Tuesday, September 9, 2014

सूरतगढ़ के चेयरमैन का चुनाव सीधे जनता करेगी या फिर नवनिर्वाचित पार्षद ? स्वयं के विवेक से निर्णय लेने वाली होगी हमारी अगली चेयरमैन या फिर अपने पति की रबड़ स्टेम्प बनेगी हमारी " भाग्यविधाता " ???

हमारे प्रिय शहर  सूरतगढ़ की जनता आगामी  नवम्बर माह में अपने शहर की देख-रेख  और आवश्यक सुविधाएँ जनता को मिलती रहें , इस हेतु अपने 35 पार्षद एवँ एक अदद महिला चेयरमैन चुनेगी जो सामान्य वर्ग से होगी ! ऐसा हमारी क़ानून व्यवस्था कहती है !
                            लेकिन वो वर्ग जो आरक्षण  में आते हैं , जो सीट उनके लिए आरक्षित होती है वहां से सामान्य वर्ग वाला चुनाव नहीं लड़ सकता , लेकिन वो सब सामान्य वर्ग में चुनाव लड़ सकते हैं ! ऐसा हमारा संविधान कहता है जो हमेशा " न्याय "करता है !! यानी कि वो हमारे घर बना हुआ हलवा खा सकते हैं हम उनके घर का हलवा नहीं खा सकते ! क्योंकि हमारे नेताओं का कहना है कि हमारे बुज़ुर्गों ने उनके घरका " हलवा " कई वर्षों तक खाया था ! इसलिए कानूनन आयक्षित जाति की महिला भी हमारी आगामी चेयरमैन हो सकती है !
                  ये सब पहले हमारे राजनितिक दलों के नेता तय करेंगे ! जिसको वे " उचित " मानेंगे उसे ही बड़े नेता अपनी टिकेट देंगे , फिर उनमे से ही किसी एक को जनता चुनेगी ! राजनितिक दलों के लीडर ही देखेंगे कि  किस महिला को नगरपालिका के कानूनो-नियमों का ज्ञान है ?? कौन सी महिला नेतृत्व की क्षमता रखती है ??कौन वो  महिला होगी जो दलगत राजनीती से ऊपर उठ कर सारे सूरतगढ़ की भलाई हेतु कार्य करेगी ???कौन वो महिला होगी जो सभी पार्षदों को महत्त्व देगी ??
                  क्या - - -क्या  - -  - क्या ?? मैं पागल होगया हूँ ?? क्या कह रहे हो आप ?? हमारे लीडर लोग ये सब सोचकर किसी को हमारा प्रत्याशी कभी नहीं बनाते ?? वो तो उसी को हमारा प्रत्याशी  जो उनके कहे अनुसार ही चले .....?? पिछले सभी चेयरमैन ऐसे ही थे ?? नहीं जी , नहीं जी, ऐसा नहीं है नेता नहीं तो जनता तो अच्छे आदमी को ही चुनती है ना ?? क्या कहा ??? वो भी सही आदमी को नहीं चुन पाती ?? जनता की भी कई मजबूरियां हो जाती हैं ??वोटर भी अपना वोट अच्छे आदमी या ओरत को देखकर नहीं बल्कि उसका धर्म-जाति -इलाका-और पार्टी देखकर देता है ! तो फिर लेखक जी आप अच्छे चेयरमैन या पार्षद चुने जाने की कल्पना भी कैसे कर रहे हो ??? इसलिए पागल ही हुए ना आप ??
                  इस कलयुग में चुनाव सिर्फ पैसा बनाने हेतु ही लड़ा जाता है !! देखलो अपने शहर के पूर्व पार्षदों और चेयरमैनों को !! सब नहीं तो ज्यादातर चुनाव जीतने के बाद ही अमीर हुए हैं  !! इंजीनियर होने के बाद भी सूरतगढ़ का आज ये हाल है !! सड़कों - नालियों का लेवल तक सही नहीं है !!एक दो पार्षदों को छोड़ दें तो कोई भी नगरपालिका के क़ानून और कार्यवाही कैसे चलती है ये नहीं जानता !! 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी !! नयों से क्या आस की जा सकती है ये आप ही सोच-समझ लो यारो !!
                   होना तो ये चाहिए कि जो भी हमारा चेयरमैन चुनकर आये पहले वो नगरपालिका सम्बन्धी सभी कानून सीखे , कार्यवाही कैसे सही चले , ये सीखे ! बाद में अपने पार्षदों को भी 5 - 7 दिनों की कार्यशाला में भेजे ! फिर एक विस्तृत योजना नगर हेतु सभी की सहमति से बने , तत्पश्चात उन योजनाओं पर 5 वर्षों तलाक काम चले ! तब तो सूरतगढ़ का कुछ भला हो सकता है अन्यथा हर बार वो ही नतीजा आएगा कि ढोल के तीन ....??
                 अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है !! सूरतगढ़ की जनता अगर सोच ले कि जो लोग पिछले 3 - 4 महीनो से पैसे के बल पर अपनी जीभ लप -लपा रहे हैं और गुणीजनों को अपनी मक्कारी और चतुराई से आगे नहीं आने दे रहे हैं , उनको कड़ा सबक सीखा सकती है !! ऐसी चिंगारी जनता के मन में उठ भी रही है , ये मैं साफ़-साफ़ अनुभव कर रहा हूँ !!
                  अगर हमने अभी इस बारे में नहीं सोचा तो फिर हम सबको पछताना पड़ेगा !! इसलिए  - जाग - जाओ !! सूरतगढ़ वासियो !! क्योंकि जो जागत हैं वो ही पावत हैं !! जी !! 
                   वैसे हमारे सूरतगढ़ में ज्ञानवान महिलाओं की कोई कमी नहीं है !! लेकिन राजनीती का चरित्र देखते हुए , ज्यादातर शिक्षित परिवार अपनी बहु-बेटियों को इस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ाते ! चन्द महिलाओं के नाम मैं आपको सुझा रहा हूँ  - जैसे कि  :- श्री मति आरती शर्मा , श्री मति राजेश सिडाना, श्री मति रजनी मोदी , श्री मति हर्ष तनेजा ,श्री मति सुनीता टण्डन ,श्री मति रेखा धुआ ,श्रीमती पार्वती देवी धानुका ,श्री मति मीराँ ,श्रीमती परमिन्द्र कौर बेदी , श्रीमती विमला शर्मा , श्रीमती सुनीता शर्मा वार्ड नंबर 10 ,और  श्रीमती वनिता पारीक आदि कई महिलाएं हैं जो बढ़िया काम कर सकती हैं !  
             अभी कई और परिवारों के मुखियों से बातचीत चल रही है ! हो सकता है कोई बिलकुल नया नाम ही सूरतगढ़ की जनता के सामने आ जाये जैसे कि श्रीमती काजल छाबड़ा या कोई महिला चोपड़ा परिवार से भी आ सकती है इंटबार कीजिये !
              अभी -अभी  ये समाचार भी आरहा है की चेयरमैन के चुनाव सीधे द्वारा भी हो सकते हैं तो फिर परिस्तिथियाँ फिर करवट ले सकती हैं !! 
            आगे-आगे देखिये होता है क्या ??????
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"सूरतगढ़ में सभी राजनितिक दलों के बड़े नेता अपने कार्यकर्ताओं को बन्धुआ मजदूर समझते हैं और धनाढ्यों की कठपुतलियाँ स्वयं बने हुए हैं "- पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विचारक )



सूरतगढ़ के नगरपालिका चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आते जा 

रहे हैं ,वैसे-वैसे शहर का राजनितिक तापमान बढ़ने  लगा है 

! इस छोटे से जनप्रतिनिधि के पद का चुनाव लड़ने हेतु 

किसी ना किसी राजनितिक दल का टिकेट  अत्यंत 

आवश्यक समझा जाता है क्योंकि टिकेट मिलने के बाद 

100 वोटों में से 20 से 40 वोट स्वतः ही उसके खाते में 

जुड़ जाते हैं !!वैसे भी जो कार्यकर्त्ता जिस पार्टी के साथ जुड़ा 

हुआ होता है वो उसी पार्टी की टिकेट मांगता है !! 

                 अब हर राजनितिक दल में कई नेता होते हैं , 

सब ऐसे दिखाते हैं की बस उन्ही की ही पार्टी में चलती है , 

इसलिए बेचारा टिकटार्थी सभी के आगे अपना सर नवाता 

फिरता है ! इसी आस में कि क्या पता इसको निवेदन करने 

पर टिकेट मिल जाए !लेकिन सभी नेता उसे वार्ड में जाकर 

पार्टी का प्रचार करने और अपना प्रभाव बढ़ाने और दिखाने 

का कहकर चलता करते हैं !  जो काम बड़े नेताओं का होता है 

उसे वो अदना सा कार्यकर्त्ता दिखाई पड़ता है तो वार्ड के 

निवासी भी मज़े ले-ले कर उसे ही समर्थन देने का वायदा 

करते हैं ! बस इसी चक्करघिन्नी से तंग आकर वो अपने 

नेतृत्व को ही चुनौती दे देता है ! कहता है की मैं देख लूँगा 

निर्दलीय चुनाव लड़ कर आपको भी दिखा दूंगा !!


                दूसरी तरफ देखने में आ रहा है की सूरतगढ़ में 

आप पार्टी तो अपना आधार भी नहीं बना पायी है और बसपा 

का संगठन बेहद कमज़ोर है ! कम्युनिस्ट पार्टी भी 3 से 

ज्यादा व्यक्तियों को चुनाव में नहीं उतार पाती !! उधर शिव 

सेना भाजपा का समर्थन करते-करते ही थक जाती है 

इसलिए सारे वार्डों में अपने प्रत्याशी खड़े करना और उनको 

जितवाने  का मादा रखना इस सभी दलों हेतु दूर की कोडी हैं 

!! धन की व्यवस्था भी इनका प्रादेशिक नेतृत्व नहीं कर 

पाता , वो तो खुद इनकी ही मदद पर चलते हैं ! ये सारे दल 

मिलकर सूरतगढ़ में अपने 5 पार्षद भी नहीं जीता पाएंगे !


                क्योंकि जनता भी अब दो बड़े राजनितिक दलों 

पर ही भरोसा करती है ! और वो हैं कांग्रेस और भाजपा ! 

दोनों की कार्यशैली भी एक जैसी है ! ये हर स्तर पर बड़े 

व्यपारियों पर ही ज्यादातर निर्भर रहती हैं कहने को तो ये 

कार्यकर्ताओं के तन-मन-धन पर चलती हैं , लेकिन जो 

भव्यता इनकी चुनावी रैलियों और सभाओं में नज़र आती हैं 

वो कुछ और ही कहानी कहती हैं !अभी जो 4 पार्षद विधायक 

जी की सहमति से मनोनीत हुए हैं उन नामों पर अगर अपनी 

गहन दृष्टि हम डालेंगे तो समझ में आ जायेगा ! 


               कांग्रेस पार्टी तो जब से बनी है तभी से इसमें 

अमीरों का ही बोलबाला रहा है ! सूरतगढ़ की बात करें तो 

यही सच लगता है ! यंहा पहले इक़बाल मुहम्मद जी अपना 

अनुभव यंहा की जनता को दिखाया जिसका नतीजा ये है की 

आज हर व्यक्ति पार्षद बन कर धन कामना चाहता है  और 

अब बनवारी लालजी ने अपना अनुभव दिखाया है ! 

इंजिनियर होने के बाद भी शहर की कोई नाली और सड़क 

लेबल में नहीं है !पूर्व विधायक श्री गंगाजल जी के साथ 

उनके सुपुत्र अपनी कार्यशैली दिखागए ! जनता ने उन्हें पसंद 

नहीं किया तो अब वो पूर्व जिला प्रमुख जो भाजपा की मदद 

से बने थे श्री पृथ्वी मील जी  को ले आये ! लेकिन कांग्रेस 

ज्वाइन करने के बाद  पिछले विधायक चुनावों में उनका 

जादू भी नहीं चल पाया ! क्या पता पालिका चुनावों में चल 

जाए ! लेकिन ये भी अपने पास के अमीर लोगों के परिवार 

की महिलाओं को ही चेयरमैन देखना और बनाना चाहते हैं !

ऐसा सुनने में आया है ! सच्चाई कितनी है वो राम ही 

जानता है !


                यही हाल सूरतगढ़ में भाजपा का है ! इसके 

प्रादेशिक नेतृत्व को भी अमीर लोगों के बीच बैठना ही पसंद 

है ! नगर मंडल अध्यक्ष और चेयरमैन दोनों रईस लोग ही 

बनेंगे ! सामान्य परिवार तो बस भागते दौड़ते ही नज़र 

आएंगे ! किसी भी दाल के बड़े नेता को इतनी फुर्सत नहीं है 

की वो सभी वार्डों में जाए और अपने कार्यकर्ताओं को 

सांत्वना दे , दिलासा दे और विश्वास दे कि उनके साथ न्याय 

होगा धोखा नहीं ! को टिकेट का असली दावेदार होगा उसको 

ही उम्मीदवार बनाया जायेगा !!

                 पिछले 5 वर्षों में सूरतगढ़  शहर में इतनी 

चोरियां हुईं,लड़ाइयां हुईं, भ्र्ष्टाचार हुआ लेकिन किसी पार्टी के 

पार्षद ने आवाज़ नहीं उठाई और नाही किसी राजनितिक दल 

ने कोई पुख्ता किसी घटना  को लेकर कोई आंदोलन ही 

किया ! सिर्फ जनरल तरीके से ही भाषण दिए जाते रहे !

कौन है जिम्मेदार इसका ?? क्या जनता दोषी है इस सबकी 

??या फिर बेचारा पिस्ता हुआ कार्यकर्त्ता जो जनता और नेता 

के बीच में फंसा हुआ है !!

             आजकल राजनीती सेवा करना नहीं बल्कि अमीरों 

का शुगल बन गयी है ! जो जायज़-नाजायज़ तरीके से धनि 

हो जाता है तो उसे कोई राजनितिक पद पाने की " खारिश " 

होने लगती है और वो किसी नेता को 20 - 50 लाख चंदा 

देकर विधायक बना  देता है और स्वयं या उसके किसी 

परिवार के सदस्य को चेयरमैन बनता हुआ देखना चाहता है 

! यही पूरे देश की कहानी है और यही हमारे सूरतगढ़ की 

कथा है जो सुनी सुनाई बातों पर आधारित है , कृपया कोई 

दिल पे मत ले धन्यवाद !! 






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पीताम्बर दत्त शर्मा,
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जिला-श्री गंगानगर।
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
   

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