Monday, January 23, 2017

"लूट-घूस की सत्ता तले स्कूली बच्चो की मौत" !! "क्यों नहीं रोते हम"??


इतनी खूबसूरत दुनिया के लिये भगवान तुम्हारा शुक्रिया / भोजन देने के लिये भगवान तुम्हारा शुक्रिया /पक्षी का इतना सुंदर गीत सुनाने के लिये भगवान तुम्हारा शुक्रिया / हर चीज जो तुमने दी भगवान उसका शुक्रिया

पहली कक्षा में इस कविता को पढ़ने वाला बच्चा अब इस दुनिया में नहीं है। सड़क किनारे जमीन पर बिखरे किताब कॉपी। टिफिन बाक्स। बस्ते में उस बच्चे के मांस के लोथडे भी हैं, जो किताबो को पढ़ पढ़ कर भगवान की बनायी दुनिया में जीने और बड़े होने के सपनों को जीता रहा। और इस कविता के जरीये भगवान को शुक्रिया कहता रहा जिसने जमी, आसमान, पक्षी बनाये। वातावरण में ही जिन्दगी के रस को घोल दिया। लेकिन इस बच्चे को कहां पता था जो किताबों में लिखा हुआ है। या जिन कोमल हाथों से पन्नों को उलटते हुये वह मैडम के

कहने पर भगवान तुम्हारा शुक्रिया कर अपने सपनो को जीता उसे इतनी खौफनाक मौत मिलेगी जो भगवान ने नहीं बल्कि भगवान बन देश चलाने वालों ने दी। हर बैग के भीतर ऐसी ही किताब -कापी में दर्ज बच्चों के सपने हैं। वह सपने जिसे बच्चो ने पालना और सीखना ही तो शुरु किया था। और अंधेरे में उठकर मा बच्चे के टिफिन को भरने में लग जाती तो बाप स्कूल यूनिफार्म पहनाने से लेकर किताब-कापी को सहेज सहेज कर बैग में ऱखता। गले में टाई लटकाता। जूतो के फीते बांधता । लेकिन सडक पर बिखरे इस मंजर ने सिर्फ मां बाप के दिलो में ही सन्नाटा नहीं बिखेरा बल्कि उस अपराधी समाज के समाने अपनी बेबसी को भी रो रो कर घो दिया, जिसने नियम कायदो को ताक पर रख भगवान को शुक्रिया कहने तक की स्थिति की हत्या कर दी। तो क्या ये हादसा नहीं हैं। ये महज कोहरे में लिपटे वातावरण की देन भी नहीं है। ये सिर्फ बच्चों की मौत नहीं है। ये उस व्यवस्था का खौफनाक चेहरा है, जो हर रुदन को लील लेने पर हमेशा आमादा रहती है। क्योंकि बस बिना परमिट के चल रही थी। ट्रक अवैध रुप से बालू ले जा रहा था। स्कूल बंद करने के आदेश के बावजूद चल रहा था। गांव में अस्पताल नहीं सामुदायिक हेल्थ सेंटर था। तो क्या मौत होनी ही थी। और ऐसी ही कई मौत का इंतजार हर मां बाप को ये जानते समझते हुये करना ही होगा। क्योंकि सिस्टम प्राईवेट स्कूल के अलावे कुछ दे नहीं सकता। प्राईवेट स्कूल मुनाफे की शिक्षा के अलावे कुछ देख नहीं सकते। मुनाफे तले कही बसो के परमिट घूस देकर दब जाते है। या घूस देकर बच निकलते हैं। अवैध खनन के बाद बालू को लेजाते ट्रक भी घूस देकर सडक पर सरपट दौडने का लाइसेंस पा लेते है । और जब टुर्धना हो जाये तो बिना इन्फ्रास्ट्रक्चर के जीते गांव दर गांव में इलाज के लिये अस्पताल तक नहीं होता। तो ये हादसा नहीं। हत्या है । 

ये वातावरण का कोहरा नहीं । सिस्टम और सियासत पर छाया कोहरा है। ये सिर्फ बच्चों की मौत नहीं बल्कि विकास के नाम पर होने वाली सियासत की मौत है। और मां-बाप की रुदन महज बेबसी नहीं बल्कि सत्ता के भगवान होने का खौफ है। और संयोग ऐसा है कि जिस लखनऊ की सियासत को साध कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब सिस्टम साधने वाले नेता पाले हुये है। उस दिल्ली लखनऊ के ठीक बीच एटा के अलीगंज ब्लाक का असदपुर गांव है। और हर कोई इस सच से आंख मूंदे हुये है कि यूपी में 20 हजार प्राइवेट स्कूल बिना पूरे इन्फ्रास्ट्रक्चर के चलते हैं। 12 हजार सरकारी स्कूल तो बिना ब्लैक बोर्ड बिना पढे लिखे शिक्षक के चलते है। 30 हजार से ज्यादा ट्रक अवैध बालू ढोते हुये यूपी की सडको पर सरपट दौडते है । सड़क पर सुरक्षा के नाम पर पुलिस की तैनाती होती ही नहीं। और सडक पर अवैध तरीके से सिर्फ ट्रको से अवैध वसूली की रकम सिर्फ यूपी में हर दिन की 8 लाख रुपये से ज्यादा की है। और बिना परमिट दोडते स्कूल बसों से वसूली हर महीने की 50 लाख से ज्यादा की है । इतना ही नहीं प्राइवेट स्कूल खोलने के लिये जितनी जगहो से एनओसी चाहिये होता है, उसमें स्कूल खोलने वाले जितनी घूस अधिकारियों से लेकर पुलिस और नेताओं को देते है वह प्रति स्कूल 40 लाख से ज्यादा का है। यानी सरकारी स्कूल खोलने का बजट 2 लाख और प्राइवेट स्कूल खोलने के लिये घूस 40 लाख । तो कौन सा सिस्टम कौन सी सरकार इस तरह बच्चो की मौत पर मातम मनाती है। ये सोचने का वक्त है या पिर समझने का कि बच्चो ने तो जिन्दगी देने के लिये भगवान का शुक्रिया करने वाला पाठ पढ़ा। लेकिन अपने अपने कठगरे में सत्ताधारियों ने भगवान बनने के लिये ये मौत दे। और 24 बच्चो की मौत का कोई दोषी नहीं। 


!! sdhnywaad !!

5th पिल्लर करप्शन किल्लर" "लेखक-विश्लेषक पीताम्बर दत्त शर्मा " वो ब्लॉग जिसे आप रोजाना पढना,शेयर करना और कोमेंट करना चाहेंगे ! link -www.pitamberduttsharma.blogspot.com मोबाईल न. + 9414657511

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. दुखद एवं मार्मिक पोस्ट.शिक्षा को पूर्ण-रूपेण व्यवसाय बना दिया गया है.सरकार को चाहिए कि शिक्षा एवं चिकत्सा जैसी संस्था भारत जैसे देश में केवल सरकारी होनी चाहिए.

    मेरी नई रचना का लिंक :
    http://rakeshkirachanay.blogspot.in/

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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...