चलो ! आज बच्चों की बात करते हैं ! मेरे एक पाठक ने मेरे स्वतंत्र टिप्पणीकार होने पर शंका जाहिर कर दी थी ,तो मैंने उन्हें उचित उत्तर दे दिया और वो संतुष्ट भी हो गए !लेकिन मेरे मन में ये ख्याल आया कि जब भी हम बड़ों की बात करेंगे तो कभी कभी ना चाहने पर भी ,किसी की तरफ झुकाव हो ही जाता है !मैं अपनी आंशिक गलती मानते हुए आज बच्चों के बारे में ही कुछ लिखना चाहता हूँ !आशा है कि आप सब इसे भी सराहेंगे !पहले तो एक परिवार में ही बच्चों के अंदर हर बात को लेकर एक प्रतियोगिता सी हो जाती थी !बच्चे अक्सर आपस में लड़ते-झगड़ते हुए हिंसक भी हो जाया करते थे !उनके माता-पिता तथा अन्य रिश्तेदारों के दिलो-दिमाग में भी हर बच्चे का अलग-अलग स्थान हुआ करता था !बड़ों के इस "पूर्वाग्रह"को बदलना बच्चों के लिए एक बड़ा काम हुआ करता था !ऐसा ही कुछ फिर विद्यालयों में ,समाज मे और अन्य समूहों में भी होता था !
लेकिन जहां पहले एक परिवार में 12से 15तक बच्चे हुआ करते थे ,फिर 4-5 होने लगे,फिर सरकार ने एक नारा दिया ,"दो या तीन बच्चे,होते हैं घर में अच्छे"!!जैसे जैसे महंगाई बढ़ी तो सारा नजला बच्चे पैदा करने पर ही पडा !मुझे याद है वो ज़माना जब नसबंदी के ओपरेशन ज्यादा करने पर अफसरों डाक्टरों को इनाम दिया जाता था और कम होने पर विभागीय सज़ा देने का प्रावधान होने लगा !उधर "नर्सिंग-होम"की संस्कृति ने भी भारत में पैर पसारने शुरू कर दिए !तो भारत में नया नारा परिवारों को छोटा करने लगा !वो ये था कि "बच्चे !! दो ही अच्छे ! तर्क दिए जाने लगे कि कम बच्चे पैदा करने पर आप अपने बच्चों को सभी सुविधाएँ ज्यादा दे पायेंगे !लेकिन हुआ इसका बिलकुल उल्टा ,आज भारत में गुनिजन कम और दुर्जन लोग ज्यादा हो गए हैं !\
कारण बच्चों के दिमाग पर विभिन्न पर्त्योगिताओं में अव्वल आने का बोझ !स्टेज शो जितने का बोझ और फिर नोकरियां पाने का बोझ !इतने बोझ भला कोई कैसे झेल सकता है ?सभी तो नहीं झेल सकते ना !सभी तो सौ प्रतिशत अंक नहीं पा सकते , सभी तो बड़े अफसर नहीं बन सकते ना !ऐसे माहोल से आदमी टूट सकता है ,बीमार हो सकता है !अतः आप सबसे निवेदन है किआप जितना हो सके अपने बच्चों को ऐसे तनावों से मुक्त रखने का प्रयास करें !उन्हें इतना समय तो अवश्य दें ,जितने समय में वो अपने आपको सहज महसूस कर सकें !बाकि आप माँ-बाप हैं जी ! आप भी तो समझदार हैं !आप जिन दुराग्रहों से गुजर चुके हैं ,कम सेकम उन्हें तो उनसे बचाएं !अंत में एक सुंदर से गीत की पंक्ति याद आ रही है आप भी गुनगुनाइए ...."राम करे ऐसा हो जाए , मेरी निंदिया तोहे मिल जाए !मैं जागूं......तू सो जाए ,तू सो जाए .......हो हो !!!
"5th पिल्लर करप्शन किल्लर", "लेखक-विश्लेषक", पीताम्बर दत्त शर्मा ! वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511
लेकिन जहां पहले एक परिवार में 12से 15तक बच्चे हुआ करते थे ,फिर 4-5 होने लगे,फिर सरकार ने एक नारा दिया ,"दो या तीन बच्चे,होते हैं घर में अच्छे"!!जैसे जैसे महंगाई बढ़ी तो सारा नजला बच्चे पैदा करने पर ही पडा !मुझे याद है वो ज़माना जब नसबंदी के ओपरेशन ज्यादा करने पर अफसरों डाक्टरों को इनाम दिया जाता था और कम होने पर विभागीय सज़ा देने का प्रावधान होने लगा !उधर "नर्सिंग-होम"की संस्कृति ने भी भारत में पैर पसारने शुरू कर दिए !तो भारत में नया नारा परिवारों को छोटा करने लगा !वो ये था कि "बच्चे !! दो ही अच्छे ! तर्क दिए जाने लगे कि कम बच्चे पैदा करने पर आप अपने बच्चों को सभी सुविधाएँ ज्यादा दे पायेंगे !लेकिन हुआ इसका बिलकुल उल्टा ,आज भारत में गुनिजन कम और दुर्जन लोग ज्यादा हो गए हैं !\
कारण बच्चों के दिमाग पर विभिन्न पर्त्योगिताओं में अव्वल आने का बोझ !स्टेज शो जितने का बोझ और फिर नोकरियां पाने का बोझ !इतने बोझ भला कोई कैसे झेल सकता है ?सभी तो नहीं झेल सकते ना !सभी तो सौ प्रतिशत अंक नहीं पा सकते , सभी तो बड़े अफसर नहीं बन सकते ना !ऐसे माहोल से आदमी टूट सकता है ,बीमार हो सकता है !अतः आप सबसे निवेदन है किआप जितना हो सके अपने बच्चों को ऐसे तनावों से मुक्त रखने का प्रयास करें !उन्हें इतना समय तो अवश्य दें ,जितने समय में वो अपने आपको सहज महसूस कर सकें !बाकि आप माँ-बाप हैं जी ! आप भी तो समझदार हैं !आप जिन दुराग्रहों से गुजर चुके हैं ,कम सेकम उन्हें तो उनसे बचाएं !अंत में एक सुंदर से गीत की पंक्ति याद आ रही है आप भी गुनगुनाइए ...."राम करे ऐसा हो जाए , मेरी निंदिया तोहे मिल जाए !मैं जागूं......तू सो जाए ,तू सो जाए .......हो हो !!!
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