अशोक गहलोत व वसुंधरा राजे के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी सत्ता की जंग
-संगीता शर्मा||
राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने की जुगत बिठाने में ताकत लगाए है जबकि वसुंधरा राजे उनके हाथ से सत्ता छीन दुबारा मुख्यमंत्री का ताज पहनने के लिए बेताब है. लोकसभा चुनाव के लिए किए गए इलेक्षन टेकर सर्वे की माने तो राजस्थान में भाजपा का वोट बैंक बढ़ने की उम्मीद से कांग्रेस के लिए अब सत्ता में दोबारा लौटना इतना आसान नहीं होगा. इन चुनावों में कड़ी टक्कर के चलते भाजपा कांग्रेस के समीकरण बदल सकती है.
चुनावी मानसून आने से पूर्व ही राजस्थान में अब बदलाव के बयार की आहट महसूस होने लगी है. यह अलग बात है कि चुनाव आने तक मुख्यमंत्री गहलोत अपनी रणनीति में तब्दीली कर बयार का रूख ही बदल दे. हालांकि अभी जमीनी हकीकत को खंगाले तो कांग्रेस के लिए हालात सुखद नहीं है. कांग्रेस के लिए सत्ता पर दुबारा काबिज होने के लिए बागी और बसपा के विधायकों को मंत्री बनाना अब गले की फांस साबित होने वाला है. इधर गहलोत सरकार के मंत्रियों के कार्यकलाप और सांसदों से लेकर कार्यकर्ताओं तक में आपसी खींचतान विधानसभा चुनाव में नुकसान पहुंचा सकते है. वहीं भाजपा लोकसभा चुनाव के लिए सर्वे रिपोर्ट में राजस्थान में सत्ता पर काबिज होने की तस्वीर देख रही है, लेकिन वर्तमान हालात उनके लिए भी उतने सुखद भी नहीं है. वसुंधरा राजे ने अपनी सुराज यात्रा को टिकट दावेदारों के बलबूते सुराज यात्रा में शक्ति प्रदर्शन तो कर लिया, मगर अब टिकट दावेदार ही उनके लिए सिरदर्द साबित होने वाले है और वे उनकी जीत की गणित को भी गड़बड़ा सकते है.
सीएनएन, आईबीएन सीएनडीएस के लोकसभा चुनाव के लिए किए सर्वे के मुताबिक राजस्थान में कांग्रेस के तीन प्रतिशत वोट घटने वाले है. जबकि 2009 के चुनाव में कांग्रेस को 47 प्रतिशत वोट मिले थे. इस तरह आगामी चुनाव में कांग्रेस को 44 प्रतिशत वोट मिल पाएंगे. वहीं भाजपा का सात प्रतिशत मतों का इजाफा होने से 37 प्रतिशत से बढ़कर कांग्रेस के बराबर रहेगी. इससे यह संकेत मिलते है कि मौटे तौर पर विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस में कड़ी टक्कर होने वाली है. पिछले विधानसभा चुनाव ने राजस्थान में कांग्रेस ने 96 और भाजपा को 72 सीटें हासिल हुई थी. मुख्यमंत्री गहलोत ने सत्ता पर काबिज होने के लिए 6 बसपा विधायकों राजकुमार शर्मा, मुरारीलाल मीणा, राजेंद्र गुढ़ा, रमेश मीणा व गुरूराजसिंह मलिंगा के अलावा कांग्रेस के बागी एंव निर्दलीय विधायक दिलीप चौधरी, हरजीराम बुरडक, रामकिशोर मीणा, परसादीलाल, गोलमा देवी, नानाराम, रामकेश मीणा, जयदीप डूडी ,रामस्वरूप कसाना व कन्हैयालाल झंवर को सरकार में शामिल किया था.
इनमे से कई मंत्री तो संसदीय सचिव बनाए गए. हालांकि गोलमा देवी बाद में अलग हो गई. गहलोत ने बसपा व निर्दलीयों के सहारे सरकार तो चला ली मगर अब विधानसभा चुनाव में उनके टिकटों को लेकर घमासान मचना तय है. पिछले चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवारों को हराने वाली इस फौज को अब कांग्रेस टिकट देती है तो उनके खिलाफ दूसरे दावेदार और यदि नहीं देती है तो वे ही बागी के रूप में खड़े होकर कांग्रेस के लिए नासूर बन सकते है. कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए 15 से 20 सीटों पर तो इन मंत्रियों व संसदीय सचिवों की वजह से कांग्रेस का गणित गड़बड़ा सकता है. इधर पिछले दो सप्ताह से कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी गुरूदास कामत के सामने मंत्रियों व संगठन को लेकर उपजे घमासान के बाद रिफाइनरी को लेकर हेमाराम व सोनाराम के बीच चल रही खींचतान से कांग्रेस के बढते ग्राफ पर यकायक ब्रेक लगा रही है.
मंत्रियों की वजह से गंवानी पड सकती है सत्ता..!
कामत ने चुनाव से पूर्व सांसदों से लेकर कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेने के लिए मुख्यमंत्री गहलोत की मौजूदगी में एक हजार से अधिक कांग्रेसियों से फीडबैक लिया. एक बैठक में वरिष्ठ मंत्री भरतसिंह ने संगठन को लेकर सवाल खड़े कर सबकों चौंका दिया उनके साथ कई विधायकों ने उनके सुर में सुर मिलाते हुए संगठन के कामकाज व सदस्यों को लेकर बवाल मचाया. इसके अलावा मंत्रियों और विशेषकर ब्रिज किशोर शर्मा निशाने पर रहे. विधायकों व कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट कह दिया कि यही कार्यशैली रही तो मंत्रियों की वजह से 2003 की तरह हाथ से सत्ता तक गंवानी पड सकती है.
वहीं अजमेर में सचिन पायलट व नागौर में ज्योति मिर्धा तक की खुलकर खिलाफत हुई तो सोनाराम रिफाइनरी को लेकर अपनी राग सुनाते रहे. मुख्यमंत्री गहलोत को सफाई देते हुए कहना पड़ा कि उनका बेटा पचपदरा से चुनाव नहीं लड़ रहा है. इस सारे घटनाक्रम से घर के भीतर की लड़ाई सार्वजनिक हो गई और अगले दिन ही रिफाइनरी को लेकर राजस्व मंत्री हेमाराम व कर्नल सोनाराम की बीच हुई गर्मागर्मी के बाद हेमाराम ने मंत्री पद को लेकर इस्तीफा दे दिया. इस एपीसोड से रिफाइनरी को लेकर ओर माहौल गर्मा गया.
सोनाराम समर्थक लीलाणा में रिफाइनरी लगाने, तो पचपदरा के लोग रिफाइनरी वहां लगाने के लिए लामबंद होने लगे है. साथ ही अब लीलाणा में कर्नल के जमीन खरीदने तो पचपदरा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रार्बट वाड्रा सहित कई कांग्रेसी नेताओं के जमीन खरीदने के आरोप प्रत्यारोप का दौर चल पडा है. कांग्रेस सरकार चुनाव में रिफाइनरी को सबसे बडी उपलब्धि गिनाने की चाहत पाले है लेकिन कांग्रेस में इसकी जगह को लेकर हो रही खींचतान के साथ ही वसुंधरा राजे भी इसके जमीन घोटाले को लेकर गहलोत पर हमले बोल रही है.
गहलोत चुनाव तक सत्ता विरोधी माहौल और कांग्रेस के भीतर सुलग रही आग को कैसे षांत करते है यह तो आने वाला समय ही दर्षाएगा लेकिन वसुंधरा राजे प्रदेष भर में सुराज संकल्प यात्रा कर एक माहौल तो बनाने में जरूर कामयाब हुई है. वे जमकर गहलोत पर जमीन घोटालों से लेकर वह भंवरी कांड में कांग्रेस नेताओं व अधिकारियों की अश्लील सीडी के मामले को तूल दे रही है.
दावेदार कही डूबा न दे नैय्या..!
जुबानी जंग के बीच वसुंधरा ने टिकट दावेदारों की मदद से मुख्यमंत्री के गृहनगर में षक्तिप्रदर्षन कर अपनी ताकत दिखाई वसुंधरा के रथ में दावेदारों का हार्सपॉवर आने वाले दिनों में उन्हें सत्ता तक पहुंचा सकता है लेकिन यही दावेदार कांग्रेस की तर्ज पर नुकसान को नुकसान पहुंचा सकते है. टिकट दावेदारों ने वसुंधरा में चाहे भीड़ जुटाना हो या अखबारों में लाखों रूपए के विज्ञापन देने की बात हो सारी ताकत लगा और उसके बदले अब वे भी टिकट की उम्मीद तो रखते ही है यह अलग बात है कि वसुंधरा ने यह स्पष्ट कर दिया कि योग्य उम्मीदवारों को टिकट मिलेगा मगर हर दावेदार अपने योग्य मानते हुए अपनी टिकट पक्की मान रहा है. हर सीट दावेदारों की लंबी लिस्ट है. भाजपा में पहली बार टिकट को लेकर दिखा माहौल भाजपा के लिए खतरे का संकेत दे रहा है. यदि भाजपा ने 2009 की तरह टिकट बंटवारें में पैराशूट उम्मीदवारों को उतारा तो जीत की उम्मीद पर पानी फिर सकता है’. SAABHAR PRASTUTI !!
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