"सोने की चिड़िया"वाले देश के निवासियों,प्यार भरा नमस्कार !!विश्व का भला चाहने वाली संस्था ने भारत को सर्व शिक्षा अभियान हेतु ढेर सारा धन दिया ,जिससे उन बच्चों को पढ़ाना था और अध्यापकों को गुरु के साथ-साथ माँ बनकर भोजन भी खिलाना था ,जो गरीबी के कारन शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते थे | भारत सरकार ने अपनी राज्य सरकारों के साथ समझोता किया कि ६०% धन केंद्र देगा और ४०% धन राज्य सरकारें देंगी | परन्तु कभी केंद्र बजट समय पर नहीं भेजता ,तो कभी राज्य सरकारें बजट जारी नहीं करतीं | जिससे "बाबु"लोगों को अच्छा बहाना मिल गया उन्होंने भी आये हुए बजट को इधर-उधर करना शुरू कर दिया |जिससे अव्यवस्था फ़ैल गयी | अब हालत ये है कि जिस काम के लिए बजट आता है वो कार्य होता नहीं है |जो काम करना होता है उतना बजट लोकल स्तर पर होता नहीं जिसका नतीजा ये होता है कि कोई भी कार्य समय पर नहीं हो पाता,विद्यार्थियों हेतु भोजन,किताबें,और फल समय पर नहीं मिल पाते | हद तो तब हो जाती है जब सर्व शिक्षा अभियान के अध्यापकों को ६-६ महीनों तक वेतन नहीं मिलता | उन्हें बाज़ार से उधार तक मिलना बंद हो जाता है | अध्यापक बेचारे अपने बच्चे पालें या विद्यालय के ?????अध्यापक सरकार का ऐसा गुलाम है जिसे घटिया से घटिया कार्य में लगाया जा सकता है | चाहे गांव की भैंसें ही क्यों न गिनानी हो | रसोइया विद्यालय का तो बना ही दिया सरकार ने !!!!!!शास्त्रों में गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊपर है | क्या सरकारों को सच में कुछ नहीं पता या जानबूझ कर ऐसा किया जा रहा है !!?? राम ------जाने !!!!!तभी तो इसे "सर्व भिक्षा अभियान" कहा जाने लगा है |खुदा खैर करे !!!!!!
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