Friday, March 4, 2016

नीला अम्बर छायी बहार ,फिर भी ना जाने क्यूँ है ये मनवा बेकरार !! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)मो.न. - +9414657511

प्रकृति ने तो अपने उदार मन के अनुरूप मनुष्य की हज़ार छेड़छाड़ के बावजूद "बहार"रुपी छटा बिखेर दी है ! जिधर देखो ठंडी-मीठी हवा चल रही है , पक्षी चहचहा रहे हैं , रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं ,बादल आ-जा रहे हैं !पल में मौसम ठंडा और फिर जल्द ही गरम हो जाता है !कामदेव जैसे अपने तीर-कमान लेकर अपनी रति को "फांसने"निकल पड़ा है ! आज के नौजवान तो कम  प्रातः सैर को बाहर निकलते  हैं , लेकिन हम जैसे अधेड़ उम्र के लोगों को तो अनेक कारणों से सुबह होते ही घर से बाहर निकलना ही पड़ता है ! शायद ! इसीलिए ही कामदेव हम बूढ़ों को ही पहले अपना शिकार बनाता है !
                तभी तो हम आजकल "इधर-उधर""तांका-झांकी"बहुत करने लगे हैं ! धीमे-धीमे होठों पे शायरी गुनगुनाने लगे हैं  ! कुछ चटपटा खाने को मन करता है !लेकिन हमारी "भागवान" बड़ी ही इस मामले में "सजग"रहती है !फौरन हमारे मन  भांप जाती है ! मुस्कुराते हुए डाँट कर  चुटीले अंदाज़ में हमें समझा भी देती है !तो हम "शांत"से होकर बैठ जाते हैं जी !लेकिन हमारी बेकरारी फिर भी बनी ही रहती है !हम कोई बहाना बनाकर फिरसे घर से बाहर निकल जाते हैं तो सामने से हमारा परम मित्र राधे भी परेशान सा हुआ हमारे ही तरफ आता दिखाई पड़ता है !
                             शरारत भरे अंदाज़ में हम उससे पूछते हैं की क्या तुम्हें भी घर में बैठने में "बेकरारी"सी हो रही थी ?तो राधे बोला -हां यार मुझे भी घबराहट सी हो रही है ! तो मैंने पूछा क्यों क्या हुआ ?मन रंगीन हो गयाथा क्या ?  नहीं यार !रंगीन नहीं मन ज़लील हुआ महसूस कर रहा है !मैंने उसे चाय की दूकान  तरफ धकेलते हुए कहा कि आओ !!यहां बैठ कर "चाय पे चर्चा "करते हैं और अपने "मन कीबात "करते हैं !चाय का ऑर्डर देते हुए राधे ने जैसे अपने मन का दर्द सारा का सारा उंडेल दिया !
                    बोला !देश के छात्र-शिक्षक,पक्ष-विपक्ष के नेता,अंग्रेजी-हिंदी के पत्रकार,लेखक-इतिहासकार,-कर्मचारी,पोलिस-जज और संत-महात्मा सब हम आम आदमी को परेशान करने में लगे हुए हैं !इनके कहने से हम सोएं-जागे,खाएं-पियें,पढ़ें-लिखें,सरकार चुने,भाषण सुनें,रोएँ-हंसें और अपने बच्चे पैदा करें !लेकिन इनके लिए कोई कायदा-क़ानून नहीं है क्यों ?सब बड़े आदमियों को हम आम आदमी एक "औज़ार "की तरह ही क्यों दिखाई देते हैं ?
                   मैंने कहा हाँ यार ! तुम सच ही कहते हो ! हमारा मन "रंग"से कैसे भरे ?जब इतनी समस्याएं हमारे जीवन में घर कर गयीं हों ! अब तो कोई उम्मीद भी दिखाई नहीं देती क्योंकि विपक्ष-पक्ष के सभी नेताओं ने भारत के क़ानून,धर्म और इतिहास को अपने सुविधा अनुरूप ही बना दिया है ! अब तो परमात्मा ही हमारे जीवन में कोई खुशियों के रंग भरे तो भरे !क्योंकि किसी बड़ी खुशी की आस में हम छोटी-मोटी ख़ुशी से प्रसन्न भी तो नहीं होते !  भजमन राधे-कृष्णा,राधे-कृष्णा राधे कृष्णा हरी !!
" 5TH PILLAR CORRUPTION KILLER " THE BLOG .

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