Friday, April 22, 2016

क्या अब हमे नए मंदिर बनाने की जरूरत है ?

उत्तराखंड के ये 'चीफ जस्टिस के. एम. जोसफ' ने कल उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को लेकर जो निर्णय दिया है उस पर मुझे कुछ नहीं कहना है | पिछले कई दशकों से न्यायलय और वहां कुर्सी में बैठे न्यायाधीशों ने ऐसे ऐसे निर्णय दिए है की संविधान के दरवाजे में दीमक लगी दिखने लगी है |

मुझे कहना सिर्फ इस निर्णय को देते समय लेचीफ जस्टिस के.एम. जोसफ की राष्ट्रपति पर की गयी टिपण्णी पर है, जहाँ उन्होंने लोकतंत्रीय व्यवस्था के राष्ट्रपति को छिड़कते हुए, उन पर सामंतशाही व्यवस्था के 'राजा' का शब्द टांका है | वैसे यह न्यायधीश महोदय अपने केरला कार्यकाल में काफी नाम कमा चुके है और भ्रष्टाचार के मसलों में काफी उदारवादी रहे है किन यहाँ उनकी शब्दों के साथ उदारवादिता बिलकुल भी स्वागत योग्य नही है | खैर उनके निर्णय की समीक्षा तो सर्वोच्च न्यायलय में होगी लेकिन उनकी टिप्पणी यही दर्शाती है की न्यायाधीश जोसफ साहब गुस्सा में है |

दरअसल न्यायमूर्ति जी, सोनिया गाँधी के प्रभाव के पच्छम में चले जाने से आहात है | उनको अच्छी तरह पता है की भारत की सत्ता में में जो क्रिश्चियनिटी का असंवैधानिक कब्ज़ा था वह वेटिकन और भारत में चर्च की माता के सत्ता से बेदखल होने से कमजोर होता जारहा है और उनके चर्च को हिन्दुओं को ईसाई बनाने में भविष्य में प्रतिकार का सामना करना पड़ेगा |

न्यायाधीश के न्याय या अन्याय पर कुछ नहीं कहना है लेकिन यह जरूर कहना है की न्यायलय अब चर्च हो सकता है, मस्जिद हो सकती है लेकिन मंदिर बिलकुल भी नहीं हो सकता है |
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2 comments:

  1. इस प्रकार की बात कहना व सोचना अभी बहुत जल्दबाजी होगी , अभी सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है , उसका इंतज़ार करना मुनासिब होगा

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  2. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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