Saturday, July 8, 2017

"जनता हराती है,लेकिन वो हार नहीं मानते",क्या करें ? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

सृष्टि की रचना के समय से ही सत्ता प्राप्ति हेतु संघर्ष होते आये हैं !लेकिन लोग न्याय और सत्यता का लिहाज़ करते थे ! नैतिकता का ध्यान भी रख्खा जाता था !हमारे भारत के राजा महाराजा ,इतने संवेदनशील,कि राजा राम चंद्र बनवास चले गए ,राजपाट छोड़ कर ,पिता का वचन रखने हेतु!आदि,आदि,आदि सैंकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे त्याग के हमारे गौरवपूर्ण इतिहास में ,मैं अपना लेख लम्बा नहीं करना चाहता यहां सबका ज़िक्र करके !लेकिन सन 1857 तक तो सभी शासकों ने त्याग करके देश की आजादी हेतु अपना सर्वस्व त्याग दिया ,अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करी !लेकिन मुगलों और अंग्रेज़ों के शासन की समाप्ति तक ऐसे भी उदाहरण सामने आने लगे जिनमे सत्ता के लिए कत्ल और भ्रष्टाचार बढ़ते चले गए !
                       सन 1947 में सत्ता प्राप्ति हेतु ही बंटवारा हुआ इस देश का !लेकिन राजाओं ने उस समय भी त्याग करके देश को एक माला में पिरोने का काम भी किया !हमारा नया संविधान बना !मापदंड तय किये गए !लोकतान्त्रिक व्यवस्था तैयार की गयी !राष्ट्र की सेवा करने हेतु "जन-सेवक"चुने जाने की व्यवस्था बनाई गयी !जो जनहित के काम करेगा उसे जनता जिताएगी,और जो सेवाभाव से जनहित के काम नहीं करेगी,उसे जनता चुनावों में हरा देगी !हमारे "सयाने"संविधान निर्माताओं ने ऐसा ही सोचा था !उन्हें क्या पता था कि भारत में ऐसे-ऐसे राजनेता पैदा होजाएंगे कि "हारने पर वो घर नहीं जाएंगे शर्म के मारे ,बल्कि बेशर्मी को मुस्कुराहट से छिपाकर ये कहेंगे कि लोकतंत्र में हार-जीत तो लगी ही रहती है "!!
                   आजकल तो ना कोई पोलिस को कुछ समझता है और ना कोई इस देश के कानून को !जैसे भी सत्ता मिले उसे लेलो और जैसे पैसा आये ,आने दो !सैंकड़ों भ्र्ष्ट लोगों पर जांचें बिठा दी गयीं और सैंकड़ों जेल भी चले गए !लेकिन नेतागिरी ना उन्होंने छोड़ी और ना ही देश के लोकतंत्र के किसी "स्तम्भ"ने छुड़वाई !सब अपना हिस्सा लेकर चलते बने !भारत की जनता को बातों में घुमाकर बोंगा बनाकर रख दिया !
                               आज जनता को ईमानदारी से टेक्स देने की बात करने वाली सरकार अच्छी नहीं लग रही है ! लोगों को "ना खाऊंगा,ना खाने दूंगा"का नारा भी अच्छा नहीं लग रहा !जनता को तो कांग्रेस का "जियो और जीने दो"वाला नारा ही अच्छा लगता है जी ,जिसका असली अर्थ ये है की "आप भी खाओ और हमें भी खाने दो "!!तो देश भक्ति एवं ईमानदारी की बातें करके हम किसको बेवकूफ बना रहे हैं ?ये भ्रष्ट लोग हमारी इसी मानसिकता का फायदा उठाते हैं !और हम उनके गुलाम बनकर ,उन्हें सलाम बजाकर खुश हो जाते हैं !कोई नेता हमें मुस्कुराकर एक कप चाय पीला देता है तो हम अपने आपको ना जाने क्या समझने लग जाते हैं !
                           बदलो !! पहले अपनी मानसिकता को बदलो !लालच-स्वार्थ को अपने अंदर से निकाल बाहर फेंक दो !फिर जाकर ललकारो उन बेईमान नेताओं को !उनके भाषण सुनने मत जाओ !उनको मालाएं ना पहनाओ !भ्रष्टों का हुक्का-पानी बंद कर दो ! तब ये देश बचेगा अन्यथा ये मगरमच्छ खा जायेंगे भारत को !तब ना हम बचेंगे और ना तुम ! जय हिन्द !

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