क्या भारत आज भी आजाद है ?क्या हम स्वयं अपने लिए कोई क़ानून बना या रद्द कर सकते है ?क्या हम अपने हित की कोई योजना बनाकर इस देश में लागू कर सकते हैं ?क्या हम किसी भ्रष्ट अफसर पर कोई कार्यवाही कर सकते हैं ?क्या हम किसी अच्छे आदमी को चुन या बुरे को हटा सकते हैं ? अगर नहीं तो क्यों हम इन 70 सालों में पनपे "नक़ली-जनसेवकों"की "चतुर-चालों"में फंस कर इनको ही घूम-फिर कर अपना "अनमोल-वोट"दे देते हैं ,फिर ये नेता रुपी राक्षस अपने रिश्तेदारों को हमारा खून पिलाते हैं !
सभी राजनीतिज्ञों के निष्ठावान कार्यकर्त्ता तो बेचारे दरियां बिछाते,भाषण देते नारे लगाते और वोट भुगताते ही रह जाते हैं !लेकिन जब समय चुनाव में टिकट देने का आता है ,तब ये नेता अपने कार्यकर्त्ता को छोड़ दुसरे को "जिताऊ"मानते हैं जो अपना दल छोड़ ,हमारी पार्टी में आया हुआ होता है !आखिर कौन होता है इस दलबदल के पीछे ??और कौन होता है उस राजनितिक दल के पीछे जो कुछ समय पहले अपना मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार को ही पीछे धकेलकर किसी दुसरे दल के साथ ही गठबंधन कर लेता है ?और फिर एक "राष्ट्रिय ऐतिहासिक राजनितिक दल " एक प्रादेशिक राजनितिक दल से 70 - 80 विधानसभा की टिकटें मांग रहा होता है !
कौन होता है उस बात के पीछे ,जब एक राष्ट्रिय हिंदुओं का रक्षक राजनितिक दल पंजाब में डरकर "आतंकवाद में मारे गए हिंदुओं"का हिसाब मांगने की बजाये ,उनसे ही गठबंधन कर लेता है और उनकी की गयी गलतियों को भी धोता और ढोता रहता है ?? क्या होता है उस फिकरे के पीछे "जब भ्रष्ट राजनितिक दल "साम्प्रदायिक ताक़तों को रोकने"का हवाला देकर एक होने का नाटक करते हैं और अपना हिस्सा ना मिलने पर कुछ ही देर बाद अलग भी हो जाते हैं ?कौन सा कारण होता है उसके पीछे जब ये सब मिलकर अपनी तनख्वाह बढ़ा लेते हैं और संसद को चलने भी नहीं देते ?कौन सा कारण होता है जब हमारा सिपाही तो कई प्रकार की "कमियां"झेलते हुए इस देश पर कुर्बान हो जाता है और ये हमारे नेता कुछ ना करते हुए संसद में बढ़िया भोजन करते रहते हैं , सुविधाएँ प्राप्त करते रहते हैं ??
पांच राज्यों के चुनाव में मित्रो चाहे कोई जीते या हारे ,इन निकम्मों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला जी !ये सब बातें इनके चापलूस पत्रकारों द्वारा घड़ी जाती हैं जी !नतीजे आने के कुछ दिनों बाद सब भूल जाते हैं !दरअसल में कोंग्रेस ने सारा ढांचा ही इस प्रकार का बना दिया है ,जिसमे "गन्दगी"के इलावा कुछ भी सम्भव नहीं है !और भाजपा वाले इस खेल के बड़े खिलाड़ी बन गए हैं !कोंग्रेस-कॉमरेड इस अपने ही बनाये गए खेल के "फिसड्डी"खिलाड़ी साबित हो रहे हैं !केवल कोई "तानाशाह"ही इसको सही कर सकता है !अन्यथा मौजूदा लोकतान्त्रिक तरीके से सुधार लाने पर कई प्रकार कीं अड़चने आ जाती हैं जैसेकि "जांचें-आयोग ,धरने-प्रदर्शन और नियम-क़ानून"इतनी मुश्किलें खड़ी कर देती हैं कि सब "जुमले"बनकर रह जाते हैं !
जय हो !! "अच्छे दिन आएंगे"?????
5th पिल्लर करप्शन किल्लर" "लेखक-विश्लेषक पीताम्बर दत्त शर्मा " वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511
सभी राजनीतिज्ञों के निष्ठावान कार्यकर्त्ता तो बेचारे दरियां बिछाते,भाषण देते नारे लगाते और वोट भुगताते ही रह जाते हैं !लेकिन जब समय चुनाव में टिकट देने का आता है ,तब ये नेता अपने कार्यकर्त्ता को छोड़ दुसरे को "जिताऊ"मानते हैं जो अपना दल छोड़ ,हमारी पार्टी में आया हुआ होता है !आखिर कौन होता है इस दलबदल के पीछे ??और कौन होता है उस राजनितिक दल के पीछे जो कुछ समय पहले अपना मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार को ही पीछे धकेलकर किसी दुसरे दल के साथ ही गठबंधन कर लेता है ?और फिर एक "राष्ट्रिय ऐतिहासिक राजनितिक दल " एक प्रादेशिक राजनितिक दल से 70 - 80 विधानसभा की टिकटें मांग रहा होता है !
कौन होता है उस बात के पीछे ,जब एक राष्ट्रिय हिंदुओं का रक्षक राजनितिक दल पंजाब में डरकर "आतंकवाद में मारे गए हिंदुओं"का हिसाब मांगने की बजाये ,उनसे ही गठबंधन कर लेता है और उनकी की गयी गलतियों को भी धोता और ढोता रहता है ?? क्या होता है उस फिकरे के पीछे "जब भ्रष्ट राजनितिक दल "साम्प्रदायिक ताक़तों को रोकने"का हवाला देकर एक होने का नाटक करते हैं और अपना हिस्सा ना मिलने पर कुछ ही देर बाद अलग भी हो जाते हैं ?कौन सा कारण होता है उसके पीछे जब ये सब मिलकर अपनी तनख्वाह बढ़ा लेते हैं और संसद को चलने भी नहीं देते ?कौन सा कारण होता है जब हमारा सिपाही तो कई प्रकार की "कमियां"झेलते हुए इस देश पर कुर्बान हो जाता है और ये हमारे नेता कुछ ना करते हुए संसद में बढ़िया भोजन करते रहते हैं , सुविधाएँ प्राप्त करते रहते हैं ??
पांच राज्यों के चुनाव में मित्रो चाहे कोई जीते या हारे ,इन निकम्मों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला जी !ये सब बातें इनके चापलूस पत्रकारों द्वारा घड़ी जाती हैं जी !नतीजे आने के कुछ दिनों बाद सब भूल जाते हैं !दरअसल में कोंग्रेस ने सारा ढांचा ही इस प्रकार का बना दिया है ,जिसमे "गन्दगी"के इलावा कुछ भी सम्भव नहीं है !और भाजपा वाले इस खेल के बड़े खिलाड़ी बन गए हैं !कोंग्रेस-कॉमरेड इस अपने ही बनाये गए खेल के "फिसड्डी"खिलाड़ी साबित हो रहे हैं !केवल कोई "तानाशाह"ही इसको सही कर सकता है !अन्यथा मौजूदा लोकतान्त्रिक तरीके से सुधार लाने पर कई प्रकार कीं अड़चने आ जाती हैं जैसेकि "जांचें-आयोग ,धरने-प्रदर्शन और नियम-क़ानून"इतनी मुश्किलें खड़ी कर देती हैं कि सब "जुमले"बनकर रह जाते हैं !
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