कैसे हिंदुओं को जाति में बांटा गया?
पाइंट 1. बौद्ध और शंकराचार्य के काल में स्मृति और पुराण ग्रंथों में हेरफेर किया गया। इस हेरफेर के चलते ही शास्त्र में उल्लेखित क्षूद्र शब्द के अर्थ को समझे बगैर ही आधुनिक काल में निचले तबके के लोगों को यह समझाया गया कि शस्त्रों में उल्लेखित क्षूद्र शब्द आप ही के लिए इस्तेमाल किया गया है। जबकि वेद कहते हैं कि जन्म से सभी क्षूद्र होते हैं और वह अपनी मेहनत तथा ज्ञा
पाइंट 1. बौद्ध और शंकराचार्य के काल में स्मृति और पुराण ग्रंथों में हेरफेर किया गया। इस हेरफेर के चलते ही शास्त्र में उल्लेखित क्षूद्र शब्द के अर्थ को समझे बगैर ही आधुनिक काल में निचले तबके के लोगों को यह समझाया गया कि शस्त्रों में उल्लेखित क्षूद्र शब्द आप ही के लिए इस्तेमाल किया गया है। जबकि वेद कहते हैं कि जन्म से सभी क्षूद्र होते हैं और वह अपनी मेहनत तथा ज्ञा
न के बल पर श्रेष्ठ अर्थात आर्य बन जाते हैं।
क्षूद्र एक ऐसा शब्द था जिसने देश को तोड़ दिया। दरअसल यह किसी दलित के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था। लेकिन इस शब्द के अर्थ का अनर्थ किया गया और इस अनर्थ को हमारे आधुनिक साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों ने बखूबी अपने भाषण और लेखों में भुनाया।
पाइंट- 2 मध्यकाल में जबकि मुस्लिम और ईसाई धर्म को भारत में अपनी जड़े जमाना थी तो उन्होंने इस जातिवादी धारणा का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और इसे और हवा देकर समाज के नीचले तबके के लोगों को यह समझाया गया कि आपके ही लोग आपसे छुआछूत करते हैं। मध्यकाल में हिन्दू धर्म में बुराईयों का विस्तार हुआ। कुछ प्रथाएं तो इस्लाम के जोरजबर के कारण पनपी, जैसे सतिप्रथा, घर में ही पूजा घर बनाना, स्त्रीयों को घुंघट में रखना आदि।
पाइंट 3- अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो की नीति' तो 1774 से ही चल रही थी जिसके तहत हिंदुओं में उच-नीच और प्रांतवाद की भावनाओं का क्रमश: विकास किया गया अंतत: लॉर्ड इर्विन के दौर से ही भारत विभाजन के स्पष्ट बीज बोए गए। माउंटबैटन तक इस नीति का पालन किया गया। बाद में 1857 की असफल क्रांति के बाद से अंग्रेजों ने भारत को तोड़ने की प्रक्रिया के तहत हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग दर्जा देना प्रारंभ किया।
हिंदुओ को विभाजित रखने के उद्देश्य से ब्रिटिश राज में हिंदुओ को तकरीबन 2,378 जातियों में विभाजित किया गया। ग्रंथ खंगाले गए और हिंदुओं को ब्रिटिशों ने नए-नए नए उपनाप देकर उन्हों स्पष्टतौर पर जातियों में बांट दिया गया। इतना ही नहीं 1891 की जनगणना में केवल चमार की ही लगभग 1156 उपजातियों को रिकॉर्ड किया गया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज तक कितनी जातियां-उपजातियां बनाई जा चुकी होगी।
पाइंट 4- आजादी के बाद में यही काम हमारे राजीतिज्ञ करते रहे। उन्होंने भी अंग्रेजों की नीति का पालन किया और आज तक हिन्दू ही नहीं मुसलमानों को भी अब हजारों जातियों में बांट दिया। बांटो और राज करो की नीति के तहत आरक्षण, फिर जातिगत जनगणना, हर तरह के फार्म में जाति का उल्लेख करना और फिर चुनावों में इसे मुद्दा बनाकर सत्ता में आना आज भी जारी है।
गरीब दलित यह नहीं जानता की हमारी जनसंख्या का फायदा हमें बांटकर उठाया जा रहा है। आजादी के 65 साल में आज भी गरीब गरीब ही है तो क्यों। नेहरुजी कहते थे हम भारत से जातिवाद और गरीबी को मिटा देगें और आज सोनिया भी यही कहती है कि हमें भारत से गरीबी मिटाना है। क्या 65 साल से ज्यादा लगते हैं गरीबी मिटाने के लिए !!
क्षूद्र एक ऐसा शब्द था जिसने देश को तोड़ दिया। दरअसल यह किसी दलित के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था। लेकिन इस शब्द के अर्थ का अनर्थ किया गया और इस अनर्थ को हमारे आधुनिक साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों ने बखूबी अपने भाषण और लेखों में भुनाया।
पाइंट- 2 मध्यकाल में जबकि मुस्लिम और ईसाई धर्म को भारत में अपनी जड़े जमाना थी तो उन्होंने इस जातिवादी धारणा का हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और इसे और हवा देकर समाज के नीचले तबके के लोगों को यह समझाया गया कि आपके ही लोग आपसे छुआछूत करते हैं। मध्यकाल में हिन्दू धर्म में बुराईयों का विस्तार हुआ। कुछ प्रथाएं तो इस्लाम के जोरजबर के कारण पनपी, जैसे सतिप्रथा, घर में ही पूजा घर बनाना, स्त्रीयों को घुंघट में रखना आदि।
पाइंट 3- अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो की नीति' तो 1774 से ही चल रही थी जिसके तहत हिंदुओं में उच-नीच और प्रांतवाद की भावनाओं का क्रमश: विकास किया गया अंतत: लॉर्ड इर्विन के दौर से ही भारत विभाजन के स्पष्ट बीज बोए गए। माउंटबैटन तक इस नीति का पालन किया गया। बाद में 1857 की असफल क्रांति के बाद से अंग्रेजों ने भारत को तोड़ने की प्रक्रिया के तहत हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग दर्जा देना प्रारंभ किया।
हिंदुओ को विभाजित रखने के उद्देश्य से ब्रिटिश राज में हिंदुओ को तकरीबन 2,378 जातियों में विभाजित किया गया। ग्रंथ खंगाले गए और हिंदुओं को ब्रिटिशों ने नए-नए नए उपनाप देकर उन्हों स्पष्टतौर पर जातियों में बांट दिया गया। इतना ही नहीं 1891 की जनगणना में केवल चमार की ही लगभग 1156 उपजातियों को रिकॉर्ड किया गया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज तक कितनी जातियां-उपजातियां बनाई जा चुकी होगी।
पाइंट 4- आजादी के बाद में यही काम हमारे राजीतिज्ञ करते रहे। उन्होंने भी अंग्रेजों की नीति का पालन किया और आज तक हिन्दू ही नहीं मुसलमानों को भी अब हजारों जातियों में बांट दिया। बांटो और राज करो की नीति के तहत आरक्षण, फिर जातिगत जनगणना, हर तरह के फार्म में जाति का उल्लेख करना और फिर चुनावों में इसे मुद्दा बनाकर सत्ता में आना आज भी जारी है।
गरीब दलित यह नहीं जानता की हमारी जनसंख्या का फायदा हमें बांटकर उठाया जा रहा है। आजादी के 65 साल में आज भी गरीब गरीब ही है तो क्यों। नेहरुजी कहते थे हम भारत से जातिवाद और गरीबी को मिटा देगें और आज सोनिया भी यही कहती है कि हमें भारत से गरीबी मिटाना है। क्या 65 साल से ज्यादा लगते हैं गरीबी मिटाने के लिए !!
आप जो मुझे इतना प्यार दे रहे हैं, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद-शुक्रिया करम और मेहरबानी ! आपकी दोस्ती और प्यार को हमेशां मैं अपने दिल में संजो कर रखूँगा !! आपके प्रिय ब्लॉग और ग्रुप " 5th pillar corrouption killer " में मेरे इलावा देश के मशहूर लेखकों के विचार भी प्रकाशित होते है !! आप चाहें तो आपके विचार भी इसमें प्रकाशित हो सकते हैं !! इसे खोलने हेतु लाग आन आज ही करें :-www.pitamberduttsharma.blogspo
Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
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