Thursday, July 13, 2017

"जो करना चाहिए ,वो करते नहीं,षड्यंत्र-फरेब अच्छा लगता है"! - पीताम्बर दत्त शर्मा (स्वतंत्र टिप्पणीकार)

   जबसे ये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आया है ,तभी से भारत में जहाँ देखो उधर फरेब-षड्यंत्र ही नज़र आता है ! सोशल मीडिया ने इनके भेद खोले तो सही ,लेकिन अपने भेद बताये नहीं !शायद यही दुकानदारी है !जब किसी सार्वजनिक कार्य में दुकानदारी जुड़ जाती है तो वहाँ फिर फरेब और षड्यंत्र अपनी जगह अपनेआप बना लेते हैं !मज़े की बात ये है कि तब सच्चाई की बात भीफरेब और षड्यंत्र के साथ होती है !
                          अभी कल परसों दो दिन देश के "भरोसेमंद चैनल के विद्वान एंकर श्रीमान रविश कमर ने "फेक-न्यूज़"पर प्राइम-टाइम किया !मैंने सोचा अच्छा विषय है ,देखते हैं !लेकिन जैसे जैसे कार्यक्रम देखा ,तो ये विश्वास हो गया कि अब बिना फरेब के कोई कार्यक्रम देखने की आशा करना भी एक फरेब होता जा रहा है !उस कार्यक्रम में भाई लोग बातें अमेरिका की बता रहे थे और उदाहरण हिंदुस्तान के दे रहे थे !हद्द हो गयी ये तो !क्या ndtv वाले दर्शकों को बेवकूफ समझते हैं ?क्या बातें घूमना केवल यही लोग जानते हैं जो एंकर और रिपोर्टर होते हैं ?अजीब ज्ञान होता है इनके कार्यक्रमों में आनेवाले प्रव्क्ताओं,विशेषज्ञों और नेताओं का ?शर्म आने लगती है !इन टीवी वालों की मानें तो देश में कोई काम हो ही नहीं रहा !केवल हत्याएं,आगजनी,लूटपाट और भीड़ लिंचिंग ही कर रही है भारत की !
                              हालात ये हो गएँ हैं कि अगर किसी आदमी को सभी चैनलों की डिबेट्स दिखा-सुना दें तो वो आदमी सप्ताह में ही पागल हो जाए या हिंसक हो जाए !भारत की सरकार को ये देखना चाहिए कि ये मीडिया वाले अपने बनाये हुए नियमों का भी पालन कर रहे हैं या नहीं !चलती डिबेट में कोई भी एंकर,प्रवक्ता और विशेषज्ञ कुछ भी बोल जाता है !किसी भी छुट भइये नेता की बाईट लेकर , फिर उसपे उल-जलूल प्रतिक्रियाएं दिखाकर देश का माहौल बिगाड़ा जा रहा है !कोई जांच तो करे कि कौन इन सबकी "पटकथा "लिख रहा है ?किसके लिए ये लोग "तंदूर को तपाये"रखना चाहते हैं ?जबसे इस देश में "इंस्पेक्टर-राज"समाप्त हुआ है ,तभी से सब बदमाश लोग अपनी मनमर्ज़ियाँ करने में लगे हुए हैं !कोई तो पूछने वाला हो इस देश में ?
                            





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2 comments:

  1. ऐसे बिकाऊ मीडिया के लोगों के लिए एक बहुत अच्छा शब्द बनाया गया है जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में दल्ले कहते हैं इस समाज में फूट डालने वाले लोग 11 से पैसा लेते हैं और दूसरे पक्ष के खिलाफ अनाप-शनाप बकते रहते हैं

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-07-2017) को "धुँधली सी रोशनी है" (चर्चा अंक-2667) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...