Monday, February 18, 2013

धर्म: एक वाहियात पोस्ट लाईफ इंश्योरेंस पालिसी.....शमशाद इलाही अंसारी







आधुनिक युग में इंसानी जीवन की अवधि ८० बरस से ऊपर है, मुसलमानों की औसत आयु कुछ कम होगी, चलिए किसी मान्य आंकड़े की अनुपस्थिती में अंदाजा ही लगा लेते हैं. कम से कम औसत आयु ६० बरस मान लीजिये. एक अच्छा मुसलमान बन कर अगर दस साल की उम्र से वह पांच वक्त की नमाज पढ़ने लगे तो पचास साल में कोई ३६,५०० घंटे (२ घंटे प्रतिदिन) वह इबादत में लगा देता है. इसमें कुरान की तिलावत और रमजान के दिनों में की जाने वाली विशिष्ट इबादत को जोड़ दे तब कम से कम यह आंकडा ५०,००० घंटो से कम नहीं हो सकता. डेढ़ अरब मुसलमानो में कम से कम आधे (७५ करोड़ ) तो नमाज पढ़ते ही है जिसके परिणामस्वरूप कम से कम १०२ अरब घंटे हर रोज़ मुसलमान एक अनुत्पादक कर्मकांड में व्यर्थ करता है. ७५ करोड़ लोगो में यदि १० प्रतिशत लोगो को प्रोफेशनल मान लिया जाए और उनकी प्रति घंटा उत्पादकता दर मात्र दस डालर भी मान ले तब इस समय की कीमत हर रोज़ करीब डेढ़ अरब डालर बैठती है.
हवाई जहाज निर्माण मौजूदा दुनिया की इंजीनियरिग का सबसे अनूठा और सर्वश्रेष्ठ उत्पाद है जिसे बनाने में करीब दस लाख घंटे लगते है, जाहिर है इसके निर्माण में सैकड़ो लोग रात दिन काम करते हैं तब जा कर एक हवाई जहाज़ बनता है जिसमे श्रम, तकनीक और दिमाग का विलक्षण मिश्रण होता है. इसे सर्वज्ञानी हिन्दू अथवा मुस्लमान क्यों नही बना पाए? इस प्रश्न की  पड़ताल कौन करेगा ? सिर्फ हवाई जहाज़ ही क्यों अपनी कमरे में अपने शरीर पर पहनी और रोज़मर्रा प्रयोग में की जाने वाली कितनी ऐसी चीजे हैं जो इन लोगो ने बनाई हो ? रेडियो, फोन, मोबाईल ,लेपटाप, वातानोकूलित यंत्र, कंप्यूटर, इंजेक्शन, इलाज की आधुनिक मशीने, दवाइयां, खुर्द बीन,चश्मा, टार्च, कपडे, जूते, कागज़ ,कलम कुछ तो हो जिसके निर्माण में- जिसकी इजाद में इन महापंडितों की  कोई भूमिका हो? इन तथाकथित सर्वज्ञानियों को अगर कुत्ते के  काटने से इंसान के मरने का खतरा था तो उसकी वैक्सीन १४०० पहले कुत्ते का बायकाट करते वक्त सूझ जानी चाहिए थी. सूअर के गोश्त को हराम घोषित करना एक आसान काम था बनिस्पत इसके की उसके टेप वार्म को जला डालने वाली हीट का निर्माण करते. शराब को हराम करने वाले सर्व ज्ञानियों  को यह मालूम  नहीं कि उसमे प्रयुक्त अल्कोहोल असंख्य दवाईयों में एक महत्वपूर्ण इकाई है.
  
डेढ़ अरब डालर का ‘समय’ हर रोज़ बेकार करने वाला समाज भला अपने पैरो पर कैसे खडा रह सकता है? जिस समाज को अपने समय और उसकी आर्थिक उत्पादकता का इतना भी इल्म नहीं; वह भविष्य में किसी प्रगति पथ पर अग्रसर होगा, इसकी कल्पना करना भी उचित नहीं. जिन समाजो में वक्त के लिए कोई स्थान न हो उनका गरीब रहना एक ऐतिहासिक शर्त है. समय को साधे बिना पूंजी और  संपदा का न सर्जन संभव है, न उसका  अर्जन. जिन समाजो ने समय को साधा उन्ही समाजो ने प्रगति की और आज वही समाज पूरी दुनिया पर काबिज़ हैं. दुनिया की कोई भी महान खोज, मानव जाति के इतिहास में आज तक किसी मदरसे अथवा धार्मिक इदारे ने नहीं की, क्यों? क्या यह समझाना अभी भी कोई टेहडी खीर है? आखिर धार्मिक कर्म काण्ड में उलझे मनस और समाज को अपनी वर्तमान दिशा-दशा का अहसास कब होगा? जाहिर है निहित स्वार्थ समाज में किसी प्रगतिशील विचार को जन्म लेने की न तो कोई स्थिती बनने देते है और न उसकी कोई गुंजाईश छोड़ते है.
सभी धर्मो ने वतर्मान दशा को यथास्थिति में स्वीकार करने का ही दर्शन दिया है, चतुर धर्माधिकारी को यह मालूम था कि ऐसा करके वह सत्ता के साथ अंतर्विरोध में नहीं जाएगा, लिहाजा वर्तमान को बुरा और गैर मुक्कमिल बना और उसे ऐसा समझा कर एक अलौकिक जगत का निर्माण कर लिया गया. अगर दुनिया अपूर्ण और दोयम दर्जे की  है तब अल्लाह का बनाया हुआ एक दूसरा जगत पूर्ण है. लेकिन उस असाधारण सर्वोच्च जगत को  प्राप्त करने के लिए तुम्हे पूजा पाठ, कर्म काण्ड करने होगे. कभी कब्र का डर तो कभी दोज़ख के अजीबो गरीब डराने वालो किस्सों के जरिये जनता को भरमाया गया. डर सभी धर्मो का वह प्रमुख औजार है जिसके जरिये वह इंसान की वर्तमान  जगत को बदलने वाली ऊर्जा का तिरोहण कर देती है. धर्म की अफीम के नशे में डूबा समाज राजा, सरकार, सत्ता और प्रशासन को पलटने के अपने ऐतिहासिक कार्यक्रम को छोड़ कर अपने परलौकिक जगत के सुखद सपनों में जीने के झंझट में पड जाता है. धर्माधिकारी ने समाज की जुझारू शक्तियों का अराजनीतिकरण करके न केवल समाज के बड़े हिस्से को क्रान्ति करने से रोका बल्कि उसे प्रतिक्रांतिकारी बना दिया. धर्म के नशे में डूबा ज़हन समाज को बदलने वाली हर तहरीक और हर शख्स के मुक़ाबिल खुद ब खुद एक दीवार बन जाता है. ऐसा होना स्वाभाविक है धर्माधिकारी/मुल्लाह को यह इल्म है कि अगर इंसान ने अपनी किस्मत खुद बनाने का हुनर सीख लिया तब उसका सबसे पहला संगठित हमला उनकी धार्मिक सत्ता पर ही होगा.
मौजूदा वैज्ञानिक युग में क्या धार्मिक प्रस्थापनाओ को सच की कसौटी पर नहीं कसा जाना चाहिए ? जाहिर है आज धर्मो की वकालत करने वाले खासकर इस्लाम की तरह-तरह की किस्मों को प्रोमोट करने वाले देश अथवा समूह  भूखे-नंगे नहीं है. उनके पास विश्वविद्यालय है और दुनिया का  हर जदीद वैज्ञानिक उपकरण भी  मौजूद है, फिर क्या कारण  है कि आज तक उनके धर्म द्वारा रचा गया स्वर्ग अथवा नरक का कोई जियोफिजिकल लोकेशन आज तक मुहैय्या नहीं कराया गया? आज तक किसी कब्र में कैमरा लगा कर मुलकिन नकीर के सवाल जवाब की कोई वीडियो क्यों नहीं बनी? बड़े बड़े अपराधी मरे लेकिन कब्र में तथाकथित अज़ाब का कोई दृश्य (जिसे सिर्फ मुल्लाह पिछले १४०० सालो से बांच रहा है) कि कब्र के दोनों पाट आपस में मिल कर मुर्दे को भींच देते है, पसलियाँ एक हो जाती है आदि आदि  अभी तक साक्षात क्यों नहीं दिखाया गया? क्या यह असंभव है ? इस्लामियत पढ़ने वाले छात्र इन बकवासो को कब तक सुनेंगे? बनिए की दूकान पर १० रूपए की साबुन लेने से पहले सौ सवाल करने वाला दिमाग मुर्दों पर ज़ुल्म करने वाले अल्लाह की दरिन्दगी पर सवाल क्यों नहीं उठाता? क्या कोई मुल्लाह प्रमाण मुहैय्या कराएगा कि पिछले १४०० सालो में किन-किन लोगो को जन्नत मिली और किसे दोज़ख ? जन्नत के जीवन की कोई वीडियो दिखा दो ताकि कुछ तर्क वादियों को तसल्ली हो जाए. ऐसे प्रमाणों से यकीन कीजिये धर्म के झंडाबरदारों को ही फ़ायदा होगा. जाहिर है धर्म ने सवाल करने की हदे तय की हैवह उस हद को लांघने की इजाजत नही देता जहां धर्म और धर्माधिकारी की  सत्ता को सीधी चुनौती मिलनी शुरू हो जाए. यदि विज्ञान की दृष्टी और उसकी उपलब्ध तकनीको के माध्यम से धर्म पुस्तकों की बातों  को जांचना शुरू कर दिया जाए तब संभवत: धर्म के तमाम अतार्किक और गल्प शास्त्रों पर टिके सिद्धांत खुद ब खुद गिर जायेगे.
वैज्ञानिक चिंतन और तकनीक के बिना आधुनिक मानव समाज ने उन्नति नहीं की, उसके बिना विकास संभव नहीं. कहना न होगा जिन समाजो पर अभी धर्म का काला साया मौजूद है वह भले ही पैसे के बूते वैज्ञानिक उत्पादों को खरीद कर उपयोग कर रहा हो परन्तु उसके मनस  जगत में किसी वैज्ञानिक चिंतन की भोर नहीं हुई. वह भले ही इलाज कराने आधुनिक  अस्पताल में जाए या अमेरिका में स्वास्थ्य लाभ करे, चिंतन के स्तर पर वह अभी १४०० पहले वाले  ऊँट या गधे पर ही बैठा है. जिन उपकरणों के विकास में उसकी कोई भूमिका नहीं वह बस उनका प्रयोग पैसे देकर कर लेता है. आने वाले समय में बदलती पीढी और बदलते वातावरण में निश्चय ही लोग सवाल करना शुरू करेंगे कि यदि तुम सबसे बेहतर थे, हो या होने वाले हो तब इस तमाम वैज्ञानिक युग का निर्माण दूसरो ने क्यों किया? डेढ़ अरब डालर के समय को हर रोज़ बर्बाद करने वाला समाज एक दिन जरुर जागेगा क्योंकि जागना इंसानी फितरत है, जिस दिन जागेगा उस दिन वह सब से हिसाब ले लेगा, उसी दिन वह दुनिया का बदलने की जुस्तजू में लग जाएगा, मुझे लगता है यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, बहुत देर के लिए मुल्लाह की सलामती संभव नही, भले ही उसके पास दर्जनों ‘पोस्ट लाईफ इन्शुरेन्स’ पालिसी हो.     

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1 comment:

  1. very very true.this religion made india slave for thousands years.there is no way 4 scientific living in our relogions.

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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

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