Tuesday, June 26, 2012

" माननीय सांसदों ! राष्ट्रपति चुनने में स्वविवेक से काम लोगे या .. भेड़े बनोगे "????

" स्वविवेकी मित्रों को मेरा आदर सहित प्यार , कृपया स्वीकार करें !!
                               जब भी हम अपना सांसद चुनते हैं तो यही सोचकर ज्यादातर लोग अपना वोट देते हैं की यह सज्जन हमारी आकांक्षाओं पर खरा उतरेगा और अपनी बुध्धि और विवेक से लोक सभा में जनहित के प्रस्ताव आने पर निर्णय करेगा !!! लेकिन देखने में भी और वास्तव में भी लगभग सारे सांसद अपनी पार्टी के अनुशासन के नाम पर या अपने दल के नेता की बुध्धि को अपनी बुध्धि से बड़ा मान कर ( सीधी भाषा में कंहूँ तो चमचागिरी के कारन ) सारे महत्वपूर्ण फैसले उसी पर छोड़ देते हैं .. 
क्यों ??? 
                     अब जैसे हमारे राष्ट्र - पति का चुनाव नजदीक आ गया है , सभी राजनितिक दलों ने अपने सांसदों और विधायकों से कोई राय नहीं की बल्कि सबने अपने अधिकार अपने नेताओं को ही सौंप दिए क्यों ??? क्या ये जनता के साथ धोखा नहीं ???हाँ पार्टी के अन्दर का कोई निर्णय करना हो और उसमे सांसद - विधायक निर्णय का फैसला अपने नेता को  सौंपें तो कोई बात समझ में आती है लेकिन जो मुद्दा सीधे - सीधे जनता से जुदा हुआ हो भला उसे जनता कैसे स्वीकार करले की हमारे सांसदों का ये निर्णय सही है की राष्ट्र पति किसे बनाना है प्रत्याशी का चुनाव भी उस दल विशेष का नेता ही करे और फिर भेड़ों की तरह आँखें बंद करके सब उसे अपना वोट भी देदें क्यों ......????????
                                     ऐसा व्यवहार किसी राजनितिक दल का नहीं बल्कि डाकुओं के दल का होता है !! मुझे डाकुओं की पुरानी फिल्मों की कहानियाँ याद आ रही हैं की कोई छोटा - मोटा चोर किसी गाँव में चोरी करते समय कोई कतल भी करके वंहा से भाग कर शहर में आ जाता है और फिर बड़ा डाकू - स्मगलर और सेठ बनजाता है किसी नेता की मदद से जिसकी लड़की से वो बाद में अपने लड़के की शादी करके उस नेता की सारी जायदाद हडपना चाहता है लेकिन उसी गाँव का लड़का उसी शर में आकर उसी नेता की लड़की से प्यार भी करता है फिर उसी नेता की किसी फेक्ट्री में नौकरी भी करता है अंत में डाकू मरजाता है और नेता जी अपने जँवाई - राजा के साथ मज़े से रहता है !! लेकिन आजकल तो वो डाकू ही नेता बनगए हैं इसी लिए " पान सिंह तोमर " नामक फिल्म में डाकू को डाकू नहीं बल्कि बागी कहा गया और डाकू शब्द का प्रयोग हमारे देश के  सन्मानित नेताओं हेतु प्रयोग किया गया ...!!! लेकिन अफ़सोस हमारे नेता चाहते हुए कुछ भी नहीं बोल पाए !! 
                       इस देश की जनता में से बहुत से लोगों ने तो हद ही करदी जब संसद पर आतंक वादियों ने हमला किया था तो वो बोले की काहे को देश के सिपाहियों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर इन आधुनिक डाकुओं को बचाया ??? ये कुछ मरते तो कोई दुसरे का नबर आता ??? 
                          आप ही बताइए मित्रो ...की अब मैं क्या करून ?? और आपका क्या विचार है इस बारे में क्यों की मेरी लेखनी तो यंहा आकर एकबार रुक सी गयी है अब हमारे नेताओं को तो " इज्ज़त " भी जबरदस्ती मांगनी पड़ रही है ???
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                          सधन्यवाद !!
                     जय श्री राम !! 
                                             आपका मित्र 
                                     पीताम्बर दत्त शर्मा 
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