तो प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री फर्जी नहीं है इस पर दिल्ली यूनिवर्सिटी ने भी मुहर लगा दी । लेकिन फर्जी डिग्री के सवाल ने यह सवाल तो खड़ा कर ही दिया कि जब देश के डीम्ड यूनिवर्सिटी की डिग्री को लेकर फर्जी का सवाल
दिल्ली के सीएम उठाने लगे तो फिर फर्जी शब्द डिग्री के साथ कहे अनकहे देश में चस्पा तो है ही । क्योंकि फर्जी डिग्री का खेल खासा बड़ा है । क्योंकि देश में पढाई नौकरी के लिये होती है । नौकरी पढाई पर नहीं डिग्री पर मिलती है । और इसी का असर है कि एसोचैम की रिपोर्ट कहती है मैनेजमेंट की डिग्री ले चुके 93 फिसदी नौकरी लायक नहीं है । और नैसकाम की रिपोर्ट कहती है कि 90 फिसदी ग्रेजुएट और 70 फिसदी इंजीनियर प्रशिक्षण के लायक नहीं है । और देश में फर्जी डिर्गी बांटना ही कैसे सबसे बडा बिजनेस या नौकरी हो चली है इसका आंकड़ा 2012 के सरकारी रिपोर्ट से समझा जा सकता है । जिसके मुताबिक देश में 21 यूनिवर्सिटी फर्जी डिग्री बांटते हैं । दस लाख से ज्यादा छात्र बिना कालेज गये डिग्रीधारी बन जाते है। और शायद यही वजह है कि हर राज्य में नौकरी के लिए डिग्री पढाई से ज्यादा महत्वपूर्ण है। और जब सवाल डिग्री की जांच का होता है को क्या क्या होता है । 2015 में बिहार में फर्जी डिग्री पर जांच के डर से 1400 टीचरों ने नौकरी से इस्तीफा दिया । राजस्थान में बीते साल 1872 सरपंच चुने गए, जिनमें 746 के खिलाफ फ़र्ज़ी डिग्री और मार्कशीट लगाने के आरोप हैं। इनमें 479 के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई ।
पिछले साल ही एयर इंडिया ने एक पायलट की डिग्री फर्जी होने के आरोप में उसे निलंबित किया गया । मई 2015 में लखीमपुर खीरी में 29 फर्जी डिग्री धारक शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षकों को पकड़ा गया । इन्हीं पदों के लिए 47 अभ्यर्थी फिजिकल ट्रेनिग की फर्जी मार्क शीट तथा 45 फर्जी बीए की डिग्री के साथ पकड़े गए। और पिछले साल ही दक्षिण कश्मीर के एक स्कूल टीचर मोहम्मद इमरान खान से खुली अदालत में जज ने गाय पर निबंध लिखने को कहा तो वो लिख नहीं पाया क्योंकि पढ़ाई कभी की नहीं थी और फर्जी डिग्री के आधार पर टीचर बना था । तो नौकरी पाने के लिए देश में पढाई नहीं डिग्री चाहिए ।
इसीलिये डिग्री पाने के लिए पढ़ाई जरुरी नहीं है। और पढ़ाई के लिए पैसा भी चाहिए-वक्त भी। तो जिन्हें इस झंझट से बचना है उनके लिए फर्जी डिग्री ही आसरा है। और मानव संसाधन मंत्रालय ने भी 21 यूनिवर्सिटी को ब्लैक लिस्ट किया था। बावजूद इसके न फर्जी डिग्री का खेल रुका और न फर्जी डिग्री देकर नौकरी की चाह। क्योंकि एप्लायमेंट बैकग्राउंड चैक सर्विस प्रदान करने वाली फर्म राइट की नयी रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2014 से अप्रैल 2015 तक भारत में कुल 2 लाख लोगों की डिग्री का निरीक्षण किया गया,जिसमें 52 हजार डिग्री फर्जी पायी गई । ऐसे में समझना यह भी जरुरी है कि सरकारो का नजरिया कभी शिक्षा पर रहा ही नहीं तो फर्जी डिग्री से किसी का क्या लेना देना । क्योंकि देश का सच यही है कि सरकार पाइमरी से लेकर उच्च सिक्षा तक पर हर बरस 70 हजार करोड़ खर्च करती है । और प्राईवेट क्षेत्र में हर बरस सरकारी खर्च से दुगने यानी करीब डेढ लाख करोड़ का खेल होता है। और हर बरस उच्च सिक्षा के लिये देश छोड़कर बाहर जाने वाले लाखों
छात्रो के जरीये देश का 90 हजार करोड रुपया भी बाहर ही चला जाता है । यानी जब देश में पीएम की डिग्री को लेकर सवाल उठ रहे हो तब देश में शिक्षा का स्तर कैसे बढायें । शिक्षा के लिये वातावरण कैसे बनाये। अरबो रुपये देश के बाहर शिक्षा के लिये जा रहे हो । तो इसे कैसे रोका जाये । इसके बदले अगर देश इसी में खुश है कि भारत जवान है । और 65 फिसदी आबादी 35 बरस से कम है तो अगला सवाल यह भी होगा कि इस युवा भारत को कौन सी शिक्षा मिल रही है यह भी देख-समझ लें । और शिक्षा के नाम पर कैसे और कितना बडा धंधा हो रहा है यह भी देख लें । क्योंकि निजी क्षेत्र में शिक्षा का धंधा 7 लाख करोड रुपये से ज्यादा का है । और शिक्षा का सच ये है कि नेशनल एसेसमेंट और एक्रिडिटेशन काउसिंल के मुताबिक 90 फिसदी कालेज और 70 फिसदी यूनिवर्सिसटी का स्तर निम्न है ।
आईआईटी में ही 15 से 25 फिसदी शिक्षकों की कमी है । लेकिन शिक्षा के नाम पर धंधा हो रहा है तो आलम यह है कि आजादी के बाद पहले 52 बरस में सिर्फ 44 निजी शिक्षा संस्थाओं को डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्ज दिया गया । लेकिन बीते 16 बरस में 69 निजी संस्थाओं को डीम्ड का दर्जा दे दिया गया । इतना ही नहीं जिस 2020 में भारत को दुनिया के सबसे ताकतवर और तकनीक या वैज्ञानिक क्षेत्र में भारत को मानव शक्ति का जरीखा माना जा रहा है उसका सच यही है उच्च शिक्षा के लिये भारत में दुनिया के सबसे कम छात्र रजिस्ट्रेशन कराते है । हालात यह है कि भारत में 11 फिसदी छात्र ही उच्च शिक्षा का रजिस्ट्रशन कराते है । जबकि विकसित देशो में यह 75 से 85 फिसदी तक है । और भारत को 11 फिसदी से 15 फीसदी तक पहुंचने के लिये 2,26,410 करोड़ का बजट चाहिये । और भारत का आलम यह है कि शिक्षा का बजट ही 75 हजार करोड पार नहीं कर पाया है । जबकि हर बरस देश का 6 लाख युवा पढाई के लिये 90 हजार करोड रुपया देश के बाहर ले जाता है । और भारत सरकार का उच्च शिक्षा पर बजट है 28840 करोड ।
पिछले साल ही एयर इंडिया ने एक पायलट की डिग्री फर्जी होने के आरोप में उसे निलंबित किया गया । मई 2015 में लखीमपुर खीरी में 29 फर्जी डिग्री धारक शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षकों को पकड़ा गया । इन्हीं पदों के लिए 47 अभ्यर्थी फिजिकल ट्रेनिग की फर्जी मार्क शीट तथा 45 फर्जी बीए की डिग्री के साथ पकड़े गए। और पिछले साल ही दक्षिण कश्मीर के एक स्कूल टीचर मोहम्मद इमरान खान से खुली अदालत में जज ने गाय पर निबंध लिखने को कहा तो वो लिख नहीं पाया क्योंकि पढ़ाई कभी की नहीं थी और फर्जी डिग्री के आधार पर टीचर बना था । तो नौकरी पाने के लिए देश में पढाई नहीं डिग्री चाहिए ।
इसीलिये डिग्री पाने के लिए पढ़ाई जरुरी नहीं है। और पढ़ाई के लिए पैसा भी चाहिए-वक्त भी। तो जिन्हें इस झंझट से बचना है उनके लिए फर्जी डिग्री ही आसरा है। और मानव संसाधन मंत्रालय ने भी 21 यूनिवर्सिटी को ब्लैक लिस्ट किया था। बावजूद इसके न फर्जी डिग्री का खेल रुका और न फर्जी डिग्री देकर नौकरी की चाह। क्योंकि एप्लायमेंट बैकग्राउंड चैक सर्विस प्रदान करने वाली फर्म राइट की नयी रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2014 से अप्रैल 2015 तक भारत में कुल 2 लाख लोगों की डिग्री का निरीक्षण किया गया,जिसमें 52 हजार डिग्री फर्जी पायी गई । ऐसे में समझना यह भी जरुरी है कि सरकारो का नजरिया कभी शिक्षा पर रहा ही नहीं तो फर्जी डिग्री से किसी का क्या लेना देना । क्योंकि देश का सच यही है कि सरकार पाइमरी से लेकर उच्च सिक्षा तक पर हर बरस 70 हजार करोड़ खर्च करती है । और प्राईवेट क्षेत्र में हर बरस सरकारी खर्च से दुगने यानी करीब डेढ लाख करोड़ का खेल होता है। और हर बरस उच्च सिक्षा के लिये देश छोड़कर बाहर जाने वाले लाखों
छात्रो के जरीये देश का 90 हजार करोड रुपया भी बाहर ही चला जाता है । यानी जब देश में पीएम की डिग्री को लेकर सवाल उठ रहे हो तब देश में शिक्षा का स्तर कैसे बढायें । शिक्षा के लिये वातावरण कैसे बनाये। अरबो रुपये देश के बाहर शिक्षा के लिये जा रहे हो । तो इसे कैसे रोका जाये । इसके बदले अगर देश इसी में खुश है कि भारत जवान है । और 65 फिसदी आबादी 35 बरस से कम है तो अगला सवाल यह भी होगा कि इस युवा भारत को कौन सी शिक्षा मिल रही है यह भी देख-समझ लें । और शिक्षा के नाम पर कैसे और कितना बडा धंधा हो रहा है यह भी देख लें । क्योंकि निजी क्षेत्र में शिक्षा का धंधा 7 लाख करोड रुपये से ज्यादा का है । और शिक्षा का सच ये है कि नेशनल एसेसमेंट और एक्रिडिटेशन काउसिंल के मुताबिक 90 फिसदी कालेज और 70 फिसदी यूनिवर्सिसटी का स्तर निम्न है ।
आईआईटी में ही 15 से 25 फिसदी शिक्षकों की कमी है । लेकिन शिक्षा के नाम पर धंधा हो रहा है तो आलम यह है कि आजादी के बाद पहले 52 बरस में सिर्फ 44 निजी शिक्षा संस्थाओं को डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्ज दिया गया । लेकिन बीते 16 बरस में 69 निजी संस्थाओं को डीम्ड का दर्जा दे दिया गया । इतना ही नहीं जिस 2020 में भारत को दुनिया के सबसे ताकतवर और तकनीक या वैज्ञानिक क्षेत्र में भारत को मानव शक्ति का जरीखा माना जा रहा है उसका सच यही है उच्च शिक्षा के लिये भारत में दुनिया के सबसे कम छात्र रजिस्ट्रेशन कराते है । हालात यह है कि भारत में 11 फिसदी छात्र ही उच्च शिक्षा का रजिस्ट्रशन कराते है । जबकि विकसित देशो में यह 75 से 85 फिसदी तक है । और भारत को 11 फिसदी से 15 फीसदी तक पहुंचने के लिये 2,26,410 करोड़ का बजट चाहिये । और भारत का आलम यह है कि शिक्षा का बजट ही 75 हजार करोड पार नहीं कर पाया है । जबकि हर बरस देश का 6 लाख युवा पढाई के लिये 90 हजार करोड रुपया देश के बाहर ले जाता है । और भारत सरकार का उच्च शिक्षा पर बजट है 28840 करोड ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-05-2016) को "कुछ कहने के लिये एक चेहरा होना जरूरी" (चर्चा अंक-2341) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'