Saturday, March 12, 2016

एक परिचय - श्री पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक-समाजसेवी एवं स्वच्छ राजनेता) सूरतगढ़ !(राजस्थान-भारत)

पाठकों की भरी मांग पर आज हम आपको विश्व प्रसिद्ध "5th pillar corruption killer "नामक ब्लॉग के लेखक-विश्लेषक-समाजसेवी और स्वच्छ-राजनीति करने वाले संघर्षशील व्यक्तित्व के धनि श्री पीताम्बर दत्त शर्मा जी से मिलवाते हैं !

जन्म-स्थान - 4 जुलाई 1961 (अबोहर-पंजाब)
व्यवसाय - दुकानदार (प्रॉपर्टी-एडवाईज़र )
माता-पिता - श्रीमती वीना पांणि एवं श्री वेद प्रकाश "दिग्गज"
माता-पिता का व्यवसाय - माता जी सनातन धर्म प्रचारिका एवं पिता                                          जी प्राध्यापक रिटायर हुए !
भाई-बहन - तीन बहने भाई कोई नहीं (कुल चार)
शिक्षा - D.A.V.कॉलेज अबोहर से स्नातक संगीत में !
विवाह - श्रीमती सुनीता शर्मा (MA.Bed.)9.मई 1984 को फ़ज़िलका                    पंजाब में हुई !आजकल पीलीबंगा में सरकारी अध्यापिका !
संतान - एक लड़का -पार्थ सार्थी (दुकानदार)और एक लड़की - सुकृति                 शर्मा (tv.patrika rajasthan jaypur)
समाजसेवा - "आवासन मंडल कालोनी वेलफेयर सोसायटी "                                       (रजि.)सूरतगढ़ 
                     " पंजाबी वेलफेयर सोसायटी "(रजि.)सूरतगढ़ 
                      "राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ "
                      "राष्ट्रीय सनातन धर्म सेवा संघ"(रजि.)हरिद्वार 
                       "डिस्ट्रिक्ट शॉप एम्प्लॉयीज़ यूनियन" सूरतगढ़ 
                        नामक संस्थाओं का सदस्य,अध्यक्ष,जिला संयोजक                          नामक पदों पर रहकर जनहित के कार्य करवाने में                                अपना छोटा सा योगदान दिया !
राजनीती - बचपन में जनसंघ,फिर युवा-कांग्रेस राजस्थान आगमन                       पश्चात कुछ समय कम्युनिस्ट पार्टी और राम मंदिर                             आंदोलन से भाजपा का सदस्य बना !भाजपा में नगर                           मंडल सूरतगढ़ में मंत्री, जिला श्रीगंगानगर  कार्यकारिणी                     सदस्य और फिर भाजपा चुनाव-विश्लेषण एवं सांख्यिकी                        प्रकोष्ठ का प्रदेश-उपाध्य्क्ष रहा !इस दौरान सभी चुनावों में सभी भाजपा प्रत्याशियों को जिताना ही अपना धर्म समझा !लेकिन अब उम्र के इस पड़ाव में सक्रिय राजनीती इसलिए त्याग दी क्योंकि कोई नेता इतना प्रिय नहीं रहा कि उसके लिए अपना समय खराब करूँ !और विरोध सिर्फ मैंने "मुद्दों"पर ही किया है किसी स्वार्थ वाश नहीं !समाजसेवी संस्थाओं में भी राजनीति आ जाने के कारण किसी संस्था का सक्रिय पदाधिकारी बनना भी बंद कर दिया ! अब केवल स्वयं के बल पर ही जितना भला समाज का हो सकता है करने की कोशिश करता हूँ !वैसे अब समाजसेवा करवाने लायक कोई नज़र भी नहीं आता है !सच बोलना मुझे हमेशां पसंद आता है  बहुत काम लोगों को  पसंद आता हूँ ! भगवान ने मुझे सब कुछ दिया है !कोई बड़ी इच्छा बाकी नहीं है ! पिछले चार सालों से अपने ब्लॉग में ज्वलंत-विषयों पर लेख लिखकर अपनी (भड़ास)निकाल लेता हूँ !पूरे विश्व में मेरे ब्लॉग के पाठक हैं ! सोशियल-मीडिया मेरे जैसे साधारण साधनों वाले लेखकों के बहुत काम आता है !साधारण जीवन जिकर अपने आपको कोमल बनाये रखता हूँ इसलिए परमात्मा भी मेरी बात सुनते हैं !जब भी जो मैं"जायज़" मांगता हूँ मुझे वो देते हैं ! 
                                  सूरतगढ़ में सन 1986 में आकर बसा !1947 के बँटवारे के समय मुस्लिम आतताइयों ने मेरे दादा जी को 70 साथियों सहित क़त्ल कर दिया था , हमारी दादी जी और अन्य महिलाओं को जब ये समाचार मिला तो वो सब महिलाएं अपनी इज्जत बचाने हेतु बच्चों सहित सतलुज दरिया में कूद गयीं !मेरे पिता अपने भाई-बहनों से बिछुड़ गए !जो बाद में कई साल बाद रिश्तेदारों द्वारा खोजे जाने पर मिले ! हमारे परिवार को ज़मीं तो राजस्थान में अलॉट हुई और रहने हेतु मकान पंजाब में मिले ! पिता जी ने संघर्ष पूर्ण जीवन बिताते हुए हमें पाल-पोसा !आज भी मैं अपनेआप को भाग्यशाली समझता हूँ क्योंकि मुझे आज भी अपने माता-पिता चाचा-चाही,बुआ और सास-ससुर का जीवंत आशीर्वाद प्राप्त है ! 
                मेरे द्वारा जान-सहयोग से दुकानो पर काम करने वाले कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश दिलवाया गया ! सूरतगढ़ की विभिन्न समस्याओं हेतु अन्य नेताओं के साथ धरने प्रदर्शन किये गए ! आवासन मंडल कालोनी को नगरपालिका के सुपुर्द करवाया गया !जरूरतमंद परिवारों की कन्याओं की शादी में सहयोग दिलवाया गया !विधवाओं को सिलाई मशीने और कम्बल बांटे गए !पार्को में पौधरोपण करवाये गए !केबल पर सूरतगढ़ के नेताओं की परिचर्चा बनाकर दिखाई लोगों के विचार भी टीवी पर दिखाए ! हमारे ब्लॉग" फिफ्थ पिल्लर करप्शन किल्लर "द्वारा "कौन बनेगा विधायक"और "कौन बनेगा चेयरमैन "नामक सर्वे करवाये गए जो सफल रहे !सभी को मैं आदर से बुलाता हूँ इसीलिए सभी मुझे बहुत चाहते हैं !इसके लिए मैं सबका आभारी हूँ !
                    बाकी चित्रों की जुबानी ...... !





 " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG .

 प्रिय मित्रो , सादर नमस्कार !! आपका इतना प्रेम मुझे मिल रहा है , जिसका मैं शुक्रगुजार हूँ !! आप मेरे ब्लॉग, पेज़ , गूगल+ और फेसबुक पर विजिट करते हो , मेरे द्वारा पोस्ट की गयीं आकर्षक फोटो , मजाकिया लेकिन गंभीर विषयों पर कार्टून , सम-सामायिक विषयों पर लेखों आदि को देखते पढ़ते हो , जो मेरे और मेरे प्रिय मित्रों द्वारा लिखे-भेजे गये होते हैं !! उन पर आप अपने अनमोल कोमेंट्स भी देते हो !! मैं तो गदगद हो जाता हूँ !! आपका बहुत आभारी हूँ की आप मुझे इतना स्नेह प्रदान करते हैं !!नए मित्र सादर आमंत्रित हैं ! the link is - www.pitamberduttsharma.blogspot.com.  , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी !!ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !!

मेरा मोबाईल नंबर ये है :- 09414657511. 01509-222768. धन्यवाद !!आपका प्रिय मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार,
R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !

Tuesday, March 8, 2016

कहाँ गए वो लोग (शरणार्थी-यात्री और गैर कानूनी मेहमान)?? - पीताम्बर दत्त शर्मा मो.न. - +9414657511

1947 को जब देश आजाद हुआ तो देश का बंटवारा भी हुआ था !करोड़ों रुपये और अपनी ज़मीन देकर हमने आज के पाकिस्तान और बांगला देश को बसाया था !उससे पहले भी इस देश के कई टुकड़े हुए थे तब भी हमने ही सब तरह का घाटा सहा था ! लाखों लोग मारे,लुटे गए !लाखों बेघर कर दिए गए !हज़ारों माताओं बहनों की इज़्ज़त भी लूटी गयी !धन की लूट तो होनी ही थी !इसके बावजूद वो तो पाकिस्तान बन गया लेकिन हमारा भारत आजतक हिन्दुस्तान नहीं बन पाया , बेचारा "इण्डिया"बनकर रह गया !
                पहले तो सिर्फ अँगरेज़ ही हमारे शासक थे लेकिन आज हर कोई हमारा शासक बन सकता है जिसके पास ज्यादा लोगों का "बहुमत"हो ! फिर चाहे वो लोग चोर,डाकू,बेईमान या विदेशी ही क्यों ना हों ??देश आजाद होने के बाद जिन्होंने शासन संभाला उनमें ज्यादातर लोग अंग्रेजों के "पिठ्ठू"रह चुके थे !इसीलिए उन्होंने ऐसा क़ानून ,इतिहास और सिस्टम बनाया जिससे आम जनता उनके शिकंजे में निकलने की बजाये फंसती ही चली गयी !लगातार 55 सालों तक भारत में शासन करने में एक विशेष दल का कामयाब होना भी देश की आम जनता हेतु नुकसानदायक रहा !
                        अन्य नुकसानों के साथ-साथ हमें जिस बड़ी समस्या से आज भी जूझना पड़ रहा है , वो है भारत में वाज़िब और गैर वाजिब तरीके से भारत में बसे लोगों द्वारा भारत में जन्मे लोगों के अधिकारों पर डाका डाला जाना !1947 से लेकर आज तक हम इस समस्या से निजात नहीं पा सके हैं ! ना जाने कितने लोग ना जाने किस-किस जगह से आकर हमारे बीच में घुल-मिल गए हैं कि आज अगर हम चाहें भी तो उनको अलग नहीं "चिन्हित"कर पाएंगे ! पहले तो वो लोग शहरों के बाहर झोंपड़ियां बनाकर रहते हैं फिर हमारे नेता लोग उनके वोटों के लालच में राशन-कार्ड और वोट बनाते हैं फिर वो लोग हामरे देश में जन्मे लोगों को मिलने वाली रियायतों पर हाथ साफ़  ! नौकरियां पाना और अफसर बनना भी उनके लिए आसान काम हो जाता है !
                                जब हम एक राज्य के वासी को दुसरे राज्य में नौकरियां नहीं देते हैं तो भला दुसरे देश से आये लोगों को हम अपना हक़ कैसे दे सकते हैं ! इसलिए भारत के सभी नागरिकों और सुरक्षा एजेंसियों के सिपाहियों से मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि कृपया ऐसे लोगों को पहचानिये और उन्हें केवल मूलभूत जरूरतों तक ही सीमित रखिये अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब उत्तर-प्रदेश, बिहार पश्चिम बंगाल, मणिपुर, केरल, आदि सीमान्त प्रदेशों में शरणार्थियों की सरकारें बनने लग जाएँ !और हमारे देश में जन्मे नेता और वोटर हाथ मलते ही रह जाएँ ! देश की सुरक्षा के लिए भी ऐसे लोगों को पहचाना जाना आवश्यक है जी !
                     जय-हिन्द !!
                  " 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG .

 प्रिय मित्रो , सादर नमस्कार !! आपका इतना प्रेम मुझे मिल रहा है , जिसका मैं शुक्रगुजार हूँ !! आप मेरे ब्लॉग, पेज़ , गूगल+ और फेसबुक पर विजिट करते हो , मेरे द्वारा पोस्ट की गयीं आकर्षक फोटो , मजाकिया लेकिन गंभीर विषयों पर कार्टून , सम-सामायिक विषयों पर लेखों आदि को देखते पढ़ते हो , जो मेरे और मेरे प्रिय मित्रों द्वारा लिखे-भेजे गये होते हैं !! उन पर आप अपने अनमोल कोमेंट्स भी देते हो !! मैं तो गदगद हो जाता हूँ !! आपका बहुत आभारी हूँ की आप मुझे इतना स्नेह प्रदान करते हैं !!नए मित्र सादर आमंत्रित हैं ! the link is - www.pitamberduttsharma.blogspot.com.  , गूगल+,पेज़ और ग्रुप पर भी !!ज्यादा से ज्यादा संख्या में आप हमारे मित्र बने अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर !! आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ आयें इसी मनोकामना के साथ !! हमेशां जागरूक बने रहें !! बस आपका सहयोग इसी तरह बना रहे !!
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Monday, March 7, 2016

कांग्रेस का हाथ... वामपंथ और देशविरोधियों के साथ !! सुर- असुर की लड़ाई चल रही है देश में !! - साभार-सुरेश चिपलूनकर जी !

    गत नौ फरवरी को जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सियाचिन के बर्फीले तूफ़ान को हराकर वापस लौटे वीर सैनिक हनुमंथप्पा को देखने अस्पताल गए, ठीक उसी समय राजधानी दिल्ली के बीचोंबीच स्थित जवाहरलाल नेहरू विवि उर्फ़ JNU में छात्रों का एक गुट न सिर्फ भारत विरोधी नारे लगा रहा था, बल्कि भारत की न्याय व्यवस्था एवं राष्ट्रपति की खिल्ली उड़ाते हुए कश्मीरी अलगाववादी अफज़ल गूरू के समर्थन में तख्तियां लटकाए और उसे बेक़सूर बताते हुए प्रदर्शनों में लगा हुआ था. इस विश्वविद्यालय के छात्रों एवं प्रोफेसरों द्वारा ऐसे बौद्धिक कुकृत्यों में शामिल होने के इतिहास को देखते हुए जवाहरलाल नेहरू के नाम पर स्थापित इस विश्वविद्यालय के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. जब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के छिहत्तर जवानों को मौत के घाट उतारा था, उस समय जनेवि में ऐसे ही “तथाकथित छात्रों” द्वारा जश्न मनाया गया था. पिछले कई वर्षों से JNU में इस प्रकार की देशद्रोही एवं भारत के संविधान एवं न्याय व्यवस्था की आलोचना करने जैसे कृत्य लगातार होते आ रहे थे, परन्तु कांग्रेस की सरकारों द्वारा इस प्रश्रय दिया जाता रहा अथवा आँख मूँदी जाती रही. जब से नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई है काँग्रेस एवं वामपंथीयों की बेचैनी बढ़ने लगी है एवं मानसिक स्थिति बेहद मटमैली हो चली है. येन-केन-प्रकारेण मोदी सरकार को नित-नए मुद्दों में कैसे उलझाकर रखा जाए एवं देश को जाति-धर्म एवं भाषा में कैसे टुकड़े-टुकड़े किया जाए इसकी रोज़ाना योजनाएँ बनाई जा रही हैं... चूँकि मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही काँग्रेस और वामपंथियों के इस “मुफ्तखोरी वाले दुष्चक्र” को तोड़ने की शुरुआत की है, इसलिए स्वाभाविक है कि दोनों चोट खाए सांप की तरह अपने फन फैलाए लगातार फुँफकार रहे हैं, चाहे वह फिल्म एंड टीवी संस्थान का मामला हो, चाहे शनि शिंगणापुर का मामला हो, चाहे हैदराबाद के रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला हो... या फिर JNU में देशद्रोही नारों का ताज़ा मामला हो... सभी मामलों में काँग्रेस एवं वामपंथियों ने आग में घी डालने और भड़काने का ही काम किया है. चूँकि राहुल गाँधी के सलाहकार मणिशंकर अय्यर एवं दिग्विजयसिंह जैसे महानुभाव हैं, इसलिए राहुल बाबा तो मामले की गंभीरता समझे बिना ही उन उद्दंड एवं कश्मीरी अलगाववादियों के हाथों में खेलने वाले छात्रों के समर्थन में सीधे JNU भी पहुँच गए. 


दरअसल स्वतंत्रता के पश्चात से ही कांग्रेस (यानी वामपंथ, रूस एवं सोशलिज्म की तरफ झुकाव रखने वाले जवाहरलाल नेहरू) एवं वामपंथी दलों में आपस में एक अलिखित समझौता था जिसके अनुसार शैक्षणिक संस्थाओं, शोध संस्थानों तथा अकादमिक, नाटक एवं फ़िल्म क्षेत्र में वामपंथियों की मनमर्जी चलेगी, उनके पैर पसारने का पूरा मौका दिया जाएगा, सेकुलर-वामपंथी विचारधारा वाले प्रोफेसरों, लेखकों, फिल्मकारों को इन सभी क्षेत्रों में घुसपैठ करवाने तथा उन्हें वहां स्थापित करने का पूरा मौका दिया जाएगा, कांग्रेस इसमें कोई दखलंदाजी नहीं करेगी. इसके बदले में वामपंथी दल, कांग्रेस को संसद में, संसद के बाहर तथा राजनैतिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के खिलाफ या तो कुछ नहीं बोलेंगे अथवा मामला ज्यादा बढ़ा, तो दबे स्वरों में आलोचना करेंगे ताकि माहौल को भटकाने तथा मुद्दे को ठंडा करने में मदद हो सके. कांग्रेस और वामपंथियों ने इस अलिखित समझौते का अभी तक लगातार पालन किया है. जैसे वामपंथियों ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का “अनुशासन पर्व” कहते हुए समर्थन किया, उसी प्रकार कांग्रेस ने भी सुभाषचंद्र बोस की फाईलों को साठ वर्षों तक दबाए रखा, ताकि सुभाष बाबू को “तोजो का कुत्ता” कहने वाले वामपंथी शर्मिन्दा ना हों. 

वामपंथ की विचारधारा तो खैर भारत से बाहर चीन-रूस-क्यूबा-वियतनाम जैसे तानाशाही ग्रस्त, एवं साम्यवादी हत्यारी विचारधारा से शासित देशों से आयातित की हुई है, इसलिए स्वाभाविक रूप से उनका भारतीय लोकतंत्र में तनिक भी विश्वास नहीं है, परन्तु काँग्रेस जैसी पार्टी जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को हथियाए बैठी है, देश की जनता को कम से कम उससे यह उम्मीद नहीं होती कि वह भी नरेंद्र मोदी से ईर्ष्या के चलते, देश को तोड़ने वाली ताकतों के साथ खड़ी हो जाए परन्तु ऐसा हुआ. JNU के देशद्रोही नारों वाले मामले को छोड़ भी दें तो यह पहली बार नहीं है कि काँग्रेस ने वामपंथ एवं देशद्रोहियों का साथ न दिया हो... सभी पाठकों को याद होगा कि 26/11 के नृशंस और भीषण आतंकवादी हमले के पश्चात जब हमारे सुरक्षाबलों ने बहादुरी दिखाते हुए सभी पाकिस्तानी आतंकवादियों को मार गिराया और अजमल कसाब जैसे दुर्दांत आतंकी को जीवित पकड़ लिया था, उसके बाद भी दिग्विजयसिंह जैसे वरिष्ठ काँग्रेसी सरेआम अज़ीज़ बर्नी जैसे विघटनकारी लेखक की पुस्तक “26/11 हमला – RSS की साज़िश” जैसी मूर्खतापूर्ण एवं तथ्यों से परे लिखी हुई किताब का विमोचन कर रहे थे. काँग्रेस के जो नेता सोनिया गाँधी की मर्जी और आदेश के बगैर पानी तक नहीं पी सकते हैं, उस काँग्रेस में ऐसा संभव ही नहीं कि दिग्विजयसिंह द्वारा ऐसी पुस्तक का विमोचन सोनिया-राहुल की जानकारी के बिना हुआ होगा. आगे चलकर यही दिग्विजयसिंह टीवी पर अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी ओसामा बिन लादेन को “ओसामा जी” कहते हुए पाए गए. ताज़ा विवाद के बाद एक अन्य टीवी चैनल पर बहस के दौरान काँग्रेस के ही एक और वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ने “अफज़ल “गुरूजी” का संबोधन भी किया. तात्पर्य यह है कि जो कांग्रेसियों के मन में है, वही गाहे-बगाहे उनकी जुबां पर आ ही जाता है और ऐसा कुछ होने के बाद सोनिया की चुप्पी अथवा इन पर कार्रवाई नहीं करना क्या दर्शाता है?? 

यदि हम इतिहास पर नज़र घुमाएँ तो पाते हैं कि ऐसी कई घटनाएँ हुईं, जिनसे काँग्रेस का यह देशविरोधी रुख प्रदर्शित होता है. उदाहरण के लिए स्वतंत्रता से पूर्व काँग्रेस अधिवेशनों में वन्देमातरम गाया जाता था. लेकिन जब 1923 के अधिवेशन में काँग्रेस नेता पलुस्कर वन्देमातरम गाने के लिए खड़े हुए तो काँग्रेस के ही एक अन्य नेता मोहम्मद अली ने इसका विरोध किया और कहा कि “वन्देमातरम” गाना इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ है, इसे नहीं गाया जाना चाहिए. इस पर पलुस्कर ने कहा कि वे परंपरा को तोड़ेंगे नहीं और वन्देमातरम जारी रखा. इस पर मोहम्मद अली अधिवेशन छोड़कर निकल गए, उस समय मंच पर महात्मा गाँधी सहित लगभग सभी बड़े काँग्रेस नेता थे, लेकिन कोई भी नेता पलुस्कर (यानी वन्देमातरम) के समर्थन में खड़ा नहीं हुआ. यदि उसी समय मोहम्मद अली को उचित समझाईश दे दी गई होती तो ना ही उसके बाद हेडगेवार का काँग्रेस में दम घुटता, ना ही हेडगेवार काँग्रेस से बाहर निकलते और ना ही RSS का गठन हुआ होता. काँग्रेस का “वंदेमातरम” जैसे संस्कृतनिष्ठ एवं देशप्रेमी गीत पर यह ढुलमुल रवैया न सिर्फ आज भी जारी है बल्कि “सेकुलरों की मानसिक स्थिति” इतनी गिर गई है, कि “वन्देमातरम” बोलने वाले को तत्काल संघी घोषित कर दिया जाता है. 

काँग्रेस को अपने अध्यक्ष पद के लिए सदैव उच्चवर्गीय एवं गोरे साहबों के प्रति प्रेम रहा है. दूसरा उदाहरण स्वतंत्रता से तुरंत पहले का है, जब गाँधी और नेहरू अक्षरशः लॉर्ड माउंटबेटन के सामने गिडगिडा रहे थे कि वे स्वतंत्रता के बाद भी कुछ वर्ष तक भारत के गवर्नर बने रहें. 1948 में ही जब पाकिस्तान ने कबाईलियों को भेजकर भारत पर पहला हमला किया तो जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल, जनरल करिअप्पा एवं जनरल थिमैया की सलाह को ठुकराते हुए लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह पर इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए, जिसका नतीजा भारत आज भी भुगत रहा है. लॉर्ड माउंटबेटन ने ही नेहरू को सलाह दी थी कि हैदराबाद के रजाकारों एवं निजाम का मामला भी संयुक्त राष्ट्र ले जाएँ और उन्हें “आत्मनिर्णय”(??) का अधिकार दें, परन्तु चूँकि तत्कालीन गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने नेहरू की एक ना सुनी और सरदार पटेल द्वारा निज़ाम और दंगाई रजाकारों पर की गई कठोर कार्रवाई को पूर्ण समर्थन दिया. यही देशविरोधी कहानी उस समय भारत के उत्तर-पूर्व में भी दोहराई गई थी. उत्तर-पूर्व के राज्यों की नाज़ुक सामरिक स्थिति को देखते हुए जनरल करिअप्पा ने नेहरू को सुझाव दिया था कि भारत को उस क्षेत्र में अपनी रक्षा तैयारियों तथा सड़क-बिजली-पानी-बाँधों जैसे मूल इंफ्रास्ट्रक्चर पर अधिक ध्यान देना चाहिए. परन्तु चूँकि नेहरू पर उस समय “चीन-प्रेम” हावी था, इसलिए उन्होंने उत्तर-पूर्व के राज्यों में सेना की अधिक उपस्थिति की बजाय विदेशी मिशनरी “वेरियर एल्विन” की सलाह को प्राथमिकता देते हुए आदिवासी एवं पहाड़ी क्षेत्रों को खुला छोड़ दिया. इसका नतीजा यह रहा कि चीन ने अरुणाचल का बड़ा हिस्सा हड़प लिया, नेहरू की पीठ में छुरा घोंपते हुए भारत पर एक युद्ध भी थोप दिया एवं ईसाई मिशनरियों ने समूचे उत्तर-पूर्व में अपना जाल मजबूत कर लिया. काँग्रेस की बदौलत आज की स्थिति यह है कि उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों में हिंदुओं-आदिवासियों की संख्या चिंताजनक स्तर तक घट गई है और कुछ राज्य ईसाई बहुल बन चुके हैं. संक्षेप में तात्पर्य यह है कि गोरी चमड़ी वाले देशी-विदेशी आकाओं की बातें मानना, काँग्रेस का प्रिय शगल रहा है, फिर चाहे वह माउंटबेटन हों अथवा सोनिया माईनो. 1885 में एक अंग्रेज ह्यूम द्वारा ही स्थापित काँग्रेस की देशविरोधी हरकतों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले तो कांग्रेसियों ने सोनिया गाँधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने के लिए एक दलित अर्थात सीताराम केसरी की धोती फाड़कर उन्हें बाहर धकिया दिया, तो दूसरी तरफ गोरे साहब क्वात्रोच्ची को बचाने के लिए काँग्रेस के वरिष्ठ नेता हंसराज भारद्वाज बाकायदा विदेश जाकर उसका बचाव करके आए, लेकिन बिहार के जमीनी दलित नेता बाबू जगजीवनराम को कभी भी काँग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनने दिया. विडम्बना यह कि सीताराम केसरी और जगजीवनराम का घोर अपमान करने वाली काँग्रेस के युवराज सीधे हैदराबाद जाकर रोहित वेमुला की लाश पर घडियाली आँसू बहा देते हैं, क्योंकि काँग्रेस के “सहोदर” वामपंथी भी इसी उच्चवर्णीय ग्रंथि से पीड़ित हैं. वामपंथियों की सर्वोच्च पोलित ब्यूरो में भी दलितों की संख्या नगण्य है, लेकिन फिर भी रोहित वेमुला जो कि एक OBC है, उसे “दलित” बनाकर गिद्धों की तरह लाश नोचने में वामपंथी दल ही सबसे आगे रहे. अर्थात देशविरोधी ताकतों का साथ देना तो एक प्रमुख मुद्दा है ही, लेकिन वास्तव में काँग्रेस और वामपंथी दलों की संस्थाओं में “घनघोर उच्चवर्गीय जातिवाद” भी फैला हुआ है. इन्हीं के षड्यंत्रों एवं तरुण तेजपाल जैसे रेपिस्ट पत्रकार की वजह से भाजपा के पहले दलित अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को झूठे मामले में फँसाया गया. 

बहरहाल, फिलहाल हम अपना फोकस काँग्रेस-वामपंथ के जातिवाद की बजाय देशद्रोही हरकतों एवं बयानों पर ही रखते हैं. देश की जनता उस घटनाक्रम को भी भूली नहीं है, जिसमें भारत के पश्चिमी इलाके में नौसेना ने पाकिस्तान से आने वाली एक नौका को उड़ा दिया था, जिसमें संदिग्ध गतिविधियाँ चल रही थीं तथा उस नौका में आतंकवादियों की मौजूदगी की पूरी संभावना थी, क्योंकि वह नौका मछली मारने वाले रूट पर नहीं थी, और ना ही उस नौका ने सुरक्षाबलों को संतोषजनक जवाब दिया था. स्वाभाविक रूप से एक संप्रभु राष्ट्र की सुरक्षा में जो किया जाना चाहिए, वह हमारे सुरक्षाबलों ने किया. कोई और देश होता तो ऐसी संभावित घुसपैठ को रोकने के लिए की गई कार्रवाई की सभी द्वारा प्रशंसा की जाती. लेकिन भारत की महान पार्टी उर्फ “देशविरोधी” काँग्रेस को यह रास नहीं आया. उस नौका को उड़ाते ही काँग्रेस का सनातन पाकिस्तान प्रेम अचानक जागृत हो गया. देश के सुरक्षाबलों की तारीफ़ करने की बजाय सबसे पहले तो काँग्रेस ने यह पूछा कि आखिर पाकिस्तान से आने वाली उस नौका को क्यों उड़ाया? नौसेना और कोस्टगार्ड के पास उनके आतंकवादी होने का क्या सबूत था? सरकार इस नतीजे पर कैसे पहुँची कि उसमें आतंकवादी ही थे? यानी पाकिस्तान सरकार द्वारा सवाल पूछे जाने की बजाय, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ही यह जिम्मेदारी निभाती रही. क्या इसे देशविरोधी कृत्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए? काँग्रेस का यही देशद्रोही रुख दिल्ली के “बाटला हाउस मुठभेड़” के समय भी सामने आया था. सितम्बर 2008 में जबकि केन्द्र और दिल्ली दोनों स्थानों पर काँग्रेस की ही सरकार थी, उस समय दो आतंकियों के मारे जाने एवं मोहनचंद्र शर्मा नामक जाँबाज पुलिस अधिकारी के शहीद होने के बावजूद काँग्रेस की तरफ से कोई कठोर बयान आना तो दूर, हमेशा की तरह राहुल के राजनैतिक गुरु, अर्थात दिग्विजय सिंह मातमपुरसी करने उन आतंकियों के घर अर्थात आजमगढ़ पहुँच गए. मुस्लिमों के वोट लेने के चक्कर में पार्टी ने सीधे-सीधे दिल्ली पुलिस एवं शहीद शर्मा की शहादत पर अपरोक्ष सवाल उठा दिया था. अगला उदाहरण नरेन्द्र मोदी के अमेरिकी वीजा से सम्बन्धित है. भारत जैसे संघ गणराज्य के एक प्रमुख राज्य गुजरात में जनता द्वारा तीन-तीन बार चुने हुए एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री को जब काँग्रेस के ही पोषित NGOs एवं “बुद्धिजीवी गिरोह” के दुष्प्रचार से प्रेरित होकर अमेरिका द्वारा वीज़ा देने से इनकार किया गया उस समय काँग्रेस ने जमकर खुशियाँ मनाई गईं. नरेंद्र मोदी को 2002 के दंगों को लेकर भला-बुरा कहा गया. परन्तु खुद को एक राष्ट्रीय पार्टी कहने वाली काँग्रेस को इस बात का ख़याल नहीं आया कि मोदी को वीज़ा नहीं देना एक तरह से भारत का ही अपमान है. काँग्रेस अपनी मोदी-घृणा में इतनी अंधी हो गई थी कि उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली भारत की फजीहत का भी अंदाजा नहीं था... फ्रांस के शार्ली हेब्दो अखबार पर हुए जेहादी हमले के समय काँग्रेस का ढुलमुल रुख हो या इसी पार्टी के मणिशंकर अय्यर का हास्यास्पद बयान हो... या फिर सलमान खुर्शीद द्वारा पाकिस्तान जाकर भारत के विरोध में ऊटपटांग बयानबाजी करना हो, काँग्रेस ने कभी भी देशहित और भारत के सम्मान को ऊपर नहीं रखा. इसके अलावा तीस्ता सीतलवाड एवं अरुंधती रॉय जैसे देशविरोधी लोगों के NGOs को प्रश्रय देकर भारत में ही विभिन्न परियोजनाओं में अड़ंगे लगवाना, उन परियोजनाओं की लागत बढ़ाकर उन्हें देरी से पूरा करना यह देशविरोधी कृत्य तो काँग्रेस ने बहुत बार किया है. कहने का मतलब यह है कि नेहरू के जमाने में वीके कृष्ण मेनन से लेकर सोनिया के युग में दिग्विजयसिंह तक काँग्रेस का इतिहास अपने राजनैतिक लाभ के लिए देशविरोधियों को पालने-पोसने एवं समर्थन देने का रहा है. अपने मुस्लिम वोट प्रेम में काँग्रेस इतनी गिर चुकी है कि उसे कश्मीरी पंडितों का दर्द कभी समझ में नहीं आया. घाटी में लगने वाले “यहाँ निजाम-ए-मुस्तफा चलेगा” जैसे नारों को दरकिनार करके काँग्रेस के नेता सरेआम यह बयान देते हैं कि पंडितों के निर्वासन का कारण राज्यपाल जगमोहन थे. “ज़लज़ला आया है कुफ्र के मैदान में, लो मुजाहिद आ गए मैदान में” जैसे जहरीले नारों के बावजूद अपने ही देश में परायों की तरह शरणार्थी बने बैठे पंडितों से काँग्रेस कहती है कि उन्होंने खामख्वाह ही घाटी छोड़ी. ऐसी सोच को क्या कहा जाए? 

काँग्रेस का देशविरोधी और वामपंथी-मित्रता भरा इतिहास तो हमने देख लिया अब हम आते हैं देश के मनोमस्तिष्क को आंदोलित करने वाले वर्तमान विवाद अर्थात जेएनयू में देशद्रोही नारे लगाने के विवाद पर... एक समय पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षा एवं राजनैतिक बहस का एक प्रमुख केन्द्र हुआ करता था, परन्तु शुरू से ही वामपंथी विचारधारा की पकड़ वाला यह विवि धीरे-धीरे अपनी चमक खोता जा रहा है और इसकी विमर्श प्रक्रिया में ह्रास होकर अब यह विशुद्ध हिन्दू विरोधी, हिन्दू परंपरा विरोधी एवं राष्ट्रवादी भावनाओं को ठेस पहुँचाने का अड्डा भर बनकर रह गया है. जैसा कि ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, जिस समय छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने 76 CRPF जवानों का क़त्ल किया था, उस समय भी JNU में वामपंथी विचारधारा के छात्रों ने जश्न मनाया था. यदि उसी समय काँग्रेस सरकार उन छात्रों पर कोई एक्शन ले लेती तो आज शायद यह नौबत नहीं आती, परन्तु काँग्रेस और वामपंथ के उस अलिखित समझौते के तहत सैन्य बलों के इस अपमान पर इन उद्दंड और देशद्रोही छात्रों को कोई सबक नहीं सिखाया गया और ये छात्र अपने प्रोफेसरों की छत्रछाया में पलते-बढ़ते रहे, अपनी जहरीली विचारधारा का प्रसार विभिन्न कैम्पसों में करते रहे. भारतीय सैन्य बलों के प्रति फैलाई गई यह वामपंथी नफरत बढ़ते-बढ़ते अफज़ल और याकूब प्रेम तक कब पहुँच गई देश को पता ही नहीं चला.इसी जेएनयू में हिन्दू संस्कृति से घृणा करने वाले वामपंथी गुटों की शह पर, कुछ जातिवादी छात्रों के एक गुट ने “महिषासुर दिवस” मनाया, जिसमें हिंदुओं की आराध्य देवी माँ दुर्गा को “वेश्या” कहा गया. जो काँग्रेस पैगम्बर मोहम्मद के अपमान पर ठेठ फ्रांस और जर्मनी तक को उपदेश देने लग जाती है, उसी काँग्रेस ने इस महिषासुर दिवस मामले पर चुप्पी साध ली, क्योंकि काँग्रेस को हमेशा दोनों हाथों में लड्डू चाहिए होते हैं. अतः जिस प्रकार काँग्रेस ने पहले राम जन्मभूमि का ताला खुलवाकर हिंदुओं को खुश करने की कोशिश की, उसी प्रकार शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट को लतियाकर मुस्लिमों को खुश रखने की कोशिश की, भले ही इस्लामी अतिवादियों को शह मिले एवं देश जाए भाड़ में, काँग्रेस को क्या परवाह?? काँग्रेस का यह दोगला रवैया हमेशा सामने आता रहता है, इसीलिए “किस ऑफ लव”, “समलैंगिक विवाह की अनुमति” जैसे छिछोरे कार्यक्रम सरेआम सड़कों पर आयोजित करने वाले जेएनयू के छात्रों के खिलाफ कोई बयान देना तो दूर, काँग्रेस इनके समर्थन में ही लगी रही, और अब जैसे ही छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया को गिरफ्तार किया तो अचानक राहुल बाबा का “लोकतंत्र प्रेम” जागृत हो उठा और वे उन छात्रों के समर्थन में दो घंटे के “सांकेतिक धरने” पर जा बैठे. चूँकि बंगाल में भी विधानसभा चुनाव निकट ही हैं और काँग्रेस भी इस समय सिर्फ 44 सीटों पर सिमटने के बाद एकदम फुर्सत में है इसलिए अब ममता बनर्जी के खिलाफ काँग्रेस और वामपंथ में “नग्न गठबंधन” की तैयारियाँ भी चल रही हैं. लगता है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद, अब काँग्रेस ने तय कर लिया है कि वह बुर्के में नहीं छिपेगी बल्कि खुलेआम वामपंथियों का साथ देगी, चाहे इसके लिए उसे देश के सैनिकों का अपमान ही क्यों ना करना पड़े. 

कुछ दिनों पहले ही कोलकाता में काँग्रेस ने वाम मोर्चा की पार्टियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जेएनयू की घटना के खिलाफ प्रदर्शन किया तथा मोदी सरकार पर तानाशाही, अलोकतांत्रिक वगैरह होने के आरोप लगाए. लेकिन सवाल यह उठता है कि लेनिन-मार्क्स-माओ-स्टालिन एवं पोलपोट जैसे तानाशाहों ने जिस वामपंथी विचारधारा को पाला-पोसा और फैलाया, इस विचारधारा के तहत समूचे विश्व में करोड़ों हत्याएँ कीं, जब उनके भारत स्थित अनुयायी लोकतंत्र और मूल्यों की बात करते हैं बड़ी हँसी आती है. इसी प्रकार जब देश लोकतांत्रिक रूप से मजबूत हो रहा था, उस समय मात्र एक चुनावी हार की खीझ के चलते पूरे भारत पर आपातकाल थोपने वाली काँग्रेस की “आदर्श स्त्री” इंदिरा गाँधी के भक्तगण जब नरेंद्र मोदी पर तानाशाह होने का आरोप लगाते हैं तो सिर पीटने की इच्छा होती है. 1977 से लेकर 2011 तक पश्चिम बंगाल में वामपंथियों ने “आधिकारिक रूप से” 60,000 राजनैतिक विरोधियों की हत्याएं करवाई हैं (अर्थात औसतन पाँच हत्याएँ प्रतिदिन). ऐसा नहीं कि वामपंथियों ने सिर्फ अपने राजनैतिक विरोधियों की हत्याएँ करवाई हों, बल्कि बिना किसी राजनैतिक जुड़ाव वाले समूहों की भी हत्याएँ सिर्फ इसलिए करवाई गईं, क्योंकि वे लोग ज्योति बसु अथवा वामपंथी सरकार की बातों से सहमत नहीं थे. जनवरी 1979 में सुंदरबन के एक टापू पर बांग्लादेश से भागकर आए हिन्दू शरणार्थियों को ज्योति बसु की पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया, चार सप्ताह तक उस टापू को पूरी दुनिया से काट दिया और जब भूख-प्यास से परेशान शरणार्थी भागने लगे तो उन्हें गोलियों से भून दिया गया था. इसी प्रकार मार्च 1970 में सेनबाडी इलाके में कई काँग्रेस समर्थकों की हत्याएँ करवाई गईं तथा खून उनकी विधवा के माथे पर पोता गया जिसके कारण वह पागल हो गई. जबकि अप्रैल 1982 में आनंदमार्गी सन्यासियों एवं साध्वियों को वामपंथियों ने पीट-पीटकर मार डाला था. केरल में भी पिछले दो वर्षों के दौरान RSS के दो सौ स्वयंसेवकों की हत्याएँ वामपंथियों द्वारा हुई हैं, फिर भी इन्हें JNU के देशद्रोही नारे लगाने वाले वामपंथी छात्र मासूम, और नरेंद्र मोदी तानाशाह नज़र आते हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि जिनका खुद का इतिहास हत्याओं, तानाशाही और लोकतंत्र की गर्दन मरोड़ने का रहा हो, उस पार्टी के युवराज अपनी देशद्रोही हरकतों को छिपाने के लिए JNU में जाकर लोकतंत्र का नारा लगा रहे हैं और यह सोच रहे हैं कि जनता बेवकूफ बन जाएगी, अथवा इनके पापों को भारत भूल जाएगा? क्या राहुल गाँधी भूल चुके हैं कि उनकी दादी ने आपातकाल के इक्कीस महीनों के दौआर्ण सैकड़ों कलाकारों, नाट्यकर्मियों, निर्दोष संघ स्वयंसेवकों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों को बिना कारण जेल में ठूँस दिया था? और उस समय जेएनयू के छात्रों की प्रिय पार्टी भाकपा, इंदिरा गाँधी की तारीफें कर रही थी, और जेएनयू के देशद्रोही छात्रों के समर्थन में खड़े बेशर्म प्रोफेसरों को शायद यह याद नहीं कि उनके प्रियपात्र ज्योति बसु और बुद्धदेब भट्टाचार्य ने बंगाल में कितनी क्रूर हत्याएँ करवाई हैं. परन्तु जैसा कि ऊपर कहा गया कि काँग्रेस और वामपंथी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, इनमें आपसे में एक अलिखित समझौता रहा है जिसके अनुसार ये दोनों एक दूसरे के “काले कारनामों” में दखल नहीं देते. 

काँग्रेसी देशद्रोह को पूरी तरह से नंगा करने वाला एक और सच हाल ही में दुनिया के सामने आया है, जिसमें 26/11 के मुम्बई धमाकों के प्रमुख मास्टरमाइंड डेविड हेडली ने अमेरिका की जेल से भारत के न्यायालय में सीधे वीडियो रिकॉर्डिंग के जरिए उस आतंकी हमले की दास्ताँ बयान की है. हेडली ने यह भी बताया कि कौन-कौन इस साज़िश में शामिल था. डेविड हेडली ने हाफ़िज़ सईद और मौलाना मसूद अजहर जैसे “परिचित आतंकियों” के नाम तो लिए ही, परन्तु उसका सबसे अधिक चौंकाने वाला खुलासा यह है कि थाणे जिले के मुम्ब्रा कस्बे की मुस्लिम लड़की इशरत जहाँ, वास्तव में लश्कर-ए-तोईबा की सुसाईड बोम्बर थी. इशरत जहाँ अपने तीन साथियों अर्थात प्राणेश पिल्लई (उर्फ जावेद गुलाम शेख), अमजद अली राणा और जीशान जौहर के साथ नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से अहमदाबाद आई थी, जहाँ ATS पुलिस के दस्ते ने सूचना मिलने पर उन्हें मार गिराया. डेविड हेडली ने यही बयान अमेरिका में भी दिया है और फिलहाल उसे वहाँ के कानूनों के मुताबिक़ पैंतीस वर्ष की जेल हुई है. अब तक तो पाठक समझ ही गए होंगे कि नरेंद्र मोदी से भीषण घृणा करने वाली काँग्रेस, वामपंथी तथा अन्य पार्टियों के सेकुलर नेताओं ने भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह को फँसाने के लिए लगातार कई वर्षों तक झूठ बोला कि इशरत जहाँ मासूम लड़की थी और यह एनकाउंटर अमित शाह ने जानबूझकर करवाया है, उन सभी का मुँह काला हो गया. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो इशरत जहाँ को “बिहार की बेटी” बनाए घूम रहे थे, जबकि काँग्रेस के सहयोगी शरद पवार की पार्टी ने एक कदम आगे बढ़कर “शहीद इशरत जहाँ” के नाम पर एम्बुलेंस सेवा भी आरम्भ करवा दी थी. अपने देश के सुरक्षाबलों, ख़ुफ़िया एजेंसियों एवं आतंकवाद विरोधी दस्तों की बात पर भरोसा नहीं करते हुए, मुस्लिम वोटों के लिए पतन की निचली सीमा तक गिर जाने वाली काँग्रेस को देशद्रोही ना कहें तो क्या कहें? इशरत जहाँ पर हुए खुलासे के बावजूद अभी तक ना तो काँग्रेस की तरफ से, ना ही नीतीश कुमार की तरफ से और ना ही जितेन्द्र आव्हाड़ की तरफ से माफीनामा आना तो दूर कोई शर्मयुक्त बयान तक नहीं आया. 

काँग्रेस इतने पर ही नहीं रुकी, प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार यूपीए सरकार को भी 2012 में ही ख़ुफ़िया एजेंसियों से इनपुट मिल चुका था कि इशरत जहाँ एक आतंकी है, लेकिन उसने जानबूझकर अमित शाह और मोदी को फँसाने के चक्कर में उस रिपोर्ट को दबा दिया था. NIA के अफसरों ने अमेरिका में हेडली से पूछताछ की थी उसकी रिपोर्ट पहले सुशीलकुमार शिंदे ने और फिर चिदंबरम ने अपने पास दबाकर रखी और फिर यह मामला देख रहे जोइंट डायरेक्टर एवं ईमानदार वरिष्ठ अधिकारी लोकनाथ बेहरा को प्रताड़ित करके ट्रान्सफर कर दिया. इशरत जहाँ जैसी आतंकी के पक्ष में मोमबती लेकर मार्च करने वाले वामपंथी छात्र उस बेशर्मी को भूलकर, अब JNU में उमर खालिद और कन्हैया को बचाने में लगे हैं. भोंदू किस्म के राहुल बाबा और वामपंथी बुद्धिजीवियों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि इशरत जहाँ के साथ जो तीन घोषित और साबित आतंकी थे, वे वहाँ क्या कर रहे थे? ये तीनों इशरत के साथ क्यों थे? इशरत मुम्ब्रा से अहमदाबाद कैसे पहुँची? इन सब सवालों के जवाब हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों के पास हैं, अब तो इनके जवाब भी जनता तक पहुँच चुके हैं, परन्तु देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते काँग्रेस और वामपंथियों को अपनी नरेंद्र मोदी घृणा एवं मुस्लिम वोटों के लालच में कुछ दिखाई नहीं दे रहा. 

वामपंथी तो खैर भारत के लोकतंत्र से चिढ़ते ही हैं और मजबूरी में ही उन्हें यहाँ की व्यवस्था के अनुसार चलना पड़ता है. इसीलिए गाहे-बगाहे उनकी यह भावना उफन-उफन कर आती है, चाहे वह नक्सलवाद के समर्थन में हो या अफज़ल गूरू के समर्थन में हो अथवा तमिलनाडु के अलगाववादियों के पक्ष में बयानबाजी हो. भारत के दिल अर्थात दिल्ली के बीचोंबीच स्थित जवाहरलाल नेहरू विवि वामपंथ का गढ़ माना जाता है और यहाँ बीच-बीच में इस प्रकार के देशविरोधी आयोजन होते रहते हैं. जब भारत के संविधान में धारा 19(1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया हुआ है तो बाबासाहब आंबेडकर ने उसके साथ कुछ शर्तें भी लगाई हुई हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक अधिकारों का अर्थ यह नहीं होता कि नागरिक अपने ही देश की सेना के खिलाफ जहरीली भाषा बोलें, या अपने ही देश के टुकड़े करने की बात करें, नारेबाजी करें, भाषण और नाटक लिखें. किसी मित्र देश का अपमान अथवा किसी शत्रु देश की तरफदारी करना भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में नहीं आता. जब आपको कोई अधिकार दिए जाते हैं तो आपसे जिम्मेदारी की भी उम्मीद की जाती है, परन्तु वामपंथियों और कांग्रेसियों में उनके “अनुवांशिक गुणों” के कारण यह भावना है ही नहीं. कुछ उदाहरण इसकी गवाही देते हैं, जैसे 2013 में ही JNU में अफज़ल गूरू को सरेआम श्रद्धांजलि दी गई थी और उसे शहीद घोषित करते हुए, उसकी फाँसी को “न्यायिक हत्या” के रूप में चित्रित किया गया... यदि उस समय केन्द्र में सत्तारूढ़ यूपीए (अर्थात काँग्रेस) ने इन वामपंथियों पर लगाम लगाई होती तो आज यह दिन ना देखना पड़ता. उसी वर्ष JNU का एक छात्र हेम मिश्रा को महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित गढ़चिरोली जिले के घने जंगलों से रंगे हाथों पकड़ा था. सूत्रों के अनुसार हेम मिश्रा नक्सलियों के कोरियर के रूप में काम कर रहा था, परन्तु महाराष्ट्र और केन्द्र की काँग्रेस सरकारों ने चुप्पी साधे रखी. 26 जनवरी 2014 को भी JNU के कतिपय “छात्रों(??) ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित फ़ूड फेस्टिवल में जानबूझकर फिलीस्तीन, तिब्बत और कश्मीरी खाद्य पदार्थों के स्टॉल लगाए, ताकि दुनिया को सन्देश दिया जा सके कि फिलीस्तीन के साथ-साथ कश्मीर भी “अलग” और “स्वायत्त” है, भारत का हिस्सा नहीं है. ABVP ने विरोध जताया, लेकिन तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने तब भी कुछ नहीं किया. भारत के मिसाईल मैन अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि और मुम्बई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फाँसी की दिनाँक एक ही हफ्ते के भीतर आती है. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद 2015 में JNU के छात्रों ने एक बार पुनः भारत को लज्जित करते हुए एक सच्चे और देशभक्त मुसलमान अब्दुल कलाम को श्रध्दांजलि देने की बजाय याकूब मेमन को हीरो की तरह पेश किया. इसी से पता चलता है कि JNU में वामपंथ ने कैसी मानसिक सड़ांध भर दी है, और किस तरह पिछले साठ वर्ष में काँग्रेस ने इसे पाला-पोसा है. 1996 में ही तत्कालीन कुलपति ने रिपोर्ट दे दी थी कि JNU में पाकिस्तानी एजेंट वामपंथियों के साथ मिलकर देशविरोधी गतिविधियाँ चला रहे हैं, परन्तु काँग्रेस को तो इस मामले पर ध्यान देना ही नहीं था, सो नहीं दिया गया, नतीजा सामने है. 

(भगवान राम का पुतला जलाने संबंधी JNU छात्रों का विवाद) 

फिर भी जब JNU में स्पष्ट रूप देशद्रोह से भरे हुई नारे लगते हैं कि, “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्ला इंशा अल्ला...” अथवा “भारत की बर्बादी तक, जंग रहेगी, जंग रहेगी...”, “तुम कितने अफज़ल मारोगे, घर-घर अफज़ल निकलेगा...” तब भी बेशर्म वामपंथी-सेकुलर एवं काँग्रेसी इन दूषित छात्रों के बचाव में उतर आते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जब JNU के ये तथाकथित छात्र नारे लगाते हैं कि “अफज़ल तेरा सपना अधूरा.. मिलकर करेंगे हम पूरा...” तो वे किस सपने की बात कर रहे हैं?? संसद पर हुए एक असफल हमले की? तो क्या राहुल गाँधी और तमाम वामपंथी नेता यह चाहते हैं, कि अगली बार जब संसद पर हमला हो, तो वह सफल हो जाए?? काँग्रेस की मुस्लिम वोट बैंक राजनीति का काला इतिहास, वामपंथियों से उनकी जुगलबंदी व समझौते तथा वामपंथ की देशद्रोही सोच को देखते हुए राहुल गाँधी का तत्काल JNU पहुँचना कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता... लेकिन देश को युवराज के इस “स्टंट” की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी यह निश्चित है.

Friday, March 4, 2016

नीला अम्बर छायी बहार ,फिर भी ना जाने क्यूँ है ये मनवा बेकरार !! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न. - +9414657511

प्रकृति ने तो अपने उदार मन के अनुरूप मनुष्य की हज़ार छेड़छाड़ के बावजूद "बहार"रुपी छटा बिखेर दी है ! जिधर देखो ठंडी-मीठी हवा चल रही है , पक्षी चहचहा रहे हैं , रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं ,बादल आ-जा रहे हैं !पल में मौसम ठंडा और फिर जल्द ही गरम हो जाता है !कामदेव जैसे अपने तीर-कमान लेकर अपनी रति को "फांसने"निकल पड़ा है ! आज के नौजवान तो कम  प्रातः सैर को बाहर निकलते  हैं , लेकिन हम जैसे अधेड़ उम्र के लोगों को तो अनेक कारणों से सुबह होते ही घर से बाहर निकलना ही पड़ता है ! शायद ! इसीलिए ही कामदेव हम बूढ़ों को ही पहले अपना शिकार बनाता है !
                तभी तो हम आजकल "इधर-उधर""तांका-झांकी"बहुत करने लगे हैं ! धीमे-धीमे होठों पे शायरी गुनगुनाने लगे हैं  ! कुछ चटपटा खाने को मन करता है !लेकिन हमारी "भागवान" बड़ी ही इस मामले में "सजग"रहती है !फौरन हमारे मन  भांप जाती है ! मुस्कुराते हुए डाँट कर  चुटीले अंदाज़ में हमें समझा भी देती है !तो हम "शांत"से होकर बैठ जाते हैं जी !लेकिन हमारी बेकरारी फिर भी बनी ही रहती है !हम कोई बहाना बनाकर फिरसे घर से बाहर निकल जाते हैं तो सामने से हमारा परम मित्र राधे भी परेशान सा हुआ हमारे ही तरफ आता दिखाई पड़ता है !
                             शरारत भरे अंदाज़ में हम उससे पूछते हैं की क्या तुम्हें भी घर में बैठने में "बेकरारी"सी हो रही थी ?तो राधे बोला -हां यार मुझे भी घबराहट सी हो रही है ! तो मैंने पूछा क्यों क्या हुआ ?मन रंगीन हो गयाथा क्या ?  नहीं यार !रंगीन नहीं मन ज़लील हुआ महसूस कर रहा है !मैंने उसे चाय की दूकान  तरफ धकेलते हुए कहा कि आओ !!यहां बैठ कर "चाय पे चर्चा "करते हैं और अपने "मन कीबात "करते हैं !चाय का ऑर्डर देते हुए राधे ने जैसे अपने मन का दर्द सारा का सारा उंडेल दिया !
                    बोला !देश के छात्र-शिक्षक,पक्ष-विपक्ष के नेता,अंग्रेजी-हिंदी के पत्रकार,लेखक-इतिहासकार,-कर्मचारी,पोलिस-जज और संत-महात्मा सब हम आम आदमी को परेशान करने में लगे हुए हैं !इनके कहने से हम सोएं-जागे,खाएं-पियें,पढ़ें-लिखें,सरकार चुने,भाषण सुनें,रोएँ-हंसें और अपने बच्चे पैदा करें !लेकिन इनके लिए कोई कायदा-क़ानून नहीं है क्यों ?सब बड़े आदमियों को हम आम आदमी एक "औज़ार "की तरह ही क्यों दिखाई देते हैं ?
                   मैंने कहा हाँ यार ! तुम सच ही कहते हो ! हमारा मन "रंग"से कैसे भरे ?जब इतनी समस्याएं हमारे जीवन में घर कर गयीं हों ! अब तो कोई उम्मीद भी दिखाई नहीं देती क्योंकि विपक्ष-पक्ष के सभी नेताओं ने भारत के क़ानून,धर्म और इतिहास को अपने सुविधा अनुरूप ही बना दिया है ! अब तो परमात्मा ही हमारे जीवन में कोई खुशियों के रंग भरे तो भरे !क्योंकि किसी बड़ी खुशी की आस में हम छोटी-मोटी ख़ुशी से प्रसन्न भी तो नहीं होते !  भजमन राधे-कृष्णा,राधे-कृष्णा राधे कृष्णा हरी !!
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मेरा मोबाईल नंबर ये है :- 09414657511. 01509-222768. धन्यवाद !!आपका प्रिय मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा,
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R.C.P. रोड, सूरतगढ़ !


Saturday, February 27, 2016

क्या ऐसी चर्चाओं से कोई समस्या का हल निकल सकता है ?- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. - +9414657511.

  परम विदुषी बहन मृणाल-पांडे जी ने हाल ही एक लेख में वेदों का उदाहरण देते हुए लिखा कि हर समस्या का समाधान चर्चा करने से ही हो सकता है ! मैं भी इस वाक्य से शब्दशः सहमत हूँ , लेकिन चर्चा किस विषय पर कौन करेगा और किन नियमों के तहत तहत होनी चाहिए , ये नियम भी तो वेदों ने बताये हैं ! उनका ज़िक्र करना शायद वो भूल गयीं , या फिर किसी विशेष "विचारधारा"के प्रति अपना पक्ष दिखाने के चक्कर में उन्होंने चर्चा की शर्तों को बताना उचित नहीं समझा ! 
                          प्रश्न ये भी पैदा होता है कि क्या हर समस्या केवल चर्चा कर देने से समाप्त भी हो जाती है क्या ?जैसे J.N.U.में राष्ट्र-द्रोह के मामले में हुआ ! पक्ष-विपक्ष दोनों ने इस मुद्दे को अन्य सहयोगी मुद्दों में ऐसा उलझाया कि असल मुद्दा तो आज कहीं दिखाई नहीं पड रहा है लेकिन दुसरे कई ऐसे मुद्दे और ज्यादा उभर कर सामने आ गए , जिनसे देश और ज्यादा आहत हो गया है !कोई महिषासुर के नाम ले देने से दुखी हो गया तो कोई दुर्गा को "कालगर्ल" कहने से !और तो और तब तो हद्द ही हो गयी जब बहन मायावती ने एक जुमला बोले जाने पर उनका शीश ही मांग लिया !
                               पिछली सरकार के बड़े अफसर और मंत्री ना जाने क्या बयान दे रहे हैं कि विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है ? क्या कॉंग्रेस इतने बड़े षड्यंत्र भी रच सकती है कि वो 2004 से लेकर आज तक  मोदी जी निशाना बनाने हेतु भारत के हिन्दुओं और देश तक को दांव पर लगा सकती है ?अगर ये सत्य है तो मोदी जी को भारत में आपात-काल लगाकर एक बार पूरे देश को "खंगाल"लेना चाहिए कि जितने भी देश के अंदर दुश्मन किसी भी वेश में रह रहे हैं उनको छान कर बाहर निकला जा सके और उलटे  सके !
                             विपक्षी नेता तो पता नहीं किस लालच में आकर कोंग्रस के साथ गलबहियां डाले हुए है ! शायद इंदिरा जी की मार वो भूल गए हैं !भगवन ही उनको होश में ला सकता है !मेरा तो ये मानना है कि संसद के नियमों को सख्ती से लागू करके हर उस ख़ास विषय का "हल"ढूंढकर ही उसे समापत किया जाए और फिर किसी अन्य मुद्दे पर बात शुरू की जाए ! अन्यथा देश का भला नहीं हो सकता !" 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG .

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Friday, February 26, 2016

हो जाएगा ये भी काम !!!!" 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG .- पीताम्बर दत्त शर्मा,

आओ मिलकर आग लगाएं,नित नित नूतन स्वांग करें,
पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें,
पहले से हम बंटे हुए हैं,और अधिक बंट जाएँ हम,
100 करोड़ हिन्दू है,मिलकर इक दूजे को खाएं हम,
देश मरे भूखा चाहे पर अपना पेट भराओ जी,
शर्माओ मत,भारत माँ के बाल नोचने आओ जी,
तेरा हिस्सा मेरा हिस्सा,किस्सा बहुत पुराना है,
हिस्से की रस्साकसियों में भूल नही ये जाना है,
याद करो ज़मीन के हिस्सों पर जब हम टकराते थे,
गज़नी कासिम बाबर मौका पाते ही घुस आते थे
अब हम लड़ने आये हैं आरक्षण वाली रोटी पर,
जैसे कुत्ते झगड़ रहे हों कटी गाय की बोटी पर,
हमने कलम किताब लगन को दूर बहुत ही फेंका है,
नाकारों को खीर खिलाना संविधान का ठेका है,
मैं भी पिछड़ा,मैं भी पिछड़ा,कह कर बनो भिखारी जी,
ठाकुर पंडित बनिया सब के सब कर लो तैयारी जी,
जब पटेल के कुनबों की थाली खाली हो सकती है,
कई राजपूतों के घर भी कंगाली हो सकती है,
बनिए का बेटा रिक्शे की मज़दूरी कर सकता है,
और किसी वामन का बेटा भूखा भी मर सकता है,
आओ इन्ही बहानों को लेकर,सड़कों पर टूट पड़ो,
अपनी अपनी बिरादरी का झंडा लेकर छूट पड़ो,
शर्म करो,हिन्दू बनते हो,नस्लें तुम पर थूंकेंगी,
बंटे हुए हो जाति पंथ में,ये ज्वालायें फूकेंगी,
मैं पटेल हूँ मैं गुर्जर हूँ,लड़ते रहिये शानों से,
फिर से तुम जूते खाओगे गजनी की संतानो से,
ऐसे ही हिन्दू समाज के कतरे कतरे कर डालो,
संविधान को छलनी कर के,गोबर इसमें भर डालो,
राम राम करते इक दिन तुम अस्सलाम हो जाओगे,
बंटने पर ही अड़े रहे तो फिर गुलाम हो जाओगे...।।
कुलदीप सिंह सिसोदिया सूरतगढ

हो जाएगा ये भी काम !!!!" 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG .

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जिला-श्री गंगानगर।

Friday, February 19, 2016

5TH Pillar Corruption Killer: "काला-धन","काले-मन","काले-उद्देश्य","काली-राजनीति"...

5TH Pillar Corruption Killer: "काला-धन","काले-मन","काले-उद्देश्य","काली-राजनीति"...: हे!भारतमाता !!                    सादर-नमन ! तू कब से परेशान है ,मुझे नहीं पता लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ की जब से तुमने मुझे अपनी गोद मे...

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...