सभी व्यस्क मित्रों को प्यार भरा नमस्कार !! मुझे फेस - बुक पर कार्य करते हुए लगभग एक वर्ष होने को है | मुझे कम्पूटर चलाना भी कम आता है | कुछ समय पहले तो आता ही नहीं था | तब तलक मेरी कोई महिला मित्र नहीं थी , सिवाय मेरी पत्नी के , कसम से !! बचपन में को - एजुकेशन मैं पढ़े तो उस समय सह पाठी लडकियां अवश्य होती थी | लेकिन उस समय आज जैसी फ्रेंडशिप नहीं होती थी !! फेस - बुक पर आने के बाद , अपने ब्लॉग " ५थ पिलर करप्शन किलर " मैं ज्वलंत विषयों पर लिखने के बाद मेरी कई महिला मित्र बन गयी हैं || जिनसे समय - समय पर कई विषयों पर बात होती रहती है | आज मेरी एक महिला मित्र "निशा सहारण " जी ने एक प्रश्न पूछ लिया के " आप मर्द और ओरत के संबंधों के बारे मैं क्या सोचते हैं ? कैसे सम्बन्ध होने चाहिए ? आदि आदि || तो मैंने उनसे कहा की आज इसी विषय पर मैं अपने विचार लिखता हूँ , और आप भी पढ़ कर उस पर अपने विचार लिखना !! ऐसा अभी उनके साथ तय हुआ है और पाठको आपसे भी अनुरोध है की आप भी इस विषय पर अपने विचार अवश्य मेरे ब्लॉग पर जा कर लिखें !! अग्रिम धन्यवाद स्वीकार करें !! मर्द और ओरत दो अलग अलग सोच और शारीरिक बनावट के बने शरीर हैं जिसे परमात्मा ने बनाया है !! विश्व मैं आज दो तरह की मान्सिकताएं चलती हैं | एक वो जो , भारतीय उपमहाद्वीप या एसिया मैं चलती है और दूसरी वो जो यूरोप और पाश्चात्य संस्कृति मैं चलती है ! पाश्चात्य संस्कृति को तो चंद लाइनों मैं कहा और समझाया जा सकता है लेकिन भारतीय सोच को समझाने मैं बहुत वक्त चाहिए | कुछ लिखने से पहले मैं ये स्वीकार करता हूँ की मैं पूर्ण ज्ञाता नहीं हूँ इसलिए मेरे कथन मैं कोई त्रुटी भी हो सकती है इस लिए पहले ही क्षमा प्रार्थी हूँ !! पहले पाश्चात्य संस्कृति की बात करते हैं :-- वंहा नारी को केवल सेक्स की वस्तु माना जाता है , जो मर्द का जीवन मैं अपनी इच्छा से सहयोग भी करती है ,और मर्द भी बदले मैं उसका सहयोग करता है !! वंहा माता बेटे के साथ , भाई बहन के साथ और पिता बेटी के साथ रजामंदी से सम्भोग कर सकता है कोई बुरी बात नहीं मानी जाती , बल्कि आजकल तो ओरत ओरत के साथ और मर्द मर्द के साथ भी सम्भोग करता है जिसे कानूनी मान्यता है | दोनों अपनी मर्ज़ी से कोई भी काम कर सकते हैं !! बस इतने मैं पाश्चात्य संस्कृति का बखान हो गया और ज्यादा कुछ कहने और समझने को नहीं है ??? अब भारतीय संस्कृति की बात करते हैं :-- एशिया मैं या भारतीय उप महाद्वीप में जो संस्कृति प्रचलित है वो हमारे " सनातन धरम की दी हुई एक सौगात है , जिस से एक संतुलन समाज में बनता है !! हमारे ऋषियों - मुनियों ने वर्षों की रिसर्च के बाद ये भारतीय पधिती तैयार की है जिसे एक लेख में लिख पाना संभव नहीं है फिर भी कोशिश करता हूँ विषय को संक्षिप्त करके || नारी और पुरुष पर केन्द्रित करके || भारतीय ग्रंथों के अनुसार भगवन शिव ने सृष्टि को चलाने हेतु अपने अन्दर से ही स्त्री और पुरुष को कैद किया जिसे " अर्ध - नारीश्वर " का नाम दिया गया | " फ़र्ज़ और कर्त्तव्य " नमक शब्दों में जीवन को इस प्रकार से " गूंथा " गया की हर वो कार्य जिस को करने से मानव जाती को भविष्य में नुकसान पंहुचता उसे " पाप " कहदिया गया और जिसको करने से इंसान को फायदा पंहुचता उसे " पुन्य कार्य " कहा गया !! यंहा ओरत पहले " माता ", फिर " बहन " फिर " पत्नी " और फिर "बेटी" और " बहु" बन कर दोस्त भी बनती है , सृष्टि को चलाने हेतु सेक्स भी करती है और जीवन मैं अन्य तरह से सहयोग करने हेतु "साली" और "भाभी" भी बनती है || यंहा मैं यह भी बता दूं की अगर जीवन मैं कोई उंच - नीच हो जाये तो , साली और भाभी , और देवर और जीजा आपस मैं पति पत्नी भी बन जाते है || माता , बेटी और पत्नी के रूप में नारी को व्यापक अधिकार भी दिए गए हैं और कार्य को बांटा भी गया है || परस्थितियों वश आज के युग में जब कार्य क्षेत्र बदल गए हैं तो संबंधों पर भी असर पड़ा है | कुछ लोग आधुनिक हो गए हैं , तो कुछ अभी सिमित दायरे में ही सोचते हैं || मेरे विचारों की जन्हा तलक बात है वो ये है की सम्बन्ध रजामंदी से जैसे भी बने उसे निभाना चाहिए और अपने उस साथी को भी तुरंत बताना चाहिए जिस पर इस सम्बन्ध का असर पड़ता हो || बस धोखा नहीं होना चाहिए किसी के साथ भी || सच्ची दोस्ती ही अबसे बढ़िया रिश्ता है दुनिया में क्यों ..........???? बोलो जाया श्री राधे ..... कृष्ण ...!!!!! क्योंकि प्यार के वोही देवता हैं ....!!!
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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)
प्रिय पाठक मित्रो ! सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...
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I PROUD U SIR...
ReplyDeleteआपके विचार कुछ ज्यादा ही क्रांतिकारी हैं , पाश्चात्य संस्कृति के बारे में ....!!
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