हैरान भारत वासियों , नमस्कार ! , देश का हर नागरिक व्यापारी बन गया है , हर कार्य व्यापारिक दृष्टि से देखा जाने लगा है ,तो अगर सरकारें व्यापार करने लग गयीं हैं तो इसमें इतने अचरज की क्या बात है | जब हमारी सरकारें " आयात - निर्यात " कर सकती हैं तो देश वासियों से सस्ती जमीन लेकर मंहगी बेच कर व्यापार क्यों नहीं कर सकतीं ?? ऐतराज़ की बात तो ये है की अफसरों ने बिल्डरों से ज्यादा धन ले लिया और सरकार के खाते मैं कम पैसा डाला , ये गद्दारी है | ऐसे लोगों को " चाइना " की तरह शरेआम " फांसी " दे देनी चाहिए |जंहा तक बात किसानो की है तो किसी को बन्दूक दिखाकर या धमका कर जमीन कम दामों पर ली गयी है तो निस्संदेह रूप से उन्हें उनकी जमीन वापिस मिलनी ही चाहिए | लेकिन जंहा निर्माण हो चुका है वंहा का भाव दोबारा तय हो जाए तो कोई बुरी बात नहीं है |पहले भी किसानो को उस समय के मुताबिक कोई ज्यादा कम पैसे नहीं मिले , किसान चाहे किसी प्रदेश कही क्यों न हो ,गरीब हो या अमीर , जानता सब कुछ है | अगर जंहा निर्माण नहीं हुआ वंहा के किसानो को जमीन वापिस देना शुरू करदे , दिए हुए पैसे वापिस लेकर , तो तुरंत सच्चाई बाहर आ जाएगी | शायद ही कोई किसान अपनी जमीन वापिस ले पाए या लेना चाहे ? क्योंकि माल तो हज़म हो चुका है |टी.वी. चैनल और मिडिया भी तो व्यपारी बन चुके हैं ,चुनाव नजदीक हैं |इस लिए कुछ ज्यादा ही " हो - हल्ला " मच रहा है | हीरो - हिरोइन जैसे पब्लिक फिगर हो गए हैं पत्रकार भाई |छोटे पत्रकारों को बड़े पत्रकार " छुट - पुटिया " बता रहे हैं | सब एक - दुसरे को सिद्धांत बता रहे है | सिद्धांत यानि की " सीधा - अंत | बोलो जय श्री राम !!!!!!!!! कुल मिला कर बात ये है कि दूकान दारी ऐसे लोगों को तो बंद करनी ही पड़ेगी जो सामाजिक सरोकारों का कार्य कर रहे हैं |
FIGHT ANY TYPE OF CORRUPTION, WITH "PEN"!
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