Monday, April 11, 2016

"ग़ज़ल"कहीं खो गयी !प्यार कहीं बिक गया !- पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. + 919414657511.

कल मैंने टीवी के एक कार्यक्रम में पीनाज़ मसानी जी के साथ-साथ कई ऐसी हस्तियों को देखा , जो आजकल के "बिकाऊ"कार्यक्रमों में नहीं दिखाई जातीं !आजकल ना तो वो पुराना प्यार रहा है ना ही पुराने गीतकार और गायक !या यूं कहें कि आजकल वो गीत-संगीत नहीं गवाया-बजाया जा रहा जिसमे "देवीय-गुन"होते हैं !यानि "शास्त्रीय-संगीत"के अनुसार किसी "राग"पर आधारित गहरे-चोट खाये लेखक द्वारा लिखी गयी रचनाओं का आजकल जैसे कोई अकाल सा पड़ गया हो !
                            पुराने संगीतकारों की रचनाएँ कहीं सुनने को मिल जाती हैं तो ऐसे लगता है जैसे तन-मन में कोई लहर सी दौड़ गयी हो ! "सा-रे-गा-मा पा" नामक कार्यक्रम आजकल जी टीवी पर दिखाया जा रहा है !जहां संगीत से जुडी कई ऐसी हस्तियां नज़र आ जाती हैं जिससे मन को एक शान्ति का सा आभास होता है !इसी तरह कल जी टीवी पर ही "मिर्ची"म्युज़िक-एवार्ड"घोषित किये गए !आदेश श्री वास्तव जी को भी याद किया गया , तो सब की आँखों में आंसू आ गए !हमारे परिवार के सदस्य भी भावुक हो गए !एक अजीब सा जुड़ाव हो जाता है जब भी संगीत का कोई कार्यक्रम दिखाई पड़ता है !!
                       ये महत्त्व-पूर्ण नहीं होता कि अवार्ड बांटने की "प्रक्रिया"कैसी है और किसे पुरुस्कृत किया जा रहा है , मतलब तो संगीत की स्वर-लहरी छिड़ने से है !आजकल के गीतों की गन्दी शब्दावली को यहां लिख कर मैं अपने लेख को गंदा नहीं करना चाहता हूँ , क्योंकि आप सब गंदे गाने सुन ही चुके होंगे !इनको सही ठहराने का ऐसे गंदे गीत बनाने वालों के पास एक ही तर्क होता है कि देश की जनता यही चाहती है तभी तो ऐसे गीत हिट होते हैं ,तभी तो सभी शादी-ब्याहों में यही गीत गाए और बजाये जाते हैं !!इसीलिए हम जैसे लोगों को भी चुप रहना पड़ता है जी !
                          समय का चक्र अवश्य घूमेगा ! फिर से रास भरे गीत और ग़ज़लें अच्छे संगीत हमें सुनने को अवश्य मिलेंगीं ऐसी मुझे सम्पूर्ण आशा है ! और आपको........?????????????????  अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत करवाएं , हमारे ब्लॉग पे अपने अनमोल कॉमेंट्स लिख कर !!अंत में एक गीत की दो लाइनों के साथ अपनी बात को समाप्त करना चाहूँगा  कि -- "हम हैं मताए कुचाओ  , बाज़ार की तरह , उठती है हर नज़र खरीदार की तरह........ !!!!!
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मेरा मोबाईल नंबर ये है :- 09414657511. 01509-222768. धन्यवाद !!आपका प्रिय मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,


Thursday, April 7, 2016

भारत माता की जय और जय-हिन्द बाद में बोलना नेताओ , पहले ज़रा जनता के दुःख हरने का प्रयास करो !- पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. - +919414657511

  कोई कहता है कि भारत में यदि रहना होगा , "वन्दे-मातरम्"कहना होगा ! कोई कहता है कि भारत देश सिर्फ हिन्दुओं का नहीं , उनका भी है जिन्होंने भारत को लूटा-खसोटा है !और कोई कहता है भारत के सभी पैसे वालों को मारकर भगा दो ! यहां सिर्फ "मजदूर""लाल-सलाम"करेंगे आदि-आदि !लेकिन इस देश की जनता 1952 से सिर्फ यही सोच कर अपनी "बागडोर"कभी किसी को सम्पति है कभी किसी को कि कोई तो उनकी सुरक्षा,रोटी-कपडा और मकान के बारे में सोचेगा या इंतज़ाम करने की कोशिश करेगा !
                           लेकिन अफ़सोस !! होता इसके बिलकुल उल्ट है !सभी "विचारधारा"वाले अपनाकर देख लिए इन 68 वर्षों में भारत की जनता ने ,लेकिन सबने अपनी व्यवस्था अच्छे से करली है लेकिन आम जनता आज भी विभिन्न शंकाओं से जूझ रही है !कुछ लोगों को सरकार और जनता को इतना बेवकूफ बनाना आ गया है कि पूछिए मत !ये "नटवर लाल"  सम्पत्ति का "दोहन" कर लेते हैं !और इनको देश का कोई संविधान और सिस्टम रोक नहीं पाता है !लेकिन इन दोनों की तारीफ़ में तरह-तरह के गीत बहुत गाए जाते हैं इन्हीं लुटेरों द्वारा !! हद्द है मित्रो !!
                     हम जैसे विचारवान भी अब तो एक जैसे लेख लिखकर परेशान हो गए हैं !सोचते हैं कि कोई हमको सारे ऐसे साधन उपलब्ध करादे जिससे हम "शहंशाह"की तरह रोज़ रातों को निकले और किसी ना किसी "पापी"की बलि भारत-माता को चढ़ाकर सोएं ! सुबह होते ही फिर लेखक बन जाएँ !बिलकुल हमारे धर्म जी और अमित जी की तरह !किसी "गब्बर सिंह"को मार दें और हमें भी हेमा जी और जाया जी जैसी कोई सुप्रसिद्ध हस्ती इनाम में मिल जाए !
                       क्या बताएं मित्रो !! कसम से हमारे दिमाग का तो दही हो गया है आज के हालात देख कर !जो भारत माता की जय नहीं बोलकर हीरो बना जा रहा है तो कोई यही बोलकर डंडे खा रहा है !नेता ससुर के नाती टीवी पर आकर हँसते और बहसते फिरते हैं !
 धिक्कार है !! 
                           जनता उठो !किसी भी राजनितिक दल को वोट मत दो ! केवल निर्दलीयों को वोट करो ! ताकि देश से गब्बर सिंह के गैंगों का खात्मा हो सके !ये सभी राजनितिक दल गैंग ही तो हैं !विचारधाराएं तो कब की खत्म हो चुकीं हैं !
 जय-हिन्द !! जय-भारत ! वन्दे - मातरम !!
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Monday, April 4, 2016

भारतीय सनातन धर्म में नववर्ष का शुभारंभ सोमवार को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा) से हो रहा है।

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा कहते हैं। यहीं से हिंदू नववर्ष का आरंभ माना जाता है। माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। उन्होंने इस प्रतिपदा तिथि को 'प्रवरा' अथवा 'सर्वोत्तम' तिथि कहा था। यही वजह है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन कहा जाता है।
इस दिन ब्रह्माजी सहित उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के समस्त तत्वों का पूजन भी किया जाता है। चैत्र के महीने में प्रकृति में नवीनता का संचार होता है। नए जीवन के संकेत चारों ओर से मिलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा को चंद्रमा की कला का प्रथम दिन माना जाता है और चूंकि वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है तो इसलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
इस वर्ष का राजा शुक्र: चूंकि इस वर्ष 8 अप्रैल से नव विक्रम संवत्सर 2073 का प्रारंभ हो रहा है और यह दिन शुक्रवार है तो इस वर्ष का राजा शुक्र ग्रह होगा। ज्योतिषीय गणना में जिस दिन को नव संवत्सर आरंभ होता है उस दिन का स्वामी ग्रह ही वर्ष का राजा होता है। इस संवत्सर का नाम होगा 'सौम्य।
इस वर्ष का मंत्री बुध है। जब वर्ष का राजा शुक्र होता है तो यह खाद्यान्ना के मामले में आत्मनिर्भरता का सूचक है। तब अनाज और मौसमी फल वगैरह पर्याप्त मात्रा में होंगे। गाय-भैंस और पशुओं की वृद्धि होगी। शासक और प्रजा दोनों सुखी रहेंगे। शुक्र वैभव, विलासिता व भौतिक सुख देने वाले देव हैं तो इस स्थितियां अच्छी रहेंगी। फैशल के क्षेत्र में नए ट्रेंड देखने को मिलेंगे। आध्यात्मिक प्रवृत्तियों का विकास होगा। हर क्षेत्र में स्त्रियों का दखल और दक्षता बढ़ेगी।
8 अप्रैल, शुक्रवार से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत्सर 2073 प्रारंभ हो रहा है। इस संवत्सर का नाम सौम्य है। इस संवत्सर के राजा शुक्र व मंत्री बुध हैं। ज्योतिषियों की मानें तो इस हिंदू नव वर्ष में शनिदेव का विशेष प्रभाव सभी राशियों पर अलग-अलग देखने को मिलेगा।
वर्तमान में शनि वृश्चिक राशि में वक्रीय स्थिति में है, जो 13 अगस्त को पुन: मार्गी हो जाएगा। इस समय तुला, वृश्चिक व धनु राशि शनि की साढेसाती की पीड़ित है, वहीं सिंह व मेष पर शनि की ढय्या का प्रभाव है।
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016 से हिन्दी नववर्ष शुरू हो रहा है। इसी दिन से चैत्र माह की नवरात्रि भी प्रारंभ होगी। शास्त्रों के अनुसार हिन्दी नववर्ष का विशेष महत्व बताया गया है। पूजा-पाठ के लिए ये सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में से एक है। इस मुहूर्त में किए गए उपायों से अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है, घर की गरीबी दूर हो सकती है और मान-सम्मान मिल सकता है।

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Thursday, March 31, 2016

भारत की विदेश नीति कमज़ोर थी अब मजबूत होगी ! - पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)- मो.न. +919414657511

जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह जी के कार्यकाल तक हमारी विदेश नीति उस कमज़ोर बच्चे की तरह ही थी जो पहले तो क्लास में पहले शरारती बच्चों से मार खाता रहता है , बाद में मास्टर जी से भी मार खाता है !कई वर्षों तलक उसे ये समझ नहीं आता है की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है ?मैं घटनाओं के विस्तार में जाकर आपको आंकड़े नहीं देना चाहता हूँ क्योंकि उससे लेख लम्बा और उबाऊ हो जाएगा ! आप सब जानते भी हो कि कैसे नेहरू जी ने 1947 और 1962 में पाकिस्तान और चीन से मात खायी मुद्दों को पूरी तरह से सुलझा ही नहीं पाये ! श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने तो जीता हुआ क्षेत्र ही वापिस कर दिया था !
                          जो बीच में कुछ समय दुसरे प्रधानमंत्री रह पाये उनको तो उसी विदेश नीति अनुसार ही चलना पड़ा जैसे पूर्व के प्रधानमंत्री चले थे ! हालांकि अटल जी ने लाहोर बस यात्रा अवश्य करने की कोशिश करी लेकिन उनको भी कारगिल के रूप में मुंह की खानी पड़ी ! गैर कांग्रेस पार्टियों के प्रधानमंत्री एवं मंत्री कांग्रेस से बहुत डरते थे !अफसर भी उन्ही के कहे मुताबिक निर्णय लेते थे क्योंकि उनको पता था की देर-सवेर कांग्रेस ही सत्ता में आएगी !
                         लेकिन आज स्थिति बदली हुई है ! पहली बार देश में किसी गैर कांग्रेस पार्टी को जनता ने बहुमत प्रदान किया है !इसीलिए विपक्ष डरा हुआ है कि अगर मोदी जी ने सभी क्षेत्रों में अपने प्रभाव और ज्ञान से सफलताएं हासिल कर लीं , तो उनका क्या होगा ?? इसीलिए आप-कांग्रेस-कॉमरेड और अन्य उनके सहयोगी दल इकठ्ठे होकर नित नए ऐसे प्रयत्न करते रहते हैं जिससे मोदी सरकार की बदनामी हो !इस "पवित्र"कार्य में मीडिया बड़ी अहम भूमिका निभा रहा है !आजकल ऐसे लग रहा है कि जैसे देश में बॉलीवुड के साथ-साथ राजनितिक दल भी अपनी फिल्में "रीलीज़"कर रहा है जो 8-10 दिनों तक चलती है और बाद में कोई दूसरी "फिल्म" आ जाती है !
                    देश की जनता को बड़े ही सब्र के साथ सोच-समझ कर ही अपने विचार किसी घटना के प्रति बनाने पड़ेंगे !"कोई"हमारे दिमाग को घूमाने की कोशिश कर रहा है !या युूं कहूं कि कोई हमें "सम्मोहित करके हमसे ही हमारे गलत निर्णय करवाना चाहता है !इसलिए खबरदार - होशियार !!बाकी आप सब समझदार हो !! मेरा तो मोदी जी से यही कहना आप अपनी समझ से काम करते जाइये जनता आपके साथ ही रहेगी !
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Saturday, March 26, 2016

"5th पिल्लर करप्शन किल्लर" पेश करता है -:"सूरतगढ़ के सितारे "!! द्वारा पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. - +919414657511

मित्रो ! सादर नमस्कार !आपको सूचित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि "5th पिल्लर करप्शन किल्लर" पेश करता है -:"सूरतगढ़ के सितारे "!! नामक एक किताब , जिसमे आपको मिलेंगी रोज़ाना काम में आने वाली महत्वपूर्ण सूचनाएँ, आवश्यक मोबाइल नंबर और हर क्षेत्र के सुप्रसिद्ध सितारों की सम्पूर्ण जानकारियों का एक अद्भुत संग्रह ! इसके साथ-साथ इसमें  "5th पिल्लर करप्शन किल्लर" ब्लॉग में सराहे गए लेख भी प्रकाशित किये जायेंगे , जो पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. - +919414657511. जी द्वारा लिखे गए थे !
  इस बेहतरीन किताब का आप भी एक अहम हिस्सा बन सकते हैं अपने व्यपार से सम्बन्धित विज्ञापन देकर और अपना नाम-पता व मोबाइल नंबर छपवाकर !इस किताब की 10,000 प्रतियां प्रकाशित की जाएंगी !जिसे सूरतगढ़ विधान सभा के सभी निवासी अवश्य खरीदेंगे !इस पुस्तक का विमोचन एक सांस्कृतिक-कार्यक्रम में किया जाएगा !इसमें चुने गए हर क्षेत्र के "सितारे"को एक स्मृतिचिन्ह भी  जायेगा !इस कार्यक्रम में सभी विज्ञापनदाता ,"सितारे" और लेखक सहित नगर की मुख्य-हस्तियां शिरकत करेंगी ! सभी आगुंतकों हेतु प्रीति भोज भी रख्खा जाएगा !
                        कृपया सभी नागरिक इस कार्यक्रम में अवश्य भाग लेवें ! सधन्यवाद !
                                  आपका आभारी ,
                                    पीतांबर दत्त शर्मा ,
ब्लॉग का लिंक - www.pitamberduttsharma.blogspot.com
e-mail - pitamberdutt.sharma@gmail.com
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R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !


Friday, March 25, 2016

आजादी के संघर्ष के प्रतीकों की परीक्षा

क्या मौजूदा राजनीतिक बिसात पर पहली बार आजादी के संघर्ष के प्रतीक ही दांव पर हैं। क्योंकि एक तरफ भारत माता की जय तो दूसरी तरफ भगत सिंह। एक तरफ बीजेपी का राष्ट्रवाद तो दूसरी तरफ वाम आजादी का नारा । एक तरफ तिरंगे में लिपटा राष्ट्रवाद तो दूसरी तरफ लाल सलाम तले मौजूदा सामाजिक विसगंतियों पर सीधी चोट। तो क्या गुलाम भारत के संघर्ष के प्रतीकों की आजाद भारत में नये तरीके से परीक्षा ली जा रही है। क्योंकि भारत माता कोई आज का शब्द तो है नहीं। याद कीजिये 1882 में बंकिमचन्द्र चटर्जी ने आजादी के संघर्ष को लेकर आनंदमठ लिखी तो आजादी के बाद 1952 में हेमन गुप्ता ने आनंदमठ पर फिल्म बनायी तो उनके जहन में भारत माता की वही तस्वीर उभरी जो रविन्द्रनाथ टैगौर के भतीजे अवनिन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाल के पुनर्जागरण के दौर में भारत माता पहली तस्वीर बनायी थी। भारत माता के चार हाथ दिखाये गये थे। जो भारत की समूची सांस्कृतिक विरासत को सामने रख देता। क्योंकि उन चार हाथो में शिक्षा -दीक्षा, अन्न-वस्त्र दिखाये गये। और आनंदमठ भी इन्ही चारो परिस्थितियों को उभारती है। इतना ही नहीं देश में पहली बार किरण चन्द्र चौधरी ने 1873 भारत माता नाम से नाटक किया तो उसमें भी भारत की आजादी के संघर्ष को इस रुप में दिखाया जहा धर्म और संस्कृतियों का मेल हो। गुलामी से मुक्ती और अंखड भारत की पहचान एकजुटता के साथ बने।

इसके सामानांतर आजादी के संघर्ष में भगत सिंह को याद कीजिये तो इन्कलाब के नारे के साथ भगत सिंह ने आजादी के आंदोलन को एक नयी धार दी। कच्ची उम्र में ही भगत सिंह ने अंग्रेजी सत्ता को बंदूक से लेकर विचार और आर्थिक मुद्दों से लेकर साप्रदायिकता तक पर ना सिर्फ राजनीतिक चुनौती दी। बल्कि मार्क्सवादी विचारधारा के तहत विकल्प की सोच भी पैदा की। सिनेमायी पर्दे पर आजादी के तुरंत बाद 1948 में दिलीप कुमार ने तो 1965 में मनोज कुमार ने भगत सिंह की भूमिका को फिल्म शहीद में बाखूबी जीया। यानी भारत माता की तस्वीर हो या इन्कलाब के जरीये भगत सिंह का संघर्ष दोनों ही जिस भी माध्यम के जरीये आजादी के बाद उभरे उसने देश के भीतर लकीर नहीं खिंची बल्कि खिंचती लकीरों को मिटाने की ही कोशिश की। क्योंकि दोनों तस्वीर गुलाम भारत के दौर में आजादी के संघर्ष का सच रही। लेकिन यह दोनों तस्वीरे कैसे आजाद भारत में सत्ता के राष्ट्रवाद और सत्ता से आजादी के नारे तले आकर खडी हो जायेगी यह किसने सोचा होगा। क्योंकि राष्ट्रवाद का प्रतीक भारत माता की जय तो संघर्ष का प्रतीक भगत सिंह। तो क्या आजादी के संघर्ष के प्रतीकों के आसरे मौजूदा राजनीति देश के भीतर आजादी से पहले के भारत के हालात देख रही है। या फिर मौजूदा वक्त में भारत माता और भगत सिंह को दो राजनीतिक विचारधाराओं में बांट कर राजनीति का नया ककहरा गढ़ा जा रहा है। जिससे एक तरफ भारत माता की जय, राष्ट्रवाद के अलघ को जगाये और मौजूदा राजनीति की धारा बने। तो दूसरी तरफ भगत सिंह का इन्कलाब आजादी के संघर्ष की तर्ज पर मौजदा राजनीतिक सत्ता को आजादी के नारे से ही चुनौती देता नजर आये। जाहिर है यह दोनों हालात देश के मौजूदा हालात में कहा और कैसे फिट बैठेगें यह कोई नहीं जानता। ठीक उसी तरह जिस तरह 1967 में नक्सलबाडी से जो लाल सलाम का नारा निकला उसे 2011 में पश्चिम बंगाल की जनता ने ही खारिज कर दिया। और 1990 में अयोध्या आंदोलन के वक्त जय श्रीराम के नारे ही जिस तरह हिन्दुत्व का प्रतीक बन गया । लेकिन आजतक ना अयोध्या में राम मंदिर बना और ना ही जय श्रीराम का नारा बचा। तो फिर भारत माता के आसरे जिस राजनीतिक राष्ट्रवाद को मौजूदा वक्त में खोजा या नकारा जा रहा है, उसका सियासी हश्र होगा क्या यह कोई नहीं जानता। लेकिन भारत में भारत माता के नाम पर दो मंदिर ऐसे जरुर है जो बताते है कि आजादी से पहले और आजादी के बाद भी भारत माता को जिस रुप में देखा-माना गया उस रुप में मौजूदा राजनीति भारत माता को मान्यता नहीं दे रही है। क्योंकि वाराणसी और ॠषिकेश में मौजूद भारत माता के मंदिर के आसरे राष्ट्रवाद के उस सच को भी
जाना समझा जा सकता है जब आजादी को लेकर संघर्ष भी था और भारत माता के लिये जान न्यौछवर करने का जुनून भी था। और दोनों ही मंदिरों की पहचान उस भारत से जुड़ी है संयोग से जिसे मौजूदा सियासी राजनीति ने हाशिये पर ठकेल दिया है।

वाराणसी में भारत माता का मंदिर बनाने की जरुरत तब पडी जब असहयोग आंदोलन की हिंसा ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक को हिलाकर रख दिया। उस वक्त देश की एकता और अखण्डता को बनाये रखने के लिए स्वतंत्रता सेनानी शिव प्रसाद गुप्त और आर्किटेक्ट दुर्गाप्रसाद खत्री ने गांधी जी से बात की कि एक ऐसा मंदिर बने जिसमें सभी धर्म और जाति के लोगों की आस्था हो। और 1936 में यह मंदिर बना। जिसमे किसी देवी देवता की नहीं बल्कि अखंड भारत का नक्शा ही भारत माता की पहचान बना। जिसका उद्घाटन 1936 में महात्मा गांधी ने किया । तो ॠषिकेश में भारत माता का मंदिर स्वामी विवेकानंद की भारत के बारे में सोच को लेकर बनाया गया । इसलिये ॠषिकेश के आठ मंजिला मंदिर भारत माता के उन प्रतिको को जीवंत कर देता है । जिसपर आज कोई बहस नहीं होती । पहली मंजिल पर भारत के मानचित्र के साथ दूध और फसल को हाथ में लिये भारत माता की तस्वीर है। तो दूसरी मंजिल से आठवी मंजिल तक भारत की आजादी के संघर्ष। भारत की सांस्कृतिक पहचान । भारत की सभ्यता और हर धर्म के समावेश के साथ प्रकृति को समेटे हिन्दुस्तान की वह तस्वीर है, जो राष्ट्रवाद के मौजूदा पारिभाषा से गायब हो चुकी है। ॠषिकेश के भारत माता मंदिर का उद्घाटन 15 मई 1983 को इंदिरा गांधी ने किया और संयोग देखिये वाराणसी हो या ॠषिकेश दोनों ही जगहों की पहचान मंदिरों के आसरे जुड़ी लेकिन भारत माता मंदिर को बेहद कम लोग जानते हैं। जो जानते भी होंगे वह उस मंदिर तक पहुंच नहीं पाते। लेकिन अब जब देश में भारत माता और भगत सिंह की पहचान किसके साथ किसरुप में जुड़े इसको लेकर ही जब सियासी संघर्ष हो रहा है तो धीरे धीरे यह सवाल देश में ही बड़ा होते जा रहा है कि क्या वाकई राष्ट्र की सीमाओं को अब बांधने का वक्त आ गया है। या फिर राषट्रवाद के नारे तले सारी कश्मकश राष्ट्र के भीतर नागरिकों में ही मची है। क्योंकि मौजूदा राष्ट्रवाद किसी दूसरे देश के खिलाफ नहीं है। बल्कि एक भारतीय का दूसरे भारतीय के खिलाफ का राष्ट्रवाद है । यानी नफरत और कडवाहट है , जो राजनीति से निकली है । इसीलिये इसके दायरे में मुसलमान भी हैं और दलित भी । और कौमों से लेकर जातीय आधार पर राजनीति, सत्ता के लिये खुद में सभी को समेट लेने पर आमादा हैं। और इससे टकराने के लिये जेएनयू में ही पहले राष्ट्रवाद पर शिक्षकों ने खुले आसमान तले छात्रों को पढ़ाना शुरु किया तो अब आजादी को लेकर शिक्षको ने विचारों की नयी सीरिज शुरु की है। और इससे टकराने के लिये सत्ताधारी बीजेपी ने राष्ट्रवाद को ही अपना राजनीति मंत्र बना लिया है। तो फिर इसका अंत होगा कहां ? क्योंकि यह ना तो सम्यताओं के संघर्ष का मामला है । ना ही धर्मो के टकराव का मसला है। और ना ही उस नफरत का जिसकी छांव में पहला विश्वयुद्द हो गया क्योंकि तब सर्बिया के लोगों से ऑस्ट्रियाई मूल के हंगरीवासी नफ़रत करते थे। हंगरीवासियों से रूसी, रूसियों से जर्मन और जर्मनों से फ्रांसीसी नफ़रत करते थे। अंग्रेज़ हर किसी से नफ़रत करते थे। और युद्द की आग भडकी तो हर कोई एक दूसरे पर टूटपड़ा। तुर्क भी और अरब भी । गुलाम भारत और अमरीका भी । लेकिन मौजूदा वक्त में अमेरिका हो या यूरोपिय यूनियन , सभी अपनी सीमाएं और बाज़ार एक-दूसरे के लिए खोल रहे हैं। और भारत का राष्ट्रवाद खुद के ही खिलाफ आ खड़ा हुआ है । क्योंकि राजनीतिक सत्ता सिर्फ संस्धानों से ही नहीं बल्कि संविधान से भी बड़ी होती जा रही है। और समूचा संघर्ष राजनीतिक सत्ता पाने या बचाने का है।

Wednesday, March 23, 2016

हमारे "काका"जी ऐसे होली खेला करते थे तो हम ऐसी होली क्यों ना खेलें ?? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न.- +9414657511

काका हाथरसी की हास्य कविताएं ना सिर्फ हमें हंसाती है बल्कि उनका असर समाज पर भी पड़ता है. काका हाथरसी ने हिंदी हास्य कविता के रस को समाज कल्याण के लिए इस्तेमाल किया. उनके हंसी वाले भाव में कभी कभी इतना गूढ़ रहस्य छुपा होता था कि वह समाज में फैली कुरीतियों के लिए एक तरह का वार होता है.जिंदगी में जब तक हास्य का तड़का ना हो तब तक वह बहुत ही फीका रहता है. हंसी जिंदगी में एक अलग ही रंग फैला देती है. एक छोटी से मुस्कराहट भी आपके चेहरे की तकान और उदासी मिटाने के लिए काफी होती है. हास्य के इसी महत्व को समझते हुए हास्य कवियों ने ऐसी ऐसी रचनाएं लिखी जिसे पढ़ मन बरबस ही हंसने को आतुर हो जाता है.
           
             अंग-अंग फड़कन लगे, देखा ‘रंग-तरंग’
स्वस्थ-मस्त दर्शक हुए, तन-मन उठी उमंग
तन-मन उठी उमंग, अधूरी रही पिपासा
बंद सीरियल किया, नहीं थी ऐसी आशा
हास्य-व्यंग्य के रसिक समर्थक कहाँ खो गए
मुँह पर लागी सील, बंद कहकहे हो गए

जिन मनहूसों को नहीं आती हँसी पसंद
हुए उन्हीं की कृपा से, हास्य-सीरियल बंद
हास्य-सीरियल बंद, लोकप्रिय थे यह ऐसे
श्री रामायण और महाभारत थे जैसे
भूल जाउ, लड्डू पेड़ा चमचम रसगुल्ले
अब टी.वी.पर आएँ काका के हँसगुल्ले
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कवि-सम्मेलन के लए बन्यौ अचानक प्लान । काकी के बिछुआ बजे, खड़े है गए कान ॥
खड़े है गए कान, 'रहस्य छुपाय रहे हो' । सब जानूँ मैं, आज बनारस जाय रहे हो ॥
'काका' बनिके व्यर्थ थुकायो जग में तुमने । कबहु बनारस की साड़ी नहिं बांधी हमने ॥

हे भगवन, सौगन्ध मैं आज दिवाऊं तोहि । कवि-पत्नी मत बनइयो, काहु जनम में मोहि ॥
काहु जनम में मोहि, रखें मतलब की यारी । छोटी-छोटी मांग न पूरी भई हमारी ॥
श्वास खींच के, आँख मीच आँसू ढरकाए । असली गालन पै नकली मोती लुढ़काए ॥

शांत ह्वे गयो क्रोध तब, मारी हमने चोट । ‘साड़िन में खरचूं सबहि, सम्मेलन के नोट’ ॥
सम्मेलन के नोट? हाय ऐसों मत करियों । ख़बरदार द्वै साड़ी सों ज़्यादा मत लइयों ॥
हैं बनारसी ठग प्रसिद्ध तुम सूधे साधे । जितनें माँगें दाम लगइयों बासों आधे ॥

गाँठ बांध उनके वचन, पहुँचे बीच बज़ार । देख्यो एक दुकान पै, साड़िन कौ अंबार ॥
साड़िन कौ अंबार, डिज़ाइन बीस दिखाए । छाँटी साड़ी एक, दाम अस्सी बतलाए ॥
घरवारी की चेतावनी ध्यान में आई | कर आधी कीमत, हमने चालीस लगाई ||

दुकनदार कह्बे लग्यो, “लेनी हो तो लेओ” । “मोल-तोल कूं छोड़ के साठ रुपैय्या देओ” ॥
साठ रुपैय्या देओ? जंची नहिं हमकूं भैय्या । स्वीकारो तो देदें तुमकूं तीस रुपैय्या ?
घटते-घटते जब पचास पै लाला आए । हमने फिर आधे करके पच्चीस लगाए ॥

लाला को जरि-बजरि के ज्ञान है गयो लुप्त । मारी साड़ी फेंक के, लैजा मामा मुफ्त |
लैजा मामा मुफ्त, कहे काका सों मामा | लाला तू दुकनदार है कै पैजामा ||
अपने सिद्धांतन पै काका अडिग रहेंगे । मुफ्त देओ तो एक नहीं द्वै साड़ी लेंगे ॥

भागे जान बचाय के, दाब जेब के नोट । आगे एक दुकान पै देख्यो साइनबोट ॥
देख्यो साइनबोट, नज़र वा पै दौड़ाई । ‘सूती साड़ी द्वै रुपया, रेशमी अढ़ाई’ ॥
कहं काका कवि, यह दुकान है सस्ती कितनी । बेचेंगे हाथरस, लै चलें दैदे जितनी ॥

भीतर घुसे दुकान में, बाबू आर्डर लेओ । सौ सूती सौ रेशमी साड़ी हमकूं देओ ॥
साड़ी हमकूं देओ, क्षणिक सन्नाटो छायो । डारी हमपे नज़र और लाला मुस्कायो ॥
भांग छानिके आयो है का दाढ़ी वारे ? लिखे बोर्ड पै ‘ड्राइ-क्लीन’ के रेट हमारे ॥
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खिल-खिल खिल-खिल हो रही, श्री यमुना के कूल
अलि अवगुंठन खिल गए, कली बन गईं फूल
कली बन गईं फूल, हास्य की अद्भुत माया
रंजोग़म हो ध्वस्त, मस्त हो जाती काया
संगृहीत कवि मीत, मंच पर जब-जब गाएँ
हाथ मिलाने स्वयं दूर-दर्शन जी आएँ
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कौन क्या-क्या खाता है ?
खान-पान की कृपा से, तोंद हो गई गोल,
रोगी खाते औषधी, लड्डू खाएँ किलोल।
लड्डू खाएँ किलोल, जपें खाने की माला,
ऊँची रिश्वत खाते, ऊँचे अफसर आला।
दादा टाइप छात्र, मास्टरों का सर खाते,
लेखक की रायल्टी, चतुर पब्लिशर खाते।

दर्प खाय इंसान को, खाय सर्प को मोर,
हवा जेल की खा रहे, कातिल-डाकू-चोर।
कातिल-डाकू-चोर, ब्लैक खाएँ भ्रष्टाजी,
बैंक-बौहरे-वणिक, ब्याज खाने में राजी।
दीन-दुखी-दुर्बल, बेचारे गम खाते हैं,
न्यायालय में बेईमान कसम खाते हैं।

सास खा रही बहू को, घास खा रही गाय,
चली बिलाई हज्ज को, नौ सौ चूहे खाय।
नौ सौ चूहे खाय, मार अपराधी खाएँ,
पिटते-पिटते कोतवाल की हा-हा खाएँ।
उत्पाती बच्चे, चच्चे के थप्पड़ खाते,
छेड़छाड़ में नकली मजनूँ, चप्पल खाते।

सूरदास जी मार्ग में, ठोकर-टक्कर खायं,
राजीव जी के सामने मंत्री चक्कर खायं।
मंत्री चक्कर खायं, टिकिट तिकड़म से लाएँ,
एलेक्शन में हार जायं तो मुँह की खाएँ।
जीजाजी खाते देखे साली की गाली,
पति के कान खा रही झगड़ालू घरवाली।

मंदिर जाकर भक्तगण खाते प्रभू प्रसाद,
चुगली खाकर आ रहा चुगलखोर को स्वाद।
चुगलखोर को स्वाद, देंय साहब परमीशन,
कंट्रैक्टर से इंजीनियर जी खायं कमीशन।
अनुभवहीन व्यक्ति दर-दर की ठोकर खाते,
बच्चों की फटकारें, बूढ़े होकर खाते।

दद्दा खाएँ दहेज में, दो नंबर के नोट,
पाखंडी मेवा चरें, पंडित चाटें होट।
पंडित चाटें होट, वोट खाते हैं नेता,
खायं मुनाफा उच्च, निच्च राशन विक्रेता।
काकी मैके गई, रेल में खाकर धक्का,
कक्का स्वयं बनाकर खाते कच्चा-पक्का।
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सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा
हम भेड़-बकरी इसके यह गड़ेरिया हमारा

सत्ता की खुमारी में, आज़ादी सो रही है
हड़ताल क्यों है इसकी पड़ताल हो रही है
लेकर के कर्ज़ खाओ यह फर्ज़ है तुम्हारा
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा.

चोरों व घूसखोरों पर नोट बरसते हैं 
ईमान के मुसाफिर राशन को तरशते हैं
वोटर से वोट लेकर वे कर गए किनारा
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा.

जब अंतरात्मा का मिलता है हुक्म काका 
तब राष्ट्रीय पूँजी पर वे डालते हैं डाका
इनकम बहुत ही कम है होता नहीं गुज़ारा
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा.

हिन्दी के भक्त हैं हम, जनता को यह जताते 
लेकिन सुपुत्र अपना कांवेंट में पढ़ाते
बन जाएगा कलक्टर देगा हमें सहारा
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा.

फ़िल्मों पे फिदा लड़के, फैशन पे फिदा लड़की 
मज़बूर मम्मी-पापा, पॉकिट में भारी कड़की
बॉबी को देखा जबसे बाबू हुए अवारा
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा.

जेवर उड़ा के बेटा, मुम्बई को भागता है 
ज़ीरो है किंतु खुद को हीरो से नापता है
स्टूडियो में घुसने पर गोरखा ने मारा
सारे जहाँ से अच्छा है इंडिया हमारा.
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 वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।

काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ ।
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥

गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण ।
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥

आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा ।
हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥

आई स्वराज की बेला तब, ‘सेवा-व्रत’ हमने धार लिया ।
दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया ॥

जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया ।
आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥

गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो ।
है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥

गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया ।
जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥

गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं ।
है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥

जनताके संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता ।
पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥

आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ ।
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥

ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो ।
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥

दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है ।
इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥

रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ ।
यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥

ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए ।
भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥

अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो ।
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥
 " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG .

 प्रिय मित्रो , सादर नमस्कार !! आपका इतना प्रेम मुझे मिल रहा है , जिसका मैं शुक्रगुजार हूँ !! आप मेरे ब्लॉग, पेज़ , गूगल+ और फेसबुक पर विजिट करते हो , मेरे द्वारा पोस्ट की गयीं आकर्षक फोटो , मजाकिया लेकिन गंभीर विषयों पर कार्टून , सम-सामायिक विषयों पर लेखों आदि को देखते पढ़ते हो , जो मेरे और मेरे प्रिय मित्रों द्वारा लिखे-भेजे गये होते हैं !! उन पर आप अपने अनमोल कोमेंट्स भी देते हो !! मैं तो गदगद हो जाता हूँ !! आपका बहुत आभारी हूँ की आप मुझे इतना स्नेह प्रदान करते हैं !!नए मित्र सादर आमंत्रित हैं ! the link is - www.pitamberduttsharma.blogspot.com.  , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी !!ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !!
मेरा मोबाईल नंबर ये है :- 09414657511. 01509-222768. धन्यवाद !!आपका प्रिय मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,
R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !


"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...