" प्रिय मित्रो , नमस्कार !! आज समाचार कि छतीसगढ़ के राजनांनन्द जिले से 40.किलोमीटर दूर डोंगरगढ़ तहसील में पुलिस और नक्सलियों में एक जबर्दस्त मुठभेड़ हुई जिसमे 45. नक्सली मारे गए और 20. भागने में सफल रहे !! जाते - जाते वो अपना सामान वन्ही छोड़ गए जिसमे आधुनिक तकनीक वाला प्रिंटर लैपटॉप टेंट बोर्ड और बोतलें आदि थीं , यानी वंहा पर वो अपनी सभा कर रहे थे और आगामी योजनायें बना रहे थे !!
इससे पहले इन नक्सलियों ने और पुलिस ने ना जाने कितनी बार ऐसे ही नर संघार किया है !! ये एक बदले की भावना से भरी कोई कड़ी सी लगता है जैसे कभी भी ख़तम नहीं होगी !! इससे पहले 1983 से 1999 तक ऐसा ही पंजाब में चला , पूर्वी भारत में भी ऐसे ही देशवासी मरते रहे और काश्मीर में तो आज तक चल ही रहा है !! स्थान बदल जाते हैं , मरने वाले और मारने वाले के नाम बदल जाते हैं इसके साथ - साथ मारने वालों के उद्देश्य भी बदल जाते हैं , नहीं बदलता तो वो ये की चाहे जान का नुक्सान हो या माल का वो सिर्फ और सिर्फ " भारत " का ही हो रहा है 1945 से लेकर आज तक !! मरने वालों की संख्या लाखों में है और धन का तो कोई हिसाब भी किसी के पास नहीं है !!
ना जाने किस - किस नेता ने इस देश पर राज करलिया ,और न जाने कौन - कौन से नाम की पार्टियां बनी , लेकिन इस समस्या की तरफ किसी भी नेता और राजनितिक दल ने गंभीरता से नहीं देखा और सोचा , क्रियान्यवन तो बड़ी दूर की बात है !! बस , जब आग लगती है तभी कुआं खोदने के प्रयास करती सरकार अपने आपको दिखाती है !! चाँद दिनों बाद फिर ऐसी ही घटना फिर हो जाती है और फिर सरकार का मुखिया कहता है की " हम देख रहे हैं और हम देखेंगे " .....!!किसी भी समस्या को कभी भी जड़ से समाप्त करने और देश को जोड़ने की बात कभी की ही नहीं गयी !! क्यों ??
एक आम आदमी जो साधारण पढ़ा - लिखा है वो साड़ी समस्याओं का हल निकालने की क्षमता रखता है , वो कहता भी है की अगर कोई मुझे चंद महीनो खातिर सभी अधिकारों वाली " कुर्सी " ( वो कौन से पद वाली कुर्सी है ये वो भी नहीं जानता )दे - दे तो मैं सब कुछ ठीक करदूं और सबको सुधार दूं !! मैं यंहा मानने को तैयार हूँ की ये उस नादाँ का भोला पण होगा ! लेकिन कई विद्वान लोग भी ऐसा कहते हैं !! तो फिर हमारे देश के नेता सारी समस्याए नहीं तो आधी भी समस्याएं हल क्यों नहीं कर पाए ????????
क्या किसी समस्या को लम्बे समय तक लटकाना , उसका हल हो सकता है ????दुश्मन अगर अपनी सोच और रण - निति को बदल कर बड़ी और खर्चीली लड़ाई को छोड़ आतंक वादियों की कम खर्चे वाली लड़ाई लड़ सकता है तो हम सिर्फ अपने आपको बचाने ये बड़े देशों की आड़ में क्यों छिपाए बैठे हैं ???? हमारी व्यापार - निति , हमारी विदेश निति सब दूसरों पर क्यों निर्भर है ??हम अपने लिए अपना निर्णय क्यों नहीं कर पाते हैं ??? क्या हमारे नेता बता पायेंगे ??? क्या हमारे युवा ये प्रश्न पूछ पायेंगे ????
तो मित्रो आप अपने अनमोल विचार हमारे ब्लॉग और ग्रुप में जाकर अवश्य टाईप करें , और इनमे छपे लेखों को अपने फेस - बुक मित्रों संग शेयर भी करें !! आप चाहे तो हमारे ब्लॉग को ज्वाइन भी कर सकते हैं !! जिसका नाम है " फिफ्थ पिल्लर करप्शन किल्लर " जिसे खोलने हेतु लिंक ये है :- www.pitamberduttsharma.blogspot.com.
मित्रो अगर आप किसी भी विषय पर पढना चाहते हैं तो हमें बताइए हम उसी विषय पर अपने लेख लिखेंगे !!
जोर से मेरे साथ कहिये ... बोले सो निहाल , सत श्री अकाल !! आपका अपना मित्र ,
पीताम्बर दत्त शर्मा , +919414657511.
इससे पहले इन नक्सलियों ने और पुलिस ने ना जाने कितनी बार ऐसे ही नर संघार किया है !! ये एक बदले की भावना से भरी कोई कड़ी सी लगता है जैसे कभी भी ख़तम नहीं होगी !! इससे पहले 1983 से 1999 तक ऐसा ही पंजाब में चला , पूर्वी भारत में भी ऐसे ही देशवासी मरते रहे और काश्मीर में तो आज तक चल ही रहा है !! स्थान बदल जाते हैं , मरने वाले और मारने वाले के नाम बदल जाते हैं इसके साथ - साथ मारने वालों के उद्देश्य भी बदल जाते हैं , नहीं बदलता तो वो ये की चाहे जान का नुक्सान हो या माल का वो सिर्फ और सिर्फ " भारत " का ही हो रहा है 1945 से लेकर आज तक !! मरने वालों की संख्या लाखों में है और धन का तो कोई हिसाब भी किसी के पास नहीं है !!
ना जाने किस - किस नेता ने इस देश पर राज करलिया ,और न जाने कौन - कौन से नाम की पार्टियां बनी , लेकिन इस समस्या की तरफ किसी भी नेता और राजनितिक दल ने गंभीरता से नहीं देखा और सोचा , क्रियान्यवन तो बड़ी दूर की बात है !! बस , जब आग लगती है तभी कुआं खोदने के प्रयास करती सरकार अपने आपको दिखाती है !! चाँद दिनों बाद फिर ऐसी ही घटना फिर हो जाती है और फिर सरकार का मुखिया कहता है की " हम देख रहे हैं और हम देखेंगे " .....!!किसी भी समस्या को कभी भी जड़ से समाप्त करने और देश को जोड़ने की बात कभी की ही नहीं गयी !! क्यों ??
एक आम आदमी जो साधारण पढ़ा - लिखा है वो साड़ी समस्याओं का हल निकालने की क्षमता रखता है , वो कहता भी है की अगर कोई मुझे चंद महीनो खातिर सभी अधिकारों वाली " कुर्सी " ( वो कौन से पद वाली कुर्सी है ये वो भी नहीं जानता )दे - दे तो मैं सब कुछ ठीक करदूं और सबको सुधार दूं !! मैं यंहा मानने को तैयार हूँ की ये उस नादाँ का भोला पण होगा ! लेकिन कई विद्वान लोग भी ऐसा कहते हैं !! तो फिर हमारे देश के नेता सारी समस्याए नहीं तो आधी भी समस्याएं हल क्यों नहीं कर पाए ????????
क्या किसी समस्या को लम्बे समय तक लटकाना , उसका हल हो सकता है ????दुश्मन अगर अपनी सोच और रण - निति को बदल कर बड़ी और खर्चीली लड़ाई को छोड़ आतंक वादियों की कम खर्चे वाली लड़ाई लड़ सकता है तो हम सिर्फ अपने आपको बचाने ये बड़े देशों की आड़ में क्यों छिपाए बैठे हैं ???? हमारी व्यापार - निति , हमारी विदेश निति सब दूसरों पर क्यों निर्भर है ??हम अपने लिए अपना निर्णय क्यों नहीं कर पाते हैं ??? क्या हमारे नेता बता पायेंगे ??? क्या हमारे युवा ये प्रश्न पूछ पायेंगे ????
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