।
       गडकरीजी सचमुच ही अभिनन्दनीय हैं, मेरी दिली इच्छा है कि उन्हें एक कार्यकाल और दिया जाये ताकि वे भाजपा के बचे खुचे कपड़े तक उतरवा सकें।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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Monday, December 3, 2012

" फेसबुक " पे जो " कोमेन्ट " करेगा,- वो " थाना " जायेगा ......????

                  प्यारे - प्यारे मित्रो , प्यार भरा नमस्कार   कबूल कीजिये !!
              पिछले कई दिनों से हमारे देश की पुलिस ने हमारे नेताओं के अंतर्मन को भांप कर , फेसबुक के " यूज़र्ज़ " को थाने में बुलाकर अन्दर करना शुरू कर दिया है !! ये शुभ- कार्य किसके कहने से हो रहा है , कोई नहीं जानता !! अब हर यूज़र्ज़ की जुबान पे बस यही " पैरोडी गुनगुनायी जा रही है कि........." फेसबुक " पे जो " कोमेन्ट " करेगा,- वो " थाना " जायेगा ......????
                         हमारे नेता आखिर चाहते क्या हैं ???? कोई क़ानून सख्त मांगता है,तो कहते हैं कि जीत कर आओ,फिर क़ानून बनाओ !!! कोई अफसर अगर कोई घोटाला उजागर करदे तो उसेभी धमका देते हैं !! कोई जज अगर इनके खिलाफ कोई टिपणी कर देता है तो मंत्री जी उनके खिलाफ भी क़ानून बनादूंगा बोलते हैं और कहते हैं की भाषण देना है तो सांसद बन जाओ !!! भई कमाल है !! इनसे एक " केजरीवाल " तो संभाला नहीं जाता , यंहा तक की आम-आदमी के कोमेंट्स भी सहन नहीं होते !!! और अगर जनता ने कंही सभी बढ़िया आदमियों को सचमे चुन दिया तो.....आपका क्या होगा जनाबेअली ??????
                                  
 कोई तो है जो भारत की जनता को मूर्ख समझता है...
कोई तो है जो सब खत्म कर रहा है... 
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भारत की स्वतंत्रता के बाद से अधिकतम समय में कांग्रेस की सरकारें रही हैं किन्तु वर्तमान UPA की सरकार में जो कुछ हो रहा है वह यही बताता है की "कोई तो है जो कांग्रेस के लिये सब खत्म कर रहा है"..!

अभूतपूर्व घोटाले और उनमें लिप्त व्यक्तियों को कांग्रेस की UPA सरकार में लगातार उच्च पदों पर व
िभूषित किया जा रहा है -

किसी को विदेश मंत्री बनाता जाता है तो किसी को सूचना प्रसारण मंत्री और अब तो वर्तमान भ्रष्टतम सरदार के बाद दूसरे सबसे भ्रष्ट लुंगीधारी को देश का प्रधानमंत्री बनाये जानें की सुगबुगाहट है..?
"कोई तो है जो भारत की जनता को मूर्ख समझता है"..!
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वह जो भी है जो भारत की जनता को मूर्ख समझता है निश्चित ही वह कांग्रेस के लिये सब खत्म कर रहा है..


                 


काँटों भरे रस्ते पर चल रहे हैं ,
इसका ये मतलब नहीं काँटों के आदि हो जाये ,
पत्थर के विस्तार पर सो रहे हैं ,
इसका ये मतलब नहीं पत्थर के आदि हो जाये ,
वक़्त के मारे भूख के सहारे जी रहे हैं ,
इसका ये मतलब नहीं भूख के आदि हो जाये ,
बिना घुस के आज कोई काम होता नहीं ,
इसका ये मतलब नहीं घुस के आदि हो जाये ,

वक़्त हर मुश्किल का हल निकलता है हमे निराश हो कर बैठना नहीं ऐसे बुरे
वक़्त से लड़ना है ,अगर कोई लड़ना चाहे उसके साथ चलना है , आज इस बुरे वक़्त
से लड़ने के लिए अरविन्द आगे बड़े हैं आओ इनके साथ कुछ दिन काँटों भरी राह
पर चले ,पत्थर के विस्तार पर सोये ,भूखे रह कर देखे ,ये वादा है आप से
इनका आदि नहीं होने देंगे , करप्शन के रावन को जला कर देश को हर मुसीबत
से मुक्त कर देंगे , जय हिन्द !!


                                                              
प्रिय मित्रो, आपका क्या कहना है ...इस विषय पर ......???? अपने विचार आप मेरे ब्लॉग पर , जिसका नाम है..:- " 5th pillar corrouption killer " जाकर लिख सकते हैं !! जिसको खोलने का लिंक ये है...
www.pitamberduttsharma.blogspot.com
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आप जो मुझे इतना प्यार दे रहे हैं, उसके ल िए बहुत बहुत धन्यवाद-शुक्रिया करम और मेहरबानी ! आप की दोस्ती और प्यार को हमेशां मैं अपने दिल में संजो कर रखूँगा !! आपके प्रिय ब्लॉग और ग्रुप " 5th pillar corrouption killer " में मेरे इलावा देश के मशहूर लेखकों के विचार भी प्रकाशित होते है !! आप चाहें तो आपके विचार भी इसमें प्रकाशित हो सकते हैं !! इसे खोलने हेतु लाग आन आज ही करें :-www.pitamberduttsharma.blogspot.com. और ज्यादा जानकारी हेतु संपर्क करें :- पीताम्बर दत शर्मा , हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार, पंचायत समिति भवन के सामने, सूरतगढ़ ! ( जिला ; श्री गंगानगर, राजस्थान, भारत ) मो.न. 09414657511.फेक्स ; 01509-222768. कृपया आप सब ये ब्लॉग पढ़ें, इसे अपने मित्रों संग बांटें और अपने अनमोल कमेंट्स ब्लाग पर जाकर अवश्य लिखें !! आप ये ब्लॉग ज्वाईन भी कर सकते हैं !! धन्यवाद !! जयहिंद - जय - भारत !! आप सदा प्रसन्न रहें !! ऐसी मेरी मनोकामना है !! मेरे कुछ मित्रों ने मेरी लेखन सामग्री को अपने समाचार-पत्रों में प्रकाशित करने की आज्ञा चाही है ! जिसकी मैं सहर्ष आज्ञा देता हूँ !! सभी मित्र इसे फेसबुक पर शेयर भी कर सकते है तथा अपने अनमोल विचार भी मेरे ब्लाग पर जाकर लिख सकते हैं !! मेरे ब्लाग को ज्वाईन भी कर सकते है !!

आपका अपना
पीताम्बर दत्त शर्मा
हेल्प-लाईन- बिग- बाज़ार
आर. सी.पी. रोड, पंचायत समिति भवन के सामने, सूरतगढ़ ! ( श्री गंगानगर )( राजस्थान ) मोबाईल नंबर :- 9414657511. फेक्स :- 1509 - 222768.

Sunday, December 2, 2012

" 5th pillar corrouption killer " के सोशल- मिडिया ग्रुप की सूरतगढ़ प्रबन्धन कमेटी का गठन आज हुआ !!

                                            

काँटों भरे रस्ते पर चल रहे हैं ,
इसका ये मतलब नहीं काँटों के आदि हो जाये ,
पत्थर के विस्तार पर सो रहे हैं ,
इसका ये मतलब नहीं पत्थर के आदि हो जाये ,
वक़्त के मारे भूख के सहारे जी रहे हैं ,
इसका ये मतलब नहीं भूख के आदि हो जाये ,
बिना घुस के आज कोई काम होता नहीं ,
इसका ये मतलब नहीं घुस के आदि हो जाये ,

वक़्त हर मुश्किल का हल निकलता है हमे निराश हो कर बैठना नहीं ऐसे बुरे
वक़्त से लड़ना है ,अगर कोई लड़ना चाहे उसके साथ चलना है , आज इस बुरे वक़्त
से लड़ने के लिए अरविन्द आगे बड़े हैं आओ इनके साथ कुछ दिन काँटों भरी राह
पर चले ,पत्थर के विस्तार पर सोये ,भूखे रह कर देखे ,ये वादा है आप से
इनका आदि नहीं होने देंगे , करप्शन के रावन को जला कर देश को हर मुसीबत
से मुक्त कर देंगे , जय हिन्द
                                                                              आज दिनांक 2-12-12 ,रविवार को हेल्प-लाईन-बिग- बाज़ार पर सूरतगढ़ के जागरूक व प्रबुद्ध नागरिकों की एक अहम मीटिंग हुई ! इस मीटिंग में  सर्वश्री परसराम भाटिया, प्रेम सिंह सूर्यवंशी, के.के. खास्पुरिया, राजिंदर पटावरी,सुरेश कौल, विनोद सिडाना , संजय कटारिया, डा. हरप्रीत सिंह , तुलसीदास शर्मा, विष्णु शर्मा,विजय स्वामी ,चरणजीत सिंह टंडन , अरविन्द कौल एवं पीताम्बर दत्त शर्मा सहित कई जन इकठ्ठे हुए !!
                  इनके इलावा सर्वश्री भागीरथ जी बिश्नोई , कमल पारिक, करनीदान सिंह, सुभाष राजपूत, पवन कुमार मिश्रा, सुरिंदर निरानिया , डा. दलीप स्याग , वेद वर्मा और महेंदर जाटव आदि ने किसी कारणवश ना आ पाने की मजबूरी जताई लेकिन इस मिडिया ग्रुप की कमेटी-गठन और इसके तहत कराये जाने वाले कार्यक्रमों पर फोन द्वारा अपनी सहमती जताई !! इस प्रकार सबके विस्तृत विचार जानकार आज," 5th pillar corrouption killer " के  सोशल- मिडिया ग्रुप की सूरतगढ़  प्रबन्धन कमेटी   का गठन आज हुआ !! जिसमे केवल 11 सदस्यों को शामिल किया गया ! जो निम्नलिखित हैं :-
 1. सर्वश्री पीताम्बर दत्त शर्मा, 2.भागीरथबिश्नोई एडवोकेट,3.राजिंदर      पटावरी ,4. परसराम भाटिया, 5. कमल पारिक, 6.के.के. खासपुरिया,7.प्रेम सिंह सूर्यवंशी, 8. डा. हरप्रीत सिंह, 9.विनोद सिडाना, 10. डा. दलीप स्याग और तुलसीदास शर्मा को शामिल किया गया है !!
          अबअगली मीटिंग दिनांक 7 दिसंबर को 11 बजे इसी स्थान पर बुलाई गयी है !! इस मीटिंग में सबको अलग-अलग जिम्मेदारियां सोंपी जायेंगी ! आगे 4 प्रकार की सब कमेटियां भी बनायी जाएँगी , 1. प्रचार-कमेटी, 2.कार्यक्रम संचालन- कमेटी, 3. वित्त- कमेटी और 4. व्यवस्था-कमेटी !! इन कमेटियों में 4-4 सदस्य और लिए जायेंगे जो सब मिलकर इस मिडिया ग्रुप " 5th pillar corrouption killer " के उद्देश्यों को पूरा करने में अपना सहयोग करेंगी !!                                        " 5th pillar corrouption killer"के कार्य-उद्देश्य :-
 1. सब तरह के भ्रष्टाचार को उजागर करना !
 2. सब तरह के चुनावों में जनता को जागरूक कर स्वच्छ छवि वाले नेता नहीं, जन-   सेवक को ढूढना !
  3. इन   कार्यों हेतु ,पम्फ्लेट बांटना,सर्वे कराना,प्रोग्राम बना कर दिखाना आदि-आदि!! 
                   इस ग्रुप का कार्यक्षेत्र फिलहाल " सूरतगढ़ - विधानसभा क्षेत्र ही रख्खा गया है, जिसे बाद मे बढाया भी जा सकेगा !! जो भी जागरूक नागरिक भाई और बहने इस पुण्य कार्य में हमारे साथ जुड़ना चाहें उनका हार्दिक स्वागत है !!
                                                    द्वारा 
                                             पीताम्बर दत्त शर्मा

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...