Friday, November 4, 2016

सिर्फ सियासत की...कोई चोरी नहीं की..........!!"5th पिल्लर करप्शन किल्लर" "लेखक-विश्लेषक पीताम्बर दत्त शर्मा " वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511


दिल्ली से एलओसी तक हवा में घुलता जहर

दो सौ करोड़ । ये बच्चों का आंकडा है। दुनियाभर के बच्चो की तादाद। जिनकी सांसों में जहर समा रहा है ।  हवा में घुलते जहर को दुनिया में कहीं सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित हो रहे हैं तो वह उत्तर भारत ही है । तो जो सवाल दीपावली के बाद सुबह सुबह उठा कि दिल्ली में घुंध की चादर में जहर घुला हुआ है और बच्चों की सांसों में 90 गुना ज्यादा जहर समा रहा है । तो ये महज दीपावली की अगली सुबह का अंधेरा नहीं है। बल्कि यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली समेत उत्तर भारत में 8 करोड़ बच्चों की सांसो में लगातार जहर जा रहा है । और दीपावली का मौका इसलिये बच्चो के लिये जानलेवा है क्योंकि खुले वातावरण में बच्चे जब सांस लेते है तो प्रदूषित हवा में सांस लेने की रफ्तार सामान्य से दुगुनी हो जाती है । जिससे बच्चों के ब्रेन और इम्युन सिसंटम पर सीधा असर पडता है । ये कितना घातक रहा होगा क्योंकि दीपावली की रात से ही 30 गुना ज्यादा जहर बच्चों की सांसों में गया । लंग्स, ब्रेन और दूसरे आरगन्स पर सीधा असर पड़ा । तो क्या दीपावली की रात से ही दिल्ली जहर के गैस चैबंर में बदलने लगी । क्योंकि यूनीसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चो के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक क्षेत्र साउथ एशिया है । जहा एक छोटे तबके के जीवन में बदलाव आया है और उससे गाडियों की तादाद , इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम , एसी का उपयोग , लकडी-कोयले की आग । फैक्ट्रियों का धुंआ । सबकुछ जिस तरह हवा में घुल रहा है उसका असर ये है कि 62 करोड बच्चे सांस की बीमारी से जुझ रहे हैं। और इनमें से सबसे ज्यादा बच्चे भारत के ही है । भारत के 30 करोड़ बच्चे जहरीली हवा से प्रभावित हैं । और साउथ एशिया के बाद -अफ्रिका के 52 करोड़ बच्चे तो चीन समेत पूर्वी एशिया के 42 करोड बच्चे सांस लेते वक्त जहर ले रहे हैं। यानी जो सवाल दीपालवी की अगली सुबह दिल्ली की सडको पर धुंध के आसरे नजर आया । वह हालात कैसे किस तरह हर दिन 5 लाख बच्चो की जान ले रहा है। 2 करोड़ बच्चों को सांस की बीमारी दे चुका है। तीन करोड से ज्यादा बच्चों के ब्रेन पर असर पड़ चुका है ।12 करोड से ज्यादा बच्चो के इम्यून सिसंटम कमजोर हो चुका है । लेकिन हवा में घुलते जहर का असर सिर्फ दिल्ली तक नहीं सिमटा है । पहली बार लाइन आफ कन्ट्रोल यानी भारत पाकिस्तान सीमा पर जो हालात है उसने प्रवासी पक्षियो को भी रास्ता बदलने के लिये मजबूर कर दिया है ।

जी जिस कश्मीर घाटी में हर बरस अब तक साइबेरिया, पूर्वी यूरोप, चीन , जापान  फिलिपिन्स से दसियो हजार प्रवासी पक्षी पहुंच जाते थे । इस बार सीमा पर लगातार फायरिंग और पाकिसातनी की सीमा से जिस तरह बार बार सीजफायर उल्लघन हो रहा है । मोर्टार से लेकर तमाम तरह से बारुद फेका जा रहा है उसका असर यही है कि सीमा पर पहाडो से निकलती झिले भी सूने पडे है । पहाडो की झीले गंगाबल, बिश्हेनसर,गडसार में इसबार प्रवासी पंक्षी पहुचे ही नहीं । इतना ही नहीं कश्मीर घाटी में हर बरस सितंबर के आखरी में दुनियाभर से सबसे विशिषट पक्षियो झंड में करीब 15 हजार की तादाद में अबतक पहुंच जाते थे । इस बार हालात ऐसे है कि घाटी के हरकाहार, सिरगुंड,हायगाम और शलालाबाग सूने पडे है । तो कया पहली बार कश्मीर घाटी की हवा में भी बारुद कही ज्यादा है । क्योकि पक्षी विशेषज्ञो की भी माने तो जो प्रवासी पक्षी कश्मीर घाटी पहुंचते है वह अति संवेदनशील होते है और अगर पहली बार घाटी के बदले कोई दूसरा रास्ता प्रवासी पक्षियो के पकडा है तो ये हालात काफी खतरनाक है । और असर इसी का है कि वादी के प्रसिद रिजरवायर बुल्लर , मानसबल और डल लेकर भी सूने पडे है । लेकिन घाटी के हालात में तो प्रवासी पक्षी ही नहीं बल्कि पहली बार बच्चो के भविष्य पर अंघेरा कही ज्यादा घना है । क्योकि स्कूल के ब्लैक बोर्ड पर लिखे जिन शब्दो के आसरे बच्चे देश दुनिया को पहचानने निकलते है अगर उन्हे ही आग के हवाले कर दिया गया तो इससे बडा अंधेरा और क्या हो सकता है । तो पहली बार कश्मीर घाटी में अंधेरा इतना घना है कि बीते साढे तीन महीनो से 2 लाख बच्चे स्कूल जा नहीं पाये है । और बीते दो महीनो में 12 हजार 700 बच्चो के 25 स्कूलो में आग लगा दी गई । घाटी की सियासत और संघर्ष के दौर में ये सवाल बडा हो चला है कि बच्चो के स्कूलो में आग किसने और क्यो लगायी लेकिन ये सवाल पिछे छूट चला है कि आखिर बच्चो का क्या दोष । जो उनके स्कूल खुल नहीं पा रहे है ।

कल्पना किजिये आंतकवादी सैयद सलाउद्दीन से लेकर अलगाववादी नेता यासिन मलिक और सियासत करने वाले उमर अब्दुल्ला से लेकर सीएम महबूबा मुफ्ती हक कोई सवाल कर रहा है कि स्कूलो में आग क्यो लगायी जा रही है । एक दूसरे पर आरोप प्रतायारोप भी लगाये जा रहे है लेकिन इस सच से हर कोई बेफ्रिपक्र है कि आखिर वादी के शहर में बिखरे 11192 स्कूल और वादी के ग्रमीण इलाको में सिमटे 3280 स्कूल बीते एक सौ 115 दिन से बंद क्यो है । ऐसे में सवाल यही कि क्या पत्थर फेंकने से आगे के हालात कश्मीर के भविष्य को ही अंधेरे में समेट रहे है । क्योकि आंतक की हिसा और संघर्ष के दौर में करीब 80 कश्मीरी युवक मारे गये ये सच है । लेकिन इस सच से हर कोई आंख चुरा रहा है कि बीते साढे तीन महीनो से घरो में कैद 2 लाख बच्चे कर क्या रहे है । जिन 25 सरकारी स्कूलो में आग लगायी गई उसमें 6 प्रईमरी , 7 अपर प्रईमरी , 12 हाई स्कूल व हायर सेकेंडरी स्कूल है । और अंनतनाग और कुलगाम के इन 25 स्कूलो में पढने वाले 12 हजार बच्चो का द्रद यही है कि कल तक वह किताब और बैग देख कर पढने का खवाब संजोये रखते थे । इनरके मां-बाप स्कूल घुमा कर ले आते थे । लेकिन बीते दो महीने से जो सिलसिला स्कूलो में आग लगाने का शुरु हुआ है उसका असर बच्चो के दिमाग पर पड रहा है । और ये सवाल घाटी के अंधेरे से कही ज्यादा घना हो चला है कि अगर बच्चो को कागज पेसिंल किताब की जगह महज कोरा ब्लैक बोर्ड मिला तो वह उसपर आने वाले वक्त में क्या लिखेगें ।
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सिर्फ सियासत की...कोई चोरी नहीं की

कश्मीर 109 दिनों से कैद, यूपी में सत्ता सड़क पर, महाराष्ट्र में शिक्षा-रोजगार के लिये आरक्षण, मुंबई में देशभक्ति बंधक, बिहार में कानून ताक पर, पंजाब नशे की गिरफ्त में, गुजरात में पाटीदारों का आंदोलन ,दलितों का उत्पीडन, तो हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन, तमिलनाडु-कर्नाटक में कावेरी पानी पर टकराव, झारखंड में आदिवासी मूल का सवाल तो असम में अवैध प्रवासी का सवाल और दिल्ली बे-सरकार। जरा सोचिये ये देश का हाल है । कमोवेश हर राज्य के नागरिकों को वहां का कोई ना कोई मुद्दा सत्ता का बंधक बना लेता है। हर मुद्दा बानगी है संस्थायें खत्म हो चली हैं। संविधानिक संस्थायें भी सत्ता के आगे नतमस्तक लगती है। वजह भी यही है कि कश्मीर अगर बीते 109 दिनों से अपने घर में कैद है। तो सीएम महबूबा हो या राज्यपाल
वोहरा। सेना की बढ़ती हरकत हो या आतंक का साया। कोई ये सवाल कहने-पूछने को तैयार नहीं है कि घाटी ठप है। स्कूल--कालेज-दुकान-प्रतिष्ठान अगर सबकुछ बंद है तो फिर राज्य हैं कहां। और ऐसे में कोई संवाद बनाने भी पहुंचे तो पहला सवाल यही होता है कि क्या मोदी सरकार का मैंडेट है आपके पास । यूपी में जब सत्ता ही सत्ता के लिये सड़क पर है । तो राज्यपाल भी क्या करें। सीएम -राज्यपाल की मुलाकात हो सकती है । लेकिन कोई ये सवाल करने की हालात में नहीं कि सत्ताधारियों की गुडंगर्दी पर कानून का राज गायब क्यों हो जाता है। मुंबई में तो देशभक्ति को ही सियासी बंधक बनाकर सियासत साधने का अनूठा खेल ऐसा निकाला जाता है। जहां पेज थ्री के नायक चूहों की जमात में बदल जाते हैं। सीएम फडनवीस संविधान को हाथ में लेने
वाले पिद्दी भर के राजनीतिक दल के नेता को अपनी राजनीतिक बिसात पर हाथी बना देते हैं। और झटके में कानून व्यवस्था राजनेताओ की चौखट पर रेंगती दिखती है। बिहार में कानून व्यवस्था ताक पर रखकर सत्ता मनमाफिक ठहाका लगाने से नहीं चूकती। मुज्जफरपुर में महिला इंजीनियर को जिन्दा जलाया जाता है। तो सत्ताधारी जाति की दबंगई खुले तौर पर कानून व्यवस्था अपने हाथ लेने से नहीं कतराती। हत्या-अपहरण-वसूली धंधे में सिमटते दिखायी देते है तो सत्ता हेमा मालनी की खूबसूरती में खोयी से लगती है। बिहार ही क्यों दिल्ली तो बेहतरीन नमूने के तौर पर उभरता है। जहां सत्ता है किसकी जनता पीएम, सीएम और उपराज्यापाल के त्रिकोण में जा फंसा है । और देश की राजनधानी दिल्ली डेंगू, चिकनगुनिया से मर मर कर निकलती है तो अब बर्ड फ्लू की चपेटे में आ जाती है।

तो क्या देश को राजनीतिक सत्ता की घुन लग गई है। जो अपने आप में मदमस्त है। क्योंकि वर्ल्ड बैंक के नजरिये को मोदी सरकार मानती है। उसी रास्ते चल निकली है लेकिन जब रिपोर्ट आती है तो पता चलता है कि दुनिया के 190 देशों की कतार में कारोबार शुरु करने में भारत का नंबर 155 हैं। कर प्रदान करने में नंबर 172 है। निर्माण क्षेत्र में परमिट के लिये नंबर 185 है। तो ऐसे में क्या बीते ढाई बरस के दौर में प्रदानमंत्री मोदी जिस तरह 50 से ज्यादा देशों का दौरा कर चुके है और वहां जो भी सब्जबाग दिखाये । क्या ये सिर्फ कहने भर के लिये था । क्योंकि अमेरिका से ब्रिटेन तक और मॉरिशस से सऊदी अरब तक और जापान -फ्रास से लेकर आस्ट्रेलिया तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते ढाई साल में जहां भी गए-उन्होंने विदेशी निवेशकों से यही कहा कि भारत में निवेश कीजिए क्योंकि अब सरकार उन्हें हर सुविधा देने के लिए जी-जान से लगी है। और नतीजा सिफर
क्योंकि विश्व बैंक ने बिजनेस की सहूलियत देने वाले देशों की जो सूची जारी की है-उसमें भारत बीते एक साल में सिर्फ एक पायदान ऊपर चढ़ पाया है। यानी भारत 131 से 130 वें नंबर पर आया तो पाकिस्तान 148 से 144 वें नंबर पर आ गया । और चीन 80 से 78 वें पायदान पर पहुंच गया । और नंबर एक परन्यूजीलैंड तो नंबर दो पर सिंगापुर है । तो क्या भारत महज बाजार बनकर रहजा रहा है जहा कन्जूमर है । और दुनिया के बाजार का माल है । क्योंकि-जिन कसौटियों पर देशों को परखा गया है-उनमें सिर्फ बिजली की उपलब्धता का इकलौता कारक ऐसा है,जिसमें भारत को अच्छी रैंकिंग मिली है। वरना आर्थिक क्षेत्र से जुडे हर मुद्दे पर भारत औततन 130 वी पायदान के पार ही है । तो सवाल है कि -क्या मोदी सरकार निवेशकों का भरोसा जीतने में नाकाम साबित हुई है? या फिर इल्पसंख्यको की सुरक्षा । बीफ का सवाल । ट्रिपल तलाक . और देशभक्ति के मुद्दे में ही देश को सियासत जिस तरह उलझा रही है उसमें दुनिया की रुची है नहीं । ऐसे में निवेश के आसरे विकास का ककहरा पढ़ाने वाली मोदी सरकार के दौर में अगर कारोबारियों को ही रास्ता नहीं मिल रहा तो फिर विकास का रास्ता जाता कहां है। क्योकि एक तरफ नौकरी में राजनीतिक आरक्षण के लिये गुजरात में पाटिदार तो हरियाणा में जाट और महाराष्ट् में मराठा सडक पर संघर्ष कर रहा है । और दूसरी तरफ खबर है कि आईटी इंडस्ट्री में हो रहे आटोमेशन से रोजगार का संकट बढने वाला है ।

तो क्या देश में  बेरोजगारी का सवाल सबसे बडा हो जायेगा । और इसकी जद में पहली बार शहरी प्रोपेशनल्स भी आ जायेगें । ये सवाल इसलिये क्योकि देश की तीन बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों की विकास दर पहली बार 10 फीसदी के नीचे पहुंच गई है। और अमेरिकन रिसर्च फर्म एचएफएस का आकलन है कि अगले पांच साल में आईटी सेक्टर में लो स्किल वाली करीब 6 लाख 40 हजार नौकरियां जा सकती हैं । और अगले 10 साल में मिडिल स्केल के आईटी प्रफेशनल्स की नौकरियो पर भी खतरे की घंटी बजने लगेगी । तो क्या जिस आईटी सेक्टर को लेकर ख्वाब संजोय गये उसपर खतरा है । और इसकी सबसे बडी वजह आटोमेशन है । यानी ऑटोमेशन की गाज लो स्किल कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा पड़ेगी। और मिडिल लेवल के कर्मचारियों पर कम होते मुनाफे की मार पड़ना तय है। जिसके संकेत दिसंबर 2014 में उस वक्त मिल गए थे, जब टीसीएस ने 2700 से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी कर दी थी। इतना ही नहीं बैंगलुरु में बीते दो साल में 30 हजार से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी हुई है । तो क्या जिस स्टार्टअप और डिजिटल इंडिया के आसरे आईटी इंडस्ट्री में रोजगार पैदा करने का जिक्र हो रहा है वह भी ख्वाब रह जायेगा । क्योकि आईटी सेक्टर का विकास भी दूसरे क्षेत्रों
के विकास पर निर्भर है। और दुनिया के हालात बताते है कि रोबोटिक टेक्नोलॉजी ने मैन्यूफैक्चरिंग में पश्चिम के दरवाजे फिर खोल दिए हैं । यानी लोगो की जरुरत कम हो चली है । भारत के लिये ये खतरे की घंटी कही ज्यादा बडी इसलिये है क्योंकि -आईटी सेक्टर में बदलाव उस वक्त हो रहा है,जब भारत में बेरोजगारी संकट बढ़ रहा है।

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