Saturday, September 29, 2012

महाराष्ट्र की राजनीति में एकबार फिर दिखेगी चाचा-भतीजे के अहम् की जंग???




                 

नई दिल्ली : आज देश की सबसे बड़ी राजनीतिक खबर ये है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल के. शंकरनारायणन ने उप मुख्यमंत्री अजीत पवार का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। सिंचाई घोटाले पर आलोचना का शिकार बने अजीत मंगलवार को इस्तीफा दिया था| मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की अनुशंसा के बाद राज्यपाल ने शनिवार को अजीत का इस्तीफा स्वीकार किया| जिसके बाद राज्य में कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार को लेकर चल रहा संकट समाप्त हो गया| 

पिछले कई दिनों से इस्तीफे का नाटक चल रहा था जिसका अंत हो गया है राकांपा प्रमुख व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने मुख्यमंत्री से कहा कि वह अजीत का इस्तीफा स्वीकार करें। इसके साथ ही पवार ने इस्तीफा देने वाले अपनी पार्टी के 19 अन्य मंत्रियों से कहा कि वे कामकाज संभालें।

ऊपरी तौर पर देखे तो ये किसी भी पार्टी का अन्दुरुनी मामला हो सकता है लेकिन यदि इसकी पड़ताल करें तो कहानी कुछ और ही सामने आती है और ये कहानी है पवार कुनवे में शुरू हुए पावर गेम की| हमारे पार्टी सूत्रों के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष और अजीत के चाचा शरद अपनी राजनैतिक विरासत अपनी पुत्री सुप्रिया सुले के हाथों में देने चाहते हैं जबकि इसके असली हकदार अजीत है क्योंकि आज पार्टी इतनी मजबूती से खड़ी है तो उसमें अजीत की भी जी तोड़ मेहनत शामिल है| प्रदेश में अजीत की छवि एक जमीनी नेता वाली है जबकि सुप्रिया एक बारामती से संसद सदस्य और पार्टी अध्यक्ष की पुत्री से अधिक कुछ नहीं हैं| 

वहीँ पिछले कुछ वर्षों में पार्टी के अन्दर अजीत का कद काफी बढ़ गया, जिसे शरद कम करना चाहते थे और ये मौका इसके लिए सबसे मुफीद था| अजीत के समर्थन में प्रदेश भर में प्रदर्शन हो रहे थे| जिसके बाद उसे दबाने की कमान शरद को अपने हाथों में लेनी पड़ी| अजीत गठबंधन सरकार और पार्टी दोनों में मजबूत हो रहे थे, एक दिन ऐसा भी आ सकता था कि अजीत पवार पूरी पार्टी हाईजैक करने की पोजीशन में आ जाते। ऐसा ना हो, इसीलिए ही एनसीपी की महिला विंग बनाई गई और सुप्रिया सुले उसमें सक्रिय हुई।

ये खबर आना कि इस्तीफा देने के कई दिन बाद जब शरद पवार ने शुक्रवार को मुंबई में एनसीपी की बैठक ली, तब शरद पवार और अजीत पवार मिले थे, ये तथ्य चौंकाने वाला है। उस बैठक में सुप्रिया सुले भी मौजूद थी, जो ना तो महाराष्ट्र में एनसीपी विधायक है ना ही राज्य की राजनीति में हस्तक्षेप करती हैं। 

इस पूरे घटनाक्रम में जो बातें निकल कर सामने आयी उसने शिवसेना के उस विवाद की याद ताज़ा कर दी जब सेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे ने ऊर्जावान भतीजे राज के बदले बेटे उद्धव को सेना की कमान सौंप दी जबकि सेना में राज की अच्छी पकड़ थी नेता से कार्यकर्ता तक उनसे जुड़े हुए थे| सभी को यही लग रहा था की राज ही बाला साहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी होंगे लेकिन उन्होंने अपने बेटे की राजनैतिक जमीं मजबूत करने के लिए उसे पार्टी सौंप दी| उसका नतीजा आज सबके समाने है राज की नवगठित पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना ने हर कदम पर शिवसेना के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं| जहाँ एक ओर राज देश भर में छाए रहते हैं वहीँ उद्धव कभी कभार ही चर्चा में होते हैं|

अब बात करते हैं राष्ट्रवादी कांग्रेस की यहाँ भी हालत इससे जुदा नहीं है कांग्रेस से अलग होकर शरदचंद्र गोविंदराव पवार (शरद पवार) ने वर्ष 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की| इन चुनावों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ, परिणामस्वरूप शरद पवार को महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना पड़ा| जिसके बाद विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री और छगन भुजबल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया| वर्ष 2004 में लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद पवार ने मनमोहन सरकार में कृषि मंत्री का पद संभाला| 29 नवंबर, 2005 को शरद पवार भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष भी नियुक्त हुए| वर्ष 2009 में शरद पवार मनमोहन सरकार के अंतर्गत कृषि और उपभोक्ता मामलों के साथ-साथ खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण के केंद्रीय मंत्री बनाए गए| वर्ष 2010 में इंग्लैंड के डेविड मॉर्गन के बाद शरद पवार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के भी अध्यक्ष चयनित हुए| शरद की बेटी सुप्रिया भी राजनीति में सक्रिय है और पार्टी की संसद सदस्य है| शरद के छोटे भाई प्रताप का बेटा है अजीत जिसने चाचा की ऊँगली पकड़ राजनीति का ककहरा सीखा और पार्टी को यहाँ तक पहचाने में अहम् भूमिका अदा की| 

आज अजीत पार्टी के अन्दर काफी बड़ी ताकत माने जाते है और शरद बेटी सुप्रिया को जल्द से जल्द अपने स्थान पर देखना चाहते हैं इसी के मद्देनज़र पिछले हफ्ते सुप्रिया को यशवंत राव चव्हाण प्रतिष्ठान का अध्यक्ष बनाया गया अभी तक शरद ही इस प्रतिष्ठान के अध्यक्ष थे। सुप्रिया भी आजकल महाराष्ट्र में घूम-घूमकर युवती मेलवा के बैनर तले महिला कार्यकार्ताओं को जोड़ने में लगी हैं। आलाकमान से कार्यकर्ताओं को आदेशित किया गया है कि वे सुप्रिया के कार्यक्रम को कामयाब बनाने की हर संभव कोशिश करें। इस पूरे प्रकरण पर जब सुप्रिया से बात की गयी तो उन्होंने बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा कि पार्टी में कहीं कोई मतभेद नहीं है| 

अजीत पवार का प्रदेश में कद 

अजीत अपने कार्यकाल के दौरान राज्य की कांग्रेस एनसीपी गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री से भी ज्यादा ताकतवर माने जाने लगे थे। जब प्रदेश में उप मुख्यमंत्री पद की बात सामने आयी तब उनके समर्थक विधायकों ने शरद घेरा था और इस बात के लिए दबाव बनाया था कि अजीत उप-मुख्यमंत्री बनाये जाये। अजीत समर्थकों के अनुसार अजीत तभी शरद की आखों में खटक गए होंगे। शरद को ये बात अच्छे से पता थी कि अजीत महाराष्ट्र में पार्टी के सबसे मजबूत नेता बन गए हैं और अगले चुनाव के बाद अजीत मुख्यमंत्री बनने की जोर-अजमाइश भी करेंगे। स्थानीय निकायों में भी अजीत समर्थकों का कब्जा बढ़ता गया। इसीलिए शरद ने अजीत को ठिकाने लगाने की कोशिश आरंभ कर दी और जल्द ही मौका भी मिल गया इस सिचाई घोटाले के रूप में| 

अजीत के कमजोर होने से सबसे बड़ा फायदा सुप्रिया को ही होने वाला है क्योंकि जमीनी स्तर पर हजारों कार्यकर्ता अजीत से जुड़े हैं जिनको धीरे से किनारे लगा दिया जायेगा। इतना ही नहीं, अजीत के उप मुख्यमंत्री न रहे पर उनके समर्थकों का हौसला भी टूटेगा। इसका सबसे बड़ा नुकसान ये होगा कि पार्टी को नए कार्यकर्ता और मतदाता मिलने मुश्किल होंगे, क्योंकि अब लोगों के सामने ये लालच नहीं रहेगा कि यदि अजीत अगले चुनाव के बाद सीएम बन गए तो अपनी भी चांदी हो जाएगी। ये राजनीति का एक कड़वा सच है। जब पार्टी या नेता के कल कुछ बनने के चांस नहीं होते, तो अच्छे से अच्छे और सगे से सगे भी किनारा कर लेते हैं।
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