जी हाँ मित्रो ! ऐसे ही कुछ वाक्य सुनने को मिले जब मैं बड़े दिनों बाद एक ऐसी मैरिज-पार्टी में गया जहां ज्यादातर सभी राजनितिक दलों के छोटे कार्यकर्त्ता से लेकर बड़े प्रादेशिक नेता तक पधारे हुए थे ! पधारते भी क्यों ना जी हमारे पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष श्रीमान अशोक नागपाल जी के सुपुत्र की शादी की पार्टी जो थी ! वो हैं ही इतने मिलनसार कि उनका निमंत्रण कोई ठुकरा ही नहीं सकता ! आपसी राजनितिक मतभेद अपनी जगह और प्यार अपनी जगह ! इसीलिए क्या कांग्रेस और क्या बीएसपी सभी राजनितिक और सामाजिक संस्थाओं के माननीय पदाधिकारी गण हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिलों से पधारे हुए थे ! सबसे मिलने-मिलाने और हाल-चाल जानने में ही डेढ़ घंटा लग गया जी ! और फिर इतने सुन्दर व्यंजन बनाये गए थे कि पूछिए मत आनन्द आ गया ! हमने भी वरवधु को और हमारे मित्र अशोक नागपाल जी को दिल खोलकर बधाइयां दीं !
अब आते हैं उस मुद्दे पर जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ गया ! जैसे मैंने आपको पहले ही बताया की इस पार्टी में दो जिलों से लोग आये हुए थे नए एवं पुराने कार्यकर्त्ता !सबसे राम-राम करते वक्त साथ में मैंने भी और मिलने वाले ने भी ये जानने की कोशिश करी कि उसके शहर में भाजपा और उसके कार्यकर्त्ता की क्या स्थिति है ?मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे एक दूसरे को सभी टटोल रहे थे और तोल भी रहे थे ! ये जानने की कोशिश हो रही थी कि जिस स्थिति में आज मैं हूँ क्या सामने वाला भी वैसा ही है क्या ??
मुझे तीन तरह के भाजपा कार्यकर्त्ता मिले ! कई तो उनमे से "मस्त" थे ! क्योंकि वो लोग इतने बड़े पदों पर रह चुके थे जिसके चलते कैसी भी स्थिति क्यों ना हो ?उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ! वो राज में भी पूजे जाते हैं और बिना राज के भी उनकी आवभक्त बढ़िया होती है !इनके इलावा वो भी "मस्त" थे जो आजकल सत्ता के सम्पर्क में ज्यादा हैं !
दूसरे तरह के वो लोग मिले जो " शंकित" थे ये सोच-सोच कर कि हम कार्यकर्ताओं ने इन नेताओं को जितवा तो दिया है ! लेकिन ये नेता आज अपनी जीत का कारन हमें नहीं बल्कि अपनी " खूबियों "को मानते हैं ! शायद इसीलिए इन विजयी नेताओं ने सभी "मुखर" कार्यकर्ताओं को साईड में कर दिया है बड़ी कूटनीति खेलकर ! किसी को बेइज्जत कर के निकाला तो किसी को झगड़वाकर ! अब ये कार्यकर्त्ता जनता के बीच जाएँ तो कैसे ?? उलटे वोटर इनसे पूछते हैं कि " और भाई साहिब , क्या हाल हैं आपकी भाजपा के ? तो ये लोग मजबूरी में ये जवाब देते हैं उनको कि मैंने तो छोड़ दी जी राजनीती "!!ऐसे सब मंडलों के लोग शंकित हैं की भविष्य में " हमारी भाजपा "का क्या होगा ??
तीसरे टाइप के मुझे वो लोग मिले जो पिछले कई वर्षों से पार्टी के किसी ना किसी नेता से "त्रस्त" थे ! ऐसे लोग मज़े ले-ले कर यही पूछे जा रहे थे कि " मज़े आ रहे हैं राज के "??मैंने आगे से उन्हें पूछा कि आपको आ रहे हैं क्या ?? तो वो बोले " हम तो तब कर्णधार होते हैं जब पार्टी शासन में नहीं होती " !!और फिर ठहाकों की आवाज़ हवा में गूंजती है ! जिसे सुनकर आस-पास के लोगों के सर भी समर्थन में हिलने लगते हैं !
पाठक मित्रो !! मैंने आपको ये सब इसलिए बताया क्योंकि मुझे ये सब सुनकर कुछ चिंता हुई ! लेकिन क्या पार्टी के बड़े "कर्णधारों" को भी इन सब बातों से कोई फर्क पड़ता है ?? आज मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि श्रीगंगानगर जिला " नेतृत्व-विहीन " जिला है ! सभी नेता अपना स्वार्थ तो साधना चाहते हैं लेकिन कोई भी नेता किसी कार्यकर्त्ता के दर्द को उठाना नहीं चाहता !इसीलिए सब वो नेता जो पहले जिले में बड़े नेता माने जाते थे , आज वो अपने घरों तक सिमट कर रह गए हैं ! कोई उनके घर मिलने को भी नहीं जाना चाहता ! सेवा केंद्र भी सूने पड़े रहते हैं आजकल तो !हमारे सभी पार्टियों के बड़े नेता भी ये भली-भाँती जानते हैं !क्या वो भी ऐसी हालत चाहते हैं ?आज कार्यकर्ताओं को सुना नहीं जाता बल्कि " कार्यकर्त्ता-मिलन " के नाम पर लम्बे-लम्बे भाषण पिलाये जाते हैं !पार्टी और संगठन के किसी नेता ने कार्यकर्ताओं से बात नहीं कि उन्हें क्या चाहिए जनता के लिए !
ऐसा लगता है कि अगले चुनावों से पहले इनको कार्यकर्ताओं की कोई आवश्यकता ही नहीं है ! लेकिन मुझे तो लगता है की कार्यकर्ताओं की ये " चुप्पी" एक दिन " लावा " बनकर ज्वालामुखी के रूप में फटेगी और प्रादेशिक और केंद्रीय नेतृत्व भौंचक्का रह जायेगा ये देख कर कि दिल्ली जैसे रिजल्ट कैसे आ गए ? इसलिए होशियार कर रहा हूँ कि नया नेतृत्व उभारो जो कार्यकर्ताओं को सुने-समझे और जाने !भाषण सुन-सुन कर अब कान पाक गए हैं जी ! आप सब का इस विषय पर क्या कहना है ?? अवश्य बताइयेगा !
अब आते हैं उस मुद्दे पर जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ गया ! जैसे मैंने आपको पहले ही बताया की इस पार्टी में दो जिलों से लोग आये हुए थे नए एवं पुराने कार्यकर्त्ता !सबसे राम-राम करते वक्त साथ में मैंने भी और मिलने वाले ने भी ये जानने की कोशिश करी कि उसके शहर में भाजपा और उसके कार्यकर्त्ता की क्या स्थिति है ?मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे एक दूसरे को सभी टटोल रहे थे और तोल भी रहे थे ! ये जानने की कोशिश हो रही थी कि जिस स्थिति में आज मैं हूँ क्या सामने वाला भी वैसा ही है क्या ??
मुझे तीन तरह के भाजपा कार्यकर्त्ता मिले ! कई तो उनमे से "मस्त" थे ! क्योंकि वो लोग इतने बड़े पदों पर रह चुके थे जिसके चलते कैसी भी स्थिति क्यों ना हो ?उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ! वो राज में भी पूजे जाते हैं और बिना राज के भी उनकी आवभक्त बढ़िया होती है !इनके इलावा वो भी "मस्त" थे जो आजकल सत्ता के सम्पर्क में ज्यादा हैं !
दूसरे तरह के वो लोग मिले जो " शंकित" थे ये सोच-सोच कर कि हम कार्यकर्ताओं ने इन नेताओं को जितवा तो दिया है ! लेकिन ये नेता आज अपनी जीत का कारन हमें नहीं बल्कि अपनी " खूबियों "को मानते हैं ! शायद इसीलिए इन विजयी नेताओं ने सभी "मुखर" कार्यकर्ताओं को साईड में कर दिया है बड़ी कूटनीति खेलकर ! किसी को बेइज्जत कर के निकाला तो किसी को झगड़वाकर ! अब ये कार्यकर्त्ता जनता के बीच जाएँ तो कैसे ?? उलटे वोटर इनसे पूछते हैं कि " और भाई साहिब , क्या हाल हैं आपकी भाजपा के ? तो ये लोग मजबूरी में ये जवाब देते हैं उनको कि मैंने तो छोड़ दी जी राजनीती "!!ऐसे सब मंडलों के लोग शंकित हैं की भविष्य में " हमारी भाजपा "का क्या होगा ??
तीसरे टाइप के मुझे वो लोग मिले जो पिछले कई वर्षों से पार्टी के किसी ना किसी नेता से "त्रस्त" थे ! ऐसे लोग मज़े ले-ले कर यही पूछे जा रहे थे कि " मज़े आ रहे हैं राज के "??मैंने आगे से उन्हें पूछा कि आपको आ रहे हैं क्या ?? तो वो बोले " हम तो तब कर्णधार होते हैं जब पार्टी शासन में नहीं होती " !!और फिर ठहाकों की आवाज़ हवा में गूंजती है ! जिसे सुनकर आस-पास के लोगों के सर भी समर्थन में हिलने लगते हैं !
पाठक मित्रो !! मैंने आपको ये सब इसलिए बताया क्योंकि मुझे ये सब सुनकर कुछ चिंता हुई ! लेकिन क्या पार्टी के बड़े "कर्णधारों" को भी इन सब बातों से कोई फर्क पड़ता है ?? आज मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि श्रीगंगानगर जिला " नेतृत्व-विहीन " जिला है ! सभी नेता अपना स्वार्थ तो साधना चाहते हैं लेकिन कोई भी नेता किसी कार्यकर्त्ता के दर्द को उठाना नहीं चाहता !इसीलिए सब वो नेता जो पहले जिले में बड़े नेता माने जाते थे , आज वो अपने घरों तक सिमट कर रह गए हैं ! कोई उनके घर मिलने को भी नहीं जाना चाहता ! सेवा केंद्र भी सूने पड़े रहते हैं आजकल तो !हमारे सभी पार्टियों के बड़े नेता भी ये भली-भाँती जानते हैं !क्या वो भी ऐसी हालत चाहते हैं ?आज कार्यकर्ताओं को सुना नहीं जाता बल्कि " कार्यकर्त्ता-मिलन " के नाम पर लम्बे-लम्बे भाषण पिलाये जाते हैं !पार्टी और संगठन के किसी नेता ने कार्यकर्ताओं से बात नहीं कि उन्हें क्या चाहिए जनता के लिए !
ऐसा लगता है कि अगले चुनावों से पहले इनको कार्यकर्ताओं की कोई आवश्यकता ही नहीं है ! लेकिन मुझे तो लगता है की कार्यकर्ताओं की ये " चुप्पी" एक दिन " लावा " बनकर ज्वालामुखी के रूप में फटेगी और प्रादेशिक और केंद्रीय नेतृत्व भौंचक्का रह जायेगा ये देख कर कि दिल्ली जैसे रिजल्ट कैसे आ गए ? इसलिए होशियार कर रहा हूँ कि नया नेतृत्व उभारो जो कार्यकर्ताओं को सुने-समझे और जाने !भाषण सुन-सुन कर अब कान पाक गए हैं जी ! आप सब का इस विषय पर क्या कहना है ?? अवश्य बताइयेगा !
"5TH PILLAR CORRUPTION KILLER",नामक ब्लॉग रोज़ाना अवश्य पढ़ें,जिसका लिंक - www.pitamberduttsharma.blogspot.com. है !इसे अपने मित्रों संग शेयर करें और अपने अनमोल विचार भी हमें अवश्य लिख कर भेजें !इसकी सामग्री आपको फेसबुक,गूगल+,पेज और कई ग्रुप्स में भी मिल जाएगी !इसे आप एक समाचार पत्र की तरह से ही पढ़ें !हमारी इ-मेल ईद ये है - pitamberdutt.sharma@gmail.com. f.b.id.-www.facebook.com/pitamberduttsharma.7 . आप का जीवन खुशियों से भरा रहे !इस ख़ुशी के अवसर पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!
आपका अपना - पीताम्बर दत्त शर्मा -(लेखक-विश्लेषक), मोबाईल नंबर - 9414657511 , सूरतगढ़,पिनकोड -335804 ,जिला श्री गंगानगर , राजस्थान ,भारत !
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