Saturday, November 10, 2012

"अगली सरकार बुद्धिजीवियों और पत्रकारों की हो जाये तो क्या हो "....???

 सरकार बनाने वाले सभी मतदाताओं को  मेरा अधिकार भरा प्यारा सा नमस्कार !! 
                    आज मेरे एक मित्र ने मुझसे पुछा कि आने वाली सरकार किस दल की बनेगी ? मैंने कहा कि सरकार किसी एक दल की नहीं , बल्कि वोही चूं-चूं का मुरब्बा बनेगा !! वो बोला नहीं भाई साहिब अब्किबार सारे बुद्धिजीवी और पत्रकार पीछे पड़े हैं कुछ न कुछ अवश्य अंतर आएगा , आप देख लेना !! अख़बार वाले पत्रकार सख्ती से नेताओं की कारगुजारियां छाप रहे हैं , टीवी एंकर सख्त सवाल पूछ रहे हैं , नेता बेशर्मी से हंस रहे हैं , जनता सब देख रही है , अबकी बार अवश्य बदलाव आएगा !!!!!
                      मैं सब बोला हे मेरे भोले " मतदाता " तू अभी सच्चाई नहीं जानता और नाही इन " नेताओं-पत्रकारों व बुद्धिजीवियों को जानता है !! ये साक्षात्कार लेने के बाद , टीवी पर बहस के बाद " उन्हीं " नेताओं के साथ क्या - क्या बातें करते हैं अगर कोई अन्य आदमी सुनले तो सच्चाई का पता चले !!! अभी कल की ही तो बात है - " जिंदल साहिब कह रहे थे कि हमने स्टिंग-आपरेशन किया था और ज़ी टीवी वाले कह रहे थे कि हमने किया " ??? अब दोनों चुप हैं क्यों ????? कोई नहीं पूछ रहा ,ओए कोई न्यायालय में भी नहीं जा रहा !! आजकल सर्वोच्च-न्यायलय ने भी अपने आप " प्रसंज्ञान " लेना भी छोड़ दिया है.......!!! ना जाने क्यों ??? राम-जाने.... !!!

                         हमारे     ऋषि-मुनियों ने " वर्ण-व्यवस्था " ऐसे ही नहीं बनाई !! ब्राह्मण ज्ञान दे सकता है , मैदान में जाकर लड़ नहीं सकता !! आजकल पत्रकारिता " पंडिताई " करने जैसा ही है !! इसीलिए तो हमारे नेता लोग धड़ल्ले से कहते हैं कि                                 " हिम्मत है तो चुनाव जीतकर दिखाओ " !! क्योंकि वो भली-भांती जानते हैं कि इन तथाकथित " बुद्धिजीवियों- पत्रकारों और टीवी एंकरों के पास सिर्फ बोलने व सवाल पूछने की ही कला है !!
                                  जोआदमी जिस काम हेतु बना है, वो,वोही कार्य कर सकता है !! इसलिए इन्ही नेताओं के सर पर बन्दूक लगाकर ही देश-हित के कार्य करवाए जा सकते हैं ...?? अब शायद और कोई रास्ता नहीं बचा है !! सभी राजनीतिज्ञों को दिल्ली के नेहरु स्टेडियम में सभी राज्यों के नेताओं , अफसरों, वकीलों और बुद्धिजीवियों के साथ तब तलक बंद करके रख्खा जाए , जब तलक हर उस बात का हल ना निकल जाए , जिससे देश को कोई दिक्कत है !!
                        प्रिय मित्रो, आपका क्या कहना है ...इस विषय पर ......???? अपने विचार आप मेरे ब्लॉग पर , जिसका नाम है..:- " 5th pillar corrouption killer " जाकर लिख सकते हैं !! जिसको खोलने का लिंक ये है...www.pitamberduttsharma.blogspot.com. आप मेरे ये लेख फेसबुक , गूगल+ , ग्रुप और मेरे पेज पर भी पढ़ सकते हैं !!! आप मुझे अपना मित्र भी बना सकते हैं और मेरे ब्लॉग को ज्वाईन , शेयर और कंही भी प्रकाशित भी कर सकते हैं !!!!

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पीताम्बर दत्त शर्मा
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आर. सी.पी. रोड, पंचायत समिति भवन के सामने, सूरतगढ़ ! ( श्री गंगानगर )( राजस्थान ) मोबाईल नंबर :- 9414657511. फेक्स :- 1509 - 222768.

Friday, November 9, 2012

" महात्यागी बाबा ", श्री लाल कृष्ण अडवाणी !!!

       " मोह-माया में फंसे " प्यारे मित्रो, नमस्कार !! 
 हमारी भाजपा के वरिष्ठ और सन्माननीय नेता अडवाणी जी ने अपने जनम दिवस पर अति - भावुकता में ये बोल दिया कि " फिर क्या हुआ अगर मैं प्रधानमंत्री नहीं बना तो, मुझे मेरी पार्टी ने बहुत कुछ दिया है, जिससे मैं संतुष्ट हूँ " !! 

                          जिस भी राजनीतिज्ञ ने सुना, वो सन्न रह गया ! कार्यकर्ता भी हैरान-परेशान , की ये क्या बोल गये आडवानी जी , !! क्या वो इतने अनजान और भोले नेता हैं !!??? मैं कहता हूँ कि बिलकुल भी नहीं, बल्कि वो तो एक सुलझे हुए कूटनीतिज्ञ हैं !! तो क्या वो राजनीती से सन्यास लेने की सोच रहे हैं !!! मैं कहता हूँ जी कि बिलकुल भी नहीं , मेरे हिसाब से तो उन्होंने बड़ी ही चतुरायी से संघ के आगे ये प्रस्ताव रख्खा है कि चाहे श्री गडकरी जी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनादो , चाहे श्री नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री घोषित करदो , उन्हें कोई एतराज़ नहीं है ,अगर उन्हें यानि आडवानी जी को भविष्य  का " राष्ट्रपति " अगर घोषित कर दिया जाए !!
                          क्योंकि मेरा ये मानना है की राजनीती से सन्यास लेने की संभावना तो उन्होंने जताई नहीं , और ना ही बतायी !! भाजपा में ये समस्या शुरू से ही व्याप्त है कि इस पार्टी के जन्म से ही कुछ ऐसे नेता पार्टी में शामिल हो गए जो संघ से सम्बंधित नहीं हैं ! लेकिन क्योंकि ये सब व्यापक जनाधार वाले नेता होते हैं , इसलिए पार्टी इनको गलती करने पर भी बाहर नहीं निकाल पाती , अगर कभी निकाल भी देती है तो मुश्किल समय आनेपर उन्हें वापिस लेना पड़ता है !! और अडवानी जी इन्ही तरह के नेताओं को अपना आशीर्वाद देते हैं !! हाल ही में घटे श्री रामजेठ मलानी काण्ड से ये स्पष्ट दिखाई देता है !! 
                     इस तरह के नेता पार्टी में हर स्तर पर विराजमान हैं , जो " जनता-पार्टी " के विघटन के समय से ही भाजपा में रह गये ! और कुछ नेता दूसरी पार्टियों से भी आते रहे हैं !! संघ की समस्या की जड़ यंही पर है की किसी को भाजपा में शामिल करते समय तो कोई दिशा-निर्देश जारी करता नहीं, ना ही कोई प्रशिक्षण शिविर लगाता है !! बल्कि ऐसे कार्यकर्ताओं और नेताओं को अंदरूनी गतिविधियों से दूर रखता है !! जिससे   मतभेद की स्थिति पैदा हो जाती है !! उस समय " अमिताभ सिन्हा " जैसे प्रवक्ता टीवी. चेनल पर अपने पिता की उम्र के नेता को भी " जीरो " बता देते हैं !! 
                         जिस वक्त चुनाव होने होते हैं, जनता के बीच में जाकर वोट लेने होते हैं, ज्यादातर देखने में आया है की संघ अपने " स्वयंसेवक " भाजपा में मनोनीत नहीं करता , वो सरकार बन्ने के पहले या बाद में विभिन्न पदों पर नियुक्ति करता है , जिससे वो अपने दिशा - निर्देश दे सके !! बस यंही जनाधार वाले नेता और स्वयंसेवक नेता में मतभेद पैदा हो जाते हैं !!
                               ये  मेरा पिछले 27 साल का अनुभव है ! संघ को भी पिछले 18 वर्षों से पैसे वाले कार्यकर्त्ता ही पसंद आने लगे हैं , जिनके दुष्परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं !! संघ को अगर लगता है की उसके " स्वयंसेवक " दुसरे भाजपा कार्यकर्ताओं से ज्यादा इमानदार और निष्ठावान हैं तो क्यों उनको पार्टी से बाहर निकलवा देती ?? एक बार में ही सफाई अभियान क्यों नहीं चलाती ?? वो इसलिए , क्योंकि वो अच्छी तरह से जानती है की संघ के स्वयंसेवक जनता से " जुड़े " हुए नेता नहीं हैं !! 
             आजके    प्रचारक ऐश्प्रस्त हो गए हैं !! भाजपा के नेताओं का कार्यकर्ताओं से संवाद टूट चूका है !! एक कागज़ी पार्टी बनके रह गयी है हमारी भाजपा !!!!!! मर रही है भाजपा......बचाओ- बचाओ - बचाओ... !!!!!!!!
                                  ओ रब्बा कोई तो बताये.........????
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Tuesday, November 6, 2012

गडकरी के बयान पर हंगामा क्यों बरपा?



राजेश कालरा   Tuesday November 06, 2012

बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी हर रोज़ विवादों को न्योता देते प्रतीत हो रहे हैं। अपनी कंपनी/कंपनियों में भ्रामक निवेश को लेकर घिरे गडकरी पर हर कोई रोड़ा ताने खड़ा है। लग रहा है इतना ही पर्याप्त नहीं था। नामी वकील महेश जेठमलानी ने दागी पार्टी अध्यक्ष के साथ काम करने से इनकार करते हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया है और स्वामी विवेकानंद से डॉन दाऊद इब्राहिम की तुलना के बाद तो उन पर हर राजनीतिक पार्टी की भौंहें तन गई हैं।

कोई करप्ट है, तो उसके खिलाफ हर संभव कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें दया की कोई गुंजाइश नहीं है। अपराधी के साथ अपराधियों जैसा ही व्यवहार होना चाहिए, फिर चाहे वह कोई भी हो। गडकरी अपने द्वारा प्रमोट की गई कंपनियों में लगी पूंजी को लेकर इन विवादों में हैं। किसी दूसरे सामान्य संदिग्ध की तरह ही उनके खिलाफ भी जांच होनी चाहिए और उन्हें कोई रियायत नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन, इससे अलग मैं कहना चाहूंगा कि स्वामी विवेकानंद और दाऊद को लेकर ताजा विवाद बेमतलब का है।

आखिर गडकरी ने ऐसा क्या कह दिया कि इतना हंगामा बरपा हुआ है? उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि अगर आप स्वामी विवेकानंद और दाऊद इब्राहिम के आईक्यू की तुलना करेंगे तो संभवत: समान पाएंगे, लेकिन देखिए कि दोनों ने इसका किस तरह से इस्तेमाल किया। एक राष्ट्र निर्माण और आध्यात्म के क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर पर पहुंचे, दूसरा अपराध की दुनिया का सरगना बना।

बताइए, इसमें गलत क्या है? हम राई को पहाड़ बनाने के आदी हो चुके हैं। क्या हम अपने बड़े-बुजुर्गों से यह सब सुनते हुए बड़े नहीं हुए हैं कि अपने दिमाग का सही जगह इस्तेमाल करो। नैतिक शिक्षा की हमारी किताबें भी हमें लगातार यही सिखाती रही हैं कि हमें अपने दिमाग का इस्तेमाल सृजन के काम में करना चाहिए न कि विध्वंस में। मैंने जो देखा और सुना, इसके आधार पर कह सकता हूं कि उन्होंने ऐसा कुछ भी असाधारण नहीं कहा जिससे इतना बड़ा विवाद खड़ा हो जाए। केवल इतना कहा जा सकता है कि राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में गडकरी असंयमित लगे, खासकर जब आप किसी शीर्ष राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष जैसे पद पर हों तो हर शब्द तोल-मोल कर बोलना चाहिए।

यह सही है कि गडकरी नेता हैं और चुनाव को देखते हुए जब देश का सियासी तापमान चरम पर है, तो उन्हें जुबान खोलने से पहले अति सतर्क रहने की जरूरत है। गडकरी की भाषा मजेदार है और अगर वह जनसामान्य होते तो लोग इस पर ध्यान नहीं देते, लेकिन दुर्भाग्य से उनके पास यह स्वतंत्रता नहीं है। उन्हें अपनी जुबान पर लगाम लगानी होगी। ज्यादा और गैरजरूरी बातों से जहां उनकी साख को बट्टा लगेगा, वहीं उनकी पार्टी को भी नुकसान पहुंचेगा, जो सत्ताधारियों को करप्शन के आरोपों पर बेनकाब करने में जुटी है।

बिना मतलब के विवाद को इतर रखकर बात करें तो मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि कहीं भी सफल होने के लिए होनहार होना जरूरी है। सफल लोगों पर आप नजर डालिए, भले ही वे भ्रष्ट क्यों न हों। अगर आप उनके गलत कामों को अलग करके केवल बुद्धिमता के स्तर पर देखेंगे तो समझ जाएंगे कि मैं क्या कह रहा हूं।

आतंक फैलाने वाले मास्टरमाइंड्स पर गौर कीजिए। उदाहरण के लिए न्यू यॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की साजिश करने वालों की बात करते हैं। जिस चातुर्य से साजिश रची गई और फिर गुप्त रखते हुए इसे अंजाम गया, क्या कोई बुद्धू मास्टरमाइंड ऐसा कर सकता था? बिल्कुल नहीं। फर्क केवल इतना है कि जिसने भी यह साजिश रची उसने अपने दिमाग का इस्तेमाल निर्माँण के बजाय विध्वंस के लिए किया। उसके पास उन बहुत से लोगों से ज्यादा आईक्यू था, जिन्हें हम जानते हैं। लेकिन वह कभी भी हमारे सम्मान का हकदार नहीं होगा, जैसे कि दाऊद को हम कभी भी इज्जत की नजर से नहीं देखेंगे।
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh 

Monday, November 5, 2012

आधुनिक भारत की सोच.........????



बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था, सारे दरबारी अपने अपने काम में व्यस्त थे कि अकबर ने बीरबल की तरफ देखते हुये कहा- बीरबल, कई दिनों से एक सवाल मुझे काफ़ी परेशान किये जा रहा है, शायद तुम्हारे पास इस सवाल का कोई जवाब हो?

बीरबल ने सर झुका कर कहा- हुज़ूर आप अपना सवाल पूछिये, मैं पूरी कोशिश करूँगा आपके सवाल का वाज़िब जवाब देने की।

अकबर ने कहा- बीरबल, मुझे ये

मालूम करना है कि इस दुनिया में सबसे अधिक मूर्ख किस देश में रहते हैं?

बीरबल ने कुछ देर सोचा और कहा- हुज़ूर इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिये मुझे संसार के सारे देशों में घूम घूम कर वहाँ के लोगों के बारे में जानकारी लेनी होगी, और यह यात्रा पूरी करने में मुझे कम से कम तीन साल तो लग ही जायेगा।

अकबर ने तुरंत जवाब दिया- ठीक है, मैं तुम्हें दो साल की मोहलत देता हूँ, आज से ठीक दो साल के बाद यहाँ आकर सारे दरबार के सामने अपना जवाब देना।

बीरबल ने अदब से सर झुका कर कहा- तो फिर जहाँपनाह मुझे इज़ाज़त दें, मैं घर जाकर अपनी यात्रा की तैयारी करता हूँ।

यह कह कर बीरबल ने दरबार से विदा ली।

बीरबल को गये हुये पूरे तीन हफ्ते गुज़र गये थे और अकबर को बीरबल के बिना दरबार में सूनापन महसूस होने लगा। बादशाह सलामत आँख मूँद कर यह सोचने लगे कि बीरबल न जाने इस समय किस देश में होगा कि अचानक दरबार में होने वाली खुसर पुसर ने उनकी आँखें खोल दी।

और,

अकबर ने अपने सामने बीरबल को हाथ जोड़े खड़ा पाया।

अकबर ने अचंभित हो कर पूछा- अरे बीरबल, तुम इतनी जल्दी कैसे वापस आ गये? और, मेरे सवाल के जवाब का क्या हुआ?

बीरबल ने कहा- हुज़ूर, मुझे आपके सवाल का जवाब मिल गया है और इसी लिये मैं वापस आ गया हूँ।

तो फिर बताओ तुम्हारा जवाब क्या है? अकबर ने अधीरतापूर्वक पूछा।

बीरबल ने विनती की- हुज़ूर पहले वचन दीजिये कि मेरा जवाब सुन कर आप मुझे किसी भी तरह का दंड नहीं दीजियेगा।

ठीक है मैं वचन देता हूँ। अब तो बताओ तुम्हारा जवाब क्या है? अकबर ने कहा।

बीरबल ने सर झुका कर उत्तर दिया- सरकार दुनिया में सबसे ज्यादा मूर्ख हमारे ही देश हिन्दुस्तान में रहते हैं।

पर बीरबल बिना किसी और देश गये सिर्फ़ तीन हफ्तों में तुमने यह कैसे जान लिया कि हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा मूर्ख रहते हैं? अकबर ने खीजते हुये पूछा।

हुज़ूर मैं विस्तार से आपको बताता हूँ कि पिछले तीन हफ्तों में मैंने क्या क्या देखा, और मैंने जो कुछ भी देखा उसी के आधार पर आपके सवाल का जवाब दिया है। यह कहते हुये बीरबल ने अपनी पिछले तीन हफ्तों की दास्तान बयान करनी शुरू कर दी।

उस दिन दरबार से जाने के बाद मैं सीधा घर गया और बोरी बिस्तर बाँध कर अगले दिन सुबह सुबह ही विश्व भ्रमण के लिये निकल पड़ा। दो दिन की घुड़सवारी के बाद एक छोटे से नगर में पहुँचा तो देखा कि गुस्से से तमतमाते हुये लोगों की एक भीड़ सड़क पर खड़े वाहनों को आग लगा रही थी और साथ ही साथ ईंटे पत्थर मार कर दुकानों को तोड़ने में लगी हुई थी।

मैंने भीड़ में से एक युवक को कोने में खींच कर पूछा- यह सब क्यों किया जा रहा है?

पता चला कि नगर के पीने के पानी वाले कुयें में एक चूहा पाया गया है !

बस नागरिकों को आ गया गुस्सा, पहले तो नगर अधिकारी की जम कर पिटाई की और फिर तोड़ फ़ोड़ में लग गये।

मैंने पूछा- आखिर चूहे को कुयें में से निकाला किसने?

तो जवाब मिला- चूहा तो अभी भी उसी कुयें में मरा पड़ा है और उसे निकालना तो सरकार का काम है।

खैर मैंने गुस्से से लाल पीली भीड़ को समझाने की कोशिश की कि इस तोड़ फ़ोड़ से तो उनको ही नुकसान होगा। अगर सारे वाहन जला दिये तो क्या गधे पर बैठ कर जगह जगह जायेंगे? दुकानें और दुकानों में रखा सामान तुम्हारे जैसे नागरिकों की ही सम्पत्ति है। उसे जलाने से आखिर नुकसान किसका होगा।

यह सुनना था कि सारी भीड़ यह चिल्लाते हुये कि मैं एक निकम्मा सरकारी जासूस हूँ मेरी तरफ डंडे ले कर दौड़ पड़ी।

सरकार, मैं किसी तरह जान बचा कर भागा और पास की ही एक सराय में जा कर छुप गया।

पूरी रात सराय में बिता कर मैं अगले दिन सूरज निकलने से पहले ही आगे के लिये निकल पड़ा। अगले पाँच सात दिन बड़े चैन से गुजरे, कोई बड़ा हादसा भी नहीं हुआ। दो हफ्ते पूरे होने को आये थे और मैं अब तक पिछले नगर की घटना को थोड़ा थोड़ा भूल भी चुका था। पर हुज़ूर-ए-आला, अगले दिन जो मैंने देखा वैसा नज़ारा तो शायद नरक में भी देखने को नहीं मिलेगा। शहर की सड़कें खून से लाल थीं, चारों तरफ बच्चों, आदमियों, औरतों, बकरियों और तकरीबन हर चलने फ़िरने वाली चीज़ों की लाशें पड़ी हुई थीं, इमारतें आग में जल रहीं थी।

मैंने सड़क के कोने में सहमे से बैठे हुये एक बूढ़े से पूछा कि क्या किसी दुश्मन की फौज ने आकर यह कहर ढा दिया है?

बूढ़े ने आँसू पोंछते हुये बताया- शहर में हिन्दू और मुसलमानों के बीच दंगा हो गया और बस मार काट शुरू हो गई।

मैंने विचलित आवाज़ में पूछा- दंगा शुरू कैसे हुआ?

पता चला कि एक आवारा सुअर दौड़ते दौड़ते एक मस्जिद में घुस गया। किसी ने चिल्ला कर कह दिया कि यह किसी हिन्दू की ही करतूत होगी। बस दोनों गुटों के बीच तलवारें तन गईं और जो भी सामने आया, अपने मजहब के लिये कुर्बान हो गया।

मुझसे वो सब देखा नहीं गया और मैं घोड़ा तेजी से दौड़ाते हुये उस शहर से कोसों दूर निकल गया।

तीसरा हफ्ता शुरू हो गया था और मैं भगवान से मना रहा था कि हिन्दुस्तान की सीमा पार होने से पहले मुझे अब कोई और बेवकूफी भरा नजारा देखने को न मिले। पर जहाँपनाह, शायद ऊपर वाले को इतनी नीचे से कही गई फरियाद सुनाई नहीं दी। अगले दिन जब मैं मूढ़गढ़ पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि युवकों की एक टोली कुछ खास लोगों को चुन चुन कर पीट रही है।

मैं एक घायल को लेकर जब चिकित्सालय गया तो पता चला कि सारे चिकित्सक हड़ताल पर हैं और किसी भी मरीज़ को नहीं देखेंगे। खैर मैं उस घायल को चिकित्सालय में ही छोड़ कर बाजार की तरफ चल पड़ा जरूरत का कुछ सामान खरीदने के लिये। बाजार पहुँचा तो पाया कि सारी दुकानें बंद हैं। और, कुछ एक जो खुली हैं उनके दुकानदार अपनी टूटी हुई टाँगों को पकड़ कर अपनी दुकानों को लुटता हुआ देख रहे हैं। पता चला कि वो लोग बंद में हिस्सा न लेने की सज़ा भुगत रहे हैं।

सारी स्थिति से मुझे एक नौजवान ने अवगत कराया जो कि उस समय एक दूसरे युवक की पिटाई करने में जुटा हुआ था, उसने बताया कि जहाँपनाह अकबर ने दो दिन पहले घोषणा की कि अस्सी फीसदी सरकारी नौकरियाँ पिछड़ी जाति के लोगों को ही दी जायेंगी। उसी के विरोध में पिछड़ी जाति के युवकों की पिटाई की जा रही है और पूरे नगर में सब हड़ताल पर हैं।

मैंने उस युवक से कहा- इन पिछड़ी जाति के युवकों को पीट कर तुमको क्या मिलेगा? अरे पीटना ही है तो उसे पीटो जिसने ऐसी घोषणा की। और, हड़ताल और बंद करने से तो हम जैसे साधारण नागरिकों को ही तकलीफ़ उठानी पड़ती है।

मेरी बातों को अनसुना कर के वो एक खुली हुई दुकान की तरफ लाठी ले कर दौड़ पड़ा।

हुज़ूर मैंने मन ही मन सोचा कि यहाँ के नागरिक तो मूर्ख हैं ही, पर यहाँ का शासक तो महामूर्ख है जिसके दिमाग में इस तरह का वाहयात ख्याल आया। बस सरकार मैंने आगे जाना व्यर्थ समझा– मुझे आपके सवाल का जवाब मिल चुका था और मैंने वापस आना ही उचित समझा
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पीताम्बर दत्त शर्मा
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" अतृप्त आत्माओं का प्रिय स्थान - " राजनीति " !!!

" विभिन्न प्रकार की आत्माओं का ज्ञान रखने " वाले सभी म्हानुभावी मित्रो,आपको शत-शत नमन !!
                 भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमंत नितिन गड़बड़करी जी ने आज फ़रमाया है कि राजनीति में आजकल " अतृप्त-आत्माएं " विचरण कर रही हैं ! मैं उस तरफ नहीं जाना चाहता कि उन्होंने ये " अनमोल-वचन " किसे और क्यों कहे हैं , बल्कि मैं तो उनके इस कथन को सत्य - वचन मानते हुए , ये कहना चाह रहा हूँ कि आज " कार्यकर्ता " मृत : प्राय " अवश्य हो चुका है !! 
                             " निष्ठा  " पुरानी  बात  हो गई   ! " धन-बल " व " बाहुबल " हर इंसान और उसके द्वारा बनाये गये " संस्थान " पर हावी हो चुका है !! बड़े नेता अपने से छोटे नेता को यही दिखाता है जल्दी है ,देर हो रही है , दूर जाना है और व्यस्तता अधिक है अतः फटाफट " माला " हमारे गले में डालो, " थैली " पकडाओ और टाटा - बाय - बाय, जय - हिन्द !! अच्छा  फिर मिलेंगे !!
                        कोई अपने " कनिष्ठ - कार्यकर्त्ता " से तो मधुर सम्बन्ध बनाना ही नहीं चाहता !! उसे तो सिर्फ " प्रयोग " किया जाता है , स्वागत , भीड़ , रैली और किसी जलूस का एक हिस्सा बनाकर !! बाद में भुला दिया जाता है !! इसीलिए वो " अतृप्त - आत्मा " बनकर रह गया है क्यों....????
                 कौन जिम्मेदार है इस सब हेतु.....???? मेरे अनुसार तो इस सब हेतु हमारे वो महानुभाव दोषी हैं जो कार्यकर्ताओं से बिना पूछे अपनी मर्ज़ी से किसी को किसी भी पद पर मनोनीत कर देता                                  है !! किसी भी राजनितिक दल में " आंतरिक- लोकतंत्र " है ही नहीं !! चुनाव-आयोग भी सो रहा है !! सभी राजनितिक दल अपने कार्यकर्ताओं से भारी मात्रा में धन-संग्रह करते तो है,लेकिन कभी कोई हिसाब उन्हें नहीं देते क्यों.....???? 
                    चुनाव - आयोग राजनितिक दलों के अंदरूनी चुनावों और अन्य गतिविधियों पर नज़र क्यों नहीं रखता ..??? बड़े नेता बार - बार ये सिद्ध कर चुके हैं कि वो परिपक्व नहीं हैं , फिर भी वो हमारे ऊपर क्यों बने हुए हैं ???? तथा हम उन्हें ढ़ोने हेतु क्यों मजबूर हैं ...????
                  ओ  रब्बा कोई तो बताये.........????
                              प्रिय मित्रो, आपका क्या कहना है ...इस विषय पर ......???? अपने विचार आप मेरे ब्लॉग पर , जिसका नाम है..:- " 5th pillar corrouption killer " जाकर लिख सकते हैं !! जिसको खोलने का लिंक ये है...www.pitamberduttsharma.blogspot.com. आप मेरे ये लेख फेसबुक , गूगल+ , ग्रुप और मेरे पेज पर भी पढ़ सकते हैं !!! आप मुझे अपना मित्र भी बना सकते हैं और मेरे ब्लॉग को ज्वाईन , शेयर और कंही भी प्रकाशित भी कर सकते हैं !!!!

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Saturday, November 3, 2012

अब समझ लीजिए न्याय कैसा होता होगा ????????




"1992 में नागुर बार एसोसिएसन के समारोह में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन. वेंकटचलैया बिफर पड़े थे. उन्होंने कहा था --- "मैं 90 जजों को जानता हूँ जो दारू और दावत के लिए वकीलों के घर शाम को आ धमकते हैं. मैं ऐसे जजों को भी जानता हूँ जो लालच और अवैध लाभ के लिए विदेशी दूतावासों के दरवाजों पर दस्तक देते घूमते हैं." यह नहीं कि न्याय पालिका के शीर्ष से संताप का यह स्वर पहली बार फूटा हो, पहले भी लोग यही कहते रहे हैं और आज भी यह क्रम जारी है.  "न्यायपालिका में कुछ सड़े अंडे सडांध पैदा कर रहे हैं. न्यायिक विलम्ब और भ्रष्टाचार का परष्पर रिश्ता है. ---सोली सोराबजी (तत्कालीन ) एटोर्नी जनरल ऑफ इंडिया. "भ्रष्ट जजों पर मुकदमा चलाने के लिए ट्रिब्यूनल होना चाहिए . कोई जज तब तक सफल भ्रष्ट नहीं हो सकता जब तक उसके भ्रष्टाचार को वकीलों का सक्रीय सहयोग न हो." --जे.एस.वर्मा (तत्कालीन ) मुख्य न्याधीश सुप्रीम कोर्ट. "मुंबई के न्यायाधीश ने माफिया डोन छोटा शकील से 40 लाख रुपये लिए और वह अब फरार है. पुलिस को अब इस जे.डब्लू.सिंह नामक जज की तलाश है. हम उसकी गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगायेंगे."---मुंबई उच्चन्यायालय की खंड पीठ. आज की न्यायिक व्यवस्था पर इन तमाम "ख़ास लोगों" की टिप्पणीयाँ भी उतनी प्रमाणिक और सटीक नहीं हो सकतीं, जितनी देश के "आम आदमी" की राय. क्यों नहीं देश के जन -गण -मन से पूछा जाता है कि देश की न्याय व्यवस्था कैसी है ? अदालतों के गलियारों में फूलती दम और पिचकी जेब लिए वादकारी से पूछो कि वह कैसा न्याय किस कीमत पर भोगता है ? गाँव की सिकुडती झोपडी और शहर में वकील की बड़ी होती कोठी का परस्पर समानुपातिक रिश्ता है. सुना है न्याय की देवी की आँखें बंद हैं और यह भी सुना है कि वह देखने के लिए "कोंटेक्ट लेंस" लगाती है. है कोई कोंटेक्ट ?  
जो मुंसिफी की परीक्षा में असफल हुआ वह भी वकालत करने लगता है. फिर चालू होता है चतुरता , चापलूसी और चालाकी का अद्भुत समीकरण. इस समीकरण का एक उपकरण है राजनीति. सभी का योग बना दो तो उच्च न्यायालय का जज बनने का संयोग विकसित होता है. इस संयोग में अभिषेक मनु सिंघवी का जज बनाने का नुस्खा भी शामिल है और एस.सी.माहेश्वरी जैसी जज बनाने की कई आढतें भी हैं. बहरहाल नारायण दत्त तिवारी और अभिषेक मनु सिंघवी जैसी प्रतिभाओं की "ख़ास" सेवा कर हाई कोर्ट का जज बनेवालों की फेहरिश्त शोध का विषय है. उच्च न्यायालय में न्याय के नाम पर जो हो रहा है जगजाहिर है. किस प्रक्रिया से स्थानीय वकील उसी उच्च न्यायालय में जज नियुक्त किये जा रहे हैं जहा वह दसियों साल वकालत कर रहे थे और वकीलों की गुटबाजी का हिस्सा थे. फिर उच्च न्यायालय के अधिकाँश जजों के बेटे -बेटी, भाई-भतीजे उसी उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं और चालू होता है तेरा लड़का मेरी अदालत में और मेरा लड़का तेरी अदालत में का गारंटी फार्मूला. दूसरी ओर न्याय के इन गलियारों में कोई न्याय पाने नहीं आता यहाँ लोग मुकदमा जीतने आते हैं.       
गुजरे साल "ओ.आर.जी. मार्ग" ने एक सर्वेक्षण किया था. देश के नागरिकों ने न्यायपालिका को भी भ्रष्ट माना और अंक तालिका में भ्रष्टाचार के लिए 5.4 अंक दिए.बेहमई की विधवाएं न्याय की गुहार आज तक कर ही रहीं है और फूलन देवी इस बीच दो बार सांसद हो कर ससम्मान संसदीय भाषा में स्वर्गवासी भी हो गयी. दस्यु सरगना मलखान सिंह सौ से अधिक मुकदमों में "बाइज्जत बारी" हो गया. मुकदमा चलाते-चलाते लाखू भाई पाठक मर गए और नरसिम्हा राव दोष मुक्त हो गए. भोपाल गैस काण्ड का क्या हश्र हुआ ? मुंबई के एक जज जे.डब्लू. सिंह के छोटा शकील से रिश्ते, उन्हें 40 लाख का लाभ दे देते हैं, बदले में जज साहब उस गिरोह के कुछ सदस्यों को जमानत दे देते हैं. 
  अदालतों की शब्दावली में "पैरोकार" बड़ा रहस्यमय शब्द है. जज साहब के सामने उनका पेशकार जब हाथ नीचे बढ़ा कर मुन्सीयों /वकीलों /वादकारियों से हाथ में जो लेता है उसे "पैरोकारी" और "कार्यवाही" कहा जाता है. यह "संज्ञेय अपराध" जज साहब की निगाहों के सामने जब हो रहा होता है तब वह रंगमंच के किसी मजे पात्र के जैसे जज साहब किसी फाइल को पढने का कार्यक्रम करने लगते हैं. दरअसल पैरोकारी से ही पेशकार शाम को मेंम साहब के पास तरकारी पहुंचाता है. 26 जनवरी 1997 को हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) में वहां के विधायक अशोक चंदेल ने सरेबाजार दो अबोध बच्चों सहित पांच लोगों को सरे बाज़ार गोलियों से भून दिया. हामीरपुर का अधिकार क्षेत्र इलाहाबाद उच्चन्यायालय को है जहाँ अशोक चंदेल की गिरफ्तारी रोकने की याचिका जब खारिज कर दी गयी तो उसने लखनऊ में "पैरोकारी" की और इसी पैरोकारी के प्रताप से उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के पीठासीन एक जज ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. इन जज साहब ने 5 बार अशोक चंदेल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई. जब पाप का घड़ा भर गया तो मुख्य न्यायाधीश को अपने इस साथी जज के आचरण पर संदेह हुआ और अशोक चंदेल की गिरफ्तारी के आदेश हुए. 23 अक्टूबर 98 को अशोक चंदेल ने हमीरपुर के अतिरिक्त जिला जज आर.बी.लाल की अदालत में समर्पण किया. "पैरोकारी" का प्रताप यहाँ भी काम आया. जज आर.बी लाल ने बिना दूसरे पक्ष को सुने, बिना अभियुक्तों को जेल भेजे तत्काल जमानत देदी. आर.बी.लाल नामक इस जज को इसी हरकत के कारण 30 अक्टूबर 1998 को उच्चन्यायालय ने निलंबित कर दिया.
      निर्मल यादव पंजाब एंड हरियाण उच्च न्यायलय की जज थीं उन पर आरोप यह था कि रिश्वत के लिए 15 लाख रूपए की पोटली उनके यहाँ भेजी गयी लेकिन घूस लेकर गया कर्मचारी भूलवश मिलते- जुलते नाम वाली एक अन्य महिला जज निर्मल जीत कौर के यहाँ 13 अगस्त' 08 को घूस दे आया. याह घूस हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने भिजवाई थी. न्यायमूर्ति निर्मल जीत कौर ने रिपोर्ट दर्ज करवा दी जिसकी विवेचना CBI ने की और अभियुक्त जज निर्मल यादव व अन्य के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल कर दिया . इस बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश ने जज निर्मल यादव की विभागीय जांच भी करवाई. यह जांच इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच. एल. गोखले की अध्यक्षता में हुई. इस जांच समिति ने भी उनको भ्रष्टाचार का दोषी पाया और पड़ से हटाने की सिफारिश की. लेकिन फिर रहस्यमय तरीके से भारत के अटॉर्नी जनरल मिलन बनर्जी ने विधि मंत्रालय को यह मुकदमा वापस लेने की सलाह दी और आज कल यही निर्मल यादव उत्तराखंड उच्च न्यायलय की पीठासीन जज हैं....अब समझ लीजिए न्याय कैसा होता होगा ? "
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Friday, November 2, 2012

" तेरे पीछे कौन - उसके पीछे कौन और मेरे आगे - पीछे कौन " ...?????

   " आगे - पीछे की ताकत जानने - पहचानने " वाले सभी मित्रों को मेरा हार्दिक नमस्कार !!
                       कृपया स्वीकार करें !!अपनेआगे तो सब भोली - भाली जनता को लगाना चाहते हैं , और कैसे आगे किसके लगाना है , ये भी भली - भांति जानते हैं !!     लेकिन जो हमें अपने आगे लगा रहा है, वो किसके आगे लगा है ?? उसके पीछे कौन है, ये पता नहीं चलता आजकल !! 
                          पहले के जमाने में चोर को पुलिस वाला कहता था कि "आगे - लगो " , अब " चोर लोग " ( जिनमे नेता टाइप के कुछ चोर हैं ) पुलिस और जनता को आगे - लगाये घूम रहे हैं !!
                            आज देश में बदमाशों का बहुमत हो गया है !! इसलिए वही हो रहा है जो बे-ईमान लोग चाहते हैं !! " सिद्धांतों " की अगर कोई बात करता है तो उसके पीछे कौन..?? उसे ढूँढने हेतु जनता और देश की एजेंसियों को लगाया जाता है !! लेकिन देश को लूटने वालों के पीछे कौन है, उसकी कोई चिंता किसी प्रशासक को नहीं क्यों....?????
                            न्यायपालिका हो रहे घटनाक्रमों पर संज्ञान क्यों नहीं ले पा रही...???? क्यों राष्ट्रपति जी एक " माटी का माधो " बने बैठे हैं...???? क्यों हमारी सेना खामोश है...???
                               क्या जनता को क़ानून, अपने हाथ में लेकर, उसे दोबारा से लिखना होगा ...?? क्या जनता चोर नेताओं,बेईमानअफसरों,और भ्रष्ट पत्रकारों,करमचारियों और समाजसेवियों को सरेआम फांसी पर लटकाना या गोली मारना चालू करेगी, तब व्यवस्था बदलेगी या बदली जायेगी..??
                                     क्या इस देश में व्याप्त इस समस्या का हल केवल - मात्र " क्रान्ति " ही रह गया है..??? तो कौन लाएगा ....क्रान्ति ..?? हमें बाबा रामदेव , अन्ना हजारे , केजरीवाल और सुब्रमण्यम स्वामी के पीछे क्यों नहीं चलना चाहिए ??
                      आजकल सीता राम येचुरी  लालू यादव, मायावती नीतीश मुलायम और तीसरा मोर्चा इस भ्रष्टाचार पर खामोश क्यों है.......???????
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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...