नया इंडिया, 19 दिसंबर 2013 : हमारी बाबुओं की सरकार में इतनी हिम्मत अचानक कहां से आ गई? उसने बुलडोजर भेज दिए और चाणक्यपुरी के अमेरिकी दूतावास के आस-पास लगी सीमेंट की बाड़ गिरा दी। उसने अमेरिकी वाणिज्य-दूतावास के अधिकारियों के वे ‘पास’ भी वापस मंगा लिए, जिन्हें दिखाकर वे हवाई अड्डों पर विशेष सुविधाओं के हकदार बन जाते थे। इससे भी बड़ी बात यह कि अमेरिकी दूतावास में काम कर रहे स्थानीय कर्मचारियों के वेतन और भत्तों की जांच भी शुरु कर दी गई है। भारत सरकार अब यह मालूम करेगी कि उन कर्मचारियों को कितनी तनखा मिलती है? अमेरिका में जितनी मिलती है, कहीं उससे कम तो नहीं मिलती है? अमेरिकी कूटनीतिज्ञों के परिवारजन में कौन-कौन हैं? वे समलैंगिक तो नहीं हैं? इतना ही नहीं, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, विदेश सचिव सुजाता सिंह, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री सुशील शिंदे और राहुल गांधी ने अमेरिकी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से भी मिलने से मना कर दिया। हमारी विदेश सचिव ने अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल को बुलाकर शिकायत !
एक भारतीय नौकरानी ने अमेरिकी पुलिस से कहा कि उसकी भारतीय मालकिन उसे नियमानुसार बेहद कम वेतन दे रही हैं जो मानवाधिकारों का हनन और कानूनी तौर पर जुर्म है.
भारतीय मालकिन यानी IFS अफसर देवयानी ने पुलिस को बताया को वो अमेरिकी नियमुन्सार अपनी नोकारानी को ९.७५ डॉलर प्रति घंटे की दर से वेतन दे रही हैं. इस पर नौकरानी ने दस्तावेजी सबूत पुलिस को दिखाए और कहा की मालकिन गलत बोल रही है. उसे सिर्फ ३ डॉलर प्रति घंटे की दर से वेतन दिया जा रहा है.
मामले की जांच हुई और पाया गया की देवयानी ९.७५ (५३६ रूपए) की जगह सिर्फ ३ डॉलर(१६५ रूपए) रूपए ही अपनी नौकरानी को दे रही थी. अदालत ने देवयानी को अपनी नौकरानी को भारी जुर्माना भरने के आदेश दिए. देवयानी चूँकि भारतीय दूतावास में तैनात नही थी इसलिए अमेरिकी क़ानून के मुताबिक नौकरानी को जुर्माना न भरने पर उनकी गिरफ्तारी ही एक मात्र उपाय था. इस फैसले से सबसे पहले आहत देश के IFS अफसर हुए जिन्हें लगा की अब अमेरिका में कौड़ियों के भाव सस्ते भारतीय नौकर रखने में कानूनी दिक्कत आयेंगी.और आखिरकार विदेश नीति बनाने वाले IFS अफसरों ने एक नौकरानी और अफसर की लड़ाई ओबामा के दफ्तर तक पहुंचा दी .
मित्रो देवयानी का मै समर्थन करता हूँ की उन्होंने अपनी नौकरानी को पारंपारिक रूप से ३ डॉलर की दर से वेतन देकर कुछ गलत नही किया क्यूंकि सालों से अमेरिका मे तैनात IFS फर्जी कागजों पर बड़ा हुआ वेतन दिखा रहे थे और अब तक विवाद से बचते रहे. एक भारतीय नौकरानी ने ज्यादा पैसों की लालच में जब इस फर्जीवाड़े की कलई खोली तो IFS अफसरों ने हंगामा खड़ा कर दिया. क्यूंकि IFS अफसर ही विदेश निति चलाते हैं इसलिए देश को इस मामले पर स्टैंड लेना पड़ा और मुद्दा नौकरानी को गैर कानूनी कम वेतन की जगह देवयानी से बदसलूकी बना. इस बदसलूकी की हम निंदा करते है पर कुछ सवाल मेरे जेहन में ज़रूर हैं.
मित्रों ये IFS अफसर तब एक जुट क्यूँ नही हुए जब हमारे तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस के अमेरिका में कपडे उतार लिए गये थे . ये IFS तब एक जुट क्यूँ नही हुए जब हमारे सुपरस्टार शाहरुख़ खान से एक आतंकवादी की तरह अमेरिकी पुलिस ने बर्ताव किया और उनको हिरासत में रखा. जब इस देश के तीन बार निर्वाचित मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अमेरिका ने वीजा की राजनीति की तब ये IFS अफसर कौन सी कूटनीति कर रहे थे. मित्रों मै मोदी का पक्ष नही ले रहा लेकिन बिना किसी अदालत के आरोप के अगर एक बड़ी पार्टी के प्रधानमंत्री उमीदवार और निर्वाचित मुख्यमंत्री पर कोई बाहरी देश जानबूझकर कोई प्रतिबन्ध लगाए तो ये जग हंसाई का विषय है. ये हमारी सार्वभोमिकता और निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का खुला उलंघन है. क्या इस तथ्य को IFS अफसर बिना सत्ता परिवर्तन के नही स्वीकारेंगे.
मित्रों भले ही वेतन मामले में देवयानी की गलती हो पर उनके साथ की गयी बदसलूकी पर अमेरिका माफ़ी मांगे लेकिन विदेश नीति के मुद्दे सिर्फ IFS अफसर अपने हित के अनुसार घटा बदाकर न तय करें. IFS अफसरों के हाथों बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है और उन्हें हर मुद्दे को जनता के हित को सर्वोपरि रख कर देखना चाहिए.
भारतीय मालकिन यानी IFS अफसर देवयानी ने पुलिस को बताया को वो अमेरिकी नियमुन्सार अपनी नोकारानी को ९.७५ डॉलर प्रति घंटे की दर से वेतन दे रही हैं. इस पर नौकरानी ने दस्तावेजी सबूत पुलिस को दिखाए और कहा की मालकिन गलत बोल रही है. उसे सिर्फ ३ डॉलर प्रति घंटे की दर से वेतन दिया जा रहा है.
मामले की जांच हुई और पाया गया की देवयानी ९.७५ (५३६ रूपए) की जगह सिर्फ ३ डॉलर(१६५ रूपए) रूपए ही अपनी नौकरानी को दे रही थी. अदालत ने देवयानी को अपनी नौकरानी को भारी जुर्माना भरने के आदेश दिए. देवयानी चूँकि भारतीय दूतावास में तैनात नही थी इसलिए अमेरिकी क़ानून के मुताबिक नौकरानी को जुर्माना न भरने पर उनकी गिरफ्तारी ही एक मात्र उपाय था. इस फैसले से सबसे पहले आहत देश के IFS अफसर हुए जिन्हें लगा की अब अमेरिका में कौड़ियों के भाव सस्ते भारतीय नौकर रखने में कानूनी दिक्कत आयेंगी.और आखिरकार विदेश नीति बनाने वाले IFS अफसरों ने एक नौकरानी और अफसर की लड़ाई ओबामा के दफ्तर तक पहुंचा दी .
मित्रो देवयानी का मै समर्थन करता हूँ की उन्होंने अपनी नौकरानी को पारंपारिक रूप से ३ डॉलर की दर से वेतन देकर कुछ गलत नही किया क्यूंकि सालों से अमेरिका मे तैनात IFS फर्जी कागजों पर बड़ा हुआ वेतन दिखा रहे थे और अब तक विवाद से बचते रहे. एक भारतीय नौकरानी ने ज्यादा पैसों की लालच में जब इस फर्जीवाड़े की कलई खोली तो IFS अफसरों ने हंगामा खड़ा कर दिया. क्यूंकि IFS अफसर ही विदेश निति चलाते हैं इसलिए देश को इस मामले पर स्टैंड लेना पड़ा और मुद्दा नौकरानी को गैर कानूनी कम वेतन की जगह देवयानी से बदसलूकी बना. इस बदसलूकी की हम निंदा करते है पर कुछ सवाल मेरे जेहन में ज़रूर हैं.
मित्रों ये IFS अफसर तब एक जुट क्यूँ नही हुए जब हमारे तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस के अमेरिका में कपडे उतार लिए गये थे . ये IFS तब एक जुट क्यूँ नही हुए जब हमारे सुपरस्टार शाहरुख़ खान से एक आतंकवादी की तरह अमेरिकी पुलिस ने बर्ताव किया और उनको हिरासत में रखा. जब इस देश के तीन बार निर्वाचित मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अमेरिका ने वीजा की राजनीति की तब ये IFS अफसर कौन सी कूटनीति कर रहे थे. मित्रों मै मोदी का पक्ष नही ले रहा लेकिन बिना किसी अदालत के आरोप के अगर एक बड़ी पार्टी के प्रधानमंत्री उमीदवार और निर्वाचित मुख्यमंत्री पर कोई बाहरी देश जानबूझकर कोई प्रतिबन्ध लगाए तो ये जग हंसाई का विषय है. ये हमारी सार्वभोमिकता और निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का खुला उलंघन है. क्या इस तथ्य को IFS अफसर बिना सत्ता परिवर्तन के नही स्वीकारेंगे.
मित्रों भले ही वेतन मामले में देवयानी की गलती हो पर उनके साथ की गयी बदसलूकी पर अमेरिका माफ़ी मांगे लेकिन विदेश नीति के मुद्दे सिर्फ IFS अफसर अपने हित के अनुसार घटा बदाकर न तय करें. IFS अफसरों के हाथों बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है और उन्हें हर मुद्दे को जनता के हित को सर्वोपरि रख कर देखना चाहिए.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (20-12-13) को "पहाड़ों का मौसम" (चर्चा मंच:अंक-1467) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही कहा है....जब बात अपने सिर पर आई तो उठ खड़े हुए......राष्ट्रपति के जूते उतरवाने पर ये लोग नहीं चेते .....ये सरकार के सलाहकार हैं जिन्हें बड़ी-बड़ी तनखाएँ देकर सरकारी दामाद जैसे रखा जाता है ...देश के .सबसे अमीर लोगों में होते हैं गरीब देश के ये लोग, अथाह शक्ति व सम्पति के मालिक .....
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