माननीय मुलायम सिंह जी का "मान"अभिमान बनकर सामने एकबार फिर से आ गया है !चचा शिवपाल और अमर सिंह जी हमेशां की तरह दोषी ठहराए जा रहे हैं !तो रामगोपाल यादव जी भतीजे के साथ जाँघों पर हाथ मारकर "दंगल" को तैयार खड़े हैं ! आजमखान जी अपनी डूबती लुटिया को बचाने हेतु अतीक अहमद के इशारे पर "सेकुलर ताकतों "को मजबूत करने वास्ते अखिलेश को एक बार फिर मुलायम जी के चरण पकड़वाकर माफ़ी मंगवाने हेतु ले गए हैं !
देखते हैं "ऊँट किस करवट बैठता"है जी !लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि "समाजवादी"बड़ी ही "चतुराई"से काम ले रहे हैं !जनता और बाकी की राजनितिक पार्टियां शायद "गच्चा" खा जाएँ !"अंदर की बात"ये है कि ये सब एक नाटक का हिस्सा है जो शोर शराब जनता को पत्रकारों के ज़रिये दिखाया जा रहा है !असल में इनका मानना है कि जितनी सीटें समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर मिल जाएँ वो भलीं, और बाकी की कमीं अखिलेश और कोंग्रेस से समझौता-गठबंधन करके मिलजाएं वो और ज्यादा बेहतर होगा ! यानिकि "चित भी मेरी और पट भी मेरी", दोनों हाथों में लड्डू होंगे जब विरोध के वोट अखिलेश को और समर्थन वाले मुलायम को मिल जाएंगे !बाप-बेटे में समझौता तो कभी भी हो सकता है जी !
चूहे-चुहियाँ यानिकि "समर्थक" तो पीछे आ ही जाएंगे जिंदाबाद करने को !बाकी रही बात समाजवाद के नियमों की , सिद्धांतों की ,वो तो सब कागज़ी बातें हैं जी, बातों का क्या ?आजकल राजनीती में भी वो ही कामयाब है जो सबसे बड़ा "ड्रामेबाज़ और सफल अभिनेता" हो !ये सभी नेता कोंग्रेस की ही पैदाइश हैं !
"चूहे-चुहियों"का ज़िक्र हमारे मोदी जी ने भी बड़े चटकारे ले कर किया है जी !वो भी कहते हैं कि मैंने तो देश का "माल"खाने वाले चूहों को ही पकड़ना था !वो किसी को शायद "चुहिया"भी कह रहे थे ! पता नहीं किसे ???कुछ का मानना है कि उनका ईशारा सोनिया जी की तरफ था !लेकिन मैं ये मानने को तैयार नहीं कि मोदी जी "बड़े-बड़े चूहों"को छोड़कर अपना ध्यान एक "चुहिया" पर केंद्रित करेंगे !या फिर उस "चुहिया" के कहने पर ही "मोटे-चूहों" की हिम्मत हुई देश का धन खाने हेतु?
बात जनता की है , वो कहाँ जाए?अपनी मुसीबतें किसे सुनाये?क्या वो केवल "कृपा-पात्र"बनकर ही अपना जीवन व्यतीत करती रहे ?क्या यही उसके भाग्य में है ?मुझे बचपन में पढ़ी "पुनः मूषको भव" वाली कहानी याद आ रही है जी !जिसमें एक चुहिया को ऋषि का कोई "वरदान"भी फिट नहीं बैठता , आखिर में वो वापिस चुहिया ही बन जाती है !क्या हमें भी उसी तरह से "बेईमानी" से ही अपना जीवन चलना होगा ?जो कोंग्रेस ने हमें 60 सालों में सिखाया है ?क्या भगवान् विष्णु के 24 अवतार ,हज़ारों सच्चे गुरुओं की शिक्षा और लाखों ग्रंथों की बातों का हमपर कोई असर नहीं होगा ? बात सोचने वाली है हज़ूर !!
चोर शरेआम ये गीत गाकर हमारा मजाक उड़ा रहे हैं कि "अजी हमसे बचकर कहाँ जाइयेगा,जहां जाइयेगा , हमें पाइयेगा "...................!!!!!
"5th पिल्लर करप्शन किल्लर" "लेखक-विश्लेषक पीताम्बर दत्त शर्मा " वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511
देखते हैं "ऊँट किस करवट बैठता"है जी !लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि "समाजवादी"बड़ी ही "चतुराई"से काम ले रहे हैं !जनता और बाकी की राजनितिक पार्टियां शायद "गच्चा" खा जाएँ !"अंदर की बात"ये है कि ये सब एक नाटक का हिस्सा है जो शोर शराब जनता को पत्रकारों के ज़रिये दिखाया जा रहा है !असल में इनका मानना है कि जितनी सीटें समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर मिल जाएँ वो भलीं, और बाकी की कमीं अखिलेश और कोंग्रेस से समझौता-गठबंधन करके मिलजाएं वो और ज्यादा बेहतर होगा ! यानिकि "चित भी मेरी और पट भी मेरी", दोनों हाथों में लड्डू होंगे जब विरोध के वोट अखिलेश को और समर्थन वाले मुलायम को मिल जाएंगे !बाप-बेटे में समझौता तो कभी भी हो सकता है जी !
चूहे-चुहियाँ यानिकि "समर्थक" तो पीछे आ ही जाएंगे जिंदाबाद करने को !बाकी रही बात समाजवाद के नियमों की , सिद्धांतों की ,वो तो सब कागज़ी बातें हैं जी, बातों का क्या ?आजकल राजनीती में भी वो ही कामयाब है जो सबसे बड़ा "ड्रामेबाज़ और सफल अभिनेता" हो !ये सभी नेता कोंग्रेस की ही पैदाइश हैं !
"चूहे-चुहियों"का ज़िक्र हमारे मोदी जी ने भी बड़े चटकारे ले कर किया है जी !वो भी कहते हैं कि मैंने तो देश का "माल"खाने वाले चूहों को ही पकड़ना था !वो किसी को शायद "चुहिया"भी कह रहे थे ! पता नहीं किसे ???कुछ का मानना है कि उनका ईशारा सोनिया जी की तरफ था !लेकिन मैं ये मानने को तैयार नहीं कि मोदी जी "बड़े-बड़े चूहों"को छोड़कर अपना ध्यान एक "चुहिया" पर केंद्रित करेंगे !या फिर उस "चुहिया" के कहने पर ही "मोटे-चूहों" की हिम्मत हुई देश का धन खाने हेतु?
बात जनता की है , वो कहाँ जाए?अपनी मुसीबतें किसे सुनाये?क्या वो केवल "कृपा-पात्र"बनकर ही अपना जीवन व्यतीत करती रहे ?क्या यही उसके भाग्य में है ?मुझे बचपन में पढ़ी "पुनः मूषको भव" वाली कहानी याद आ रही है जी !जिसमें एक चुहिया को ऋषि का कोई "वरदान"भी फिट नहीं बैठता , आखिर में वो वापिस चुहिया ही बन जाती है !क्या हमें भी उसी तरह से "बेईमानी" से ही अपना जीवन चलना होगा ?जो कोंग्रेस ने हमें 60 सालों में सिखाया है ?क्या भगवान् विष्णु के 24 अवतार ,हज़ारों सच्चे गुरुओं की शिक्षा और लाखों ग्रंथों की बातों का हमपर कोई असर नहीं होगा ? बात सोचने वाली है हज़ूर !!
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