Monday, June 6, 2016

पिछले दरवाजे से सियासी लूट का लोकतंत्र .....????????

साभार श्री पूण्य प्रसुन्न वाजपेयी जी की कलम से !

रेल मंत्री सुरेश प्रभु हैं महाराष्ट्र के लेकिन इनका नया ठिकाना आंध्रप्रदेश का हो गया । शहरी विकास मंत्री वेकैंया नायडू हैं आंध्र प्रदेश के लेकिन अब ये राजस्थान के हो गये । वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण हैं तो आंध्रप्रेदश की लेकिन अब कर्नाटक की हो गई । संसदीय राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी हैं तो यूपी के लेकिन अब इनका नया पता झारखंड का है । यानी चारों मंत्री को नये राज्यो में किराये पर घर लेना होगा या घर खरीदना होगा । फिर उसी पते के मुताबिक सभी का वोटिंग कार्ड बनेगा । यानी जो सवाल कभी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर बीजेपी उठाती थी कि जिन्हें असम का अ नहीं पता वह असम से राज्यसभा में कैसे और क्यो । तो सवाल सिर्फ इतना नहीं कि मंत्री बने रहे तो घर का पता और ठिकाना ही मंत्री का बदल जाये । और वह उस राज्य में पहुंच जाये जहा के बारे में जानकारी गूगल से आगे ना हो । तो दूसरा सवाल यह भी है कि जब देश के किसी भी हिस्से में रहने वाला वाला किसी नये प्रांत में जनता से कोई सरोकार रखे बगैर भी वहां से राज्यसभा सदस्य बनकर मंत्री बन सकता है तो उसकी जबाबदेही होती क्या है । और बिना चुनाव लड़े या चुनाव हारने के बावजूद अगर  किसी सरकार में मंत्रियो में फेहरिस्त राज्यसभा के सदस्यों की ज्यादा हो तो फिर लोकसभा सदस्य मंत्री बनने लायक नहीं होते या राज्यसभा सदस्य ज्यादा लायक होते हैं यह सवाल भी उठ सकता है । क्योंकि मौजूदा वक्त में मोदी सरकार को ही परखे तो दर्जन भर कैबिनेट मिनिस्टर राज्यसभा सदस्य है । फेहरिस्त देखें । वित्त मंत्री अरुण जेटली , रक्षा मंत्री पर्रिकर, शहरी विकास मंत्री वेकैंया नायडू, वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण, रेल मंत्री सुरेश प्रभु, मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी , ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी वीरेन्द्र सिंह, उर्जा मंत्री पियूष गोयल, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान अल्पसंख्यक मंत्री नजमा हेपतुल्ला , संचार मंत्री रविसंकर प्रसाद, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, संसदीय राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी सभी राज्यसभा सदस्य । और महत्वपूर्ण यह भी है कि अरुण जेटली और स्मृति ईरानी गुजरात का प्रतिनिधित्व करते हैं । तो उडीसा के धर्मेन्द्र प्रधान बिहार का प्रतिनिधित्व करते हैं। और नजमा हेपतुल्ला यूपी की हैं लेकिन वह मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। यानी हर पांच बरस में लोकसभा चुनाव के जरीये सत्ता बदलने का एलान चाहे हो ।

लेकिन सत्ता चलाने वाले ज्यादातर राज्यसभा सदस्य हैं, जिन्हें जनता पांच बरस के लिये नहीं बल्कि पार्टियां ही अपनी वोटिंग से छह बरस के लिये चुनती है। और पांच बरस बाद देश में सत्ता चाहे बदल जाये लेकिन राज्यसभा सदस्यों पर सत्ता बदलने की आंच नहीं आती । वजह भी यही है कि मौजूदा वक्त में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्यो की संख्या बीजेपी से ज्यादा है ।लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह खेल मोदी सरकार में ही पहली बार हुआ । याद कीजिये मनमोहन सरकार में डेढ दर्जन कैबिनैट मिनिस्टर रासज्यसभा सदस्य थे । तो सवाल तब भी सवाल अब भी । तो क्या बीजेपी का भी कांग्रेसीकरण हो चुका है इसलिये जनता के सामने यह सवाल है कि उसे कुछ बदलता नजर नहीं आता चाहे सवाल राबर्ट वाड्रा का है । चाहे सवाल यूपी की बिसात का हो या फिर सवाल महंगाई का हो ।

तो बात राबर्ट वाड्रा से शुरु करें । दामादश्री यानी राबर्ट वाड्रा। और राबर्ट पर लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने आरोप सीधे लगाये कि वह घोटालो का बादशाह है । देश का सौदागर है । किसानों का अपराधी है । और माना यही गया कि दिल्ली में सत्ता बदली नहीं कि राबर्ट वाड्रा जेल में ही नजर आयेगे । लेकिन मोदी सरकार के दो बरस पूरे होने के बाद भी राबर्ट वाड्रा खुल्लम खुल्ला घूम रहे हैं और आरोपों के फेहरिस्त में एक नया नाम राबर्ट वाड्रा से जुडा कि लंदन में कथित संपत्ति है । और संबंध हथियारों के विवादित सोदेबाज से है। तो सवाल यही है कि राबर्ट वाड्रा का फाइल खुलती क्यों नहीं और अगर जमीनो को लेकर हरियाणा और राजस्थान में खुलती हुई दिखती है तो फिर राबर्ट वाड्रा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अभी तक शुरु हुई क्यो नहीं है। तो क्या कानूनी कार्रवाई हुई तो फिर मुद्दा ही खत्म हो जायेगा । क्याोंकि 2012 में दिल्ली और आसपास की जमीनो की खरीद में राबर्ट वाड्रा का नाम आया। हरियाणा में तब के कांग्रेसी सीएम हुड्डा पर राबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के जमीन खरीद में लाभ पहुंचाने का आरोप लगा । राजस्थान में गहलोत सरकार पर वाड्रा के लिये जमीन हथियाने का आरोप लगे । और राबर्ट वाड्रा के तमाम कच्चे चिट्ठे के साथ 27 अप्रैल 2014 को रविशंकर प्रसाद, जेपी नड्डा और बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने 'दामादश्री' नाम की एक आठ मिनट की फ़िल्म दिखायी । फिल्म देखकर और नेताओं के वक्तव्य सुनकर दो बरस पहले ही लगा था कि अगर यह सत्ता में आ गये तो फिर राबर्ट वाड्रा का खेल खत्म । यानी तो दो बरस पहले बीजेपी ने कांग्रेस शासित राज्य सरकारों पर वाड्रा के 'महल को खड़ा करने में सहयोग' देने का आरोप लगाया था । लेकिन दो बरस बाद भी हुआ क्या । सत्ता पलट गई । नेता मंत्री बन गये । और राबर्ट वाड्रा के खिलाफ कोई कार्रावाई हुई नहीं । दूसरा सवाल यूपी की बिसात का । जब
कांग्रेस की सत्ता थी तब राहुल गांधी यूपी के दलित के साथ रोटी खाते हुये नजर आते थे । अब बीजेपी की सत्ता है तो अमित शाह दलित के घर पर साथ बैठकर रोटी खाते नजर आते थे । लेकिन जिस यूपी को राजनीतिक तौर पर अपनी अपनी प्रयोगशाला बनाकर काग्रेस और बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग शुरु की उसका एक सच यह भी है कि यूपी में दलितों उत्पीडन के मामलो में ना तो कमी आई ना ही उनकी जिन्दगी में कोई बदलाव आया । क्योंकि 2010 से 2015 के बीच का दलित उतपीडन के सबसे ज्यादा मामले यूपी में ही दर्ज हुये ।आर्थिक तौर पर सबसे पिछडे यूपी के ही दलित रहे । शिक्षा के क्षेत्र में यूपी के ही दलित बच्चो ने सबसे कम स्कूल देखे । तो क्या राजनीति इसी का नाम है । या वोट बैक में बदली जा चुके जातियो को लेकर सियासत इसी का नाम है । हो जो भी लेकिन सोशल इंजीनियरिंग तले यूपी को नापने की तैयारी हर किसी की ऐसी ही है । और अब बीजेपी भी कांग्रेस की तर्ज पर उसी रास्ते पर । मसलन पिछड़ी जाति के वोट बैंक में सेंध लगने के लिये ही केशव प्रसाद मोर्या यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया । ब्राह्मणों को साधने के लिये शिव प्रताप शुक्ला को राज्यसभा भेजा गया । उनके धुर विरोधी योगी आदित्यनाथ को मोदी कैबिनेट में लाने की तैयारी हो रही है । इसी बीचे 94 जिला अध्यक्ष और नगर अध्यक्षो में से 44 पर पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति । तो 29 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 9 वैश्य और 4 दलित समाज से है । चूकि बीजेपी समझ चुकी है कि यूपी में यादव,जाटव और मुस्लिम मिलाकर 35 प्रतिशत हैं, जिनके वोट उन्हें मिलेंगे नहीं तो बीजेपी की नजर बाकि 65 प्रतिशत पर है। और बीजेपी के सोशल इंजीनियर्स को लगता हैं पिछड़ी और अगड़ी जातियों का समन्वय के आधार पर यूपी में बीजेपी की बहार आ सकती है । तो बीजेपी की नजर निषाद वोट बैंक से लेकर राजभर समाज में सेंध लगाने की है । झटका मायावती को देना है तो बीजेपी ने बौद्ध भिक्षुक की ब्रहम् चेतना यात्रा की शुरआत भी कर दी, जो अक्टूबर तक चलेगी । लेकिन यूपी में बीजेपी का चेहरा होगा कौन यह सवाल बीजेपी के माथे पर शिकन पैदा करता है क्योंकि सोशल इंजीनियरिंग वोट दिला सकते है लेकिन यूपी का चेहरा कैसे दुरस्त हो यह फार्मूला किसी के पास नहीं है । क्योंकि यूपी का सच खौफनाक है । 12 करोड़ लोग खेती पर टिके हुये । 6 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे है । 3 करोड़ दलितों को दो जून की रोटी मुहैया नही है । 20 लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं । लेकिन सबकुछ सियासी खेल की छांव में इसलिये छुप जाता है क्योकि देश को लगता यही है कि यूपी को जीत लिया तो देश को जीत लिया और दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर ही निकलता है । इसलिये पहली बार जनता की जेब से कैसे सरकार अपना खजाना भर रही है यह भी हर कोई देख रहा है लेकिन आवाज कही नहीं निकलती । 1 जून से दो जून की रोटी को महंगा करने वाली कई सेवाओं पर आधा फीसदी कृषि कल्याण सेस लागू हो गया । इससे सर्विस टैक्स 14.5 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी हो गई । यानी सारी चीजें महंगी हो गई । लेकिन समझना यह भी होगा कि सरकार कृषि सेस के जरिए कृषि और किसानों की योजनाओं के लिए पांच हजार करोड़ रुपए जुटाना चाहती है । लेकिन-कृषि सेस से कमाई को कही ज्यादा होगी । ठीक वैसे ही जैसे स्वच्छ भारत सेस समेत तमाम तरह के सेस से सरकार को हर साल करीब 1 लाख 16 हजार करोड़ रुपए की कमाई हो रही है । सिर्फ पेट्रोल-डीजल पर सेस से बीते साल सरकार को 21,054 करोड़ रुपए मिले । और मोदी सरकार के राज में अप्रत्यक्ष कर के जरिए खजाना भरने का खेल इस तरह चल रहा है कि एक तरफ सर्विस टैक्स सालाना 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है । तो दूसरी तरफ सेस और सर्विस टैक्स के जरिए इनडायरेक्ट टैक्स का बोझ लोगों पर इस कदर बढ रहै है कि जनता ने पिछले बरस अप्रैल में 47417 करोड अप्रत्यक्ष टैक्स दिया तो इस बरस अप्रैल में 64 394 करोड । यानी देश की समूची राजनीति ही जब जनता की लूट में लगी हो तो फिर सत्ता किसी की हो फर्क किसे पडता है ।

Thursday, June 2, 2016

कैसे बदलेगी राहुल गांधी की कांग्रेस???

नेहरु खानदान की चौथी पीढ़ी अगर यह सोचकर कांग्रेस की कमान संभालने की तैयारी कर रही है कि वह देश की कमान भी संभाल लेगी या जनता राहुल गांधी के हाथ में देश की बागडोर सौप देगी तो इससे ज्यादा बड़ा कोई सपना मौजूदा वक्त में हो नहीं सकता है। क्योंकि कांग्रेसियों को नहीं पता है कि उसे सर्जरी करनी भी है तो कहां करनी है। वोट बैंक तो दूर खुद बिखरे कांग्रेसियों को ही कांग्रेस कैसे जोड़े इस सच से वह दूर है। फिर आजादी के दौर के बोझ को लिये कांग्रेस मौजूदा सबसे युवा देश को कैसे साधे इसके उपाय भी नहीं है । इसीलिये कांग्रेस को लेकर सारी बहस कमान संभालने पर जा ठहर रही है। यानी सोनिया और राहुल के बीच फंसी कांग्रेस। यानी अभी सोनिया गांधी के हाथ में कमान है तो गंठबंधन को लेकर कांग्रेस लचीली है। सहयोगी भी सोनिया को लेकर लचीले हैं। अगर राहुल गांधी के हाथ में कमान होगी तो राहुल का रुख सहयोगियों को लेकर और सहयोगियों का कांग्रेस को लेकर रुख बदल जायेगा। तो क्या कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी से बड़ा कोई सवाल नहीं है। और राहुल गांधी के सामने कांग्रेस के सुनहरे युग को लौटाने के लिये खुद के प्रयोग की खुली छूट पाने के अलावा कोई बड़ा सवाल नहीं है। या फिर पहली बार गांधी परिवार फेल होकर पास होने के उपाय खोज रहा है । यानी गांधी परिवार को लेकर कांग्रेस में इससे पहले कोई सवाल नेहरु इंदिरा या राजीव के दौर में जो नहीं उठा वह सोनिया के दौर में राहुल गांधी को लेकर उठ रहे हैं। तो यह कांग्रेस की नही गांधी परिवार के परीक्षा की घड़ी है । लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई कांग्रेस बदलने को तैयार है। राहुल गांधी भी कांग्रेस के संगठन में ऐसा कोई परिवर्तन करने को तैयार है जिससे में नये चेहरे,नयी सोच, नये विजन का समावेश हो। क्योंकि कांग्रेसी कद्दावर नामों को ही देखिये। चिदंबरम, एके एंटोनी ,कपिल सिब्बल ,जयराम रमेश,आनंद शर्मा, अंबिका सोनी , गुलाम नबीं आजाद , आस्कर फर्नाडिस, चिरंजीवी, रेणुका चौधरी, पीएल पूनिया, व्यालार रवि। यह सभी चेहरे मनमोहन सिंह के दौर में उनके कैबिनेट मंत्री रहे हैं। और सभी मौजूदा वक्त में राज्य सभा में हैं। तो फिर कांग्रेस में बदला क्या है या बदलेगा क्या। 


क्योंकि एक तरफ सत्ता में रहते हुये गांधी पारिवार बदलते हिन्दुस्तन की उस नब्ज को पकड़ नहीं पाया जहा जनता की नुमाइन्दगी करते हुये जनता के प्रति कोई जिम्मेदारी कांग्रेसी नेता-मंत्रियों की होनी चाहिये। तो दूसरी तरफ जनता के बीच गये बगैर गांधी परिवार के घर या किचन के चक्कर लगाकर कैसे मंत्री बनकर कद बढाया जाता है इस सिद्धांत को कांग्रेस ने पाल पोसकर बढा कर दिया । और असर उसी का हुआ कि पसीना बहाकर कांग्रेस के लिये गांव गांव में खडा हुआ वोट क्लेक्टर कांग्रेस से ही निराश हो गया । नेता के पीछे कार्यकर्ता गायब हुआ तो 10 जनपथ की चाकरी से ही नेता को कद मिलने लगा । गांधी परिवार के इर्द-गिर्द का काकस सबसे ताकतवर कांग्रेसी नेता हो गया । यानी जो सवाल बार बार हर कांग्रेसी को परेशान करता है कि आखिर गांधी परिवार का औरा खत्म क्यों हो गया। या देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का सूपड़ा प्रांत दर प्रांत साफ क्यों होते चले जा रहा है। वह उन सवालो के मर्म से दूर है कि आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक या किसानों के भीतर भी बदलाव आया लेकिन कांग्रेस नहीं बदली। कांग्रेस के पांरपरिक वोटर के सरोकार सूचना तकनालाजी से बदल गये। लेकिन कांग्रेस नहीं बदली। यानी नेहरु की चौथी पीढ़ी राहुल गांधी के तौर पर सामाजिक-आर्थिक आधारो पर नहीं बदली लेकिन देश के किसान मजदूर, दलित अल्पसंख्यकों की चौथी पीढी ना सिर्फ बदली बल्कि मुख्यधारा में आने की उसकी छटपटाहट कहीं तेज हो गई। लेकिन कांग्रेस के भीतर विरासत की सत्ता से आगे राजनीति निकल नहीं पायी। इसीलिये यह सवाल बड़ा है कि क्या वाकई कांग्रेस का ट्रांसफारमेशन सोनिया से राहुल के पास सत्ता जाने भर से हो जायेगा । या फिर यब ऐसा दांव है जिसे खेलना मजबूरी है। ना खेलना कमजोरी है। तो इंतजार कीजिये राहुल एरा की शुरुआत का। क्योंकि उसकी पहली परीक्षा तो यूपी में होगी। और माना तो यही जा रहा है कि यूपी चुनाव से पहले राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन जायेंगे और यूपी की बिसात पर मोदी और राहुल के शह-मात का खेल 2019 के चुनाव की लकीर तय कर देगा।

यानी जिस आरक्षण के सवाल ने यूपी की राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी को हाशिये पर ढकेल दिया। मुलायम-मायावती के सामाजिक समीकरण को तोड पाने में असफल हो गये । 25 बरस बाद उसी यूपी की राजनीति बिसात पर बीजेपी-कांग्रेस को बताना है कि वह कैसे एक दूसरे से बडे राजनीतिक दल है और मोदी-राहुल को दिकानाहै कि वह कैसे मुलायम-मायावती से बडे क्षत्रप हैं। ध्यान दें तो यूपी में मोदी की बिसात बिछने लगी है। जिसमें पिछडी जाति के मौर्य प्रदेश अध्यक्ष तो ब्रहमण शिवप्रताप शुक्ला राज्यसभा और जाट मेता भूपेन्द्र सिंह को विधान परिषद में भेजा। अगली कड़ी में शिवप्रताप शुक्ला के धुर विरोधी योगी आदित्यनाथ को केन्द्र में मंत्री बनाने की तैयारी हो रही है तो राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के जरीये यूपी में टिकटो पर आखरी मुहर की कवायद । यानी बीजेपी सोशल इंजीनियरिंग के हर उस माप दंड को परख रही है जिसे एक वक्त गोविन्दाचार्य ने उठाया और जिसे कल्याण सिंह ने आजमाया। तो दूसरी तरफ राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को ही मथने के लिये तैयार है। कांग्रेस महासचिव , सचिव , राज्य प्रमुख और विभाग प्रमुख को बदलने के लिये तैयार है । पंचमडी शिविर की तर्ज पर मंथन शिविर की तैयारी यूपी चुनाव से पहले यूपी में ही करने की तैयारी है । लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वाकई राहुल गांधी अब वोटरो से सीधा सरोकार चाहते है । क्योकि कांग्रेसी कार्यकर्ता तो सडक पर निकलने को तैयार है लेकिन वह बिना आधार वाले या भ्रष्ट कांग्रेसियो के पीछे भीड के रुप में खडे होने को तैयार नहीं है । तो आखरी सवाल यही कि जिस दौर में हिन्दुस्तान सबसे युवा है उस दौर में राहुल ही कांग्रेस में एकमात्र युवा रहेंगे या कांग्रेस भी युवा होगी ।

Tuesday, May 31, 2016

भूल गए हम दोहे,चौपाइयां और छन्द !! - पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. - +9414657511

वो भी क्या ज़माना था जब हर दसवां भारतवासी अपनी आम बात में भी कोई न कोई कविता का प्रकार प्रयोग किया करता था !हमारे कवि लोग भी इनका भरपूर प्रयोग अपनी कविताएं गढ़ने में किया करते थे ! फिर भारत में अंग्रेज़ आये,मुसलमान आये तो कुछ लोग बहुत ही बढ़िया शेयर और ग़ज़ल कहने लगे ! जो दिल के पार हो जाय करती थीं ! 1980 तलक किसी बुरे शब्द का प्रयोग शायद ही की शायर,गीतकार या ग़ज़ल के लिखने वाले ने किया हो !
              लेकिन आज हालात ये हैं कि कवि हो या शायर,ग़ज़लकार हो या कोई गीतकार ,मशहूर होने के लिए वो द्विअर्थी शब्दों या गंदे शब्दों का प्रयोग करने को सफलता का आसान रास्ता मानता है ! आज कल कई चैनलों पर जो कॉमेडी शो दिखाए जा रहे हैं वो तो फूहड़ता की हद ही पार करते नज़र आते हैं !अभी कलर चैनल के कॉमेडी शो में कृष्णा ने राम गोपाल वर्मा को "नल्ला-अवार्ड"देने की कोशिश की , तो उनकी आँखों का गुस्सा देख कर मीका सिंह ने मौका सम्भाल लिया !वरना कुछ भी हो सकता था !
                  "AIB "नामक हास्य वीडिओ में "तन्मय भट्ट नामक कथित हास्य कलाकार ने अपनी "गन्दी-कला" का प्रदर्शन करते हुए लता जी और सचिन जी पर अभद्र बातें और गालियां कहीं जिन्हें कतई सही नहीं कहा जा सकता !टीवी चैनल वाले भी ऐसे गम्भीर मामलों पर चर्चा करते समय निम्न स्तर के "विशेषज्ञ"जानबूझ कर बुलाते हैं जैसे वो भी गंदगी फैलाना चाहते हों !दर्शक भी अब अच्छी तरह से समझने लगे हैं कि कौन सा विशेषज्ञ क्या बोलेगा !
                    क्या ये सब किसी षड्यंत्र का हिस्सा हैं ?कौन हैं वो लोग जो फ़िल्मी सितारों ,लेखकों,कवियों गीतकारों और विज्ञापनों द्वारा देश की महान संस्कृति को नष्ट करवाना चाहते हैं !देश की सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे सभी मामलों की गहनता से जांच करनी चाहिए !अच्छे कवियों को गंदे कवियों का सन्मान नहीं करना चाहिए !गंदे फ़िल्मी सितारों की फिल्में नहीं देखनी चाहिए !टीवी कार्यक्रमों का भी सरकारी सेंसर-बोर्ड होना चाहिए !
                 जय - हिन्द !! जय - भारत !!
 "5th पिल्लर करप्शन किल्लर"वो ब्लॉग जिसे आप रोज़ाना पढ़ना,बाँटना और अपने अमूल्य कॉमेंट्स देना चाहेंगे !





Thursday, May 26, 2016

एक खुला पत्र - श्री अशोक परनामी (प्रदेशाध्यक्ष भाजपा राजस्थान)के नाम - पीतांबर दत्त शर्मा

माननीय प्रदेशाध्यक्ष परनामी जी , सादर नमस्कार !
कुशलता के आदान-प्रदान पश्चात समाचार ये है कि हमने जैसे ही आपके श्रीगंगानगर जिले में आगमन और कार्यकर्ताओं के मिलन समाचार अख़बारों में पढ़ा , तभी से हमारा मन तरह-तरह के विचारों से उद्वेलित होने लगा !आपको अपने सुझाव संगठन को मजबूत करने हेतु दूँ या ना दूँ !वैसे तो हमने एक जनवरी 2016 से सक्रिय राजनीती और समाजसेवा से अपनेआप को अलग कर लिया है ! क्योंकि हमें 30 वर्षों के राजनितिक और समाजसेवी जीवन से ये अनुभव प्राप्त हुआ है कि आज की जनता को ना तो ईमानदार नेता चाहिए और नाही सच्चा समाजसेवी !  इसीलिए हमने अपना सारा ध्यान केवल लेखन पर ही लगा दिया है !इंटरनेट पर "फिफ्थ पिल्लर करप्शन किल्लर"नामक ब्लॉग मुझे सम्पूर्ण संतुष्टि देता है !
मान्यवर !
                    भाजपा के सभी नेता मंत्री अपनी अपनी क्षमता अनुसार बढ़िया काम कर रहे हैं !इनके पास कार्यकर्ताओं से मिलने का समय नहीं है और ना ही उनको ये संतुष्ट कर पाये हैं !आम जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं को एक ही तराजू में तो नहीं तोला जा सकता ?लेकिन हमारा संगठन जैसे कुम्भकर्णी नींद सो गया लगता है !राजनितिक नियुक्तियां भी नहीं करी गईं हैं !कोई रोजगार उपलब्ध कराने में मदद देना तो बड़ी दूर की बात हो गयी है !इसलिए मेरे मन में कुछ प्रश्न दौड़ रहे हैं  उत्तर मैं कार्यकर्ताओं के हित में चाहता हूँ !
1. क्या हमारे उतने ही कार्यकर्त्ता होते हैं जितने कार्यक्रमों में या मीटिंग में उपस्थित होते हैं ?
2.  आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि जो नहीं आये वो क्यों नहीं आये !
3. क्या केवल कार्यकर्ताओं की संख्या से ही आप संतुष्ट हो जाते हैं ?कभी पुराने कार्यकर्ताओं से अलग से मिलने की इच्छा नहीं होती आपको?
4. क्या करोड़ों के विज्ञापन देकर कार्यकर्ताओं द्वारा किये गए प्रचार को नकारा जा सकता है ? 
5. क्या आज के नए कार्यकर्त्ता सिर्फ फोटो में भीड़ दिखाने के लिए ही हैं ?
6. क्या आप और आपके संगठन के पदाधिकारी अपने कर्तव्यों के बारे में जानते हैं ?या फिर वो भी नेताओं की तरह माला पहनी,भाषण दिया और नाश्ता करके चले जाते हैं !
                 माफ़ कीजियेगा मेरे प्रश्न कड़वे हैं लेकिन ये कड़वी दवाई पार्टी हित में मुझे आपको देनी पड़ी !ऐसा लगता है जैसे संगठन की "गुद्दी"सत्ता ने पकड़ रख्खी हो !
                       नमस्कार !!
                                            एक पुराना कार्यकर्त्ता,
                                             पीतांबर दत्त शर्मा 
                                     मो.न. 9414657511 
 "5th पिल्लर करप्शन किल्लर"वो ब्लॉग जिसे आप रोज़ाना पढ़ना,बाँटना और अपने अमूल्य कॉमेंट्स देना चाहेंगे !

Wednesday, May 25, 2016

"मंहगाई कम करने में बाधक ये "व्यपारी"!! - पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. +9414657511

आलू, हो या प्याज ,दाल हो या घी-तेल और मिर्च हो या मसाले , इनमे से किसी का भी अगर दाम बढ़ जाता है तो बेचारे मध्यम दर्जे के आदमी का बुरा हाल हो जाता है ! क्योंकि वो पहले ही "गरीब-अमीर"के दो पाटन के बीच में पिस रहा जो होता है ! निष्चय ही सभी सरकारों को इस विषय पर सबसे पहले विचार करके तुरंत ही उपाय करने चाहिए महंगाई रोकने हेतु , लेकिन कोई भी सरकार सफल नहीं हो पाती है !मैंने अपने जीवन के अनुभव से जो समझा और जाना है , वो ये है कि जब भी किसी फसल के आने का समय होता है तब व्यापारी लोग बेचारे किसान को कम मूल्य देते हैं ,और जब साड़ी फसल आ चुकी होती है तब ये व्यापारी लोग उस माल को किसी जगह छिपा लेते हैं और फिर महंगे दामों पर बेचते हैं !
                                  ये भी देखने में आया है कि आजकल भारत के लोगों का रहने का स्तर भी "ऊंचा" हो गया है !सैंकड़ों कमाने वाला आज हज़ारों कमा रहा है , हजारों कमाने वाला आज लाखों और लाखों वाला करोड़ों कमा रहा है ! सब्जी बेचने वाले रेहड़ी वालों से लेकर बड़े-बड़े मॉल के शो-रूमों वालों को भी इसका एहसास हो चुका है,इसलिए सब 10/- रूपये वाली वस्तु के 50 /-रूपये ग्राहक से मांगते हैं ! ग्राहक बड़े ही आराम से उसे पैसे दे देता है और घर आकर सरकारों को कोसता है !मैं तो हंसी-हंसी में सब्ज़ी-राशन बेचने वालों से कहता ही रहता हूँ कि यारो क्यों हमारे मोदी जी को बदनाम करने में लगे हो ?
                    सच में मित्रो !! आज हर नागरिक को जागरूक होने की आवष्यकता है !उसे अपने "ज्ञान-चक्षु"खुले रखने चाहिएँ !किसी मीडिया या राजनितिक नेता के कहने से नहीं बल्कि अपने ज्ञान से दोषी को ढूंढना चाहिए , फिर उसकी शिकायत उस विभाग के अधिकारी को करनी चाहिए ! निजात अवश्य मिलेगी ! दूसरी तरफ मेरी सभी प्रांतों की सरकारों से भी हाथ जोड़कर गुज़ारिश है कि सभी कार्यों से पहले खाद्य-सामग्री के मूल्यों को निर्धारित कीजिये !आज हालात ये हैं कि कोई व्यापारी जितना चाहे उतना अपने उत्पाद पर मूल्य छाप सकता है क्यों कोई अफसर ऐसे लोगों को चेक नहीं करते ?ऐसे नाकारा अफसरों को भी दण्डित किया जाना चाहिए !
           जय - हिन्द !! जय - भारत !!
 "5th पिल्लर करप्शन किल्लर"वो ब्लॉग जिसे आप रोज़ाना पढ़ना,बाँटना और अपने अमूल्य कॉमेंट्स देना चाहेंगे !


                           

Tuesday, May 24, 2016

जब बात हिन्दू-मुसलमान की नहीं इंसान की होगी तब कांग्रेस-बीजेपी भी नहीं होगी !! -- साभार श्री पूण्य प्रसुन्न वाजपेयी जी !!

निगाहों में सोनिया गांधी और निशाने पर राहुल गांधी। वार भी चौतरफा। कहीं अंड़गा लगाने वालों की हार का जिक्र तो कहीं कांग्रेस मुक्त भारत का फलसफा। कोई अखक्कडपन से नाराज। तो कोई बदलते दौर में कांग्रेस के ना बदलने से नाराज। किसी को लगता है सर्जरी होनी चाहिये। तो कोई फैसले के इंतजार में। लेकिन क्या इससे कांग्रेस के अच्छे दिन आ जायेंगे। यकीनन यह सवाल हर कांग्रेसी को परेशान कर रहा है होगा कि चूक हो कहां रही है या फिर कांग्रेस हाशिये पर जा क्यों रही है। तो सवाल तीन हैं। पहला,क्या बदलते सामाजिक-आर्थिक हालातों से कांग्रेस का कोई जुडाव है। दूसरा, क्या सड़क पर सरोकार के साथ संघर्ष के लिये कद्दावर नेता बचे हैं। तीसरा, क्या एक वक्त का सबसे महत्वपूर्ण कार्यकत्ता "वोट क्लेक्टर " को कोई महत्व देता है। यकीनन गांधी परिवार के सियासी संघर्ष में कोई बडा अंतर नहीं आया। लेकिन गांधी परिवार यह नहीं समझ पाया कि समाज के भीतर का संघर्ष और तनाव बदल चुका है । राजनीति को लेकर जनता का जुडाव और राजनीति के जरीये सत्ता की समझ भी आर्थिक सुधार के बाद यानी 1991 के बाद यानी बीते 25 बरस में खासी तेजी से बदली है। और इस दौर में कांग्रेस इतनी ही बदली है कि बुजुर्गों को सम्मान देने और युवाओं के पसीने को महत्व देने की कांग्रेसी परंपरा ही कांग्रेस से समाप्त हो चुकी है।


दिल्ली के सियासी गलियारे के प्रभावशाली कांग्रेस के बड़े नेता मान लिये गये। और 10 जनपथ के भीतर झांक कर बाहर निकलनेवाला सबसे ताकतवर कांग्रेसी माना जाने लगा । तो कांग्रेस का मतलब अगर गांधी परिवार हो गया तो समझना यह भी होगा कि कांग्रेस का संगठन । कांग्रेस का कैडर । कांग्रेस का नेतृत्व ।चाहे पंचायत स्तर पर हो या जिले स्तर पर या फिर राज्य स्तर पर । कमान किसी के भी हाथ में हो । कमान थामने वाला अपनी जगह राहुल गांधी या सोनिया गांधी ही है । यानी काग्रसी ना तो गांधी परिवार के औरे से बाहर आ पाया है और ना ही आजादी के संघर्ष के उस नोस्टालजिया से बाहर निकल पाया जहा बात हिन्दू, मुस्लिम, दलित, आदिवासी से बाहर निकल कर इंसान का सवाल सबसे बड़ा हो जाये। और इंसान को एक समान मानकर राजनीतिक सवाल देश में उठने चाहिये इससे भी सियासी दलो ने परहेज किया तो वजह राष्ट्रीय राजनीति का दिल्ली में सिमटना हो गया। क्योंकि दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता काम कैसे करती है और सत्ता के लिये कैसी
सियासत होती है यह इससे भी समझा जा सकता है कि दिल्ली में असम की जीत को लेकर बीजेपी के जश्न का आखिरी सच यह भी है कि अगर एजीपी और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ना होता तो वहा बीजेपी सरकार भी ना होगी। और कांग्रेस अगर एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन कर लेती तो इतना निराश भी ना होती ।

लेकिन सवाल असम की जीत हार का नहीं बल्कि सवाल बीजेपी और कांग्रेस को अब जीत के लिये क्षेत्रीय सहयोगियों की जरुरत लगातार बढ रही है यह मौजूदा दौर का सच है । क्योंकि सही मायने में बीजेपी ने अपने बूते हरियाणा, गुजरात, राजस्थान , मध्यप्रदेश, छत्तिसगढ और गोवा यानी छह राज्यों में सरकार बनायी है। तो कांग्रेस ने अपने बूते कर्नाटक, हिमाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम में सरकार बनायी है । और देश के बाकि राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग के साथ ही कांग्रेस बीजेपी है। या फिर क्षेत्रीय पार्टियों ने अपने बूते सरकार बनायी है। यानी बीजेपी हो या कांग्रेस। सच तो यही है कि दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां धीरे धीरे क्षेत्रिय पार्टियों के आसरे होती चली जा रही हैं। और क्षेत्रीय पार्टियो की ताकत यही है वह अपने इलाके को वोटरों को दिल्ली से उनका हक दिलाने से लेकर खुद अपने सरोकार भी वोटरों से जोड़ते हैं। यानी बीजेपी चाहे खुद को पैन इंडिया पार्टी के तौर पर देखे। या कांग्रेस चाहे खुद को आजादी से पहले की पार्टी मान कर खुद ही भारत से जोड़ ले। लेकिन सच यही है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनो आपसी टकराव में सिमट ही रही है और चुनावी जीत के लिये क्षेत्रिये पार्टियों के कंधे पर सवार होकर एक दूसरे के साथ शह-मात का खेल खेल रही है । और इस खेल में वोटर कैसे ठगा जाता है और सत्ता कैसे बनती है यह मुसलिम बहुल टाप चार राज्यों से समझा जा सकता है क्योंकि जम्मू कश्मीर में 68.3 फिसदी मुसलमान है । और पीडीपी के साथ बीजेपी सरकार चला रही है । असम में 34.2 फीसदी मुसलमान है और एजीपी व बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे है । फिर बंगाल और केरल में करीब 27 फिसदी मुसलमान हैं और पहली बार दोनों ही राज्यो में बीजेपी उम्मीदवारो ने चुनावी जीत की दस्तक दी है । तो सवाल कई है । मसलन , क्या बीजेपी को मुस्लिम विरोधी बताना बीजेपी को ही लाभ पहुंचाना है । क्या खुद बीजेपी चाहती है कि वह हिन्दुत्व के रंग में दिखे जिससे मुस्लिम विरोध की सोच बरकरार रहे । या फिर वोटर धर्म-जाति में बंटता है लेकिन सत्ता का चरित्र हिन्दु-मुस्लिम , दलित आदिवासी नहीं देखता । क्योकि सारा खेल वोट बैंक बनाकर सत्ता तक पहुंचने का है और सत्ता का गठबंधन वोट बैंक की थ्योरी को खारिज कर कामन मिनिमम प्रोग्राम पर चलने लगता है । तो हो सकता है कि वाक़ई आज लगभग 68 साल बाद कांग्रेस देश में अपने राजनीतिक सफ़र के आख़िर पड़ाव पर हो। और बीजेपी बुलंदी पर। लेकिन सवाल ये भी है कि बीजेपी की ये बुलंदी कहीं उसके भी ख़ात्मे की शुरूआत तो नहीं। क्योंकि 1984 में में बीजेपी अगर लोकसभा में 2 सीट पर सिमट के रह गई तो कांग्रेस के पास 403 सीटें थीं। आज तस्वीर उलट चुकी है। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस को जनता ने आज नकार दिया है।

क्या कल को इन्हीं हालात पर बीजेपी नहीं पहुंच सकती है। इसकी बहुत बड़ी वजह ये है बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति का लगभग एक सा होना। क्योंकि दोनों ही पार्टियों ने अपने राजनीतिक सफ़र में फूट डालो शासन करो नीति को ही अपनाया। 1989 में विश्व हिन्दू परिषद के रामजन्मभूमि शिलान्यास आंदोलन के दौरान भागलपुर में दंगे हुए। तो बिहार में शासन कांग्रेस का था। 1992 में बीजेपी की अगुवाई में बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी तो केन्द्र में कांग्रेस थी। 1992 में महाराष्ट्र में शिवसेना के भड़काने पर दंगे हुए तो केन्द्र और महाराष्ट्र में शासन कांग्रेस का था। श्रीकृष्णा रिपोर्ट ने बाल ठाकरे और शिवसेना को दंगों के लिये दोषी माना लेकिन कांग्रेस सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे ही ना जाने कितने उदाहरण है जिसमें साफ़ है कि दंगे अगर बीजेपी या उसके सहयोगियों के भड़काने पर हुए तो कांग्रेस ने समाज को बांटने वाले इन दर्दनाक हादसों पर रोक लगाने के लिये सही कदम नहीं उठाए। समाज बंटता गया और कांग्रेसी सत्ता चलती रही। जब तक चल सकी। आज बीजेपी भी उसी राह पर है। अफ़वाहों के दम साप्रदायिक हिंसा । बीफ़ के नाम पर हत्याएं। केन्द्र की ख़ामोशी। नारों की कसौटी पर देश द्रोह और देश भक्ति का तय होना। इतिहास को दोबारा लिखे जाने की कोशिश। और इसके बर अक्स हर साल 1 करोड़ दस लाख नौजवानों का रोज़गार के बाज़ार में उतरना और उसमें से ज़्यादातर का बेरोज़गार रह जाना। शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी के 6 फ़ीसदी के आबंटन की मांग। तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में तय किये गए जीडीपी के 1.2 फ़ीसदी हिस्से को लगभग दोगुना करने की दरकार। और देश की बड़ी आबादी पर सूखे का क़हर....। जाहिर है विकास के अकाल से लेकर पानी के सूखे से जूझते लोगों को नारा नहीं नीर चाहिये। कांग्रेस समाज को बांटने का काम छुप कर करती थी। बीजेपी की सियासत खुली है तो वह कमोबेश खुल कर रही है। और आखरी सवाल बीजेपी को लेकर इसलिये क्योकि कश्मीरी पंडितो के सवाल धाटी में अब भी अनसुलझे है । जबकि सत्ता में पीडीपी के साथ बीजेपी ही है । तो बात कांग्रेस से शुरु हुई और खत्म बीजेपी पर हुई तो समझना होगा कि आने वाले वक्त में कांग्रेस या बीजेपी की गूंज से ज्यादा क्षेत्रिय दलो का उभार इसलिये होगा क्योकि धीर धीरे बात हिन्दु - मुसलमान की नहीं इंसान की होगी ! - साभार श्री पूण्य प्रसुन्न वाजपेयी जी !!
 "5th पिल्लर करप्शन किल्लर"वो ब्लॉग जिसे आप रोज़ाना पढ़ना,बाँटना और अपने अमूल्य कॉमेंट्स देना चाहेंगे !




Friday, May 20, 2016

" सर्जरी कांग्रेस की " - पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. +9414657511

सच यही है कि जितने भी आज बड़े नेता भारत में हैं , वो या उनका कोई बुज़ुर्ग कॉंग्रेसी अवश्य रहा होगा ! इसीलिए हम चाहे कांग्रेस के कितने भी विरोधी क्यों ना हों , लेकिन जब भी उस पर कोई कष्ट आता है तो सबसे पहले हम ही उन्हें अपना "इलाज" करवाने की सलाह दे देते हैं ! महाभारत का युद्ध भी जब हो रहा था तब भी दिन में "भाई-भाई"लड़ा करते थे और शाम को उस पक्ष से अफ़सोस भी प्रकट करने पंहुच जाया करते थे ,जिसके किसी सदस्य को उन्होंने ही मारा होता था !
                             ठीक इसी तरह हमारे जेटली जी ने भी अपने ब्लॉग में ये लिख दिया है कि "कॉंगर्स को अपनी सर्जरी करवा लेनी चाहिए "!! सिर्फ जेटली जी ही नहीं बल्कि दुसरे दलों के नेता,कई कांग्रेस के नेता और हमारे जैसे लेखक-पत्रकार भी पूरे जोर-शोर से "सलाह"दे रहे हैं कि कांग्रेस अपनी सर्जरी अवश्य करवाए ! ये शायद इसीलिए हो रहा है क्योंकि हमारे इस "शरीर"के अंदर आज भी कोई "कॉंग्रेसी" छिपा बैठा है !ऐसा नहीं है कि सिर्फ यही एक कारण है हम सबके ऐसा बोलने का ! कुछ ना कुछ हमारे मनों में "और भी साज़िशें"दौड़ रही हैं !
                    जैसे दिग्गी राजा जी ने स्प्ष्ट कह दिया है कि "मुझ जैसों को बाहर निकाल दो सोनिया जी "!!ऐसा कहने के पीछे उनका असली मक़सद तो ये है कि सोनिया मनमोहन जी को छोड़ कर राहुल  कांग्रेस का अध्यक्ष बनादें और उनको मनमोहन सिंह जी की जगह अगला संभावित कांग्रेस का प्रधानमंत्री ! कुछ ऐसे भी कॉंग्रेसी हैं जो चाहते हैं कि प्रियंका जी को कमान सौंप कर सलमान खुर्शीद,मणिशंकर ऐयर,चिदंबरम आदि को प्रधानमंत्री बनाया जाए !वैसे आज से पहले कांग्रेस में ऐसा रिवाज़ नहीं था ! वो तो नरसिम्हा राव जी के समय अल्पमत था इसीलिए उन्हें मौका दिया गया था !और मनमोहन जी की लॉटरी इसलिए खुल गयी क्योंकि सोनिया जी विदेशी मूल की थीं !नहीं तो इससे पहले ना जाने कितने बड़े नेता कांग्रेस छोड़ कर स्वयं की पार्टियां बनाते हुए इस दुनिया से चले गए !
                     चन्द्रशेखर,देवगौड़ा,गुजराल और देसाई जी जैसे भी कांग्रेस की मेहरबानी से ही कुछ दिन-महीने अपना शासन चला पाये ! जब भी कांग्रेस को लगा कि उसकी सरकार बन सकती है तो उसने ना कॉमरेडों का लिहाज़ किया और ना ही किसी गठबंधन धर्म का !श्री देवराज अर्स और शरद पवार जैसे लोग भी इसी कॉंग्रेसी चालों का शिकार बने ! सीता राम केसरी जी को तो अगर ना हटाया गया होता कुछ दिन और तो वो अवश्य नेहरू-गांधी परिवार का बिस्तर गोल कर देते इसीलिए उन्हें "उठवा"कर  कांग्रेस से !
                    मेरी राय में तो सोनिया जी और राहुल जी को तो घर बैठ जाना चाहिए और प्रियंका जी को ही कांग्रेस का अध्यक्ष और भावी प्रधानमंत्री घोषित अगर कांग्रेस कर दे तो अवश्य 2019 में  टक्कर दी जा सकती है !अन्यथा प्रादेशिक दल भी अंदर ही अंदर "छुरियां"तैयार किये बैठे हैं कांग्रेस को समाप्त करने हेतु !
           जय - हिन्द !! जय - भारत !!


  "5th पिल्लर करप्शन किल्लर"वो ब्लॉग जिसे आप रोज़ाना पढ़ना,बाँटना और अपने अमूल्य कॉमेंट्स देना चाहेंगे !लिंक- www.pitamberduttsharma.blogspot.com.!

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...