Monday, October 10, 2016

"चलो !! "छद्म-सेक्युलरों" के यहां मेहमाँ बनें !! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न. - +9414657511

कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है कि हिंदुस्तान में रह रहे छद्म-सेकुलरों से हर रोज़ लड़ने की बजाए हम सब उनके घरों में एक साथ मेहमान बनकर जाएँ और वापिस लौटें नहीं , पहले हम उनके घरों में पड़ी खाद्य सामग्री ,वस्त्र,और नकदी पर उनसे ज्यादा अपना हक़ जमाएं , फिर उनकी सारी सम्पत्ति के मालिक ही बन जाएँ ! तब इनको पता चले कि आज हिंदुस्तानियों के अपने ही घर में कैसे हालात हैं ??
           कुछ ऐसा ही तो हुआ है हमारे साथ पिछले 6 -7 सौ सालों में !पहले "मुग़ल"आये, फिर "फिरंगी"आये ,इन सबने हमें खूब लूटा एवम हमारा शोषण किया ,और फिर इन दोनों की "नाजायज़"ओलादें हम पर ये कहकर और दिखाकर राज करती रहीं कि सबको समान अधिकार और मौके  देंगे !लेकिन इन्होंने ना केवल पक्षपात किया ,बल्कि ये हमारे मालिक बन बैठे !यही वजह है कि जब भारत अपने किसी दुश्मन की "ठुकाई"करता है तो "रोने"ये लगते हैं !
                     ऐसे देशद्रोही लोगों ने अपने घरों को महलों जैसा बना रख्खा है ,हम जैसे लोग तो इनके पहरेदारों से बात तक नहीं कर पाते हैं !इन्होंने देश के क़ानून और सिस्टम को अपनी सुविधानुसार ढाल लिया है !आज इन्होंने पैसे के दम पर हर जगह अपने विशेष "कौए-तोते"बिठा रख्खे हैं , जो समय आने पर इनकी  हालात अनुसार रोते या गाने लगते हैं !जैसे "पुरुस्कार वापसी गैंग,झूठे समाज-सेवी और पत्तरकार "आदि !
                     इसलिए आइये-चलिए !! हम सब "मुलायम,माया,राहुल-सोनिया,ममता" जी एवम उनके प्रवक्ताओं के घर मेहमान बनने चलें ! 

 प्रिय मित्रो , सादर नमस्कार !! आपका इतना प्रेम मुझे मिल रहा है , जिसका मैं शुक्रगुजार हूँ !! आप मेरे ब्लॉग, पेज़ , गूगल+ और फेसबुक पर विजिट करते हो , मेरे द्वारा पोस्ट की गयीं आकर्षक फोटो , मजाकिया लेकिन गंभीर विषयों पर कार्टून , सम-सामायिक विषयों पर लेखों आदि को देखते पढ़ते हो , जो मेरे और मेरे प्रिय मित्रों द्वारा लिखे-भेजे गये होते हैं !! उन पर आप अपने अनमोल कोमेंट्स भी देते हो !! मैं तो गदगद हो जाता हूँ !! आपका बहुत आभारी हूँ की आप मुझे इतना स्नेह प्रदान करते हैं !!नए मित्र सादर आमंत्रित हैं ! the link is - www.pitamberduttsharma.blogspot.com.  , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी !!ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !!
मेरा मोबाईल नंबर ये है :- 09414657511. 01509-222768. धन्यवाद !!आपका प्रिय मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,

Tuesday, October 4, 2016

राहिल की बिसात पर वजीर से प्यादा हो रहे है नवाज !!??


सत्ता पलट के हालात बन रहे है पाकिस्तान में ?

तो पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ दो महीने बाद 26 नवंबर को रिटायर होंगे और नवाज शरीफ की सत्ता की उम्र अभी पौने दो बरस बची हुई है । और इन दोनों के बीच सेना के पांच अफसर ऐसे हैं, जिनमें से कोई एक नवंबर के बाद पाकिस्तान का जनरल हो जायेगा । लेकिन ये कहानी सच्ची तो है लेकिन अच्छी नही लगती । क्योंकि पाकिस्तान में सत्ता यूं ही बदलती और कोई सामान्य तरीके से कोई रिटायर भी नहीं होता । तो जो कहानी सच्ची नहीं होती वह पाकिस्तान को लेकर अच्ची लगती है । और इस कहानी में असल पेंच आ फंसा है भारत का सर्जिकल आपरेशन । भारत के चार धंटे के इस आपरेशन ने पाकिस्तान के सियासी और सेना के इतिहास को ही उलट पलट दिया है । और पहली बार दोनों शरीफ पाकिस्तान के बीतर ही इस तरह कटघरे में आ खड़े हुये हैं कि अब दोनों को ये तय करना है कि साथ मिलकर चले या फिर एक दूसरे को शह मात देने की बिसात बिछा लें । और पाकिस्तान के हालात शह मात की बिसात में जाने लगे है । क्योंकि कैबिनेट की बैठक में नवाज अपने ही मंत्रियो को ये भरोसा ना दिला पाये कि वह चाहेंगे तो सेना कूच कर जायेगी । और दूसरी तरफ राहिल शरीफ रावलपिंडी में अपने सैनिक अधिकारियों को इस भरोसे मही लेने में लगे रहे कि सेना तभी कूच करती है जब उसे पता हो जाये कि जीत उसकी होगी ।

यानी नवाज शरीफ के कहने पर सेना चल नहीं रही है और नवाज शरीफ की बिसात राहिल शरीफ के रिटायरमेंट के बाद अपनी पसंद के अधिकारी को जनरल के पद पर बैठाने की है । यानी भारत के इस सर्जिकल आपरेशन ने पाकिसातन के भीतर के उस सच को सतह पर ला दिया है जिसे आंतकवाद से लडने ऐऔर कश्मीर के नाम पर अभी तक सत्ता सेना संभाले नवाज और राहिल किसी शरीफ की तरह ही नजर आ रहे थे । यानी नये हालात में तीन सवाल पाकिस्तान में गूंजने लगे है । पहला, राहिल रिटायरमेंट पसंद कर किसी सरकारी कारपोरेशन में सीईओ का पद लेना चाहेंगे । दूसरा, राहिल मुशर्ऱफ की राह पर निकल कर खुद सत्ता संभालने और अपने पसंदीदा को जनरल की कुर्सी पर बैठेंगे । तीसरा, नवाज शरीफ किसी भी हालात में सेना को सियासत से दूर करने के लिये युद्द में झोकना पंसद करेगें । यानी तरकीबी दोनों तरफ से चली जायेगी । और चली जा रही है । नवाज शरीफ के सामने दो बरस का वक्त अभी भी है लेकिन जिस तरह भुट्टो की पीपीपी और इमरान की पार्टी राहिल शरीफ के दंघो पर चढकर अब सत्ता पाने का ख्वाबा देखने लगी है वह नवाज के लिये खतरे की घंटी है क्योंकि नवाज के विरोधी अब पाकिस्तान की अवाम की भावनाओं के साथ सेना या कहे राहिल शरीफ को करीब बता रहे है और भारत के सर्जिकल अटैक के पीछे सेना की असफलता को ना कहकर नवाज की असफलता ही बता रहे है । यानी मोदी से नवाज की यारी भी पाकिसातन में नवाज शरीफ पर खतरे के बादल मंडराने लगी है । और राहिल शरीफ की बिसात पर वजीर नवाज कब प्यादा बना दिये जा सकते है इसका इंतजार सेना-सियासत दोनों करने लगे है । तो क्या पाकिस्तान में हालात ऐसे बन रहे हैं कि सत्ता पलट हो सकता है। ये सवाल इसलिए क्योंकि पाकिस्तान में सत्ता पलट का इतिहास है, और हर बार जब लोकतांत्रिक सरकार कुछ कमजोर होती है या पिर सत्ता पूरी तरह सेना की कारारवाई पर ही आ टिकती है तो सेना सीधे सत्ता संभालने से नहीं कतराती और फिलहाल पाकिसातन का रास्ता इसी दिशा में जा रहा है ।

क्योकि बीते 48 घंटो में नवाज शरीफ ने राहिल शरीफ के अलावे पाकिसातन में जिन दो अधिकारियों से संपर्क साधा वह दोनो जनरल बनने की रेस में है । और इन्हीं दोनों को रावलपिंडी में राहिल शरीफ ने अफगालनिस्तान की सीमा से भारत की सीमा यानी लाइन आफ कन्ट्रोल की दिशा में भजे जा रहे सैनिकों की निगरानी के निर्देश भी दिये है र बाकि तीन जो जनरल की रेस में है उन्हें भी राहिल शरीफ ने बीतते 48 घंटो में अपनी तीन बैठको में बुलाया । तो पाकिस्तान के भीतर सेना की हलचल बता रही है कि भारत के खिलाफ कोई भी कार्रवाई को वह राहिल शरीफ की बिसात पर करेगी ना कि नवाज शरीफ के सियासी फैसले पर । इसीलिये इकबाल रानाडे की निगरानी में इफगान बार्डर से एलओसी में ट्रांसफर किये जारहे सैनिको की अगुवाई का काम सौपा गया है । इकबाल ट्रिपलएक्सआई कोर्प्स के कमांडर हैं, 2009 में अफगानिस्ता सीमा के पास स्वात घाटी में पाकिस्तानी तालिबानी आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन को लीड किया। वही राहिल का परिवार जिस तरह सेना में रहा है उसमें जुबैर हयात का परिवार भी सेना में रहा है तो उनकी निगरानी में एलओसी की हरकत है । जुबैर हयात न केवल खुद लेफ्टिनेंट जनरल हैं उनके पिता मेजर जनरल असलम हयात नामी शख्सियतों में एक रहे। और राहिल शरीफ के चाचा के साथ सेना में रहे है । महत्वपूर्ण है कि नवाज शरीफ अज अपनी कैबिनटे में हालात को बताते हुये सेना के बारे में सिर्फ यही कह पाये कि संसद के विशेष सत्र में सारी जानकारी हर राजनीतिक दल और देश के सामने रखेंगे । यानी जो मूवमेंट पाकिस्तानी सेना के भीतर हो रहे हैं, उसे नवाज शरीफ या तो बता नहीं पा रहे है या फिर सर्जिकल अटैक के बाद सेना और सत्ता में ये दूरी आ गई है कि अब सफलता के लिये दोनो ही अपनी अपनी बिसात बिछा रहे है । इसीलिये पाकिसातन के कराची और रावलपिंडी के न्यूक्लियर प्लांट पर निगरानी का काम मजहर जामिल देख रहे रहे है । ये वही शख्स है जो करगिल के दौर में पाकिस्तान के न्यूक्किल कॉप्लेक्स देखते थे ।और तब मुशर्रफ के सत्ता पलट के दौर में ये नवाज शरीफ को कोई सूचना देने से पहले सेना हेडक्वार्टर के करीब रहे । तो नया सवाल ये भी है कि पाकिस्तान की सेना अगर एलओसी पर सक्रिय हो रही है तो फिर हमले या किसी कार्रवाई का निर्देश कौन देगा । या किस निर्देश को सेना मानेगी। और पाकिस्तान के भीतर की हलचल भारत में क्या असर डालेगी । ये सारे सवाल उस युद्द की ही दस्तक दे रहे है जिसे दुनिया नहीं चाहती है।

Saturday, October 1, 2016

पानी को लेकर होगा अगला युद्द ?ख़त्म नहीं हुआ है अभी पानी का मसला !


सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसका 86 फिसदी हिस्सा भारत पाकिस्तान में बंटा हुआ है। पाकिस्तान में 47 फिसदी और भारत में 39 फिसदी हिस्से के अलावे सिंधु नदी का 8 फिसदी हिस्सी चीन में 6 फिसदी हिस्सा अफगानिस्तान में भी आता है। और इस क्षेत्र के आसपास के इलाको में करीब 30 करोड़ लोग रहते हैं,लेकिन 1947 में भारत विभाजन पर मुहर लगते ही पंजाब और सिंध प्रात में पानी को लेकर संघर्ष की शुरुआत हो गई । 1947 में भारत और पाकिसातन के इंजीनियरों की मुलाकात ने विभाजन से पहले के हालात 31 मार्च 1948 तक बरकरार रखने पर सहमति बनायी। यानी तय हुआ देश बंटे है लेकिन पानी नहीं बंटेगा। और 31 मार्च 1948 तक पानी की धारा किसी ने रोकी नहीं। लेकिन 1 अप्रैल 1948 को जैसे ही समझौते की तारीख खत्म हुई और पाकिसातन ने कश्मीर में दखल देना शुरु किया तब पहली बार भारत ने पाकिस्तान पर दबाब बनाने के लिये दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया जिससे पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन सूखे की चपेट में आ गया। यानी आज जो सवाल कश्मीर में पाकिस्तानी दखल को लेकर है भारत के सामने है वैसा ही सवाल 1948 में भी सामने आया था। हालांकि 1948 से लेकर 1960 तक सिंधू नदी को लेकर कोई ठोस समझौता तो नहीं हुआ लेकिन उस दौर में पानी रोका भी नहीं गया । लेकिन 1951 में नेहरु के

कहने पर टेनसी वैली अथॉरेटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने इस पूरे इलाके का अध्ययन कर जब रिपोर्ट तैयार की तो वर्लड बैक ने भी इसका अध्ययन किया और 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए.समझौते हुआ तो सिंधु नदी की सहायक नदियो को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया । सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी मानते हुये भारत को इस्तेमाल का हक मिला ।

तो झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी मानते हुये पाकिसातन को इस्तेमाल का हक मिला ।लेकिन नदियो में एक दूसरे देश के लिये विजली बनाने , खेती के लिय पानी उपयोग के लिये आपसी सहमति के आधार पर पानी देने की भी व्यवस्था हुई । लेकिन कोई उलझन होने पर सिंधु आयोग बना । जिसमे भारत-पाक के कमिश्नर नियुक्त हुये। दोनों देशों की सरकारों को विवाद सुलझाने का हक मिला। कोर्ट आफ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया । लेकिन पाकिस्तान ने जिस तरह कश्मीर में आतंक को हवा दी और अंतराष्ट्रीय मंच पर जाकर आंतकवाद को स्टेट प़ोलेसी के तहत रखा उसने सिंधू ,समझौते के 56 बरस के इतिहास में पहली बार भारत के लिये ये सवाल तो पैदा कर ही दिया है कि सीमा पर खून बहे और खून बहाने वालो को पानी दें तो क्यों दे । और आज पीएम की बुलाई बैठक में 1948 वाले हालात की तर्ज पर पानी बंद करने की स्थिति पर चर्चा तो हुई । लेकिन ये कैसे और कबतक संभव है नजरे अब इसी पर होंगी।  तो सवाल है कि क्या वाकई पानी को लेकर हालात और बिगड सकते है । और अगर ऐसा होता है तो चीन क्या करेगा । जो लगातार पाकिस्तान के पीछे खड़ा है । याद कीजिये तो न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता पाकिस्तान नहीं चाहता था,तो चीन ने अडंगा लगाकर सदस्यता नहीं मिलने दी। दक्षिण चीन सागर पर भारत के रुख से चीन राज है। बलूचिस्तान का जिक्र मोदी के करने पर चीन खफा है,क्योंकि चीन का आर्थिक कॉरोडोर शिनजियांग प्रांत को रेल,सड़क और पाइपलाइन के जरिए बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा, जिस पर चीन 46 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च कर रहा है । इसलिये आतंक के सवाल पर भी चीन ने ही पाकिस्तान व  के आतंकी संगठन जैश के मुखिया समूद अजहर को यूएन में ही आतंकवादी नहीं माना और वीटो जारी कर दिया ।

और अब जब भारत  सिंधू पानी समझौता तोड़़ने का जिक्र कर रहा है तो चीन का मीडिया भारत को चेता रहा है। यानी हालात सिर्फ सिंधु नदी के क्षेत्र तक नहीं सिमटेगे बल्कि तिब्बत और ब्रह्मपुत्र भी इसकी जद में आयेगा । यानी इधर सिधु नदी । उधर बह्मपुत्र नदी । इधर पाकिसातन । उधर चीन । तो सवाल ये भी है कि क्या पानी को लेकर संघर्ष के हालात पैदा हुये तो चीन भी पाकिस्तान के साथ खडा होकर बह्रमपुत्र का पानी रोक सकता है । ये सवाल इसलिये क्योकि चीन अरसे से तिबब्त में बांध बनाकर बह्रमपुत्र के पानी को पीली नदी में डालने की योजना बनाने में लगा है । चीन की बांध बनाने की योजना अरुणाचल और तिबब्त की सीमा पर ग्रेट बैड पर है । जहा ब्रह्मपुत्र यू टर्न लेती है । और ब्रह्मपुत्र कही ना कही बांग्लादेश के लिये भी जीवनदायनी है । यानी भारत पाकिस्तान टकराव की जद में समूचा एशिया आयेगा इससे इंकार किया नहीं जा सकता । तो क्या वाकई पानी को लेकर दुनिया के केन्द्र में भारत पाकिस्तान हो सकता है । क्योंकि ये पहली बार हो रहा है ऐसा भी नहीं है । नील नदी को लेकर मिस्र , इथोपिया , सूडान आपस में भिडे । तो जार्डन नदी को लेकर इजरायल, जार्डन, लेबनान , फिलस्तीन और अराल सी [ नदी ] पर तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान , उजबेकिस्तान , किर्जिकिस्तान के बीच झगडा जग जाहिर है । यानी पानी एक ऐसे हथियार के तौर पर किसी भी देश के लिये सहायक हो सकता है जब उसे अपने दुश्मन देश पर दबाब बनाना हो या फिर दुश्मन देश की सत्ता के खिलाफ उसके अपने देश में राष्ट्रीय भावना को उसी के खिलाफ करना हो । और असर इसी का है कि पानी का संघर्ष चाहे गाजा पट्टी मेंदिखायी दे या फिर मिस्र , सूडान और इथोपिया के बीच । आखिर में दुनिया के दबाब में रास्ता पानी समझौते का ही निकाला गया । और पानी को लेकर बीते 50 बरस में 150 संधिया हुईं । 37 संधियों में हिंसा हुई । तो नया सवाल ये भी है आतंकवाद का नया नजरिया पानी को ही हथियार या ढाल बनाकर भी शुरु हो सकता है । क्योंकि सीरिया और यमन में अगर आईएसआईएस का आतंक आज दस्तक दे चुका है तो उसके अतीत का सच ये भी है कि सीरिया और यमन में गृह युद्द के हालात पानी की वजह से ही बने । जह वहा के गवर्नर ने अपने लिये पानी अलग से जमा कर कब्जा कर लिया । और लोगो ने विरोध किया । असंतोष के हालात में तेल के साथ साथ पानी पर भी आईएस ने कब्जा कर लिया । फिर यूनाइटेड नेशन के जेनरल सेकेट्री रहे कोफी अन्नान से लेकर मौजूदा बान की मून तक ने माना कि 21 वी सदी में तेल को लेकर नहीं पानी को लेकर युद्द होगा । बंदूकें पानी के लिये खरीदी जायेगी ।साभार - श्री पूण्य प्रसुन वाजपेयी जी !

Wednesday, September 28, 2016

"अखियों"से नहीं बातों से गोली मारे नेता हमार ! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न. +9414657511

पाकिस्तान के खिलाफ जब जनता गोली का जवाब गोली से चाहती है तो हमारे विपक्षी और सरकारी नेता केवल बातों से ही गोलियां चला कर अपना काम निकाल रहे हैं !और उस पर तुर्रा ये कि हम सब उनको "समझदार" भी कहें !नेता जी !!"उल्लू ना बनायिंग"!!
                        "पुत्तर-प्रदेश"में मुलायम नेता जी से जब पार्टी नहीं चली और पुत्तर अखिलेश से सरकार नहीं चली तो पहले तो नेता जी ने शिवपाल और अखिलेश जी को स्वयं धमकाया , जब काम नहीं बनता दिखा तो लड़ाई-मार कुटाई से भरपूर एक ड्रामा भी किया गया !सबको दोबारा से "सेट"करने के बाद नेता जी ने अपने "अमर सिंह"को पार्टी का राष्ट्रिय महासचिव बनाकर सबको चौन्का दिया ! उन्होंने अमर सिंह को प्यार और लाड से उनकी छिपी हुई शक्तियों के बारे में बताया जैसे रामायण में हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद करवाई गयीं थीं !वे बोले हे अमर सिंह -:
                     उठ सुस्ती छोड़ !खटिया उठा राहुल की !खुद को"मुलायम"बना !कोई चक्कर चला !जोड़कर तोड़कर !पनघट देख लार संभाल !मुखोटा लगा मौका ताड़ !चूक मत ! साइकिल उठा !! कोई करतब दिखा !सत्ता फिर से दिलाने का कोई इंतज़ाम कर !आज कर कल कमा !अकेला  जयाप्रदा और विद्या बालन को साथ लेले !फिसलन कहाँ है देख कर साथी ढूंढ !  तालमेल बिठा !'हाथी"से बच ! हाथ से हाथ मिला ! कमल को अंगूठा दिखा !कॉमरेडों  हंसिया - हथौड़ा पकड़ !बाली तोड़ टिकट बाँट ! समीकरण जमा !चाहे कोई बखेड़ा खड़ा कर !विवाद बढ़ ! नायकों को पकड़ !महानायक,पंडित के पाँव पकड़ !लखनऊ लाकर "नचा" !जात - पात देख !फुट डाल !राज कर और करवा ! बलि देख महा बलि देख !अब मत हिचक खुलकर बोल !किसी से भी डील कर , झंडा उठा डंडा दिखा !आँखें मिला !आँखें फेर या तरेर !कदम बढ़ा,आग लगा ,तीली दिखा !भड़क उठे तो पानी दाल !ठंडा कर खुद को आंक !गिरेबान में झाँक !कुछ भी बोल !आरोप जड़ मुंह खोल !मुद्दे उठा बना ,कांफ्रेंस कर !चिरौरी कर मख्खन लगा !मेहनत कर फल चख पैसा फैंक !तमाशा देख !फिर उत्तर प्रदेश की सत्ता मेरे पुत्तर को दिला शिवपाल को नहीं !
                        उधर कोंग्रेस्सी पता नहीं किसके नेतृत्व में , "PK"की सलाह पर खाट-यात्रा कर रही है !जिनके नाम आये थे वो तो कहीं दिखाई नहीं दे रहे , जूता बेचारे राहुल को पड़ा और माला पहले पहनाने के लिए हाथापाई तक हो गयी  और खाट बेचारी जनता के काम आ गयी !ये हालत कोंग्रेस की क्यों हुई ये भी हमसे जान ! लीजिये !जो हमने किसी से सुनी वो आपको  बता रहे हैं जी !
                            कहानी लंबी है क्योंकि कोंग्रेस ने राज भी 65 सालों तक किया है जी भारत पर !क्या हाल रख दिया है हिंदुस्तान का देखिये !-:
                  पूरे 65 सालों तक कोंग्रेस भारत पर तम्बू की तरह तानी रही,गुबारे की तरह फैली रही,हवा की तरह सनसनाती रही, बर्फ की तरह जमी रही ! कोंग्रेस ने अपनी मर्ज़ी का इतिहास अफसरों से लिखवाया,संसद और विधानसभा सदस्यों से पढ़वाया !जमकर उसका प्रचार अपने चेलों से करवाया !जर्रे जर्रे पर कोंग्रेस का नाम लिख्खा जाने लगा !रेडियो, टीवी, डॉक्युमेंट्री ,सरकारी बैठकों,सम्मेलनों में कोंग्रेस का नाम पढ़ा जाने लगा !कोंग्रेस हमारी आदत बन गयी क्योंकि दासों दिशाओं में कोंग्रेस की ही गूँज थी !हम सब दिलो-दिमाग और तोड़ से कोंग्रेसी हो गए !भारतवासियों के पेट में कोंग्रेस "गैस" की तरह समा गयी !आज जो देश के हालात हैं वो हमारे सामने हैं ! बुराई के गर्भ में कोंग्रेस ही है मित्रो !इसका और इतिहास आपको आगे बताता रहूँगा काफी लंबा है !जनता को बड़ा ही जागरूक बन कर रहना होगा अन्यथा हमारे "चोकीदार" ही हमें लूट ले जाएंगे !

 क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
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Saturday, September 24, 2016

"पाक"से युद्ध चाहने वाले देश भक्त हैं या नहीं चाहने वाले ?? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. - +9414657511

56"का सीना जो आजकल नापने वाले लोग हैं,उनके चाल,चेहरे और चरित्र की परीक्षा-समीक्षा शायद ही किसी पुरूस्कार वापिस करने वाले लेखकों, असहिष्णु बताने वाले अभिनेताओं,कामरेडों और समझदार दिखाई देने वाले पत्रकारों ने करने की कोशिश करि हो !कोशिश इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि ऐसा करने का "दम" तो कभी उनमें था ही नहीं !
                    जब से ये पकिस्तान नाम का देश पैदा हुआ है तभी से इसने हमें ना केवल परेशान किया है बल्कि पूरा-पूरा नुक्सान पहुँचाया है !इसीलिए भारत की जनता ने तो हर उस निर्णय का समर्थन ही किया है, जो इस निकम्मे पडोसी को सबक सिखाने वाला हो ! वो निर्णय चाहे पंडित जवाहर लाल नेहरू ,लाल बहादुर शास्त्री या फिर इंदिरा गांधी जी ने ही क्यों ना लिया हो !ना किसी ने पार्टी देखी और ना ही किसी ने अपना धर्म देखा ! लेकिन बड़े ही अफ़सोस के साथ ये कहना पड़ता है कि भारत में रहने वाले कुछ अफसर,नेता,अभिनेता,बौद्धिक लोगों ने चाहे अनचाहे , सीधे तरीके से या अनैतिक तरीके से पाकिस्तान का धन खाया हुआ है ,  उनकी कोई करतूतें पाकिस्तान के शरारती प्रशासक के पास रिकार्ड पड़ी हैं, जो वो ही कहते बोलते सुनते दिखाई पड़ते हैं जो पाकिस्तान चाहता है !
                          अभी कल ही रविश कुमार युवाओं से पूछते फिर रहे थी कि  से युद्ध होना चाहिए या नहीं ?और यह भी कहते घूम रहे थे की कुछ लोग और टीवी चेनेल वाले युद्ध का उन्माद फैला रहे हैं ! हमारे पास हथियार नहीं हैं हमारे पास पैसा नहीं है !आदि आदि ! वो ये तो कहते हैं कि मोदी जी ने बोला था कि दस सर काट कर लाएंगे या कड़ी कार्यवाही करेंगे , लेकिन ये नहीं कहते कि हम आपका दिल और तन-मन-धन से  समर्थन करेंगे !
                             जनता बेवकूफ नहीं है और नाही हमारे प्रिय प्रधानमंत्री !वो आँख के इशारे से ही दुश्मन का "पेशाब"निकलवा देंगे ! सही समय पर सही कदम अवश्य उठाया जाएगा !टीवी चेनलों की तरह नहीं कि  हम अपने सारे सामरिक भेद टीवी पर बताते फिरें !कोई पनडुब्बियों के प्रोग्राम बनाकर तो कोई विमानों पर प्रोग्राम बनाकर अपने आपको अग्रणी चेनेल होने का दिखावा करता रहता है !
                                 जनता को ऐसे अंदरूनी दुश्मनों से हमेशां सजग रहना पड़ेगा !ये लोग ऐसी ऐसी चालें चलेंगे जैसे ये हमारे हिट की बात कर रहे हों लेकिन ये लोग पकिस्तान की नीतियों को लागू करवाते हैं !

 क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
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Tuesday, September 20, 2016

"मोदी जी !सख्त कदम उठाने से पहले विपक्षियों से लिखित में समर्थन ले लेना "!- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. + 9414657511

भारत की भावुक जनता,मीडिया और नेता आज भी और जब भी पहले कभी भारत के जवान शहीद हो जाते हैं ,तब कड़ी कार्यवाही करने हेतु बड़े जोर-शोर से कहने लगते हैं लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतने लगते हैं वैसे-वैसे तथाकथित "विश्लेषक और विशेषज्ञ"लोग संभावित कठोर कार्यवाही के "साईड-इफेक्ट"बताने लगते हैं और विपक्षी नेता उनकी आड़ में सरकार को चेताने भी लगते हैं !अपना समर्थन देते वक़्त बड़े अगर-मगर लगाने लग जाते हैं ! इसीलिए हमारे अटल जी बॉर्डर पर फौजें भेजकर भी  हमला नहीं कर पाए थे जब संसद पर हमला किया गया था !आज भी हमारे देश में ना जाने कौन कौन से "भेष" में पाकिस्तान के समर्थक छिपे बैठे हैं ! इसलिए मैं भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री जी को सचेत करना चाहता हूँ कि  "मोदी जी !सख्त कदम उठाने से पहले विपक्षियों से लिखित में समर्थन ले लेना "!युद्ध के इलावा जो भी विकल्प हों उनको अवश्य अपनाकर देख लिया जाना चाहिए ! जैसे "हुक्का-पानी बन्द कर देना"!बाकि आप समझदार हो जी !
                      मेरी मित्र लेखिका श्रीमती साधना वैद जी ने प्रधानमंत्री जी से एक मार्मिक अपील आज की है वो आपको भी पढ़नी चाहिए इसीलिए मैं साभार यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ !


एक खत - मोदी जी के नाम



कुछ करिये मोदी जी ! अब तो कुछ करिये ! करोड़ों भारतवासियों की नज़रें आप पर टिकी हैं ! यह चुप्पी साधने का नहीं हुंकार भरने का समय आया है ! इस एक पल की निष्क्रियता सारी सेना का मनोबल और सारे भारतवासियों की उम्मीदों को तोड़ जायेगी ! इतने वीरों के बलिदान को निष्फल मत होने दीजिये ! शान्ति और अहिंसा के नाम पर कब तक हमारे वीर जवान अपनी जानें न्यौछावर करते रहेंगे और दिशाहीन, सिद्धांतहीन और निर्दयी आतंकवादी हमारे घर में घुसपैठ कर हमें तोड़ते रहेंगे ! यदि इस हमले का भी मुँहतोड़ जवाब न दिया गया तो विश्व भर में हमारी साख पर बट्टा लग जाएगा और उरी के वीर सैनिकों का यह बलिदान भी व्यर्थ हो जाएगा ! देश को आपसे बहुत आशाएं हैं ! उन्हें टूटने मत दीजिए ! हमारे वीरों की शाहदत का मान रखिये और शीघ्रातिशीघ्र किसी नतीजे पर पहुँच कर इस समस्या के समाधान के लिए प्रभावी कदम उठाइये ! 

शहीद को सलाम 

मान बढ़ा कर देश का, लौटा वीर जवान
सोया है ताबूत में, करके जाँ कुर्बान !

जान गँवाई वीर ने, जमा शत्रु पर धाक
मातम छाया देश में, हुआ कलेजा चाक !

सीने में हैं गोलियाँ, क्षत विक्षत है देह
जान लुटा कर देश पे, आया अपने गेह !

बाँध कफ़न सिर पर चले, सैनिक वीर जवान
मातृभूमि के वास्ते, करने को बलिदान !


साधना वैद
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Saturday, September 17, 2016

राजनीतिक सत्ता में समाया भारत का लोकतंत्र !!


राजनीतिक सत्ता में देश की जान है तो ये देश के लोकतंत्र का राजनीतिक सच है। जहां संसद में लोकसभा और राज्यसभा के कुल सदस्य 786 हैं। तो देश में विधायकों की तादाद 4120 है। देश में 633 जिला पंचायतों के कुल 15 हजार 581 सदस्य हैं। तो ढाई लाख ग्राम सभा में करीब 26 लाख सदस्य हैं। यानी सवा सौ करोड़ के देश को चलाने वाले यही लोग है, जिनकी तादाद मिला दी जाये ये ये 26,20,487 है। और इससे सौ गुना ज्यादा यानी 36 करोड 22 लाख, 96 हजारलोग गरीबी की रेखा से नीचे हैं। जो उन्हीं गांव, उन्हीं शहरों में रहते हैं जिन गांवों से जिला और शहर दर शहर से लेकर दिल्ली की संसद में बैठने के लिये हर सीट पर औसतन 10 से बारह लोग चुनाव लड़ने के लिये मैदान में उतरते ही हैं। यानी जितने लोग राजनीतिक तौर पर सक्रिय होते है, उनकी तादाद करीब तीन करोड़ 20 लाख तक होती है। और हर चुनाव लड़ने वाले के पीछे अगर दो लोग भी मान लिये जाये तो करीब साढे छह करोड़ लोगों की रुचि राजनीतिक सत्ता पाने की होड़ में जुटने की होती है। यानी देश के लोकतंत्र का दो ही सच है। एक तरफ राजनीतिक सत्ता पाने की होड में सक्रिय छह करोड़ लोगों से चुनाव के वक्त पैदा होने वाला रोजगार। जो गाहे बगा देश के 10 करोड़ लोगों को राजनीतिक कमाई के लिये सक्रिय तो कर ही देता है। और दूसरी तरफ अगर बीपीएल और एपीएल परिवारों के सच को समझें तो 78 करोड़ लोगों की जिन्दगी दो जून की रोटी मिले कैसे, उसी में कटती है। और देश का नायाब सच यह भी है कि मौजूदा वक्त में देश में 80 करोड़ वोटर है । और वोटर सबसे ज्यादा युवा हैं ।  और उसमें सबसे ज्यादा बेरोजगार युवा वोटरों की तादाद है। जिनके लिये देश 10 से 15 हजार रुपये महीने की नौकरी देने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि देश में चपरासी की नौकरी के लिये ग्रेजुएट और इंजीनियरिंग की डिग्री वाले भी अप्लाई कर रहे है। 


यानी देश की राजनीतिक सत्ता में जो शामिल है या फिर राजनीतिक तौर पर जिसने खुद को सक्रिय कर लिया उसे दो जून की रोटी के लिये तरसना नहीं होगा क्योकि राजनीतिक लोकतंत्र देश में सबसे बडा रोजगार है। क्योंकि संसद से लेकर ग्रामसभा में चुनाव लडने के लिये जो पैसा खर्च करने की इजाजत है, वह ना तो समाज से मेल खाता है ना देश की इक्नामी से। लेकिन यही लोकतंत्र है। 30 से 45 दिनो के चुनाव प्रचार के दौर में बकायदा इजाजत है कि कि संसद के चुनाव में 70 लाख रुपये हर उम्मीदवार खर्च कर सकता है । विधानसभा चुनाव में 28 लाख रुपये हर उम्मीदवार खर्च कर सकता है । तो जिला पंचायत चुनाव में 5 लाख रुपये खर्च कर सकता है। और ग्राम सभा में 25 से 40 हजार रुपये तक गर उम्मीदवार खर्च कर सकता है। तो देश में लोकतंत्र का मिजाज ही उस राजनीतिक सत्ता की चौखट पर खड़ा कर दिया गया है जहा पैसा होगा तो राजनीतिक सत्ता का दरवाजा खुलेगा ।  राजनीतिक सक्रियता होगी तो ही रोजगार की जरुरत नहीं होगी । यानी दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्रिक देश भारत का सच यही है कि यहा के राजनेता दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिकी सत्ता से भी रईस है। लेकिन जिस लोकतंत्र को लोगों के लिये संवैधानिक तंत्र बनाकर जीने के अधिकार से जोड़ा गया, वह लोकतंत्र है कहां, ये सवाल 15 सितबंर यानी विश्व लोकतांत्रिक दिवस के दिन खोजना बेदह मुश्किल है। क्योंकि भारत में लोकतंत्र अगर चुनावी राजनीतिक सत्ता में बसता है, तो वह है कितना दागी ये सवाल खुद ही  प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने उठाया था। जब जून 2014 में उन्होंने में संसद में कहा कि साल भर में हर वह सांसद जिस पर कोई मुकदमा चल  रहा है वह अदालत में निपटा कर पहुंचे।

लेकिन ढाई बरस बीत गये और संयोग ऐसा है कि अब उस पर जवाब देने का वक्त आ गया है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और चुनाव आयोग से पूछा है कि क्या दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए? दरअसल, याचिका में कहा गया है कि दागी नेताओं के मामलों की सुनवाई एक साल के भीतर हो और नेता दोषी पाए जाएं तो उन पर आजीवन पाबंदी लगाई जाए। तो अब जवाब मोदी सरकार को देना है कि वो इस मामले में क्या चाहती है। ये सवाल इसलिए अहम है क्योंकि एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि मोदी सरकार में ही 78 में से 24 मंत्री दागी हैं। तमाम राज्यों के 609 में से 210 मंत्री दागी हैं। इनमें 113 मंत्रियों पर तो गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। और देश  की विधानसभाओं में 1258 विधायक दागी हैं। यानी यह राजनीतिक लोकतंत्र का ही कमाल है कि अपराध या भ्रष्टाचार राजनेता करें तो कोई फक्र किसी को
नहीं पड़ता। लेकिन लोकतंत्र के पर्व पर यानी राजनीतिक चुनाव के वक्त यही मुद्दा हर जुबा पर होता है । चाहे चुनाव कही हो अपराध , भ्रष्ट्रचार का जिक्र हर कोई करता है । याद किजिये बीजेपी ने यूपीए के दौर में घोटालो की फेरहिस्त बतायी थी । सत्यम घोटाला ,खाद्यान्न घोटाला ,हसन अली टैक्स चोरी,आदर्श सोसाइटी घोटाला,कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, टूजी स्पैक्ट्रम  घोटाला, कोयला घोटाला,सिंचाई घोटाला । और हर घोटाले पर आवाज बुलंद करते हुए दिल्ली ,से लेकर मुबंई तक में दोषियों को जेल में ठूंसने की बात कही  गई। लेकिन हुआ क्या। और ये सिर्फ मोदी सरकार या केजरीवाल सरकार भर का नहीं है । महाराष्ट्र में तो सिंचाई घोटाले की आवाज सबसे जोर से मौजूदा सीएम देवेन्द्र फडनवीस ने ही उठाई थी । झारखंड में खनन घोटाले की आवाज
मौजूदा सीएम रधुवर दास ने ही उठायी थी । हरियाणा चुनाव में राबर्ट वाड्रा के खिलाफ बीजेपी ने क्या क्या नहीं कहा। लेकिन हुआ क्या। कोई जेल नहीं गया । आरोप प्रत्यारोप ही राजनीतिक सत्ता पाने के तरीके बना दिये गये । और इसे ही लोकतंत्र का राग मान लिया गया ।

और लोकतंत्र कैसे सियासी परिवारों के ताने बाने में उलझ जाता है यह नजारा खुले तौर पर बिहार यूपी में अब नजर भी आ रहा है । यूपी के सीएम अखिलेश परेशान है चचा शिवपाल से । बिहार के सीअम नीतिश कुमार परेशान है सहयोगी आरजेडी के सर्वौसर्वा लालू के राजनीतिक मिजाज से । शिवपाल खडे है अमर सिंह के साथ जिसे अखिलेश पचा नही पा रहे है । तो लालू खड़े है शहाबुद्दीन के साथ, जिसे नीतिश पचा नही पा रहे हैं। दोनों का दर्द अपने अपने तरीके से छलक रहा है। लेकिन यूपी के 20 करोड़ और बिहार के 10 करोड़ लोगों के सामने कौन सी मुश्किल है, इस पर जद्दोजहद करने की जगह दोनो ही उलझे हैं अपनी अपनी सत्ता को बेदाग बताने में । यानी सत्ता के परिवारों के लिये अपना लोकतंत्र और जनता का लोकतंत्र अलग । क्योकि बिहार यूपी के तीस करोड लोगों के दर्द को समझे तो शिक्षा, स्वास्थ्य , बिजली, पानी, उघोग हर क्षेत्र में दोनों राज्य इतने फिसड्डी
है कि देश के 29 राज्यो की फेहरिस्त में दोनों ही राज्यो की हालत हर क्षेत्र में बीस के उपर ही है । मसलन शिक्षा के क्षेत्र में यूपी का नंबर 23 वां है तो बिहार 29 वे नबंर पर । बिजली में यूपी 24 वें नंबर है तो बिहार 29 वें नंबर पर । पीने के पानी में यूपी का नंबर 28 वा है तो बिहार का नंबर 26 वां । उघोग के क्षेत्र में यूपी 22 वें नंबर है तो बिहार 25 वें नंबर पर । हेल्थ में यूपी 25 वें नंबर पर है तो बिहार 24 वेम नंबर पर । यानी न्यूनत जरुरतों से भी यूपी बिहार के लोग महरुम है । लेकिन लोकतंत्र का जामा पहनकर दोनों राज्यों की राजनीतिक सत्ता इसी में खोयी है कि कैसे सरकार बनी रहे या कैसे चुनाव में जीत मिल जाये क्योंकि लोकतंत्र का मतलब ही देश में राजनीतिक चुनाव को माना गया है। तो दुनिया में अबूझ लोकतंत्र के इस मॉडल को बिना देखे-समझे ही संयुक्त राष्ट्र ने 15 सितंबर को विश्व लोकतांत्रिक दिवस करार दे दिया। तो ठहाके लगाइये !

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...