Thursday, June 29, 2017

"हिंदुस्तान का विपक्ष,हितकारी या सँहारी"??- पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतंत्र टिप्पणीकार)

भारत में "विपक्ष"कई प्रकार का रहा है ,पहले राक्षसों के रूप में जब देवताओं का शासन था !उस समय भी अपनी प्रवृत्ति अनुसार कोई भी देवता या मानव राक्षस बन जाता था !जिसके पास ज्यादा शक्तियां आ जातीं थीं और वो नाजायज़ तरीकों से विशेष उपलब्धियां और साधन प्राप्त कर उनका दुरपयोग करने लग जाता था ,उसे लोग "राक्षस" कहने लगते थे ! फिर राजाओं का शासन होने लगा तो दुसरे राज्यों के शासक अपने साधनों द्वारा पडोसी राज्यों के लोगों को भड़काते थे , वहाँ के मंत्रियों को राजा बना देने का लालच देकर बगावत करवा देते थे ,तो युद्ध पश्चात् विपक्षी राजा बन जाते थे !तीसरा तरीका ये होता था कि राजा का वो बेटा अपने पक्ष में अपने पिता के मंत्री को अपने साथ मिला लेता था तो वो बगावत करके अपने पिता को जेल भेज देता या मरवा देता था और स्वयं सत्तासीन हो जाता था !या अकेले ही कोई मंत्री राजा के परिवार को मारकर स्वयं राजा बन जाता था !
                              फिर आये हमारे देश में मुगल और अँगरेज़ उन्होंने भी येन-केन प्रकरेण ,फूट डालते गए और हम पर राज करते गए !1857 की क्रांति के पश्चात् देश में जाग्रति फैली और एक लम्बे संघर्ष के पश्चात् लाखों लोगों की शहादत के नतीजों से देश को आजादी मिली !और जिन्होंने माफियां मांगीं,अंग्रेज़ों-बादशाहों के तलवे चाटे वो देश के कर्णधार बन गए !और जिन्होंने बिना कोई लालच के देश की सेवा करनी चाही वो सब "विपक्षी" हो गए !कई लोग सत्ता में रहते हुए भी विपक्षी थे ,क्योंकि उन्होंने सदा सच्चाई का साथ दिया !
                    1947 में देश आजाद हुआ ,हमारी सरकार बन गयी एक छोटे से "विपक्ष"के साथ !लेकिन जैसे जैसे सत्ता वालों के स्वार्थ देश हित से टकराये ,वैसे-वैसे भारत का विपक्ष बड़ा होता चला गया !भारत हिंदुस्तान बना ,फिर इंडिया और फिर सेकुलर इंडिया हो गया ! देश के हालत ये हो गए कि एक समय ऐसा भी आया इस इण्डिया में जब विपक्ष में केवल कांग्रेस रह गयी और सत्ता में कॉमरेडों को छोड़कर सभी राजनीतिक दल सत्ता में आ गए !कॉमरेड शायद इस लिए सत्ता से अलग रहे ,क्योंकि वो वैचारिक रूप से "हिजड़े "थे ! वो आज तलक निर्णय ही नहीं कर पाए की उनकी विचारधारा क्या है और उन्हें किसके साथ रहना है !
                    इसीलिए उन्होंने "तीसरा-मोर्चा"बनाया जिसमे भाजपा को छोड़ सभी दल शामिल थे !ना तो बिना कांग्रेस वाली सरकार ज्यादा देर चल पायी और ना ही बिना भाजपा वाली सरकार ही चल पायी !एक दौर ऐसा भी आया की इस देश में "मौसमी-प्रधानमंत्री"बनने लगे !जनता भारत की परेशां हो गयी !अटल जी की सरकार के मंत्री-अफसर भी विपक्षियों की चालों से डरने लगे ,अंततः वो भी ज्यादा देर शासन नहीं चला सके ! फिर आया मनमोहन सिंह जी का "मौन-राज्य",जिसमे" जिसने जितना इस देश का "माल"चुरा लिया या खा लिया ,वो उसके बाप का "!!10 सालों के उस शासन ने भ्र्ष्टाचार के पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिए ! तब आया मोदी राज !
                       जनता चाहती थी कि कोई ऐसा आये ,जो इस भ्र्ष्टाचार को मिटाये ! लेकिन जैसे ही मोदी जी ने ये काम शुरू किया ,चोरों की हवा निकलने लगी,उन्हें अपना सब कुछ लुटता दिखाई देने लगा ,तो उन सभी विपक्षी दलों ने " अस्तित्व " बचाने "हेतु धन-बल ,बाहुबल,छल-बल और दुश्मनों से मिलकर भारत की सरकार पर प्रहार करने शुरू कर दिए !विपक्ष के इस "कुत्सित-कार्य"में उन सभी ने इनका साथ दिया जिन्होंने इनके सहारे अपनी उपलब्धियां जीवन में प्राप्त कीं थीं !भरपूर कर्ज़ा उतार रहे हैं देश के बड़े बड़े ,लेखक,एक्टर,एंकर ,पत्रकार ,कवी अफसर आदि आदि !
                   जिसे देख भारत की आम जनता भी सोचने लगी है कि कहीं विपक्षी सही तो नहीं ?इस में उन लोगों का भी पूरा सहयोग है जो सत्ता में तो हैं लेकिन मोदी जी के कार्यों को पूरा करने में कोई सहयोग नहीं कर रहे हैं !आज मोदी जी दो दुश्मनों से जूझ रहे हैं !फैसला देश की उस जनता को करना है जिसे ये बेईमान नेता लोग "समझदार"कहते नहीं थकते !बाकी आप ये मत कहना कि "किसी ने तो हमें बताया नहीं था"!
     
               
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Saturday, June 24, 2017

"तड़प"उनकी ,जो पलते हैं दूसरों की फेंकी हुई बोटियों पर"!!- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

आजकल देश में एक अस्थिरता का माहौल नज़र आ रहा है!कोई gst को गलत बता रहा है , तो कोई दलितों पर बहुत अत्याचार हो रहे हैं ,ये कह रहा है ! किसी को इस देश में केवल किसान मरते नज़र आ रहे हैं तो कोई पाकिस्तान के साथ फौरन युद्ध चाहता है !कई नयी जातियां आरक्षण कीमांग के साथ तोड़-फोड़ -आगज़नी करती नज़र आ रही हैं , तो कई अलग प्रदेश की मांग करते अपने ही देश के एक हिस्से में लोगों को मरवा रहे हैं !यहां तलक कि इस देश के अंदर विभिन्न रूपों की आड़ में छिपे हुए देश के गद्दार आवारा युवाओं को पैसों का लालच देकर ,बलात्कार,लूटमार,राहजनी और छेड़खानियां चोरियां भी करवा रहा है !क्या आप जानते हैं की ये क्यों हो रहा है ???????
                    केवल इसलिए कि मोदी जी की सरकार और भाजपा की प्रदेश सरकारें ऐसे दुश्मनों की चालों को नाकाम करने वाले काम कर रहीं हैं !ये लोग विश्व में भाजपा की सरकारों को बदनाम करना चाहते हैं क्योंकि जो विश्व के बड़े देश मोदी जी का कहना मान कर उनके मुताबिक निर्णय ले रहे हैं , वो बंद हो जाएँ !भारत की जनता को जागरूक बनना होगा !किसी भी हड़ताल, धरने,जलूस आदि में तब तलक शामिल ना हों जब तलक आप स्वयं उस विषय के बारे में पूरी तरह से ना जानकारी रखते हों ! तोड़फोड़ करना तो बिलकुल भी नहीं चाहिए !क्योंकि आखिर वो हमारा ही नुक्सान होता है !
                  हमें अपने द्वारा चुनी हुई सरकार पर विश्वास होना चाहिए ! हमें किसी भी राजनेता,पत्रकार टीवी चेनेल के एंकर के बहकावे में नहीं आना है !अगर ये सरकार बुरे काम करेगी तो हम अगले चुनावों में इसे हरा देंगे !किसी और अच्छे दल को चुन लेंगे , लेकिन इन कोंग्रेसियों,कॉमरेडों,लालू,माया की पार्टियों को चुनना ही कोई आवश्यक थोड़े ही है !!
जोश में तो रहो ,लेकिन होश भी हमें नहीं खोना है !समझना है दुश्मन की चालों को !




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Friday, June 23, 2017

संघर्ष की मुनादी के लिये 72 बरस के बूढ़े का इंतजार !!

इंदिरा गांधी कला केन्द्र से प्रेस क्लब तक                                                          ---------------------------------

खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का / हुकुम शहर कोतवाल का... / हर खासो-आम को आगह किया जाता है / कि खबरदार रहें / और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से / कुंडी चढा़कर बन्द कर लें /गिरा लें खिड़कियों के परदे /और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें /क्योंकि , एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में / सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है ! धर्मवीर भारती ने मुनादी नाम से ये कविता नंवबर 1974 में जयप्रकाश नारायण को लेकर तब लिखी जब इंदिरा गांधी के दमन के सामने जेपी ने झुकने से इंकार कर दिया । जेपी इंदिरा गांधी के करप्शन और तानाशाही के खिलाफ सड़क से आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे । और संयोग देखिये या कहे विडंबना देखिये कि 43 बरस पहले 5 जून 1974 को जेपी ने  इंदिरा गांधी के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का नारा दिया । और 5 जून 2017 को ही दिल्ली ने हालात पलटते देखे । 5 जून को ही इंदिरा गांधी की तर्ज पर मौजूदा सरकार ने निशाने मीडिया को लिया । सीबीआई ने मीडिया समूह एनडीटीवी के प्रमोटरो के घर-दफ्तर पर छापा मारा । और 5 जून को ही  संपूर्ण क्रांति दिवस के मौके पर दिल्ली में जब जेपी के अनुयायी जुटे तो उन्हे जगह और कही नहीं बल्कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में मिली । यानी जिस दौर में जेपी के आंदोलन से निकले छात्र नेता ही सत्ता संभाल रहे हैं, उस वक्त भी दिल्ली में जेपी के लिये कोई इमारत कोई कार्यक्रम लायक हाल नहीं है जहा जेपी पर कार्यक्रम हो सके । तो जेपी का कार्यक्रम उसी इमारत में हुआ जो इंदिरा गांधी के नाम पर है । और जो सरकार या नेता अपने ईमानदार और सरोकार पंसद होने का सबूत इंदिरा के आपातकाल का जिक्र कर देते है । उसी सरकार , उन्हीं नेताओं ने भी खुद को इंदिरा गांधी की तर्ज पर खडा करने में कोई हिचक नहीं दिखायी । 

तो इमरजेन्सी को  लोकतंत्र पर काला धब्बा मान कर जो सरकार मीडिया पर नकेल कसने निकली उसने खुद को ही जब इंदिरा के सामानातंर खडा कर लिया तो क्या ये मान लिया जाये कि मौजूदा वक्त ने सिर्फ इमरजेन्सी की सोच को  परिवर्तित कर दिया है । उसकी परिभाषा बदल दी है । हालात उसी दिशा में जा रहे हैं? ये सवाल इसलिये  क्योंकि इंदिरा ने तो इमरजेन्सी के लिये बकायदा राष्ट्रपति से दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवाये थे । लेकिन मौजूदा वक्त में कोई दस्तावेज नहीं है । राष्ट्रपति के कोई हस्ताक्षर नहीं है । सिर्फ संस्थानों ने कानून या

संविधान के अनुसार काम करना बंद कर दिया है । सत्ता की निगाहबानी में तमाम संस्धान काम कर रहे है । तो इससे बडी विडंबना और क्या हो सकती है कि जेपी का नाम भी लेंगे । और जेपी के संघर्ष के खिलाफ भी खड़े होंगे । इंदिरा का विरोध भी करेंगे और इंदिरा के रास्ते पर भी चलेंगे । दरअसल संघर्ष के दौर में जेपी के साथ खडे लोगों के बीच सत्ता की लकीर खिंच चुकी है । क्योंकि एक तरफ वैसे है जो सत्ताधारी हो चुके है और सत्ता के लिये चारदिवारी बनाने के लिये अपने  एजेंडे के साथ है तो दूसरी तरफ वैसे है जो सत्ता से दूर है और उन्हे लगता है सत्ता जेपी के संघर्ष का पर्याय नहीं  था बल्कि क्रांति सतत प्रक्रिया है। इसीलिये दूसरी तरफ खड़े जेपी के लोगों में गुस्सा है। संपूर्ण क्राति दिवस पर जेपी को याद करने पहुंचे कुलदीप नैयर हो या वेदप्रताप वैदिक दोनो ने माना कि मौजूदा सत्ता जेपी की लकीर  को मिटा कर आगे बढ रही है। वहीं दूसरी तरफ मीडिया पर हमले को लेकर दिल्ली के प्रेस क्लब में 9 जून को जुटे पत्रकारो के बीच जब अगुवाई करने बुजुर्ग  पत्रकारों की टीम सामने आई तो कई सवालो ने जन्म दे दिया। मसलन निहाल सिंह , एचके दुआ, अरुण शौरी , कुलदीप नैयर , पाली नरीमन सरीखे पत्रकारों, वकील जो जेपी के दौर में संघर्षशील थे उन्होंने मौजूदा वक्त के एहसास तले 70-80 के दशक को याद कर तब के सत्ताधारियों से लेकर इमरजेन्सी और प्रेस बिल को याद कर लिया तो लगा ऐसे ही जैसे सिर्फ धर्मवीर भारती की कमी है । जो मुनादी लिख दें । तो देश में नारा लगने लगे कि सिंहासन खाली करो की जनता आती है । लेकिन ना तो इंदिरा गांधी कला केन्द्र में संपूर्ण क्रांति दिवस के जरीय जेपी को याद करते हुये और ना ही प्रेस क्लब में अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल भागेदारी के लिये जुटे पत्रकारो को देखकर कही लगा कि वाकई संघर्ष का माद्दा कहीं  है क्योकि सिर्फ मौजूदगी संघर्ष जन्म नहीं देती । संघर्ष वह दृश्टी देती है जिसे 72 बरस की उम्र में जेपी ने संघर्ष वाहिनी से लेकर तमाम युवाओ को ही सडक पर खडा कर उन्ही के हाथ संघर्ष की मशाल थमा दी । और मशाल थामने वालो ने माना कि कोई गलत रास्ता पकडेंगे तो जेपी रास्ता दिखाने के लिये है । 

लेकिन मौजूदा वक्त का सब बडा सच संघर्ष ना कर मशाल थामने की वह होड है जो सत्ता से सौदेबाजी करते हुये दिके और सत्ता जब अनुकुल हो जाये तो उसकी छांव तले अभिव्यक्ति की आजादी के नारे भी लगा लें । और इंदिरा गांधी कला केन्द्र के कमान भी संभाल लें । अंतर दोनों में नहीं है । एक तरफ इंदिरा गांधी कला केन्द्र में जेपी का समारोह करा कर खुश हुआ जा सकता है कि चलो कल तक जहा सिर्फ नेहरु से लेकर राजीव गांधी के गुण गाये जाते थे अब उस इमारत में जेपी का भूत भी घुस चुका है । और प्रेस क्लब में पत्रकारो का जमावडे को जेखकर खुश हुआ जा सकता है चलो सत्ता के  खिलाफ संघर्ष की कोई मुनादी सुनाई तो दी । वाकई ये खुश होने वाला ही माहौल है । संघर्ष करने वाला नहीं । क्योकि जेपी के अनुयायी हो मीडिया  घराने संभाले मालिकान दोनो अपने अपने दायरे में सत्ताधारी है । और सत्ताधारियो का टकराव तभी होता है जब किसी एक की सत्ता डोलती है या दूसरे की सत्ता पहले वाले के सत्ता के लिए खतरे की मुनादी करना लगती है । लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं कि सत्ता इमानदार हो गई है । या सत्ता सरोकार की भाषा सीख गई है । ये खुद में ही जेपी और खुद में ही इंदिरा को बनाये रखने का ऐसा हुनर है जिसके साये में कोई संघर्ष पनप ही नहीं सकता है । क्योकि दोनो तरफ के हालातो को ही परख लें । मसलन जेपी के सत्तादारी अनुनायियो की फेहरिस्त को परखे तो आपके जहन में सवाल उटेगा चलो अच्छा ही किया जो जेपी  के संघर्ष में इनके साथ खडे नहीं हुए । लालू यादव, रामविलास पासवान , राजनाथ सिंह , रविशंकर प्रसाद , नीतीश कुमार से लेकर नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि मौजूदा केन्द्र में दर्जनों मंत्री और बिहार-यूपी और गुजरात में मंत्रियो की लंबी फेरहिस्त मिल जायेगी जो खुद को जेपी का अनुनायी । उनके संघर्ष में साथ खडे होने की बात कहेगे । और दूसरी तरफ जो मीडिया समूह घरानो में खुद को तब्दील कर चुके है वह भी इंदिरा के आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करने के अनकहे किस्से लेकर मीडिया मंडी में घुमते हुये नजर आ जायेंगे । बीजेपी के तौर तरीके इंदिरा के रास्ते पर नजर आ सकते है और काग्रेस का संघर्ष बीजेपी के इंदिराकरण के विरोध दिखायी भी दे सकता है।

इंदिरा का राष्ट्रवाद संस्थानों के राष्ट्रीकरण में छुपा था । मौजूदा सत्ता का राष्ट्रवाद निजीकरण में छुपा है । इंदिरा के दौर में मीडिया को रेंगने कहा गया तो वह लेट गया और मौजूदा वक्त में मीडिया को साथ खडे होने कहा जा रहा है तो वह नतमस्तक है । इंदिरा के दौर में मीडिया की साख ने मीडिया घरानो को बडा नहीं किया था । लेकिन मौजूदा दौर में पूंजी ने मीडिया को विस्तार दिया है उसकी सत्ता को स्थापित किया है । इंदिरा गांधी के सामने सत्ता के जरीये देश की राजनीति को मुठ्ठी में करने की चुनौती थी । मौजूदैा वक्त में सत्ता के सामने पूंजी के जरीये देश के लोगो को अपने राजनीति एजेंडे तले लाने की चुनौती है । तब करप्शन का सवाल था । तानाशाही का सवाल था । अब राजनीति एजेंडे को देश के एजेंडे में बदलने का सवाल है। सत्ता को ही देश बनाने- मनवाने का सवाल है । तब देश में सत्ता के खिलाफ लोगो की एकजुटता  ही संघर्ष की मुनादी थी । अब सत्ता के खिलाफ पूंजी की एकजूटता ही सत्ता बदलाव की मुनादी होती है । इसीलिये मनमोहन सिंह को गवर्नेंस पाठ कारपोरेट घराने पढाने से नहीं चुकते । 2011-12 में देश के 21 कारपोरेट बकायदा पत्र लिखकर सत्ता को चुनौती देते है । और  मौजूदा वक्त में कारपोरेट की इसी ताकत को सत्ता अपने चहेते कॉरपोरेट में समेटने के लिये प्रयासरत है । तो लडाई है किसके खिलाफ । लड़ा किससे जाये । किसके साथ खड़ा हुआ जाये । इस सवाल को पूंजी की सत्ता ने इस लील लिया है कि कोई संपादक भी किसी को सत्ताधारी का दलाल नजर आ सकता है । और कोई सत्ताधारी भी कारपोरेट का दलाल नजर आ सकता है । लोकतंत्र की परिभाषा वोटतंत्र में इस तरह जा सिमटी है कि जितने वाले को ये गुमान होता है कि चुनावी जीत सिर्फ राजनीतिक दल की जीत नहीं बल्कि देश जीतना हो चुका है और उसकी मनमर्जी से ही अब लोकतंत्र का हर पहिया घुमना चाहिये । और लोकतंत्र के हर पहिये को लगने लगा है कि राजनीतिक सत्ता से आगे फिर वही वोटतंत्र है जिसपर राजनीतिक सत्ता खडी है तो वह करे क्या । ये ठीक वैसे ही है जैसे एक वक्त  राडिया टेप सिस्टम था । एक वक्त संस्थानो को खत्म करना सिस्टम है । एक वक्त बाजार से सबकुछ खरीदने की ताकत विकास था । एक वक्त खाने-जीने को तय करना विकास है । एक वक्त मरते किसानों के बदले सेंसेक्स को बताना ही विकास था । एक वक्त किसान-मजदूरो में ही विकास खोजना है । सिर्फ राजनीतिक सत्ता ने ही नहीं हर तरह की सत्ता ने मौजूदा दौर में सच है क्या । ठीक है क्या । संविधान के मायने क्या है । कानून का मतलब होना क्या चाहिये । आजादी शब्द का मतलब हो क्या । भ्रम पैदा किया और उस भ्रम को ही सच बताने का काम सियासत करने लगी । इसी के सामानांतर अगर मीडिया की स्तात को समझे तो राजनीतिक सत्ता या कहे राजनीतिक पूंजी का सिस्टम उसके जरुरत बना दी गई । प्रेस क्लब में अरुण शौरी इंदिरा-राजीव गांधी के दौर को याद कर ये बताते है कि कैसे अखबारो ने तब सत्ता का बायकॉट किया । प्रेस बिल के दौर में जिस नेता-मंत्री  ने कहा कि वह प्रेस बिल के साथ है तो उसकी प्रेस कान्फ्रेस से पत्रकारों ने उठकर जाने का रास्ता अपनाया । लेकिन प्रेस क्लब में जुटे मीडिया कर्मीयो में जब टीवी पत्रकारों के हुजूम को देखा तो ये सवाल जहन में आया । कि क्या बिना नेता-मंत्री के टीवी न्यूज चल सकती है । क्या नेताओं-मंत्रियों का बायकॉट कर चैनल चलाये जा सकते हैं। क्या सिर्फ मुद्दों के आसरे , खुद को जनता की जरुरतो से जोडकर खबरों को परोसा जा सकता है । जी हो सकता है । लेकिन पहली लड़ाई सस्ंथानों को बचाने की लड़नी होगी । फिर चुनावी राजनीति को ही लोकतंत्र मानने से बचना होगा । पूंजी पर टिके सिस्टम को नकारने का हुनर सिखना होगा । जब सरकार से लेकर नेताओं के स्पासंर मौजूद है तो प्रचार के भोंपू के तौर पर टीवी न्यूज चैनलों के आसरे कौन सी लडाई कौन लडेगा । जेपी की याद तारिखो में सिमटाकर इंदिरा कला केन्द्र अमर है तो दूसरी तरफ प्रेस कल्ब में इंदिरा की इमरजेन्सी को याद कर संघर्ष का रईस मिजाज भी जिवित है । 

मनाइए सिर्फ इतना कि जब मुनादी हो तब धर्मवीर भारती की कविता ' मुनादी ' के शब्द याद रहे......बेताब मत हो / तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है / बादश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से / तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए / बाश्शा के खास हुक्म से / उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा / दर्शन करो ! /वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी / बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी / ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा /नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा / और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा / लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में / और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो / ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से / बहा, वह पुँछ जाए ! / बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं !.





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Tuesday, May 30, 2017

"नज़ारे-वजारे"देखलो ,पढ़ लो और सुन लो !- पीताम्बर दत्त शर्मा

                            * अध्याय एक *
अरुण जेटली ने किया केजरीवाल पर मानहानि का दावा,
बोले झूठे आरोप लगाए, अब दस करोड़ लावा ।
केजरीवाल ने बकील किये जेठमलानी,
याद आ गई नानी :)
वकील की फीस आठ करोड़ चालीस लाख,
वकील ने दिया बसूली का नोटिस, मिटटी में मिली साख :)
वकील तो गया ही, मुक़दमा भी पिटेगा,
बडा बेआबरू होता, ये शख्स दिखेगा :) :)
ये है पूरा मामला -
जेठमलानी ने केजरीवाल की तरफ से वकील बनकर भरी अदालत में अरुण जेटली को धूर्त कहा ...
इस पर जेटली ने केजरीवाल के ऊपर 10 करोड़ का दूसरा मानहानि का केस फाइल कर दिया, जिसे अदालत ने भी स्वीकार कर लिया ....
घबराए केजरीवाल ने जेठमलानी के धूर्त कहे जाने पर जेटली से लिखित रूप में माफी मांग ली। अपने मुवक्किल के माफी मांगने से नाराज जेठमलानी ने केजरीवाल का वकील बनने से ही इनकार कर दिया और अपने 8.40 करोड़ बकाया के लिए केजरीवाल को नोटिस भेज दिया।
उधर दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल ने सरकारी खजाने से राम जेठमलानी को फीस दिए जाने से मना कर दिया। फाइल पर लिख दिया कि अरविंद केजरीवाल के निजी केस का पैसा सरकारी खजाने से नहीं दिया जा सकता।
केजरीवाल बुरी तरह फंस गये।
                                             *अध्याय दो *
एक बार एक लड़का गरीबी के कारण अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक जा-जाकर कुछ सामान बेचा करता था। एक दिन सारा दिन घूमने पर भी उसका कोई सामान नहीं बिका। उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी। लेकिन उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। उसने सोच लिया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा। वहां उससे खाना मांग लेगा।
एक घर के बाहर जाकर उसने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला। जिसे देखकर एक पल के लिये वह घबरा गया। उसी घबराहट के कारण बजाय खाने के पीने के लिए एक गिलास पानी माँग लिया।
लड़की ने उस लड़के के चेहरे को देख कर भांप लिया था कि वह भूखा है। इसलिए वह एक बड़ा गिलास दूध का ले आई। लड़के को कुछ समझ ना आया।
“पी लो, तुम्हारे लिए ही है।“ लड़की के ऐसा कहने पर लड़के ने धीरे-धीरे सारा दूध पी लिया।
“कितने पैसे दूं?” लड़के ने पूछा।
“पैसे किस बात के?” लड़की ने जवाब में कहा,” माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए।”
“तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ।” जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, दूध पीने से उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी बल्कि उसका भगवान और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था।
इस घटना के बीत जाने के सालों बाद एक दिन वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी। लोकल अस्पताल में उसका इलाज संभव ना हो सका तो डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया।
हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली(Howard Kelly) को मरीज देखने के लिए बुलाया गया। होवार्ड केल्ली अस्पताल पहुंचे और मरीज की जानकारी हासिल की। जैसे ही उसने लड़की के कस्बे का नाम पढ़ा, उसकी आँखों में चमक आ गयी। वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया।
उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा। उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी। जब लड़की एकदम ठीक हो गयी तो डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया। उस बिल के कोने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया।
लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी। फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कोने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था।
“एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है।”
नीचे डॉक्टर Howard Kelly के हस्ताक्षर थे। ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के आँखों से गालों पर आंसू टपक पड़े उसने ऊपर कि ओर दोनों हाथ उठा कर कहा,
” हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ-कहाँ फैल चुका है।
                                                * अध्याय तीन *
एक 80 वर्षीय बुजुर्ग के हृदय का ऑपरेशन हुआ ।
बिल आया 8 लाख रुपया, बिल देखने के बाद बुजुर्ग की आँखों में आंसू आ गए , यह देखकर डॉक्टर ने कहाँ रोइये मत में इसे कम कर देता हूँ।
बुजुर्ग ने कहा यह बिल तो बहुत कम है, अगर 10 लाख भी होता तो में देने में समर्थ हूँ। आँसू तो इस लिए आये कि जिस प्रभु ने 80 वर्ष तक इस दिल को सम्भाला, उसने कोई बिल नही भेजा आपने केवल तीन घण्टा सम्भाला, 8 लाख रूपये।
वाह प्रभु ...आप कितना ध्यान रखते है हमारा ।

कैसा लगा अवश्य बताइयेगा जी !!

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Saturday, May 27, 2017

टकराव में फंसी दुनिया के लिये आतंकवाद भी मुनाफे का बाजार !!

भारत ने पहली बार पाकिस्तानी पोस्ट को फायर एसाल्ट से उडाने की विडियो जारी कर खुद को अमेरिका और इजरायल की कतार में खड़ा कर दिया । क्योंकि सामान्य तौर पर भारत या पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन और रुस भी अपनी सेना का कार्रवाई का वीडियो जारी तो नहीं ही करते हैं। तो इसका मतलब है क्या । क्या अब पाकिसातन अपने देश में राष्ट्रवाद जगाने के लिए कोई वीडियो जारी कर देगा । या फिर समूची दुनिया ही जिस टकराव के दौर में जा फंसी है, उसी में भारत भी एक बडा खिलाड़ी खुद को मान रहा है । क्योंकि दुनिया के सच को समझे तो गृह युद्द सरीखे अशांत क्षेत्र के फेहरिस्त में सीरिया ,यमन , अफगानिस्तान ,सोमालिया , लिबिया , इराक , सूडान और दक्षिण सूडान हैं । तो आतंक की गिरप्त में आये देशों की फेरहिस्त में पाकिस्तान , बांग्लादेश , म्यानमार ,टर्की और नाइजेरिया है। 

तो आंतकी हमले की आहट के खौफ तले भारत , फ्रास ,बेल्जियम ,जर्मनी ,ब्रिटेन और स्वीडन हैं । वहीं देशों के टकराव का आलम ये हो चला है कि अलग अलग मुद्दों पर उत्तर कोरिया , दक्षिण कोरिया ,चीन ,रुस ,फिलीपिंस , जापान, मलेशिया ,इंडोनेशिया ,कुर्द और रुस तक अपनी ताकत दिखाने से नहीं चूक रहे। तो क्या दुनिया का सच यही है दुनिया टकराव के दौर में है । या फिर टकराव के पीछे का सच कुछ ऐसा है कि हर कोई आंख मूंदे हुये है क्योकि दुनिया का असल सच तो ये है कि 11 खरब , 29 अरब 62 करोड रुपये का धंधा या हथियार बाजार । जी दुनिया में सबसे बडा धंधा अगर कुछ है तो वह है हथियारों का । और जब दुनिया का नक्शा ही अगर लाल रंग से रंगा है तो मान लीजिये अब बहुत कम जमीन बची है जहा आतंकवाद, गृह युद्द या दोनों देशों का टकराव ना हो रहा हो । और ये तस्वीर ही बताती है कि कमोवेश हर देश को ताकत बरकरार रखने के लिये हथियार चाहिये । तो एक तरफ हथियारों की सलाना खरीद फरोख्त का आंकडा पिछले बरस तक करीब 11 सौ 30 खरब रुपये हो चुका है। 

तो दूसरी तरफ युद्द ना हो इसके लिये बने यूनाइटेड नेशन के पांच वीटो वाले देश अमेरिका, रुस , चीन , फ्रासं और ब्रिटेन ही सबसे ज्यादा हथियारो के बेचते है । आंकडो से समझे तो स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्त इस्टीटयूट के मुताबिक अमेरिका सबसे ज्यादा 47169 मिलियन डालर तो रुस 33169 मिलियन डालर , चीन 8768 मिलियन डालर , फ्रास 8561 मिलियन डालर और ब्रिट्रेन 6586 मिलियन डालर का हथियार बेचता है । यानी दुनिया में शांति स्तापित करने के लिये बने यूनाइटेड नेशन के पांचो वीटो देश के हथियारो के धंधे को अगर जोड दिया जाये तो एक लाख 4 हजार 270 मिलियन डालर होता है । यानी चौथे नंबर पर आने वाले जर्मनी को छोड़ दिया जाये तो हथियारों को बेचने के लिये पांचो वीटो देशो का दरवाजा ही सबसे बडा खुला हुआ है । आज की तारीख में अमेरिका-रुस और चीन जैसे देशों की नजर में हर वो देश है,जो हथियार खऱीद सकता है। क्योंकि हथियार निर्यात बाजार का सबसे बड़ा हिस्सा इन्हीं तीन देशों के पास है । अमेरिका के पास 33 फीसदी बाजार है तो रुस के पास 23 फीसदी और चीन के पास करीब 7 फीसदी हिस्सा है ।यानी अमेरिकी राष्ट्रपति जो दो दिन पहले ही रियाद पहुंचे और दनिया में बहस होने लगी कि इस्लामिक देसो के साथ अमेरिकी रुख नरम क्यो है तो उसके पीछे का सच यही है कि अमेरिका ने साउदी अरब के साथ 110 बिलियन डालर का सौदा किया । यानी सवाल ये नहीं है कि अमेरिका इरान को बुराई देशों की फेहरिस्त में रख कर विरोध कर रहा है । सवाल है कि क्या आने वाले वक्त में ईरान के खिलाफ अमेरिकी सेन्य कार्रवाई दिखायी देगी । और जिस तरह दुनिया मैनेचेस्टर पर हमला करने वाले आईएस पर भी बंटा हुआ है उसमें सिवाय हथियारो को बेच मुनापा बनाये रखने के और कौन सी थ्योरी हो सकती है । 

और विकसित देसो के हथियारो के धंधे का असर भारत जैसे विकासशील देसो पर कैसे पडता है ये भारत के हथियारों की खरीद से समझा जा सकता है । फिलहाल , भारत दुनिया का सबसे बडा या कहे पहले नंबर का देश का जो हथियार खरीदता है । आलम ये है कि 2012 से 2016 के बीच पूरी दुनिया में हुए भारी हथियारों के आयात का अकेले 13 फ़ीसदी भारत ने आयात किया. । स्कॉटहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत ने 2007-2016 के दौरान भारत के हथियार आयात में 43 फ़ीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई । और जिस देश में जय जवान-जय किसान का नारा आज भी लोकप्रिय है-उसका सच यह है कि 2002-03 में हमारा रक्षा बजट 65,000 करोड़ रुपये का था जो 2016-17 तक बढ़कर 2.58 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. । जबकि 2005-06 में कृषि को बजट में 6,361 करोड़ रुपये मिले थे जो 2016-17 में ब्याज सब्सिडी घटाने के बाद 20,984 करोड़ रुपये बनते हैं । यानी रक्षा क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत के बावजूद भारत के लिए विदेशों से हथियार खरीदना मजबूरी है। जिसका असर खेती ही नहीं हर दूसरे क्षे6 पर पड रहा है । और जानकारों का कहना है कि भारत हथियार उद्योग में अगले 10 साल में 250 अरब डॉलर का निवेश करने वाला है । यानी ये सवाल छोटा है कि मैनचेस्टर में इस्लामिक स्टेट का आंतकी हमला हो गया । या भारत ने पाकिसातनी सेना की पोस्ट को आंतक को पनाह देने वाला बताया । या फिर सीरिया में आईएस को लेकर अमेरिका और रुस ही आमने सामने है । सवाल है कि टकराव के दौर में फंसी दुनिया के लिये आंतकवाद भी मुनाफे का बाजार है ।- : साभार - श्रीमान पुण्य प्रसन्न वाजपेयी जी !! सधन्यवाद !




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                               सधन्यवाद !
                                                  आपका अपना ,
                                                   पीताम्बर दत्त शर्मा,
                                                     सूरतगढ़ !

Tuesday, May 23, 2017

"सेक्स"और विनाशकारी अज्ञानता !- पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतंत्र -टिप्पणीकार)

  समय-समय पर भारत में "सेक्स की अज्ञानता" एक विनाशकारी दुर्घटना का कारण बनती है !भारतीय सभ्यता-संस्कृति ने "कोक-शास्त्र"नामक ग्रन्थ दिया ! दूसरी कथाएं भी यही बतातीं हैं कि माँ पार्वती से लेकर चाहे सीता जी हों या राधा-मीरां जी हों !मध्यकाल की कोई राजकुमारी हों या फिर मुग़ल शासन काल की कोई राजपूतानी ! सभी ने अपने मन चाहे मर्द से पहले प्यार किया ,फिर इज़हार किया और फिर शादी करके सेक्स किया और अपना परिवार भारतीय संस्कृति के अनुसार चलाया !समाज और परिवारों ने इसका विरोध भी किया और परिस्थिति अनुसार समर्थन भी !ऋषियों-मुनियों ने भारतीय परम्पराओं को इस प्रकार से बुना ,जिससे सभी काम भी हो जाएँ और समाज में "अराजकता" भी नहीं फैले !शरीर की इच्छाओं को "मन-दिमाग और दिल"में बाँट दिया !"पाप और पुण्य"का बार्डर बनाया!"रीती-रिवाज़ों"की गूंद बनाकर मनुष्य के साथ ऐसे चिपका दिया ,जो समय बीतने के साथ और ज्यादा मजबूत होता गया !खुले सेक्स को गन्दा बताया गया !कोई दुर्घटना हो भी जाये तो उसे जनहित में छिपाना भी बेहतर इलाज समझा गया !मिलीजुली क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं"के साथ सभी भारतीय रह रहे थे !
                       लेकिन तभी यहां मुगल और अँगरेज़ आये जिनकी सभ्यतानुसार महिलाएं केवल एक सेक्स मशीन थीं !कोई भी किसी भी महिला या बच्ची-बूढी को अपनी हवस का शिकार बना लेता था ! चाहे उस बेचारी महिला की "इच्छा"हो या ना हो !ये लोग "शौंकिया - सेक्स"करने के आदि थे ! मुगलों और अंग्रेज़ों के नजदीक रहने वाले उनके "झंडा-बरदार"दरबारी लोग अपने "मालिकों"की सेवा में नयी-नयी औरतों को बहला-फुसला कर ले जाते और पेश करते रहे !नाच के नाम पर या फिर मुजरे के नाम पर वैश्यालय खुलने लग गए !धनि लोगों और उनके चमचों का ये शुगल बन गया ! और सेक्स बदनाम और गंदा हो गया ! माताएं अपनी बच्चियों को इस से दूर रहने का कहने लगीं !नए नए रिवाज़ और कहावतें गढ़ी गयीं  !
                              लेकिन "दलाल और चमचे"लोग "तू डाल-डाल ,तो मैं पात-पात"वाली कहावत अनुसार नित नए तरीके निकालने लगे !इन लोगों ने अंग्रेज़ों के जाने के बाद "काले-अंग्रेज़ों"की "सेवा"करनी शुरू कर दी !ऐसे कार्यों में महिलाएं भी प्रमुखता से रोल निभातीं थीं !जैसे वैश्यालयों की "महारानी"बनना आदि आदि ! भारत के हर बड़े शहरों में सेक्स के बाजार खुल गए ,जो आज भी हैं !छोटे शहरों में लुकाछिपी से ये काम हो रहा है !ऐसे लोगों ने "आधुनिकता के नाम पे महिलाओं को मुर्ख बनाना शुरू किया !पहले कहते कि औरत को "बेड़ियों"में बाँध रख्खा है !फिर अन्धविश्वास का ढोल बजाकर गाँव के विद्वानों को मूर्ख बताया गया !उसे घर से बाहर निकाल कर पैसे के जाल से फांसा गया दफ्तरों के मैनेजरों बाबुओं द्वारा ! फिर अन्याय का ढिंढोरा पिता जाने लगा !यानी जो लोग महिलाओं की इज्जत लुटवाने का षड्यंत्र रचते हैं उन्हीं के गैंग के आदमी महिलाओं के अधिकारों हेतु झूठा लड़ते भी हैं !हद्द है !
                     और भारतीय समाज ना तो भारतीय रहा और नाही वो अँगरेज़ बन पाया ! आज हालात ये हैं कि ज्यादा तर महिलाएं सेक्स करने के लिए अपने पति को भी जल्दी से इजाजत नहीं देतीं ! सो बहाने बनातीं हैं !आधुनिक होने के बावजूद वो आज भी नहीं समझ पायी कि सेक्स वैसा ही है जैसे "देसी गहि लगा आलू का परांठा"!!जो पेट भरने के बाद भी स्वाद लगता है !हर दुसरे दिन खाने को जी करता है !और खाते रहने में कोई हर्ज़ भी नहीं है !जब भी जी चाहे जिस किसी के भी साथ मन चाहे सेक्स करने को तो कर लेना चाहिए !
               लेकिन - लेकिन - लेकिन !!!!! अगर कोई एक पक्ष अगर "ना" कर दे तो !!!--------फिर चाहे किसी पक्ष का कितना भी मन कर रहा हो ! कितना भी सुहाना मौसम हो !कितनी भी अच्छी-अनुकूल परिस्थितियां हों !!!!उसे दूर हट जाना चाहिए !! जबरदस्ती करने वाले को "फांसी" ही लगनी चाहिए !ऐसा मेरा मानना है ! और मैं चाहता हूँ कि मेरे पाठक मित्र इस विषय पर खुलकर अपने विचार रख्खें ! समाज में चर्चाएं चलाएं !इंटरनेट माध्यमों का भरपूर प्रयोग करके इस गंभीर विषय पर बहस करके कोई निष्कर्ष निकला जाना चाहिए !जैसे 3 तलाक पर निकलने की संभावना बनी हैं ! 



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                                                   पीताम्बर दत्त शर्मा,
                                                     सूरतगढ़ !

Saturday, May 20, 2017

इंसाफ पर ना-पाक मुहर क्यों ?? - मुकरने वाले को दो करारा जवाब !


क्या भारत को वाकई कुलभूषण जाधव मामले में काउंसलर एक्सेस मिल जायेगा। ये सबसे बड़ा सवाल है क्योंकि पाकिस्तान के भीतर का सच यही है कि कुलभूषण जाघव को राजनयिक मदद अगर पाकिस्तान देने देगा तो पाकिस्तान के भीतर की पोल पट्टी दुनिया के सामने आ जायेगी । और पाकिस्तान के भीतर का सच आतंक, सेना और आईएसआई से कैसे जुड़ा हुआ है इसके लिये चंद घटानाओं को याद कर लीजिये। अमेरिकी ट्विन टावर यानी 2001 में 9/11 का हमला। और पाकिस्तान ने किसी अमेरिकी एजेंसी को अपने देश में घुसने नहीं दिया । जबकि आखिर में लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद में मिला । इसी तरह अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या आतंकवादियों ने 2002 में की । लेकिन डेनियल के अपहरण के बाद से लगातार पाकिस्तान ने कभी अमेरिकी एजेंसी को पाकिस्तान आने नहीं दिया। फिर याद कीजिये मुबंई हमला । 26/11 के हमले के बाद तो बारत ने पांच डोजियर पाकिस्तान को सौंपे। सबूतों की पूरी सूची ही पाकिस्तान को थमा दी लेकिन लश्कर-ए-तोएबा को पाकिस्तान ने आंतकी संगठन नहीं माना । हाफिज सईद को आतंकवादी नहीं माना । भारत की किसी एजेंसी को जांच के लिये पाकिस्तान की जमीन पर घुसने नहीं दिया । फिर सरबजीत को लेकर एकतरफा जांच की । पाकिस्तान के ही मानवाधिकार संगठन ने सरबजीत को लेकर पाकिस्तानी सेना की संदेहास्पद भूमिका पर अंगुली उठायी तो भी किसी भारतीय एजेंसी को पाकिस्तान में पूछताछ की इजाजत नहीं दी गई । और जेल में ही सरबजीत पर कैदियों का हमला कर हत्या कर दी। 

और दो बरस पहले पठानकोट हमले में तो पाकिस्तान की जांच टीम बाकायदा ये कहकर भारत आई कि वह भी भारतीय टीम को पाकिस्तान आने की इजाजत देगी । लेकिन दो बरस बीत गये और आजतक पाकिस्तान ने पठानकोट हमले की जांच के लिये भारतीय टीम को इजाजत नही दी । यानी अगला सवाल कोई भी पूछ सकता है कि क्या वाकई पाकिस्तान जाधव के लिये भारतीय अधिकारियों को मिलने की इजाजत देगा । यकीनन ये अंसभव सा है । क्योंकि पाकिस्तान के भीतर का सच यही है कि सत्ता तीन केन्द्रों में बंटी हुई है । जिसमें सेना और आईएसआई के सामने सबसे कमजोर चुनी हुई सरकार है. और तीनों को अपने अपने मकसद के लिये आतंकवादी या कट्टरपंछी संगठनो की जरुरत है। और सत्ता के इसी चेक एंड बैलेस में फंसे पाकिस्तान के भीतर कोई भी विदेशी अधिकारी अगर जांच के लिये जायेगा या पिर जाधव से मिलने ही कोई राजनयिक चला गया। तो पाकिस्तान का कौन सा सच दुनिया के सामने आ जायेगा। 

लेकिन इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को अगर पाकिस्तान नहीं मान रहा है तो मान लीजिये इसके पीछे बडी वजह पाकिस्तान के पीछे चीन खड़ा है,जो भारत के लिये अगर ये सबसे मुश्किल सबब है , तो पाकिस्तान के लिये सबसे बडी ताकत है । क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को जिस तरह पाकिस्तान ने बिना देर किये खारिज किया उसने नया सवाल तो ये खडा कर ही दिया है कि क्या आईएसजे के फैसले को ना मान कर पाकिस्तान यून में जाना चाहता है । यून में चीन के वीटो का साथ पाकिस्तान को मिल जायेगा ।जैसे जैश के मुखिया मसूद अजहर पर वीटो पर चीन ने बचाया । जाहिर है चीन के लिये पाकिस्तान मौजूदा वक्त में स्ट्रेटजिक पार्टनर के तौर पर सबसे जरुरी है और भारत चीन के लिये चुनौती है । और ध्यान दें तो कश्मीर में आंतकवाद से लेकर इकनामिक कॉरीडोर तक में जो भूमिका चीन पाकिस्तान के साथ खडा होकर निभा रहा है उसमें जाधव मामले में भ चीन पाकिस्तान के साथ खडा होगा इंकार इससे भी नहीं किया जा सकता । लेकिन जाधव मामले में पाकिस्तान का साथ देना चीन को भी कटघरे में खड़ा सकता है । क्योंकि मौजूदा वक्त में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के 15 जजो की कतार में चीन के भी जज जियू हनक्वीन भी है । और आज फैसला सुनाते हुये दो बार रोनी अब्राहम ने सर्वसम्मति से दिये जा रहे फैसले का जिक्र किया । तो एक तरफ चीन के जज अगर फैसले के साथ है तो फिर मामला चाहे यूएन में चला जाये वहा चीन कैसे पाकिस्तान के लिये वीटो कर सकता है । लेकिन ये तभी संभव है जब चीन भी जाधव मामले पर आईएसजे के फैसेल को सिर्फ कानूनी फैसला माने । लेकिन सच उल्टा है . कोर्ट का फैसला भारत पाकिस्तान के संबंधो के मद्देनजर सिर्फ कानून तक सीमित नहीं है और चीन का पाकिस्तान के साथ खडे होना या भारत के खिलाफ जाना कानूनी समझ भर नहीं है । बल्कि राजनीयिक और राजनीति से आगे न्यू वर्ल्ड आर्डर को ही चीन जिस तरह अपने हक में खडा करना चाह रहा है उसमें भारत के लिये सवाल पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है । जिससे टकराये बगैर पाकिस्तान के ताले की चाबी भी नहीं खुलेगी ये भी सच है । 

क्योंकि इससे पहले कभी इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के पैसले को लेकर पाकिस्तान का रुख इस तरह नहीं रहा । क्योकि ये चौथी बार है, जब भारत और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में आमने-सामने हैं। और 1945 में बने इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के इतिहास में ये पहला मौका है जब किसी देश के खिलाफ इतना कडा पैसला दिया गया हो । और याद किजिये तो 18 बरस पहले पाकिस्तान ने इसी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का दरवाजा ये कहकर खटखटा था कि भारत ने जानबूझ कर पाकिस्तान के टोही विमान को मार गिराया । जबकि सच यही था कि सोलह सैनिकों को ले जा रहा पाकिस्तान का विमान जासूसी के इरादे से भारत के कच्छ में घुस आया था । और तब कोर्ट की 15 जजो की पीठ ने 21 जून 2000 को पाकिस्तानं के आरोपों को बहुमत से खारिज कर दिया था । और आज पाकिस्तान की दलील जाधव को जासूस बताने की खारिज हुई ।तो पाकिस्तान को दोनो बार मात मिली है। और पन्नों को पलटें तो 1971 के युद्द के बाद पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने जब बांग्लादेश नाम का देश ही खडा कर दिया । और 90 हजार पाकिस्तानी सैनिको को बंदी बनाया । युद्द के बाद 1973 में पाकिस्तान भारत के खिलाफ आसीजे पहुंचा। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत 195 प्रिजनर्स ऑफ वॉर्स को बांग्लादेश शिफ्ट कर रहा है, जबकि उन्हें भारत में गिरफ्तार किया गया है। ये गैरकानूनी है। भारत ने इस मामले लड़ाई लड़ी लेकिन जब तक कुछ फैसला हो पाता दोनों देशों ने 1973 में न्यू दिल्ली एग्रीमेंट साइन कर लिया। और उससे पहले 1971 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन के अधिकार क्षेत्र के खिलाफ एक मामला दायर किया था। पाकिस्तान ने इस संगठन में भारत की शिकायत की थी। इसमें संगठन ने पाकिस्तान का साथ दिया था इसीलिए इस संगठन के खिलाफ भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का रुख किया। लेकिन-आसीजे से भारत को निराशा हाथ लगी क्योंकि 18 अगस्त 1972 को फैसला पाकिस्तान के पक्ष में गया था। उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस की खूब वाहवाही की थी । और आज पाकिस्तान उसी इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस के फैसले को गलत बता रहा है । तो सवाल अब कुलभूषण जाधव पर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले का नहीं बल्कि इंसाफ पर पाकिस्तान के नापाक मुहर का है ।






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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...