Tuesday, January 5, 2016

पाकिस्तान और कांग्रेस को जल्दी और जोरदार जवाब दो मोदी जी ! - पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक) मो. न. - + 9414657511.

पेरिस में हमला हुआ था तो वहाँ के किसी भी विपक्षी दल ने और ना ही किसी चेनेल ने वहाँ की सरकार के खिलाफ कोई प्रश्न पूछे थे क्योंकि उनको विश्वास था कि उनके प्रधानमंत्री और सुरक्षा बल समय की मांगनुसार उचित  कदम उठाएंगे ही ! अविश्वास का सवाल ही नहीं खड़ा किया जाता "समझदार विपक्ष और मीडिया "द्वारा किसी भी देश में ! पाकिस्तान को ही ले लीजिये ! सब जानते हैं की वहाँ की सेना ही मुख्य फैसले करती है वहाँ लेकिन सेना के किसी अधिकारी ने अपनी सरकार के खिलाफ कभी कोई बयान नहीं दिया !अमेरिका यूरोप और रूस तलक भी संसद में बैठकर ही अपनी गुप्त योजनाएं बनाते हैं ! जनता उन पर विश्वास करती है जितनी देर हेतु जनता ने उनको चुना हुआ होता है !
                              लेकिन हमारे यहां के मीडिया और विपक्षी नेताओं को ना जाने क्या हो गया है कि जिसे देखो वो ही अपने सारे "भेद " चेनेल पर ही खोल देना चाहता है ! टीवी एंकर तो कभी-कभी इतने भावुक हो जाते हैं की वो जनता की आड़ में स्वयं ही निर्णय सुनाने लग जाते हैं जी अब तो ! ये तो खुदा ही मालिक है जी अपने भारत का वरना हम तो इसको बर्बाद कर देने की कोई कसर नहीं छोड़ते ? पठानकोट में ऑपरेशन अभी चल रहा है ! तलाशियां अभी चल रही हैं ! विस्फोटक बरामद किये जा रहे हैं ! पाकिस्तान से जवाब माँगा जा रहा है !लेकिन कांग्रेस को "कब्जी" हो गयी है !क्यों वो अभी जनता के नाम पर कार्यवाहियों के भेद जानना चाहती है ? क्यों वो उचित समय पर ऐसे सवाल नहीं करती ?उसके नेता तो पहले ही पाकिस्तान से अपनी सरकार बनवा देने हेतु उनसे मदद की गुहार लगा चुके हैं !क्या कॉंग्रेस्स इसलिए जल्दी में है ताकि वो सारे भेद पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं को बता सके ! क्या पाकिस्तान के "जासूस"हमारे देश के विपक्ष और मीडिया में भी बैठे हैं ?? अगर हाँ तो उनकी तलाश कब की जाएगी ?
                                     बात बड़ी गहरी है जी ! आज पाकिस्तान पर हमला करने से पहले बड़ी आवश्यकता ये है की हमारी सरकार को अपना "अंदर"ठीक करना होगा ! उसे सभी विभाग,राष्ट्रिय दल , सभी सामाजिक संगठनो और आम जान की गहरी जांच करनी होगी ! "गद्दारों"को ढूढ़ना होगा फिर उनको सरेआम चौराहों पर लटकाना होगा ! फिर हम पूर्णतया सुरक्षित हो पाएंगे ! फिर कोई घुसपैठ नहीं होगी और ना ही कोई आतंकवादी हमपर हमला ही कर पायेगा !आज हम दावे के साथ कह सकते हैं की भारत की जनता को मोदी जी की सरकार पर तो पूरा भरोसा है लेकिन विपक्षियों की निष्ठां उसके नेता ही दांव पर समय-समय पर लगाते रहते हैं !झूठे "अहिष्णुता"के आरोप लगाना, झूठे भ्रष्टाचार के आरोप लगाना और जगह-जगह पर जाकर लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काना भी यही सिद्ध  ये सब लोग दुश्मन ली कठपुतलियां हैं ! ऐसे पत्रकारों और नेताओं की गहन जांच करवाई जानी चाहिए जी ! 
                              जो हमारे जवान शहीद हो रहे हैं उनको हमारी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ! हम अपनी संवेदनाएं प्रकट करते है !!भगवन उनको अपने चरणो में स्थान दे ! भारत माता की जय ! जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना !! आप की कुर्बानियां बेकार नहीं जाने दी जाएंगी ! हम लेखक लोग अपनी कलम से आवाज़ उठाते ही रहेंगे ! मेरा तो ये मानना है की आज हर भारतीय को चौकस रहना होगा , सोते हुए भी जागते रहना होगा ! कहीं भी हमें कोई ऐसी बात नज़र आये कि जिससे शक पैदा होता हो , उसे पोलिस तक अवश्य पंहुचाएं ! हे भारत के अफसरों !!!!!!! जाग जाओ ! खाए हुए नमक का एहसान भी उतारो ! अपनी ड्यूटी पूरी जिम्मेदारी से पूरी करो जी !! धन्यवाद ! जय जवान - जय किसान !!

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मेरा मोबाईल नंबर ये है :- 09414657511. 01509-222768. धन्यवाद !!
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Tuesday, December 29, 2015

"खुले-साँड"बने घूमते , भारतीय लोकतंत्र के चारो स्तम्भ !!?? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - +9414657511.

"न्यायपालिका,कार्यपालिका,विधायिका और पत्रकारिता"हमारे लोकतंत्र के मुख्य स्तम्भ रहे हैं ! वैसे तो लोकतंत्र भी हमारा नहीं है और इसके खम्भे भी "उधर के सिन्दूर " की तरह हैं जिनको हमने दुसरे देशों की देखा-देखि अपनाया है ! इतना ही नहीं हमारी आधुनिकता और हमारे मौजूदा सिद्धांत भी किसी दुसरे देशों की ही देन हैं !राष्ट्रपिता भी हमारे नहीं हैं राष्ट्र भाषा ,राष्ट्र-वर्दी भी हमारी नहीं है !केवल फोटो चिपकाये हुए हैं हम भारतवासी अपने लोकतंत्र के माथे पर !
                 क्यों ये आवश्यक था और क्यों ये भार धोना हमारे लिए आज भी आवश्यक है ! आज मीडिया समाचार दिखा रहा है कि बिहार में जंगल-राज फिर से अपने पैर पसर रहा है तो क्या मीडिया इस सबके लिए दोषी नहीं है उन विशेष राजनितिक दलों के साथ-साथ जिनको उसके सहयोग से वहाँ सत्ता प्राप्त हुई थी ! कितने पत्रकार नतीजे आने वाले  दिन विभिन्न चैनलों में मज़े ले-लेकर विश्लेषण कर रहे थे !इसी तरह से कार्यपालिका,न्यायपालिका और विधायिका भी ना जाने कितनी बार अपनी संवेधानिक सीमाएं लांघ चुकी हैं !
                             अब इन हालातों में कौन रोक पायेगा इनको ?? रुक तो केजरीवाल ही नहीं रहा किसी से ?? दिल्ली की जनता ने ना जाने किस महूर्त में उसे अपना नेता चुन लिया , अब वो हर किसी की बात में टांग अडाना अपना धर्म मानता है ! गालिया भी धड़ल्ले से निकाल रहा है और ये भी कहता है की हम लड़ना नहीं चाहते !अजीब तमाशा है ये ??!!अगर राजनितिक दलों के छुटपुट विरोधी प्रदर्शनों को छोड़ दें तो दिल्ली की आम जनता ने कोई विरोध भी नहीं किया है !तो क्या ये मान लिया जाए कि "आप"पार्टी के नेता-प्रवक्ता"जो बोलते है या करते हैं वही दिल्ली की जनता भी चाहती है ??वोटों के डर से हमारे नेता क़ानून  चाहते , आरक्षण भी नहीं ख़त्म करना चाहते ,पोलिस भी इसी मजबूरी से दोषियों को नहीं पकड़ती ,बड़े आरोपियों को अगर छुड़वाना हो तो c.b.i.से जांच करवा दी जाती है !
                       आज सभी सरकारें चाहे वो देश की हो या प्रदेश की , वो सिर्फ अमीरों के बारे में ही सोचती है , गरीब के बारे में आज कोई भी नहीं सोचना चाहता ! गरीब को तरह तरह के बस "कार्ड"ही दिए जा रहे हैं या फिर योजनाओं के नाम सुनाये जा रहे हैं ! जितना आम आदमी अपनी साड़ी ज़िंदगी में कमा नहीं पाटा उतना तो एक साल में सरकारें एक आमिर आदमी को माफ़ कर देती हैं !यहां मैं ये भी साफ़ कर दूँ कि जो एक साल में पांच लाख भी नहीं कमा पाता , वो आम आदमी  है ! राज बब्बर वाला 15 /-रूपये की थाली खाने वाला नहीं !
 लोकतंत्र के सभी "स्तम्भों" को अपनी जुम्मेवारी समझनी होगी और बिना किसी डर और पूर्वाग्रह के जो भी बदलाव आवश्यक हैं वो सख्ती से लागू करने होंगे अन्यथा -------- "प्रलय"दूर नहीं !! सोचो!! समझो!! और करो यारो !!
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Friday, December 25, 2015

हम हन्दुस्तानी "पल में तोला पल में माशा"हो जाते हैं !! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - +9414657511 .

वाह जी वाह !! हमारा भी जवाब नहीं जी ! इतिहास गवाह है हमारा , हम " हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानीयों "का क्योंकि वो भी तो पुराने हन्दुस्तानी ही हैं ! अल्लामा-इक़बाल भी तो लिखकर गए हैं कि " सारे जहां से अच्छा , हिन्दुस्तान हमारा " , क्या हुआ वो अगर बाद में पाकिस्तान चले गए तो उन्होंने कुछ और भी लिख दिया ?? कवि लोग तो भावुक होते ही हैं !?"फितरत" तो नहीं बदलती हमारी ! अब मुझे ही देखलो ! मैं भी उर्दू के शब्दों को वैसे ही प्रयोग करता हूँ जैसे हिंदी या किसी अन्य भाषा के !उसी तरह से ये भी हमारी फितरत का ही एक अहम हिस्सा है की हम पल में किसी को इतना प्यार करने लग जाते हैं कि , फिर हमें उससे प्यारा कोई और नज़र ही नहीं आता , जबकि कुछ ही समय पहले हम उसे मारने हेतु अपना 56 इंच का सीना दिखा रहे होते हैं !
                       हमें आशावान होना ही सिखाया गया है !! क्योंकि हर कष्ट सिर्फ "आशा" नामक "दवाई " से ही सही हो सकता है !किसी गोली तलवार या बम्ब से नहीं !और तर्क तो हम हर किसी हालात के अनुरूप गढ़ने में माहिर तो हैं ही ! इसीलिए हमें हर उस कदम का स्वागत ही करना चाहिए जिससे हमारा भविष्य उज्जवल हो और हमारी आनेवाली पीढ़ियां सुखी रह सकें !हिंदुस्तान में चाहे सोनिया जीते या केजरीवाल ,उधर पाकिस्ताम में नवाज़ जीतें या इमरानखां ! प्रजा दोनों देशों की खुश रहनी चाहिए बस ! और मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ की मोदी जी के काम से दोनों देशों की जनता ना सिर्फ खुश है बल्कि पाकिस्तानी जनता तो अब भारतीय सेकुलरों द्वारा बनायीं-दिखाई गयी मोदी जी की और भाजपा की छवि की असलियत समझने लगे हैं !
                         मोदी जी ने भारत के अंदरुनी दुश्मनों की गन्दी चालों को असफल कर दिया है जिसके लिए उनको बधाई !! छिपाकर कार्यक्रम बनाना आतंकवादियों स भी बचाव कर गया और दोनों देशों के अंदरुनी दुश्मनों से भी ! जय हिन्द !!जय भारत !
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Tuesday, December 22, 2015

" जनता के मुद्दे अब संसद से गुम होने लगे हैं "- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) - मो. न. - 9414657511

जन हित हेतु देश के टुकड़े हुए,संविधान बना,नेता बने,संसद-विधानसभाएं-जिला परिषदें और नगर-पालिकाएं बनी ! इतना ही नहीं बल्कि धर्म बने , संत बने , समाज सेवी बने और संस्थाएं बनीं !जनता की सुविधा हेतु ही प्रशासन और उसके नियम बने , न्याय-पालिका बनी ,वकील -जज बने ! इन सबसे ऊपर पत्रकार-टीवी चेनेल और उनके एंकर बने ! लेकिन ....  महात्मा गांधी वाले " हे-राम " !! जनता आज इतना सब कुछ होने के बावजूद भी "खुश" नहीं है !!क्यों भला .....??????
                              क्यों आज उसे कोई नेता नहीं पसंद ?क्यों उसे आज कोई धर्म और उसके संत नहीं पसंद ? क्यों उसे आज देश की व्यवस्था पर विश्वास नहीं ? क्यों आज उसे हर कोई धोखेबाज़ नज़र आता है ? आइये ! हम नज़र डालते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है !! मैं यहां अपने विचार प्रकट कर रहा हूँ - 
          1. आम आदमी जितना सारी उम्र में कमाता नहीं है ,उससे ज्यादा तो इस देश में एक अमीर आदमी को बैंक लोन की सब्सिडी मिल जाती है क्यों?
          2. आम आदमी के 35 कीमती साल बेहूदा शिक्षा - व्यवस्था की भेंट चढ़ जाते हैं , जबकि कोई हाथ का कारीगर 20 साल का होते-होते 500/-रूपये रोज़ कमाने लगता है क्यों ?
          3. आम आदमी को झूठे - भ्रष्टाचारी और आडमबरी लोग जीवन में आगे बढ़ते हुए दिखाई देते हैं !ऐसे क्यों लगता है जैसे उसे सच पे चलने की गलत शिक्षा माता-पिता और गुरुओं से मिली हो ???
          4. आम आदमी की चिंता व्यवस्था से जुड़ा कोई शख्स नहीं करना चाहता सब किसी ना किसी अमीर के "प्यादे"नज़र आते हैं क्यों ?
                         जब तलक ऐसे प्रश्नों के उत्तर ढूंढ कर जनता को विशवास में नहीं लिया जाता , तब तलक किसी " खूनी क्रान्ति "के आसार बनते नज़र आते ही रहेंगे ! नाम चाहे उसका कोई भी हो सकता है ! ये तो वो समय ही निर्णय करेगा कि कौन उसकी चपेट में आएगा ! कोई क्रिकेट वाला या कोई नेता-पत्रकार ! खुदा खैर करे !!!कांग्रेस-भाजपा सहित सभी दलों में भारी फेरबदल की आवश्यकता है !जनता और लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ को भी अपने कर्तव्यों के बारे में बड़े विचार कर बदलाव लाने होंगे ! अन्यथा "गृह-युद्ध" निश्चित है ! खबर-दार -- होशियार !!! भारत के वासियो !
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Thursday, December 17, 2015

नंगी होती हमारी राजनीति - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - +9414657511

  आदम युग में नंगापन मनुष्य को बुरा नहीं लगता था क्योंकि सब नंगे ही होते थे ! लेकिन जब से समझदारों ने वस्त्र ग्रहण करने शुरू किये , तब से अगर कोई बिना किसी विशेष-कारण से नंगा होता है तो मानव-समाज को बुरा लगता है ! आज वस्त्रों के इलावा कई तरह के "ओढ़ने" हमें ओढ़ने पड़ते हैं ! जैसे लाज-शर्म की ओढ़नी,अपने मान-सन्मान की ओढ़नी और "ज्ञान" की ओढ़नी ओढ़ कर हमें चलना पड़ता है जी ! तभी तो हमारे प्रिय सलमानखान की एक फिल्म में एक गीत भी रख्खा था कि "ओढ़नी ओढ़ के नाचूँ आज "!!
                         लेकिन आज हम यहां चर्चा करना चाहते हैं राजनीतिज्ञों की ओढ़नी की , जो उन्होंने पिछले तीन दशकों से ओढ़ रख्खी है !!"  बेशर्मी "की ओढ़नी !जैसे-जैसे ये ओढ़नी मैली होती जा रही है वैसे वैसे हमारे नेता उसे बढ़िया बताकर हंस रहे हैं !हालांकि लोगों को उनकी पुरानी-फटी ओढ़नी से उनका नंगापन नज़र आ रहा है , जनता उन्हें इशारा भी कर रही है ,लेकिन हमारे नेतागण हैं कि अपने नंगेपन को वो नया फैशन बता रहे हैं !जो चंद नेता अपनी ओढ़नी को फटने से जैसे-तैसे बचाये हुए हैं ,उनकी ओढ़नी को भी ये बदमाश नेता तार-तार करने पर तुले हुए हैं ! 
                          अब तो ऐसा लगने लगा है कि जैसे हमारे माता-पिता और शिक्षकों ने हमें जैसे गलत शिक्षा पढ़ा दी हो !मक्कार-भ्रष्ट और झूठे लोग इतनी खूबी से शरीफ,दयावान और देश-भक्त होने की अदाकारी करते हैं कि ईमानदारों , गुणीजनों और सभ्य लोगों को अपने दांतों तले उंगलियां दबानी पड़ती हैं भाई !!"आप"पार्टी के सभी नेताओं ने तो कांग्रेस-भाजपा के नेताओं को इस मामले में कोसों पीछे छोड़ दिया है जी !बाकी राजनितिक दलों के नेता तो फेल हीरो-हीरोइनों जैसे लगते हैं !
                      हर पांच साल बाद भारत की जनता बड़ा सोच-समझकर अपना निर्णय चुनावों में देती है लेकिन दो वर्ष बाद ही उसे एहसास होने लगता है की उसने बहुत बुरा निर्णय किया था ! और जो दल जीत जाता है उसके नेता अपनेआपको "महान" समझने लग जाते हैं और सोचते हैं जनता उनको अगले 20 .  वर्षों तलक चुनती ही रहेगी !सत्ता के नशे में वो अपने कार्यकर्ताओं को भी भूल जाते हैं ! उनकी गिनती भी आम लोगों में करने लग जाते हैं ना जाने कब अक्ल आएगी इनको !
              भगवान इनको सद्बुद्धि दे !!धर्म की जय हो !! अधर्म का नाश हो !! प्राणियों में सद्भावना हो !! विश्व का कल्याण हो !! हर-हर-हर महादेव !! जय हिन्द !!अंत में आप सबसे एक प्रश्न - "क्या हम सैन्य-शासन के बिना नहीं सुधर सकते ??????????" उत्तर अवश्य देवें !" आकर्षक - समाचार ,लुभावने समाचार " आप भी पढ़िए और मित्रों को भी पढ़ाइये .....!!!

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Friday, December 11, 2015

जेएनयू, संसद, सत्ता और सपने !!?????

"जहर मिलता रहा, जहर पीते रहे/रोज मरते रहे , मर कर जीते रहे /जख्म जब कोई जहनो दिल को मिला /जिन्दगी की तरफ एक दरीचा खुला / जिन्दगी हमें रोज आजमाती रही /हमे भी उसे रोज आजमाते रहे...."याद तो नहीं यह गजल है किसकी । लेकिन अस्सी के दशक में जेएनयू के गंगा ढाबे पर जब भी देश के किसी मुद्दे पर चर्चा होती तो एक साथी धीरे धीरे इन्ही लाइनों को गुनगुनाने लगता और तमाम मुद्दो पर गर्मा गरम बहस धीरे धीरे खुद ही इन्हीं लाइनों में गुम हो जाती। और तमाम साथी यह मान कर चलते कि आने वाले वक्त में अंधेरा छंटेगा जरुर। क्योंकि बहस का सिरा  तब मंडल-कमंडल की सियासत से शुरु होता और पूंछ पकडते पकडते हाथ में संसदीय चुनावी राजनीति का अंधेरा होता ।

लेकिन यह एहसास ना तब था ना अब है कि लोकतंत्र की दुहाई देकर जिस तरह चुनावी राजनीति को ही सर्वोपरि बनाया जा रहा है और राजनीतिक सत्ता के हाथों में अकूत ताकत समा रही है उसमें तमाम संवैधानिक संस्थाओं की भी कोई भूमिका बच पायेगी । यह लकीर है महीन, लेकिन इतनी धारदार है कि इसने संसदीय राजनीति की बिसात पर सांसदों और राजनेताओं को ही प्यादा बना दिया है । संसद की साख पर ही सवालिया निशान उठने लगा है । संसद की भीतर बहस की उपयोगिता या मुद्दे से जुड़े लोगों के बीच संसद की बहस को लेकर नाउम्मीदी किस हद तक है यह सब संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान बार बार उठ रहा है । शुरुआत कही से भी कर सकते है । मसलन संसद में सूखे की बहस के दौरान ही नेशनल हैराल्ड का मुद्दा आ गया । और झटके में नेशनल हैराल्ड के जरीये संसद ठप कर न्यायपालिका को घमकाने का आरोप कांग्रेस पर संसदीय मंत्री वेंकैया नायडू ने लगा दिया । तो बात न्यायपालिका के जरीये संविधान को ताक पर रखने के मद्देनजर भी हो सकती है और सूखे का सवाल किसान मजदूर से जुडा है इस पर भी हो सकती है । लेकिन जब चर्चा होती है तो संसद के भीतर 15 फिसदी सांसद तक नहीं होते । और इस दौर में हर वह मुद्दा हाशिये पर है जिसके आसरे 19 महीने पहले देश ने एतिहासिक जनादेश दिया । 

तो आज शुरुआत कालेधन से करते है । क्योकि मनमोहन सिंह की दस बरस की सत्ता के 34 लाख करोड़ रुपये अगर कालेधन के तौर पर विदेशो में चले गये । यानी हर दिन 931 करोड रुपये 2004 से 2013 तक कालेधन की रकम विदेशी बैकों में जाती रही तो यह सच कितना छोटा है कि दिल्ली में संजय प्रताप सिंह नाम का एक नौकरशाह जब दो लाख बीस हजार की घूस लेते हुये पकड़ में आता है तो उसकी संपत्ति खंगालने पर पता चलता है कि सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति उसने भ्रष्टाचार के जरीये बना ली । और फिर पता चलता है कि दिल्ली एनसीआर में करीब सवा लाख करोड़ से ज्यादा कालाधन उन फ्लैटो में लगा है जो बनकर खड़े हैं । लेकिन उनमें कोई रहता नहीं क्योंकि देश के अलग अलग राज्यों के सैकडों नौकरशाहों ने दिल्ली और एनसीआर में अपना कालाधन लगा रखा है जो विदेशों में जमा नहीं करा पाये । या फिर विदेशो में जमा कालेधन के अलावे यह रकम है । यह रकम काले धन की है । 34 लाख करोड़ । सिर्फ मनमोहन सिंह की दस बरस की सत्ता के दौर में देश से 34 लाख करोड़ रुपये कालेधन के तौर पर देश से बाहर चले गये । तो 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त जो सवाल नरेन्द्र मोदी कालेधन का बार बार उठा रहे थे वह गलत कतई नहीं था । यानी एक तरफ अमेरिकी थिंक टैंक ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रेटी की रिपोर्बताती है कि जीडीपी का करीब 25 फिसदी होता है 34 लाख करोड जो 10 बरस में देश के बाहर गया। और इन्हीं सवालों को उठाते हुये नरेन्द्र मोदी पीएम बन गये तो मौजूदा सच है क्या। क्योंकि सरकार बनते ही बनाई गई एसआईटी ने क्या तीर मारा-अभी तक देश की जनता को पता नहीं है । काले धन पर नया कानून पास किया गया लेकिन उसका असर है कितना कोई नहीं जानता ।

आलम ये कि कानून के तहत तीन महीने में सिर्फ 4,147 करोड़ रुपए का खुलासा हुआ और स्कीम फ्लॉप रही । सरकार ने एचएसबीसी बैंक में खाता धारक 627 भारतीयों के नाम सुप्रीम कोर्ट को सौंपे जरुर लेकिन न जनता को नाम मालूम पड़े और न किसी के खिलाफ ऐसी कानूनी कार्रवाई हुई कि वो मिसाल बने । और काले धन को लेकर सरकारी कोशिशों की खुद बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सवाल उठाए और इनफोसिस के पूर्व एचआर हैड टीवी मोहनदास ने तो सरकार के कालाधन पकड़ने के तरीकों को मजाक करार दे दिया।। तो सवाल यही है कि काला धन को लेकर दावे और वादों के बीच  मोदी सरकार  कहां खड़ी है। क्योकि अमेरिकी थिंक टैंक ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रेटी की रिपोर्ट की माने तो दुनिया में मौजूदा वक्त में भी कालेधन को लेकर कोई कमी आई नहीं है । यानी मौजूदा वक्त में कितना काला धन कौन बना रहा है इसकी जानकारी हो सकता है पांच या दस बरस बाद आये । अब अगला सवाल किसानो का । जिन्हे समर्थन मूल्य कितना मिलता है यह बहस का हिस्सा नहीं है बल्कि नई बहस इस बात को लेकर है कि पहली बार देश में खुदकुशी करते किसानों की तादाद बढ़ क्यो गई । एक ही मौसम में कही सूखा तो कही बाढ क्या आ रही है। और इन सबके बीच कृषि उत्पादों से जुडी कंपनियों के टर्नओवर बढ़ क्यो रहे है । मसलन महाराष्ट्र के मराठवाडा और विदर्भ ने तो खुदकुशी के सारे रिकार्ड उसी दौर में टूटे जब दिल्ली और महाराष्ट्र में बीजेपी की ही सरकार है। जो किसानो को लेकर राजनीतिक तौर पर कहीं ज्यादा संवेदनशील रही । तो क्या राजनीतिक सक्रियता सत्ता दिला देती है लेकिन सत्ता के पास कोई वैकल्पिक आर्थिक नीति नहीं है जिससे देश को पटरी पर लाया जा सके । क्योंकि इकनामी देश के बाहर के हालातो से ही अगर संभलता दिखे तो  कोई क्या कहेगा । जैसे  जून 2008 में कच्चे तेल की किमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 145 डालर प्रति बैरल थी । तो अभी यह 40.62 डालर प्रति बैरल है। लेकिन जब अभी के मुकाबले  सौ डालर ज्यादा थी तब दिल्ली में पेट्रोल की किमत प्रति लीटर 50 रुपये 62 पैसे की थी। और आज जब तब के मुकाबले सौ डॉलर कम है तो प्रति लीटर पेट्रोल 60 रुपये 48 पैसे है । तो सवाल यह नहीं है कि इक्नामी मनमोहन सिंह के दौर में डांवाडोल क्यों थी ।और अभी इक्नामी संभली हुई क्यो है । सवाल है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में उथल पुथल होगी तब इकनॉमी कैसे संभलेगी। इसीलिये अब आखरी सवाल पर लौटना होगा कि आखिर क्यो संसद चल नहीं रही और क्यों संवैधानिक संस्थाओ को ही नहीं बल्कि न्यायपालिका तक निशाने पर क्यों है । और सबपर भारी राजनीति ही क्यो है ।  याद किजिये जब सवाल जजों की नियुक्ति > को लेकर कोलेजियम का उटा तो कैबिनेट मंत्री अरुण जेटली न्यायापालिका को लेकर यह कहने से नहीं चुके कि गैर चुने हुये लोगो की निरंकुशता कैसे बर्दाश्त की जा सकती है । यानी सारी ताकत संसद में होती है और चुने हुये प्रतिनिधियों का महत्व सबसे ज्यादा होता है । तो अगला सवाल यही है कि अगर संसद ही सबसे ताकतवर है या सत्ता को यह लगता है कि तमाम संवैधानिक संस्थानो में भी संसद की चलनी चाहिये । तो अगला सवाल यही होगा कि क्या काग्रेस ने इसी मर्म को पकड लिया है कि मुद्दा चाहे कोर्ट का हो या कानून के दायरे में भ्रष्टाचार का हो । लेकिन आखिर में राजनीतिक सत्ता ही जब सबकुछ तय करती है तो फिर हर मुद्दे को राजनीति से ही जोडा जाये । क्योकि बिहार चुनाव तक में प्रदानमंत्री मोदी की पहचान चुनावी जीत के साथ बीजेपी ने जोडी तो चुनावी हार के साथ प्रधानमंत्री मोदी की पहचान काग्रेस जोडना चाहती है ।क्योकि अगला चुनाव असम, बंगाल, तमिलनाडु और केरल में है । जाहिर है बीजेपी के लिये असम ही एक आस है । और लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और साल भर बाद  पहली बार असम ही वह राज्य होगा जहा काग्रेस और बीजेपी आमने सामने होगी। तो सवाल दावों और वादों का नहीं बल्कि ठोस काम का है, और सच यही है कि संसद की बहस कोई उम्मीद जगाती नहीं और हंगामा सियासत को गर्म करता है । ऐसे में मंहगाई हो या कालाधन. रोजगार हो या न्यूनतम मजदूरी और किसानो की खुदकुशी हो या सूखा । उम्मीद कही किसी को नजर आती नहीं । कमोवेश इसी तरह की बहस तो जेएनयू में ढाई दशक पहले होती थी और संयोग देखिये बीते 27 बरस से जेएनयू के फूटपाथ पर जिन्दगी गुजारने वाला कवि  रमाशंकर विद्रेही चार दिन पहल मंगलवार को ही गुजर गया । जो अक्सर
 बीच बहस में अपनी नायाब पंक्तियो से दखल देता । उसी ने लिखा था, " एक दुनिया हमको घेर लेने दो / जहा आदमी आदमी की तरह / रह सके/कह सके / सह सके "

Wednesday, December 9, 2015

कांग्रेस गुण्डागर्दी से सरकार,न्यायव्यवस्था,जनता,सरकारी तंत्र और अन्य विपक्षी दलों को डराकर देश पर "राज" करना चाहती है क्या ??- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - +9414657511

जब 2009 में दोबारा मनमोहन सरकार बनी तो सभी कोंग्रेसी लीडर अपना छिपा हुआ "घमंड"जनता को टीवी के माध्यम से दिखाने लगे थे !चापलूस टाईप के अफसरों-पत्रकारों ने उनके दिमाग में ये भर दिया कि अब आपको कोई नहीं हटा सकता !जिससे राहुल-सोनिया सोचने लगे कि करो !! जो चाहो !! उन्हें देख कर उनके मंत्री-प्रवक्ता भी बहकने लगे ! हालात ये हो गए कि "कंस-हृन्याक्ष और रावण "जैसों का दम्भ  सामने बौना नज़र आने लगा ! और फिर 2014 के चुनाव नतीजों ने उनके इस दम्भ को नेस्तनाबूद कर दिया !
                         कुछ देर हार के बाद कोंग्रेसी शांत रहे लेकिन जैसे ही दिल्ली में केज़रीवाल की 
"आप"जीती तो उन्होंने उनके "बेशर्मी"वाले गुन को अपना लिया और अंट-शंट बकने लगे ! बिहार में जैसे ही "महागठबंधन"जीता ,वैसे ही बेशर्मी में "गुंडागर्दी"भी घुलगयी ! तो अवतार हुआ एक नयी कांग्रेस का जो अब जो अब बता रही है इस देश की जनता को कि "राज"तो वो ही करेगी , वोट से चाहे जो कोई दल भी क्यों ना जीत जाए ??
             भूतकाल में भी सर्व श्री ,  देवगौड़ा,चंद्रशेखर,गुजराल,वीपी सिंह के शासन को याद कीजिये तो आप पाएंगे कि परोक्ष रूप से कोंग्रेसियों का दखल हर निर्णय में रहा है ! इतना ही नहीं पाठक मित्रो ! मैं आप सबको चेता देना चाहता हूँ कि अगर भविष्य में खुदा-ना-खास्ता कहीं सर्व श्री मुलायम सिंह ,नितीश कुमार ,लालू यादव , बहन मायावती और ममता जी इस देश की प्रधानमंत्री बन गयीं, तो भी चलेगी तो कांग्रेस की ही न!
               भाजपा में भी कई राज्यों और केंद्र के ऐसे नेता हैं जो राहुल-सोनिया जी की हाज़री लगाते हैं ! सिर्फ मीडिया-अफसर ही नहीं है इस काम में माहिर ! समझे जनाब आप लोग !! सोचिये - सोचिये !! देश को बर्बाद करने में कौन क्या-क्या भूमिका निभा रहा है ! हर समझदार नागरिक को ना केवल अब "मुखर "होना पडेगा बल्कि देश की आम जनता को भी मुखर व होशियार करना पड़ेगा !!
                  चोर को चोर कहना और उसे दंड दिलवाना अब इस देश में बदले की कार्यवाही क्यों कहलाता है ??मोदी जी !! आपको डरने की कतई आवश्यकता नहीं है !! इस देश की जनता आपके साथ है ! 40 -50 लेखक-इतिहासकार और फिल्मकारों के कहने से ये देश "असहिष्णु"नहीं होने वाला ! वामपंथी विचारधारा वाले लीडरों,पत्रकारों और समाजसेवियों से आपको कतई घबराने की आवश्यकता नहीं ! एक-एक भ्रष्टाचारी को आप न्यायपालिका से दंड दिलवाइए !!लेकिन.... 
                  लेकिन पार्टी के अंदर बैठे जयचंदों को भी पहचानिये !

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मेरा मोबाईल नंबर ये है :- 09414657511. 01509-222768. धन्यवाद !!
आपका प्रिय मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,
R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !
जिला-श्री गंगानगर।

Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...