अगवाड़ा भी मस्त है, पिछवाड़ा भी मस्त।
अपने नेता ने किये, कीर्तिमान सब ध्वस्त।१
अगवाड़ा भी मस्त है, पिछवाड़ा भी मस्त।
अपने नेता ने किये, कीर्तिमान सब ध्वस्त।१
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अगवाड़ा भी मस्त है, पिछवाड़ा भी मस्त।
अपने नेता ने किये, कीर्तिमान सब ध्वस्त।१।
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जोड़-तोड़ के अंक से, चलती है सरकार।
मक्कारी-निर्लज्जता, नेता का श्रृंगार।२।
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तन-मन में तो काम है, जिह्वा पर हरिनाम।
नैतिकता का शब्द तो, हुआ आज गुमनाम ।३।
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सपनों की सुन्दर फसल, अरमानों का बीज।
कल्पनाओं पर हो रही, मन में कितनी खीझ।४।
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किसका तगड़ा कमल है, किसका तगड़ा हाथ।
अपने ढंग से ठेलते, अपनी-अपनी बात।५।
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अपनी रोटी सेंकते, राजनीति के रंक।
कैसे निर्मल नीर को, दे पायेगी पंक।६।
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कहता जाओ हाट को, छोड़ो सारे काज।
अब कुछ सस्ती हो गयी, लेकर आओ प्याज।७।
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मत पाने के वास्ते, होने लगे जुगाड़।
बहलाने फिर आ गये, मुद्दों की ले आड़।८।
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तन तो बूढ़ा हो गया, मन है अभी जवान।
सत्तर के ही बाद में, मिलता उच्च मचान।९।
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क्षीण हुआ पौरुष मगर, वाणी हुई बलिष्ठ।
सीधी-सच्ची बात को, समझा नहीं वरिष्ठ।१०।
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खा-पी करके हो गया, ये तगड़ा
मुस्तण्ड।
अब जन-गण को चाहिए, देना
इसको दण्ड।११। |
फगवाड़ा भी मस्त है, छिंदवाड़ा भी मस्त |
ReplyDeleteकहीं अकाली लड़ रहे, कहीं कमल अभ्यस्त |
कहीं कमल अभ्यस्त, कहीं हो रहे धमाके |
देते गलत बयान, दुलारे अपनी माँ के |
जाती नीति बिलाय, धर्म हो जाता अगवा |
रही दुष्टता जीत, खेलती घर घर फगवा ||
thanks !! aapke prem ka bhayi sahib !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे !
ReplyDeleteनई पोस्ट हम-तुम अकेले
एक थाली के चट्टे बट्टे
ReplyDeleteसारे नेता होते है ॥
माल हड़प खुद कर जाते है
फिर डनलप पर सोते है ॥
वोट माँगने घर घर आते ॥
वादे की झड़ी लगाते है ॥
जीत जाने पर भूल जाते है ॥
वापस फिर नहीं आते है ॥
उनके खातिर जो डण्डे खाये ॥
बाद में वे भी रोते है ॥
माल हड़प खुद कर जाते है
फिर डनलप पर सोते है ॥
मंदिर मस्जिद का भेद बता कर ॥
जनता को लड़वाते है ॥
लाशें जब खूब बिछ जाती है
उसके बाद दिखाते है ॥
सोच समझ कर वोट दो यारो ॥
इसमे काफी खोटे है॥
माल हड़प खुद कर जाते है
फिर डनलप पर सोते है ॥