नेहरु खानदान की चौथी पीढ़ी अगर यह सोचकर कांग्रेस की कमान संभालने की तैयारी कर रही है कि वह देश की कमान भी संभाल लेगी या जनता राहुल गांधी के हाथ में देश की बागडोर सौप देगी तो इससे ज्यादा बड़ा कोई सपना मौजूदा वक्त में हो नहीं सकता है। क्योंकि कांग्रेसियों को नहीं पता है कि उसे सर्जरी करनी भी है तो कहां करनी है। वोट बैंक तो दूर खुद बिखरे कांग्रेसियों को ही कांग्रेस कैसे जोड़े इस सच से वह दूर है। फिर आजादी के दौर के बोझ को लिये कांग्रेस मौजूदा सबसे युवा देश को कैसे साधे इसके उपाय भी नहीं है । इसीलिये कांग्रेस को लेकर सारी बहस कमान संभालने पर जा ठहर रही है। यानी सोनिया और राहुल के बीच फंसी कांग्रेस। यानी अभी सोनिया गांधी के हाथ में कमान है तो गंठबंधन को लेकर कांग्रेस लचीली है। सहयोगी भी सोनिया को लेकर लचीले हैं। अगर राहुल गांधी के हाथ में कमान होगी तो राहुल का रुख सहयोगियों को लेकर और सहयोगियों का कांग्रेस को लेकर रुख बदल जायेगा। तो क्या कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी से बड़ा कोई सवाल नहीं है। और राहुल गांधी के सामने कांग्रेस के सुनहरे युग को लौटाने के लिये खुद के प्रयोग की खुली छूट पाने के अलावा कोई बड़ा सवाल नहीं है। या फिर पहली बार गांधी परिवार फेल होकर पास होने के उपाय खोज रहा है । यानी गांधी परिवार को लेकर कांग्रेस में इससे पहले कोई सवाल नेहरु इंदिरा या राजीव के दौर में जो नहीं उठा वह सोनिया के दौर में राहुल गांधी को लेकर उठ रहे हैं। तो यह कांग्रेस की नही गांधी परिवार के परीक्षा की घड़ी है । लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई कांग्रेस बदलने को तैयार है। राहुल गांधी भी कांग्रेस के संगठन में ऐसा कोई परिवर्तन करने को तैयार है जिससे में नये चेहरे,नयी सोच, नये विजन का समावेश हो। क्योंकि कांग्रेसी कद्दावर नामों को ही देखिये। चिदंबरम, एके एंटोनी ,कपिल सिब्बल ,जयराम रमेश,आनंद शर्मा, अंबिका सोनी , गुलाम नबीं आजाद , आस्कर फर्नाडिस, चिरंजीवी, रेणुका चौधरी, पीएल पूनिया, व्यालार रवि। यह सभी चेहरे मनमोहन सिंह के दौर में उनके कैबिनेट मंत्री रहे हैं। और सभी मौजूदा वक्त में राज्य सभा में हैं। तो फिर कांग्रेस में बदला क्या है या बदलेगा क्या।
क्योंकि एक तरफ सत्ता में रहते हुये गांधी पारिवार बदलते हिन्दुस्तन की उस नब्ज को पकड़ नहीं पाया जहा जनता की नुमाइन्दगी करते हुये जनता के प्रति कोई जिम्मेदारी कांग्रेसी नेता-मंत्रियों की होनी चाहिये। तो दूसरी तरफ जनता के बीच गये बगैर गांधी परिवार के घर या किचन के चक्कर लगाकर कैसे मंत्री बनकर कद बढाया जाता है इस सिद्धांत को कांग्रेस ने पाल पोसकर बढा कर दिया । और असर उसी का हुआ कि पसीना बहाकर कांग्रेस के लिये गांव गांव में खडा हुआ वोट क्लेक्टर कांग्रेस से ही निराश हो गया । नेता के पीछे कार्यकर्ता गायब हुआ तो 10 जनपथ की चाकरी से ही नेता को कद मिलने लगा । गांधी परिवार के इर्द-गिर्द का काकस सबसे ताकतवर कांग्रेसी नेता हो गया । यानी जो सवाल बार बार हर कांग्रेसी को परेशान करता है कि आखिर गांधी परिवार का औरा खत्म क्यों हो गया। या देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का सूपड़ा प्रांत दर प्रांत साफ क्यों होते चले जा रहा है। वह उन सवालो के मर्म से दूर है कि आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक या किसानों के भीतर भी बदलाव आया लेकिन कांग्रेस नहीं बदली। कांग्रेस के पांरपरिक वोटर के सरोकार सूचना तकनालाजी से बदल गये। लेकिन कांग्रेस नहीं बदली। यानी नेहरु की चौथी पीढ़ी राहुल गांधी के तौर पर सामाजिक-आर्थिक आधारो पर नहीं बदली लेकिन देश के किसान मजदूर, दलित अल्पसंख्यकों की चौथी पीढी ना सिर्फ बदली बल्कि मुख्यधारा में आने की उसकी छटपटाहट कहीं तेज हो गई। लेकिन कांग्रेस के भीतर विरासत की सत्ता से आगे राजनीति निकल नहीं पायी। इसीलिये यह सवाल बड़ा है कि क्या वाकई कांग्रेस का ट्रांसफारमेशन सोनिया से राहुल के पास सत्ता जाने भर से हो जायेगा । या फिर यब ऐसा दांव है जिसे खेलना मजबूरी है। ना खेलना कमजोरी है। तो इंतजार कीजिये राहुल एरा की शुरुआत का। क्योंकि उसकी पहली परीक्षा तो यूपी में होगी। और माना तो यही जा रहा है कि यूपी चुनाव से पहले राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन जायेंगे और यूपी की बिसात पर मोदी और राहुल के शह-मात का खेल 2019 के चुनाव की लकीर तय कर देगा।
यानी जिस आरक्षण के सवाल ने यूपी की राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी को हाशिये पर ढकेल दिया। मुलायम-मायावती के सामाजिक समीकरण को तोड पाने में असफल हो गये । 25 बरस बाद उसी यूपी की राजनीति बिसात पर बीजेपी-कांग्रेस को बताना है कि वह कैसे एक दूसरे से बडे राजनीतिक दल है और मोदी-राहुल को दिकानाहै कि वह कैसे मुलायम-मायावती से बडे क्षत्रप हैं। ध्यान दें तो यूपी में मोदी की बिसात बिछने लगी है। जिसमें पिछडी जाति के मौर्य प्रदेश अध्यक्ष तो ब्रहमण शिवप्रताप शुक्ला राज्यसभा और जाट मेता भूपेन्द्र सिंह को विधान परिषद में भेजा। अगली कड़ी में शिवप्रताप शुक्ला के धुर विरोधी योगी आदित्यनाथ को केन्द्र में मंत्री बनाने की तैयारी हो रही है तो राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के जरीये यूपी में टिकटो पर आखरी मुहर की कवायद । यानी बीजेपी सोशल इंजीनियरिंग के हर उस माप दंड को परख रही है जिसे एक वक्त गोविन्दाचार्य ने उठाया और जिसे कल्याण सिंह ने आजमाया। तो दूसरी तरफ राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को ही मथने के लिये तैयार है। कांग्रेस महासचिव , सचिव , राज्य प्रमुख और विभाग प्रमुख को बदलने के लिये तैयार है । पंचमडी शिविर की तर्ज पर मंथन शिविर की तैयारी यूपी चुनाव से पहले यूपी में ही करने की तैयारी है । लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वाकई राहुल गांधी अब वोटरो से सीधा सरोकार चाहते है । क्योकि कांग्रेसी कार्यकर्ता तो सडक पर निकलने को तैयार है लेकिन वह बिना आधार वाले या भ्रष्ट कांग्रेसियो के पीछे भीड के रुप में खडे होने को तैयार नहीं है । तो आखरी सवाल यही कि जिस दौर में हिन्दुस्तान सबसे युवा है उस दौर में राहुल ही कांग्रेस में एकमात्र युवा रहेंगे या कांग्रेस भी युवा होगी ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-06-2016) को "मन भाग नहीं बादल के पीछे" (चर्चा अंकः2363) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'