Wednesday, September 23, 2015

"सनातन धर्म "और ये छद्म धर्मनिरपेक्ष एवं पैसों पर नाचने वाले,नेता व पत्रकार !! - पीतांबर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - 9414657511

                    देश के गद्दार कितने प्रकार के हो सकते हैं , इस विषय पर भी देश में विस्तार से चर्चा होनी चाहिए जी ! ये इस लिए आवश्यक है क्योंकि देश के दुश्मन नित नए प्रयोग करते रहते हैं !क्या पत्रकारों और नक़ली नेताओं के रूप में देश द्रोही देश को नुक्सान नहीं पंहुचा सकते ?जबकि हम पिछले कुछ समय से देख रहे हैं कि कुछ टीवी एंकर-पत्रकार कई पार्टियों में शामिल होकर अपना "ढीठ-पुना"दिखा रहे हैं !जो नहीं शामिल हो पा रहे वो बहस कराने के नाम पर अपने कार्यक्रम में ऐसे विषय लेकर बहस करते हैं जिनसे दंगे फैलें,धर्मांतरण हो,और जाति-धर्म के नाम पर फूट फैले ! इसी उद्देश्य से पत्रकारिता कर रहे रविश कुमार ने ndtv के प्राइम-टाइम में कल एक बहस की जिसमे खूब नाटक किये गए !
                            कहने को तो उन्होंने अलग-अलग प्रवक्ता बुला रख्खे थे , लेकिन वो सब एक नाटक का हिस्सा मात्र थे !!इन सब ने ये साबित करने की नाकाम कोशिश की ,कि "सनातन-धर्म", जो अरबों वर्ष पुराना है,जिसे किसने शुरू किया ,कोई नहीं जानता,इसे कौन चला रहा है कोई पता नहीं और इसका कौन मालिक था-है या होगा कोई नहीं जानता !! उस धर्म को इन्होने किसी अभय प्रवर्तक की "सनातन-सभा "सम्पत्ति बता दिया ! यहीं पर ही नहीं रुके ये गद्दार लोग ,इन्होने सनातन धर्म को आतंक फ़ैलाने वाला साबित करने की कोशिश करी ! बिलकुल वैसे ही जैसे इन्होने r.s.s.और विश्व हिंदू परिषद को हिन्दुओं का एकमात्र रक्षक बना दिया है !और अब सारे गलत-शलत इलज़ाम उन पर थोप कर अपने मालिकों को खुश कर देते हैं जिसके बदले इनके मालिक इन्हें करोड़ों रूपये "हड्डी" की तरह फैंक देते हैं और ये फिर कोट-पेंट टाई पहन कर "पूंछ"हिलाने लग जाते है !
                           ऐसा नहीं है कि जनता इनके बुरे उद्देश्यों को समझती नहीं है , लेकिन सभी दर्शक माकूल जगह ढूंढते हैं इन्हें जवाब देने हेतु , जो उन्हें रोज़ मिलती नहीं इसीलिए जनता का गुस्सा इनपर एक साथ इकठ्ठा होकर फूट पड़ता है !जिसका ये लोग फिरसे अपने पक्ष में ढाल कर फायदा उठा लेते हैं !दूसरा  इनका षड्यंत्र ये होता है कि ये भारतीयता की बात करने वाले लोगों को अपनी बात कभी पूरी ही नहीं करने देते और विरोधी मिलकर टोकने-रोकने का काम करते हैं ताकि लोग हिन्दुस्तान का पक्ष समझ ही ना सकें !सच्चे पत्रकार नेता और सरकारें इनको दण्डित क्यों नहीं करवा पातीं ये भी समझ में नहीं आ रहा !
                        सनातन-धर्म किसी की जागीर नहीं है और न ही ये किसी की मुठ्ठी में आने वाली कोई मुलायम चीज़ है जी !!ये तो एक विचार धारा है जो स्वतः चलती है और स्वतः ही बदलती है ! दुनिया में किसी भी धर्म का प्रचार होगा तो इसका अपने-आप ही हो जाएगा !हे छद्म देश के दुश्मन , छद्म सेकुलरो,नेताओ और पत्रकारों !!तुमसे पहले ना जाने कितने आये सनातन-धर्म और भारत को नुक्सान पंहुचाने वाले , लेकिन वो कुछ भी हमारा बिगाड़ नहीं पाये !फिर तुम क्या चीज़ हो ??? 
                         आइये मित्रो ! आपका स्वागत है !आपके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं ! कृपया स्वीकार करें !फिफ्थ पिल्लर करप्शन किल्लर नामक ब्लॉग में जाएँ ! इसे पढ़िए , अपने मित्रों को भी पढ़ाइये शेयर करके और अपने अनमोल कमेंट्स भी लिखिए इस लिंक पर जाकरwww.pitmberduttsharma.blogspot.com. है !इसे आप एक समाचार पत्र की तरह से ही पढ़ें !हमारी इ-मेल आई. डी. ये है - pitamberdutt.sharma@gmail.com. f.b.id.-www.facebook.com/pitamberduttsharma.7 . आप का जीवन खुशियों से भरा रहे !इस ख़ुशी के अवसर पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!
आपका अपना - पीताम्बर दत्त शर्मा -(लेखक-विश्लेषक), मोबाईल नंबर - 9414657511 , सूरतगढ़,पिनकोड -335804 ,जिला श्री गंगानगर , राजस्थान ,भारत ! इस पर लिखे हुए लेख आपको मेरे पेज,ग्रुप्स और फेसबुक पर भी पढ़ने को मिल जायेंगे ! धन्यवाद ! आपका अपना - पीताम्बर दत्त शर्मा , ( लेखक-विश्लेषक) मो. न. - 9414657511      



Sunday, September 20, 2015

"कोई सेक्स के लिए बलात्कार कर देता है ,तो किसी से सेक्स होता नहीं ", दोनों हालात घातक हैं !- पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - 9414657511

   अन्याय कैसा भी हो दुःखदायी होता है ! समाज ने अन्याय न होने पाएं , उसके लिए कुछ नियम बनाये हुए हैं ! जैसे हमारा संविधान कुछ समय पश्चात अधूरा लगने लगता है , बिल्कुल वैसे ही सामाजिक व्यवस्था भी पुरानी होती है !इसीलिए समय-समय पर दोनों में संशोधन होते रहते हैं ! लेकिन दोनों व्यवस्थाओं में संशोधन करने के तरीके बिलकुल ही अलग-अलग हैं ! जहाँ क़ानून में संशोधन तो हमारे साँसद "महोदय" ही कर सकते हैं वहीँ सामाजिक बुराइयों को दूर करने हेतु संशोधन करना उन्हीं लोगोंका काम होता है , जो उस "बीमारी"से पीड़ित हों !
                           "सती सावित्री"जैसी भारतीय नारी को "सरिता-मनोरमा-गृह शोभा-साप्ताहिक हिंदुस्तान और धर्मयुग" जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित कहानियों और लेखों ने "पश्चिमी-संस्कृति"अनुसार आधुनिक और बिकाऊ-मॉल बना दिया !इस सबके पीछे छिपे पैसे की चमक ने भी इस काम में अपना अहम रोल निभाया ! वैश्याओं का "गन्दा-धन्धा" दोनों संस्कृतियों में पुरातन काल से है ! केवल तरीकों का अंतर मात्र है !इसीलिए भारत में खुले सेक्स को बुरी चीज़ बताया गया लेकिन विदेशों में ये मनोरंजन के साधन के रूप में प्रचलित किया गया !इसीलिए हमारे नेता मुलायम सिंह जी आज भी जनता से पूछते हैं कि क्या कोई एक महिला से तीन आदमी बलात्कार कर सकते हैं ??लेकिन विदेशी संस्कृति में इसे "पार्टी मनाना या गैंग-सेक्स कहते हैं और जिसे हम बलात्कार कहते हैं वहां इसे "सरप्राईज़-सेक्स"कहा जाता है ! अंतर सोच का है !जब विदेशी संस्कृति के "पिछलग्गुओं'ने इस नारी-आधुनिकता की शुरुआत की थी तब उन्होंने ये नहीं सोचा होगा कि ये सेक्स गांव-गाँव और गली गली अपने पैर जमा लेगा !लेकिन आज की सच्चाई ये है की 4 साल के बच्चे को भी सेक्स की आवश्यकत है , बिलकुल वैसे ही जैसे उसे भोजन की आवश्यकता होती है , अपने पेट की भूख मिटाने के लिए !
                          तो अब क्या किया जाए ?? इस भयावह समस्या से निपटने हेतु , जो हमारे सामने सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है ?? कितने और बलात्कारों का इंतज़ार करेंगे हम , इस समस्या के निजात हेतु कोई उपाय करने हेतु ???क्या केवल सज़ा देना ही हर मर्ज़ का इलाज होता है ??समाज कब जागेगा ?? वो कब आधुनिक बनेगा हमारे महान कोंग्रेसियों की तरह ??नेहरू जी से लेकर द्विग्विजय सिंह जी तलक बड़े अनुभवी नेता हमें "राह"दिखा चुके हैं ! अब तो दुसरे दलों के नेता भी विधानसभा में सेक्सी वीडिओ देखते पाये गए हैं ?? मैं इलज़ाम नहीं लगा रहा सिर्फ ये बताने की कशिश कर रहा हूँ कि हमें अब कबूल करना होगा कि हमें अब एक सेक्सबाज़ार की आवश्यकता है जो कानूनी हो सुरक्षित हो आधुनिक हो और हर गांव-शहर में हो! 
                        तभी हमारे "अतिसेक्सवादी ओरतें और पुरुष"उन "सेक्स-मंदिरों"में जा सकेंगे, बिना किसी रोक टोक के  बलात्कार होने भी रुक जाएंगे ! गर फिर भी कोई ऐसा घृणित काम करे तो उसे "क्रूर"सज़ा दी जाए ! ऐसा नहीं है कि हम कोई नया , कोई बड़ा कदम उठाएंगे , बल्कि आज तक जो छिप कर हो रहा है वो खुलेआम होगा ! सबको पता होगा की शराब की तरह सेक्स करने हेतु "उपयुक्त-सामान" कहाँ मिलता है!! बस इतनी सी तो बात है !!!जितने भी सेक्सी पुरुष और महिलायें हैं , और वो मेरी इस बात से सहमत हैं तो इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ! सधन्यवाद !जय श्री राम !
                           



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Thursday, September 17, 2015

"तलाक-तलाक-तलाक बोलिए-और काम पे चलिए" !! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) - 9414657511

      लो जी !! पाठक मित्रो !! आज के इस भाग दौड़ के ज़माने में हमारे एक मुस्लिम भाई ने बड़े ही तुरत-फुरत तरीके से अपनी तथाकथित तंग करने वाली पत्नी जी से निजात पा ली है ! वो भी "जायज़" तरीके से ! कोई न्यायालय उसे ख़ारिज नहीं कर सकता !
            हुआ यूूँ कि "पुत्तर-प्रदेश"नहीं-नहीं "उत्तर-प्रदेश के बुलन्दशहर में अलीगढ शहर का फहीम खान नामक युवक अपनी पत्नी और बच्चों के संग इस्लामाबाद मोहल्ले में किसी रिश्तेदार को मिलने आया हुआ था ! वहाँ उसका अपनी पत्नी के संग किसी छोटी सी बात को लेकर बहस हो गयी ! रूठ कर जनाब बस अड्डे पंहुच गए तो बीवी भी पीछे आ गयी तो वहाँ भी बहस शुरू हो गयी ! बात इतनी बढ़ गयी की जनाब ने बीच सड़क पर ही तीन बार तलाक-तलाक - तलाक बोला और चल दिया अकेले अपने अलीगढ को ! "शायद बेचारी "बीवी उसकी खडी सोचती ही रह गयी कि या खुद ये क्या ज़ुल्म हो गया ?? अब मेरे तीन बच्चों का क्या होगा ?सात साल से दोनों बड़े प्यार से रह रहे थे ना जाने किसका मुंह देख कर चले थे कि ज़ुल्मी तलाक ही दे गया मामूली सी नहस पर ! तीनो बच्चे और वो महिला बस अड्डे पर जोर-जोर से रो रहे थे तो लगों के पूछने पर इस महिला ने ये बात बताई !
                       महिला-आयोग तक इस बेचारी की बात कब पंहुचेगी ,ये पता नहीं ! लेकिन इस मामले में कोई क़ानून कुछ नहीं कर सकता !जैसे सऊदी-अरब के एक राजनयिक के नेपाली महिला से गैंग-रेप में फंसने पर देश का कोई क़ानून उसे रोक नहीं पाया क्योंकि एक समझोते के मुताबिक ऐसा करना संभव नहीं है ! वैसे ही मुस्लिम क़ानून के तहत इस केस में कुछ कर पाना संभव नहीं है ! तो क्या कुछ बोला या लिखा भी नहीं जाए ?? ऐसा तो हो नहीं सकता ! जैसे मोदी जी को अदालत द्वारा 2002 दंगों से बरी कर दिए जाने के बाद भी हमारे "विद्वान-टीवी एंकर-पत्रकार"भाई आज तक उन्हें लपेट लेते हैं , वैसे ही हम भी प्रश्न उठाएंगे की हिन्दू क़ानून को भी इतना आसान क्यों नहीं बना दिया जाता कि कोई "पत्नी-पीड़ित"जब चाहे अपनी मुसीबत से निजात पा लेवे जी !हिन्दू आदमी के तो माता-पिता, भाई-बहन और दोस्तों तलक को बीच में उलझा दिया जाता है !
                   हम हमारे मुस्लिम भाइयों से ये अनुरोध करना चाहते हैं कि आप ऐसे विषयों पर सोचें और आवश्यक बदलाव लाने की कोशिश करें ! आज ज़माना बदल गया है लेकिन मानवीय भावनाएं चाहे वो किसी भी धर्म की ही क्यों ना हो कभी नहीं बदलती !आपके पुराने मुस्लिम क़ानून के मुताबिक तो शायद अब उस महिला को पहले किसी दुसरे आदमी के संग 6 महीने तलक साथ रहना पड़ेगा और फिर उससे तलाक लेकर अपने पुराने शौहर के साथ रह पाएगी ! लेकिन उसके बच्चों का क्या होगा ?बाकी रिश्तेदारों का व्यवहार उनके साथ कैसा होगा खुद ही जानता है !हर समाज के युवाओं को अब आगे बढ़कर अपनी बुराइयों को समापत करना होगा ! एक वैचारिक क्रान्ति अतिआव्वश्यक है जी ! खुदा हाफ़िज़ !!!अलाह मेहर करे !
                                            





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Tuesday, September 15, 2015

"अबला क्या ऐसे सबला बनेगी "?? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - 9414657511

पाठक मित्रो ! कल से दो समाचार ऐसे आ रहे हैं , जिनमें एक महिला देहरादून में और एक महिला हरियाणा में "सोमरस"पीकर आम जनता और पोलिस वालों को अपना सबला होना दिखा रही हैं ! ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ हो ! हम अपने इतिहास में अगर "गहरी-नज़र" डालें तो विभिन्न कालान्तरों में कई महिलाओं ने अपने अबला होने के लेबल को हटाने की कोशिश की है ! पुरातन काल में जब माँ दुर्गा जी को क्रोध आया था तो उन्होंने माँ काली का रूप धार लिया था ! फिर उन्होंने जो राक्षसों को मारा , तो देवताओं को भी लगने लगा की हमारा भी नंबर आ सकता है तो वो भगवान शंकर से प्रार्थना करने लगे कि प्रभो आप ही हमें बचाओ ! विनती सुन भोलेनाथ माता के गुजरने वाले रास्ते में लेट गए और जैसे ही काली के पैर उनपर पड़े तो उनका क्रोध शांत हुआ और वो वापिस साधारण रूप में आये !
                         ऐसे ही कई माननीय महिलाएं अपने आपको "माता" घोषित कर देती हैं ! शुरुआत उनके घर से ही होती है उसके बच्चे , सब बड़े छोटे उसको "माताजी-माता जी "बुलाने लग जाते हैं और पत्र-पुष्प-दक्षिणा और प्रशाद चढाने लगते हैं !यहाँ तलक कि उसका पति भी उसे "माता जी "बुलाने लग जाता है ! ऐसा होते देख पहले पडोसी फिर शहर वाले और फिर दूर वाले सब "जय माता दी " करने लग जाते हैं !ये अभी अबला से सबला बनने की एक क्रिया मात्र है !इस कार्य का तीसरा तरीका आजकल नेता-अफसर बनकर भी किया जाता है !मतलब तो पुरुष पर रौब झाड़ने और अपना हुकुम चलने से होता है ! कुछ पुरुष तो अपनी महिला को घर में ही संतुष्ट कर देते हैं उसके सारे आदेश शब्दशः मानकर !और जिन महिलाओं को फिर भी न्याय नहीं मिल पाता उन्हें देश के "संविधान"के मुताबिक हमारा महिला आयोग न्याय दिलवाता है बशर्ते  में कोई बड़ी आसामी फांसी हो ! ताकि टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में दो-चार दिन बढ़िया स्थान मिल सके महिला-आयोग की सदस्य महिलाओं को ! यानी वो भी सबला दिखने का प्रयास मात्र ही हैं !
                                  नक़ली बाबे, संत,डेरे वाले और उनके "चेले-चेलियाँ" , ये सब भारतीय समाज की विकृतियाँ हैं जो विकृत हो चुके मर्द-औरत के रिश्तों को छिपकर संतुष्टि प्रदान करवाती हैं ! नक़ली तरीके से भूत-प्रेत की छाया का आना और फिर उसका जाना भी इसी बात का दूसरा उदाहरण है !आजके आधुनिक तरीकों से सेक्स प्राब्लम दूर करने वाले डॉक्टरों और मनोचिकत्स्कों का उद्ग्म हुए कितना समय हुआ है ? उससे पहले भारतीय उपमहाद्वीप में ये समस्याएं ऐसे ही हल हुआ करतीं थीं ! कोई सेब वाला बाबा था तो कोई केले वाली माता !हर धर्म के अनुयाइयों में तरह-तरह के पीर-फ़क़ीर हुआ करते थे जिनका काम ऐसी पर्सनल जिज्ञासाएँ शांत करना ही होता था !डाक्टर लोग भी मानते हैं की "हार्मोन्स"की गड़बड़ी से महिलाएं उन चंद दिनों में ज्यादा सेक्सी और गुस्से बाज़ हो जाती हैं !इनको फिर शांत करना मुश्किल काम हो जाता है !शायद इसीलिए हमारे रिश्तों में भी "देवर-भाभी और जीजा साली"का रिश्ता ऐसा बनाया गया है कि अगर कोई दुर्घटना घट जाए या कोई सेक्स प्रॉब्लम हो जाए तो ये आपस में एक-दुसरे का "भला"करते जाएँ !और किसी को कानो कान खबर भी ना हो ! पर्दा भी बना  भी हो जाए , सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे !
                        लेकिन आजकल टीवी चैनलों के बार-बार दिखाने और आप पार्टी के कार्यकर्ताओं के नाटक करने की आदत को देखकर हर "महिला-पुरुष कुछ भी करके "बस "खबर" बनना चाहते हैं ! फिर वो किसी चेनेल में बहस के दौरान पुरुष को थप्पड़ मारने की ही घटना ही क्यों ना हो !अब प्रश्न ये पैदा होता है कि "लड़ाकू-झगड़ालू-भ्रष्ट औरतों "को भी हम सच्ची-आदर्शवादी और अच्छे चरित्र वाली महिलाओं के बहाने बक्श देंगे ??क्या हम उन्हें नारी शक्ति का अपमान होना कहकर बचाएंगे ?? आप ही बताओ मित्रो !! मैं तो जय माता दी बोलूंगा !अन्यथा महिला आयोग की अध्यक्ष जी मुझे सम्मन भेज देंगी !! क्योंकि मैं भी तो एक बड़ी मशहूर हूँ ! राम-राम-राम !!!!!!!!!!
                         


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Sunday, September 13, 2015

"अब चुनावों तक तो बिहार में "बहार"आएगी ही,अल्लाह जाने क्या होगा आगे"?! - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - 9414657511

भारत के बिहार प्रान्त में "लोकतान्त्रिक प्रक्रिया" के अधीन चुनावों का बिगुल बज गया है !लोकतान्त्रिक प्रक्रिया भी बड़ी अजीब चीज़ है साहिब ! अगर सारे बुद्धु इकठ्ठे होकर कोई फैसला करदें तो उस निर्णय पर कोई सवाल तो खड़े कर सकता है लेकिन कोई कुछ कर नहीं सकता ! नहीं ऐतबार आता तो माननीय अन्ना हज़ारे से जाकर पूछ लो !भारत के लोकतंत्र का क़ानून भी चन्द "समझदार"लोगों ने बना दिया और उसमें चंद समझदार लोग संशोधन भी करते रहते हैं ,उसे देश के 125 करोड़ लोगों को मानना ही  पड़ता है !चाहे वो उस निर्णय से सहमत हो या ना हो !अगर कोई देशवासी उस निर्णय को नहीं मानेगा तो उसे भारतीय पोलिस और न्याय-प्रणाली मिलकर "दण्ड" भी दे सकते हैं ! ये सब इसलिए होता क्योंकि हमने हमने " वोट" देकर उन  सब महानुभावों को चुना होता है !
                            ऐसी ही महान प्रक्रिया अब हमारे देश के बिहार प्रांत में होने जा रही है !जहां से बड़ी ही महान विभूतियाँ  हमें मिली हैं !सारे समाचार पत्रों, चैनलों और सोशियल मीडिया ने सभी राजनितिक दलों के "चुनावी-क्षत्रप्पों"के बारे में आपको  विस्तार से बता दिया है कि कैसे पहले जनता परिवार बना फिर टूट भी गया ! कैसे दिल्ली से केजरीवाल अपनी 'फेविकोल" लेकर आये लेकिन वो काम आती दिखाई नहीं दे रही है जी !देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी ने 40 सीटों से ही संतोष कर लिया है , क्योंकि उन्हें पता था कि अगर उन्होंने अकड़ दिखाई तो उन्हें "सच्चाई" का आईना दिखा दिया जायेगा !लेकिन अपने मुलायम ने हौसला किया और कह दिया कि हे नितीश !! क्या हुआ हम अगर संसद के चुनावों में 5 सीटें ही जीत पाये थे लेकिन बिहार के विधानसभा चुनावों में 5 सीटों पर नहीं मानेंगे !
                        दूसरी तरफ हमेशां चुप रहने वाले अनंत कुमार और भूपेन्द्र यादव जी में क्या जादू है कि पासवान-कुशवाहा और माँझी जी "कसमसा"भी रहे हैं लेकिन ये भी कह रहे हैं की कोई "झगड़ा" नहीं है ! आज 6  बजे नहीं तो कल 12 बजे सीटों की घोषणा हो जायेगी !सबकुछ भाजपा पर छोड़ दिया गया है !कुछ तो "राज़"होते हैं, इन नेताओं के बंटवारे में,जिनकी"पर्देदारी"होती है ! नहीं तो केजरीवाल जी जी मांग रख देते कि टिकटों का बंटवारा भी ओन कैमरा होना चाहिए जी !! 
                      टिकटों के बंटवारे के बाद सभी प्रकार के नेता बड़ी आसानी से आपको दर्शन देंगे , आश्वासन देंगे, खाने-पीने को देंगे, राशन-धन और कपडा देंगे और ज्यादा सारा भाषण भी देंगे ! नाच भी होगा और गान भी होगा !मालाएं पहनी भी जाएँगी और पहनाईं  भी जाएँगी ! चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों को हवा में नोटों की तरह उड़ा दिया जायेगा !पूरा बिहार "बहार"में होगा !!एम आई एम के ओवेसी भाई केवल सीमान्त बिहार में भाईचारा बढ़ाएंगे ! क्योंकि वहाँ ही भाईचारे की असली आवश्यकता है !कोई नेता का भाई होगा तो कोई बाप होगा , कोई उनकी बहन होगी तो कोई उनकी माँ होगी !! लेकिन फिर जैसे ही आपने अपना अनमोल "वोट" दे दिया.....!! उसके बाद " माँ नहीं,बेटा नहीं भाई नहीं , कुछ भी नहीं रहता है ! नेता आँखों से ऐसा ओझल हो जाता है की वो सिर्फ चैनलों और समाचार पत्रों में ही दिखाई देता है !
                                    फिर सूखा पड़ेगा,ज़मीन धँसेगी,गाड़ियां उलटेंगी, चोरियां होंगी डाके पड़ेंगे, आत्महत्याएं होंगी, भ्रष्टाचार होगा और आतंकवाद होगा जिनका सामना केवल हम आम जनता को करना होगा मेरे पाठक मित्रो लेकिन मैं आपको ये गारंटी देता हूँ कि किसी भी राजनितिक दल के नेता को कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा , फिर चाहे वो केजरीवाल हो या सोनिया गांधी मुलायम हो या कोई मोदी ! इनको भगवान ना करे अगर स्वभाविक मौत भी आने लगेगी तो ये सब अमेरिका अपना इलाज कराने चले जायेंगे ! लेकिन आप और मैं कहाँ जाएंगे ?? हमें तो यहीं रह कर अपना जीवन-यापन करना है ! ये सब इसलिए होगा क्योंकि हम "कलयुग" में जी रहे हैं !
जय श्री राम बोलना पड़ेगा ! तो बोलो जय श्री राम !!
                       



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Thursday, September 10, 2015

हम तो पूछेंगे कि ....पानी-बिजली के अफसर , नेताओं को "मैनेज" कैसे कर लेते हैं ??? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो. न. - 9414657511

पाठक मित्रो ! हमारे लोकतंत्र ने केवल हमारे नेताओं को ही "बुद्धिमान" नहीं बनाया है , बल्कि हमारे अफसरों को भी "स्मार्ट" बना दिया है ! अब हमारे बिजली और पानी सप्लाई विभाग के अफसर भली-भाँति से ये जानते हैं कि मोहल्ले से लेकर मंत्री तक से कैसे "निबटना"है ! चाहे ये नेता लोग कितने भी बड़े जन-समूह के साथ आएं , या फिर किसी मंत्री जी की कोई सिफारिश के साथ आएं , ये ऐसा "मायाजाल" बुनते हैं कि प्रार्थी अफसर की समस्या को भली-भाँति समझकर और संतुष्ट हो कर अपने घर को लौट जाता है ! काम तभी होता है जब अफसर चाहता है !
                            
                 हालात तो यहां तलक पंहुच चुके हैं कि किसी भी सरकारी दफ्तर में चले जाएँ , देखने में यही मिलेगा कि कर्मचारी जो भी कार्य कर रहा है , वो ऐसे काम कर रहा है जैसे किसी पर कोई एहसान कर रहा है ! शायद इसीलिए मोदी जी ने शपथ लेने के बाद आज की अफसर शाही को "शाबाश" दे कर और उनमें अपना विश्वास जताकर ही कार्यकाल शुरू किया !आज जिस भी युवा को देख लीजिये , वो सिर्फ अच्छी नौकरी ही चाहता है !जबकि पहले किसी भी प्रकार की नौकरी को "दोयम"दर्जे का कार्य माना जाता था !अपने "हुनर" और "कला"पर उसे "विश्वास" ही नहीं है !अपना व्यपार चलाने हेतु आज के युवा के पास अपनी "पूंजी"की भी भारी कमी है !इसीलिए सभी माता-पिता अपनी संतान को पढ़ा-लिखा कर सरकारी नौकर बनाना चाहते हैं ! क्योंकि वो देख रहे हैं कि एकबार अगर नौकरी मिल गयी तो उसे कोई हटा नहीं सकता !लेकिन नौकरी करने वाला जनहित के काम कम और आराम ज्यादा करना चाहता है !

                          मैं गया एक सरकारी दफ्तर में  देखा कि "बाबू"जी ,नए बने सरपंच,सरपंच पति और डाइरेक्टर को भी नहीं छोड़ते ! उनसे भी नकद रिश्वत नहीं तो "चाय-पानी"के नाम पर दारु पार्टी जितने पैसे लेकर उनका कहना मानते दिखाई दिए ! छोटे जनप्रतिनिधि केवल इसलिए ये लालच देते हैं कि जनता को लगे कि सरकारी कार्यालय में उनकी बहुत चलती है ! एक "इशारे" से ही उनके सरपंच - डाइरेक्टर का काम हो जाता है ! दफ्तर के सभी बाबू हमारे सरपंच - डाइरेक्टर को "नमस्कार"करते हैं !

                         जब छोटे दफ्तरों का ये हाल है तो बड़े दफ्तरों में तो निश्चय ही "बड़े खेल एवं कलाकारियां"होती होंगी ???क्योंकि भ्रष्टाचार की सभी "कलाएं"तो "ऊपर से नीचे" ही आती हैं जी !पिछले 67 सालों में सरकार चाहे किसी की भी रही हो , भ्रष्टाचार रोकने का काम किसी ने  नहीं किया है जी !देखना ये भी है कि मोदी जी के "एजेंडे"में भ्रष्टाचार को मिटाना कितने नंबर पर है ???? या फिर ये भी पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह "मैनेज" हो जाएंगे ??


                                

आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !! भगवन आपको आशीर्वाद दे !!"5TH PILLAR CORRUPTION KILLER",नामक ब्लॉग रोज़ाना अवश्य पढ़ें,जिसका लिंक -www.pitamberduttsharma.blogspot.com. है !इसे अपने मित्रों संग शेयर करें और अपने अनमोल विचार भी हमें अवश्य लिख कर भेजें !इसकी सामग्री आपको फेसबुक,गूगल+,पेज और कई ग्रुप्स में भी मिल जाएगी !इसे आप एक समाचार पत्र की तरह से ही पढ़ें !हमारी इ-मेल ईद ये है - pitamberdutt.sharma@gmail.com. f.b.id.-www.facebook.com/pitamberduttsharma.7 . आप का जीवन खुशियों से भरा रहे !इस ख़ुशी के अवसर पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!
आपका अपना - पीताम्बर दत्त शर्मा -(लेखक-विश्लेषक), मोबाईल नंबर - 9414657511 , सूरतगढ़,पिनकोड -335804 ,जिला श्री गंगानगर , राजस्थान ,भारत !

Wednesday, September 2, 2015

" सन्देशे फिल्मों के - कितने समाज सुधारक साबित हो रहे हैं "?? - पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक) मो.न. 9414657511

"भाटी ऑन छुट्टी ","जुगाड़","सारे जहाँ से महंगा हिंदुस्तान","तीन थे भाई","परफेक्ट-मिस-मैच","बिन्नी और बबलू","15. पार्क एवेन्यू " और "महारथी" आदि-आदि ये चंद ऐसी फिल्मों के नाम हैं जिन्होंने सौ,दो सौ,और तीन सौ करोड़ नहीं कमाए हैं और  ये फ़िल्में "क्वीन"की तरफ मशहूर या "ऑस्कर" में गयीं हैं ! लेकिन ये "बी और सी"ग्रेड की फ़िल्में अपने अंदर कई "अच्छे-बुरे"दोनों प्रकार के सन्देश छिपाए हुए हैं !इन्हें भी देखना चाहिए ! आजकल थियेटर में तो बहुत ही कम जाना होता है ! 
                                पूरी फिल्म भी एक बार में नहीं देखी जाती , क्योंकि समय का अभाव रहता है !पहले जैसा आनंद भी नहीं आ पाता ! मुझे याद है जब मेरी मौसी की लड़की "शोले"फिल्म देख कर आई थी , और लौटने के बाद जब तलक उसने हमें गब्बर सिंह के सारे डायलॉग उसी अंदाज़ में नहीं सुना दिए तब तलक उसे भी चैन नहीं आया था !हालांकि उसमे मनोरंजन ज्यादा और सन्देश कम था लेकिन एक इतिहास बना गयी थी शोले !
                      संतों के "सन्देश"इतने असर कारक नहीं होते जितने फिल्मों के सन्देश असरकारक होते हैं ! मेरे शिक्षक गुरु जी कहा करते थे कि छात्रों को "पहाड़े"याद नहीं होते लेकिन फिल्मों  गाने और पूरी स्टोरी याद हो जाती है ! केवल फ़िल्में ही नहीं बल्कि ज्यादातर हीरो-हीरोइनें भी दर्शकों के प्रेरणादायक बन जाते हैं ! उनके जैसा चलना,खाना-पीना,बाल-बनाना,कपडे पहनना  और बोलना युवाओं की आदतें बन जाती हैं ! ऐसा हर पीढ़ी के दर्शकों में होता आया है !  
                             फ़िल्में हमारे समाज के हर क्षेत्र पर कभी सीधे बात करती हैं तो कभी जबरदस्त "कटाक्ष" भी करती हैं ! "पी. से पी. एम." में तो नेताओं को पूंछ एवं मुखोटे लगाकर कुत्ते तक दर्शा दिया गया है ! एक नेता तो 15 मिनटों में 10 बार दल बदल लेता है ! और एक हमारे मोदी जी हैं जो नितीश-लालू और मुलायम के विचारधारा को तिलांजलि दे देने पर आश्चर्य प्रकट कर रहे हैं !धर्म के प्रचार-प्रसार और उसकी बुराइयों को भी हमारी ये फ़िल्में इस प्रकार से दिखाती हैं की जिससे दर्शकों का मनोरंजन भी हो जाता है और पथ-प्रदर्शन भी हो जाता है ! आजकल तो एक आधुनिक संत श्रीमान राम-रहीम खान (इन्सां) ने जनता को "प्रवचन" देने की बजाये फिल्मों से ही अच्छे सन्देश देने शुरू कर दिए हैं !उनका ये तरीका कुछ हद तलक कामयाब भी हुआ है शायद इसीलिए उन्होंने "MSG2" भी बना डाली है जो प्रदर्शन हेतु तैयार है ! पहली फिल्म का प्रचार तो सिख संस्थाओं और मीडिया ने उनकी बुराई  था ! देखते हैं कि अब कि बार क्या होगा !??? अपुन तो "जय - श्री - राम "!! बोलकर ही काम चला लेंगे ! जी !
                         



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आपका अपना - पीताम्बर दत्त शर्मा -(लेखक-विश्लेषक), मोबाईल नंबर - 9414657511 , सूरतगढ़,पिनकोड -335804 ,जिला श्री गंगानगर , राजस्थान ,भारत ! इस पर लिखे हुए लेख आपको मेरे पेज,ग्रुप्स और फेसबुक पर भी पढ़ने को मिल जायेंगे ! धन्यवाद ! आपका अपना - पीताम्बर दत्त शर्मा , ( लेखक-विश्लेषक) मो. न. - 9414657511

"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...