Tuesday, March 5, 2013

                                    * * प्रेस - विज्ञप्ति * *
                                   इंटरनेट- सोशियल मीडिया ब्लॉग-प्रेस " 5th pillar corruption killer " की तरफ से सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में जो " योग्य एवं लोकप्रिय विधायक चुनाव हेतु सर्वे और मतदाता जगुरुकता अभियान चलाया जा रहा है,उसकी टीम के सदस्य आज सूरतगढ़ विधानसभा के ग्रामीण क्षेत्रों में गए ,गाँव मानकसर ,अमरपुरा,जानकीदास्वाला , सील्वानी,जैतसर                                    , हरिसिघवाला , लडाना और पिपेरण के निवासियों ने अभूतपूर्व स्वागत-सत्कार किया ! सबने " 5th pillar corruption killer टीम द्वारा कराये जा रहे इस सर्वे और मतदाता जागुरुक्ता अभियान को एक " पुन्य-कार्य " बताया ! कई लोगों ने तो ये भी कहा की ये काम तो सरकार को हर चुनाव से पहले करवाना चाहिए ! राजनितिक दलों को भी ऐसा सर्वे करवाकर ही प्रत्याशी निर्धारित करने चाहिएँ !! 
                         इससे पहले ये टीम  वशिष्ठ पोलेटेक्निक कोलेज , टेगोर शिक्षक प्रशिक्षक संस्थान पंहुची  । फिर  अंजना पब्लिक स्कूल गए    । वहाँ इस टीम के संयोजक पीताम्बर दत्त शर्मा ने इस अभियान की पूरी जानकारी ग्रामीणों को दी ! उन्होंने कहा कि          सरकार और राजनितिक दल  सर्वे कराते तो हैं किन्तु " गुप्त " तरीके से , वो जनता की पसंद का नहीं केवल अपनी पसंद का नेता तलाशते हैं !!
                               विद्यालयों में जाकर  विद्यार्थियों और शिक्षकों को भी इस अभियान के बारे में सम्पूरण जानकारी दी !! इस अभियान की आवश्यकता क्यों पड़ी ,तथा इसके क्या उद्देश्य हैं इस बारे में भी विस्तार से समझाया !!
                            इस से पहले ये अभियान हनुमान जी के खेजड़ी मंदिर, बाबा रामदेव जी के मेले में और महाराजा अग्रसेन I.T.I. कोलेज में भी चलाया गया !! सबने इसको एक महत्वपूर्ण आवश्यक कार्य बताया और टीम के सदस्यों की प्रशंसा भी की गयी विद्यालय और कोलेज प्रबंधकों द्वारा ! इस अभियान के पत्रक सूरतगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों और मानकसर व डेयरी फ़ार्म में वितरित किये गए !!
                                   इस अवसर पर श्री अरविन्द कौल, श्री राजिंदर पटावरी, श्री विजय स्वामी,श्री तुलसीराम शर्मा,श्री परसराम भाटिया,डा हरप्रीत सिंह,श्री पी   के मिश्रा और श्री परसराम भाटिया जी भी पीताम्बर दत्त शर्मा के साथ थे !! " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " की पूरी टीम , इस अभियान को पहले नगर के हर वार्ड , फिर हर गाँव और फिर सूरतगढ़ विधानसभा के हर कसबे में चलाया, फैलाया और समझाया जायेगा , ताकि इस बार सूरतगढ़ की जनता को जो विधायक मिले वो लोकप्रिय व योग्य हो !! यही इस टीम की इच्छा   है  !!
                                 सभी पत्रकार मित्रों से अनुरोध है कि वो अपना सहयोग इस पवित्र मिशन को अवश्य प्रदान करें !! इसे प्रकाशित तो करें ही , साथ में अपनी विशेष और ज्ञानवर्धक टिप्पन्नी भी जोड़ें !! सधन्यवाद सहित आपकी सेवा में सादर प्रकाशनार्थ...... श्री मान………………………… जी !!!!
           क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
प्रिय मित्रो, ! कृपया आप मेरा ये ब्लाग " 5th pillar corrouption killer " रोजाना पढ़ें , इसे अपने अपने मित्रों संग बाँटें , इसे ज्वाइन करें तथा इसपर अपने अनमोल कोमेन्ट भी लिख्खें !! ताकि हमें होसला मिलता रहे ! इसका लिंक है ये :-www.pitamberduttsharma.blogspot.com.

आपका अपना.....पीताम्बर दत्त शर्मा, हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार , आर.सी.पी.रोड , सूरतगढ़ । फोन नंबर - 01509-222768,मोबाईल: 9414657511
Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)

Saturday, March 2, 2013

" भाजपा में उग - आई ,खर-पतवार को कौन उखाड़ेगा "….???

                      हिंदुस्तान  के सभी असली किसानों को मेरा सादर प्रणाम !! मित्रो !! कांग्रेस के चिंतन के बाद अब भाजपा का " मंथन " नयी दिल्ली में कल से चल रहा है ! हर भारतवासी इस मंथन से अपने अनुकूल " अमृत " निकलता हुआ देखना चाहता है !! इनडोर स्टेडियम में बैठे कार्यकर्त्ता - कम - नेता सिर्फ देख और सुन रहे हैं ! लेकिन बोल नहीं पा रहे ……. क्यों ?? केवल " तालियाँ बजा रहे हैं !! अनुभवी पत्रकारों ने अपने एडिटोरियल में अपनी आशंकाएं भी आज प्रकट कर दी हैं !!
                  पार्टी के साधारण कार्यकर्त्ता से कुछ भी नहीं पूछा जाता क्यों…?? देश का आम आदमी चाहता है की भाजपा को शासन सौंपा जाए,लेकिन पार्टी गंदे नेताओं की खरपतवार से  भरी पड़ी है !! " अनुशासित,निष्ठावान,इमानदार और मेहनती कार्यकर्त्ता " तो नज़र ही नहीं आ रहे !! उनको तो दरकिनार कर दिया गया है !! 

                   किसी का कोई बंधुआ मजदूर तो कोई कार्यकर्त्ता है नहीं ……. इसलिए " खुद्दार " किस्म के कार्यकर्ताओं ने पार्टी के अन्दर रहते हुए ऐसे बेईमान-चालबाज़ नेताओं को अपना समर्थन ना देने का निर्णय कर लिया है !! नेताओं को इस मंथन में कड़े अनुशासन का सन्देश मिलेगा और पाई-पाई का हिसाब देने का वायदा मिलेगा तो कार्यकर्त्ता पार्टी हेतु काम करेगा !! प्रत्याशी भी साधारण कार्यकर्ताओं से चर्चा कर निर्धारित किये जाएँ तो बेहतर होगा !! साधारण निमंत्रण पर कार्यकर्त्ता पार्टी कार्यक्रम में आनेवाला नहीं , अबतो वो किसी गंदे नेताओं को अपने बूते पर वोट दिलाने वाला नहीं क्योंकि बड़े नेताओं ने ही पार्टी का " अनुशासन " भंग किया है " कार्यकर्ताओं ने नहीं…। 
                                    

क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
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Sunday, February 24, 2013

"टीका मस्तक की शोभा,या वैज्ञानिकता " ! !


तिलक-टीका: आज्ञा चक्र के भेद
योग ने उस चक्र को जगाने के बहुत-बहुत प्रयोग किये है। उसमें तिलक भी एक प्रयोग है। स्मतरण पूर्वक अगर चौबीस घण्टेु उस चक्र पर बार-बार ध्यालन को ले जाता है तो बड़े परिणाम आते है। अगर तिलक लगा हुआ है तो बार-बार ध्यासन जाएगा। तिलक के लगते ही वह स्था।न पृथक हो जाता है। वह बहुत सेंसिटिव स्थाघन है। अगर तिलक ठीक जगह लगा है तो आप हैरान होंगे, आपको उसकी याद करनी ही पड़ेगी, बहुत संवेदनशील जगह है। सम्भावत: शरीर में वि सर्वाधिक संवेदनशील जगह हे। उसकी संवेदनशीलता का स्पार्श करना, और वह भी खास चीजों से स्पेर्श करने की विधि है—जैसे चंदन का तिलक लगाना।

सैकड़ों और हजारों प्रयोगों के बाद तय किया था कि चन्दखन का क्योंग प्रयोग करना है। एक तरह की रैजोनेंस हे चंदन में। और उस स्थागन की संवेदनशीलता में। चंदन का तिलक उस बिन्दु  की संवेदनशीलता को और गहन करता है। और घना कर जाता है। हर कोई तिलक नहीं करेगा। कुछ चीजों के तिलक तो उसकी संवेदनशीलता को मार देंगे, बुरी तरह मार देंगे आज स्त्रि यां टीका लगा रही है। बहुत से बाजारू टीके है वे उनकी कोई वैज्ञानिकता नहीं है। उनका योग से कोई लेना देना नहीं है। वे बाजारू टीके नुकसान कर रहे है। वह नुकसान करेंगे।

सवाल यह है कि संवेदनशीलता को बढ़ाते है या घटाते है। अगर घटाते है संवेदनशीलता को तो नुकसान करेंगे, और बढ़ाते है तो फायदा करेंगे। और प्रत्ये क चीज के अलग-अलग परिणाम है, इस जगत में छोटे से फर्क पड़ता है। इसको ध्याफन में रखते हुए कुछ विशेष चीजें खोजी गयी थी। जिनका ही उपयोग किया जाए। यदि आज्ञा का चक्र संवेदनशील हो सके, सक्रिय हो सके तो आपके व्योक्तिजत्व  में एक गरिमा और इन्टीकग्रिटी आनी शुरू होगी। एक समग्रता पैदा होगी। आप एक जुट होने लगते है। कोई चीज आपके भीतर इकट्ठी हो जाती है। खण्डी-खण्डत नहीं अखण्डज हो जाती है।

इस संबंध में टीके के लिए भी पूछा है तो वह भी ख्याशल में ले लेन चाहिए। तिलक से थोड़ा हटकर टीके को प्रयोग शुरू हुआ। विशेषकर स्त्रि्यों के लिए शुरू हुआ। उसका कारण वही था, योग का अनुभव काम कर रहा था। असल में स्त्रि यों का आज्ञा चक्र बहुत कमजोर चक्र है—होगा ही। क्यों कि स्त्री  का सारा व्यक्तित्व निर्मित किया गया है समर्पण के लिए। उसके सारे व्य क्तिचत्व  की खूबी समर्पण की है। आज्ञा चक्र अगर उसका बहुत मजबूत हो तो समर्पण करना मुश्किकल हो जाएगा। स्त्री  के पास आज्ञा का चक्र बहुत कमजोर हे। असाधारण रूप से कमजोर है। इसलिए स्त्री  सदा ही किसी का सहारा माँगती रहेगी। चाहे वह किसी रूप में हो। अपने पर खड़े होने का पूरा साहस नहीं जुटा पायेगी। कोई सहारा किसी के कन्धेव पर हाथ, कोई आगे हो जाए कोई आज्ञा दे और वह मान ले इसमें उसे सुख मालूम पड़ेगा।

स्त्रीप के आज्ञा चक्र को सक्रिय बनाने के लिए अकेली कोशिश इस मुल्कऔ में हुई है, और कहीं भी नहीं हुई। और वह कोशिश इसलिए थी कि अगर स्त्रीो का आज्ञा चक्र सक्रिय नहीं होता तो परलोक में उसकी कोई गति नहीं होती। साधना में उसकी कोई गति नहीं होती। उसके आज्ञा चक्र को तो स्थि र रूप से मजबूत करने की जरूरत है। लेकिन अगर यह आज्ञा चक्र साधारण रूप से मजबूत किया जाए तो उसके स्त्रैरण होने में कमी पड़ेगी। और उसमें पुरुषत्व के गुण आने शुरू हो जायेंगे। इसलिए इस टीके को अनिवार्य रूप से उसके पति से जोड़ने की चेष्टाी की गई। उसके जोड़ने का करण है।

इस टीके को सीधा नही रखा दिया गया उसके माथे पर, नहीं तो उसके स्त्री त्वर कम होगा। वह जितनी स्वटनिर्भर होने लगेगी उतनी ही उसकी कमनीयता, उसका कौमार्य नष्ट् हो जाएगा। वह दूसरे का सहारा खोजती है इसमें एक तरह की कोमलता हे। पर जब वह अपने सहारे खड़ी होगी तो एक तरह की कठोरता अनिवार्य हो जाएगी। तब बड़ी बारीकी से ख्याहल किया गया कि उसको सीधा टीका लगा दिया जाए,नुकसान पहुँचेगा उसके व्यरक्ति त्वि में,उसमे मां होने में बाधा पड़ेगी, उसके समर्पण में बाधा पड़ेगी। इसलिए उसकी आज्ञा को उसके पति से ही जोड़ने का समग्र प्रयास किया गया। इस तरह दोहरे फायदे होंगे। उसके स्त्रैजण होने में अन्त र नहीं पड़ेगा। बल्किा अपने पति के प्रति ज्याेदा अनुगत हो पायेगी। और फिर भी उसकी आज्ञा का चक्र सक्रिय हो सकेगा।

इसे ऐसा समझिए, आज्ञा का चक्र जिससे भी संबंधित कर दिया जाए, उसके विपरीत कभी नहीं जाता। चाहे गुरु से संबंधित कर दिया जाए तो गुरु के विपरीत कभी नही जाता। चाहे पति के संबंधित कर दिया जाए तो पति से विपरीत कभी नहीं जाता। आज्ञा चक्र जिससे भी संबंधित कर दिया जाए उसके विपरीत व्यक्तित्व नहीं जाता। अगर उस स्त्री  के माथे पर ठीक जगह पर टीका है तो वह सिर्फ पति तो अनुगत हो सकेगी। शेष सारे जगत के प्रति वह सबल हो जाएगी। यह करीब-करीब स्थिैति वैसी है अगर आप सम्मोसहन के संबंध में कुछ समझते है तो इसे जल्दी  समझ जायेंगे।

एक तरफ वह समर्पित होती है अपने पति के लिए। और दूसरी और शेष जगत के लिए मुक्ते हो जाती है। अब उसके स्त्रीब तत्वि के लिए कोई बाधा नहीं पड़ेगी। इसीलिए जैसे ही पति मर जाए टीका हटा दिया जाता है। वह इसलिए हटा दिया गया है। कि अब उसका किसी के प्रति भी अनुगत होने का कोई सवाल नहीं रहा।

लोगों को इस बात का कतई ख्यागल नहीं है, उनको तो ख्या ल है कि टीका पोंछ दिया,क्योंअकि विधवा हो गयी। पोंछने को प्रयोजन है। अब उसके अनुगत होने को कोई सवाल नहीं रहा। सच तो यह है कि अब उसको पुरूष की भांति ही जीना पड़ेगा। अब उसमें जितनी स्वरतंत्रता आ जाए, उतनी उसके जीवन के लिए हितकर होगी। जरा सा भी छिद्र बल्नीरेबिलिटी का जरा सा भी छेद जहां से वह अनुगत हो सके वह हट जाए।

टीके का प्रयोग एक बहुत ही गहरा प्रयोग है। लेकिन ठीक जगह पर हो, ठीक वस्तुा का हो। ठीक नियोजित ढंग से लगाया गया हो तो ही कार गार है अन्यीथा बेमानी है। सजावट हो शृंगार हो उसका कोई मूल्‍य नहीं है। उसका कोई अर्थ नहीं है। तब वह सिर्फ औपचारिक घटना है। इसलिए पहली बार जब टीका लगया जाए तो उसका पूरा अनुष्ठाअन हे। और पहली दफा गुरु तिलक दे तब उसके पूरा अनुष्ठा न से ही लगाया जाए। तो ही परिणामकारी होगा। अन्यदथा परिणामकारी नहीं होगा।

आज सारी चींजे हमें व्यर्थ मालूम पड़ने लगी है। उनका कारण है। आज तो व्यणर्थ है। क्योंठकि उनके पीछे को कोई भी वैज्ञानिक रूप नहीं रहा है। सिर्फ उसकी खोल रह गयी है। जिसको हम घसीट रहे है। जिसको हम खींच रहे है, बेमन जिसके पीछे मन का कोई लगाव नहीं रह गया है। आत्मास को कोई भाव नहीं रह गया है, और उसके पीछे की पूरी वैज्ञानिकता का कोई सूत्र भी मौजूद नहीं है। वह आज्ञा चक्र है, इस संबंध में दो तीन बातें और समझ लेनी चाहिए क्योंवकि यह काम आ सकती है। इसका उपयोग किया जा सकता है।

आज्ञा चक्र की जो रेखा है उस रेखा से ही जुड़ा हुआ हमारे मस्तिोष्क  का भाग है। इससे ही हमारा मस्ति ष्का शुरू होता है। लेकिन अभी भी हमारे मस्ति्ष्को का आधा हिस्सास बेकार पडा हुआ है। साधारण:। हमारा जो प्रतिभाशाली से प्रतिभाशाली व्यिक्तिो होता है। जिसको हम जीनियस कहें, उसके भी केवल आधा ही मस्तिाष्का काम करता है। आध काम नहीं करता। वैज्ञानिक बहुत परेशान है, फिजियोलाजिस्ट बहुत परेशान है कि यह आधी खोपड़ी का जो हिस्साक है, यह किसी भी काम में नहीं आता। अगर आपके इस आधे हिस्सेे को काटकर निकाल दिया जाए तो आपको पता भी नहीं चलेगा। कि कहीं कोई चीज कम हो गई है। क्यों कि उसका ता कभी उपयोग ही नहीं हुआ है, वहन होने के बारबार है।

लेकिन वैज्ञानिक जानते है प्रकृति कोई भी चीज व्यकर्थ निर्मित नहीं करती। भूल होती है, एकाध आदमी के साथ हो सकती है। यह ता हर आदमी के साथ आधा मस्तिउष्कम खाली पडा हुआ है। बिलकुल निष्क्रि य पडा हुआ है। उसके कहीं कोई चहल पहल भी नहीं है। योग का कहना है कि वह जो आधा मस्ति ष्क  है वह आज्ञा चक्र के चलने के बाद शुरू होता है। आधा मस्ति ष्कम आज्ञा चक्र ने नीचे के चक्रों से जुड़ा है और आधा मस्ति ष्के आज्ञा चक्र के ऊपर के चक्रों से जुड़ा हुआ है। नीचे के चक्र शुरू होत है तो आधा मस्तिाष्क  काम करता है और जब आज्ञा के ऊपर काम शुरू होता है तब आधा मस्तिैष्कै काम शुरू करता है।

इस संबंध में हमें ख्यामल भी नहीं आता कि जब कोई चीज सक्रिय न हो जाए हम सोच भी नहीं सकते। सोचने का भी कोई उपाय नहीं है। जब कोई चीज सक्रिय होती तब हमें पता चला है।

ओशो
हिंदी लेखन स्वामी आनंद प्रसाद
तिलक-टीका: आज्ञा चक्र के भेद
योग ने उस चक्र को जगाने के बहुत-बहुत प्रयोग किये है। उसमें तिलक भी एक प्रयोग है। स्मतरण पूर्वक अगर चौबीस घण्टेु उस चक्र पर बार-बार ध्यालन को ले जाता है तो बड़े परिणाम आते है। अगर तिलक लगा हुआ है तो बार-बार ध्यासन जाएगा। तिलक के लगते ही वह स्था।न पृथक हो जाता है। वह बहुत सेंसिटिव स्थाघन है। अगर तिलक ठीक जगह लगा है तो आप हैरान होंगे, आपको उसकी याद करनी ही पड़ेगी, बहुत संवेदनशील जगह है। सम्भावत: शरीर में वि सर्वाधिक संवेदनशील जगह हे। उसकी संवेदनशीलता का स्पार्श करना, और वह भी खास चीजों से स्पेर्श करने की विधि है—जैसे चंदन का तिलक लगाना।

सैकड़ों और हजारों प्रयोगों के बाद तय किया था कि चन्दखन का क्योंग प्रयोग करना है। एक तरह की रैजोनेंस हे चंदन में। और उस स्थागन की संवेदनशीलता में। चंदन का तिलक उस बिन्दु की संवेदनशीलता को और गहन करता है। और घना कर जाता है। हर कोई तिलक नहीं करेगा। कुछ चीजों के तिलक तो उसकी संवेदनशीलता को मार देंगे, बुरी तरह मार देंगे आज स्त्रि यां टीका लगा रही है। बहुत से बाजारू टीके है वे उनकी कोई वैज्ञानिकता नहीं है। उनका योग से कोई लेना देना नहीं है। वे बाजारू टीके नुकसान कर रहे है। वह नुकसान करेंगे।

सवाल यह है कि संवेदनशीलता को बढ़ाते है या घटाते है। अगर घटाते है संवेदनशीलता को तो नुकसान करेंगे, और बढ़ाते है तो फायदा करेंगे। और प्रत्ये क चीज के अलग-अलग परिणाम है, इस जगत में छोटे से फर्क पड़ता है। इसको ध्याफन में रखते हुए कुछ विशेष चीजें खोजी गयी थी। जिनका ही उपयोग किया जाए। यदि आज्ञा का चक्र संवेदनशील हो सके, सक्रिय हो सके तो आपके व्योक्तिजत्व में एक गरिमा और इन्टीकग्रिटी आनी शुरू होगी। एक समग्रता पैदा होगी। आप एक जुट होने लगते है। कोई चीज आपके भीतर इकट्ठी हो जाती है। खण्डी-खण्डत नहीं अखण्डज हो जाती है।

इस संबंध में टीके के लिए भी पूछा है तो वह भी ख्याशल में ले लेन चाहिए। तिलक से थोड़ा हटकर टीके को प्रयोग शुरू हुआ। विशेषकर स्त्रि्यों के लिए शुरू हुआ। उसका कारण वही था, योग का अनुभव काम कर रहा था। असल में स्त्रि यों का आज्ञा चक्र बहुत कमजोर चक्र है—होगा ही। क्यों कि स्त्री का सारा व्यक्तित्व निर्मित किया गया है समर्पण के लिए। उसके सारे व्य क्तिचत्व की खूबी समर्पण की है। आज्ञा चक्र अगर उसका बहुत मजबूत हो तो समर्पण करना मुश्किकल हो जाएगा। स्त्री के पास आज्ञा का चक्र बहुत कमजोर हे। असाधारण रूप से कमजोर है। इसलिए स्त्री सदा ही किसी का सहारा माँगती रहेगी। चाहे वह किसी रूप में हो। अपने पर खड़े होने का पूरा साहस नहीं जुटा पायेगी। कोई सहारा किसी के कन्धेव पर हाथ, कोई आगे हो जाए कोई आज्ञा दे और वह मान ले इसमें उसे सुख मालूम पड़ेगा।

स्त्रीप के आज्ञा चक्र को सक्रिय बनाने के लिए अकेली कोशिश इस मुल्कऔ में हुई है, और कहीं भी नहीं हुई। और वह कोशिश इसलिए थी कि अगर स्त्रीो का आज्ञा चक्र सक्रिय नहीं होता तो परलोक में उसकी कोई गति नहीं होती। साधना में उसकी कोई गति नहीं होती। उसके आज्ञा चक्र को तो स्थि र रूप से मजबूत करने की जरूरत है। लेकिन अगर यह आज्ञा चक्र साधारण रूप से मजबूत किया जाए तो उसके स्त्रैरण होने में कमी पड़ेगी। और उसमें पुरुषत्व के गुण आने शुरू हो जायेंगे। इसलिए इस टीके को अनिवार्य रूप से उसके पति से जोड़ने की चेष्टाी की गई। उसके जोड़ने का करण है।

इस टीके को सीधा नही रखा दिया गया उसके माथे पर, नहीं तो उसके स्त्री त्वर कम होगा। वह जितनी स्वटनिर्भर होने लगेगी उतनी ही उसकी कमनीयता, उसका कौमार्य नष्ट् हो जाएगा। वह दूसरे का सहारा खोजती है इसमें एक तरह की कोमलता हे। पर जब वह अपने सहारे खड़ी होगी तो एक तरह की कठोरता अनिवार्य हो जाएगी। तब बड़ी बारीकी से ख्याहल किया गया कि उसको सीधा टीका लगा दिया जाए,नुकसान पहुँचेगा उसके व्यरक्ति त्वि में,उसमे मां होने में बाधा पड़ेगी, उसके समर्पण में बाधा पड़ेगी। इसलिए उसकी आज्ञा को उसके पति से ही जोड़ने का समग्र प्रयास किया गया। इस तरह दोहरे फायदे होंगे। उसके स्त्रैजण होने में अन्त र नहीं पड़ेगा। बल्किा अपने पति के प्रति ज्याेदा अनुगत हो पायेगी। और फिर भी उसकी आज्ञा का चक्र सक्रिय हो सकेगा।

इसे ऐसा समझिए, आज्ञा का चक्र जिससे भी संबंधित कर दिया जाए, उसके विपरीत कभी नहीं जाता। चाहे गुरु से संबंधित कर दिया जाए तो गुरु के विपरीत कभी नही जाता। चाहे पति के संबंधित कर दिया जाए तो पति से विपरीत कभी नहीं जाता। आज्ञा चक्र जिससे भी संबंधित कर दिया जाए उसके विपरीत व्यक्तित्व नहीं जाता। अगर उस स्त्री के माथे पर ठीक जगह पर टीका है तो वह सिर्फ पति तो अनुगत हो सकेगी। शेष सारे जगत के प्रति वह सबल हो जाएगी। यह करीब-करीब स्थिैति वैसी है अगर आप सम्मोसहन के संबंध में कुछ समझते है तो इसे जल्दी समझ जायेंगे।

एक तरफ वह समर्पित होती है अपने पति के लिए। और दूसरी और शेष जगत के लिए मुक्ते हो जाती है। अब उसके स्त्रीब तत्वि के लिए कोई बाधा नहीं पड़ेगी। इसीलिए जैसे ही पति मर जाए टीका हटा दिया जाता है। वह इसलिए हटा दिया गया है। कि अब उसका किसी के प्रति भी अनुगत होने का कोई सवाल नहीं रहा।

लोगों को इस बात का कतई ख्यागल नहीं है, उनको तो ख्या ल है कि टीका पोंछ दिया,क्योंअकि विधवा हो गयी। पोंछने को प्रयोजन है। अब उसके अनुगत होने को कोई सवाल नहीं रहा। सच तो यह है कि अब उसको पुरूष की भांति ही जीना पड़ेगा। अब उसमें जितनी स्वरतंत्रता आ जाए, उतनी उसके जीवन के लिए हितकर होगी। जरा सा भी छिद्र बल्नीरेबिलिटी का जरा सा भी छेद जहां से वह अनुगत हो सके वह हट जाए।

टीके का प्रयोग एक बहुत ही गहरा प्रयोग है। लेकिन ठीक जगह पर हो, ठीक वस्तुा का हो। ठीक नियोजित ढंग से लगाया गया हो तो ही कार गार है अन्यीथा बेमानी है। सजावट हो शृंगार हो उसका कोई मूल्‍य नहीं है। उसका कोई अर्थ नहीं है। तब वह सिर्फ औपचारिक घटना है। इसलिए पहली बार जब टीका लगया जाए तो उसका पूरा अनुष्ठाअन हे। और पहली दफा गुरु तिलक दे तब उसके पूरा अनुष्ठा न से ही लगाया जाए। तो ही परिणामकारी होगा। अन्यदथा परिणामकारी नहीं होगा।

आज सारी चींजे हमें व्यर्थ मालूम पड़ने लगी है। उनका कारण है। आज तो व्यणर्थ है। क्योंठकि उनके पीछे को कोई भी वैज्ञानिक रूप नहीं रहा है। सिर्फ उसकी खोल रह गयी है। जिसको हम घसीट रहे है। जिसको हम खींच रहे है, बेमन जिसके पीछे मन का कोई लगाव नहीं रह गया है। आत्मास को कोई भाव नहीं रह गया है, और उसके पीछे की पूरी वैज्ञानिकता का कोई सूत्र भी मौजूद नहीं है। वह आज्ञा चक्र है, इस संबंध में दो तीन बातें और समझ लेनी चाहिए क्योंवकि यह काम आ सकती है। इसका उपयोग किया जा सकता है।

आज्ञा चक्र की जो रेखा है उस रेखा से ही जुड़ा हुआ हमारे मस्तिोष्क का भाग है। इससे ही हमारा मस्ति ष्का शुरू होता है। लेकिन अभी भी हमारे मस्ति्ष्को का आधा हिस्सास बेकार पडा हुआ है। साधारण:। हमारा जो प्रतिभाशाली से प्रतिभाशाली व्यिक्तिो होता है। जिसको हम जीनियस कहें, उसके भी केवल आधा ही मस्तिाष्का काम करता है। आध काम नहीं करता। वैज्ञानिक बहुत परेशान है, फिजियोलाजिस्ट बहुत परेशान है कि यह आधी खोपड़ी का जो हिस्साक है, यह किसी भी काम में नहीं आता। अगर आपके इस आधे हिस्सेे को काटकर निकाल दिया जाए तो आपको पता भी नहीं चलेगा। कि कहीं कोई चीज कम हो गई है। क्यों कि उसका ता कभी उपयोग ही नहीं हुआ है, वहन होने के बारबार है।

लेकिन वैज्ञानिक जानते है प्रकृति कोई भी चीज व्यकर्थ निर्मित नहीं करती। भूल होती है, एकाध आदमी के साथ हो सकती है। यह ता हर आदमी के साथ आधा मस्तिउष्कम खाली पडा हुआ है। बिलकुल निष्क्रि य पडा हुआ है। उसके कहीं कोई चहल पहल भी नहीं है। योग का कहना है कि वह जो आधा मस्ति ष्क है वह आज्ञा चक्र के चलने के बाद शुरू होता है। आधा मस्ति ष्कम आज्ञा चक्र ने नीचे के चक्रों से जुड़ा है और आधा मस्ति ष्के आज्ञा चक्र के ऊपर के चक्रों से जुड़ा हुआ है। नीचे के चक्र शुरू होत है तो आधा मस्तिाष्क काम करता है और जब आज्ञा के ऊपर काम शुरू होता है तब आधा मस्तिैष्कै काम शुरू करता है।

इस संबंध में हमें ख्यामल भी नहीं आता कि जब कोई चीज सक्रिय न हो जाए हम सोच भी नहीं सकते। सोचने का भी कोई उपाय नहीं है। जब कोई चीज सक्रिय होती तब हमें पता चला है।

ओशो

हिंदी लेखन स्वामी आनंद प्रसाद
                     

क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
प्रिय मित्रो, ! कृपया आप मेरा ये ब्लाग " 5th pillar corrouption killer " रोजाना पढ़ें , इसे अपने अपने मित्रों संग बाँटें , इसे ज्वाइन करें तथा इसपर अपने अनमोल कोमेन्ट भी लिख्खें !! ताकि हमें होसला मिलता रहे ! इसका लिंक है ये :-www.pitamberduttsharma.blogspot.com.

आपका अपना.....पीताम्बर दत्त शर्मा, हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार , आर.सी.पी.रोड , सूरतगढ़ । फोन नंबर - 01509-222768,मोबाईल: 9414657511

Friday, February 22, 2013

भाई मतिदास की धर्मनिष्ठा..............!!!!!!!



औरंगजेब ने पूछाः "मतिदास कौन है?"....तो भाई मतिदास ने आगे बढ़कर कहाः "मैं हूँ मतिदास। यदि गुरुजी आज्ञा दें तो मैं यहाँ बैठे-बैठे दिल्ली और लाहौर का सभी हाल बता सकता हूँ। तेरे किले की ईंट-से-ईंट बजा सकता हूँ।"

औरंगजेब गुर्राया और उसने भाई मतिदास को धर्म-परिवर्तन करने के लिए विवश करने के उद्देश्य से अनेक प्रकार की यातनाएँ देने की धमकी दी। खौलते हुए गरम तेल के कड़ाहे दिखाकर उनके मन में भय उत्पन्न करने का प्रयत्न किया, परंतु धर्मवीर पुरुष अपने प्राणों की चिन्ता नहीं किया करते। धर्म के लिए वे अपना जीवन उत्सर्ग कर देना श्रेष्ठ समझते हैं।

जब औरंगजेब की सभी धमकियाँ बेकार गयीं, सभी प्रयत्न असफल रहे, तो वह चिढ़ गया। उसने काजी को बुलाकर पूछाः

"बताओ इसे क्या सजा दी जाये?"

काजी ने कुरान की आयतों का हवाला देकर हुक्म सुनाया कि 'इस काफिर को इस्लाम ग्रहण न करने के आरोप में आरे से लकड़ी की तरह चीर दिया जाये।'

औरंगजेब ने सिपाहियों को काजी के आदेश का पालन करने का हुक्म जारी कर दिया। दिल्ली के चाँदनी चौक में भाई मतिदास को दो खंभों के बीच रस्सों से कसकर बाँध दिया गया और सिपाहियों ने ऊपर से आरे के द्वारा उन्हें चीरना प्रारंभ किया। किंतु उन्होंने 'सी' तक नहीं की। औरंगजेब ने पाँच मिनट बाद फिर कहाः "अभी भी समय है। यदि तुम इस्लाम कबूल कर लो, तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा और धन-दौलत से मालामाल कर दिया जायेगा।" वीर मतिदास ने निर्भय होकर कहाः "मैं जीते जी अपना धर्म नहीं छोड़ूँगा।"

ऐसे थे धर्मवीर मतिदास ! जिन्हे अपना बलिदान देकर धर्म की रक्षा की !!
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और इसे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी ! मुगलो के शासन खत्म होने के बाद आज ही दिल्ली मे गुरुओ के हत्यारे औरंगजेब की नाम की सड़क है !! Aurangzeb road Google पर सर्च करे !

आज आजाद भारत मे भी मुगलो और अंग्रेज़ो की हजारो निशानिया हमने रखी हुई हैं !! जो हमारे शहीदों का गुरुओ का अपमान करती हैं !

और लानत हैं ! इस देश के नकली सिख प्रधानमंत्री पर जो न अपनी कौम के लिए कुछ कर सका न देश के लिए !

आज भी 1984 के दंगो के आरोपी सारे आम बाहर घूम रहे हैं !!
जनता एक एक वक़्त की रोटी को तरस रही है !


                                                                                    क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
प्रिय मित्रो, ! कृपया आप मेरा ये ब्लाग " 5th pillar corrouption killer " रोजाना पढ़ें , इसे अपने अपने मित्रों संग बाँटें , इसे ज्वाइन करें तथा इसपर अपने अनमोल कोमेन्ट भी लिख्खें !! ताकि हमें होसला मिलता रहे ! इसका लिंक है ये :-www.pitamberduttsharma.blogspot.com.

आपका अपना.....पीताम्बर दत्त शर्मा, हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार , आर.सी.पी.रोड , सूरतगढ़ । फोन नंबर - 01509-222768,मोबाईल: 9414657511

Thursday, February 21, 2013

                            " प्रेस - नोट  "                       दिनांक ...........
            " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " टीम                             की तरफ से चलाये जा रहे " योग्य एवं लोकप्रिय - विधायक चुनने हेतु " सर्वे व मतदाता जागरूकता अभियान " , विधानसभा क्षेत्र सूरतगढ़ , चुनाव वर्ष 2013 , बड़ी सफलता से चल रहा है ! सूरतगढ़ की जनता इसकी प्रशंसा तो कर ही रही है साथ में बढचढ कर इस अभियान में हिस्सा भी ले रही है !! युवा लड़के और लडकियां इंटरनेट पर इस " सोशल मिडिया ब्लॉग प्रेस और इसके लेखक व संयोजक पीताम्बर दत्त शर्मा से फ्रेंडशिप करके जुड़ रहे हैं !! इस ब्लॉग के अब तक 19000 पाठक हैं ! इसके लेख शर्मा जी के पेज,गूगल +, ग्रुप और फेस-बुक पर भी पढने को मिलते हैं ! इसे विश्व के किसी भी हिस्से से देखा और पढ़ा जा सकता है, इंटरनेट के माध्यम से ! इसका लिंक ये है :- www.pitamberduttsharma.blogspot.com. 
                             इस  अभियान की टीम खेजड़ी मंदिर और बाबा रामदेव के मेले में भी गयी और दूर-दूर से पधारे लोगों को इस अभियान की जानकारी दी और पतरक बांटे !! श्री पी.के.मिश्रा, श्री अरविन्द कौल, श्री विष्णु शर्मा एडवोकेट, डा.हरप्रीत सिंह, परसराम भाटिया और पीताम्बर दत्त शर्मा ने अपनी सेवाएँ दी !!  कल महाराजा अग्रसेन I.T.I. कालेज में इस अभियान के पत्रक बांटे जायेंगे और युवाओं को " जागुरुक किया जायेगा !!


Monday, February 18, 2013

धर्म: एक वाहियात पोस्ट लाईफ इंश्योरेंस पालिसी.....शमशाद इलाही अंसारी







आधुनिक युग में इंसानी जीवन की अवधि ८० बरस से ऊपर है, मुसलमानों की औसत आयु कुछ कम होगी, चलिए किसी मान्य आंकड़े की अनुपस्थिती में अंदाजा ही लगा लेते हैं. कम से कम औसत आयु ६० बरस मान लीजिये. एक अच्छा मुसलमान बन कर अगर दस साल की उम्र से वह पांच वक्त की नमाज पढ़ने लगे तो पचास साल में कोई ३६,५०० घंटे (२ घंटे प्रतिदिन) वह इबादत में लगा देता है. इसमें कुरान की तिलावत और रमजान के दिनों में की जाने वाली विशिष्ट इबादत को जोड़ दे तब कम से कम यह आंकडा ५०,००० घंटो से कम नहीं हो सकता. डेढ़ अरब मुसलमानो में कम से कम आधे (७५ करोड़ ) तो नमाज पढ़ते ही है जिसके परिणामस्वरूप कम से कम १०२ अरब घंटे हर रोज़ मुसलमान एक अनुत्पादक कर्मकांड में व्यर्थ करता है. ७५ करोड़ लोगो में यदि १० प्रतिशत लोगो को प्रोफेशनल मान लिया जाए और उनकी प्रति घंटा उत्पादकता दर मात्र दस डालर भी मान ले तब इस समय की कीमत हर रोज़ करीब डेढ़ अरब डालर बैठती है.
हवाई जहाज निर्माण मौजूदा दुनिया की इंजीनियरिग का सबसे अनूठा और सर्वश्रेष्ठ उत्पाद है जिसे बनाने में करीब दस लाख घंटे लगते है, जाहिर है इसके निर्माण में सैकड़ो लोग रात दिन काम करते हैं तब जा कर एक हवाई जहाज़ बनता है जिसमे श्रम, तकनीक और दिमाग का विलक्षण मिश्रण होता है. इसे सर्वज्ञानी हिन्दू अथवा मुस्लमान क्यों नही बना पाए? इस प्रश्न की  पड़ताल कौन करेगा ? सिर्फ हवाई जहाज़ ही क्यों अपनी कमरे में अपने शरीर पर पहनी और रोज़मर्रा प्रयोग में की जाने वाली कितनी ऐसी चीजे हैं जो इन लोगो ने बनाई हो ? रेडियो, फोन, मोबाईल ,लेपटाप, वातानोकूलित यंत्र, कंप्यूटर, इंजेक्शन, इलाज की आधुनिक मशीने, दवाइयां, खुर्द बीन,चश्मा, टार्च, कपडे, जूते, कागज़ ,कलम कुछ तो हो जिसके निर्माण में- जिसकी इजाद में इन महापंडितों की  कोई भूमिका हो? इन तथाकथित सर्वज्ञानियों को अगर कुत्ते के  काटने से इंसान के मरने का खतरा था तो उसकी वैक्सीन १४०० पहले कुत्ते का बायकाट करते वक्त सूझ जानी चाहिए थी. सूअर के गोश्त को हराम घोषित करना एक आसान काम था बनिस्पत इसके की उसके टेप वार्म को जला डालने वाली हीट का निर्माण करते. शराब को हराम करने वाले सर्व ज्ञानियों  को यह मालूम  नहीं कि उसमे प्रयुक्त अल्कोहोल असंख्य दवाईयों में एक महत्वपूर्ण इकाई है.
  
डेढ़ अरब डालर का ‘समय’ हर रोज़ बेकार करने वाला समाज भला अपने पैरो पर कैसे खडा रह सकता है? जिस समाज को अपने समय और उसकी आर्थिक उत्पादकता का इतना भी इल्म नहीं; वह भविष्य में किसी प्रगति पथ पर अग्रसर होगा, इसकी कल्पना करना भी उचित नहीं. जिन समाजो में वक्त के लिए कोई स्थान न हो उनका गरीब रहना एक ऐतिहासिक शर्त है. समय को साधे बिना पूंजी और  संपदा का न सर्जन संभव है, न उसका  अर्जन. जिन समाजो ने समय को साधा उन्ही समाजो ने प्रगति की और आज वही समाज पूरी दुनिया पर काबिज़ हैं. दुनिया की कोई भी महान खोज, मानव जाति के इतिहास में आज तक किसी मदरसे अथवा धार्मिक इदारे ने नहीं की, क्यों? क्या यह समझाना अभी भी कोई टेहडी खीर है? आखिर धार्मिक कर्म काण्ड में उलझे मनस और समाज को अपनी वर्तमान दिशा-दशा का अहसास कब होगा? जाहिर है निहित स्वार्थ समाज में किसी प्रगतिशील विचार को जन्म लेने की न तो कोई स्थिती बनने देते है और न उसकी कोई गुंजाईश छोड़ते है.
सभी धर्मो ने वतर्मान दशा को यथास्थिति में स्वीकार करने का ही दर्शन दिया है, चतुर धर्माधिकारी को यह मालूम था कि ऐसा करके वह सत्ता के साथ अंतर्विरोध में नहीं जाएगा, लिहाजा वर्तमान को बुरा और गैर मुक्कमिल बना और उसे ऐसा समझा कर एक अलौकिक जगत का निर्माण कर लिया गया. अगर दुनिया अपूर्ण और दोयम दर्जे की  है तब अल्लाह का बनाया हुआ एक दूसरा जगत पूर्ण है. लेकिन उस असाधारण सर्वोच्च जगत को  प्राप्त करने के लिए तुम्हे पूजा पाठ, कर्म काण्ड करने होगे. कभी कब्र का डर तो कभी दोज़ख के अजीबो गरीब डराने वालो किस्सों के जरिये जनता को भरमाया गया. डर सभी धर्मो का वह प्रमुख औजार है जिसके जरिये वह इंसान की वर्तमान  जगत को बदलने वाली ऊर्जा का तिरोहण कर देती है. धर्म की अफीम के नशे में डूबा समाज राजा, सरकार, सत्ता और प्रशासन को पलटने के अपने ऐतिहासिक कार्यक्रम को छोड़ कर अपने परलौकिक जगत के सुखद सपनों में जीने के झंझट में पड जाता है. धर्माधिकारी ने समाज की जुझारू शक्तियों का अराजनीतिकरण करके न केवल समाज के बड़े हिस्से को क्रान्ति करने से रोका बल्कि उसे प्रतिक्रांतिकारी बना दिया. धर्म के नशे में डूबा ज़हन समाज को बदलने वाली हर तहरीक और हर शख्स के मुक़ाबिल खुद ब खुद एक दीवार बन जाता है. ऐसा होना स्वाभाविक है धर्माधिकारी/मुल्लाह को यह इल्म है कि अगर इंसान ने अपनी किस्मत खुद बनाने का हुनर सीख लिया तब उसका सबसे पहला संगठित हमला उनकी धार्मिक सत्ता पर ही होगा.
मौजूदा वैज्ञानिक युग में क्या धार्मिक प्रस्थापनाओ को सच की कसौटी पर नहीं कसा जाना चाहिए ? जाहिर है आज धर्मो की वकालत करने वाले खासकर इस्लाम की तरह-तरह की किस्मों को प्रोमोट करने वाले देश अथवा समूह  भूखे-नंगे नहीं है. उनके पास विश्वविद्यालय है और दुनिया का  हर जदीद वैज्ञानिक उपकरण भी  मौजूद है, फिर क्या कारण  है कि आज तक उनके धर्म द्वारा रचा गया स्वर्ग अथवा नरक का कोई जियोफिजिकल लोकेशन आज तक मुहैय्या नहीं कराया गया? आज तक किसी कब्र में कैमरा लगा कर मुलकिन नकीर के सवाल जवाब की कोई वीडियो क्यों नहीं बनी? बड़े बड़े अपराधी मरे लेकिन कब्र में तथाकथित अज़ाब का कोई दृश्य (जिसे सिर्फ मुल्लाह पिछले १४०० सालो से बांच रहा है) कि कब्र के दोनों पाट आपस में मिल कर मुर्दे को भींच देते है, पसलियाँ एक हो जाती है आदि आदि  अभी तक साक्षात क्यों नहीं दिखाया गया? क्या यह असंभव है ? इस्लामियत पढ़ने वाले छात्र इन बकवासो को कब तक सुनेंगे? बनिए की दूकान पर १० रूपए की साबुन लेने से पहले सौ सवाल करने वाला दिमाग मुर्दों पर ज़ुल्म करने वाले अल्लाह की दरिन्दगी पर सवाल क्यों नहीं उठाता? क्या कोई मुल्लाह प्रमाण मुहैय्या कराएगा कि पिछले १४०० सालो में किन-किन लोगो को जन्नत मिली और किसे दोज़ख ? जन्नत के जीवन की कोई वीडियो दिखा दो ताकि कुछ तर्क वादियों को तसल्ली हो जाए. ऐसे प्रमाणों से यकीन कीजिये धर्म के झंडाबरदारों को ही फ़ायदा होगा. जाहिर है धर्म ने सवाल करने की हदे तय की हैवह उस हद को लांघने की इजाजत नही देता जहां धर्म और धर्माधिकारी की  सत्ता को सीधी चुनौती मिलनी शुरू हो जाए. यदि विज्ञान की दृष्टी और उसकी उपलब्ध तकनीको के माध्यम से धर्म पुस्तकों की बातों  को जांचना शुरू कर दिया जाए तब संभवत: धर्म के तमाम अतार्किक और गल्प शास्त्रों पर टिके सिद्धांत खुद ब खुद गिर जायेगे.
वैज्ञानिक चिंतन और तकनीक के बिना आधुनिक मानव समाज ने उन्नति नहीं की, उसके बिना विकास संभव नहीं. कहना न होगा जिन समाजो पर अभी धर्म का काला साया मौजूद है वह भले ही पैसे के बूते वैज्ञानिक उत्पादों को खरीद कर उपयोग कर रहा हो परन्तु उसके मनस  जगत में किसी वैज्ञानिक चिंतन की भोर नहीं हुई. वह भले ही इलाज कराने आधुनिक  अस्पताल में जाए या अमेरिका में स्वास्थ्य लाभ करे, चिंतन के स्तर पर वह अभी १४०० पहले वाले  ऊँट या गधे पर ही बैठा है. जिन उपकरणों के विकास में उसकी कोई भूमिका नहीं वह बस उनका प्रयोग पैसे देकर कर लेता है. आने वाले समय में बदलती पीढी और बदलते वातावरण में निश्चय ही लोग सवाल करना शुरू करेंगे कि यदि तुम सबसे बेहतर थे, हो या होने वाले हो तब इस तमाम वैज्ञानिक युग का निर्माण दूसरो ने क्यों किया? डेढ़ अरब डालर के समय को हर रोज़ बर्बाद करने वाला समाज एक दिन जरुर जागेगा क्योंकि जागना इंसानी फितरत है, जिस दिन जागेगा उस दिन वह सब से हिसाब ले लेगा, उसी दिन वह दुनिया का बदलने की जुस्तजू में लग जाएगा, मुझे लगता है यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, बहुत देर के लिए मुल्लाह की सलामती संभव नही, भले ही उसके पास दर्जनों ‘पोस्ट लाईफ इन्शुरेन्स’ पालिसी हो.     

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‎" 5TH PILLAR CORROUPTION KILLER " टीम के तत्वाधान में योग्य एवं लोकप्रिय विधायक चुनने हेतु "सर्वे व मतदाता जागुरुकता अभियान " ‎...!!


चुनाव में किस छवि वाले को वोट -पत्रक जारी किया






विधान सभा चुनाव में किस छवि वाले को वोट दिया जाना चाहिए

फिफ्थ पिल्लर क्रप्शन किलर ने लोगों की राय जानने को पत्रक जारी किया

खास खबर- करणीदानसिंह राजपूत

सूरतगढ़, 17 फरवरी 2013.फिफ्थ पिल्लर क्रप्शन किलर ब्लॉग के एक लेखक पीताम्बर दत्त शर्मा ने चुनाव के बाद निर्वाचित जन प्रतिनिधियों द्वारा आम लोगों की पीड़ा को नहीं समझने और संपर्क नहीं रखने की परेशानी को समझते हुए लोगों को जगाने का एक अभियान शुरू किया है।
इसके लिए बारह फरवरी को एपेक्स सामुदायिक भवन में पत्रकार वार्ता की गई और एक टीम बनाई गई है।
इस टीम में संयोजक पीताम्बरदत्त शर्मा, संरक्षक डा.दलीप सिहाग और एडवोकेट भागीरथ कड़वासरा हैं।
इनके अलावा टीम में वित्त प्रभार परसराम भाटिया व डा.हरप्रीतसिंह,लेखन प्रभार पी.के.मिश्रा व तुलसीराम शर्मा,मंच प्रभार के.के.खासपुरिया प्रचार प्रसार प्रभार राजेन्द्र पटावरी,विजय स्वामी और प्रेस प्रवक्ता प्रभार एडवोकेट विष्णु शर्मा के पास हैं।
 17 फरवरी को सुभाष चौक पर लोगों की राय के लिए एक पत्रक का विमोचन किया गया है जिसमें कुछ सवाल है कि लोग किस प्रकार के विधायक को चुनने की आशा रखते हैं। इस टीम का मकसद यही है कि अच्छी छवि वाले को चुना जाए ताकि बाद में जनता परेशान ना हो। सुभाष चौक पर एक सभा के रूप में कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें पत्रक विमोचन से पहले इस अभियान के बारे में पी.के.मिश्रा,के.के.खासपुरिया और एडवोकेट विष्णु शर्मा ने जानकारी दी। 
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क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...