Thursday, October 25, 2012

" विश्वसनीयता दांव पे सहयोगी नेताओं की "

     
                                     कांग्रेस और बीजेपी को चाहिए जासूस:

पिछले कुछ समय में जिस तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदला है, उसने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही चिंतित कर दिया है। सबसे बड़ी बात है कि इन्हें अपने ही सहयोगियों पर भरोसा नहीं रह गया है। पता नहीं कब कौन गच्चा दे दे। इसलिए इन दोनों ही दलों ने एक विशेष योजना बनाई है। हाल में एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी ने स्वीकार किया कि इन पार्टियों के नेताओं ने उनकी सेवाएं मांगी हैं। उन्हें यूपीए और एनडीए के घटक दलों के महत्वपूर्ण नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखनी है।

इस बात पर गौर करना है कि उनके घर या दफ्तर में उनसे मिलने कौन-कौन आ रहा है। पार्टियां असल में यह देखना चाहती हैं कि कहीं उनके गठबंधन के नेता दूसरे गठबंधन के नेताओं से तो नहीं मिल रहे। वैसे एक निजी जासूसी संस्था ने एक प्रोजेक्ट तैयार किया है, जिसके अनुसार उसके लोग बड़ी संख्या में एक दल में कार्यकर्ता के रूप में शामिल होंगे।

संकेतों से पता चल रहा है कि जेडीयू में ऐसे जासूस शामिल होंगे, क्योंकि बीजेपी को आशंका है कि कहीं जेडीयू और कांग्रेस में कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान से बीजेपी के कान खड़े हो गए हैं कि जो भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा, उसे वे अपना समर्थन देंगे। उधर कांग्रेस को यह सवाल परेशान कर रहा है कि मुलायम सिंह कब तक उसके साथ टिके रहेंगे।

असल में हर पार्टी को लग रहा है कि आम चुनाव कभी भी हो सकते हैं। दिलचस्प तो यह है कि कांग्रेस और बीजेपी ही नहीं, दूसरी पार्टियों को भी इस बात का पता चल गया है कि अगला उनके यहां जासूसी करवा रहा है। इसलिए वे हर किसी को संदेह के नजरिए से देख रही हैं। बल्कि कुछ जासूसी एजेंसियां तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ही काम कर रही हैं। पिछले दिनों दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों और कुछ सीनियर लीडरों को सलाह दी गई कि वे पब्लिक से मिलने में थोड़ी सावधानी बरतें। किसी भी कार्यकर्ता से ज्यादा घुलने-मिलने की जरूरत नहीं है। क्या ठिकाना वह कोई जासूस हो और बातों ही बातों में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उगलवा ले।

कहा गया है कि पत्रकारों से मिलने में भी बेहद सावधानी बरती जाए। पत्रकार बनकर भी कोई जासूस आ सकता है। राजनीतिक पार्टियों के इस डर से निश्चय ही प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसियों की चांदी हो गई है। उन्होंने अपने रेट बढ़ा दिए हैं। ऐसा मौका बार-बार थोड़े ही मिलता है।


                                                           
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