Wednesday, February 13, 2013

" मेरा रंग दे बासन्ती चोला.....माये "....!!!

कामदेव का पूजन होता था वसन्तोत्सव के दिन

आज हम वसन्त ऋतु में वसन्त पंचमी और होली त्यौहार मनाते हैं किन्तु प्राचीन काल में वसन्तोत्सव मनाया जाता था। वसन्तोत्सव, जिसे कि मदनोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, मनाने की परम्परा हमारे देश में अत्यन्त प्राचीनकाल से ही रही है। संस्कृत के प्रायः समस्त काव्यों, नाटकों, कथाओं में कहीं न कहीं पर वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव या मदनोत्सव का वर्णन अवश्य ही आता है। वसन्त को ऋतुराज माना गया है क्योंकि यह मानव की मादकता एवं कोमल भावनाओं को उद्दीप्त करता है। वसन्त पंचमी से लेकर रंग पंचमी तक का समय वसन्त की मादकता, होली की मस्ती और फाग का संगीत से सभी के मन को मचलाते रहता है। टेसू और सेमल के रक्तवर्ण पुष्प, जिन्हें कि वसन्त के श्रृंगार की उपमा दी गई है, सभी के मन को मादकता से परिपूर्ण कर देते हैं। शायद यही कारण है वसन्तोत्सव मनाने की।

वसन्तोत्सव का दिन कामदेव की पूजा की जाती थी। महाकवि “भवभूति” के ‘मालती-माधव’ संस्कृत नाटक के अनुसार एक विशेष मदनोद्यान का निर्माण करके वहाँ पर मदनोत्सव मनाया जाता था।

“मदनोद्यान- जो विशेष रूप से इस उत्सव के लिए ही बनाया जाता था – इसका मुख्य केन्द्र हुआ करता था। उसमें कामदेव का मन्दिर हुआ करता था। इसी उद्यान में नगर के स्त्री-पुरुष एकत्र होकर भगवान कन्दर्प की पूजा करते थे। यहाँ पर लोग अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार फूल चुनते, माला बनाते, अबीर-कुंकुम से क्रीडा करते और गीत-नृत्य आदि से मनोविनोद किया करते थे। इस मंदिर में प्रतिष्ठित परिवारों की कन्याएँ भी पूजनार्थ आया करती थीं और मदनोत्सव की पूजा करके मनोवांछित वर की प्रार्थना करती थीं।” (लिंक)

उल्लेखनीय है कि कामदेव प्राणीमात्र की कोमल भावनाओं के देवता हैं और उन्हें मदन, मन्मथ, प्रद्युम्न, मीनकेतन, कन्दर्प, दर्पक, अनंग, काम, पञ्चशर, स्मर, शंबरारि, मनसिज (मनोज), कुसुमेषु, अनन्यज, पुष्पधन्वा, रतिपति, मकरध्वज तथा विश्वकेतु के नाम से भी जाना जाता है।

साभार- Gauri Rai जी !!

                                    हमारी सांस्कृतिक परम्परा में कौमुदी महोत्सव यानि "बसंत-पंचमी" एक अत्यंत लोकप्रिय उत्सव था लेकिन समय और काल-गति में विश्व के दूसरे देश हम से आगे बढे और उनके उत्सव भी हम से अधिक स्वीकार्य हो गए ! मेरे लिए प्रेम जैसी ईश्वरीय अनुभूति को एक दिन में बाँधने का विचार ही बेहद अप्रासंगिक हैं लेकिन फिर भी जो दोस्त आज के दिन को अपने लिए अहम् समझते हैं उन सब को, कुंवारों की ये "आखा-तीज" ,"प्रेम चतुर्दशी" की बधाई ...!
                                          आज इन so called धर्मरक्षक पहरेदारों / चौकीदारों / ठेकेदारों का दिन है । जिस तरह सालाना परेड के दिन कोई भी पुलिसवाला वर्दी को धोकर, कलफ़ चढ़ा कर, कड़क प्रेस करता है; उसी तरह हमारी 'संस्कृति' की रक्षा के नाम पर आज ये पहरेदार कुर्तें की आस्तीन चढ़ाए आर्चीस की गैलेरी से लेकर पार्कों और रेस्टरॉ में धमकाते / उठक-बैठक कराते नजर आएंगे .!!! गोकि भारत का समाज और संस्कृति एक संत वेलेन्टाइन से खौफ खाया हो और प्रणय-निवेदन से संस्कृति की चूलें हिल जाएगी .!!!



. . . ये कैसी अप'संस्कृति है ? जहाँ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का वर्णन चार पुरुषार्थों के रूप में किया जाता हो ! जहाँ राधा-कृष्ण के महामिलन का दिन बसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता हो ! जहाँ मदनोत्सव, कौमुदी महोत्सव और रास की शानदार परम्परा रही हो ! वहाँ, इटली के एक विवाह कराने वाले संत की याद का दिन हमारे धर्म-रक्षकों को भारतीय संस्कृति का विरोधी लगता है ? क्या सोच है, इस लठैत-संस्कृति की .!!! 

. . . भारत की आदि संस्कृति विविधतापूर्ण सोच-समझ, आस्था-विश्वास के होते हुए भी बैसिकली सामासिक चरित्र की संस्कृति है, जो परस्पर समन्वय और सम्मिश्रण में भरोसा करती है । हमारी सभ्यता कभी किसी अन्य धर्म या संस्कृति को अतिक्रमित या डिक्टेट करने वाली नहीं रही है । तो फिर, इतने बड़े सांस्कृतिक समाज का प्रतिनिधित्व करने का ठेका कोई एक संगठन कैसे ले सकता है ! हमारी सामुहिक धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का एकमैव प्रवक्ता बनने का दावा भी कोई नहीं कर सकता ! और हम ऐसे किसी भी संगठन या आवाज को अपना समर्थन भी नहीं दे सकते ।

. . . हम भास, कालिदास, भृतहरी के खुले विचारों को पढ़े लोग है । हम खजुराहो के मंदिर बनाने और संजोने वाले लोग है । हम उस देवता के पूजक लोग है, जो नहाती गोपियों के वस्त्र चुराकर अटखैलियां करता हैं । हमारे वात्सायनरचित कामसूत्र को पांचवा वेद माना जाता है । और हम डरेंगे - प्रेम के इजहार से ..!!! कहा कैफ़ी आज़मी ने कि, "यारो ! सितम अब न सहो, खोलो ज़बाँ चुप न रहो .." वेलेन्टाइन-डे और बंसतोत्सव की शुभकामनाएँ ।।

                            क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
प्रिय मित्रो, ! कृपया आप मेरा ये ब्लाग " 5th pillar corrouption killer " रोजाना पढ़ें , इसे अपने अपने मित्रों संग बाँटें , इसे ज्वाइन करें तथा इसपर अपने अनमोल कोमेन्ट भी लिख्खें !! ताकि हमें होसला मिलता रहे ! इसका लिंक है ये :-www.pitamberduttsharma.blogspot.com.

आपका अपना.....पीताम्बर दत्त शर्मा, हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार , आर.सी.पी.रोड , सूरतगढ़ । फोन नंबर - 01509-222768,मोबाईल: 9414657511

Sunday, February 10, 2013

" लोकप्रिय व योग्य विधायक चुनने हेतु सर्वे " विधानसभा - क्षेत्र, सूरतगढ़ !! [ चुनाव वर्ष-2013 ]

          " सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र " के मतदाता भाइयो,बहनों और युवा साथियों,!!
                हम प्रदेश विधानसभा में जनहित की योजनायें बनाने, क़ानून बनाने और प्रशासन को सुचारू रूप से चलवाने हेतु प्रत्येक 5 वर्ष बाद अपना विधायक चुनकर भेजते हैं ! लेकिन भूतकाल के अनुभवों से हमें यह आभास हुआ है कि एकबार वोट देने के बाद भी हम सारा कुछ उन नेताओं पर छोड़ देते हैं जिससे वे अपनी मनमानी करते हैं !! चुनाव के समय में वो हमें बड़ी चालाकी से अपने " जाल " में फंसा लेते हैं ! शराब या पैसे का लालच देकर,धर्म-जाति के नाम पर बाँट कर और पार्टी इलाके या भाषा में बांधकर वो अपना हित साध लेते हैं ! कुल आबादी के 30% लोग किसी न किसी " झांसे " में आ ही जाते हैं !! जिसका कारण है " अज्ञानता " !! तो इसी अज्ञानता को दूर करने हेतु हमने ये निर्णय लिया है कि आमजन को अपना वोट किसी इमानदार,अनुभवी,मेहनती और देश - भक्त नेता को ही देकर अबकी बार चुना जाए !! इस हेतु आप सबकी राय जानना जरूरी है ! इस " सर्वे " के द्वारा !!
                       तो कृपया आप सबसे निवेदन है  कि आप इस सर्वे में सक्रियता से भाग लेवें और दूसरों को भी प्रेरित करें !! ताकि हमें भविष्य में पछताना ना पड़े !! अतः आप अपना " वोट " सोच-समझ कर डालें !! 
                  इस सर्वे हेतु " फिफ्थ पिलर करप्शन किल्लर " इंटरनेट सोशल मिडिया ब्लॉग प्रेस ने 11 सदस्यीय प्रबंधन-समिति का गठन किया है ,जो चुनावों तक चलने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का सञ्चालन करेगी !!                                           1.डा. दलीप स्याग [ संरक्षक ]
2.भागीरथ बिश्नोई एडवोकेट [ संरक्षक ]
3.पीताम्बर दत्त शर्मा [ संयोजक ]
4.तुलसी राम शर्मा [ लेखन-प्रभार ]
5.पी.के.मिश्रा [ लेखन-प्रभार ]       6.के.के.खासपुरिया [ मंच-प्रभार ]
7.विष्णु शर्मा एडवोकेट [ प्रेस-प्रवक्ता ]                  8.डा.हरप्रीत सिंह [ वित्त-प्रभार ]
9.राजिंदर पटावरी [ व्यवस्था-प्रभार ]                 10. विजय स्वामी [ व्यवस्था-प्रभार ]
11.परस राम भाटिया [ प्रशासन-अनुज्ञा-प्रभार ]

                    इस     सन्दर्भ हेतु एक प्रेस-कांफ्रेंस का आयोजन दिनांक 12,फ़रवरी 2013, मंगलवार को प्रातः12-00 बजे एपेक्स कम्युनिटी हाल सूरतगढ़ में किया गया है !!
            दिनांक17,फ़रवरी2013 रविवार को प्रातः12-00बजे सुभाष चौक सूरतगढ़ पर इस " सर्वे - पत्र " का विमोचन और शुभारम्भ नगर के " बुद्धिजीवियों " द्वारा किया जायेगा !! अतः आप सबसे अनुरोध है कि इस सामाजिक जागुरूकता के कार्यक्रम में अवश्य सम्मलित होवें !!
                               

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Saturday, February 9, 2013

" खत्म हुआ - अफज़ल-गुरु का " फ़साना "...???

" खत्म हुआ - अफज़ल-गुरु का " फ़साना "...???
 अफजल गुरू को फांसी पर लटकाया 
नई दिल्ली। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर पर हमले के गुनहगार अफजल गुरू को आज सुबह फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी अफजल गुरू को मुंबई हमले के गुनहगार अजमल आमिर कसाब की तरह ही फांसी दी गई। गृह सचिव आरके सिंह ने बताया कि अफजल को सुबह 8 बजे दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई। अफजल को फांसी दिए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में अलर्ट जारी कर दिया गया है। 

अफजल को फांसी पर लटकाए जाने की सिफारिश 23 जनवरी को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजी गई थी। 26 जनवरी को राष्ट्रपति ने अपनी सहमति दे दी। 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमला किया गया था। इसमें 9 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए थे। इनमें पांच पुलिस कर्मी शामिल थे। 

अफजल गुरू को इस मामले में दोषी करार दिया गया। 18 दिसंबर 2002 को दिल्ली की एक कोर्ट ने अफजल को फांसी की सजा सुनाई। 29 अक्टूबर 2003 को दिल्ली हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट से भी अफजल को कोई राहत नहीं मिली। 4 अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा। 

अफजल को 20 अक्टूबर 2006 को ही फांसी होने वाली थी लेकिन उसकी पत्नी ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल कर दी। इसके बाद फांसी दिए जाने पर रोक लग गई। इस बीच कुछ राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों ने कहा कि अफजल गुरू का सही ट्रायल नहीं हुआ है। इसलिए उसकी सजा को कम किया जाए लेकिन मुंबई हमले के दोषी कसाब को फांसी दिए जाने के बाद अफजल को फांसी पर लटकाने की मांग तेज होने लगी। 

भाजपा ने उसे जल्द से जल्द फांसी पर लटकाने की मांग की। अगस्त 2011 में गृह मंत्रालय ने उसकी दया याचिका की सिफारिश भेजी। 10 दिसंबर 2012 को गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि 22 दिसंबर को संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने के बाद वह अफजल की फाइल की समीक्षा करेंगे।
                                             यदी आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता, तो अफजल गुरू ने अपनी अंतिम इच्छा में "कुरान" क्यों मांगा ??
यदी आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता, तो अफजल गुरू को फाँसी के बाद इस्लामिक रीति रिवाज से क्यों दफनाया गया ??
यदि मुस्लिम आतंकवादियों का विरोध करते हैं तो श्रीनगर में कर्फ्यु क्यों लगाना पड़ा ।
अब कहाँ गये शिंदे, दिग्विजय और मणिशंकर ??
और केजरीवाल ! इस बात का खुलासा कौन करेगा ??
                                                                      
संसद पर हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को शनिवार सुबह फांसी पर लटका दिया गया। अफजल गुरु की फांसी की खबर आने के बाद से ही तमाम तरह के सवाल ट्वटिर और फेसबुक पर उठाए जा रहे हैं। 
 
खबर आने के बाद से ही अफजल गुरु ट्विटर पर ट्रेंड्स में टॉप पर है। पढ़िए कुछ चुनिंदा टिप्पणियां..
 
 
Rajdeep Sardesai ‏
कसाब को शीत सत्र से पहले लटकाया गया था और अफजल गुरु को बजट सत्र से पहले। क्या यह संगोग मात्र है?
 
 
Ramesh Srivats 
अफजल गुरु को लटकाया गया। उसका करियर संसद में शुरू हुआ और तिहाड़ में खत्म हो गया। यह तो जाना पहचाना रास्ता है।
 
Kanchan Gupta ‏
अफजल गुरु को 8 साल पहले ही लटका दिया जाना चाहिए था। लेकिन कांग्रेस राजनीतिक कारणों से इसे टालती रही। और अब राजनीतिक कारणों से ही सरकार ने उसे फांसी पर टांग दिया। 
 
Hamid Mir 
'अफजल गुरु के बारे में अरुंधति रॉय की कुछ अंतिम लाइनें पढ़ी, मुझे लगता है कि वह बेगुनाह था। तिहाड़ जेल में दिए गए अपने अंतिम साक्षात्कार में अफजल गुरु ने कहा था कि कश्मीरी शांत नहीं बैठेंगे, और यही हुआ। भारत में मेरे कुछ मित्रों के मुताबिक कांग्रेस की सरकार पाकिस्तान के साथ तनाव और बढ़ाएगी ताकि आगामी चुनावों में फायदा उठाया जा सके।'
 
भारत सरकार अफजल गुरु की फांसी से डरी हुई है। उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल में ही दफना दिया गया है। गुरु हीरो बन गया है। जियो न्यूज के ताजा सर्वे के मुताबिक 58 प्रतिशत पाकिस्तानी मानते हैं कि भारत के साथ रिश्ते अब नहीं सुधर सकते जबकि 29 प्रतिशत मानते हैं कि तनाव कम हो सकता है।
 
 
Akil Bakhshi 
अफजल गुरु को लटका दिया गया। साबित हो गया कि भारत की संसद पर हमला करके बचा नहीं जा सकता। राष्ट्रपति को बधाई।
 
Agnivo
लड़कियों के म्यूजिक बैंड का मामला सिर्फ इसलिए ही उठाया गया था ताकि अफजल गुरु से ध्यान हटाकर उसे चुपके से लटकाया जा सके।
 
Sathya Anand 
अफजल गुरु से सहानुभूति रखने वाले लोगों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए। आतंकवादी राष्ट्र का दुश्मन होता है, शहीद नहीं।
 
Malini Parthasarathy
अफजल गुरु मामले की न्यायिक प्रक्रिया पर उठे सवालों और कश्मीर के संवेदनशील हालातों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि सरकार को इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
 
Abhijit Majumder ‏
कम से कम चुनाव हार के डर ने कांग्रेस को यह तो बता कि संसद पर हमला करने वालों को फांसी पर लटकाना जरूरी है।
 
Kiran Kumar S ‏
जब अफजल गुरु ने संसद पर हमला करवाया था तब हमारे देश के 7 जवानों ने सांसदों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। क्या किसी भी राजनेता ने शहीदों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है।
 
Amrit Hallan ‏
सरकार ने गुपचुप तरीके से अफजल गुरु को लटका दिया और कुछ लोग इसे ऐतिहासिक दिन बता रहे हैं। यह हमारे समाज के बारे में बहुत कुछ कहता है।
                                                                     
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Thursday, February 7, 2013

"करिश्मा किसका चलेगा 2013 - 14 के चुनावों में " ....????

 प्यारे  वोटर  मित्रो  , वासंती   नमस्कार स्वीकारें !!
                         2013-14 में देश के          वोटरों के भाग जागने वाले हैं । कोई दल " समाजवाद " का झुनझुना बजाएगा तो कोई रामराज्य का सपना दिखायेगा, कोई सेकुलरी के गीत गायेगा तो कोई विकास और आरक्षण के खयाली पुलाव पकाकर खिलायेगा हम वोटरों को !! हमें " चने के झाड़ " पर चढ़ा दिया जायेगा और हम इसे अपना " सन्मान " समझ ख़ुशी-ख़ुशी किसी " चालबाज़ " के कहने में आकर अपना " कीमती-वोट " उस दगाबाज़ को दे आयेंगे !! इतिहास तो यही बताता है !!
                     इन  चुनावों  में  करिश्मा  मोदी  - राहुल  - नितीश  - वसुंधरा  - बादल   - मुलायम - ममता  - येदी - रेड्डी- जगन-जयललिता या इन जैसे किसी और नेता का चलेगा या " सोशल-मिडिया " की उपज अन्ना-केजरीवाल-रामदेव या रविशंकर आदि का चलेगा ...???? क्या आज का युवा जागुरुक होगा या पुरानी पीढ़ी की तरह किसी झांसे में आ जायेगा !!
                                      मज़ा तो तब आये जब इसबार 90% पोलिंग हो जाए और बिना किसी लालच के वोट डल जाएँ.....लेकिन राजनितिक दल इमानदार,मेहनती और राजनीती के ज्ञानी यानी पढ़े-लिखे आदमी को ही अपना प्रत्याशी बनाये !! तब कंही जाकर हमारा सपना पूरा हो !! कोई करिश्मा ही
  ऐसा  कर  पायेगा   .....!! तभी  तो  मैंने  लिखा  है  कि  ........ "करिश्मा किसका चलेगा 2013 - 14 के चुनावों में " ....????
                                 

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Wednesday, February 6, 2013

" दुनिया...पागल है, या फिर मैं ...दीवाना " .....!!!!??

       " दुनिया को पागल समझने वाले" मेरे सभी मित्रों को पीताम्बर दत्त शर्मा का हार्दिक नमस्कार !! दुनिया को पागल समझने वाले ही सच्चाई पर चलने वाले होते हैं और लोग उन्हें " दीवाना " कहकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं ! जीवन भर ऐसा ही चलता है !! लेकिन जब वो सच्चा आदमी स्वर्ग-सिधार जाता है तो अगली पीढियां उसे " ईसामसीह,बुल्लेशाह,फरीद,कबीर,नानक और मीरां देवी आदि-आदि के नाम से याद करती है !!!! 
                      स्वार्थ के वशीभूत होकर इन्सान " सच " को भी झूठ साबित कर देता है ! क्योंकि उस के साथ सभी तरह के बदमाश मिले हुए होते हैं ! ऐसे लोग " सत्ता " के भी करीब होते हैं ! अल्लाह जाने क्या होगा आगे...., के मौला जाने क्या होगा आगे......!!! इब्तिदाए इश्क है, रोता है क्या...! आगे आगे देखिये , होता है क्या......???????//////////
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Sunday, February 3, 2013

जेहाद और जिन्दगी को पिरोती विश्वरुप.......!!!!!



सिल्वर स्क्रिन पर कथक करते कमल हासन.... और सिल्वर स्क्रिन पर ही बारुद में समाया आंतक । यही दो दृश्य विश्वरुपम के प्रोमो में सामने आये और फिल्म देखकर कोई भी कह सकता है कि सिर्फ यह दो दृश्य भर नहीं है विश्वरुपम । विश्वरुपम 9-11 के बाद अलकायदा की जमीन पर रेंगती ऐसी फिल्म है जो अफगानिस्तान के भीतर जेहाद के जरीये जिन्दगी जीने की कहानी कहती है । तो दूसरी तरफ अफगानिस्तान में नाटो सैनिक के युद्द से लेकर अलकायदा के खिलाफ चलाया जा रहा भारत का मिशन है जिसकी अगुवाई और कोई नहीं विश्वरुप यानी कमल हासन ही कह रहे है ।

मिठ्टी और रेत के बडे बडे टिहो से पटे पडे खूबसूरत अपगानिस्तान में नाटो सैनिको और अलकायदा के बीच बारुद की जंग कितनी खतरनाक है अगर यह हिसंक दृश्यो के जरीये दिखाया गया है तो यह कमल हासन का ही कमाल है कि अफगानिस्तान की बस्तियो में वह तराजू में तौल कर बेचे जा रहे कारतूस और हथियारो के जखीरे के बीच आंखो पर पट्टी डाल बच्चो की नन्ही अंगुलियो के सहारे हथियारो काककहरा पढते-पढाते हुये आंतक के स्कूल की एक नयी सोच महज चंद सीन में दिखा देते है।

दरअसल 9-11 के बाद बनी कई लोकप्रिय फिल्मो की कतारो में विश्वरुपम एकदम नयी लकीर खिंचती है । यह ना तो सिलव्सटर स्टेलोन की फर्स्ट ब्लड जैसे अमेरिकी सोच को देखती है । जो बंधक बनाये गये अमेरिकियो की रिहाई का मिशन है । साथ ही यह फिल्म ना ही काबुल एक्सप्रेस, खुदा के लिये और माई नेम इज खान की तरह सिर्फ इस्लाम या मुस्लिम मन के भीतर की जद्दोजहद को समेटती है । बल्कि विस्वरुपम ओसामा के मारे जाने पर ओबामा के भाषण को दिखाकर अमेरिकी जश्न पर भी चोट करती है । और अफगानी महिला के संवाद के जरीये अंग्रेज , रुस , अमेरिका और अब अलकायदा से घायल होते अफगानिस्तान की उस त्रासदी को भी उभारते है जिसमें युद्द तो हर कोई कर रहा है लेकिन हर युद्द में घायल आम आफगानी हो रहा है । और उसे यह समझ नहीं आ रहा है कि रुसी सैनिको के बाद नाटो सैनिक और अलकायदा के लडाको में अंतर क्या है । बावजूद इसके युवा पीढी के हाथो में बंधूक और फिदायिन बनकर जिन्दगी को अंजाम तक पहुंचाने की खूशबू कैसे हर रग में दौडती है । इसका एहसास भी विश्वरुप कराती है और मारे जाने के बाद परिजनो के आंख से बहते आंसू पर यह कटाक्ष भी करती है कि जेहाद में सिर्फ खून बहता है आंसू नहीं ।

जेहाद कैसे खुदा या धर्म की छांव में खुद को परिभाषित करता है और अपने समूचे आंतक को खुदा के लिये जेहाद का नाम देता है इसे बेहद बारिकी से विस्वरुपम ने पकडा है और संभवत यही वह दृश्य है जिनसे तमिलनाडु में हंगामा मचा है । कुरान को पढने या नमाज के उठे हाथ ही अगर बंधूक उठाते है तो उसके पिछे जिन्दगी की जद्दोजहद को भी विश्वरुपम उभारती है । जाहिर है इन दृश्यो के कांट-छांट का मतलब है जिन्दगी और जेहाद के बीच जुडते तारो से आंख मूंद लेना । और फिल्म विशवस्वरुप के लेखक डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और कलाकार के तौर पर कमल हासन कही आंख नहीं मूंदते । और तो और फिल्म महज एक मिशन को सफल दिखाती है । जेहाद और अलकायदा मौजूद है और फिल्म आखिर में यह कहकर खत्म होती है कि अगली बार अमेरिका में नहीं भारत में मिलेंगे । लेकिन फिल्म का वह क्षण अद्भूत है जब ओसामा बिन लादेन को 30 सेकेंड के लिये यह कहकर दिखाया जाता है मानो फरिश्ते को देख लिया। sabhaar :- sh. punyprsun vajpeyi ji 
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Friday, February 1, 2013

व्यंग्य - - : उपाध्यक्ष महोदय .......!!!??? वीरेन्द्र जैन

   

     जब कोई व्यक्ति किसी संस्था के लिए ''उगलत निगलत पीर घनेरी'' वाली दशा को प्राप्त हो जाता है तो उसे उस संस्था का उपाध्यक्ष बना दिया जाता है।
          उपाध्यक्ष पदाधिकारियों में ईश्वर की तरह होता है जो होते हुये भी नहीं होता है और नहीं होते हुये भी होता है। यह टीम का बारहवां खिलाड़ी होता है जो पैड-गार्ड बांधे बल्ले पर ठुड्डी टिकाये किसी के घायल होने की प्रतीक्षा में टायलट तक नहीं जाता और मैच समाप्त होने पर फोटोग्रुप के लिये बुला लिया जाता है।

          वह कार्यकारिणी का 'खामखांहोता है। किसी भी कार्यक्रम के अवसर पर वह ठीक समय पर पहुंच जाता है तथा अध्यक्ष महोदय के स्वास्थ की पूछताछ इस तरह करता है जैसे वह उनका बहुत हितैषी हो। वह संस्था के लॉन में बाहर टहलता रहता है और अध्यक्ष के आनेऔर खास तौर पर न आने की आहट लेता रहता है। अगर इस बात की पुष्टि हो जाती है कि अध्यक्ष महोदय नहीं आ रहे हैं तो वह इस बात की जानकारी अपने तक ही बनाये रखता है तथा बहुत विनम्रता और गम्भीरता से बिल्कुल पीछे की ओर बैठ जाता हैजैसे उसे कुछ पता ही न हो। जब सचिव आदि अध्यक्ष महोदय के न आने की सूचना देते हैं जिसका कारण आम तौर पर अपरिहार्य होता है और सामान्यतय: बहुवचन में होता हैतो वह ऐसा प्रकट करता है जैसे उसके लिये यह सूचना सभी सर्वेक्षणों के विपरीत चुनाव परिणाम आने की सूचना हो। वह माथे पर चिंता की लकीरें उभारता है और अध्यक्ष महोदय के न आने के पीछे वाले कारणों के प्रति जिज्ञासा उछालता है। फिर कोई गम्भीर बात न होने की घोषणा पर संतोष करके गहरी सांस लेता है। अब वह अध्यक्ष है और संस्था का भार उसके कंधों पर है।

          सामान्यतय: उपाध्यक्ष अध्यक्ष से संख्या में कई गुना अधिक होते हैं। कई संस्थाओं में अध्यक्ष तो एक ही होता है पर उपाध्यक्ष एक दर्जन तक होते हें क्योंकि काम करने वालों की तुलना में काम न करने वालों की संख्या हमेशा ही अधिक रहती है। उपाध्यक्षों के दो ही भविष्य होते हैंएक तो वे अध्यक्ष के मर जानेपागल हो जाने या निकाल दिये जाने की स्थिति में अध्यक्ष बना दियें जाते हैं या फिर झींक कर अंतत: दूसरी संस्था में चले जाते हैं जहां पहली संस्था में व्याप्त बनेक अनियमितताओं के बारे में रामायण के अखंड पाठ की तरह लगातार बताते रहते हैं। उपाध्यक्षों का सपना संस्था का अध्यक्ष बनने का होता है और संस्था इस प्रयास में रहती है कि इस व्यक्ति को कैसे निकाल दिया जाये कि वह संस्था की ज्यादा फजीहत न कर सके।

          मंच पर उपाध्यक्षों के लिये कोई कुर्सी नहीं होती है। वहां अध्यक्ष बैठता है ,सचिव बैठता है,विशिष्ट अतिथि बैठता है, और कभी कभी तो अशिष्ट अतिथि तक बैठ जाता है, पर उपाध्यक्ष नहीं बैठता है - केवल उसकी दृष्टि वहां स्थिर होकर बैठी रहती है। कभी कभी मुख्य अतिथि से उसका परिचय कराने के लिये मंच से घोषणा की जाती है कि अब हमारी संस्था के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मुख्य अतिथि को माल्यार्पण करेंगे। बेचारा मरे कदमों से मंच पर चढता है और माला डाल कर उतर आता है। फोटोग्राफर उसका फोटो नहीं खींचता इसलिये वह मुंह पर मुस्कान चिपकाने की भी जरूरत नहीं समझता।

          उपाध्यक्ष किसी संस्था का वैसा ही हिस्सा होता है जैसे कि शरीर में फांस चुभ जायेआंख में तिनका पड़ जाये या दांतों के बीच कोई रेशा फंस जाये। सूखने डाले गये कपड़े पर की गयी चिड़िया की बीट की भांति उसके सूख कर झड़ जाने की प्रतीक्षा में पूरी संस्था सदैव रहती है क्योंकि गीले में छुटाने पर वह दाग दे सकता है।

          उपाध्यक्ष के दस्तखत न चैक पर होते हैं न वार्षिक रिपोर्ट पर! न उसे संस्था के संस्थापक सदस्य पूछते हैं न चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी। न उसे अंत में धन्यवाद ज्ञापन को कहा जाता है और ना ही प्रारम्भ में विषय प्रवर्तन को। न उसका नाम निमंत्रण पत्रों में होता है और न प्रैस रिपोंर्टों में। गलती से यदि कभी अखबार की रिपोर्टों में चला भी जाता है तो समझदार अखबार वाले समाचार बनाते समय उसे काट देते हैं। अगले दिन सुबह वह अखबार देखता है और उसे पलट कर मन ही मन सोचता है कि लोकतंत्र के तीन ही स्तंभ होते हैं।
     वैसे मैं आत्महत्या का पक्षधर नहीं हूं और इस साहस को हमेशा कायरता पूर्ण कृत्य बताकर तथाकथित बहादुर बना घूमता हूं पर फिर भी मेरा यह विश्वास है कि किसी संस्था का उपाघ्यक्ष बनने की तुलना में आत्महत्या कर लेना लाख गुना अच्छा है।
                                  वीरेन्द्र जैन
                   2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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