आज आप एक ऐसी भेंट-वार्ता पढ़ेंगे, जिसने इतिहास बनाया है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक किसी पत्रकार की भेंट-वार्ता को लेकर संसद की कार्रवाई इस तरह ठप्प नहीं हुई, जैसे कि वैदिकजी की भेंट-वार्ता को लेकर हुई। टीवी चैनलों पर शायद ही कभी किसी देश में कोई पत्रकार दो-तीन दिन इस तरह छाया रहा। इस भेंट-वार्ता और इसके साथ दी गई टिप्पणियों को ‘भास्कर’ ने आज (19 जुलाई) प्रकाशित किया है। इसे अपने पाठकों के लिए यहां अनन्य और अविकल रुप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
डॉ. वैदिक की संक्षिप्त टिप्पणी
हाफिज सईद से मुलाकात अचानक तय हुई। दो जुलाई की दोपहर को मैं भारत आनेवाला था। एक जुलाई की शाम को कुछ पत्रकार मुझसे बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आप भारत-विरोधी आतंकवाद का मुद्दा इतनी जोर से उठा रहे हैं तो आप कभी हाफिज सईद से मिले? मैंने कहा नहीं। उनमें से लगभग सबके पास हाफिज सईद के नंबर थे। उनमें से किसी ने फोन मिलाया और मुलाकात तय हो गई। सुबह 7 बजे इसलिए तय हुई कि मुझे लाहौर हवाई अड्डे पर 10-11 बजे के बीच पहुंचना था। मैंने कह दिया था कि अगर मुलाकात देर से तय हुई तो मैं नहीं मिल सकूंगा।
इस मुलाकात के लिए मैंने न तो अपने किसी राजनयिक से संपर्क किया और न ही पाकिस्तान के किसी नेता या अधिकारी से! इसके पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, विदेश सचिव तथा अनेक केंद्रीय और प्रांतीय नेताओं से मेरी भेंट हो चुकी थी। फौज और विदेश मंत्रालय के अनेक सेवा-निवृत्त सर्वोच्च अधिकारियों से भी मैं मिल चुका था। मैं पाकिस्तान समेत पड़ौसी देशों में दर्जनों बार जा चुका हूं। पूरे 45 साल से मेरा यात्रा संपर्क बना हुआ है। कई पड़ौसी देशों के लड़के, जो मेरे साथ भारत या विदेशों में पढ़ते थे, वे अपने-अपने देश के नेता भी बन गए हैं और संपादक और प्रोफेसर भी! पड़ौसी देशों के टीवी चैनलों पर अक्सर मेरे, कार्यक्रम होते रहते हैं, वहां के अखबार भी मेरे लेख छापते रहते हैं। पड़ौसी देशों के विश्वविद्यालयों और अकादमिक संस्थानों में आयोजित सेमिनारों में मुझे आमंत्रित किया जाता है। इस बार भी एक भारत-पाक संवाद में मुझे आमंत्रित किया गया था।
लेकिन पेशे से पत्रकार हूं, इसलिए मैं इन अवसरों का उपयोग पत्रकारिता के लिए करता ही हूं। यदि बहुत ही महत्वपूर्ण हो तो उस भेंट को मैं इंटरव्यू के तौर पर लिख देता हूं, वरना अपने लेखों में उनका इस्तेमाल कर लेता हूं।
जब मैंने हाफिज से मिलने की हां भरी तो वह बिल्कुल अचानक थी। मेरी पहले से कोई कल्पना नहीं थी। लेकिन जब भेंट तय हो गई तो मैंने सोचा कि चाहे जो भी हो, मुझे उससे मुंबई-हमले के बारे में उससे सीधे सवाल पूछना चाहिए। यह इंटरव्यू किसी खास अखबार के लिए पहले से प्रायोजित नहीं था। मैंने सोचा, जिस सबसे बढि़या अखबार में बरसों से लिख रहा हूं, ‘भास्कर’ में, उसी में दूंगा लेकिन इसके पहले मैं प्रधानमंत्री नवाज़ से हुई बातचीत का ब्यौरा दूंगा। मैं ‘भास्कर’ में दो-तीन लेख मेरी पाकिस्तान-यात्रा के बारे में लिख चुका हूं।
मैंने टिव्टर पर न तो हाफिज़ सईद का फोटो और न ही इंटरव्यू पहले दिया। इंडिया टीवी के प्रसिद्ध एंकर श्री रजत शर्मा ने कहा कि आज हम शाम को हाफिज पर एक घंटे का विशेष कार्यक्रम कर रहे हैं। आप क्यों नहीं बताते कि वह कैसा है, उसका दिमाग कैसे चलता है? वह भारत के खिलाफ क्या—क्या बोलता है? रजत शर्मा और हेमंत शर्मा को मैंने दो चार दिन पहले अपने सबसे मिलने की बात बताई थी। यदि मुझे मोदी सरकार ने भेजा होता तो अपने पत्रकार-बंधुओें या अपनी पत्नी को भी मैं क्यों बताता? यदि यह भेंट कूटनीतिक या गोपनीय होती तो सदा गोपनीय ही रहती, चाहे फिर मुझे इसकी कितनी ही कीमत चुकानी पड़ती। रजतजी के मांगने पर मैंने उसी समय ई-मेल पर हाफिज के फोटो मंगाए और उन्हें शायद डेढ़-दो घंटे पहले ‘फारवर्ड’ करवाए। दूसरे दिन सिर्फ फोटो वेबसाइट पर चढ़वाए। इस भेंट को बाकायदा मैं लिखकर ‘भास्कर’ को भेजता, उसके पहले ही देश में हमारे कुछ नेताओं और चैनलों ने हंगामा खड़ा कर दिया। कई प्रसिद्ध एंकरों को अफसोस था कि ऐसा स्वर्णिम अवसर उनके हाथ क्यों नहीं लगा? उन्हें यह ‘स्कूपों’ का ‘स्कूप’ लगा। मेरे लिए यह कोई असाधारण उपलब्धि नहीं थी। हाफिज से भी अधिक खतरनाक लोगों से मेरी मुलाकातें कई बार हो चुकी हैं और वे पहले भी खूब छपी हैं।
हाफिज सईद से मेरा वार्तालाप तो आप इस भेंट वार्ता में पढ़ेंगे ही, मुझे इस बात का बहुत आश्चर्य हुआ कि वह मेरे तीखे सवालों से थोड़ा उत्तेजित तो हुआ लेकिन बौखलाया बिल्कुल भी नहीं। इतना भयंकर आतंकवादी इतना संयमित कैसे रह सका? शुरु-शुरु के पांच-सात मिनिट मुझे ऐसा जरुर लगा कि वातावरण बहुत तनावपूर्ण है और कहीं ऐसा न हो कि बात एकदम बिगड़ जाए। अनेक बंदूकधारी कमरे के बाहर और अंदर भी खड़े थे। लेकिन मैं ऐसे दृश्य अफगानिस्तान में प्रधानमंत्री हफीजुल्लाह अमीन के साथ भी 35 साल पहले देख चुका हूं। घंटे भर की बातचीत में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन तू-तू–मैं-मैं की नौबत नहीं आई। किन्हीं फूहड़ शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ। सारी बातचीत के बाद मुझे लगता है कि हाफिज़ सईद का व्यक्तित्व एक पहेली है।
बातचीत खत्म होने के बाद वह मुझे कार तक छोड़ने आया, जैसा कि मियां नवाज़ शरीफ भी अक्सर करते हैं। मैं समझता हूं कि अदालतें, सरकार और फौज तो अपना काम करें ही लेकिन हाफिज सईद जैसे लोगों से किसी न किसी तरह बातचीत जारी रखी जा सकती है। मिजोरम के बागी लालदेंगा से मेरा जीवंत संपर्क बना रहा था, उसका फायदा भारत को आखिर मिला ही। मैं समझता हूं, मेरी इस भेंट पर इस तरह का हंगामा अनावश्यक था।
कुछ टीवी चैनलों ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए देशवासियों का अमूल्य समय फिजूल बर्बाद किया और मेरे कुछ बहुत भले और समझदार कांग्रेसी मित्र भी उनके बहकावे में फंस गए। राजनीतिक दृष्टि से दिवालिया हुई कांग्रेस को यही कागज की नाव मिली, सवार होने को। उन्होंने मोदी सरकार पर प्रहार करने के बहाने भारतीय पत्रकारिता को कलंकित करने की कोशिश की। मुझे उनकी नादानी पर अफसोस है। उन्हें गर्व होना चाहिए कि उनकी सरकार, उनकी फौज और उनके जैसे ‘बहादुर नेता’ आज तक जिसका बाल भी बांका न कर सके, उस हाफिज सईद की मांद में घुसकर एक बूढ़े पत्रकार ने उसके दांत गिन लिए। मैंने अपनी जान की परवाह भी नहीं की।
मुझ पर किए गए आक्रमणों का जवाब मैंने जमकर दिया है। इस दौरान यदि किसी पत्रकार बंधु या किसी नेता को मेरी बातों से अनचाहे ही चोट पहुंची हो तो उनसे मेरा निवेदन है कि मेरा लक्ष्य वाचिक हिंसा का बिल्कुल नहीं था लेकिन अगर मैं तगड़ा जवाब नहीं देता तो उनकी गलतफहमी कैसे दूर होती?
हाफिज सईद से डाॅ. वैदिक की भेंटवार्ता
हाफिज सईद: मैं आपके लेख पढ़ता रहा हूं और आपके टीवी इंटरव्यूज भी मैंने कई देखे हैं लेकिन आप अपने बारे में थोड़ा और बताइए।
डाॅ. वेदप्रताप वैदिक: मैंने अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. किया है, जवाहरलाल नेहरु युनिवर्सिटी से। दिल्ली युनिवर्सिटी के एक कालेज में फिर चार साल राजनीतिशास्त्र पढ़ाया और फिर अखबार और एक न्यूज एजेन्सी का संपादक रहा। विदेश नीति और अन्य विषयों पर मेरे लगभग दर्जन भर ग्रंथ निकले हैं। पत्रकारिता मैं पिछले 50-55 साल से कर रहा हूं। आपके देश में मैं पिछले 30-35 साल से बराबर आ रहा हूं। अब क्या आप मुझे अपने बारे में बताएंगे?
सईद: हां, क्यों नहीं? मेरा जन्म मार्च 1948 में हुआ? मेरे माता-पिता भारत से पाकिस्तान आए थे?
वैदिक: आप क्या बिहार के हैं, मुहाजिर ?
सईद: मेरी मां रोपड़ में गर्भवती हुई थीं और मुझे पाकिस्तान आकर उन्होंने जन्म दिया। इस तरह मेरा भारत से भी संबंध है।
वैदिक: यदि भारत से संबंध है तो फिर यह बताइए कि आपने भारत पर ऐसे भयंकर हमले क्यों करवाए?
सईद: यह बेबुनियाद इल्जाम है। जब बंबई के ताज होटल की खबर मैंने टीवी पर देखी तो क्या देखा कि दो घंटे के अंदर ही अंदर मेरा नाम आने लगा। बार-बार आने लगा।
वैदिक: उसकी कुछ तो वजह होगी?
सईद: वजह बस एक ही थी। पिछली सरकार मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी। उसका गृहमंत्री रहमान मलिक मेरा दुश्मन था। उसने मुझे जबर्दस्ती गिरफ्तार कर लिया।
वैदिक: आपकी सरकार ने ही आपको पकड़ लिया? उनके पास कुछ ठोस सबूत जरुर होंगे?
सईद: सबूत वगैरह कोई नहीं थे। उसे सिर्फ अमेरिका की गुलामी करनी थी। सरकार का दिवाला पिट रहा था। उसे पैसे चाहिए थे। मुझे पकड़कर उसने अमेरिका को खुश कर दिया और बड़ी मदद ले ली। लेकिन मैंने अदालत में सरकार को चारों खाने चित कर दिया। लाहौर के हाई कोर्ट ने मेरे वकीलों को बाहर कर दिया, इसके बावजूद रहमान की तिकड़म फेल हो गई। अदालत ने मुझे बरी कर दिया। लेकिन रहमान ने मुझे फिर गिरफ्तार कर लिया। मैं फिर सुप्रीम कोर्ट में गया। वहां भी मैं जीत गया। मेरा कोई गुनाह साबित नहीं हुआ।
वैदिक: अदालतें तो अदालते हैं। और फिर ये आपकी अपनी अदालते हैं। यदि ये कोई अन्तरराष्ट्रीय अदालतें होतीं तो कुछ और बात होती। यह भी ठीक है कि सरकारों के लिए तो वही सही होता है, जो अदालतें फैसला करती हैं लेकिन मैं आपसे पूछता हूं कि अल्लाहताला का भी कोई कानून आप मानते हैं या नहीं ?
सईद: क्यों नहीं मानता हूं? मैं तो जिहादी हूं।
वैदिक: क्या अल्लाहताला बेकसूरों की हत्या का जायज़ मान लेगा? उसकी अदालत में तो हर जुर्म की सजा मिलती है। अल्लाहताला सब कुछ जानता है। उससे आप कुछ छुपा नहीं सकते। उसकी अदालत में आप क्या जवाब देंगे?
सईद: मैं जिहादी हूं।
वैदिक: मैं तो ‘जिहादे-अकबर’ को मानता हूं। इसे उंचे जिहाद का मतलब तो मैं यही समझता हूं कि इसमें हिंसा (तश्द्दुद) की कोई जगह नहीं है।
सईद: आप फिर मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं? मेरा आतंकवाद (दहशतगर्दी) से कोई लेना-देना नहीं है। मैं हिंसा में विश्वास करता ही नहीं। मैं तो शुद्ध सेवा-कार्य करता हूं। स्कूल-पाठशालाएं (मदरसे) चलाता हूं, अनाथों की देखभाल करता हूं और देखिए अभी जो वजीरिस्तान से लाखों लोग भाग रहे हैं, उनकी सेवा सरकार से ज्यादा मेरे संगठन के लोग कर रहे हैं। आप चलें, खुद अपनी आंखों से देखें।
वैदिक: हो सकता है कि आप यह सब कुछ कर रहे हों लेकिन मुझे यह बताइए कि आखिर संयुक्तराष्ट्र संघ और अमेरिका ने आपके संगठन को गैर-कानूनी क्यों घोषित किया है? अमेरिका ने आपके सिर पर करोड़ों का इनाम क्यों रखा है? भारत सरकार ने आपके खिलाफ ठोस सबूत देकर कई दस्तावेज़ तैयार किए हैं। उन सबका आपके पास क्या जवाब है?
सईद: (थोड़ा उत्तेजित होकर) जवाब क्या है? सारे जवाब मैं दे चुका हूं। क्या मेरे जवाबों से आप संतुष्ट नहीं हैं?
वैदिक: भारत के खिलाफ आप जबर्दस्त नफरत फैलाते हैं। मैंने खुद टीवी पर आपके भाषण सुने हैं।
सईद: और भारत जो हमारे कष्मीरी भाईयों की हत्या करता है, जो बलूचिस्तान और सिंध में दहषतगर्दी फैलाता है, वह कुछ नहीं? अफगानिस्तान में उसने कौंसुलेट के नाम पर 14 जासूसखाने खोल रखे हैं। भारत अफगानिस्तान को हमारे खिलाफ भड़काता है।
वैदिक: यह बिल्कुल गलत है। वहां हमारे 14 कौंसुलेट बिल्कुल नहीं है। हम उस देष की दोस्ताना मदद करते हैं। हिंदुस्तान की जनता आपके नाम से नफरत करती है। आपकी हर घर में निंदा होती है। मुंबई के रक्तपात को भुलाना मुश्किल है।
सईद: मैं तो हिंदुस्तानियों की यही गलतफहमी दूर करना चाहता हूं।
वैदिक: इसका तो एक ही तरीका है कि आप अपना जुर्म कबूल करें और उसकी उचित सजा मंागे। यह आपकी बहादुरी होगी और आप यह रास्ता नहीं अपना सकते हैं तो प्रायश्चित करें, माफी मांगें। जैसे कि हमारे यहां कथा है कि हत्यारे अंगुलिमाल ने बुद्ध के सामने और डाकू वाल्मीकि ने नारद मुनि के सामने प्रायश्चित किया था।
सईद: (थोड़ी उंची आवाज़ में) मैंने जब कोई जुर्म ही नहीं किया तो इन सब बातों का सवाल हीं नहीं उठता। (थोड़ी देर चुप्पी)
सईद: यह बताइए कि यह नरिन्दर मोदी कैसा आदमी है? इसका आना समूचे दक्षिण एशिया (जुनूबी एशिया) के लिए खतरनाक नहीं है?
वैदिक: इसमें शक नहीं कि नरेंद्र मोदी बहुत सख्त आदमी हैं लेकिन मोदी साहब ने अपने चुनाव-अभियान में किसी मुल्क के खिलाफ कुछ नहीं बोला। इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ कुछ नहीं बोला। पुरानी बातों को छोडि़ए। आगे बढि़ए। मोदी अब भारत के वज़ीरे-आजम हैं। उनकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है। देखिए, आते से ही मोदी ने अपनी शपथ-विधि में पड़ौसी देशों और खासकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुलाया। क्या किसी अन्य भारतीय प्र.मं. ने पिछले 67 साल में किसी पाक प्र.मं. को बुलाया?
सईद: क्या बुलाया? बुलाकर मोदी ने उसे बेइज्जत कर दिया?
वैदिक: कैसे?
सईद: आपकी विदेश सचिव औरत ने कहा कि मोदी ने मियां नवाज़ को डांट लगाई?
वैदिक: मैंने आपके वजीरे-आजम मियां नवाज़, आपके विदेश मंत्री और विदेश सचिव से भी यह पूछा तो उन्होंने ऐसी किसी बात से साफ इंकार किया। यह तो सिर्फ मीडिया की करतूत है।
सईद: हो सकता है लेकिन पाकिस्तान में तो हम सभी यही समझ रहे हैं?
वैदिक: हम मानते हैं कि भारत-पाक संबंधों की राह में आप सबसे बड़े रोड़े हैं। ज़रा संबंध सुधरते हैं कि कोई न कोई आतंकवाद की घटना घट जाती है।
सईद: मैं बिल्कुल भी रोड़ा नहीं हूं। आपकी यही गलतफहमी दूर करने के लिए मैं एक बार भारत आना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि दोनों मुल्कों के संबंध (ताल्लुकात) अच्छे बनें। हम दोनों मुल्कों की तहजीब एक-जैसी है। मैं भारत के किसी बड़े जलसे में भाषण (तकरीर) देना चाहता हूं।
वैदिक: मुझसे पाकिस्तान में बहुत-से लोगों ने कहा कि मोदी साहब खुद पाकिस्तान क्यों नहीं आते? अगर आएं तो आप क्या पत्थरबाजी करवाएंगे, प्रदर्शन करेंगे, विरोध करेंगे?
सईद: (थोड़ा रुककर) नहीं, नहीं, हम उनका स्वागत (इस्तकबाल) करेंगे!
वैदिक: मैं तो उल्टा समझ रहा था?
सईद: क्या आपको हम मुसलमानों की मेहमाननवाजी के बारे में पता नहीं है? अगर हमारी सरकार उन्हें बुलाएगी तो वे हमारे मेहमान होंगे।
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सधन्यवाद !!
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जिला-श्री गंगानगर।
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
धन्यवाद जी।
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